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यहोवा अपने लोगों की अगुवाई करता है

यहोवा अपने लोगों की अगुवाई करता है

“यहोवा हमेशा तुम्हारे आगे-आगे चलेगा।”—यशा. 58:11.

गीत: 152, 22

1, 2. (क) यहोवा के साक्षी दूसरे धर्मों से कैसे अलग हैं? (ख) हम इस लेख में और अगले लेख में क्या सीखेंगे?

लोग अकसर हम यहोवा के साक्षियों से पूछते हैं, “तुम्हारा गुरु कौन है?” वे यह सवाल इसलिए करते हैं क्योंकि ज़्यादातर धर्मों में कोई आदमी या औरत उनके गुरु होते हैं। लेकिन हमें यह बताते हुए गर्व होता है कि हमारा गुरु या अगुवा कोई अपरिपूर्ण इंसान नहीं है। हमारा अगुवा यीशु मसीह है! वह अपने पिता और अगुवे यहोवा की आज्ञा मानता है।—मत्ती 23:10.

2 लेकिन यह बात भी सच है कि हमारे बीच आदमियों का एक समूह है जो आज धरती पर परमेश्वर के लोगों की अगुवाई करता है। उस समूह को “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कहा जाता है। (मत्ती 24:45) मगर हम यह कैसे यकीन कर सकते हैं कि असल में यहोवा ही अपने बेटे के ज़रिए हमारी अगुवाई कर रहा है? हम तीन वजहों पर गौर करेंगे। इससे हम साफ देख पाएँगे कि भले ही यहोवा ने पुराने समय में और आज अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए कुछ इंसानों को चुना है, मगर यहोवा ही उनका सच्चा अगुवा है।—यशा. 58:11.

पवित्र शक्‍ति ने उन पर ज़बरदस्त तरीके से काम किया

3. इसराएलियों की अगुवाई करने में मूसा को क्या मदद मिली?

3 पवित्र शक्‍ति ने यहोवा के प्रतिनिधियों पर ज़बरदस्त तरीके से काम किया। परमेश्वर ने मूसा को इसराएलियों का अगुवा चुना था। यह एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी। इसे निभाने में किस बात ने मूसा की मदद की? यहोवा ने मूसा को “अपनी पवित्र शक्‍ति” दी। (यशायाह 63:11-14 पढ़िए।) तो असल में यहोवा अपने लोगों की अगुवाई कर रहा था क्योंकि जो पवित्र शक्‍ति मूसा की मदद कर रही थी वह यहोवा की तरफ से थी।

4. क्या बातें दिखाती हैं कि मूसा पर परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति काम कर रही थी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

4 क्या लोग यह देख सकते थे कि मूसा पर परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति काम कर रही है? जी हाँ! यहोवा की पवित्र शक्‍ति से ही मूसा चमत्कार कर पाया और मिस्र के ताकतवर शासक फिरौन को परमेश्वर के नाम के बारे में बता पाया। (निर्ग. 7:1-3) पवित्र शक्‍ति की मदद से मूसा एक प्यार करनेवाला और सब्र रखनेवाला अगुवा भी बन पाया। वह दूसरे देशों के कठोर और खुदगर्ज़ अगुवों से एकदम अलग था। (निर्ग. 5:2, 6-9) इन बातों से साफ पता चलता है कि यहोवा ने ही मूसा को अपने लोगों पर अगुवा चुना था।

5. अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए यहोवा ने और किन्हें अपनी पवित्र शक्‍ति दी?

5 आगे चलकर यहोवा ने दूसरे आदमियों को भी अपनी पवित्र शक्‍ति दी ताकि वे उसके लोगों की अगुवाई कर सकें। बाइबल बताती है, “यहोशू जो नून का बेटा था, परमेश्वर की शक्‍ति से मिली बुद्धि से भरपूर था।” (व्यव. 34:9, फु.) “यहोवा की पवित्र शक्‍ति गिदोन पर उतरी।” (न्यायि. 6:34) “यहोवा की पवित्र शक्‍ति दाविद पर काम करने लगी।” (1 शमू. 16:13) इन सभी आदमियों ने परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति पर भरोसा रखा और वे ऐसे काम कर पाए जो वे अपनी ताकत से कभी नहीं कर सकते थे। (यहो. 11:16, 17; न्यायि. 7:7, 22; 1 शमू. 17:37, 50) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा ने ही उन्हें बड़े-बड़े काम करने की ताकत दी। इसलिए इन कामों के लिए सिर्फ यहोवा ही तारीफ का हकदार था।

6. परमेश्वर क्यों चाहता था कि इसराएली अपने अगुवों का आदर करें?

6 जब इसराएलियों ने देखा कि मूसा, यहोशू, गिदोन और दाविद पर परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति काम कर रही है, तो उन्हें क्या करना था? उन्हें इन आदमियों का आदर करना था। इसलिए गौर कीजिए कि जब लोग मूसा के खिलाफ शिकायत करने लगे तो यहोवा ने क्या कहा, “ये लोग और कब तक मेरी बेइज़्ज़ती करते रहेंगे?” (गिन. 14:2, 11) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा ने ही इन आदमियों को चुना था कि वे उसके लोगों की अगुवाई करें। जब लोगों ने उनकी आज्ञा मानी तो वे असल में यहोवा को अपना अगुवा मान रहे थे।

स्वर्गदूतों ने उनकी मदद की

7. स्वर्गदूतों ने कैसे मूसा की मदद की?

7 स्वर्गदूतों ने परमेश्वर के प्रतिनिधियों की मदद की। (इब्रानियों 1:7, 14 पढ़िए।) यहोवा ने स्वर्गदूतों के ज़रिए मूसा को राह दिखायी। सबसे पहले, एक स्वर्गदूत “कँटीली झाड़ी में उसे दिखायी दिया” और उसने मूसा से कहा कि वह इसराएलियों को आज़ाद कराए और उनकी अगुवाई करे। (प्रेषि. 7:35) फिर दूसरी बार परमेश्वर ने स्वर्गदूतों के ज़रिए मूसा को कानून दिया ताकि वह कानून की बातें इसराएलियों को सिखा सके। (गला. 3:19) तीसरी बार, यहोवा ने मूसा से कहा, “तू जा और लोगों की अगुवाई करके उन्हें उस जगह ले जा जिसके बारे में मैंने तुझे बताया है। देख, मेरा स्वर्गदूत तेरे आगे-आगे जाएगा।” (निर्ग. 32:34) बाइबल यह नहीं बताती कि इसराएलियों ने एक स्वर्गदूत को यह सब करते देखा। लेकिन मूसा ने जिस तरह लोगों को सिखाया और उनका मार्गदर्शन किया उससे साफ ज़ाहिर होता है कि स्वर्गदूतों ने मूसा की मदद की थी।

8. स्वर्गदूतों ने यहोशू और हिजकियाह की किस तरह मदद की?

8 स्वर्गदूतों ने और किसकी मदद की? बाइबल बताती है कि ‘यहोवा की सेना के प्रधान’ यानी एक स्वर्गदूत ने यहोशू को कनानियों पर जीत दिलायी। (यहो. 5:13-15; 6:2, 21) बाद में, जब राजा हिजकियाह परमेश्वर के लोगों का अगुवा था तब अश्शूरियों की एक बड़ी सेना यरूशलेम का नाश करने आयी। तब “यहोवा का स्वर्गदूत अश्शूरियों की छावनी में गया” और उसी रात उसने “1,85,000 सैनिकों को मार डाला।”—2 राजा 19:35.

9. हालाँकि परमेश्वर के प्रतिनिधि परिपूर्ण नहीं थे फिर भी इसराएलियों से क्या उम्मीद की गयी थी?

9 स्वर्गदूत परिपूर्ण हैं। लेकिन जिन आदमियों की उन्होंने मदद की वे परिपूर्ण नहीं थे। मिसाल के लिए, मूसा ने एक मौके पर यहोवा का आदर नहीं किया। (गिन. 20:12) जब गिबोनियों ने यहोशू के साथ करार करना चाहा, तो उसने परमेश्वर से नहीं पूछा कि उसे करार करना चाहिए या नहीं। (यहो. 9:14, 15) हिजकियाह ने भी कुछ समय के लिए घमंड किया। (2 इति. 32:25, 26) ये आदमी परिपूर्ण नहीं थे फिर भी इसराएलियों से उम्मीद की गयी थी कि वे उनके निर्देशों को मानें। इसराएली देख सकते थे कि यहोवा अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए इन अगुवों का साथ दे रहा था। इससे साफ पता चलता है कि यहोवा अपने लोगों की अगुवाई कर रहा था।

परमेश्वर के वचन से उन्हें मार्गदर्शन मिला

10. मूसा कैसे परमेश्वर के कानून के मुताबिक चला?

10 परमेश्वर के वचन से उसके प्रतिनिधियों को मार्गदर्शन मिला। इसराएलियों को जो कानून दिया गया था, उसे बाइबल में ‘मूसा का कानून’ कहा गया है। (1 राजा 2:3) लेकिन बाइबल साफ बताती है कि यह कानून मूसा ने नहीं, यहोवा ने दिया था। खुद मूसा को भी इस कानून का पालन करना था। (2 इति. 34:14) मिसाल के लिए, जब यहोवा ने मूसा को पवित्र डेरा बनाने की हिदायतें दीं, तब “मूसा ने यह सारा काम ठीक वैसा ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी। उसने ठीक वैसा ही किया।”—निर्ग. 40:1-16.

11, 12. (क) यहोशू और इसराएल के राजाओं को क्या करने के लिए कहा गया था? (ख) परमेश्वर के वचन ने अगुवाई करनेवाले आदमियों को किस तरह सही राह दिखायी?

11 जब यहोशू अगुवा बना, तब उसके पास परमेश्वर का वचन था और यहोवा ने उससे कहा, “दिन-रात इसे धीमी आवाज़ में पढ़ना ताकि तू इसकी एक-एक बात का पालन कर सके।” (यहो. 1:8) बाद में जब राजाओं ने परमेश्वर के लोगों पर राज किया, तब उन्हें भी हर दिन कानून पढ़ना था और कानून की बातें हू-ब-हू अपने लिए एक किताब में लिखनी थीं। साथ ही, उन्हें ‘उसमें दिए सभी नियमों का पालन करना था और कायदे-कानूनों के मुताबिक चलना था।’व्यवस्थाविवरण 17:18-20 पढ़िए।

12 परमेश्वर के वचन ने अगुवाई करनेवाले आदमियों को किस तरह सही राह दिखायी? राजा योशियाह की मिसाल पर ध्यान दीजिए। जब उसे मूसा के कानून की किताब मिली तो उसके राज-सचिव ने उसे पढ़कर सुनाया। * “जैसे ही राजा ने कानून की किताब में लिखी बातें सुनीं, उसने अपने कपड़े फाड़े।” परमेश्वर के वचन ने योशियाह में ऐसा जोश भरा कि उसने देश में से सारी मूरतें नष्ट कर दीं। फिर उसने एक फसह का आयोजन किया जो इसराएल के इतिहास में सबसे बड़ा फसह था। (2 राजा 22:11; 23:1-23) योशियाह और दूसरे वफादार अगुवे परमेश्वर के वचन की दिखायी राह पर चलते थे। वे परमेश्वर के लोगों को सही निर्देश देने के लिए उसमें फेरबदल करने को राज़ी थे। इस वजह से परमेश्वर के लोग और भी अच्छी तरह से उसके आज्ञाकारी बन पाए।

13. परमेश्वर के ठहराए अगुवे, दूसरे देश के अगुवों से कैसे अलग थे?

13 वहीं दूसरी तरफ, दूसरे देश के अगुवे इंसानी बुद्धि के मुताबिक चलते थे जो बहुत सीमित होती है। मिसाल के लिए, कनानी राजा और उनके लोग घिनौने काम करते थे। वे बच्चों की बलि चढ़ाते थे, मूर्तियों को पूजते थे, अपने नज़दीकी रिश्तेदारों और जानवरों के साथ यौन-संबंध रखते थे। यही नहीं, वहाँ की औरतें औरतों के साथ और आदमी आदमियों के साथ संबंध रखते थे। (लैव्य. 18:6, 21-25) इसके अलावा, बैबिलोन और मिस्र के राजा साफ-सफाई के उन नियमों को नहीं मानते थे जिन्हें परमेश्वर के लोग मानते थे। (गिन. 19:13) परमेश्वर के लोग साफ देख सकते थे कि उनके अगुवे दूसरे देश के अगुवों से कितने अलग हैं। ये अगुवे उन्हें अपने शरीर को साफ-सुथरा रखने, उपासना के मामले में और लैंगिक मामलों में शुद्ध बने रहने का बढ़ावा देते थे। इससे साफ पता चलता है कि यहोवा उनकी अगुवाई कर रहा था।

14. यहोवा ने कुछ अगुवों को क्यों फटकारा?

14 पुराने ज़माने में परमेश्वर के लोगों पर हुकूमत करनेवाले सभी राजाओं ने परमेश्वर की हिदायतें नहीं मानी। उन राजाओं ने परमेश्वर की आज्ञा मानने से साफ इनकार कर दिया और उसके वचन, उसकी पवित्र शक्‍ति और स्वर्गदूतों से मिलनेवाले मार्गदर्शन को ठुकरा दिया। इसलिए यहोवा ने इनमें से कुछ अगुवों को फटकारा और कुछ अगुवों को हटाकर उनकी जगह किसी और को अगुवा ठहराया। (1 शमू. 13:13, 14) आगे चलकर यहोवा एक ऐसा अगुवा ठहरानेवाला था जो एक परिपूर्ण अगुवा होता।

यहोवा एक परिपूर्ण अगुवा ठहराता है

15. (क) भविष्यवक्ताओं ने किस तरह बताया कि एक परिपूर्ण अगुवा आएगा? (ख) वह परिपूर्ण अगुवा कौन था?

15 सैकड़ों सालों से यहोवा भविष्यवाणी करता आया था कि वह अपने लोगों पर एक परिपूर्ण अगुवा ठहराएगा। मिसाल के लिए, मूसा ने इसराएलियों से कहा था, “तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे भाइयों के बीच में से तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यवक्ता खड़ा करेगा। तुम उसकी बात सुनना।” (व्यव. 18:15) यशायाह ने कहा था कि वह शख्स “अगुवा और शासक” बनेगा। (यशा. 55:4) दानियेल ने मसीहा के बारे में भविष्यवाणी की कि वह ‘अगुवा’ होगा। (दानि. 9:25) फिर जब यीशु मसीह धरती पर आया, तो उसने बताया कि वही परमेश्वर के लोगों का “अगुवा” है। (मत्ती 23:10 पढ़िए।) यीशु के चेलों ने खुशी-खुशी उसे अपना अगुवा माना और यह कबूल किया कि वही यहोवा का चुना हुआ जन है। (यूह. 6:68, 69) किस बात ने चेलों को यकीन दिलाया कि यीशु मसीह ही वह शख्स है जिसे यहोवा ने अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए चुना है?

16. क्या सबूत दिखाते हैं कि पवित्र शक्‍ति यीशु पर ज़बरदस्त तरीके से काम कर रही थी?

16 पवित्र शक्‍ति ने यीशु पर ज़बरदस्त तरीके से काम किया। जब यीशु का बपतिस्मा हुआ, तब यूहन्ना ने ‘आकाश को खुलते और पवित्र शक्‍ति को एक कबूतर के रूप में यीशु पर उतरते देखा।’ इसके फौरन बाद, “पवित्र शक्‍ति ने यीशु को वीराने में जाने के लिए उभारा।” (मर. 1:10-12) धरती पर यीशु की सेवा के दौरान पवित्र शक्‍ति ने उसे दूसरों को सिखाने और चमत्कार करने की ताकत दी। (प्रेषि. 10:38) इसके अलावा, पवित्र शक्‍ति की मदद से यीशु प्यार, खुशी और मज़बूत विश्वास जैसे गुण ज़ाहिर कर पाया। (यूह. 15:9; इब्रा. 12:2) यीशु के जैसा दूसरा कोई अगुवा नहीं था जिस पर परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति ने इतने ज़बरदस्त तरीके से काम किया। इससे साफ पता चलता है कि यहोवा ने यीशु को अगुवा होने के लिए चुना था।

यीशु के बपतिस्मे के कुछ समय बाद स्वर्गदूतों ने कैसे उसकी मदद की? (पैराग्राफ 17 देखिए)

17. स्वर्गदूतों ने किस तरह यीशु की मदद की?

17 स्वर्गदूतों ने यीशु की मदद की। बपतिस्मे के कुछ समय बाद, “स्वर्गदूत आकर यीशु की सेवा करने लगे।” (मत्ती 4:11) फिर उसकी मौत से कुछ घंटे पहले “स्वर्ग से एक दूत उसके सामने प्रकट हुआ और उसकी हिम्मत बँधायी।” (लूका 22:43) यीशु को यकीन था कि जब भी उसे ज़रूरत होगी तब यहोवा उसकी मदद के लिए स्वर्गदूतों को भेजेगा।—मत्ती 26:53.

18, 19. यीशु अपनी ज़िंदगी में और दूसरों को सिखाते वक्‍त कैसे परमेश्वर के वचन के मुताबिक चला?

18 परमेश्वर के वचन से यीशु को मार्गदर्शन मिला। अपनी सेवा की शुरूआत से लेकर अपनी मौत तक यीशु शास्त्र के मुताबिक जीया। यहाँ तक कि यातना के काठ पर दम तोड़ते वक्‍त उसने मसीहा से जुड़ी भविष्यवाणियों का हवाला दिया। (मत्ती 4:4; 27:46; लूका 23:46) लेकिन उस ज़माने के धर्म के अगुवे यीशु से बहुत अलग थे। वे परमेश्वर के वचन को सिर्फ तभी मानते थे जब वह उनकी शिक्षाओं से मेल खाता था। उनके बारे में यीशु ने परमेश्वर की कही यह बात दोहरायी, “ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है। ये बेकार ही मेरी उपासना करते रहते हैं क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।” (मत्ती 15:7-9) यहोवा कभी अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए ऐसे आदमियों को नहीं चुनता जो उसके वचन के मुताबिक नहीं चलते।

19 दूसरों को सिखाते वक्‍त भी यीशु ने परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल किया। जब धर्म के अगुवों ने उसे परखने के लिए उससे सवाल किए तब यीशु ने अपने तजुरबे या अपनी बुद्धि से उन्हें जवाब नहीं दिया। इसके बजाय, उसने शास्त्र से जवाब दिया। (मत्ती 22:33-40) यही नहीं, यीशु स्वर्ग के बारे में या फिर विश्व की सृष्टि के बारे में अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाकर लोगों पर धाक जमा सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसे परमेश्वर के वचन से प्यार था, इसलिए वह पूरे जोश के साथ दूसरों को इसमें लिखी बातें बताता था। वह ‘शास्त्र में लिखी बातों का मतलब उन्हें अच्छी तरह समझाता था।’—लूका 24:32, 45.

20. (क) यीशु ने यहोवा की महिमा कैसे की? (ख) यीशु और हेरोदेस में क्या फर्क था?

20 यीशु की बातें सुनकर लोग अकसर ताज्जुब करते थे मगर उसने हमेशा अपने शिक्षक यहोवा की महिमा की। (लूका 4:22) जब एक अमीर आदमी ने यीशु का आदर करने के लिए उसे ‘अच्छा गुरु’ कहा तो यीशु ने नम्रता से कहा, “तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? कोई अच्छा नहीं है, सिवा परमेश्वर के।” (मर. 10:17, 18) इस घटना के करीब 8 साल बाद हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम यहूदिया प्रांत का अगुवा बना। उसका रवैया यीशु से कितना अलग था! एक दिन एक खास सभा के लिए हेरोदेस अपने महँगे शाही लिबास में लोगों के सामने आया। जब लोगों ने उसे देखा और उसकी बातें सुनीं तो वे चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “यह किसी इंसान की नहीं, बल्कि देवता की आवाज़ है!” यह तारीफ सुनकर हेरोदेस बहुत खुश हुआ। फिर क्या हुआ? “उसी घड़ी यहोवा के स्वर्गदूत ने हेरोदेस को मारा क्योंकि उसने परमेश्वर की महिमा नहीं की। उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया।” (प्रेषि. 12:21-23) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा ने हेरोदेस को अगुवा होने के लिए नहीं चुना था। लेकिन यीशु ने साबित किया कि उसे यहोवा ने अगुवा ठहराया है और उसने हमेशा यहोवा की महिमा की जो अपने लोगों का महान अगुवा है।

21. हमें अगले लेख में किन सवालों के जवाब मिलेंगे?

21 यहोवा ने यीशु को सिर्फ कुछ ही साल के लिए अगुवा नहीं बनाया था। यीशु ने ज़िंदा होने के बाद अपने चेलों से कहा, “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार मुझे दिया गया है।” फिर उसने कहा, “देखो! मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।” (मत्ती 28:18-20) लेकिन यीशु तो स्वर्ग में एक अदृश्य प्राणी है, तो वह धरती पर परमेश्वर के लोगों की अगुवाई कैसे करेगा? यहोवा धरती पर यीशु के अधीन किन्हें अगुवाई करने के लिए इस्तेमाल करेगा? मसीही कैसे परमेश्वर के प्रतिनिधियों को पहचान सकते हैं? इन सवालों के जवाब हमें अगले लेख में मिलेंगे।

^ पैरा. 12 यह शायद वही कानून की किताब थी जो मूसा ने अपने हाथों से लिखी थी।