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जीवन कहानी

यहोवा की आशीष से मेरी ज़िंदगी खुशियों से मालामाल हो गयी!

यहोवा की आशीष से मेरी ज़िंदगी खुशियों से मालामाल हो गयी!

मेरा जन्म 1927 में कनाडा में, वॉकॉ नाम के एक छोटे-से कसबे में हुआ था। यह कसबा सैस्केचवान राज्य में है। हम सात भाई-बहन थे, चार भाई और तीन बहनें। इसलिए मैं छोटी उम्र में ही सीख गयी कि लोगों के साथ कैसे उठना-बैठना चाहिए।

सन्‌ 1930 के दशक में, जब व्यापार जगत में महामंदी छायी थी तो इसका असर हमारे परिवार पर भी हुआ। हालाँकि हम अमीर तो नहीं थे लेकिन हमें खाने के लाले भी नहीं पड़े। हमारे पास कुछ मुर्गियाँ और एक गाय थी, जिसकी वजह से हमारे यहाँ अंडों, दूध, मलाई, मक्खन और पनीर की कोई कमी नहीं रहती थी। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि हमारे परिवार में सभी के पास कितना काम रहता होगा।

मेरे मन में उस वक्‍त की बहुत-सी मीठी यादें हैं। जैसे हमारा पूरा घर मीठे-रसीले सेब की खुशबू से कैसे महकता रहता था। वसंत (मार्च-अप्रैल) के मौसम में मेरे पिताजी फार्म में होनेवाली चीज़ें बेचने के लिए कसबे में जाते थे। जब वे घर वापस आते थे, तो अकसर ताज़े सेब की एक पेटी लेकर आते थे। हम सब हर दिन एक सेब बड़े मज़े से खाते थे!

हमारे परिवार को मिली सच्चाई

जब हमारे परिवार को सच्चाई मिली तब मैं 6 साल की थी। दरअसल हुआ यह कि मेरे भाई की जन्म के कुछ ही समय बाद मौत हो गयी। उसका नाम जॉनी था। वह मेरे मम्मी-पापा का सबसे बड़ा बेटा था। जॉनी की मौत से मेरे मम्मी-पापा को बहुत बड़ा झटका लगा। उन्होंने एक पादरी से पूछा, “हमारा जॉनी कहाँ है?” पादरी ने कहा कि बच्चे का अभी बपतिस्मा नहीं हुआ था इसलिए वह स्वर्ग नहीं गया है। वह लिंबो में है। * पादरी ने मम्मी-पापा से यह भी कहा कि अगर वे उसे खर्चा-पानी दें तो वह जॉनी के लिए प्रार्थना करेगा और वह लिंबो से निकलकर स्वर्ग चला जाएगा। अगर आप मेरे मम्मी-पापा की जगह होते तो आपको यह सुनकर कैसा लगता? मेरे मम्मी-पापा उस पादरी की बातों से इतने निराश हुए कि उन्होंने फिर कभी उससे बात नहीं की। मगर वे अब भी इस उलझन में थे कि पता नहीं जॉनी किस हाल में होगा।

एक दिन मम्मी को एक पुस्तिका मिली जिसका नाम था मरे हुए कहाँ हैं? (अँग्रेज़ी) इसे यहोवा के साक्षियों ने छापा था। उन्होंने वह बड़े चाव से पढ़ी। जब पापा घर आए तो मम्मी ने उत्सुक होकर कहा, “मुझे पता है जॉनी कहाँ है! वह सो रहा है। लेकिन एक दिन वह जाग उठेगा।” उसी शाम पापा ने भी वह पूरी पुस्तिका पढ़ी। मम्मी-पापा को यह जानकर बहुत दिलासा मिला कि बाइबल बताती है कि मरे हुए एक तरह से सो रहे हैं और भविष्य में उन्हें जी उठाया जाएगा।—सभो. 9:5, 10; प्रेषि. 24:15.

उन्होंने जो पाया उससे हमारी ज़िंदगी बदल गयी, हमें बहुत दिलासा और खुशी मिली। मम्मी-पापा साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगे और वॉकॉ की छोटी-सी मंडली में सभाओं में जाने लगे। उस मंडली में ज़्यादातर परिवार युक्रेन के थे। जल्द ही मम्मी-पापा प्रचार में भी हिस्सा लेने लगे।

फिर कुछ ही समय बाद, हम ब्रिटिश कोलंबिया में जाकर बस गए। हम जिस मंडली में गए वहाँ के भाई-बहनों ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया। उस वक्‍त की मीठी यादें आज भी मेरे ज़हन में ताज़ा हैं। कैसे हमारा परिवार मिलकर रविवार की सभा के लिए प्रहरीदुर्ग की तैयारी करता था। धीरे-धीरे हम सबके दिल में बाइबल की सच्चाई और यहोवा के लिए प्यार बढ़ने लगा। मैं देख सकती थी कि कैसे यहोवा हमें आशीष दे रहा है और हमारी ज़िंदगी खुशहाल होती जा रही है।

जैसे अकसर होता है, हम बच्चों के लिए अपने विश्वास के बारे में दूसरों से बात करना आसान नहीं था। लेकिन एक बात से हमें काफी मदद मिलती थी। वह यह कि मेरी छोटी बहन ईवा और मैं प्रचार सेवा के लिए अकसर महीने की पेशकश की तैयारी करती थीं और सेवा सभा में उसका प्रदर्शन करती थीं। यह हमारे लिए एक लाजवाब मदद थी। हालाँकि हम दोनों बड़ी शर्मीली थीं, फिर भी इससे हमने सीखा कि बाइबल के बारे में हम कैसे दूसरों से बात कर सकते हैं। हमें प्रचार करने के लिए जिस तरह सिखाया गया उसके लिए मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ!

हमारे बचपन की एक खास बात यह है कि हमारे घर में पूरे-समय के सेवक रुका करते थे। उदाहरण के लिए, जब हमारे सर्किट निगरान भाई जैक नेथन हमारी मंडली का दौरा करने आते थे और हमारे घर रुकते थे, तो हमें बहुत अच्छा लगता था। * वे हमें बहुत-से मज़ेदार अनुभव सुनाते थे और दिल से हमारी तारीफ करते थे। इससे हममें भी वफादारी से यहोवा की सेवा करने की चाहत पैदा हुई।

मुझे याद है मैं उस वक्‍त सोचती थी, “मैं बड़ी होकर भाई नेथन की तरह बनूँगी।” उस वक्‍त मैं पूरी तरह समझ नहीं पायी थी कि उनकी मिसाल मुझे पूरे-समय की सेवा को अपना करियर बनाने के लिए तैयार कर रही है। पंद्रह साल की होते-होते मैंने ठान लिया कि मैं यहोवा की सेवा करूँगी। सन्‌ 1942 में मैंने और ईवा ने बपतिस्मा ले लिया।

विश्वास की परख हुई

दूसरे विश्व युद्ध के समय लोगों के दिलों में देश-भक्‍ति की भावना उमड़ रही थी। इसी दौरान मेरी दो छोटी बहनें और एक छोटा भाई जिस स्कूल में पढ़ते थे, उसमें मिस स्कॉट नाम की एक टीचर बड़ी सख्त मिज़ाज थी। उसने मेरी दोनों बहनों और भाई को स्कूल से निकाल दिया। लेकिन क्यों? क्योंकि उन्होंने झंडे को सलामी देने से मना कर दिया था। फिर मिस स्कॉट ने मेरी स्कूल टीचर से भी बात की और उससे गुज़ारिश की कि वह मुझे भी स्कूल से निकाल दे। लेकिन मेरी टीचर ने कहा, ‘हम एक आज़ाद देश में रहते हैं। हमें यह चुनाव करने का हक है कि हम देश-भक्‍ति से जुड़े समारोह में हिस्सा नहीं लेंगे।’ मिस स्कॉट ने मेरी टीचर पर काफी दबाव डाला, फिर भी उन्होंने मुझे न निकालने के बारे में साफ-साफ कहा, “यह मेरा फैसला है।”

मिस स्कॉट ने उनसे कहा, “नहीं, यह फैसला आप नहीं ले सकतीं। अगर आप मलीटा को नहीं निकालेंगी, तो मैं आपकी शिकायत करूँगी।” मेरी टीचर ने मेरे मम्मी-पापा से बात की और उनसे कहा, ‘अगर मुझे अपनी नौकरी बचानी है, तो मेरे पास और कोई चारा नहीं। मुझे मलीटा को स्कूल से निकालना ही होगा हालाँकि मैं मानती हूँ ऐसा करना गलत है।’ हालाँकि हमें स्कूल से निकाल दिया गया, पर कम-से-कम हमें स्कूल की किताबें मिल गयीं ताकि हम घर पर पढ़ाई कर सकें। कुछ ही समय बाद, हम वहाँ से करीब 32 किलोमीटर दूर जाकर बस गए। वहाँ हमें एक स्कूल में दाखिला मिल गया।

जब युद्ध चल रहा था तब हमारी किताबों-पत्रिकाओं पर पाबंदी लगा दी गयी। फिर भी हम बाइबल लेकर घर-घर के प्रचार में जाते थे। इससे हम सीधे बाइबल से राज की खुशखबरी सुनाने में माहिर हो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि हम बाइबल से और अच्छी तरह वाकिफ हुए और एक मसीही के तौर पर हम काफी तरक्की कर पाए। साथ ही, हमने महसूस किया कि यहोवा हमारा साथ दे रहा है।

पूरे समय की सेवा

बाल सँवारने का हुनर मेरे लिए एक तोहफा है और इस हुनर के लिए मुझे इनाम भी मिले

जैसे ही मैंने और ईवा ने स्कूल की पढ़ाई खत्म की, हमने पायनियर सेवा शुरू कर दी। मैंने अपने खर्च के लिए सबसे पहले एक बड़े स्टोर में नौकरी की। फिर कुछ समय बाद, मैंने बाल काटने का 6 महीने का कोर्स किया। यह ऐसा काम था जो मैं घर पर बड़े शौक से करती थी। मुझे एक नाई की दुकान (हेयर सलून) में नौकरी मिल गयी, जहाँ मैं हफ्ते में सिर्फ दो दिन काम करती थी। महीने में दो बार में बाल काटना सिखाती भी थी। इस तरह मैं अपना खर्च उठाकर पूरे समय की सेवा करती थी।

सन्‌ 1955 में, मैं अमरीका के न्यू यार्क शहर में और जर्मनी के न्युरमबर्ग शहर में होनेवाले सम्मेलनों में हाज़िर होना चाहती थी। सम्मेलन का विषय था, “राज की विजय।” न्यू यार्क के लिए रवाना होने से पहले मैं विश्व मुख्यालय से आए भाई नेथन नॉर से मिली। वे और उनकी पत्नी कनाडा के वैनकूवर शहर में एक अधिवेशन के लिए आए थे। उसी दौरान मुझसे बहन नॉर के बाल काटने के लिए कहा गया। मेरे काम से भाई नॉर बहुत खुश हुए और वे मुझसे मिलना चाहते थे। उनसे बात करते वक्‍त मैंने उन्हें बताया कि जर्मनी जाने से पहले मैं न्यू यार्क जाऊँगी। उन्होंने मुझे ब्रुकलिन बेथेल में नौ दिन काम करने के लिए बुलाया।

न्यू यार्क का सफर मेरी ज़िंदगी में एक नया मोड़ लाया। वहाँ मैं एक जवान भाई थियोडोर (टेड) जारज़ से मिली। उनसे मिलने के कुछ ही समय बाद, उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या आप पायनियर हो?” मैं हैरान रह गयी! मैंने कहा, “नहीं।” मेरी दोस्त लवोन ने हमारी बात सुन ली थी। वह बीच में ही बोल पड़ी, “हाँ, यह पायनियर है।” टेड उलझन में पड़ गए, उन्होंने लवोन से पूछा, “अच्छा, इस बारे में आप बेहतर जानती हो या ये?” मैंने उन्हें बताया कि मैं असल में पायनियर सेवा कर रही थी। और मैं जैसे ही अधिवेशनों से लौटूँगी, मैं फिर से पायनियर सेवा करूँगी।

परमेश्वर से प्यार करनेवाला शख्स—मेरा जीवन साथी

टेड का जन्म 1925 में अमरीका के केंटाकी राज्य में हुआ था। उन्होंने 15 साल की उम्र में अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की और बपतिस्मा लिया। हालाँकि उनके परिवार में कोई सच्चाई में नहीं था, फिर भी वे बपतिस्मे के दो साल बाद ही पायनियर सेवा करने लगे। यह उनकी पूरे समय की सेवा की शुरूआत थी जिसमें उन्होंने ज़िंदगी के करीब 67 साल बिताए।

जुलाई 1946 में 20 साल की उम्र में टेड वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की सातवीं क्लास से ग्रैजुएट हुए। उसके बाद, उन्होंने ओहायो राज्य के क्लीवलैंड शहर में सफरी निगरान के तौर पर सेवा की। फिर करीब चार साल बाद, उन्हें ऑस्ट्रेलिया में शाखा निगरान के तौर पर सेवा करने के लिए कहा गया।

टेड जर्मनी के न्युरमबर्ग में अधिवेशन के लिए आए थे। वहाँ हमने कुछ समय साथ बिताया। हम एक-दूसरे को चाहने लगे। मुझे खुशी थी कि पूरे दिल से यहोवा की सेवा करना ही उनका लक्ष्य था। वे परमेश्वर की सेवा पूरे तन-मन से करते थे और उसकी उपासना को बड़ी गंभीरता से लेते थे। मगर वे लोगों के साथ बड़े प्यार से और दोस्ताना अंदाज़ में पेश आते थे। मैंने देखा कि वे अपनी इच्छा से पहले दूसरों की इच्छा पूरी करते हैं। उस अधिवेशन के बाद, टेड ऑस्ट्रेलिया वापस चले गए और मैं वैनकूवर लौट आयी। लेकिन हम एक-दूसरे को खत लिखते रहे।

ऑस्ट्रेलिया में करीब पाँच साल सेवा करने के बाद, टेड अमरीका वापस आ गए। फिर वे वैनकूवर आकर पायनियर सेवा करने लगे। मैं यह देखकर खुश थी कि मेरे परिवारवाले उन्हें कितना पसंद करते हैं। मेरे बड़े भाई माइकल को मेरी बहुत फिक्र रहती थी। अगर कोई जवान भाई मुझमें दिलचस्पी लेता था, तो वे चिंता करने लगते थे। लेकिन टेड जल्द ही मेरे भाई को पसंद आ गए। उन्होंने कहा, ‘मलीटा, यह लड़का तुम्हारे लिए बहुत अच्छा है। इसके साथ अच्छे से पेश आओ और होशियार रहो कहीं लड़का हाथ से निकल न जाए।’

1956 में शादी के बाद, हमने साथ मिलकर कई साल खुशी-खुशी पूरे-समय की सेवा की

मैं भी टेड से बहुत प्यार करने लगी थी। हम दोनों ने 10 दिसंबर, 1956 में शादी कर ली। हमने पहले वैनकूवर में और फिर कैलिफोर्निया में पायनियर सेवा की। उसके बाद हमें मिज़ूरी और आरकनज़ॉ राज्यों में सर्किट काम के लिए भेजा गया। हम करीब 18 साल तक अमरीका के विशाल इलाके में यह सेवा करते रहे। हम हर हफ्ते एक अलग घर में रहते थे। हमें प्रचार में बहुत बढ़िया अनुभव मिलते थे और हम भाई-बहनों की संगति का भी खूब मज़ा लेते थे। इस खुशी के आगे हम वे परेशानियाँ भूल जाते थे, जो हर हफ्ते एक जगह से दूसरी जगह जाने पर होती थीं।

एक बात के लिए मैं खास तौर से टेड की इज़्ज़त करती थी, वह यह कि उन्होंने यहोवा के साथ अपने रिश्ते को कभी हलके में नहीं लिया। पूरे जहान की सबसे महान हस्ती की सेवा करने के सम्मान को वे बहुत अनमोल समझते थे। हमें साथ मिलकर बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना बहुत पसंद था। रात में सोने से पहले, हम बिस्तर के पास घुटने टेककर बैठ जाते थे और टेड हमारे लिए प्रार्थना करते थे। फिर हम अपनी-अपनी प्रार्थना भी करते थे। मैंने हमेशा देखा है कि जब किसी गंभीर मामले की वजह से टेड चिंता में होते, तो वे बिस्तर से उठकर फिर से घुटने टेककर मन-ही-मन काफी देर तक प्रार्थना करते थे। मैं इस बात की दिल से कदर करती थी कि वे हर छोटी-बड़ी बात के लिए यहोवा से प्रार्थना करते थे।

हमारी शादी के कुछ साल बाद, टेड ने मुझे बताया कि वे स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेना शुरू करेंगे। उन्होंने कहा, “मैंने यहोवा से बहुत प्रार्थना की कि मुझे पूरा यकीन हो कि मैं वही कर रहा हूँ जो यहोवा मुझसे चाहता है।” मुझे इस बात से बिलकुल हैरानी नहीं हुई कि उनका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक हुआ है और आखिरकार वे स्वर्ग में सेवा करेंगे। मैं इसे एक बड़ा सम्मान समझती हूँ कि मैं मसीह के एक भाई की मदद कर पायी।—मत्ती 25:35-40.

पवित्र सेवा का एक नया पहलू

सन्‌ 1974 में जब टेड को यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय का सदस्य चुना गया, तो हम हैरान रह गए। उसके कुछ ही समय बाद हमें ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करने के लिए बुलाया गया। टेड शासी निकाय की अपनी ज़िम्मेदारियाँ सँभालते थे, जबकि मैं कमरों की साफ-सफाई या बेथेल के हेयर सलून में काम करती थी।

टेड को यह भी ज़िम्मेदारी दी गयी थी कि वे अलग-अलग शाखा दफ्तरों का दौरा करें। टेड को खास तौर से उन देशों में हो रहे प्रचार काम में दिलचस्पी थी, जहाँ हमारे काम पर पाबंदी लगी थी। जैसे, पूर्वी यूरोप के देशों में जो सोवियत संघ के अधीन थे। एक बार हम कुछ ज़रूरी काम से छुट्टियाँ लेकर स्वीडन गए थे, तभी टेड ने कहा, “मलीटा, पोलैंड में प्रचार काम पर पाबंदी लगी है। मैं वहाँ के भाई-बहनों की मदद करना चाहता हूँ।” इसलिए हमने पोलैंड के लिए वीज़ा बनवाया और वहाँ चले गए। टेड कुछ ऐसे भाइयों से मिले जो वहाँ हमारे काम की देखरेख कर रहे थे। वे उन भाइयों के साथ एक लंबी सैर पर गए, ताकि उनकी बातचीत कोई सुन न सके। चार दिनों तक भाइयों की काफी देर-देर तक सभाएँ चलीं। लेकिन मैं यह देखकर खुश थी कि टेड को अपने आध्यात्मिक परिवार की मदद करके बहुत अच्छा लग रहा है।

फिर हम नवंबर 1977 में पोलैंड गए। इस बार भाई एफ. डब्ल्यू. फ्रांज़, डैनियल सिडलिक और टेड ने शासी निकाय के सदस्यों के तौर पर पहली बार विश्व मुख्यालय की तरफ से पोलैंड का दौरा किया। वहाँ अब भी हमारे काम पर पाबंदी लगी थी। फिर भी शासी निकाय के तीनों सदस्य अलग-अलग शहरों में निगरानों, पायनियरों और काफी लंबे समय से सेवा कर रहे साक्षियों से मिल पाए।

हमारे काम को कानूनी मान्यता मिलने के बाद मॉस्को में न्याय मंत्रालय के सामने टेड और दूसरे भाई

अगले साल जब भाई मिल्टन हेन्शल और टेड, पोलैंड गए तो वे वहाँ के अधिकारियों से मिले, जो साक्षियों को और उनके काम को अब काफी छूट देने लगे थे। सन्‌ 1982 में पोलैंड की सरकार ने हमारे भाइयों को एक दिन के सम्मेलन रखने की इजाज़त दे दी। अगले साल बड़े-बड़े अधिवेशन रखने की योजना बनायी गयी और ज़्यादातर अधिवेशन किराए पर लिए गए अलग-अलग हॉल में रखे गए। सन्‌ 1985 में, हालाँकि हमारे काम पर अब भी पाबंदी लगी थी, फिर भी हमें बड़े-बड़े स्टेडियम में चार अधिवेशन रखने की इजाज़त मिल गयी। फिर मई, 1989 में, जब और भी बड़े-बड़े अधिवेशन रखने की योजनाएँ बनायी जा रही थीं, तभी पोलैंड की सरकार ने यहोवा के साक्षियों को कानूनी मान्यता दे दी। ऐसी कुछ बातों से टेड को बेहद खुशी हुई।

पोलैंड में ज़िला अधिवेशन

सेहत से जुड़ी परेशानियों का सामना करना

सन्‌ 2007 में, हम एक शाखा दफ्तर के समर्पण कार्यक्रम के लिए दक्षिण अफ्रीका जा रहे थे। तभी इंग्लैंड में टेड का ब्लड प्रेशर काफी बढ़ गया। डॉक्टर ने उन्हें सलाह दी कि अभी वे सफर पर न जाएँ तो अच्छा है। जब टेड थोड़ा ठीक हुए, तो हम अमरीका लौट गए। लेकिन कुछ हफ्तों बाद, उन्हें एक ज़बरदस्त मस्तिष्क आघात (स्ट्रोक) हुआ, जिससे उनके शरीर के दाहिने हिस्से ने ठीक से काम करना बंद कर दिया।

टेड को ठीक होने में काफी समय लगा। शुरू-शुरू में तो वे दफ्तर भी नहीं जा पाते थे। लेकिन शुक्र है कि उन्हें बोलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। तकलीफों के बावजूद वे अपने रोज़मर्रा के काम करने की पूरी कोशिश करते थे। यहाँ तक कि वे हमारे कमरे से टेलीफोन के ज़रिए, हर हफ्ते होनेवाली शासी निकाय की सभा में भी भाग लेते थे।

बेथेल के दवाखाने (इनफर्मरी) में काम करनेवालों ने उनकी जो बढ़िया देखभाल की, उसकी वे दिल से कदर करते थे। धीरे-धीरे वे काफी हद तक चलने-फिरने लगे। अब वे परमेश्वर की सेवा में अपनी कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी सँभाल पा रहे थे। वे हमेशा खुशमिज़ाज रहने की कोशिश करते थे।

तीन साल बाद उन्हें दूसरा स्ट्रोक पड़ा और बुधवार, 9 जून, 2010 को वे चैन से मौत की नींद सो गए। हालाँकि मुझे हमेशा यह एहसास रहता था कि एक-न-एक-दिन तो टेड को धरती पर अपनी सेवा खत्म करनी ही है, मगर मैं बता नहीं सकती कि उन्हें खोने का मुझे कितना गम है और उनकी कमी मुझे कितनी खलती है! फिर भी, मैं टेड के लिए जो कुछ कर पायी, उसके लिए मैं हर दिन यहोवा को धन्यवाद देती हूँ। हमने 53 साल से भी ज़्यादा समय तक, साथ मिलकर खुशी-खुशी पूरे समय की सेवा की। मैं यहोवा का शुक्रिया अदा करती हूँ कि टेड ने मुझे स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता के करीब आने में मदद दी। आज मुझे पूरा यकीन है कि टेड को अपनी नयी ज़िम्मेदारी पाकर बेहद खुशी और संतुष्टि मिल रही होगी!

ज़िंदगी में आयी नयी चुनौतियों का सामना करना

बेथेल के ब्यूटी पार्लर में काम करने और दूसरों को यह काम सिखाने से मुझे बहुत खुशी मिलती थी

अपने पति के साथ मैंने काफी साल यहोवा की सेवा में खुशी-खुशी बिताए। उनके बिना आज की चुनौतियों का सामना करना आसान नहीं है। टेड को और मुझे बेथेल में घूमने के लिए आनेवालों से और राज-घर में आनेवाले नए लोगों से मिलना बहुत पसंद था। अब मेरे प्यारे टेड यहाँ नहीं हैं और अब मुझमें पहले जितनी ताकत भी नहीं है, इसलिए अब मैं बहुत कम लोगों से मिल पाती हूँ। फिर भी बेथेल और राज-घर में अपने प्यारे भाई-बहनों की संगति से मुझे काफी खुशी मिलती है। हालाँकि बेथेल में काम करना आसान नहीं है, लेकिन इस तरह यहोवा की सेवा करके बहुत खुशी मिलती है। और प्रचार काम के लिए मेरा प्यार ज़रा भी कम नहीं हुआ है। हालाँकि मैं जल्दी थक जाती हूँ और ज़्यादा देर खड़ी नहीं रह सकती, फिर भी मैं सड़क पर गवाही देती हूँ और बाइबल अध्ययन चलाती हूँ। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।

जब मैं दुनिया में हो रही खौफनाक घटनाएँ देखती हूँ, तो मैं खुश होती हूँ कि मैंने अपनी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में लगायी और वह भी एक प्यारे जीवन साथी के संग! यहोवा की आशीष से मेरी ज़िंदगी खुशियों से मालामाल हो गयी!—नीति. 10:22.

^ पैरा. 8 लिंबो एक रोमन कैथोलिक धर्म की शिक्षा है। कहा जाता है कि यह एक ऐसी जगह है जहाँ मौत के बाद उन अच्छे लोगों और बच्चों की आत्माएँ जाती हैं जिनका बपतिस्मा नहीं हुआ।

^ पैरा. 13 भाई जैक नेथन की जीवन कहानी 1 सितंबर, 1990 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 10-14 में दी गयी है।