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“क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?”

“क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?”

“शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?”—यूह. 21:15.

गीत: 32, 45

1, 2. पूरी रात मछली पकड़ने की कोशिश के बाद पतरस ने क्या अहम सबक सीखा?

सुबह का वक्‍त था। यीशु के सात चेले गलील झील में एक नाव में थे। पूरी रात उन्होंने मछली पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। यीशु जिसे ज़िंदा हुए कुछ ही समय हुआ था, किनारे पर खड़ा उन्हें देख रहा था। फिर “उसने उनसे कहा, ‘नाव के दायीं तरफ जाल डालो और तुम्हें कुछ मछलियाँ मिलेंगी।’ तब उन्होंने जाल डाला और उसमें ढेर सारी मछलियाँ आ फँसीं और वे जाल को खींच न पाए।”—यूह. 21:1-6.

2 फिर यीशु ने अपने चेलों को नाश्ते में रोटी और मछलियाँ खिलायीं। शमौन पतरस की तरफ देखकर उसने पूछा “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?” यीशु जानता था कि पतरस को मछलियाँ पकड़ना बहुत पसंद है। तो शायद यीशु के सवाल का मतलब था कि क्या पतरस को यीशु और उसकी शिक्षाओं से ज़्यादा अपने कारोबार से प्यार है। पतरस ने कहा, “प्रभु, तू जानता है कि मुझे तुझसे कितना प्यार है।” (यूह. 21:15) पतरस अपनी बात पर खरा उतरा। उस दिन से वह प्रचार काम में लगा रहा और उसने मंडली में एक अहम भूमिका निभायी। इस तरह उसने साबित किया कि उसे यीशु से सबसे ज़्यादा प्यार है।

3. मसीहियों को क्यों सावधान रहना चाहिए?

3 यीशु ने पतरस से जो सवाल किया उससे हम क्या सीखते हैं? हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं यीशु के लिए हमारा प्यार कम न हो जाए। यीशु जानता था कि इस दुनिया में ज़िंदगी तनाव-भरी होगी। हमें कई चिंताओं और मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए बीज बोनेवाले की मिसाल देते वक्‍त यीशु ने कहा कि कुछ लोग “राज का वचन” सुनकर पहले बहुत जोश दिखाएँगे। लेकिन बाद में “ज़िंदगी की चिंताएँ और धोखा देनेवाली पैसे की ताकत वचन को दबा” देगी और उन लोगों का जोश ठंडा पड़ जाएगा। (मत्ती 13:19-22; मर. 4:19) अगर हम सावधान न रहें तो रोज़ की चिंताएँ यहोवा की सेवा में हमारा जोश ठंडा कर सकती हैं। तभी यीशु ने अपने चेलों से कहा, “तुम खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ।”—लूका 21:34.

4. हम कैसे जाँच सकते हैं कि यीशु के लिए हमारा प्यार कम नहीं हुआ है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

4 पतरस की तरह हम भी प्रचार काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देकर साबित कर सकते हैं कि हमें यीशु से प्यार है। मगर हम क्या कर सकते हैं ताकि यह काम हमेशा हमारी ज़िंदगी में पहली जगह पर रहे? हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘मैं अपनी ज़िंदगी में किस चीज़ से सबसे ज़्यादा प्यार करता हूँ? मुझे किस काम से ज़्यादा खुशी मिलती है, यहोवा की सेवा से या किसी और काम से?’ आइए ज़िंदगी के तीन पहलुओं पर गौर करें, जिनमें अगर हम सावधान न रहें तो यीशु के लिए हमारा प्यार कम हो सकता है। वे हैं नौकरी-पेशा, मनोरंजन और सुख-सुविधा की चीज़ें।

नौकरी-पेशे के बारे में सही नज़रिया रखिए

5. परिवार के मुखियाओं पर क्या ज़िम्मेदारी है?

5 पतरस को न सिर्फ मछली पकड़ना पसंद था बल्कि यह उसका पेशा भी था। यही काम करके वह अपने परिवार का पेट पालता था। आज भी यहोवा ने परिवार के मुखियाओं को यह ज़िम्मेदारी दी है कि वे अपने परिवार के लिए रोज़ी-रोटी कमाएँ। (1 तीमु. 5:8) इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होती है। लेकिन इन आखिरी दिनों में नौकरी-पेशे को लेकर कई चिंताएँ होती हैं।

6. नौकरी-पेशा करनेवाले क्यों तनाव में जीते हैं?

6 आजकल नौकरियाँ मिलनी मुश्किल हो गयी हैं। इसलिए लोग कोई भी नौकरी लेने के लिए तैयार हो जाते हैं फिर चाहे उन्हें तनख्वाह कम मिले और ज़्यादा घंटे काम करना पड़े। वहीं दूसरी तरफ कंपनियाँ भी कम लोगों से ज़्यादा काम निकलवाने की कोशिश करती हैं। इस वजह से नौकरी-पेशा करनेवाले चौबीसों घंटे तनाव में जीते हैं, थक जाते हैं यहाँ तक कि बीमार पड़ जाते हैं। कई लोगों को यह चिंता खाए जाती है कि अगर वे अपने बॉस की माँगे पूरी न करें तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा।

7, 8. (क) हमें सबसे ज़्यादा किसके वफादार रहना चाहिए? (ख) थाईलैंड के एक भाई ने काम के बारे में कौन-सा अनमोल सबक सीखा?

7 मसीही होने के नाते हम अपने बॉस से ज़्यादा यहोवा के वफादार रहते हैं। (लूका 10:27) यह सच है कि नौकरी करने से हम अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाते हैं। लेकिन अगर हम सावधान न रहें तो हमारी नौकरी हमारी उपासना के आड़े आ सकती है। थाईलैंड में रहनेवाले एक भाई के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसने कहा, “मैं एक कंपनी में कंप्यूटर ठीक करने का काम करता था। मुझे अपना काम बहुत पसंद था, लेकिन मुझे काफी घंटे काम करना पड़ता था। इस वजह से सभाओं, प्रचार और अध्ययन के लिए मेरे पास समय ही नहीं बचता था। मुझे एहसास हुआ कि अगर मुझे राज के कामों को पहली जगह देनी है तो मुझे अपना काम बदलना होगा।” इस भाई ने क्या किया?

8 वह कहता है, “करीब एक साल तक योजना बनाने के बाद मैंने फैसला किया कि मैं आइसक्रीम बेचने का काम करूँगा। शुरू-शुरू में मुझे पैसों की दिक्कत हुई और मैं निराश भी हो गया। पुरानी कंपनी के मेरे साथी मुझे देखकर हँसते थे और कहते थे कि तू पागल हो गया है जो ए.सी. में बैठकर कंप्यूटर ठीक करने के बजाय रास्ते में आइसक्रीम बेच रहा है। मैंने यहोवा से प्रार्थना की कि मैं इस हालात का सामना कर पाऊँ और सभाओं और प्रचार के लिए ज़्यादा समय देने का अपना लक्ष्य पूरा कर पाऊँ। धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा। मैं अपने ग्राहकों की पसंद-नापसंद जानने लगा और फिर मैंने अच्छी आइसक्रीम बनानी सीख ली। फिर ऐसा वक्‍त आया कि मैं हर दिन जितनी आइसक्रीम बनाता था वह सब बिक जाती थी। असल में देखा जाए तो कंप्यूटर के काम में मुझे जितनी तनख्वाह मिलती थी, उससे कहीं ज़्यादा पैसे मैं आइसक्रीम बेचकर कमा रहा था। मैं ज़्यादा खुश भी था, क्योंकि पिछली नौकरी में मुझे जो तनाव होता था और जो चिंताएँ लगी रहती थीं, वे इस काम में नहीं थीं। मगर इन सबसे बढ़कर मैं खुद को यहोवा के और भी करीब महसूस करता हूँ।”—मत्ती 5:3, 6 पढ़िए।

9. हम नौकरी-पेशे के बारे में सही नज़रिया कैसे बनाए रख सकते हैं?

9 यहोवा हमारी कड़ी मेहनत की कदर करता है और इसका हमें अच्छा फल मिलता है। (नीति. 12:14) लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नौकरी-पेशा, यहोवा की सेवा से ज़्यादा ज़रूरी न बन जाए। हमारी हर दिन की ज़रूरतों के बारे में यीशु ने कहा था, “तुम पहले उसके राज और उसके नेक स्तरों की खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।” (मत्ती 6:33) हम यह कैसे पता लगा सकते हैं कि नौकरी के बारे में हमारा नज़रिया सही है और हम इसे ज़रूरत-से-ज़्यादा अहमियत नहीं देते? हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘मुझे अपने काम में जितना मज़ा आता है क्या उतना ही मज़ा परमेश्वर की सेवा में आता है? या क्या यह सेवा सिर्फ एक ढर्रा बनकर रह गयी है?’ इन सवालों पर सोचने से हम जान पाएँगे कि हमें किससे ज़्यादा प्यार है, यहोवा की सेवा से या अपनी नौकरी से।

10. यीशु ने क्या बढ़िया सीख दी?

10 यीशु ने सिखाया कि हमें अपनी ज़िंदगी में किस बात को पहली जगह देनी है। एक मौके पर वह मरियम और उसकी बहन मारथा के घर गया। मारथा तुरंत उसके लिए खाना बनाने लगी लेकिन मरियम यीशु के पास बैठकर उसकी बातें सुनने लगी। यह देखकर मारथा ने यीशु से शिकायत की कि मरियम उसकी मदद नहीं कर रही है। यीशु ने मारथा से कहा कि मरियम ने “अच्छा भाग चुना है और वह उससे नहीं छीना जाएगा।” (लूका 10:38-42) यीशु ने एक बढ़िया सीख दी। वह यह कि हमें “अच्छा भाग” चुनना चाहिए यानी यहोवा के साथ अपने रिश्ते को सबसे पहली जगह देनी चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तो हम अपनी ज़रूरतों को हद-से-ज़्यादा अहमियत नहीं देंगे और साबित करेंगे कि हम यीशु से प्यार करते हैं।

मनोरंजन के बारे में हमारा नज़रिया

11. आराम करने या मनोरंजन करने के बारे में बाइबल क्या बताती है?

11 हमें ज़िंदगी में इतनी भागदौड़ करनी पड़ती है कि कभी-कभी आराम करना या थोड़ा मनोरंजन करना ज़रूरी होता है। बाइबल बताती है, “इंसान के लिए इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि वह खाए-पीए और अपनी मेहनत से खुशी पाए!” (सभो. 2:24) यीशु भी जानता था कि आराम करना कितना ज़रूरी है। एक मौके पर जब उसके चेले प्रचार के बाद बहुत थक गए, तो उसने कहा, “आओ, तुम सब अलग किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो।”—मर. 6:31, 32.

12. मनोरंजन के बारे में हमें क्यों सावधान रहना चाहिए? एक उदाहरण दीजिए।

12 मनोरंजन करने से हमारी थकान दूर होती है और हम तरो-ताज़ा महसूस करते हैं। लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए कि मौज-मस्ती करना हमारी ज़िंदगी का मकसद न बन जाए। पहली सदी में कई लोगों का मानना था, “आओ हम खाएँ-पीएँ क्योंकि कल तो मरना ही है।” (1 कुरिं. 15:32) आज भी लोगों में यही रवैया देखा जाता है। उदाहरण के लिए, पश्‍चिम यूरोप में एक नौजवान हमारी मसीही सभाओं में आने लगा। लेकिन उसे मनोरंजन से इतना लगाव था कि उसने धीरे-धीरे साक्षियों के साथ संगति करना बंद कर दिया। बाद में उसे एहसास हुआ कि उसका पूरा ध्यान मनोरंजन पर ही लगा था और इस वजह से उसे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। उसने क्या किया? वह दोबारा बाइबल का अध्ययन करने लगा और आगे चलकर खुशखबरी का प्रचारक बन गया। बपतिस्मे के बाद उसने कहा, “अब मुझे एहसास हुआ है कि यहोवा की सेवा करने से जो खुशी मिलती है वह इस दुनिया के किसी भी मनोरंजन से नहीं मिलती। अफसोस बस इस बात का है कि काश! मैंने यह बात पहले समझी होती।”

13. (क) मिसाल देकर समझाइए कि बहुत ज़्यादा मनोरंजन करना क्यों अच्छा नहीं है। (ख) मनोरंजन के बारे में सही नज़रिया रखने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

13 मनोरंजन ऐसा होना चाहिए जिससे हमें ताज़गी मिले और हममें चुस्ती-फुर्ती आ जाए। तो हमें मनोरंजन करने में कितना समय देना चाहिए? इसका जवाब जानने के लिए ज़रा इस बात पर ध्यान दीजिए। बहुत-से लोग मीठा खाना पसंद करते हैं। लेकिन हम जानते हैं कि अगर हम हर वक्‍त मीठा खाएँ तो हमें नुकसान हो सकता है। अगर हम सेहतमंद रहना चाहते हैं तो हमें पौष्टिक खाना भी खाना चाहिए। उसी तरह, अगर हम हर वक्‍त मनोरंजन ही करते रहें, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कमज़ोर पड़ सकता है। तो फिर हम कैसे पता लगा सकते हैं कि मनोरंजन के बारे में हमारा नज़रिया सही है या नहीं? एक तरीका है, हम लिख लें कि हमने एक हफ्ते में सभाओं, प्रचार और बाइबल का अध्ययन करने में कितने घंटे बिताए। फिर हम यह भी लिख लें कि उसी हफ्ते हमने खेल-कूद में, टी.वी. देखने या वीडियो गेम खेलने में कितने घंटे बिताए। उन दोनों आँकड़ों को मिलाकर देखने से हमें अपने बारे में क्या पता चलता है? क्या हमें कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत है?—इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।

14. सही किस्म का मनोरंजन चुनने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

14 यहोवा ने हमें आज़ादी दी है कि हम किस तरह का मनोरंजन करेंगे। परिवार का मुखिया अपने परिवार के लिए चुन सकता है कि वे क्या मनोरंजन करेंगे। बाइबल में यहोवा ने कुछ सिद्धांत दिए हैं जिनसे हमें उसकी सोच के बारे में पता चलता है। इन सिद्धांतों की मदद से हम मनोरंजन के बारे में बुद्धि-भरे फैसले ले पाते हैं। * अच्छे किस्म का मनोरंजन “परमेश्वर की देन है।” (सभो. 3:12, 13) यह सच है कि अलग-अलग लोगों को अलग-अलग किस्म का मनोरंजन पसंद होता है। (गला. 6:4, 5) लेकिन हम चाहे जो भी मनोरंजन चुनें, हमें खबरदार रहना होगा कि हम इसे सबसे ज़्यादा अहमियत देने न लगे। यीशु ने कहा था, “जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा मन होगा।” (मत्ती 6:21) हम अपने राजा यीशु से प्यार करते हैं। यह प्यार हमें उभारता है कि हम अपनी सोच, बातों और अपने कामों से दिखाएँ कि हम परमेश्वर के राज को सबसे पहली जगह देते हैं।—फिलि. 1:9, 10.

सुख-सुविधा की चाहत से लड़िए

15, 16. (क) सुख-सुविधा की चीज़ों की चाहत कैसे हमारे लिए फंदा बन सकती है? (ख) यीशु ने इस बारे में क्या बुद्धि-भरी सलाह दी?

15 आज कई लोगों पर यह जुनून सवार है कि उनके पास नया-से-नया फोन हो, नए फैशन के कपड़े और दूसरी चीज़ें हों। उनके लिए पैसा और सुख-सुविधा की चीज़ें ही सबकुछ हैं। एक मसीही होने के नाते आपकी ज़िंदगी में क्या चीज़ सबसे ज़्यादा मायने रखती है? खुद से पूछिए, ‘मेरा समय किस चीज़ में निकल जाता है? नयी-नयी गाड़ियों या कपड़ों के बारे में सोचने में या सभाओं की तैयारी करने में? क्या मैं रोज़मर्रा के कामों में इतना डूब जाता हूँ कि प्रार्थना करने और बाइबल पढ़ने के लिए मेरे पास बहुत कम वक्‍त बचता है?’ अगर हम खबरदार न रहें, तो हम यीशु से ज़्यादा सुख-सुविधा की चीज़ों से प्यार करने लग सकते हैं। हमें यीशु के इन शब्दों के बारे में गहराई से सोचना चाहिए, “हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखो।” (लूका 12:15) यीशु ने यह चेतावनी क्यों दी?

16 यीशु ने बताया, “कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता।” फिर उसने कहा, “तुम परमेश्वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।” ऐसा नहीं हो सकता कि हम यहोवा के साथ-साथ सुख-सुविधा की चीज़ों को भी पहली जगह दें। यीशु ने समझाया था, ‘हम एक से नफरत करेंगे और दूसरे से प्यार या एक से जुड़े रहेंगे और दूसरे को तुच्छ समझेंगे।’ (मत्ती 6:24) हम अपरिपूर्ण हैं इसलिए हमें लगातार “शरीर की इच्छाओं” से लड़ना होगा जिनमें सुख-सुविधा की चीज़ों की चाहत भी शामिल है।—इफि. 2:3.

17. (क) कुछ लोग सुख-सुविधा की चीज़ों के बारे में सही नज़रिया क्यों नहीं रख पाते? (ख) हम सुख-सुविधा की चाहत से कैसे लड़ सकते हैं?

17 जिन लोगों का ध्यान सिर्फ अपनी इच्छा पूरी करने में लगा रहता है, वे सुख-सुविधा की चीज़ों के बारे में सही नज़रिया नहीं रख पाते। (1 कुरिंथियों 2:14 पढ़िए।) क्यों नहीं? क्योंकि उनकी सोचने-समझने की शक्‍ति सही तरह से काम नहीं करती और वे सही-गलत के बीच फर्क नहीं कर पाते। (इब्रा. 5:11-14) नतीजा, सुख-सुविधा की चाहत उनके अंदर बढ़ती जाती है और उनका जी नहीं भरता। (सभो. 5:10) लेकिन एक इंसान इस चाहत से लड़ सकता है। कैसे? हर दिन परमेश्वर का वचन पढ़कर। (1 पत. 2:2) यीशु ने यहोवा की बुद्धि-भरी बातों पर मनन किया जिससे वह शैतान की परीक्षाओं का सामना कर पाया। (मत्ती 4:8-10) आज अगर हम भी सुख-सुविधा की चाहत से लड़ना चाहते हैं तो हमें यहोवा की बुद्धि-भरी बातों पर चलना होगा। इस तरह हम साबित करेंगे कि हम सुख-सुविधा की चीज़ों से ज़्यादा यीशु से प्यार करते हैं।

आप किन बातों को पहली जगह देते हैं? (पैराग्राफ 18 देखिए)

18. आपने क्या करने की ठान ली है?

18 जब यीशु ने पतरस से पूछा, “क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?” तो असल में वह पतरस को सिखा रहा था कि उसे यहोवा की सेवा को पहली जगह देनी चाहिए। पतरस के नाम का मतलब है, “पत्थर का टुकड़ा” और वह अपने नाम पर खरा उतरा। उसने पत्थर या चट्टान जैसे मज़बूत गुण दिखाए। (प्रेषि. 4:5-20) आज हम भी चाहते हैं कि यीशु के लिए हमारा प्यार अटल हो। इसलिए हमने ठान लिया है कि हम नौकरी-पेशे, मनोरंजन और सुख-सुविधा की चीज़ों से ज़्यादा यीशु से प्यार करेंगे। तब हम भी पतरस की तरह कह पाएँगे, “प्रभु, तू जानता है कि मुझे तुझसे कितना प्यार है।”

^ पैरा. 14 15 अक्टूबर, 2011 की प्रहरीदुर्ग में लेख, “क्या आपका मनोरंजन सही है?” के पैराग्राफ 6-15 देखिए, जो पेज 9-12 पर दिए गए हैं।