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आप निजी फैसले कैसे लेते हैं?

आप निजी फैसले कैसे लेते हैं?

“यह समझो और मालूम करते रहो कि यहोवा की मरज़ी क्या है।”—इफि. 5:17.

गीत: 11, 22

1. बाइबल में दिए कुछ कानून क्या हैं और उन्हें मानने से हमें कैसे फायदा होता है?

बाइबल में यहोवा ने ऐसे कानून दर्ज़ करवाए हैं, जिनसे हमें साफ पता चलता है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। मिसाल के लिए, वह हमसे कहता है कि हमें मूर्तिपूजा नहीं करनी चाहिए, चोरी नहीं करनी चाहिए, पियक्कड़ नहीं होना चाहिए या अनैतिक काम नहीं करने चाहिए। (1 कुरिं. 6:9, 10) यहोवा के बेटे यीशु ने अपने चेलों को एक खास आज्ञा दी थी। उसने कहा, “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्‍ति के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है। और देखो! मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:19, 20) यहोवा और यीशु हमसे जो भी करने के लिए कहते हैं, वह हमारी भलाई के लिए है। यहोवा के दिए कानूनों से हम सीखते हैं कि हमें खुद की और अपने परिवार की देखभाल कैसे करनी चाहिए। हम यह भी सीखते हैं कि कैसे हम अपनी सेहत अच्छी रख सकते हैं और कैसे खुश रह सकते हैं। इससे भी बढ़कर, यहोवा की आज्ञाएँ मानने से, जिसमें प्रचार की आज्ञा भी शामिल है, वह हमसे खुश रहता है और हमें आशीष देता है।

2, 3. (क) बाइबल में ज़िंदगी के हर हालात के बारे में नियम क्यों नहीं दिए गए हैं? (ख) इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

2 लेकिन ज़िंदगी के हर मामले के बारे में बाइबल में नियम नहीं दिए गए हैं। जैसे, बाइबल सीधे-सीधे यह नहीं बताती कि हमें क्या पहनना चाहिए। इसमें यहोवा की बुद्धि झलकती है। वह कैसे? दुनिया में लोग तरह-तरह के कपड़े पहनते हैं और वक्‍त के गुज़रते फैशन बदलते रहते हैं। अगर बाइबल में यह सूची दी गयी होती कि कौन-सा फैशन या बनाव-सिंगार सही है, तो इस मामले में बाइबल अब तक पुराने खयालों की हो चुकी होती। इसी वजह से, बाइबल में इस बारे में भी नियमों की लंबी-चौड़ी सूची नहीं दी गयी कि हमें कौन-सी नौकरी करनी चाहिए या क्या मनोरंजन करना चाहिए और सेहतमंद रहने के लिए हमें ठीक क्या करना चाहिए। इन मामलों के बारे में यहोवा ने हर व्यक्‍ति पर और परिवार के मुखियाओं पर फैसला छोड़ा है।

3 लेकिन कई बार हमें कुछ ज़रूरी फैसले लेने होते हैं, जिनका हमारी ज़िंदगी पर गहरा असर हो सकता है। और उस बारे में बाइबल में जब कोई नियम नहीं दिया होता, तो हम शायद सोचें, ‘मैं जो फैसला लूँगा क्या उससे यहोवा को कोई फर्क पड़ेगा? अगर बाइबल का नियम तोड़े बिना मैं कोई भी फैसला लूँ, क्या उससे वह खुश होगा? मैं कैसे पक्का कर सकता हूँ कि मैं जो फैसला लूँगा, उससे वह खुश होगा?’

हमारे फैसलों का हम पर और दूसरों पर असर होता है

4, 5. हमारे फैसलों का हम पर और दूसरों पर कैसे असर हो सकता है?

4 कुछ लोगों को लगता है कि वे जो चाहे कर सकते हैं। लेकिन हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं। इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले हमें सोचना चाहिए कि उस बारे में बाइबल क्या कहती है और फिर उसे मानना चाहिए। जैसे, बाइबल बताती है कि खून के बारे में परमेश्वर का क्या नज़रिया है। इसलिए परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए हम बाइबल की आज्ञा मानते हैं। (उत्प. 9:4; प्रेषि. 15:28, 29) हम प्रार्थना में यहोवा से मदद माँग सकते हैं, ताकि हम ऐसे फैसले ले सकें जिनसे वह खुश होगा।

5 हम ज़िंदगी में जो बड़े-बड़े फैसले लेते हैं, उनका हम पर बहुत असर होता है। इसलिए अगर हम सही फैसला लेंगे, तो हम यहोवा के करीब आ सकते हैं। लेकिन अगर गलत फैसला लेंगे, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कमज़ोर हो सकता है। हमारे फैसलों का दूसरों पर भी असर हो सकता है। इसलिए हम ऐसा कुछ नहीं करना चाहते जिससे हमारे भाई-बहनों को कोई तकलीफ हो, या उनका विश्वास कमज़ोर पड़ जाए। हम ऐसा भी कुछ नहीं करना चाहते जिससे मंडली में फूट पड़ जाए। इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम सही फैसले लें।—रोमियों 14:19; गलातियों 6:7 पढ़िए।

6. हमें निजी फैसले लेते वक्‍त क्या ध्यान में रखना चाहिए?

6 जिन मामलों पर बाइबल यह ठीक-ठीक नहीं बताती कि हमें क्या करना चाहिए, उनमें हम कैसे सही फैसले ले सकते हैं? हमें जो सही लगे वह करने के बजाय, हमें अपने हालात के बारे में अच्छी तरह सोचना चाहिए। फिर ऐसा फैसला लेना चाहिए जिससे यहोवा खुश हो। इससे हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारे फैसलों पर आशीष देगा।—भजन 37:5 पढ़िए।

यहोवा मुझसे क्या चाहता है?

7. जब बाइबल में कोई कानून न दिया हो, तब हम कैसे जान सकते हैं कि यहोवा हमसे क्या चाहता है?

7 यह हम कैसे जान सकते हैं कि यहोवा किस बात से खुश होगा? इफिसियों 5:17 कहता है, “यह समझो और मालूम करते रहो कि यहोवा की मरज़ी क्या है।” जब बाइबल में किसी मामले के बारे में कोई सीधा-सीधा कानून न दिया हो, तो हम परमेश्वर की मरज़ी कैसे जान सकते हैं? उससे प्रार्थना करके और पवित्र शक्‍ति के ज़रिए वह हमें जो मार्गदर्शन देता है, उसे कबूल करके।

8. यीशु यह कैसे समझ पाया कि यहोवा उससे क्या चाहता है? उदाहरण दीजिए।

8 यीशु हमेशा यह जानने की कोशिश करता था कि यहोवा उससे क्या चाहता है। मिसाल के लिए, दो दफा यीशु ने प्रार्थना करके चमत्कार से भूखे लोगों की भीड़ को खाना खिलाया। (मत्ती 14:17-20; 15:34-37) लेकिन जब वीराने में यीशु को भूख लगी और शैतान चाहता था कि वह पत्थरों को रोटियों में बदल दे, तो उसने ऐसा करने से मना कर दिया। (मत्ती 4:2-4 पढ़िए।) यीशु अपने पिता को अच्छी तरह जानता था। इसलिए वह समझता था कि यहोवा यह नहीं चाहेगा कि वह पवित्र शक्‍ति से अपनी ज़रूरतें पूरी करे। उसे पूरा यकीन था कि उसका पिता उसका मार्गदर्शन करेगा और उसे खाना देगा।

9, 10. बुद्धि-भरे फैसले लेने में क्या बात हमारी मदद करेगी? उदाहरण दीजिए।

9 अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें और उससे मार्गदर्शन लें, तो हम बुद्धि-भरे फैसले ले सकते हैं। बाइबल कहती है, “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन्‌ सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना।” (नीति. 3:5-7) जब हम बाइबल का अध्ययन करके यह जानते हैं कि किसी मामले के बारे में यहोवा क्या सोचता है, तो हम यह समझ सकते हैं कि उस मामले में वह हमसे क्या चाहेगा। हम जितना अच्छी तरह यहोवा की सोच से वाकिफ होंगे, उतना ही आसानी से हम ऐसे फैसले ले पाएँगे, जिनसे उसका दिल खुश होगा। इस तरह हम ज़्यादा-से-ज़्यादा परमेश्वर के मार्गदर्शन के मुताबिक काम करना चाहेंगे।—यिर्म. 31:33.

10 इस मिसाल पर गौर कीजिए। एक शादीशुदा स्त्री खरीददारी करने गयी है। उसे दुकान में सुंदर-सी जूतियाँ दिखायी देती हैं, लेकिन वे बहुत महँगी हैं। हालाँकि उसका पति उसके साथ नहीं है, लेकिन वह जानती है कि अगर वह इतना पैसा खर्च कर देगी, तो उसका पति क्या सोचेगा। वह यह कैसे जानती है? उसकी शादी को काफी समय हो गया है, इसलिए वह जानती है कि उसका पति किस तरह अपना पैसा खर्च करना चाहता है। उसी तरह, जब हम यह सीखते हैं कि किसी हालात के बारे में यहोवा क्या सोचता है और बीते समय में वह कैसे पेश आया, तो हम समझ सकते हैं कि अलग-अलग हालात में यहोवा हमसे क्या चाहेगा।

आप यहोवा की सोच कैसे जान सकते हैं?

11. जब हम बाइबल पढ़ते या उसका अध्ययन करते हैं, तब हम खुद से क्या पूछ सकते हैं? (“ बाइबल का अध्ययन करते वक्‍त खुद से पूछिए” बक्स देखिए।)

11 हम यह कैसे जान सकते हैं कि किसी मामले के बारे में यहोवा क्या सोचता है? सबसे अहम तरीका है, नियमित तौर पर बाइबल पढ़ना और उसका अध्ययन करना। ऐसा करते वक्‍त हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘इससे मैं यहोवा के बारे में क्या सीखता हूँ? उसने ऐसा क्यों किया?’ दाविद की तरह हमें यहोवा से मदद भी माँगनी चाहिए, ताकि हम उसे और अच्छे-से जान सकें। दाविद ने लिखा, “हे यहोवा, अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जोहता रहता हूँ।” (भज. 25:4, 5) जब हम यहोवा के बारे में कुछ सीखते हैं, तब हम सोच सकते हैं कि वह जानकारी हम किस हालात में लागू कर सकते हैं। क्या हम उसे परिवार में, काम की जगह, स्कूल में या प्रचार में लागू कर सकते हैं? जब हम किसी हालात के बारे में सोचते हैं, तो हम आसानी से यह जान पाते हैं कि यहोवा हमसे वह जानकारी कैसे लागू करवाना चाहता है।

12. अलग-अलग मामलों के बारे में यहोवा क्या सोचता है, यह हम अपनी किताबों-पत्रिकाओं और सभाओं से कैसे जान सकते हैं?

12 किसी मामले के बारे में यहोवा क्या सोचता है, यह जानने का दूसरा तरीका है, उसका संगठन बाइबल से हमें जो सिखाता है, उस पर पूरा ध्यान देना। उदाहरण के लिए, जब हमें कोई फैसला लेना हो, तो यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड और ऐसे ही दूसरे साहित्य की मदद से हम जान सकते हैं कि यहोवा उस बारे में क्या सोचता है। यही नहीं, मसीही सभाओं में ध्यान से सुनने, जवाब देने और वहाँ सीखी बातों पर मनन करने से भी हमें फायदा हो सकता है। इससे हम यहोवा की तरह सोच पाएँगे। नतीजा, हम ऐसे फैसले ले पाएँगे जिनसे वह खुश होगा और जिन पर उसकी आशीष होगी।

यहोवा की सोच के मुताबिक फैसले लीजिए

13. उदाहरण देकर समझाइए कि किसी मामले के बारे में यहोवा क्या सोचता है, यह जानने से हम बुद्धि-भरे फैसले कैसे ले सकते हैं।

13 जब हम यह गौर करते हैं कि किसी मामले के बारे में यहोवा क्या सोचता है, तो हम बुद्धि-भरे फैसले ले सकते हैं। कैसे? एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। सोचिए आप पायनियर सेवा करना चाहते हैं। आपने ज़िंदगी में कुछ फेरबदल किए हैं, ताकि आप प्रचार में और ज़्यादा समय बिता सकें। लेकिन शायद अब भी आपको यह यकीन न हो कि आप कम पैसों और चीज़ों में खुश रह सकते हैं। माना कि बाइबल यह नहीं कहती कि यहोवा की सेवा करने के लिए आपको पायनियर सेवा करनी ही होगी। हम प्रचारक के तौर पर भी वफादारी से उसकी सेवा करते रह सकते हैं। लेकिन यीशु ने कहा कि यहोवा उन लोगों को बेशुमार आशीषें देता है, जो राज की खातिर त्याग करते हैं। (लूका 18:29, 30 पढ़िए।) इतना ही नहीं, बाइबल कहती है कि यहोवा को यह देखकर खुशी होती है कि हम उसकी महिमा करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं और वह चाहता है कि हम खुशी-खुशी उसकी सेवा करें। (भज. 119:108; 2 कुरिं. 9:7) इन बातों पर गहराई से सोचकर और परमेश्वर से प्रार्थना करके हम ऐसा फैसला ले पाएँगे, जो हमारे हालात के मुताबिक सही होगा और जिस पर यहोवा की आशीष होगी।

14. कोई पहनावा यहोवा को भाता है या नहीं, यह आप कैसे जान सकते हैं?

14 एक और उदाहरण पर गौर कीजिए। आपको किसी खास तरह के कपड़े पहनना बहुत पसंद है, लेकिन आप जानते हैं कि अगर आप ऐसे कपड़े पहने, तो मंडली में कुछ भाई-बहनों को ठेस पहुँच सकती है। बाइबल किसी खास तरह के कपड़ों के बारे में कुछ नहीं कहती। तो आप कैसे जान सकते हैं कि इस बारे में यहोवा क्या सोचता है? बाइबल बताती है, “स्त्रियाँ सलीकेदार कपड़ों से, मर्यादा के साथ और स्वस्थ मन से अपना सिंगार करें। वे खास तरीकों से बाल गूंथने, और सोने या मोतियों या महँगे-महँगे कपड़ों से नहीं बल्कि भले कामों से अपना सिंगार करें, क्योंकि परमेश्वर की भक्‍ति करने का दावा करनेवाली स्त्रियों को यही शोभा देता है।” (1 तीमु. 2:9, 10) इस सलाह के पीछे छिपा सिद्धांत मसीही पुरुषों पर भी लागू होता है। जब हम अपनी मर्यादा में रहेंगे, तो हम यह सोचेंगे कि हमारे कपड़ों के बारे में दूसरे क्या सोच सकते हैं। और हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं, इसलिए हम ऐसा कुछ नहीं करना चाहते जिससे वे परेशान हो सकते हैं या उन्हें ठेस पहुँच सकती है। (1 कुरिं. 10:23, 24; फिलि. 3:17) अगर हम यह ध्यान में रखेंगे कि किसी मामले के बारे में बाइबल क्या कहती है, तो हम समझ पाएँगे कि उस बारे में यहोवा क्या सोचता है। इससे हम ऐसे फैसले ले पाएँगे जिनसे वह खुश होता है।

15, 16. (क) अगर हम अनैतिक बातों के बारे में सोचते रहें, तो यहोवा को कैसा लगता है? (ख) मनोरंजन का चुनाव करते वक्‍त हम कैसे जान सकते हैं कि यहोवा किस बात से खुश होता है? (ग) हमें बड़े-बड़े फैसले कैसे लेने चाहिए?

15 बाइबल से हम सीखते हैं कि जब लोग बुरे काम करते हैं और बुरी बातों के बारे में सोचते हैं, तो यहोवा को बहुत दुख होता है। (उत्पत्ति 6:5, 6 पढ़िए।) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा नहीं चाहता कि हम अनैतिक कामों की कल्पना करें। दरअसल अगर हम उनके बारे में सोचते रहें, तो हो सकता है हम वे काम सच में कर बैठें। इसके बजाय, यहोवा चाहता है कि हम साफ-सुथरी और अच्छी बातों के बारे में सोचें। चेले याकूब ने लिखा कि यहोवा की बुद्धि “सबसे पहले तो पवित्र, फिर शांति कायम करनेवाली, लिहाज़ दिखानेवाली, आज्ञा मानने के लिए तैयार, दया और अच्छे कामों से भरपूर होती है। यह भेदभाव नहीं करती और न ही कपटी होती है।” (याकू. 3:17) इसलिए हमें ऐसा मनोरंजन नहीं करना चाहिए, जिससे हम गंदी बातों के बारे में कल्पना करने लग सकते हैं या हमारे अंदर वैसा करने की इच्छा पैदा हो सकती है। जी हाँ, बाइबल से हम समझ सकते हैं कि यहोवा को कौन-सी बातें पसंद हैं और किनसे वह नफरत करता है। इससे हम आसानी से यह तय कर पाएँगे कि हमारे लिए कैसी किताबें या फिल्में या कैसे खेल सही हैं। ऐसी बातों के बारे में हमें दूसरों से पूछना नहीं पड़ेगा।

16 जब हमें कोई फैसला लेना होता है, तब अकसर उस काम को करने के कई तरीके होते हैं और शायद वे सभी यहोवा को मंज़ूर हों। लेकिन अगर कोई बहुत ज़रूरी फैसला लेना हो, तो अच्छा होगा कि हम किसी प्राचीन या दूसरे तजुरबेकार भाई या बहन से सलाह-मशविरा करें। (तीतु. 2:3-5; याकू. 5:13-15) हाँ यह बात तो है कि दूसरों से यह कहना सही नहीं होगा कि वे हमारे लिए फैसला लें। हम बाइबल से जो जानते हैं, उस बारे में गहराई से सोचकर हमें खुद फैसला लेना चाहिए। (इब्रा. 5:14) प्रेषित पौलुस ने कहा, “हर कोई अपनी ज़िम्मेदारी का बोझ खुद उठाएगा।”—गला. 6:5.

17. जब हम ऐसे फैसले लेते हैं जिनसे यहोवा खुश होता है, तो हमें कैसे फायदा होता है?

17 जब हम यहोवा की सोच के मुताबिक फैसले लेते हैं, तब हम उसके और भी करीब आ पाते हैं और हमें उसकी मंज़ूरी और आशीषें मिलती हैं। (याकू. 4:8) इससे यहोवा पर हमारा विश्वास और मज़बूत होता है। तो आइए हम बाइबल से जो पढ़ते हैं उस पर मनन करें, ताकि हम समझ सकें कि किसी मामले के बारे में यहोवा क्या सोचता है। बेशक हम यहोवा के बारे में हमेशा कुछ-न-कुछ नया सीखते रहेंगे। (अय्यू. 26:14) लेकिन अगर हम अभी उसके बारे में सीखने में मेहनत करें, तो हम बुद्धिमान बनेंगे और सही फैसले ले पाएँगे। (नीति. 2:1-5) इंसानों की सोच और योजनाएँ बदलती रहती हैं, लेकिन यहोवा कभी नहीं बदलता। भजनहार कहता है, “यहोवा की युक्ति सर्वदा स्थिर रहेगी, उसके मन की कल्पनाएँ पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहेंगी।” (भज. 33:11) जी हाँ, हम सबसे बढ़िया फैसले तभी ले सकते हैं, जब हम उसी तरह सोचेंगे जैसे यहोवा सोचता है और वैसे काम करेंगे जिनसे वह खुश होता है।