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यीशु असल में कैसा दिखता था?

यीशु असल में कैसा दिखता था?

आज किसी के पास यीशु की असली तसवीर नहीं है, क्योंकि उसने कभी अपनी तसवीर या मूरत नहीं बनवायी थी। फिर भी सदियों से अनगिनत कलाकार उसकी तसवीरें या मूरतें बनाते आए हैं।

इन कलाकारों को नहीं पता था कि यीशु असल में कैसा दिखता था। दरअसल जहाँ जैसी संस्कृति या धार्मिक विश्‍वास थे उसके मुताबिक या फिर समाज के रुतबेदार लोगों ने जिस तरह बनाने के लिए कहा, वैसे ही कलाकारों ने तसवीरें या मूरतें बनायीं। लेकिन उनकी बनायी तसवीरों या मूर्तियों को देखकर लोग यीशु की छवि और उसकी शिक्षाओं के बारे में गलत धारणाएँ कायम कर सकते हैं।

कुछ कलाकार यीशु को कमज़ोर और लाचार दिखाते हैं, जिसके लंबे-लंबे बाल और पतली दाढ़ी है। कुछ उसे बहुत उदास दिखाते हैं। वहीं कुछ कलाकार उसके सिर के पीछे गोलाकार तेज बनाते हैं, मानो उसमें अलौकिक शक्‍ति थी या फिर ऐसे दिखाते हैं मानो वह लोगों के बीच रहते हुए भी उनसे दूरी बनाए रखता था। क्या इस तरह की कलाकृतियाँ यीशु की सही तसवीर पेश करती हैं? हम यह कैसे जान सकते हैं? पवित्र शास्त्र बाइबल में उसके बारे में जो लिखा है, उसकी जाँच करके। इससे हम जान पाएँगे कि वह कैसा दिखता था और हम उसके बारे में सही नज़रिया रख पाएँगे।

“तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया”

यह बात यीशु ने शायद अपने बपतिस्मे के समय परमेश्‍वर से कही थी। (इब्रानियों 10:5; मत्ती 3:13-17) उसका शरीर कैसा था? इस घटना के 30 साल पहले जिब्राईल नाम के स्वर्गदूत ने मरियम से कहा था, ‘तू गर्भवती होगी और परमेश्‍वर के बेटे को जन्म देगी।’ (लूका 1:31, 35) इससे पता चलता है कि यीशु परिपूर्ण था, उसके शरीर में कोई कमी नहीं थी, ठीक आदम की तरह जब उसे बनाया गया था। (लूका 3:38; 1 कुरिंथियों 15:45) यीशु अच्छी कद-काठी का रहा होगा और दिखने में अपनी माँ मरियम पर गया होगा, जो यहूदी थी।

यीशु की दाढ़ी भी थी, क्योंकि उस ज़माने में यहूदी आदमी दाढ़ी रखते थे, जबकि रोमी लोग नहीं रखते थे। दाढ़ी गरिमा और आदर-मान की निशानी मानी जाती थी। लेकिन उनकी दाढ़ी लंबी नहीं होती थी, न ही गंदी रहती थी। यीशु ज़रूर अपनी दाढ़ी और बाल अच्छे से रखता होगा और समय-समय पर कटवाता भी होगा। सिर्फ वे यहूदी बाल नहीं कटवाते थे, जो नाज़ीर के तौर पर परमेश्‍वर की सेवा करते थे, जैसे परमेश्‍वर का एक सेवक शिमशोन।—गिनती 6:5; न्यायियों 13:5.

यीशु ने 30 साल की उम्र तक बढ़ई का काम किया और उसके पास वे औज़ार भी नहीं थे, जो आज के ज़माने में मिलते हैं। (मरकुस 6:3) तो ज़रूर वह हट्टा-कट्टा रहा होगा। जब उसने परमेश्‍वर की सेवा शुरू की, तो एक बार उसने अकेले ही लोगों को “उनकी भेड़ों और उनके मवेशियों के साथ मंदिर से बाहर खदेड़ दिया। उसने सौदागरों के सिक्के बिखरा दिए और उनकी मेज़ें पलट दीं।” (यूहन्‍ना 2:14-17) यह काम एक ताकतवर आदमी ही कर सकता है। ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर ने यीशु के लिए जो शरीर तैयार किया था, उसे उसने किस काम में लगाया। उसने अपनी ताकत परमेश्‍वर से मिली ज़िम्मेदारी पूरी करने में लगायी। उसने कहा, “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) उसने पूरे पैलिस्टाइन में पैदल चलकर खुशखबरी सुनायी यानी उसमें काफी दमखम रहा होगा।

“मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा”

यीशु की यह बात कड़ी मज़दूरी करनेवालों और बोझ से दबे लोगों के दिल को छू गयी होगी। उसका स्वभाव इतना मनभावना था कि वे उसकी तरफ खिंचे चले आते थे। (मत्ती 11:28-30) उसके कोमल स्वभाव की वजह से उन्हें उसके इस वादे पर यकीन हो गया होगा कि वह उन्हें तरो-ताज़ा करेगा। वह इतना मिलनसार था कि छोटे बच्चे भी उसके साथ रहना चाहते थे। बाइबल में लिखा है, “उसने बच्चों को अपनी बाँहों में लिया।”—मरकुस 10:13-16.

हालाँकि अपनी मौत से पहले यीशु काफी दुख से गुज़रा, लेकिन वह सारी ज़िंदगी उदास नहीं रहा था। एक बार वह काना नाम की जगह शादी में गया, तो उसने पानी को दाख-मदिरा में बदलकर लोगों का दिल खुश कर दिया। (यूहन्‍ना 2:1-11) वह इस तरह की कई दावतों पर गया और वहाँ उसने लोगों को ऐसी बातें सिखायीं, जो कभी भुलायी नहीं जा सकतीं।—मत्ती 9:9-13; यूहन्‍ना 12:1-8.

जिस तरह यीशु लोगों को अपना संदेश सुनाता था, उससे वे खुश हुए क्योंकि उन्हें हमेशा की ज़िंदगी की आशा मिली। (यूहन्‍ना 11:25, 26; 17:3) एक बार जब यीशु के 70 शिष्य लोगों को खुशखबरी सुनाकर वापस आए और उन्होंने अपने अनुभव बताए, तो वह “खुशी से फूला नहीं समाया।” उसने कहा, “इस बात पर खुशी मनाओ कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं।”—लूका 10:20, 21.

“मगर तुम्हें ऐसा नहीं होना है”

यीशु के दिनों में धर्म-गुरु चालाकी से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते और उन पर हुक्म चलाते थे। (गिनती 15:38-40; मत्ती 23:5-7) मगर यीशु ने अपने शिष्यों को लोगों पर ‘हुक्म चलाने’ से मना किया। (लूका 22:25, 26) यीशु ने उनसे यह तक कहा, “शास्त्रियों से खबरदार रहो, जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहनकर घूमना और बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना अच्छा लगता है।”—मरकुस 12:38.

यीशु धर्म-गुरुओं जैसा नहीं था। उसका पहनावा आम लोगों जैसा था, इसलिए कभी-कभी भीड़ में लोग उसे पहचान नहीं पाते थे। (यूहन्‍ना 7:10, 11) वह अपने 11 वफादार शिष्यों से भी अलग नज़र नहीं आता था। इसी वजह से यीशु से विश्‍वासघात करनेवाले यहूदा ने दुश्‍मनों को उसकी पहचान कराने के लिए “पहले से एक निशानी” बतायी थी। उसने कहा था कि वह जिसे चूमेगा, वही यीशु है।—मरकुस 14:44, 45.

हालाँकि यीशु की शक्ल-सूरत के बारे में हम ज़्यादा नहीं जानते, लेकिन एक बात पक्की है कि तसवीरों में उसे जैसा दिखाया जाता है, वह वैसा नहीं था। वैसे भी वह कैसा दिखता था, यह उतना मायने नहीं रखता, जितना यह कि हम उसके बारे में कैसी सोच रखते हैं।

‘थोड़ी देर बाद दुनिया मुझे कभी नहीं देखेगी’

यह बात कहने के कुछ घंटों बाद यीशु की मौत हो गयी और उसे दफना दिया गया। (यूहन्‍ना 14:19) उसने “बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में” दे दी। (मत्ती 20:28) उसकी मौत के तीसरे दिन परमेश्‍वर ने उसे ज़िंदा कर दिया, लेकिन अब उसका शरीर “अदृश्‍य” था। (1 पतरस 3:18) फिर वह अपने कुछ शिष्यों पर “प्रकट” हुआ। (प्रेषितों 10:40) लेकिन अब वह कैसा दिखता था? ऐसा मालूम होता है कि अब उसकी शक्ल-सूरत पहले से काफी अलग थी, क्योंकि उसके साथ उठने-बैठनेवाले शिष्य भी उसे तुरंत नहीं पहचान पाए। मरियम मगदलीनी को ही लीजिए। वह यीशु को बहुत करीब से जानती थी, पर जब उसने यीशु को देखा, तो उसे लगा कि वह एक माली है। फिर जब उसके दो और शिष्यों ने उसे इम्माऊस गाँव जानेवाले रास्ते पर देखा, तो वे उसे अजनबी समझ बैठे।—लूका 24:13-18; यूहन्‍ना 20:1, 14, 15.

तो फिर आज हमें मन में यीशु की कैसी तसवीर बनानी चाहिए? यीशु की मौत के 60 साल बाद जब उसके प्यारे शिष्य यूहन्‍ना ने दर्शनों में उसे देखा, तो उसे यीशु क्रूस पर आखिरी साँसें लेते हुए दिखायी नहीं दिया। उसने देखा कि यीशु “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” है यानी परमेश्‍वर के राज का राजा है। वह बहुत जल्द परमेश्‍वर के दुश्‍मनों पर जीत हासिल करेगा, फिर चाहे वे इंसान हों या दुष्ट स्वर्गदूत। उसके बाद वह सभी इंसानों पर हमेशा आशीषें बरसाएगा।—प्रकाशितवाक्य 19:16; 21:3, 4.