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हिम्मत रखिए—यहोवा आपका मददगार है!

हिम्मत रखिए—यहोवा आपका मददगार है!

‘पूरी हिम्मत रखो और यह कहो: “यहोवा मेरा मददगार है।”’—इब्रा. 13:6.

1, 2. जो लोग काम करने विदेश जाते हैं, उन्हें वापस लौटने पर किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

 चार्ल्स नाम का एक भाई बीते समय को याद करके कहता है, “विदेश में मैं एक अच्छी-खासी नौकरी करता था और मैंने खूब पैसा भी कमाया। a लेकिन जब मैंने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी एक और ज़िम्मेदारी है, जो पैसा कमाने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। और वह है, अपने परिवार की आध्यात्मिक रूप से देखभाल करना। इसलिए मैं वापस अपने घर लौट आया।”—इफि. 6:4.

2 चार्ल्स जानता था कि अपने परिवार के पास वापस लौटकर, उसने यहोवा को खुश किया है। लेकिन पिछले लेख में बतायी बहन जूली की तरह, चार्ल्स को भी अपनी पत्नी और अपने बच्चों के साथ अपने रिश्‍ते में आयी दूरियों को मिटाने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत थी। और उनकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अब उसे काफी पैसे भी कमाने थे। वह यह सब कैसे करता? क्या वह मंडली के भाई-बहनों से मदद की कोई उम्मीद कर सकता था?

पारिवारिक और परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ते में आयी दूरियाँ मिटाना

3. जब माता-पिता अपने बच्चों से दूर रहते हैं, तो इसका बच्चों पर क्या असर पड़ता है?

3 चार्ल्स कबूल करता है, “जब मेरे बच्चों को मेरे मार्गदर्शन और प्यार की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तब मैंने उन्हें नज़रअंदाज़ किया था। मैं उन्हें बाइबल कहानियाँ पढ़कर सुनाने, उन्हें प्यार करने, उनके साथ प्रार्थना करने, और खेलने के लिए उनके साथ नहीं था।” (व्यव. 6:7) उसकी सबसे बड़ी बेटी, आइरीन, उस समय को याद करके कहती है: “पापा हमारे साथ नहीं रहते थे, इसलिए मुझे लगता था वे मुझसे प्यार नहीं करते। जब वे लौटे, तो मैं सिर्फ उनके चेहरे और उनकी आवाज़ से उन्हें पहचानती थी। जब उन्होंने मुझे गले लगाया, तो मुझे बड़ा अजीब लगा।”

4. जब पिता अपने परिवार से दूर रहता है, तो उसके लिए मुखियापन की ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाना क्यों मुश्‍किल होता है?

4 जितने लंबे समय तक एक पिता अपने परिवार से दूर रहता है, उसके लिए परिवार का मुखिया बने रहना उतना ही ज़्यादा मुश्‍किल हो जाता है। चार्ल्स की पत्नी, रूबी समझाती है: “मुझे दो-दो भूमिकाएँ निभानी पड़ती थीं, माँ की भी और पिता की भी। मुझे परिवार के ज़्यादातर फैसले लेने की आदत-सी हो गयी थी। जब चार्ल्स घर लौटे, तो मुझे सीखना पड़ा कि मसीही अधीनता दिखाने का असल में क्या मतलब है। आज भी, कभी-कभार मुझे खुद को याद दिलाना पड़ता है कि अब मेरे पति हमारे साथ हैं।” (इफि. 5:22, 23) चार्ल्स कहता है, “कोई काम करने की इजाज़त लेने के लिए मेरी बेटियाँ हमेशा अपनी माँ के पास ही जाती थीं। माता-पिता होने के नाते, हमें एहसास हुआ कि यह ज़रूरी है कि हमारे बच्चे देखें कि हम दोनों मिलकर फैसले लेते हैं। और मुझे सीखना पड़ा कि मुझे मसीही शिक्षाओं के मुताबिक अगुवाई लेने की ज़रूरत है।”

5. (क) जब चार्ल्स घर लौटा, तो उसने अपने परिवार के साथ अपने रिश्‍ते में आयी दूरियों को मिटाने के लिए क्या किया? (ख) इसका क्या नतीजा हुआ?

5 चार्ल्स ने अपने परिवार के साथ अपना रिश्‍ता सुधारने और उनकी आध्यात्मिकता मज़बूत करने के लिए अपना भरसक किया। “मेरा लक्ष्य था अपनी बातों और मिसाल से अपने बच्चों के दिलों में सच्चाई बिठाना। मैं अपने बच्चों को सिर्फ अपनी बातों से ही नहीं, बल्कि अपने कामों से भी दिखाना चाहता था कि मैं यहोवा से कितना प्यार करता हूँ।” (1 यूह. 3:18) क्या यहोवा ने चार्ल्स की मेहनत पर आशीष दी? आइरीन बताती है, “उन्हें एक अच्छे पिता बनने के लिए और दोबारा हमारे साथ करीबी रिश्‍ता कायम करने के लिए इतनी कड़ी मेहनत करते देखकर हम पर बहुत गहरा असर हुआ। जब हमने उन्हें मंडली में ज़िम्मेदारियाँ पाने की कोशिश में आगे बढ़ते देखा, तो हमें गर्व महसूस हुआ। यह दुनिया हमें यहोवा से दूर करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन जब हमने देखा कि हमारे माता-पिता सच्चाई में मज़बूत खड़े हैं, तो हमने भी ऐसा ही करने की कोशिश की। पापा ने वादा किया कि वे फिर कभी हमें छोड़कर नहीं जाएँगे और उन्होंने अपना वादा निभाया। अगर वे अपने वादे से मुकर गए होते, तो शायद आज मैं यहोवा के संगठन में नहीं होती।”

गलती कबूल करना

6. बॉलकन देशों में युद्ध के दौरान बहुत-से माता-पिताओं ने क्या सबक सीखा?

6 बच्चे चाहते हैं कि उनके माता-पिता उनके साथ रहें। मिसाल के लिए, जब बॉलकन देशों में युद्ध चल रहा था, तो बहुत-से साक्षी माता-पिता काम पर नहीं जा पाए थे। इसलिए उन्होंने अपना ज़्यादातर समय घर पर अपने बच्चों के साथ बिताया। वे अपने बच्चों के साथ खेले-कूदे, उनसे बातें कीं और उनके साथ अध्ययन किया। बच्चों को भी बहुत मज़ा आया। नतीजा, हालाँकि युद्ध के दौरान हालात काफी मुश्‍किल थे, मगर फिर भी बच्चे बहुत खुश थे। हम इससे क्या सीख सकते हैं? यही कि बच्चों के लिए पैसों या तोहफों से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है, अपने माता-पिता का साथ। जैसा कि बाइबल कहती है, अगर माता-पिता बच्चों के साथ वक्‍त बिताएँगे और उन्हें तालीम देंगे, तो बच्चों को फायदा होगा।—नीति. 22:6.

7, 8. (क) घर लौटने पर माता-पिता शायद किस बात से हैरान रह जाएँ? (ख) माता-पिता बच्चों के साथ अपने रिश्‍ते में आयी दरार को कैसे भर सकते हैं?

7 कुछ माता-पिता शायद अपने परिवार के पास लौटने पर हैरान रह जाएँ। हो सकता है बच्चे उन्हें जताएँ कि उनके लौटने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है या अब उन्हें अपने माता-पिता पर भरोसा नहीं रहा। इस पर शायद माँ या पिता उनसे कहें, “मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ किया और इसका मुझे यह सिला मिल रहा है?” मगर सच तो यह है कि बच्चे को इसलिए बुरा लग रहा है, क्योंकि उसकी माँ या पिता उसे छोड़कर चले गए थे। ऐसे में माता-पिता रिश्‍ते में आयी दरार को कैसे भर सकते हैं?

8 यहोवा से प्रार्थना में मदद माँगिए कि आप समझ पाएँ कि आपका परिवार असल में कैसा महसूस कर रहा है और आप उन्हें यह दिखा पाएँ कि आप उनकी परवाह करते हैं। इसके बाद, अपने परिवार से बात करते वक्‍त, यह कबूल कीजिए कि कुछ हद तक गलती आपकी भी है। आप दिल से उनसे माफी माँग सकते हैं। जैसे-जैसे आपका साथी और आपके बच्चे देखेंगे कि आप हालात को सुधारने के लिए बिना हार माने कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो वे जान जाएँगे कि आप दिखावा नहीं कर रहे, बल्कि सच्चे दिल से हालात को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। अगर आप धीरज धरें और हिम्मत न हारें, तो शायद आप दोबारा परिवार का प्यार और उनकी इज़्ज़त पा लें।

“अपने घर के लोगों की देखभाल” करना

9. “अपने घर के लोगों की देखभाल” करने के लिए एक मसीही का अमीर बनना क्यों ज़रूरी नहीं?

9 प्रेषित पौलुस ने लिखा कि जब बुज़ुर्ग मसीही अपनी ज़रूरतों का खयाल खुद नहीं रख पाते, तो उनके बच्चों और नाती-पोतों को चाहिए कि वे उनका “हक अदा” करें। पौलुस के मुताबिक, हमारे जीने का तरीका ऐसा होना चाहिए कि अगर हमारे पास खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह है, तो हम उसी में संतोष करें। (1 तीमुथियुस 5:4, 8; 6:6-10 पढ़िए।) “अपने घर के लोगों की देखभाल” करने के लिए एक मसीही को इस मिटती हुई दुनिया में अमीर बनने की ज़रूरत नहीं। (1 यूह. 2:15-17) हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि पैसे से हमारी सभी मुश्‍किलें हल हो सकती हैं। साथ ही, हमें “ज़िंदगी की चिंताओं” में इस कदर नहीं उलझ जाना चाहिए कि परमेश्‍वर की नयी दुनिया में मिलनेवाली “असली ज़िंदगी पर” हमारे परिवार की “मज़बूत पकड़” ही ढीली पड़ जाए।—लूका 21:34-36; 1 तीमु. 6:19; मर. 4:19.

10. कर्ज़ लेने से दूर रहना क्यों बुद्धिमानी है?

10 यहोवा जानता है कि हमें थोड़े-बहुत पैसों की ज़रूरत है। लेकिन रुपया-पैसा हमारी उस तरह मदद या हिफाज़त नहीं कर सकता, जैसे यहोवा से मिली बुद्धि कर सकती है। (सभो. 7:12; लूका 12:15) कई बार, लोगों को यह एहसास नहीं होता कि दूसरे देश में जाकर रहने के लिए कितना पैसा लगेगा। और इस बात की कोई गारंटी भी नहीं होती कि वहाँ जाने पर वे पैसा ज़रूर कमाएँगे। सच तो यह है कि विदेश जाना उनके लिए खतरनाक भी हो सकता है। बहुत-से लोग जो अपने परिवार को छोड़कर चले जाते हैं, वे लौटने पर खुद को और भी कर्ज़ में डूबा हुआ पाते हैं। नतीजा, परमेश्‍वर की सेवा में पहले से ज़्यादा वक्‍त बिताने के बजाय, वे उन लोगों की सेवा करने लगते हैं, जिनसे उन्होंने कर्ज़ लिया था। (नीतिवचन 22:7 पढ़िए।) बुद्धिमानी इसी में है कि हम कर्ज़ लेने से दूर ही रहें!

11. बजट तैयार करने से परिवार को कैसे मदद मिल सकती है?

11 चार्ल्स जानता था कि घर वापस आने पर, अगर वह अपने परिवार की अच्छी तरह देखभाल करना चाहता है, तो उसे बहुत सोच-समझकर पैसा खर्च करना होगा। उसने और उसकी पत्नी ने देखा कि उन्हें वाकई किन चीज़ों की ज़रूरत है, और उसके मुताबिक उन्होंने एक बजट तैयार किया। b बजट के हिसाब से चलने के लिए, अब वे पहले के मुकाबले कम चीज़ें खरीद सकते थे। मगर फिर भी परिवार में सभी ने उसका साथ दिया और गैर-ज़रूरी चीज़ों पर पैसा खर्च नहीं किया। चार्ल्स बताता है, “मिसाल के लिए, मैंने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों से निकालकर, अच्छे सरकारी स्कूलों में डाला।” उसने और उसके परिवार ने प्रार्थना की कि उसे ऐसी नौकरी मिल सके, जिससे उनकी उपासना पर असर न पड़े। यहोवा ने उनकी प्रार्थनाओं का जवाब कैसे दिया?

12, 13. (क) चार्ल्स ने अपने परिवार की देखभाल करने के लिए क्या कारगर कदम उठाए? (ख) ज़िंदगी को सादा बनाए रखने के चार्ल्स के फैसले पर यहोवा ने कैसे आशीष दी?

12 चार्ल्स बीते समय को याद करके कहता है, “पहले दो साल बहुत मुश्‍किल से कटे। हमारे पैसे खत्म होते जा रहे थे, मेरी छोटी-सी तनख्वाह से सारे खर्च पूरे नहीं हो पाते थे और मैं बहुत थक जाता था। मगर हम सारी सभाओं में और प्रचार में साथ जा पाते थे।” चार्ल्स ने फैसला किया कि वह ऐसी नौकरी करने के बारे में सोचेगा भी नहीं, जो उसे अपने परिवार से दूर रखे। वह कहता है, “इसके बजाय, मैंने अलग-अलग तरह के काम करने सीखे, ताकि अगर कोई एक तरह का काम न मिले, तो मैं कोई दूसरा काम कर सकूँ।”

क्या आप अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अलग-अलग तरह के काम करना सीख सकते हैं? (पैराग्राफ 12 देखिए)

13 चार्ल्स को अपना कर्ज़ चुकाने में बहुत लंबा समय लगा, इसलिए उसे काफी ब्याज भी देना पड़ा। लेकिन चार्ल्स इसके लिए तैयार था, क्योंकि वह अपने परिवार के साथ मिलकर यहोवा की सेवा करना चाहता था। वह कहता है, “मैं विदेश में जितने पैसे कमाता था, अब उसके 10 प्रतिशत से भी कम कमाता हूँ। लेकिन हमें भूखे पेट सोना नहीं पड़ता। ‘यहोवा का हाथ छोटा नहीं है।’ दरअसल, हमने पायनियर सेवा करने का फैसला कर लिया। ताज्जुब की बात है कि उसके जल्द बाद, आर्थिक हालात में सुधार आया और हमारे लिए ज़रूरत की चीज़ें खरीदना ज़्यादा आसान हो गया।”—यशा. 59:1.

रिश्‍तेदारों से आनेवाले दबाव का सामना करना

14, 15. (क) जब रिश्‍तेदार परिवार पर यहोवा की उपासना करने के बजाय पैसा कमाने का दबाव डालते हैं, तो परिवार क्या कर सकता है? (ख) ऐसे में अच्छी मिसाल रखने का क्या नतीजा हो सकता है?

14 कई जगहों पर लोगों को लगता है कि उन्हें अपने रिश्‍तेदारों और दोस्तों को पैसे और तोहफे देने चाहिए। चार्ल्स कहता है, “हमारे यहाँ देने का रिवाज़ है और हमें देने में खुशी भी होती है।” मगर फिर वह कहता है: “ऐसा एक हद तक ही किया जा सकता है। मैं समझ-बूझ से अपने रिश्‍तेदारों को समझाता हूँ कि मैं जितना दे सकता हूँ उतना ज़रूर दूँगा, लेकिन अपने परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतों और उपासना को दाँव पर नहीं लगाऊँगा।”

15 कुछ रिश्‍तेदार ऐसे व्यक्‍ति से नाराज़ हो जाते हैं, जो अपने परिवार को छोड़कर विदेश नहीं जाता या फिर विदेश छोड़कर घर लौट आता है। वे ताने कसते हैं कि वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है और दूसरों से प्यार नहीं करता। वे ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि वे उम्मीद करते हैं कि उनका रिश्‍तेदार उन्हें पैसे भेजेगा। (नीति. 19:6, 7) चार्ल्स की बेटी, आइरीन कहती है कि अगर उसका परिवार ज़्यादा पैसा कमाने के बजाय, यहोवा की उपासना करने का चुनाव करे, तो हो सकता है उनके रिश्‍तेदार समझ जाएँ कि उनकी ज़िंदगी में यहोवा कितनी अहमियत रखता है। लेकिन अगर वे ऐसा न करें, तो शायद उनके रिश्‍तेदार यह बात कभी नहीं समझ पाएँगे।—1 पतरस 3:1, 2 से तुलना कीजिए।

परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखना

16. (क) एक इंसान कैसे “झूठी दलीलों से खुद को धोखा” दे सकता है? (याकू. 1:22) (ख) यहोवा किन फैसलों पर आशीष देता है?

16 एक बहन ने, जो विदेश में काम करने के लिए अपने परिवार को छोड़कर चली गयी थी, वहाँ के प्राचीनों से कहा: “हमें बहुत-से त्याग करने पड़े, ताकि मैं यहाँ आ सकूँ। यहाँ तक कि मेरे पति को प्राचीन के तौर पर सेवा करना भी छोड़ना पड़ा। इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि यहोवा मेरे यहाँ आने के फैसले पर आशीष देगा।” यहोवा हमेशा उन फैसलों पर आशीष देता है, जो हम उस पर विश्‍वास दिखाते हुए लेते हैं। मगर क्या वह ऐसे फैसलों पर आशीष देगा, जो उसकी मरज़ी के खिलाफ हों, खासकर ऐसे फैसले जिन्हें लेकर हम सेवा में मिले सम्मान को बेवजह ठुकरा रहे हों?—इब्रानियों 11:6; 1 यूहन्‍ना 5:13-15 पढ़िए।

17. (क) हमें फैसले लेने से पहले यहोवा से मार्गदर्शन क्यों माँगना चाहिए? (ख) हम यह कैसे कर सकते हैं?

17 फैसला लेने से पहले यहोवा से मार्गदर्शन माँगिए, न कि फैसला लेने के बाद। उसकी पवित्र शक्‍ति, बुद्धि और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना कीजिए। (2 तीमु. 1:7) खुद से पूछिए: ‘यहोवा की सेवा करने के लिए मैं किस हद तक त्याग करने के लिए तैयार हूँ? परिवार के साथ रहने की उसने जो हिदायत दी है, क्या मैं उसे मानूँगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे अपनी ज़िंदगी को और सादा क्यों न बनाना पड़े?’ (लूका 14:33) प्राचीनों से मदद माँगिए और बाइबल पर आधारित उनकी सलाह मानिए। अगर आप यह सब करके यहोवा से मार्गदर्शन माँगेंगे, तो आप दिखाएँगे कि आप उसके इस वादे पर भरोसा रखते हैं कि वह आपकी मदद करेगा। प्राचीन आपके लिए फैसला तो नहीं लेंगे, लेकिन वे आपको सही चुनाव करने में मदद ज़रूर देंगे, जिससे आपकी ज़िंदगी में खुशियाँ आ सकती हैं।—2 कुरिं. 1:24.

18. (क) परिवार की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? (ख) हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?

18 यहोवा परिवार के मुखियाओं से यह उम्मीद करता है कि वे अपने परिवार की देखभाल करने की “ज़िम्मेदारी का बोझ” उठाएँ। (गला. 6:5) हमें उन भाइयों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उनकी तारीफ करनी चाहिए, जो बिना अपने परिवार से अलग हुए, अपनी यह ज़िम्मेदारी निभाते हैं, तब भी जब उन्हें विदेश जाने की इच्छा होती है या जब दूसरे उन पर विदेश जाने का दबाव डालते हैं। उन वफादार भाइयों के लिए प्रार्थना करने के अलावा, हमारे पास एक और मौका है, जब हम उन्हें अपनी परवाह दिखा सकते हैं। (गला. 6:2; 1 पत. 3:8) और वह है तब, जब उन पर कोई विपत्ति आ जाती है या अचानक उनकी तबियत बहुत खराब हो जाती है। या फिर क्या आप उन्हें आस-पास कहीं काम ढूँढ़ने में मदद दे सकते हैं या उन्हें कुछ ऐसा दे सकते हैं, जिसकी उन्हें उस वक्‍त सख्त ज़रूरत है, जैसे पैसा या खाना? अगर आप ऐसा करें, तो हो सकता है उनके लिए अपने परिवार को छोड़कर दूसरी जगह काम ढूँढ़ने जाने की नौबत ही न आए।—नीति. 3:27, 28; 1 यूह. 3:17.

याद रखिए, यहोवा आपका मददगार है!

19, 20. मसीही क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा उनकी मदद करेगा?

19 यहोवा हमें यकीन दिलाता है: “तुम्हारे जीने के तरीके में पैसे का प्यार न हो, और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है: ‘मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।’ इसलिए हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें: ‘यहोवा मेरा मददगार है, मैं न डरूँगा। इंसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?’” (इब्रा. 13:5, 6) हम अपनी ज़िंदगी में यहोवा के इस वादे को कैसे पूरा होते देखते हैं?

20 एक गरीब देश में रहनेवाला एक प्राचीन कहता है, “लोग अकसर कहते हैं कि यहोवा के साक्षी कितने खुश रहते हैं। वे इस बात पर भी गौर करते हैं कि गरीब साक्षी भी हमेशा अच्छे कपड़े पहनते हैं और ऐसा लगता है उनके पास ज़रूरत की सभी चीज़ें हैं।” यीशु ने राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देनेवालों से ठीक इसी बात का वादा किया था। (मत्ती 6:28-30, 33) जी हाँ, स्वर्ग में रहनेवाला आपका पिता यहोवा आपसे बहुत प्यार करता है और वह हमेशा आपकी और आपके बच्चों की भलाई चाहता है। “यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” (2 इति. 16:9) तभी तो उसने पारिवारिक जीवन और अपनी ज़रूरतें पूरी करने के बारे में हमें आज्ञाएँ दी हैं। जब हम उसकी आज्ञाएँ मानते हैं, तो हम यहोवा को दिखाते हैं कि हम उससे प्यार करते हैं और उस पर भरोसा रखते हैं। “परमेश्‍वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें; और उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं।”—1 यूह. 5:3.

21, 22. आपने यहोवा पर भरोसा रखने की क्यों ठान ली है?

21 चार्ल्स कहता है, “मैं जानता हूँ कि जो समय मैंने अपनी पत्नी और बच्चों से दूर रहकर बिताया, वह फिर कभी लौटकर नहीं आ सकता। लेकिन मैं बीती बातों पर अफसोस नहीं करता। बहुत-से लोग जिनके साथ मैंने पहले काम किया था, वे आज अमीर तो हैं लेकिन खुश नहीं हैं। उनके परिवार में कई गंभीर समस्याएँ हैं। लेकिन हमारा परिवार बहुत खुश है! और मुझे यह देखकर इतना अच्छा लगता है कि इस देश में दूसरे भाई गरीब होते हुए भी, कैसे अपनी ज़िंदगी में आध्यात्मिक बातों को पहली जगह दे रहे हैं। हम सभी यीशु के वादे को पूरा होते देख रहे हैं!”—मत्ती 6:33 पढ़िए।

22 हिम्मत रखिए! यहोवा की आज्ञा मानने का चुनाव कीजिए और उस पर भरोसा रखिए। अगर आप यहोवा से, अपने साथी से और अपने बच्चों से प्यार करते हैं, तो आप मुखियापन की ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभा पाएँगे। नतीजा, आप अनुभव करेंगे कि ‘यहोवा आपका मददगार है।’

a नाम बदल दिए गए हैं।

b सितंबर 2011 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में श्रृंखला लेख “पैसे का सोच-समझकर इस्तेमाल कैसे करें” और अक्टूबर-दिसंबर 2010 की सजग होइए! में लेख “कम पैसे में खर्चा कैसे चलाएँ” देखिए।