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“विश्वास में मज़बूत खड़े रहो”

“विश्वास में मज़बूत खड़े रहो”

“विश्वास में मज़बूत खड़े रहो, . . . शक्‍तिशाली बनते जाओ।”—1 कुरिं. 16:13.

गीत: 23, 34

1. (क) गलील सागर में तूफान के दौरान पतरस के साथ क्या हुआ? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) पतरस क्यों डूबने लगा था?

एक रात की बात है। प्रेषित पतरस और कुछ दूसरे चेले अपनी नाव पर गलील सागर में थे, तभी तूफान आ गया। वे अपनी नाव सागर के किनारे ले जाने के लिए जद्दोजेहद कर रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि यीशु पानी पर चलता हुआ आ रहा है। पतरस ने यीशु को पुकारा और उससे कहा कि क्या वह पानी पर चलकर उसके पास आ सकता है। जब यीशु ने उससे आने के लिए कहा तो पतरस नाव से उतरा और उसकी तरफ जाने लगा। लेकिन कुछ ही देर में पतरस डूबने लगा। वह क्यों? क्योंकि पतरस तूफान को देखने लगा और डर गया। वह मदद के लिए चिल्लाने लगा। यीशु ने फौरन उसे थाम लिया और कहा, “अरे, कम विश्वास रखनेवाले, तू ने शक क्यों किया?”—मत्ती 14:24-32.

2. अब हम क्या चर्चा करेंगे?

2 आइए हम पतरस के इस अनुभव से विश्वास के बारे में तीन बातों पर गौर करें। (1) शुरूआत में पतरस ने यहोवा पर कैसे भरोसा दिखाया कि वह उसकी मदद करेगा, (2) पतरस का विश्वास क्यों कमज़ोर होने लगा और (3) पतरस को अपना विश्वास मज़बूत करने में किस बात ने मदद की। इन मुद्दों की जाँच करने से हमें मदद मिलेगी कि हम कैसे “विश्वास में मज़बूत खड़े” रह सकते हैं।—1 कुरिं. 16:13.

विश्वास कीजिए परमेश्वर हमें सहारा देगा

3. (क) पतरस नाव से किस वजह से उतर पाया? (ख) हमने भी कुछ वैसा ही कैसे किया है?

3 जब यीशु ने पतरस को बुलाया तो वह नाव से उतरा और पानी पर चलने लगा। वह किस वजह से ऐसा कर पाया? अपने मज़बूत विश्वास की वजह से। उसे परमेश्वर पर भरोसा था कि जैसे उसने यीशु को पानी पर चलने के काबिल बनाया, वैसे ही वह उसे भी काबिल बना सकता है। उसी तरह, जब यीशु ने हमें उसके चेले बनने या उसके नक्शे-कदम पर चलने का न्यौता दिया तो हमने उसके पिता यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की और बपतिस्मा लिया। हम यह क्यों कर पाए? क्योंकि हमें यहोवा और यीशु पर विश्वास है और हमें भरोसा है कि वे हमारी मदद करेंगे।—यूह. 14:1; 1 पतरस 2:21 पढ़िए।

4, 5. यह क्यों कहा जा सकता है कि विश्वास किसी खज़ाने से कम नहीं?

4 हमारा विश्वास किसी खज़ाने से कम नहीं। पतरस अपने विश्वास की वजह से ही पानी पर चल पाया। या यू कहें कि एक ऐसा काम कर पाया जो इंसानों को नामुमकिन लगता है। विश्वास होने से हम भी ऐसे-ऐसे काम कर सकते हैं जो नामुमकिन लगते हैं। (मत्ती 21:21, 22) उदाहरण के लिए, हममें से कुछ लोगों ने अपना रवैया और व्यवहार इस हद तक बदला है कि जो लोग उन्हें पहले जानते थे, वे अब उन्हें पहचान भी नहीं पाते। ये भाई-बहन अपनी ज़िंदगी इसलिए बदल पाए क्योंकि वे यहोवा से प्यार करते हैं और उसने ये बदलाव करने में उनकी मदद की है। (कुलुस्सियों 3:5-10 पढ़िए।) विश्वास ने ही हमें यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने के लिए उभारा और ऐसा करके हम उसके दोस्त बन गए। यानी वह कर पाए जो उसकी मदद के बिना हम कभी नहीं कर पाते।—इफि. 2:8.

5 हमारा विश्वास लगातार हमें मज़बूत बनाता है। उदाहरण के लिए, विश्वास हमें हमारे ताकतवर दुश्मन इब्लीस के हमलों का मुकाबला करने की ताकत देता है। (इफि. 6:16) साथ ही, यहोवा पर भरोसा होने की वजह से हम परेशानियों के दौरान बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करते। यहोवा ने वादा किया है कि अगर हम उस पर विश्वास करें और उसके राज को पहली जगह दें तो वह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा। (मत्ती 6:30-34) इससे भी बढ़कर विश्वास की वजह से ही तो यहोवा हमें एक शानदार तोहफा देगा, जी हाँ, हमेशा की ज़िंदगी!—यूह. 3:16.

ध्यान बँटा, विश्वास घटा

6, 7. (क) पतरस जिस आँधी और लहरों को देखकर डर गया उसकी तुलना किससे की जा सकती है? (ख) हमें इस बात को हलके में क्यों नहीं लेना चाहिए कि हमारा विश्वास कमज़ोर हो सकता है?

6 जब पतरस पानी पर चल रहा था, तो वह आँधी और लहरों को देखकर डर गया। इन लहरों की तुलना उन मुश्किलों और ज़ुल्मों से की जा सकती है जिनका मसीहियों को आज सामना करना पड़ता है। चाहे हमें मुश्किल-से-मुश्किल हालात का सामना करना पड़े, फिर भी हम यहोवा की मदद से मज़बूत बने रह सकते हैं। लेकिन याद कीजिए पतरस के साथ क्या हुआ। ऐसा नहीं कि वह आँधी और तूफान की वजह से डूबने लगा था। इसके बजाय गौर कीजिए कि बाइबल क्या कहती है, “तूफान को देखकर वह डर गया।” (मत्ती 14:30) पतरस, यीशु की तरफ देखने के बजाय इस बात पर ध्यान देने लगा कि तूफान कितना भयानक है। तभी उसका विश्वास कमज़ोर होने लगा। उसी तरह, अगर हम अपनी परेशानियों पर ध्यान देने लगें, तो हम यह शक करने लग सकते हैं कि पता नहीं यहोवा हमारी मदद करेगा भी या नहीं।

7 हमें इस बात को हलके में नहीं लेना चाहिए कि हमारा विश्वास कमज़ोर हो सकता है। क्यों? क्योंकि बाइबल विश्वास की कमी के बारे में कहती है कि यह ऐसा ‘पाप है जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है।’ (इब्रा. 12:1) पतरस के अनुभव से पता चलता है कि अगर हम उन बातों पर मन लगाएँ जिन पर हमें मन नहीं लगाना चाहिए तो हमारा विश्वास भी देखते-ही-देखते कमज़ोर हो सकता है। तो हमें कैसे पता चलेगा कि हमारा विश्वास खतरे में है? आगे दिए सवालों की मदद से हम खुद की जाँच कर सकते हैं।

8. परमेश्वर के वादे हमारे लिए अब शायद उतने असल न हों जितने पहले थे, यह कैसे पता चल सकता है?

8 क्या परमेश्वर के वादे मेरे लिए आज भी उतने असल हैं जितने पहले थे? मिसाल के लिए, परमेश्वर ने वादा किया है कि वह शैतान की दुनिया का नाश कर देगा। लेकिन शैतान की दुनिया अलग-अलग तरह का जो मनोरंजन पेश करती है, क्या उससे हमारा ध्यान भटक जाता है? अगर हाँ, तो हम शायद शक करने लगें कि क्या वाकई दुनिया का अंत इतनी जल्दी होगा। (हब. 2:3) एक और उदाहरण लीजिए। यहोवा वादा करता है कि वह फिरौती बलिदान के आधार पर हमें माफ कर देता है। लेकिन अगर हम बीते समय में की अपनी गलतियों के बारे में ही सोचते रहें तो हम शायद शक करने लगें कि क्या यहोवा ने सच में हमारे सभी पाप ‘मिटा दिए’ हैं। (प्रेषि. 3:19) नतीजा, परमेश्वर की सेवा में हमारी खुशी छिन सकती है और हमारा जोश ठंडा पड़ सकता है।

9. अगर हम उन बातों पर ज़्यादा ध्यान देने लगें जो हमारे फायदे की हैं, तो क्या हो सकता है?

9 क्या मैं अब भी यहोवा की सेवा दिलो-जान से करता हूँ? जब हम यहोवा की सेवा में कड़ी मेहनत करते हैं, तो भविष्य के बारे में अपनी आशा पर ध्यान लगाए रखना हमारे लिए आसान हो जाता है। लेकिन तब क्या अगर हम उन बातों पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हों जो हमारे फायदे की हैं? जैसे, हम शायद ऐसी नौकरी करने लगे हों, जिसमें अच्छी तनख्वाह तो मिलती है लेकिन यहोवा की सेवा के लिए बहुत कम समय मिलता है। इससे हमारा विश्वास कमज़ोर पड़ सकता है और हम “आलसी” हो सकते हैं, यानी यहोवा की सेवा में हम शायद उतना न करें जितना हम कर सकते हैं।—इब्रा. 6:10-12.

10. जब हम दूसरों को माफ करते हैं तो हम कैसे यहोवा पर भरोसा दिखा रहे होते हैं?

10 क्या दूसरों को माफ करना मेरे लिए मुश्किल होता है? जब दूसरे हमें नाराज़ करते या ठेस पहुँचाते हैं तो क्या हम उनसे गुस्सा हो जाते हैं या उनसे बात करना बंद कर देते हैं? अगर ऐसा है, तो इसका मतलब हम अपनी भावनाओं पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान दे रहे हैं। लेकिन जब हम दूसरों को माफ कर देते हैं तो हम यहोवा पर अपना विश्वास दिखा रहे होते हैं। वह कैसे? जब कोई हमारे खिलाफ पाप करता है, तो वह हमारा कर्ज़दार हो जाता है। और जब हम यहोवा के खिलाफ पाप करते हैं, तो हम उसके कर्ज़दार हो जाते हैं। (लूका 11:4) इसलिए जब हम दूसरों को माफ करते हैं तो हम यहोवा पर यह भरोसा दिखा रहे होते हैं कि वह हमारे इस रवैए पर आशीष देगा। उसकी आशीष का मोल इस बात से कहीं ज़्यादा है कि दूसरे हमारा कर्ज़ चुकाएँ। यीशु के चेलों ने यह भी सीखा कि दूसरों को माफ करने के लिए विश्वास का होना ज़रूरी है। जब यीशु ने उनसे कहा कि वे उन्हें भी माफ करें जो बार-बार उनके खिलाफ पाप करते हैं, तो चेलों ने उससे गुज़ारिश की, “हमारा विश्वास बढ़ा।”—लूका 17:1-5.

11. सलाह दिए जाने पर उससे फायदा पाने से हम कैसे चूक सकते हैं?

11 जब मुझे बाइबल से सलाह दी जाती है, तो क्या मैं बुरा मान जाता हूँ? जब कोई सलाह देता है तो उस सलाह में नुक्स निकालने या सलाह देनेवाले में कमियाँ ढूँढ़ने के बजाय उस सलाह से पूरा फायदा उठाइए और खुद में ज़रूरी बदलाव कीजिए। (नीति. 19:20) इस तरह यहोवा की तरह सोचना सीखिए, कोई भी मौका हाथ से मत जाने दीजिए!

12. अगर कोई हमेशा उनके खिलाफ बातें करता है जो यहोवा के लोगों की अगुवाई करते हैं, तो यह क्या दिखाता है?

12 मंडली में जो भाई अगुवाई लेते हैं क्या मैं उनमें नुक्स निकालता रहता हूँ? जब इसराएलियों ने दस जासूसों से मिली बुरी खबर पर ध्यान दिया तो वे मूसा और हारून के खिलाफ बातें करने लगे। तब यहोवा ने मूसा से कहा, ‘वे लोग कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे?’ (गिन. 14:2-4, 11) मूसा और हारून के खिलाफ बातें करके इसराएली असल में यह दिखा रहे थे कि उन्हें यहोवा पर भरोसा नहीं है, क्योंकि उन दोनों को यहोवा ने ही अधिकार दिया था। उसी तरह, अगर हम हमेशा उनके खिलाफ बातें करते रहें जिन्हें यहोवा ने अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए नियुक्‍त किया है, तो यह दिखाएगा कि परमेश्वर पर हमारा विश्वास कमज़ोर हो गया है।

13. अगर हमें पता चलता है कि हमारा विश्वास कमज़ोर हो गया है, तो हमें क्यों निराश नहीं होना चाहिए?

13 इन सवालों पर गौर करने के बाद, अगर आपको पता चलता है कि आपका विश्वास कमज़ोर हो गया है तो निराश मत होइए। याद कीजिए प्रेषित पतरस भी डर गया था और शक करने लगा था। कभी-कभी तो यीशु ने अपने सभी प्रेषितों को “कम विश्वास” रखने की वजह से डाँट-फटकार लगायी। (मत्ती 16:8) फिर भी पतरस के अनुभव से हम एक ज़रूरी बात सीख सकते हैं। गौर कीजिए कि जब वह शक करने लगा और सागर में डूबने लगा, उसके बाद उसने क्या किया।

विश्वास मज़बूत करने के लिए यीशु पर ध्यान लगाइए

14, 15. (क) जब पतरस डूबने लगा तो उसने क्या किया? (ख) हम यीशु पर कैसे अपनी “नज़र टिकाए” रख सकते हैं?

14 जब पतरस डूबने लगा तो उसने क्या किया? पतरस अच्छी तरह तैरना जानता था, इसलिए वह तैरकर वापस नाव में जा सकता था। (यूह. 21:7) लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। क्यों? क्योंकि उसने खुद पर भरोसा करने के बजाय, फिर से यीशु पर ध्यान दिया और उससे मदद ली। अगर हमें एहसास होता है कि हमारा विश्वास कमज़ोर हो गया है, तो हमें पतरस की मिसाल पर चलना चाहिए। कैसे?

15 ठीक जैसे पतरस ने फिर से यीशु पर ध्यान दिया, हमें भी “यीशु पर नज़र टिकाए” रखना चाहिए। (इब्रानियों 12:2, 3 पढ़िए।) लेकिन हम पतरस की तरह यीशु को देख तो नहीं सकते, फिर हम यीशु पर कैसे अपनी “नज़र टिकाए” रख सकते हैं? हमें उसकी शिक्षाओं और उसके कामों का अध्ययन करना चाहिए। फिर हमें उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे, तो हम अपने विश्वास को मज़बूत कर पाएँगे। आइए यीशु के नक्शे-कदम पर चलने के कुछ तरीकों पर गौर करें।

यीशु की मिसाल पर ध्यान देने और उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलने से हम विश्वास में मज़बूत हो सकते हैं (पैराग्राफ 15 देखिए)

16. विश्वास मज़बूत करने में बाइबल कैसे हमारी मदद कर सकती है?

16 बाइबल पर अपना भरोसा बढ़ाइए। यीशु को पूरा यकीन था कि बाइबल परमेश्वर का वचन है और इसकी सलाह सबसे उम्दा है। (यूह. 17:17) यीशु की तरह यकीन करने के लिए, हमें हर दिन बाइबल पढ़नी चाहिए, उसका अध्ययन करना चाहिए और सीखी हुई बातों पर गहराई से सोचना चाहिए। अगर किसी विषय पर हमारे मन में सवाल उठते हैं तो उनके जवाब पाने के लिए खोजबीन करनी चाहिए। जैसे, क्या आपको पूरा यकीन है कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं? उन भविष्यवाणियों का अध्ययन करके अपना विश्वास मज़बूत कीजिए जो साबित करती हैं कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं। क्या आप भविष्य के बारे में परमेश्वर के वादों पर अपना विश्वास मज़बूत करना चाहते हैं? तो बाइबल की उन भविष्यवाणियों का अध्ययन कीजिए जो पूरी हो चुकी हैं। क्या आपको यकीन है कि बाइबल में दी सलाहें आज भी लागू की जा सकती हैं? उन भाई-बहनों के अनुभव पढ़िए जिन्होंने बाइबल की मदद से अपनी ज़िंदगी सँवारी है। *1 थिस्स. 2:13.

17. (क) यीशु किस वजह से मुश्किल-से-मुश्किल हालात का सामना कर पाया? (ख) आप उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

17 उन आशीषों पर ध्यान लगाइए जिनका यहोवा ने वादा किया है। यीशु ने अपना ध्यान उन आशीषों पर लगाया था जो भविष्य में उसे मिलनेवाली थीं। इससे वह मुश्किल-से-मुश्किल हालात का सामना कर पाया। (इब्रा. 12:2) वह कभी-भी उन चीज़ों से गुमराह नहीं हुआ जो दुनिया उसे दे सकती थी। (मत्ती 4:8-10) हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? यहोवा ने जो शानदार आशीषें देने का वादा किया है उनके बारे में गहराई से सोचिए। कल्पना कीजिए कि आप नयी दुनिया में कदम रख चुके हैं। कैसे? उन बातों को लिखिए या उनकी तसवीर बनाइए जो आप फिरदौस में करना चाहते हैं। उन लोगों के नाम की सूची बनाइए जिनसे आप बात करना चाहते हैं, जब वे ज़िंदा किए जाएँगे। उस सूची में यह भी लिखिए कि आप उनसे क्या बातें करना चाहेंगे। परमेश्वर के इन वादों को इस नज़र से देखिए कि वे आप से किए गए हैं, न कि सभी लोगों से।

18. विश्वास बढ़ाने में प्रार्थना कैसे आपकी मदद कर सकती है?

18 विश्वास बढ़ाने के लिए प्रार्थना कीजिए। यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि वे पवित्र शक्‍ति के लिए यहोवा से प्रार्थना करें। (लूका 11:9, 13) जब आप पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना करते हैं तो यहोवा से बिनती कीजिए कि वह विश्वास बढ़ाने में आपकी मदद करे। विश्वास पवित्र शक्‍ति के फल का एक पहलू है। प्रार्थना करते वक्‍त यहोवा को सीधे-सीधे बताइए कि आपको क्या मदद चाहिए। उदाहरण के लिए, आपको शायद लगे कि दूसरों को माफ करना आपके लिए मुश्किल होता है। अगर ऐसा है तो यहोवा से बिनती कीजिए कि वह विश्वास मज़बूत बनाए रखने और दूसरों को माफ करनेवाला रवैया पैदा करने में आपकी मदद करे।

19. हम सच्चे दोस्त कैसे बना सकते हैं?

19 ऐसे दोस्त चुनिए जिनका विश्वास मज़बूत है। जब दोस्त बनाने की बात आयी, तो यीशु ने बहुत सोच-समझकर कदम उठाया, खासकर ऐसे दोस्त बनाते वक्‍त जो उसके बहुत करीबी थे। उसके सबसे करीबी दोस्त यानी प्रेषित, उसके वफादार रहते थे और उसकी आज्ञा मानते थे। (यूहन्ना 15:14, 15 पढ़िए।) यीशु की मिसाल पर चलिए और बहुत सोच-समझकर दोस्त बनाइए। ऐसे लोगों को अपना दोस्त बनाइए जिनका विश्वास मज़बूत है और जो यीशु की आज्ञा मानते हैं। सच्चे दोस्त एक-दूसरे के ईमानदार होते हैं, तब भी जब उन्हें सलाह देनी होती है या सलाह कबूल करनी होती है।—नीति. 27:9.

20. जब हम दूसरों का विश्वास मज़बूत करने में उनकी मदद करेंगे, तो हमें क्या फायदे होंगे?

20 विश्वास मज़बूत करने में दूसरों की मदद कीजिए। यीशु ने जो कहा और जो किया उससे उसके चेलों का विश्वास मज़बूत हुआ। (मर. 11:20-24) हमें यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तो इससे हमारा विश्वास तो मज़बूत होगा ही, साथ ही दूसरों का भी विश्वास मज़बूत होगा। (नीति. 11:25) आप अपने प्रचार के इलाके में लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं? जब आप दूसरों को बाइबल का अध्ययन कराते हैं, तो उन बातों पर ज़ोर दीजिए जो साबित करती हैं कि परमेश्वर सचमुच वजूद में है, उसे हमारी परवाह है और बाइबल परमेश्वर का वचन है। आप भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत बनाए रखने में कैसे उनकी मदद कर सकते हैं? अगर आप किसी को, अगुवाई लेनेवाले भाइयों के खिलाफ बातें करते सुनते हैं, तो फौरन उससे किनारा मत कर लीजिए। इसके बजाय, दोबारा विश्वास मज़बूत करने में समझदारी से उस व्यक्‍ति की मदद कीजिए। (यहू. 22, 23) अगर आप स्कूल में पढ़नेवाले नौजवान हैं और आपका टीचर विकासवाद के बारे में बात करता है, तो निडर होकर बताइए कि सृष्टि के बारे में आप क्या विश्वास करते हैं। हो सकता है आपकी बातों का आपके टीचर और साथ पढ़नेवालों पर ऐसा असर पड़े कि आप हैरान रह जाएँ।

21. यहोवा ने हममें से हर एक से क्या वादा किया है?

21 यहोवा और यीशु की मदद से पतरस ने शक और डर पर काबू पाया। आगे चलकर पतरस दूसरों के लिए विश्वास की एक बढ़िया मिसाल बना। उसी तरह, विश्वास में मज़बूत बने रहने में यहोवा हम सबकी मदद करता है। (1 पतरस 5:9, 10 पढ़िए।) विश्वास मज़बूत बनाए रखने में काफी मेहनत लगती है। लेकिन जब हम मेहनत करेंगे तो यहोवा हमें इनाम देगा।

^ पैरा. 16 उदाहरण के लिए, जनता के लिए संस्करण प्रहरीदुर्ग में आनेवाले लेख “ज़िंदगी सँवार देती है बाइबल” देखिए।