इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

“यहोवा पर भरोसा रख और भले काम कर”

“यहोवा पर भरोसा रख और भले काम कर”

“यहोवा पर भरोसा रख और भले काम कर, . . . और अपने हर काम में विश्वासयोग्य रह।”—भज. 37:3.

गीत: 49, 18

1. यहोवा ने इंसानों को किन अनोखी काबिलीयतों के साथ रचा है?

यहोवा ने इंसानों को अनोखी काबिलीयतों के साथ रचा है। उसने हमें सोचने-परखने की शक्‍ति दी है, जिसकी मदद से हम समस्याओं को सुलझा सकते हैं और भविष्य के लिए योजना बना सकते हैं। (नीति. 2:11) उसने हमें ताकत दी है ताकि हम अपनी योजनाओं को पूरा कर सकें और अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें। (फिलि. 2:13) उसने हमें सही और गलत के बीच फर्क करने की समझ भी दी है जिसे हम ज़मीर कहते हैं। हमारा ज़मीर पाप से दूर रहने और अपनी गलतियों को सुधारने में हमारी मदद करता है।—रोमि. 2:15.

2. यहोवा हमसे क्या उम्मीद करता है?

2 यहोवा हमसे उम्मीद करता है कि हम अपनी काबिलीयतों का सही तरह से इस्तेमाल करें। क्यों? क्योंकि वह हमसे प्यार करता है और वह जानता है कि इन तोहफों का इस्तेमाल करने से हमें खुशी मिल सकती है। यहोवा ने अपने वचन में बार-बार बढ़ावा दिया है कि हम अपनी काबिलीयतों का अच्छा इस्तेमाल करें। मिसाल के लिए इब्रानी शास्त्र में लिखा है, “मेहनती की योजनाएँ ज़रूर सफल होंगी” और “तू जो भी करे उसे जी-जान से कर।” (नीति. 21:5; सभो. 9:10) यूनानी शास्त्र में लिखा है, “जब तक हमारे पास मौका है, आओ हम सबके साथ भलाई करें” और “हर किसी को जो वरदान मिला है उसका इस्तेमाल दूसरों की सेवा में करो।” (गला. 6:10; 1 पत. 4:10) इन आयतों से साफ पता चलता है कि यहोवा चाहता है कि हम खुद की और दूसरों की भलाई के लिए जो कर सकते हैं वह करें।

3. हम इंसानों की क्या सीमाएँ हैं?

3 लेकिन यहोवा यह भी जानता है कि हमारी कुछ सीमाएँ हैं। जैसे, हम अपरिपूर्णता, पाप और मौत को नहीं मिटा सकते। (1 राजा 8:46) न ही हम दूसरों के लिए फैसले कर सकते हैं क्योंकि हर किसी को अपने तरीके से जीने और फैसले करने की आज़ादी है। और चाहे हम कितना भी ज्ञान और तजुरबा हासिल कर लें, हमारे पास कभी-भी यहोवा के जितना ज्ञान और तजुरबा नहीं हो सकता।—यशा. 55:9.

मुश्किलों का सामना करते वक्‍त ‘यहोवा पर भरोसा रखिए और भले काम कीजिए’

4. हम इस लेख में क्या देखेंगे?

4 हमें हर हाल में यहोवा से मार्गदर्शन लेना चाहिए और भरोसा रखना चाहिए कि वह हमें सँभालेगा और हम जो नहीं कर सकते वह हमारे लिए करेगा। लेकिन वह यह भी चाहता है कि हमसे जितना हो सके हम अपनी समस्याओं को सुलझाएँ और दूसरों की मदद करें। (भजन 37:3 पढ़िए।) दूसरे शब्दों में कहें तो हमें ‘यहोवा पर भरोसा रखना है और भले काम करना है।’ और “अपने हर काम में विश्वासयोग्य” रहना है। हम यह कैसे कर सकते हैं? आइए हम नूह, दाविद और दूसरे वफादार सेवकों की मिसाल पर गौर करें, जिन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा था। हम देखेंगे कि उनकी ज़िंदगी में ऐसी कई बातें थीं जिनके बारे में वे कुछ नहीं कर सकते थे, लेकिन उन्होंने उन बातों पर ध्यान दिया जो वे कर सकते थे।

जब हर तरफ दुष्ट काम हो रहे हों

5. नूह के ज़माने में हालात कैसे थे?

5 नूह के ज़माने में “हर तरफ खून-खराबा” और बदचलनी हो रही थी। (उत्प. 6:4, 9-13) उसे पता था कि यहोवा एक-न-एक-दिन उस दुष्ट दुनिया को मिटा देगा, फिर भी उसे लोगों की करतूतें देखकर बहुत दुख हुआ होगा। ऐसे हालात में नूह ने इस बात को समझा कि कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में वह कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में वह ज़रूर कुछ कर सकता था।

प्रचार में होनेवाला विरोध (पैराग्राफ 6-9 देखिए)

6, 7. (क) नूह क्या नहीं कर सकता था? (ख) हमारे हालात किस तरह नूह के जैसे हैं?

6 नूह क्या नहीं कर सकता था: नूह ने यहोवा की तरफ से लोगों को चेतावनी दी लेकिन वह लोगों के साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकता था कि वे उस चेतावनी को मानें। न ही वह जलप्रलय को वक्‍त से पहले ला सकता था। नूह को यहोवा पर भरोसा रखना था कि वह बुराई को मिटाने का अपना वादा ज़रूर पूरा करेगा और सही वक्‍त पर कदम उठाएगा।—उत्प. 6:17.

7 हम भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ हर तरफ बुराई हो रही है। और हम जानते हैं कि यहोवा ने वादा किया है कि वह इस दुष्ट दुनिया को ज़रूर मिटाएगा। (1 यूह. 2:17) हम लोगों को ‘राज की खुशखबरी’ सुनाते हैं मगर हम उनके साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते कि वे खुशखबरी कबूल करें। न ही हम कुछ ऐसा कर सकते हैं कि “महा-संकट” वक्‍त से पहले शुरू हो जाए। (मत्ती 24:14, 21) नूह की तरह हमें मज़बूत विश्वास रखना है। हमें परमेश्वर पर भरोसा रखना है कि वह सभी दुष्टों का नामो-निशान मिटा देगा। (भज. 37:10, 11) हमें यकीन है कि इस दुष्ट दुनिया को मिटाने के लिए यहोवा ने जो दिन ठहराया है, वह ज़रूर आएगा, इसमें एक पल की भी देरी न होगी।—हब. 2:3.

8. नूह ने किस बात पर ध्यान दिया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

8 नूह क्या कर सकता था: नूह जो नहीं कर सकता था, उस बारे में सोचकर वह निराश नहीं हुआ। इसके बजाय, उसने इस बात पर ध्यान दिया कि वह क्या कर सकता है। उसने पूरी वफादारी से प्रचार किया और यहोवा से मिली चेतावनी के बारे में लोगों को बताया। (2 पत. 2:5) ऐसा करने से नूह का विश्वास ज़रूर मज़बूत हुआ होगा। प्रचार करने के साथ-साथ उसने यहोवा के निर्देश को मानकर एक जहाज़ भी बनाया।—इब्रानियों 11:7 पढ़िए।

9. हम किस तरह नूह की मिसाल पर चल सकते हैं?

9 नूह की तरह हम भी “प्रभु की सेवा में” लगे रहते हैं। (1 कुरिं. 15:58) उदाहरण के लिए, हम राज-घर और सम्मेलन भवन का निर्माण करने और उसकी देखरेख करने में हाथ बँटाते हैं। हम सम्मेलन और अधिवेशन में स्वयंसेवक के नाते काम करते हैं और शाखा दफ्तर या रिमोट ट्रांस्लेशन ऑफिस में सेवा करते हैं। सबसे बढ़कर हम प्रचार काम में लगे रहते हैं, जिससे भविष्य की हमारी आशा पक्की होती है। परमेश्वर की वफादारी से सेवा करनेवाली एक बहन ने कहा, “जब आप परमेश्वर के राज में मिलनेवाली आशीषों के बारे में दूसरों को बताते हैं, तब आपको एहसास होता है कि उनके पास कोई आशा नहीं और उन्हें लगता है कि उनकी समस्याएँ कभी खत्म नहीं होंगी।” लेकिन जैसा इस बहन की बातों से पता चलता है, हमारे पास आशा है और जब हम दूसरों को इस आशा के बारे में बताते हैं तो यह और भी पक्की हो जाती है। इससे हमें जीवन की दौड़ में दौड़ते रहने में मदद मिलती है।—1 कुरिं. 9:24.

जब हम पाप कर बैठते हैं

10. दाविद के सामने क्या हालात आए?

10 राजा दाविद यहोवा का वफादार था और यहोवा उससे बहुत प्यार करता था। (प्रेषि. 13:22) इसके बावजूद, दाविद ने एक गंभीर पाप किया। उसने बतशेबा के साथ नाजायज़ संबंध रखा। इतना ही नहीं, उसने अपना पाप छिपाने के लिए एक ऐसी साज़िश रची कि बतशेबा का पति उरियाह लड़ाई में मारा जाए। दाविद ने उरियाह के हाथों ही उसकी मौत का फरमान भेजा। (2 शमू. 11:1-21) लेकिन फिर दाविद के पाप खुलकर सामने आ गए। (मर. 4:22) जब ऐसा हुआ तो दाविद ने कैसा रवैया दिखाया?

बीते समय में किए गए पाप (पैराग्राफ 11-14 देखिए)

11, 12. (क) दाविद क्या नहीं कर सकता था? (ख) अगर हम पश्‍चाताप करें, तो यहोवा हमारे लिए क्या करेगा?

11 दाविद क्या नहीं कर सकता था: दाविद ने जो किया उसे वह बदल नहीं सकता था। दरअसल उसे ज़िंदगी-भर अपने पाप के अंजाम भुगतने पड़ते। (2 शमू. 12:10-12, 14) इसलिए उसे विश्वास की ज़रूरत थी। उसे भरोसा रखना था कि अगर वह सच्चा पश्‍चाताप करे तो यहोवा उसे माफ करेगा और पाप के अंजामों को सहने की ताकत देगा।

12 हम परिपूर्ण नहीं हैं इसलिए हम सब गलतियाँ करते हैं। लेकिन कुछ गलतियाँ ज़्यादा गंभीर होती हैं और कभी-कभी हम जो करते हैं उसे हम बदल नहीं सकते। ऐसे में हमें भी अपने पापों के अंजाम भुगतने पड़ सकते हैं। (गला. 6:7) मगर हम परमेश्वर के वादे पर भरोसा रख सकते हैं कि अगर हम पश्‍चाताप करें तो परमेश्वर हमें मुश्किल घड़ी में सँभालेगा, फिर चाहे ये मुश्किलें हमारी वजह से क्यों न आयी हों।—यशायाह 1:18, 19; प्रेषितों 3:19 पढ़िए।

13. दाविद ने यहोवा के साथ अपना टूटा रिश्ता कैसे जोड़ा?

13 दाविद क्या कर सकता था: दाविद यहोवा के साथ अपने टूटे रिश्ते को जोड़ना चाहता था। इसके लिए उसने क्या किया? उसने यहोवा की मदद स्वीकार की। मिसाल के लिए, जब यहोवा के भविष्यवक्ता नातान ने सलाह देकर दाविद को सुधारा तो उसने इसे कबूल किया। (2 शमू. 12:13) दाविद ने यहोवा से प्रार्थना भी की और उसके सामने अपने पाप स्वीकार किए। ऐसा करके उसने दिखाया कि वह दोबारा यहोवा की मंज़ूरी पाना चाहता है। (भज. 51:1-17) उसने दोष की भावना को खुद पर हावी नहीं होने दिया बल्कि अपनी गलतियों से सबक सीखा। उसने फिर कभी उन गंभीर पापों को नहीं दोहराया। वह अपनी मौत तक यहोवा का वफादार रहा और आज भी परमेश्वर उसे अपने वफादार लोगों में गिनता है।—इब्रा. 11:32-34.

14. दाविद के उदाहरण से हम क्या सीखते हैं?

14 दाविद के उदाहरण से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। अगर हम कोई गंभीर पाप कर बैठते हैं तो हमें सच्चा पश्‍चाताप करना चाहिए, यहोवा के सामने अपने पाप स्वीकार करने चाहिए और उससे माफी माँगनी चाहिए। (1 यूह. 1:9) हमें इस बारे में प्राचीनों से भी बात करनी चाहिए क्योंकि वे यहोवा के साथ टूटा रिश्ता जोड़ने में हमारी मदद कर सकते हैं। (याकूब 5:14-16 पढ़िए।) जब हम यहोवा की मदद स्वीकार करते हैं तो हम दिखाते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है कि वह हमें माफ करेगा। यही नहीं, हमें अपनी गलतियों से सबक सीखना चाहिए और पूरे भरोसे के साथ यहोवा की सेवा करते रहना चाहिए।—इब्रा. 12:12, 13.

दूसरे हालात में

खराब सेहत (पैराग्राफ 15 देखिए)

15. हन्ना के उदाहरण से हम क्या सीखते हैं?

15 आपको शायद बाइबल के दूसरे वफादार सेवकों की भी याद आएँ, जिन्होंने मुश्किल हालात में यहोवा पर भरोसा रखा और उनसे जो हो सकता था, उन्होंने किया। हन्ना का उदाहरण लीजिए। वह बाँझ थी और अपने हालात बदल नहीं सकती थी। लेकिन उसने यहोवा पर भरोसा रखा कि वह उसे दिलासा देगा। इसलिए उसने पवित्र डेरे में उपासना करना नहीं छोड़ा और वह प्रार्थना में यहोवा को अपने दिल की बात बताती रही। (1 शमू. 1:9-11) हन्ना वाकई हमारे लिए एक बढ़िया उदाहरण है! अगर हमें सेहत से जुड़ी कोई समस्या है या कोई ऐसे हालात हैं जिन्हें बदलना हमारे हाथ में नहीं, तो हम यहोवा पर अपनी चिंताओं का बोझ डालेंगे और भरोसा रखेंगे कि उसे हमारी परवाह है। (1 पत. 5:6, 7) वहीं दूसरी तरफ, हमसे जितना हो सकता है, हम मसीही सभाओं और यहोवा के संगठन के दूसरे इंतज़ामों का भी फायदा उठाएँगे।—इब्रा. 10:24, 25.

सच्चाई छोड़कर जानेवाले बच्चे (पैराग्राफ 16 देखिए)

16. माता-पिता शमूएल की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

16 उन वफादार माता-पिताओं के बारे में क्या जिनके बच्चों ने यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया है? भविष्यवक्ता शमूएल की मिसाल पर ध्यान दीजिए। वह अपने बेटों के साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकता था कि उन्हें यहोवा के वफादार बने रहना है। (1 शमू. 8:1-3) उसे यह मामला यहोवा के हाथ में छोड़ना था। लेकिन शमूएल जो कर सकता था उसने किया। वह स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा का वफादार बना रहा और उसे खुश करता रहा। (नीति. 27:11) आज कई मसीही माता-पिता के हालात भी शमूएल जैसे हैं। वे यकीन रखते हैं कि उड़ाऊ बेटे की मिसाल में बताए पिता की तरह, यहोवा उन लोगों को खुशी-खुशी स्वीकार करता है, जो पश्‍चाताप करके उसके पास लौट आते हैं। (लूका 15:20) लेकिन फिलहाल माता-पिता यहोवा के वफादार बने रह सकते हैं और यह उम्मीद रख सकते हैं कि उनका अच्छा उदाहरण देखकर शायद उनके बच्चे सच्चाई में वापस आ जाएँ।

पैसों की तंगी (पैराग्राफ 17 देखिए)

17. गरीब विधवा की मिसाल किस तरह हमारा हौसला बढ़ाती है?

17 अब ज़रा यीशु के ज़माने की उस गरीब विधवा पर ध्यान दीजिए। (लूका 21:1-4 पढ़िए।) वह मंदिर में हो रहे भ्रष्टाचार के बारे में कुछ नहीं कर सकती थी। और न ही वह अपनी गरीबी दूर कर सकती थी। (मत्ती 21:12, 13) लेकिन उसे यहोवा पर भरोसा था इसलिए उसने सच्ची उपासना को बढ़ावा दिया। उसके पास सिर्फ “दो पैसे” थे, मगर उसने सबकुछ दान-पेटी में डाल दिया। वाकई उस वफादार औरत ने यहोवा पर कितना भरोसा दिखाया। वह जानती थी कि अगर वह यहोवा की सेवा को पहली जगह देगी तो यहोवा उसकी ज़रूरत पूरी करेगा। हमें भी पूरा भरोसा है कि अगर हम परमेश्वर के राज को पहली जगह देंगे, तो यहोवा हमारी ज़रूरतें भी पूरी करेगा।—मत्ती 6:33.

18. एक ऐसे भाई की मिसाल दीजिए जिसने सही नज़रिया बनाए रखा।

18 आज कई मसीही इसी तरह यहोवा पर भरोसा रखते हैं। वे उन बातों पर ध्यान देते हैं जो वे कर सकते हैं, न कि उन बातों पर जो वे नहीं कर सकते। भाई मैलकम की मिसाल लीजिए। उनकी मौत 2015 में हुई थी और वे आखिर तक यहोवा के वफादार बने रहे। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर कई सालों तक यहोवा की सेवा की। इस दौरान उनकी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए। उन्होंने कहा, “हम कभी सही-सही नहीं जान सकते कि हमारी ज़िंदगी क्या मोड़ लेगी। हालात अचानक बदल सकते हैं और उनका सामना करना बहुत मुश्किल हो सकता है। लेकिन यहोवा उन लोगों को आशीष देता है, जो . . . उस पर भरोसा रखते हैं।” भाई मैलकम ने यह सलाह दी, “यहोवा की सेवा में मेहनत करने और उसमें कामयाब होने के लिए प्रार्थना करो। इस बात पर ध्यान दो कि आप क्या कर सकते हो, न कि इस बात पर कि आप क्या नहीं कर सकते।” *

19. (क) सन्‌ 2017 का हमारा सालाना वचन क्यों एकदम सही है? (ख) आप इस सालाना वचन को कैसे अपनी ज़िंदगी में लागू करेंगे?

19 यह दुष्ट दुनिया “बद-से-बदतर” होती चली जाएगी। इसलिए हमें आगे और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। (2 तीमु. 3:1, 13) हमें पहले से कहीं ज़्यादा इस बात का ध्यान रखना है कि ये मुश्किलें हमें तोड़ न दें। इसके बजाय, हमें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना है और उन बातों पर ध्यान देना है जो हम कर सकते हैं। इसी वजह से 2017 का हमारा सालाना वचन एकदम सही है, “यहोवा पर भरोसा रख और भले काम कर।”—भज. 37:3.

सन्‌ 2017 का हमारा सालाना वचन है: “यहोवा पर भरोसा रख और भले काम कर”—भजन 37:3