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प्यार से आपसी मनमुटाव सुलझाइए

प्यार से आपसी मनमुटाव सुलझाइए

“आपस में शांति बनाए रखो।”—मर. 9:50.

गीत: 39, 35

1, 2. उत्पत्ति की किताब में किस तरह के झगड़ों का ज़िक्र किया गया है? और यह क्यों गौर करने लायक बात है?

बाइबल में इंसानों के बीच हुए मनमुटाव के बारे में कई ब्यौरे दर्ज़ हैं। क्या आपने कभी इनके बारे में सोचा है? उत्पत्ति के शुरूआती कुछ अध्यायों पर गौर कीजिए। कैन ने हाबिल को मारा। (उत्प. 4:3-8) लेमेक ने एक जवान आदमी को मार डाला, क्योंकि उसने उस पर हमला किया था। (उत्प. 4:23) अब्राहम और लूत के चरवाहों के बीच झगड़ा हुआ। (उत्प. 13:5-7) हाजिरा, सारा को तुच्छ समझने लगी और सारा अब्राहम से नाराज़ हो गयी। (उत्प. 16:3-6) इश्माएल हर किसी के खिलाफ था और हर कोई उसके खिलाफ था।—उत्प. 16:12.

2 बाइबल में इस तरह के झगड़ों का ज़िक्र क्यों किया गया है? वह इसलिए कि इससे असिद्ध इंसान सीखते हैं कि उन्हें क्यों शांति बनाए रखनी चाहिए और यह वे कैसे कर सकते हैं। बाइबल से उन लोगों के ब्यौरे पढ़कर हमें काफी फायदा होता है, जो असल में जीए थे और जिन्होंने सच में समस्याओं का सामना किया था। उन्होंने इस मामले में जो बढ़िया मिसाल रखी, उससे हम सीखते हैं कि अगर हमारी ज़िंदगी में ऐसे हालात आते हैं, तो हम कैसे उनका सामना कर सकते हैं। जी हाँ, इन ब्यौरों से हम सीखते हैं कि उनके जैसे हालात में हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।—रोमि. 15:4.

3. इस लेख में किन बातों पर चर्चा की जाएगी?

3 इस लेख में हम गौर करेंगे कि यहोवा के सेवकों के लिए आपसी मनमुटाव सुलझाना क्यों ज़रूरी है और वे यह कैसे कर सकते हैं। इसमें कुछ बाइबल के सिद्धांत भी बताए जाएँगे जिनकी मदद से वे झगड़े सुलझा सकते हैं और अपने पड़ोसी और यहोवा परमेश्वर के साथ अच्छा रिश्ता बनाए रख सकते हैं।

आपसी मनमुटाव सुलझाना क्यों ज़रूरी है?

4. (क) पूरी दुनिया के लोगों में कैसी सोच है? (ख) इसका नतीजा क्या हुआ है?

4 इंसानों के बीच जो मनमुटाव या झगड़े होते हैं, उनके लिए सबसे बड़ा कसूरवार शैतान है। यह हम कैसे कह सकते हैं? अदन बाग में शैतान ने कहा कि इंसान खुद तय कर सकता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा और उसे ऐसा करना भी चाहिए। इसमें उसे परमेश्वर की कोई ज़रूरत नहीं है। (उत्प. 3:1-5) इस तरह की सोच के अंजाम हम सबके सामने हैं। यह दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जिनमें मनमानी करने की फितरत पायी जाती है। इस वजह से लोग घमंडी हो जाते हैं, एक-दूसरे से होड़ लगाते हैं और बस अपने बारे में सोचते हैं। जो लोग खुद को ऐसी फितरत का गुलाम बना लेते हैं, वे दरअसल शैतान की यह सोच अपना रहे होते हैं कि अपना उल्लू सीधा करने में ही अक्लमंदी है, फिर चाहे दूसरों पर जो भी असर हो। ऐसे स्वार्थी रवैये की वजह से झगड़े होते हैं। बाइबल एकदम सही कहती है, “क्रोध करनेवाला मनुष्य झगड़ा मचाता है, और अत्यन्त क्रोध करनेवाला अपराधी भी होता है।”—नीति. 29:22.

5. मनमुटाव सुलझाने के मामले में यीशु ने लोगों को क्या सिखाया?

5 यीशु ने पहाड़ी उपदेश देते समय अपने चेलों को सिखाया कि वे शांति बनाएँ और बात बिगड़ने से पहले ही मामला निपटा लें, फिर चाहे इसमें उन्हें अपना नुकसान क्यों न लगे। जैसे, उसने अपने चेलों से गुज़ारिश की कि उन्हें कोमल स्वभाव के और शांति कायम करनेवाले होना चाहिए। उन्हें गुस्से पर काबू पाना चाहिए, मामले को जल्द-से-जल्द सुलझाना चाहिए और अपने दुश्मनों से भी प्यार करना चाहिए।—मत्ती 5:5, 9, 22, 25, 44.

6, 7. (क) आपसी मनमुटाव जल्द-से-जल्द सुलझाना क्यों ज़रूरी है? (ख) यहोवा के सभी लोगों को खुद से क्या सवाल करने चाहिए?

6 अगर हम लोगों के साथ शांति कायम न करें, तो परमेश्वर की सेवा में हम चाहे जो भी करें—प्रार्थना, सभाओं में जाना, प्रचार करना या दूसरे काम, सब बेकार हैं। (मर. 11:25) जब तक हम दूसरों की गलतियाँ माफ नहीं करेंगे, तब तक हम परमेश्वर के दोस्त नहीं बन सकते।—लूका 11:4; इफिसियों 4:32 पढ़िए।

7 दूसरों को माफ करने और उनके साथ शांति-भरा रिश्ता बनाए रखने के मामले में हर मसीही को पूरी ईमानदारी से खुद की जाँच करनी चाहिए। क्या आप भाई-बहनों को दिल से माफ करते हैं? क्या आप खुशी-खुशी उनके साथ उठते-बैठते हैं? यहोवा अपने सेवकों से उम्मीद करता है कि वे दूसरों को माफ करनेवाले हों। अगर आपका ज़मीर आपसे कहता है कि आपको इस मामले में सुधार करना है, तो ऐसा करने के लिए प्रार्थना में यहोवा से मदद माँगिए। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता इस तरह की प्रार्थनाएँ सुनेगा और उनका जवाब देगा।—1 यूह. 5:14, 15.

क्या आप किसी गलती को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं?

8, 9. अगर कोई हमें ठेस पहुँचाए, तो हमें क्या करना चाहिए?

8 सभी इंसान असिद्ध हैं, इसलिए आज नहीं तो कल कोई ऐसी बात कहेगा या ऐसा काम करेगा जिससे आपको ठेस पहुँचेगी। इससे बचा नहीं जा सकता। (सभो. 7:20; मत्ती 18:7) ऐसे में आप क्या करेंगे? ज़रा इस हालात पर गौर कीजिए: कुछ साक्षियों की दावत चल रही थी। उस दावत में एक बहन ने दो भाइयों का इस तरह स्वागत किया, जो एक भाई को सही नहीं लगा। जब ये दोनों भाई अकेले थे, तो जिस भाई को बहन की बात से चोट पहुँची थी, वह उस बहन की नुकताचीनी करने लगा। मगर दूसरे भाई ने उससे कहा कि वह बहन 40 साल से वफादारी से यहोवा की सेवा कर रही है, वह भी मुश्किल हालात में। उस भाई को यकीन था कि उस बहन का इरादा ठेस पहुँचाने का नहीं था। इस पर एक पल सोचने के बाद, पहलेवाले भाई ने कहा, “आप सही कह रहे हैं।” नतीजा, बात वहीं खत्म हो गयी।

9 इस अनुभव से क्या पता चलता है? यही कि जब बात बिगड़नेवाली हो, तब आप कैसे पेश आएँगे, यह आपके हाथ में है। प्यार करनेवाला इंसान छोटी-मोटी गलतियाँ नज़रअंदाज़ कर देता है। (नीतिवचन 10:12; 1 पतरस 4:8 पढ़िए।) अगर आप ‘दूसरों के अपराध क्षमा कर देते हैं,’ तो यहोवा इसे आपका “गौरव” मानता है। (नीति. 19:11, वाल्द-बुल्के अनुवाद; सभो. 7:9) इसलिए जब ऐसा लगे कि कोई आपके साथ रुखाई से पेश आ रहा है या आपका अपमान कर रहा है, तो आपको सबसे पहले खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं इस बात को अनदेखा कर सकता हूँ? क्या मुझे इस बात को बड़ा मसला बनाना चाहिए?’

10. (क) एक बहन के बारे में जब दूसरों ने उलटी-सीधी बातें कहीं, तो शुरू में उसने कैसा रवैया दिखाया? (ख) बाइबल की किस सलाह से बहन अपनी शांति बनाए रख पायी?

10 अगर कोई हमारी नुकताचीनी करता है, तो इसे यूँ ही छोड़ देना शायद आसान न हो। ज़रा एक पायनियर बहन पर गौर कीजिए, जिसे हम लता बुला सकते हैं। उसकी प्रचार सेवा और जिस तरह वह अपना समय बिताती है, उस बारे में दूसरों ने उलटी-सीधी बातें कहीं। इससे वह परेशान हो गयी। उसने प्रौढ़ भाइयों से सलाह ली। वह कहती है कि उन्होंने बाइबल से जो सलाह दी, उससे वह दूसरों की बातों के बारे में सही नज़रिया बनाए रख पायी और अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा ध्यान यहोवा पर लगा पायी। लता को मत्ती 6:1-4 पढ़कर काफी हौसला मिला। (पढ़िए।) इन आयतों ने उसे याद दिलाया कि उसका लक्ष्य होना चाहिए, यहोवा को खुश करना। वह कहती है, “मेरे कामों के बारे में दूसरे भले ही उलटी-सीधी बातें कहें। मगर मैं खुश रहती हूँ, क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैं यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही हूँ।” अब उसने ठान लिया है कि वह लोगों की उलटी-सीधी बातों पर ध्यान नहीं देगी।

जब आप कोई मसला नज़रअंदाज़ न कर सकें

11, 12. (क) अगर एक मसीही को लगता है कि उसके भाई को उससे “कुछ शिकायत है,” तो उसे क्या करना चाहिए? (ख) अब्राहम ने जिस तरह एक मसला सुलझाया, उससे हम क्या सीख सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

11 “हम सब कई बार गलती करते हैं।” (याकू. 3:2) सोचिए आपको पता चलता है कि आपकी किसी बात या काम से एक भाई को चोट पहुँची है। आपको क्या करना चाहिए? यीशु ने कहा, “अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, तो तू अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और जब तू लौट आए तब अपनी भेंट चढ़ा।” (मत्ती 5:23, 24) यीशु की सलाह के मुताबिक, अपने भाई से बात कीजिए। लेकिन ध्यान रहे कि आपका मकसद क्या होना चाहिए। आपका मकसद अपने भाई पर दोष मढ़ना नहीं, बल्कि यह होना चाहिए कि आप अपनी गलती कबूल करें और उससे शांति बनाएँ। भाई-बहनों के साथ शांति बनाए रखना सबसे ज़रूरी है।

12 जैसे हमने लेख की शुरूआत में देखा, बाइबल में दर्ज़ एक ब्यौरे में परमेश्वर के सेवकों ने एक ऐसा मसला शांति से निपटाया, जिसमें बात बिगड़ सकती थी। वह मसला था, अब्राहम और उसके भतीजे लूत के बीच। दोनों आदमियों के पास मवेशी थे और ऐसा लगता है कि उनके चरवाहे चरागाह को लेकर झगड़ने लगे थे। अब्राहम जल्द-से-जल्द मामला सुलझाना चाहता था इसलिए उसने लूत से कहा कि वह पहले अपने घराने के लिए इलाका चुन ले। (उत्प. 13:1, 2, 5-9) क्या ही बढ़िया मिसाल! अब्राहम ने अपना भला चाहने के बजाय शांति बनाए रखने की कोशिश की। दरियादिल होने की वजह से क्या उसे नुकसान उठाना पड़ा? बिलकुल नहीं। इस घटना के फौरन बाद, यहोवा ने अब्राहम को बड़ी-बड़ी आशीषें देने का वादा किया। (उत्प. 13:14-17) अगर परमेश्वर के सेवक बाइबल में दिए सिद्धांतों पर चलेंगे और प्यार से झगड़े सुलझाएँगे, तो परमेश्वर उनका कोई ऐसा नुकसान नहीं होने देगा जिसकी कभी भरपाई न हो सके। [1]

13. (क) कड़वी बातें सुनने के बाद एक निगरान ने कैसा रवैया दिखाया? (ख) हम उसकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

13 आज के एक हालात पर गौर कीजिए। एक अधिवेशन में एक विभाग के निगरान ने एक भाई को फोन किया और उससे पूछा कि क्या वह अधिवेशन में मदद कर सकता है। इस पर उस भाई ने निगरान को बहुत कुछ सुना दिया और फोन रख दिया। यह भाई पहले वाले निगरान के साथ हुई कुछ बातचीत को लेकर परेशान था। लेकिन भाई के भड़कने पर इस निगरान ने बुरा नहीं माना, पर वह इस बात को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सका। एक घंटे बाद, उसने दोबारा उस भाई को फोन किया और उससे कहा कि क्यों न वह निगरान से मिलकर मसला सुलझाए। एक हफ्ते बाद दोनों एक राज-घर में मिले। प्रार्थना करके उन्होंने अपनी बातचीत शुरू की। इस भाई ने निगरान को अपनी पूरी कहानी बतायी। निगरान ने प्यार-से उसकी बातें सुनीं और उसे बाइबल से कुछ आयतें दिखायीं। उनकी बातचीत एक घंटे तक चली। फिर दोनों भाई खुशी-खुशी वहाँ से चले गए। इसके बाद भाई ने अधिवेशन में काम किया और वह इस बात का शुक्रगुज़ार है कि निगरान उसके साथ प्यार और शांति से पेश आया।

क्या आपको प्राचीनों को शामिल करना चाहिए?

14, 15. (क) मत्ती 18:15-17 में दी सलाह कब लागू की जानी चाहिए? (ख) यीशु ने कौन-से तीन कदम बताए और उन्हें लागू करते वक्‍त हमारा क्या मकसद होना चाहिए?

14 मसीहियों के बीच होनेवाले मनमुटाव के ज़्यादातर मसले निजी तौर पर सुलझाए जा सकते हैं और ऐसा करना चाहिए। लेकिन कभी-कभी शायद यह मुमकिन न हो। कुछ मामलों में शायद दूसरों की मदद लेनी पड़े, जैसा कि मत्ती 18:15-17 में बताया गया है। (पढ़िए।) यहाँ यीशु ने जिस “पाप” का ज़िक्र किया, वह मसीहियों के बीच कोई छोटा-मोटा मनमुटाव नहीं है। यह हम कैसे कह सकते हैं? यीशु ने कहा कि अगर पाप करनेवाला अपने भाई से, गवाहों से और ज़िम्मेदार भाइयों से बात करने के बाद भी पश्चाताप न करे, तो “उसे एक गैर-यहूदी या कर-वसूलनेवाला” समझा जाना चाहिए, या यूँ कहें कि उसका बहिष्कार कर देना चाहिए। इस “पाप” में धोखाधड़ी या किसी को बदनाम करना जैसी बातें शामिल हो सकती हैं। लेकिन इसमें शादी के बाहर यौन-संबंध, समान लिंग के व्यक्‍ति के साथ लैंगिक संबंध, सच्चे धर्म के खिलाफ बगावत, मूर्तिपूजा या दूसरे गंभीर पाप शामिल नहीं हैं। ऐसे गंभीर पाप के मसले मंडली के प्राचीन ही सुलझाते हैं।

अपने भाई को पाने के लिए शायद आपको उससे कई बार बातचीत करनी पड़े (पैराग्राफ 15 देखिए)

15 यीशु ने जो सलाह दी उसका मकसद था, एक भाई की प्यार से मदद करना। (मत्ती 18:12-14) यह सलाह कैसे लागू की जा सकती है? तीन कदम उठाकर: (1) हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम दूसरों को शामिल किए बिना अपने भाई के साथ सुलह करें। हो सकता है इसके लिए हमें उससे कई बार बात करनी पड़े। अगर इससे बात न बने, तो हमें क्या करना चाहिए? (2) हमें अपने भाई से उन लोगों के साथ मिलकर बात करनी चाहिए, जो मामले के गवाह हैं या उनके साथ मिलकर जो यह तय कर सकते हैं कि क्या वाकई अपराध हुआ है। अगर इससे मामला सुलझ जाता है, तो आप “अपने भाई को पा” लेंगे। लेकिन जब कई बार अपने भाई से बात करने पर भी मामला न सुलझे, तब क्या? (3) उस मामले के बारे में आपको प्राचीनों से बात करनी चाहिए।

16. क्या दिखाता है कि यीशु की सलाह लागू करके मामलों को प्यार से सुलझाया जा सकता है?

16 ऐसे मामले बहुत कम होते हैं जिनमें मत्ती 18:15-17 में बताए तीनों कदम लागू करने पड़ें। और यह अच्छी बात है, क्योंकि इसका मतलब आम तौर पर मामला सुलझा लिया जाता है। ऐसी नौबत नहीं आती कि गुनहगार को मंडली से बहिष्कार करना पड़े। अकसर गुनहगार को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह ज़रूरी कदम उठाता है। जिसके खिलाफ गुनाह किया गया है, वह शांति कायम करने के इरादे से शायद गुनाह करनेवाले को माफ कर दे। तो फिर यीशु की सलाह से पता चलता है कि हमें किसी मामले में प्राचीनों को शामिल करने में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। प्राचीनों को किसी मामले की खबर सिर्फ तभी दी जानी चाहिए, जब पहले दो कदम उठाए जा चुके हों और जो हुआ है उसके ठोस सबूत हों।

17. अगर हम एक-दूसरे के साथ शांति बनाए रखने की कोशिश करेंगे, तो हमें क्या आशीषें मिलेंगी?

17 जब तक शैतान की यह दुनिया है, तब तक इंसान असिद्ध रहेंगे और एक-दूसरे को चोट पहुँचाते रहेंगे। प्रेषित याकूब ने बिलकुल सही कहा, “अगर कोई बोलने में गलती नहीं करता, तो वह सिद्ध इंसान है और अपने पूरे शरीर को भी काबू में रख सकता है।” (याकू. 3:2) मनमुटाव सुलझाने के लिए ज़रूरी है कि हम ‘शांति कायम करने की खोज करें और उसमें लगे रहें।’ (भज. 34:14, एन.डब्ल्यू.) शांति बनाए रखने की वजह से हमारा संगी मसीहियों के साथ अच्छा रिश्ता होगा और मंडली में एकता बनी रहेगी। (भज. 133:1-3) सबसे बढ़कर, यहोवा के साथ हमारा अच्छा रिश्ता होगा, जो “शांति देनेवाला परमेश्वर” है। (रोमि. 15:33) जी हाँ, ये आशीषें उन्हीं को मिलती हैं, जो प्यार से मनमुटाव सुलझा लेते हैं।

^ [1] (पैराग्राफ 12) दूसरे जिन सेवकों ने शांति से मामले सुलझाए, वे थे: याकूब, जिसने एसाव के साथ मामला सुलझाया (उत्प. 27:41-45; 33:1-11); यूसुफ, जिसने अपने भाइयों के साथ (उत्प. 45:1-15) और गिदोन, जिसने एप्रैम के लोगों के साथ। (न्यायि. 8:1-3) आप बाइबल में दर्ज़ ऐसे और भी ब्यौरे सोच सकते हैं।