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‘परदेसियो,’ अपने बच्चों की मदद कीजिए

‘परदेसियो,’ अपने बच्चों की मदद कीजिए

“मुझे इससे ज़्यादा किस बात से खुशी मिल सकती है कि मैं यह सुनूँ कि मेरे बच्चे सच्चाई की राह पर चल रहे हैं।”—3 यूह. 4.

गीत: 41, 53

1, 2. (क) विदेश में बसे बच्चों को किस मुश्किल का सामना करना पड़ता है? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

जब जौशुआ छोटा था तब उसके माँ-बाप अपना देश छोड़कर दूसरे देश में बस गए। वह कहता है, “हम घर पर और मंडली में अपनी मातृ-भाषा बोलते थे। लेकिन जब मैं स्कूल जाने लगा तो मैंने नए देश की भाषा सीखी और वह मुझे पसंद आने लगी। कुछ समय बाद मुझे लगा कि मैं अपनी मातृ-भाषा में सभाएँ नहीं समझ पा रहा हूँ। मुझे नए देश का रहन-सहन भी जँचने लगा।” जौशुआ की तरह कई नौजवानों को ऐसा ही लगता है।

2 आज 24 करोड़ से भी ज़्यादा लोग अपना देश छोड़कर दूसरे देश में रह रहे हैं। क्या आप उनमें से एक हैं और आपके बच्चे हैं? अगर हाँ, तो आप उनकी मदद कर सकते हैं कि वे यहोवा से प्यार करना सीखें और ‘सच्चाई की राह पर चलते रहें।’ (3 यूह. 4) आप यह कैसे कर सकते हैं? मंडली के भाई-बहन कैसे आपकी मदद कर सकते हैं?

माता-पिताओ, अच्छी मिसाल रखिए

3, 4. (क) माँ-बाप कैसे एक अच्छी मिसाल रख सकते हैं? (ख) उन्हें अपने बच्चों से क्या उम्मीद नहीं करनी चाहिए?

3 माता-पिताओ, अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे का यहोवा के साथ करीबी रिश्ता हो और वह हमेशा की ज़िंदगी पाए, तो उसके लिए अच्छी मिसाल रखिए। जब वह आपको ‘परमेश्वर के राज की खोज’ करते देखेगा तो वह अपनी ज़रूरत के लिए यहोवा पर निर्भर रहना सीखेगा। (मत्ती 6:33, 34) ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने के बजाय यहोवा की सेवा को पहली जगह दीजिए। सादगी-भरा जीवन बिताइए और कर्ज़ में मत डूबिए। “स्वर्ग में खज़ाना” इकट्ठा कीजिए यानी यहोवा की मंज़ूरी पाने में लगे रहिए। पैसों के पीछे मत भागिए, न ही “इंसानों से मिलनेवाली महिमा” की खोज में रहिए।—मरकुस 10:21, 22 पढ़िए; यूह. 12:43.

4 काम में इतना मत उलझ जाइए कि बच्चों के लिए आपके पास वक्‍त ही न बचे। जब आपका बच्चा कोई ऐसा मौका ठुकराता है जिससे वह पैसा और नाम कमा सकता है और आपको आराम की ज़िंदगी दे सकता है तो उसे शाबाशी दीजिए। उसे बताइए कि आपको उस पर नाज़ है क्योंकि उसने यहोवा को पहली जगह दी है। इस गलत सोच को ठुकराइए कि बच्चे कमाकर अपने माँ-बाप को खिलाएँगे। याद रखिए, “बच्चों से उम्मीद नहीं की जाती कि वे माँ-बाप के लिए पैसे बचाकर रखें, बल्कि माँ-बाप से उम्मीद की जाती है कि वे बच्चों के लिए पैसे बचाकर रखें।”—2 कुरिं. 12:14.

भाषा से जुड़ी मुश्किलें पार कीजिए

5. यहोवा के बारे में बच्चों के साथ चर्चा करना क्यों ज़रूरी है?

5 यह भविष्यवाणी की गयी थी कि “अलग-अलग भाषा बोलनेवाले सब राष्ट्रों में से” लोग यहोवा के संगठन में आएँगे। (जक. 8:23) लेकिन अगर आपका बच्चा आपकी भाषा अच्छी तरह नहीं जानता तो शायद उसे सच्चाई सिखाना मुश्किल हो। याद रखिए, आपका बच्चा आपका सबसे खास बाइबल विद्यार्थी है और यहोवा को जानने से उसे हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। (यूह. 17:3) इसके लिए ज़रूरी है कि आप हर मौके पर यहोवा के बारे में ‘उससे चर्चा करें।’—व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 पढ़िए।

6. आपकी भाषा सीखने से आपके बच्चों को क्या फायदा होगा? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

6 आपका बच्चा स्कूल में और दूसरों के साथ रहकर नए देश की भाषा सीख जाएगा। लेकिन वह आपकी भाषा तभी सीखेगा जब आप हर दिन उस भाषा में उससे बात करेंगे। फिर वह आसानी से आपसे बात कर पाएगा और अपने दिल की बात बता पाएगा। आपकी भाषा सीखने के उसे और भी फायदे होंगे। एक-से-ज़्यादा भाषा बोलने से उसकी सोचने की काबिलीयत बढ़ेगी और वह दूसरों का नज़रिया समझ पाएगा। यही नहीं, उसे प्रचार करने के और भी मौके मिलेंगे। कैरोलीना, जिसके माँ-बाप नए देश में आकर बसे हैं कहती है, “मम्मी-पापा जो भाषा बोलते हैं मैं उसी मंडली में हूँ। यहाँ ऐसे प्रचारकों की बहुत ज़रूरत है जो इस भाषा में प्रचार कर सकते हैं, इसलिए मुझे यहाँ बहुत मज़ा आ रहा है।”

7. अगर आपके बच्चे को आपकी भाषा नहीं आती तो आप क्या कर सकते हैं?

7 जैसे-जैसे बच्चे नए देश की भाषा और रहन-सहन सीखते हैं, तो शायद कुछ बच्चे अपनी मातृ-भाषा में बात करना न चाहें। यह भी हो सकता है कि वे अपनी मातृ-भाषा भूलने लगें। माता-पिताओ, अगर आपके बच्चे के साथ ऐसा हो रहा है तो क्या आप थोड़ी-बहुत नयी भाषा सीख सकते हैं? इससे आप बच्चे की अच्छी तरह परवरिश कर पाएँगे, उसकी बातें और स्कूल का काम समझ पाएँगे, यह जान पाएँगे कि वह किस तरह का मनोरंजन करता है और उसके टीचरों से भी बात कर पाएँगे। नयी भाषा सीखने में वक्‍त और मेहनत लगती है, साथ ही, नम्र होना ज़रूरी है। माता-पिता ऐसी मेहनत ज़रूर करेंगे। सोचिए अगर आपका बच्चा किसी वजह से सुनने की शक्‍ति खो बैठता है तो क्या आप उससे बात करने के लिए साइन लैंग्वेज नहीं सीखेंगे? तो फिर अगर आपके बच्चे को मातृ-भाषा नहीं आती तो क्या आप उसकी खातिर नयी भाषा नहीं सीखेंगे? *

8. अगर आप नयी भाषा अच्छी तरह नहीं बोल पाते हैं तब भी आप अपने बच्चों को कैसे सिखा सकते हैं?

8 कुछ माँ-बाप नयी भाषा अच्छी तरह न बोल पाएँ और इस वजह से बच्चों को “पवित्र शास्त्र” के बारे में ठीक से न समझा पाएँ। (2 तीमु. 3:15) अगर आपके बारे में यह सच है तो यकीन रखिए कि आप फिर भी अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखा सकते हैं। शैन नाम का प्राचीन कहता है, “माँ ने ही मुझे और मेरी बहनों को पाला है। वह हमारी भाषा अच्छी तरह नहीं समझती थी और हम माँ की भाषा अच्छे से नहीं बोल पाते थे। लेकिन माँ दिल लगाकर अध्ययन और प्रार्थना करती थी और पारिवारिक उपासना चलाने में खूब मेहनत करती थी। उसकी अच्छी मिसाल देखकर हमें यकीन हो गया कि यहोवा को जानना बेहद ज़रूरी है।”

9. कुछ माँ-बाप को बच्चों के लिए कैसी मेहनत करनी होगी?

9 कुछ बच्चे घर पर एक भाषा बोलते हैं और स्कूल में दूसरी भाषा। इस वजह से कुछ माँ-बाप अपने बच्चों के साथ अध्ययन करते वक्‍त दो भाषाओं में प्रकाशन, ऑडियो रिकॉर्डिंग और वीडियो इस्तेमाल करते हैं। इससे साफ पता चलता है कि जो माँ-बाप दूसरे देश में जाकर बस जाते हैं उन्हें बच्चों के लिए और भी मेहनत करनी होगी ताकि वे यहोवा के करीब आ सकें।

कौन-सी भाषा बोलनेवाली मंडली में जाएँ?

10. (क) परिवार को किस भाषा की मंडली में जाना चाहिए यह फैसला कौन करेगा? (ख) फैसला लेने से पहले उसे क्या करना चाहिए?

10 अगर नए देश में आपकी मातृ-भाषा की कोई मंडली नहीं है, तो आपको क्या करना चाहिए? (भज. 146:9) ऐसे में आपको नए देश की भाषा की मंडली में जाना चाहिए। लेकिन अगर आपकी भाषा की कोई मंडली पास में है, तो परिवार के मुखिया को फैसला करना है कि परिवार के लिए किस भाषा की मंडली में जाना सबसे अच्छा होगा। फैसला लेने से पहले उसे अच्छी तरह सोचना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए। उसे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भी बात करनी चाहिए। (1 कुरिं. 11:3) फैसला लेते वक्‍त उसे किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? बाइबल के कौन-से सिद्धांत उसकी मदद कर सकते हैं?

11, 12. (क) बच्चे सभाओं से कितना फायदा उठाएँगे यह भाषा पर कैसे निर्भर करता है? (ख) कुछ बच्चे शायद अपनी मातृ-भाषा क्यों सीखना न चाहें?

11 माँ-बाप को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के लिए क्या अच्छा रहेगा। यह सच है कि सभाओं में कुछ घंटे बैठकर एक बच्चा बाइबल की सच्चाइयाँ पूरी तरह नहीं सीख सकता। लेकिन अगर एक बच्चे को उस मंडली में ले जाएँ जिसकी भाषा वह समझता है तो वह काफी कुछ सीख पाएगा। वहीं दूसरी तरफ, जब वह भाषा अच्छी तरह नहीं समझता तो उसे सभाओं से उतना फायदा नहीं होता। (1 कुरिंथियों 14:9, 11 पढ़िए।) यह भी हो सकता है कि बच्चे की मातृ-भाषा का उसकी सोच और भावनाओं पर वैसा असर न हो जैसा पहले हुआ करता था। देखा गया है कि कुछ बच्चे सभाओं में जवाब देते हैं, प्रदर्शन पेश करते हैं और भाषण देते हैं लेकिन वे अपनी सोच और भावनाओं को सही तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते।

12 एक बच्चे के दिल पर नए देश की भाषा का ही नहीं, वहाँ के रहन-सहन का भी असर होता है। ऐसा ही कुछ जौशुआ के साथ हुआ जिसका ज़िक्र शुरूआत में किया गया था। उसकी बहन एस्थर कहती है, “बच्चों को मानो विरासत में माता-पिता से उनकी भाषा, रहन-सहन और धर्म सबकुछ एक-साथ मिलता है।” इसलिए अगर बच्चा माँ-बाप के रहन-सहन के बजाय नए देश की संस्कृति को ज़्यादा पसंद करे, तो उसे शायद अपने माँ-बाप की भाषा और उनका धर्म अपनाना भी मुश्किल लगे। ऐसे में माता-पिता क्या कर सकते हैं?

13, 14. (क) एक माँ-बाप ने अपनी मंडली क्यों बदली? (ख) यहोवा के साथ मज़बूत रिश्ता बनाए रखने के लिए उन्होंने क्या किया?

13 मसीही माता-पिता अपनी इच्छाओं से ज़्यादा अपने बच्चों की ज़रूरतों को अहमियत देते हैं। (1 कुरिं. 10:24) जौशुआ और एस्थर का पिता सैम्यूल कहता है, “मैंने और मेरी पत्नी ने यह समझने की कोशिश की कि किस भाषा में सच्चाई हमारे बच्चों के दिलों को छू रही है। हमने यहोवा से प्रार्थना भी की। हमने देखा कि हमारी मातृ-भाषा में होनेवाली सभाओं से उन्हें ज़्यादा फायदा नहीं हो रहा था। इसलिए हमने फैसला किया कि जो भाषा बच्चों को समझ आती है हम उसी मंडली में जाएँगे। यह बदलाव मेरे और मेरी पत्नी के लिए आसान नहीं था लेकिन हमने बच्चों की खातिर ऐसा किया। हम साथ मिलकर हर हफ्ते सभाओं और प्रचार में जाते थे। हम नयी मंडली के दोस्तों को खाने पर बुलाते थे और उनके साथ घूमने-फिरने जाते थे। धीरे-धीरे हमारे बच्चे भाई-बहनों को जानने लगे। वे यहोवा को भी अच्छी तरह जानने लगे। अब वे यहोवा को न सिर्फ अपना परमेश्वर बल्कि अपना दोस्त और पिता भी मानते हैं। यही बात हमारे लिए मायने रखती थी बजाय इसके कि बच्चे हमारी मातृ-भाषा अच्छी तरह जानें।”

14 सैम्यूल यह भी कहता है, “यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रखने के लिए मैं और मेरी पत्नी अपनी मातृ-भाषा में होनेवाली सभाओं में भी जाते थे। हम बहुत व्यस्त रहते थे और थक जाते थे, लेकिन हम यहोवा का धन्यवाद करते हैं कि उसने हमारी मेहनत और त्याग पर आशीषें दीं। आज हमारे तीनों बच्चे पूरे समय की सेवा कर रहे हैं।”

नौजवान क्या कर सकते हैं?

15. क्रिस्टीना को क्यों लगा कि वह नए देश की भाषा बोलनेवाली मंडली में अच्छी तरह सेवा कर पाएगी?

15 जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो उन्हें शायद लगे कि नए देश की भाषा बोलनेवाली मंडली में वे यहोवा की सेवा अच्छी तरह कर पाएँगे। ऐसे में माता-पिता को नहीं सोचना चाहिए कि उनके बच्चे उनसे प्यार नहीं करते। क्रिस्टीना याद करती है, “मुझे अपनी मातृ-भाषा थोड़ी-बहुत आती थी लेकिन सभाओं में मुझे कुछ समझ नहीं आता था। जब मैं 12 साल की थी तब मैं एक अधिवेशन में गयी जो नए देश की भाषा में रखा गया था। पहली बार मुझे समझ में आया कि यही सच्चाई है! फिर मैं उस भाषा में प्रार्थना भी करने लगी। अब मैं दिल खोलकर यहोवा को अपनी बात बता सकती थी!” (प्रेषि. 2:11, 41) जब क्रिस्टीना 18 की हुई, तो उसने अपने मम्मी-पापा से बात की और नए देश की भाषा बोलनेवाली मंडली में जाकर सेवा करने लगी। वह कहती है, “इस भाषा की बदौलत मैंने यहोवा के बारे में जो सीखा, उससे मैं अपनी सेवा में आगे बढ़ पायी हूँ।” क्रिस्टीना पायनियर बनी और आज वह बहुत खुश है।

16. नाडिया क्यों खुश है कि वह दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में नहीं गयी?

16 नौजवानो, क्या आपको लगता है कि आपको भी नए देश की भाषा बोलनेवाली मंडली में जाना चाहिए? खुद से पूछिए कि आप वहाँ क्यों जाना चाहते हैं? क्या मंडली बदलने से आप यहोवा के और करीब आएँगे? (याकू. 4:8) या आप इसलिए मंडली बदलना चाहते हैं ताकि आपके माँ-बाप आप पर नज़र न रख सकें? या इसलिए कि आपको मेहनत न करनी पड़े? नाडिया जो आज बेथेल में सेवा कर रही है कहती है, “जब मैं और मेरे भाई-बहन बड़े होने लगे तो हम दूसरी मंडली में जाना चाहते थे।” लेकिन नाडिया के माँ-बाप जानते थे कि ऐसा करने से यहोवा के साथ उनके बच्चों का रिश्ता कमज़ोर पड़ सकता है। नाडिया कहती है, “हम मम्मी-पापा के एहसानमंद हैं कि उन्होंने हमें अपनी भाषा सिखाने में खूब मेहनत की और दूसरी मंडली में नहीं जाने दिया। इससे हमें यहोवा के बारे में सिखाने के कई अच्छे मौके मिले और हमें काफी खुशी भी मिली।”

दूसरे किस तरह मदद कर सकते हैं?

17. (क) बच्चों की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी यहोवा ने किसे दी है? (ख) उन्हें सच्चाई सिखाने के लिए माँ-बाप को कहाँ से मदद मिल सकती है?

17 बच्चों की परवरिश करने और उन्हें सच्चाई सिखाने की ज़िम्मेदारी यहोवा ने माँ-बाप को दी है। उसने यह ज़िम्मेदारी न तो दादा-दादी को, न ही किसी और को दी है। (नीतिवचन 1:8; 31:10, 27, 28 पढ़िए।) फिर भी जो माँ-बाप नए देश की भाषा नहीं जानते उन्हें अपने बच्चों के दिल तक पहुँचने में शायद मदद की ज़रूरत हो। जैसे, वे मंडली के प्राचीनों से सुझाव माँग सकते हैं कि पारिवारिक उपासना कैसे करें और अच्छे दोस्त चुनने में बच्चों की कैसे मदद करें। दूसरों से मदद माँगने का यह मतलब नहीं कि माँ-बाप अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं। दरअसल बच्चों को ‘यहोवा की मरज़ी के मुताबिक सिखाने और समझाने’ के लिए कभी-कभी दूसरों की मदद लेना ज़रूरी होता है।—इफि. 6:4.

भाई-बहनों की संगति से माँ-बाप और बच्चों दोनों को फायदा होता है (पैराग्राफ 18, 19 देखिए)

18, 19. (क) दूसरे मसीही कैसे नौजवानों की मदद कर सकते हैं? (ख) माता-पिताओं को क्या करते रहना चाहिए?

18 माता-पिता दूसरे परिवारों को भी समय-समय पर पारिवारिक उपासना के लिए अपने घर बुला सकते हैं। इससे बच्चों को अच्छे दोस्त मिलेंगे। यही नहीं, जब बच्चे दूसरे मसीहियों के साथ प्रचार करते हैं या उनके साथ कुछ वक्‍त बिताते हैं तो वे उनसे बहुत कुछ सीखते हैं। (नीति. 27:17) शैन जिसका ज़िक्र पहले किया गया था कहता है, “कुछ भाइयों ने मेरा खास ध्यान रखा। जब भी मुझे सभाओं में कोई विद्यार्थी भाग मिलता था तो वे मेरी मदद करते थे और मैं उनसे बहुत-कुछ सीखता था। इसके अलावा, हम साथ मिलकर खूब मज़े भी करते थे।”

19 बेशक जब माता-पिता किसी मसीही से कहते हैं कि वह उनके बच्चों की मदद करे, तो उसे कुछ बातों का ध्यान रखना है। उसे बच्चों को हमेशा बढ़ावा देना चाहिए कि वे अपने माँ-बाप का आदर करें। जब वह बच्चों के साथ होता है तो उसे उनके माँ-बाप के बारे में अच्छी बातें कहनी चाहिए। उसे कभी उनकी जगह नहीं लेनी चाहिए। साथ ही, ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे बाहरवालों को या भाइयों को लगे कि उसका व्यवहार गलत है। (1 पत. 2:12) हालाँकि माँ-बाप दूसरों से मदद लेते हैं लेकिन बच्चों को सच्चाई सिखाना उनकी ज़िम्मेदारी है। यह ज़रूरी है कि जब भी कोई मसीही उनके बच्चों की मदद करे तो यह उनकी निगरानी में किया जाए।

20. माँ-बाप कैसे बच्चों की मदद कर सकते हैं कि वे यहोवा के वफादार सेवक बनें?

20 तो फिर माता-पिताओ, अपने बच्चों को सिखाने के लिए यहोवा से मदद माँगिए और अपना भरसक कीजिए। (2 इतिहास 15:7 पढ़िए।) अपनी खुशी के बारे में सोचने के बजाय अपने बच्चों की मदद कीजिए कि वे यहोवा के अच्छे दोस्त बनें। हर मुमकिन कोशिश कीजिए ताकि यहोवा का वचन बच्चों के दिल पर गहरा असर करे। हिम्मत मत हारिए! यकीन रखिए कि आपका बच्चा यहोवा का एक सेवक बनेगा। जब आपके बच्चे परमेश्वर के वचन और आपकी अच्छी मिसाल पर चलेंगे तो आप प्रेषित यूहन्ना की तरह महसूस करेंगे, जिसने लिखा, “मुझे इससे ज़्यादा किस बात से खुशी मिल सकती है कि मैं यह सुनूँ कि मेरे बच्चे सच्चाई की राह पर चल रहे हैं।”—3 यूह. 4.

^ पैरा. 7 अप्रैल 2007 की सजग होइए! के पेज 12-14 में दिया लेख “आप एक नयी भाषा सीख सकते हैं!” देखिए।