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वे झूठे धर्म से निकल आए!

वे झूठे धर्म से निकल आए!

“मेरे लोगो, उसमें से बाहर निकल आओ।”—प्रका. 18:4.

गीत: 10, 45

1. (क) हम कैसे कह सकते हैं कि परमेश्वर के लोग महानगरी बैबिलोन से आज़ाद होंगे? (ख) आगे हमें किन सवालों के जवाब मिलेंगे?

पिछले लेख में हमने सीखा था कि वफादार मसीही महानगरी बैबिलोन की बँधुआई में गए। मगर खुशी की बात यह है कि वे हमेशा उसकी कैद में नहीं रहेंगे। यह हम इसलिए कहते हैं क्योंकि बाइबल में परमेश्वर आज्ञा देता है, “मेरे लोगो, उसमें से बाहर निकल आओ।” अगर महानगरी बैबिलोन की कैद से निकल आना नामुमकिन होता तो परमेश्वर यह आज्ञा कभी नहीं देता। (प्रकाशितवाक्य 18:4 पढ़िए।) हम यह जानने के लिए बेसब्र हैं कि वे कब आज़ाद हुए। लेकिन पहले हमें इन सवालों के जवाब जानने होंगे: 1914 से भी पहले बाइबल विद्यार्थियों ने क्या करने की ठान ली थी? पहले विश्व युद्ध के दौरान हमारे भाइयों ने किस जोश के साथ प्रचार किया था? क्या परमेश्वर के लोग इसलिए बैबिलोन की बँधुआई में गए थे क्योंकि उन्होंने कुछ गलत काम किया था और उन्हें सुधारा जाना था?

“बैबिलोन गिर पड़ी”

2. पहले विश्व युद्ध से कई साल पहले बाइबल विद्यार्थियों ने क्या करने की ठान ली थी?

2 पहले विश्व युद्ध (1914-1918) से कई साल पहले चार्ल्स टेज़ रसल और उनके साथियों ने समझ लिया कि ईसाईजगत बाइबल से सच्चाई नहीं सिखा रहा है। इसलिए उन्होंने ठान लिया कि वे झूठे धर्म से कोई नाता नहीं रखेंगे। सन्‌ 1879 में, ज़ायन्स वॉच टावर में कहा गया था कि जो चर्च मसीह की वफादार दुल्हन होने का दावा करता है मगर असल में सरकार का साथ देता है, वह महानगरी बैबिलोन का हिस्सा है जिसे बाइबल वेश्या कहती है।—प्रकाशितवाक्य 17:1, 2 पढ़िए।

3. बाइबल विद्यार्थियों ने कैसे दिखाया कि वे झूठे धर्म से कोई नाता नहीं रखना चाहते? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 वफादार लोग जानते थे कि अगर वे झूठे धर्म का साथ देते रहें तो परमेश्वर की आशीष उन पर नहीं होगी। इसलिए कई लोगों ने अपने चर्च को चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि वे चर्च के सदस्य नहीं रहना चाहते। कुछ लोगों ने तो पूरे चर्च के सामने अपनी चिट्ठी पढ़ी। और जिन्हें चिट्ठी पढ़ने की इजाज़त नहीं मिली उन्होंने चर्च के हर सदस्य को एक चिट्ठी भेजी। बाइबल विद्यार्थियों ने साफ बताया कि उन्हें झूठे धर्म से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रखना है! लेकिन अगर वे सालों पहले ऐसा करते तो शायद उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता। मगर सन्‌ 1870 तक माहौल बदल गया था। कई देशों की सरकारें चर्चों का उतना साथ नहीं दे रही थीं जितना पहले देती थीं। अब लोग बाइबल के बारे में खुलकर बात कर सकते थे और चर्च की शिक्षाओं को गलत बता सकते थे।

4. पहले विश्व युद्ध के दौरान, बाइबल विद्यार्थियों ने महानगरी बैबिलोन के बारे में क्या रुख अपनाया? समझाइए।

4 बाइबल विद्यार्थी समझ गए कि सिर्फ परिवारवालों, करीबी दोस्तों और चर्च के लोगों को यह बताना काफी नहीं कि उन्होंने झूठे धर्म से नाता तोड़ लिया है। उन्हें पूरी दुनिया के सामने भी महानगरी बैबिलोन की वेश्या जैसी हरकतों का परदाफाश करना था। इसलिए दिसंबर 1917 से लेकर 1918 के शुरूआती महीनों तक, कुछ ही हज़ार बाइबल विद्यार्थियों ने पूरे जोश के साथ 1 करोड़ परचे बाँटे जिसमें यह लेख छपा था “बैबिलोन गिर पड़ी।” इस परचे में ईसाईजगत का परदाफाश किया गया था। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इससे चर्च के अगुवे कितने भड़क उठे होंगे। लेकिन बाइबल विद्यार्थी पीछे नहीं हटे। उन्होंने ठान लिया था कि वे प्रचार करते रहेंगे और ‘इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानेंगे।’ (प्रेषि. 5:29) ये सारी बातें क्या दिखाती हैं? यही कि मसीही पहले विश्व युद्ध के दौरान बँधुआई में जा नहीं रहे थे बल्कि बँधुआई से निकल रहे थे और ऐसा करने में दूसरों की भी मदद कर रहे थे।

पहले विश्व युद्ध के दौरान जोश के साथ प्रचार किया

5. पहले विश्व युद्ध के दौरान मसीहियों के जोश के बारे में हम क्या जानते हैं?

5 बीते सालों में हमने कहा था कि पहले विश्व युद्ध के दौरान परमेश्वर के लोगों पर उसकी मंज़ूरी नहीं थी क्योंकि वे जोश के साथ प्रचार नहीं कर रहे थे। इस वजह से हमारा मानना था कि यहोवा ने कुछ समय के लिए अपने लोगों को महानगरी बैबिलोन की बँधुआई में जाने दिया। लेकिन 1914 और 1918 के बीच वफादारी से परमेश्वर की सेवा करनेवाले भाई-बहनों ने बाद में समझाया कि उस ज़माने के ज़्यादातर मसीहियों ने प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मसीहियों के उस दौर का इतिहास समझने से हम बाइबल में बतायी कुछ बातों की बेहतर समझ पा सकेंगे।

6, 7. (क) पहले विश्व युद्ध के दौरान बाइबल विद्यार्थियों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? (ख) क्या बात दिखाती है कि बाइबल विद्यार्थी जोश से प्रचार कर रहे थे?

6 पहले विश्व युद्ध के दौरान बाइबल विद्यार्थी वाकई प्रचार करने में ज़ोर-शोर से लगे हुए थे। लेकिन उनके सामने कई मुश्किलें भी आयीं। ज़रा दो मुश्किलों पर ध्यान दीजिए। पहली, बाइबल विद्यार्थियों को बाइबल का इस्तेमाल करके प्रचार करना नहीं आता था। वे किताबें बाँटने के आदी थे और सोचते थे कि लोग किताबें पढ़कर खुद-ब-खुद सच्चाई समझ लेंगे। इसलिए जब 1918 की शुरूआत में सरकार ने द फिनिश्ड मिस्ट्री किताब पर पाबंदी लगायी तो कई भाइयों के लिए प्रचार करना बड़ा मुश्किल हो गया। दूसरी मुश्किल यह थी कि उसी साल हर तरफ स्पैनिश फ्लू फैलने लगा। यह एक भयानक बीमारी थी जो फौरन दूसरों को लग जाती थी। इससे भाइयों के लिए सफर करना और प्रचार करना मुश्किल हो गया था। लेकिन इन मुश्किलों के बावजूद बाइबल विद्यार्थी जोश के साथ प्रचार काम करते रहे।

उस समय के बाइबल विद्यार्थियों में गज़ब का जोश था! (पैराग्राफ 6, 7 देखिए)

7 सन्‌ 1914 में बाइबल विद्यार्थियों के छोटे समूह ने “फोटो ड्रामा ऑफ क्रिएशन” नाम की फिल्म तैयार की। यह चलचित्रों और रंगीन तसवीरों से बनी एक फिल्म थी जिसमें आवाज़ भी सुनायी देती थी। उस ज़माने में यह बिलकुल नयी बात थी। उस ड्रामे में आदम की सृष्टि से लेकर मसीह की हुकूमत के आखिर तक की कहानी दिखायी गयी थी। सन्‌ 1914 में जब यह दिखायी गयी तो एक साल के अंदर 90 लाख से ज़्यादा लोगों ने इसे देखा। ज़रा सोचिए, आज दुनिया-भर में जितने यहोवा के साक्षी हैं उससे भी ज़्यादा लोगों ने इसे देखा था। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि अमरीका में 1916 में आठ लाख नौ हज़ार से भी ज़्यादा लोग हमारी सभाओं में आए। और 1918 में यह गिनती बढ़कर साढ़े नौ लाख तक पहुँच गयी। इसमें कोई शक नहीं कि उस वक्‍त बाइबल विद्यार्थी बड़े जोश से प्रचार कर रहे थे।

8. पहले विश्व युद्ध के दौरान अगुवाई करनेवाले भाइयों ने कैसे बाइबल विद्यार्थियों का हौसला बढ़ाया?

8 पहले विश्व युद्ध के दौरान अगुवाई करनेवाले भाई बाइबल साहित्य उपलब्ध कराने और बाइबल विद्यार्थियों का हौसला बढ़ाने में खूब मेहनत कर रहे थे। इस वजह से बाइबल विद्यार्थी प्रचार काम जारी रख पाए। उस वक्‍त के एक जोशीले प्रचारक रिचर्ड एच. बारबर कहते हैं, “हम सफरी निगरानों को भेजने और भाइयों तक प्रहरीदुर्ग पहुँचाने के इंतज़ाम को जारी रख पाए। हमने कनाडा में भी पत्रिकाएँ भिजवायीं जहाँ हमारे काम पर पाबंदी थी।” भाई बारबर ने यह भी कहा, “मुझे अपने उन दोस्तों को द फिनिश्ड मिस्ट्री की पॉकेट साइज़ किताबें भेजने का सम्मान भी मिला, जिनकी किताबें ज़ब्त कर ली गयी थीं। भाई रदरफर्ड ने हमसे गुज़ारिश की कि हम पश्‍चिम अमरीका के अलग-अलग शहरों में अधिवेशन रखें और वक्ताओं को भेजकर जितना हो सके, हमारे दोस्तों का हौसला बढ़ाएँ।”

सुधार की ज़रूरत थी

9. (क) सन्‌ 1914 और 1919 के बीच परमेश्वर के लोगों की समझ में सुधार की ज़रूरत क्यों थी? (ख) हालाँकि सुधार की ज़रूरत थी, लेकिन क्या सोचना गलत होगा?

9 उस वक्‍त बाइबल विद्यार्थियों को सारी बातें साफ-साफ समझ में नहीं आयी थीं। वे यह नहीं समझ पाए कि सरकारों के अधीन रहने का असल में क्या मतलब है। (रोमि. 13:1) इसलिए एक समूह के तौर पर वे युद्ध के दौरान पूरी तरह निष्पक्ष नहीं रह पाए। मिसाल के लिए, 30 मई, 1918 में जब अमरीका के राष्ट्रपति ने कहा कि लोग शांति के लिए प्रार्थना करें, तो प्रहरीदुर्ग में बाइबल विद्यार्थियों को बढ़ावा दिया गया कि वे भी शांति के लिए प्रार्थना करें। कुछ भाइयों ने युद्ध के लिए पैसे भी दान किए और गिने-चुने भाई तो सैनिक भी बन गए और लड़ाई के लिए गए। हालाँकि इस मामले में भाइयों की समझ में सुधार की ज़रूरत थी मगर यह सोचना गलत होगा कि इसी वजह से उन्हें महानगरी बैबिलोन की बँधुआई में जाना पड़ा। सच तो यह है कि पहले विश्व युद्ध के समय बाइबल विद्यार्थी करीब-करीब पूरी तरह झूठे धर्म से अलग हो चुके थे।—लूका 12:47, 48 पढ़िए।

10. बाइबल विद्यार्थियों ने जीवन के लिए आदर कैसे दिखाया?

10 यह सच है कि बाइबल विद्यार्थी पूरी तरह नहीं समझ पाए कि निष्पक्ष रहने का क्या मतलब है। मगर वे यह ज़रूर जानते थे कि किसी की जान लेना गलत है। इसलिए जो गिने-चुने भाई सेना में भर्ती हुए थे, उन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान बंदूकें तो उठायीं मगर किसी की जान लेने से साफ इनकार कर दिया। इनकार करनेवाले इन भाइयों को युद्ध में सबसे आगे रखा गया ताकि वे मारे जाएँ।

11. जब बाइबल विद्यार्थियों ने युद्ध में लड़ने से इनकार किया तो अधिकारियों ने क्या किया?

11 परमेश्वर के लिए भाइयों की वफादारी देखकर शैतान झुँझला उठा। इसलिए वह ‘कानून की आड़ में उत्पात मचाने लगा।’ (भज. 94:20) अमरीकी सेना के जनरल जेम्स फ्रेंकलिन बैल ने एक मौके पर भाई रदरफर्ड और भाई वैन एमबर्ग से कहा कि हमने एक नया कानून जारी करवाने की कोशिश की जिसके मुताबिक युद्ध में लड़ने से इनकार करनेवालों को मौत की सज़ा मिलती। उसका इशारा खासकर बाइबल विद्यार्थियों की तरफ था। फिर उस जनरल ने गुस्से में भाई रदरफर्ड से कहा कि वह कानून इसलिए जारी नहीं हुआ क्योंकि अमरीका के राष्ट्रपति ने इसकी मंज़ूरी नहीं दी। लेकिन उसने कहा, “कोई बात नहीं, हम तुम्हें सबक सिखाना जानते हैं और हम सबक सिखाकर ही रहेंगे!”

12, 13. (क) हमारे आठ भाइयों को क्यों लंबी कैद की सज़ा सुनायी गयी? (ख) जेल में रहते हुए भी हमारे भाइयों ने क्या ठान लिया था? समझाइए।

12 आखिरकार सरकार ने बाइबल विद्यार्थियों को सबक सिखाने का एक तरीका ढूँढ़ ही लिया। भाई रदरफर्ड और भाई वैन एमबर्ग के साथ वॉच टावर सोसाइटी के छ: और सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मुकदमे की सुनवाई करनेवाले जज ने कहा कि ये भाई, जर्मन सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी से भी खतरनाक हैं। जज ने यह भी कहा कि भाइयों ने सरकार, सेना और सभी चर्चों का अपमान किया है और इन्हें कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जानी चाहिए। [1] (और जानकारी देखिए।) इसलिए उन आठ बाइबल विद्यार्थियों को लंबी कैद की सज़ा सुनायी गयी और अमरीका के जॉर्जिया राज्य के एटलांटा शहर की जेल में डाल दिया गया। लेकिन जब युद्ध खत्म हुआ, तो उन्हें रिहा कर दिया गया और उन पर लगाए गए इलज़ाम खारिज कर दिए गए।

13 जेल में रहते हुए भी उन आठ भाइयों ने ठान लिया था कि वे परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे। हम यह कैसे जानते हैं? उन्होंने अमरीका के राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी कि उन्हें जेल से रिहा किया जाए। उस चिट्ठी में उन्होंने समझाया कि क्यों वे दूसरों की जान नहीं लेते। उन्होंने कहा कि बाइबल में यह आज्ञा दी गयी है कि हमें किसी की जान नहीं लेनी चाहिए। इसलिए अगर परमेश्वर का कोई समर्पित सेवक जानबूझकर उसकी आज्ञा तोड़ता है, तो वह परमेश्वर की मंज़ूरी खो बैठेगा और उसे नाश किया जाएगा। राष्ट्रपति को यह चिट्ठी लिखकर उन्होंने बड़ी हिम्मत दिखायी! इन भाइयों ने ठान लिया था कि वे हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानेंगे!

आखिरकार आज़ाद हो गए!

14. बाइबल से समझाइए कि 1914 से 1919 तक क्या हुआ?

14 मलाकी 3:1-3 में समझाया गया है कि 1914 से 1919 के शुरूआती समय तक बाइबल विद्यार्थियों के साथ क्या हुआ। (पढ़िए।) “प्रभु” यानी यहोवा परमेश्वर और ‘वाचा का दूत’ यानी यीशु मसीह आए और उन्होंने “लेवियों” यानी अभिषिक्‍त मसीहियों की जाँच की। फिर यहोवा ने उन्हें सुधारा और शुद्ध किया, जिसके बाद वे एक नयी ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हुए। सन्‌ 1919 में यीशु ने ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ को ठहराया कि वह परमेश्वर के सभी सेवकों को निर्देश दे और उन्हें सिखाए। (मत्ती 24:45) आखिरकार परमेश्वर के लोग महानगरी बैबिलोन की बँधुआई से पूरी तरह आज़ाद हो गए। इसके बाद से वे परमेश्वर की मरज़ी के बारे में और भी सीख रहे हैं और परमेश्वर के लिए उनका प्यार बढ़ता ही जा रहा है। इस आशीष के लिए वे यहोवा के कितने एहसानमंद हैं! [2]—और जानकारी देखिए।

15. हमें महानगरी बैबिलोन से आज़ाद किया गया है। यह बात हमें क्या करने को उभारती है?

15 हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हमें महानगरी बैबिलोन से आज़ाद किया गया है! शैतान धरती पर से सच्ची उपासना को मिटा नहीं पाया है। उसकी ज़बरदस्त हार हुई है! लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा ने हमें क्यों आज़ाद किया है। उसका मकसद है कि सभी लोग बचाए जाएँ। (2 कुरिं. 6:1) लेकिन अभी-भी लाखों नेकदिल लोग झूठे धर्म की गिरफ्त में हैं और उन्हें इससे निकलने में हमारी मदद की ज़रूरत है! आइए हम अपने वफादार भाइयों की मिसाल पर चलें और झूठे धर्म से आज़ाद होने में लोगों की मदद करें।

^ [1] (पैराग्राफ 12) ए. एच. मैकमिलन की अँग्रेज़ी में लिखी किताब, आगे बढ़ता विश्वास का पेज 99 देखिए।

^ [2] (पैराग्राफ 14) यहूदियों का बैबिलोन की बँधुआई में जाना और मसीहियों का महानगरी बैबिलोन की बँधुआई में जाना, इन दोनों घटनाओं में कई समानताएँ हैं। मगर इसका यह मतलब नहीं कि जो कुछ उन यहूदियों पर बीता, वे सारी बातें अभिषिक्‍त मसीहियों पर भी बीतेंगी। इसलिए हमें यह जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि यहूदियों के साथ हुई एक-एक बात किन बातों को दर्शाती है। इन दोनों घटनाओं में कुछ फर्क है। जैसे, यहूदी 70 साल बँधुआई में थे लेकिन अभिषिक्‍त मसीही उससे भी लंबे समय तक बँधुआई में रहे।