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‘परमेश्वर की शांति समझ से परे है’

‘परमेश्वर की शांति समझ से परे है’

‘परमेश्वर की वह शांति जो समझ से परे है, तुम्हारे दिल की हिफाज़त करेगी।’​—फिलि. 4:7.

गीत: 39, 141

1, 2. फिलिप्पी में पौलुस और सीलास के साथ क्या हुआ? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

आधी रात का समय है। दो मिशनरी, पौलुस और सीलास फिलिप्पी शहर की एक जेल में कैद हैं। उन्हें सबसे अंदर की कोठरी में डाला गया है। चारों तरफ अँधेरा है। उनके पाँव काठ में कसे हुए हैं और वे बिलकुल भी हिल नहीं सकते। कुछ ही समय पहले उन्हें बुरी तरह पीटा गया था और वे काफी दर्द में हैं। (प्रेषि. 16:23, 24) आखिर उनके साथ हुआ क्या था? सुबह के वक्‍त लोगों की एक भीड़ अचानक उन पर टूट पड़ी। वे उन्हें घसीटकर चौक में ले आए जहाँ उनकी बात सुने बगैर उन्हें सज़ा सुनायी गयी। फिर क्या था, उनके कपड़े फाड़ दिए गए, उन्हें बेंत से बुरी तरह मारा गया और जेल में डाल दिया गया। (प्रेषि. 16:16-22) पौलुस एक रोमी नागरिक था और उसे पूरा हक था कि सज़ा देने से पहले उसकी सुनवाई हो। * लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्या ही घोर अन्याय!

2 जेल में पौलुस शायद दिन में हुई घटनाओं के बारे में सोच रहा होगा। वह फिलिप्पी के लोगों के बारे में भी सोच रहा होगा। वहाँ कोई सभा-घर नहीं था, जबकि दूसरे शहरों में जहाँ पौलुस गया था सभा-घर थे। इसलिए फिलिप्पी में रहनेवाले यहूदी, शहर के फाटक के बाहर नदी किनारे उपासना के लिए इकट्ठा होते थे। (प्रेषि. 16:13, 14) एक सभा-घर होने के लिए ज़रूरी था कि शहर में कम-से-कम दस यहूदी आदमी हों। हो सकता है, इसी वजह से फिलिप्पी में सभा-घर नहीं था। यहाँ के लोगों को रोमी नागरिक होने पर बड़ा घमंड था। (प्रेषि. 16:21) शायद इसीलिए उन्होंने सोचा नहीं होगा कि पौलुस और सीलास जैसे यहूदी भी रोमी नागरिक हो सकते हैं। चाहे उन्होंने जो भी सोचा हो लेकिन एक बात तय है। पौलुस और सीलास को बिना किसी जुर्म के जेल में डाल दिया गया था।

3. जब पौलुस को जेल हुई तो उसके मन में क्या सवाल उठे होंगे? लेकिन उसने कैसा नज़रिया बनाए रखा?

3 पौलुस ने यह भी सोचा होगा कि आखिर वह फिलिप्पी कैसे पहुँचा। कुछ महीने पहले वह एजियन सागर के दूसरी तरफ था। उस दौरान पवित्र शक्‍ति उसे कुछ इलाकों में प्रचार करने से बार-बार रोक रही थी। ऐसा लग रहा था मानो पवित्र शक्‍ति उसे किसी और इलाके में जाने के लिए कह रही हो। (प्रेषि. 16:6, 7) किस इलाके में? जब पौलुस त्रोआस में था तो एक दर्शन में उससे कहा गया, ‘इस पार मकिदुनिया आ।’ इससे साफ पता चला कि यहोवा की मरज़ी क्या थी। पौलुस फौरन मकिदुनिया के लिए रवाना हुआ। (प्रेषितों 16:8-10 पढ़िए।) लेकिन वहाँ पहुँचने के कुछ ही समय बाद पौलुस को जेल में डाल दिया गया! यहोवा ने उसके साथ ऐसा क्यों होने दिया? उसे जेल में कितने समय रहना पड़ेगा? अगर पौलुस ने यह सब सोचा भी होगा तो भी उसकी खुशी कम नहीं हुई और उसका विश्वास कमज़ोर नहीं पड़ा। बाइबल बताती है कि “पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और गीत गाकर परमेश्वर का गुणगान कर रहे थे।” (प्रेषि. 16:25) जी हाँ, परमेश्वर की शांति ने उनके दिल और मन को कितना सुकून दिया होगा!

4, 5. (क) हमारे हालात कैसे पौलुस के हालात जैसे हो सकते हैं? (ख) पौलुस के हालात कैसे अचानक बदल गए?

4 आपके हालात भी पौलुस के जैसे हो सकते हैं। शायद आपने परमेश्वर से मदद माँगकर कोई फैसला किया था। आपको लगा था कि आपने पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक काम किया। मगर फिर आपको वैसे नतीजे नहीं मिले जैसे आपने उम्मीद की थी। आपको कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा या बड़े-बड़े बदलाव करने पड़े। (सभो. 9:11) आज जब आप उस बारे में सोचते हैं, तो शायद आपको लगे, “यहोवा ने क्यों ऐसा होने दिया? मैंने तो उसकी मरज़ी के मुताबिक फैसला किया था।” ऐसे में क्या बात धीरज धरने और यहोवा पर पूरा भरोसा रखने में आपकी मदद करेगी? जवाब जानने के लिए आइए देखें कि पौलुस और सीलास के साथ आगे क्या होता है।

5 जब वे गा रहे थे तो एक-एक करके कई अनोखी घटनाएँ घटीं। पहले तो एक बड़ा भूकंप हुआ और जेल के दरवाज़े तुरंत खुल गए। फिर सभी कैदियों की ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। इसके बाद पौलुस ने जेलर को खुदकुशी करने से रोका। जेलर और उसके पूरे घराने ने बपतिस्मा लिया। अगले दिन सुबह नगर अधिकारियों ने पहरेदारों के हाथ यह संदेश भेजा कि पौलुस और सीलास को रिहा कर दो और उनसे कहो कि वे शहर छोड़कर चले जाएँ। लेकिन जब अधिकारियों को पता चला कि वे दोनों रोमी नागरिक हैं तो वे समझ गए कि उनसे कितनी बड़ी भूल हुई है। इसलिए वे खुद पौलुस और सीलास को जेल से बाहर निकालने के लिए आए। मगर शहर छोड़कर जाने से पहले पौलुस और सीलास लुदिया नाम की बहन के घर गए जिसने हाल ही में बपतिस्मा लिया था। उन्होंने फिलिप्पी के भाइयों की भी हिम्मत बँधायी। (प्रेषि. 16:26-40) पौलुस और सीलास के हालात कितनी जल्दी बदल गए!

शांति “जो समझ से परे है”

6. इस लेख में हम किन बातों पर चर्चा करेंगे?

6 इन घटनाओं से हम क्या सीखते हैं? यही कि यहोवा ऐसे काम कर सकता है जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। इसलिए परीक्षाओं का सामना करते वक्‍त हमें बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। यही बात पौलुस ने भी सीखी और यह उसके मन में घर कर गयी। हम यह कैसे जानते हैं? बाद में उसने अपनी चिट्ठी में फिलिप्पी के भाइयों को चिंता न करने और परमेश्वर की शांति के बारे में लिखा। इस लेख में हम फिलिप्पियों 4:6, 7 (पढ़िए।) में दर्ज़ पौलुस के शब्दों पर चर्चा करेंगे। इसके अलावा, हम बाइबल से और भी उदाहरण देखेंगे कि किस तरह यहोवा ने ऐसे काम किए जिनकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। आखिर में हम चर्चा करेंगे कि ‘परमेश्वर की शांति’ से हम कैसे परीक्षाओं के दौरान धीरज धर सकते हैं और यहोवा पर पूरा भरोसा रख सकते हैं।

7. अपनी चिट्ठी के ज़रिए पौलुस फिलिप्पी के भाइयों को क्या सीख दे रहा था और इसमें हमारे लिए क्या सीख है?

7 जब फिलिप्पी के भाइयों ने पौलुस की चिट्ठी पढ़ी, तो उन्हें क्या बात याद आयी होगी? उन्हें ज़रूर वह घटना याद आयी होगी जब पौलुस और सीलास कैद में थे और यहोवा ने उन्हें अनोखे ढंग से छुड़ाया था। किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि यहोवा इस तरह उनकी मदद करेगा। अपनी चिट्ठी के ज़रिए पौलुस इन भाइयों को क्या सीख दे रहा था? यही कि चिंता मत करो। प्रार्थना करो तब तुम्हें ‘परमेश्वर की वह शांति मिलेगी जो समझ से परे है।’ इन शब्दों का क्या मतलब है? कुछ बाइबलों में इन शब्दों का इस तरह अनुवाद किया गया है, “हमारी सारी कल्पनाओं से परे है” या “इंसान की सभी योजनाओं से कहीं बढ़कर है।” तो पौलुस के कहने का मतलब था कि “परमेश्वर की वह शांति” इतनी लाजवाब है कि इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। यह सच है कि कभी-कभी हमें अपनी समस्याओं का हल नहीं पता होता लेकिन यहोवा उनका हल जानता है। वह कुछ ऐसा कर सकता है जिसकी हमने उम्मीद भी नहीं की थी।​—2 पतरस 2:9 पढ़िए।

8, 9. (क) फिलिप्पी में पौलुस के साथ अन्याय होने के बावजूद क्या अच्छा नतीजा निकला? (ख) वहाँ के भाइयों को पौलुस की बातों पर क्यों पूरा भरोसा था?

8 पौलुस की चिट्ठी पढ़कर फिलिप्पी के भाइयों की हिम्मत बँधी होगी और उन्होंने याद किया होगा कि पिछले दस सालों में यहोवा ने उनके लिए क्या-क्या किया। हालाँकि यहोवा ने पौलुस और सीलास पर अन्याय होने दिया लेकिन नतीजा यह हुआ कि ‘खुशखबरी की पैरवी हुई और उसे कानूनी मान्यता’ मिली। (फिलि. 1:7) इसके बाद, नगर अधिकारियों ने फिलिप्पी की नयी मंडली को सताने की जुर्रत नहीं की। पौलुस ने खुद को रोमी नागरिक बताया था, शायद इस वजह से लूका फिलिप्पी में रहकर सेवा कर पाया। पौलुस और सीलास के जाने के बाद लूका वहाँ के नए भाइयों की और भी मदद कर पाया।

9 फिलिप्पी के भाइयों ने जब पौलुस की चिट्ठी पढ़ी तो वे जानते थे कि पौलुस बस यूँ ही कोई बात नहीं कह रहा है बल्कि अपने अनुभव से लिख रहा है। उसने मुश्किल-से-मुश्किल परीक्षाओं का सामना किया था। दरअसल जब पौलुस ने यह चिट्ठी लिखी, उस वक्‍त भी वह रोम में अपने घर में कैद था। लेकिन उन हालात में भी उसने दिखाया कि वह ‘परमेश्वर की शांति’ का अनुभव कर रहा है।​—फिलि. 1:12-14; 4:7, 11, 22.

“किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो”

10, 11. अगर हम किसी समस्या को लेकर बहुत परेशान हैं तो हमें क्या करना चाहिए और यहोवा किस तरह हमारी मदद करेगा?

10 ‘किसी भी बात को लेकर चिंता न करने’ और ‘परमेश्वर की शांति’ पाने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? फिलिप्पी के भाइयों को लिखी चिट्ठी में पौलुस ने चिंता दूर करने का उपाय बताया। वह है, प्रार्थना करना। इसलिए जब हम किसी समस्या को लेकर बहुत परेशान होने लगते हैं तो हमें प्रार्थना करनी चाहिए। (1 पतरस 5:6, 7 पढ़िए।) जब आप यहोवा से प्रार्थना करते हैं तो पूरा यकीन रखिए कि वह आपकी परवाह करता है। यहोवा से मिली हर आशीष के लिए उसका धन्यवाद कीजिए। यह कभी मत भूलिए कि “हम उससे जो माँगते हैं या जितना सोच सकते हैं, वह उससे कहीं बढ़कर कर सकता है।”​—इफि. 3:20.

11 पौलुस और सीलास की तरह हम भी शायद यह देखकर हैरान रह जाएँ कि यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है। हो सकता है, वह कोई शानदार तरीका न अपनाए लेकिन वह जो भी करेगा उससे हमें फायदा ज़रूर होगा। (1 कुरिं. 10:13) इसका यह मतलब नहीं कि हम हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहें और इंतज़ार करें कि यहोवा हमारे हालात सुधारेगा या हमारी समस्याओं का हल निकालेगा। हमें अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम भी करना चाहिए। (रोमि. 12:11) जब हम ऐसा करते हैं तो दिखाते हैं कि हमने सच्चे दिल से प्रार्थना की है और हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी कोशिशों पर आशीष दे। हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा हमें सिर्फ वही नहीं देता जो हम उससे माँगते हैं या उम्मीद करते हैं। कई बार तो वह हमारे लिए कुछ ऐसा करता है जिसकी हमने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें जिनसे हमारा भरोसा बढ़ेगा कि यहोवा अनोखे तरीके से अपने लोगों की मदद करता है।

यहोवा के ऐसे काम जिनकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी

12. (क) जब सनहेरीब हमला करने आया तो राजा हिजकियाह ने क्या किया? (ख) यहोवा ने जिस तरह इस समस्या को दूर किया उससे हम क्या सीखते हैं?

12 बाइबल में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जब यहोवा ने ऐसे काम किए जिनकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। मिसाल के लिए, जब हिजकियाह यहूदा का राजा था तब अश्शूर के राजा सनहेरीब ने यहूदा पर धावा बोला। उसने वहाँ के लगभग सभी शहरों पर कब्ज़ा कर लिया। (2 राजा 18:1-3, 13) फिर वह यरूशलेम पर हमला करने आया। राजा हिजकियाह ने क्या किया? सबसे पहले उसने यहोवा से प्रार्थना की और फिर उसके भविष्यवक्ता यशायाह से सलाह-मशविरा किया। (2 राजा 19:5, 15-20) फिर उसने समझ से काम लेते हुए सनहेरीब को वह जुर्माना दिया जो उसने लगाया था। (2 राजा 18:14, 15) आखिर में उसने अश्शूरियों की घेराबंदी का सामना करने के लिए कुछ तैयारियाँ कीं। (2 इति. 32:2-4) पर अश्शूरियों का खतरा कैसे टला? यहोवा ने एक स्वर्गदूत भेजा जिसने एक ही रात में सनहेरीब के 1,85,000 सैनिकों को मार गिराया। हिजकियाह ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि दुश्मनों का खतरा इस तरह टलेगा!​—2 राजा 19:35.

यूसुफ के साथ जो हुआ उससे हम क्या सीखते हैं?​—उत्प. 41:42 (पैराग्राफ 13 देखिए)

13. (क) यूसुफ के साथ जो हुआ उससे हम क्या सीखते हैं? (ख) सारा के साथ क्या अनोखी घटना घटी?

13 अब आइए याकूब के बेटे यूसुफ के उदाहरण पर गौर करें। जब वह मिस्र की जेल में सज़ा काट रहा था तो उसने कभी सोचा नहीं होगा कि वह उस देश का दूसरा सबसे बड़ा अधिकारी बनेगा। न ही उसने सोचा होगा कि यहोवा उसके ज़रिए उसके परिवार को अकाल से बचाएगा। (उत्प. 40:15; 41:39-43; 50:20) यूसुफ ने जो सोचा था, यहोवा ने उससे कहीं बढ़कर उसके लिए किया। अब ज़रा यूसुफ की परदादी सारा की मिसाल पर ध्यान दीजिए। सारा की उम्र हो चुकी थी इसलिए उसने अपनी दासी के ज़रिए अब्राहम से एक बच्चा माँगा। मगर फिर यहोवा की आशीष से सारा गर्भवती हुई और उसने इसहाक को जन्म दिया। उसने सोचा भी नहीं होगा कि वह कभी माँ बन पाएगी!​—उत्प. 21:1-3, 6, 7.

14. हम यहोवा पर क्या यकीन रख सकते हैं?

14 हम यह उम्मीद नहीं करते कि इस दुनिया में यहोवा चमत्कार करके हमारी सारी समस्याएँ दूर करेगा। न ही हम यहोवा से यह कहते हैं कि वह हमारे लिए कोई अनोखा काम करे। लेकिन उसने बीते समय में लाजवाब तरीकों से अपने वफादार सेवकों की मदद की है और वह बदला नहीं है। (यशायाह 43:10-13 पढ़िए।) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमें उसकी मरज़ी पूरी करने की ताकत देगा। (2 कुरिं. 4:7-9) हिजकियाह, यूसुफ और सारा की मिसाल से हम क्या सीखते हैं? यही कि अगर हम यहोवा के वफादार बने रहें तो वह बड़ी-से-बड़ी मुश्किल में भी हमारी मदद कर सकता है।

अगर हम यहोवा के वफादार बने रहें तो वह बड़ी-से-बड़ी मुश्किल में भी हमारी मदद कर सकता है

15. मुश्किलों का सामना करते वक्‍त हम ‘परमेश्वर की शांति’ कैसे पा सकते हैं? यह शांति पाना कैसे मुमकिन हुआ है?

15 मुश्किलों का सामना करते वक्‍त भी हम ‘परमेश्वर की शांति’ पा सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत बनाए रखें। यह रिश्ता मसीह यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर मुमकिन हुआ है। फिरौती यहोवा के लाजवाब कामों में से एक है। इसकी बदौलत वह हमारे पाप माफ करता है, हम अपना ज़मीर साफ बनाए रख पाते हैं और परमेश्वर के करीब जा पाते हैं।​—यूह. 14:6; याकू. 4:8; 1 पत. 3:21.

शांति जो हमारे दिलो-दिमाग की हिफाज़त करती है

16. ‘परमेश्वर की शांति’ मिलने पर क्या होता है? उदाहरण देकर समझाइए।

16 बाइबल बताती है कि जब हमें ‘परमेश्वर की शांति’ मिलती है, तो यह शांति हमारे दिलो-दिमाग की “हिफाज़त” करती है। (फिलि. 4:7) यहाँ हिफाज़त करने की जो बात की गयी है उससे मूल भाषा में, एक शहर की हिफाज़त करनेवाली सैनिक टुकड़ी की तसवीर मिलती है। फिलिप्पी ऐसा ही एक शहर था। वहाँ के लोग रात को चैन से सोते थे क्योंकि वे जानते थे कि सैनिक शहर की हिफाज़त कर रहे हैं। उसी तरह, जब हमें ‘परमेश्वर की शांति’ मिलती है, तो हम बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करते और हमारे दिल और मन को चैन मिलता है क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा को हमारी परवाह है और वह हमारे साथ है। (1 पत. 5:10) यह एहसास हमें चिंता और निराशा में डूबने से बचाता है।

17. महा-संकट के दौरान क्या बात यहोवा पर भरोसा रखने में हमारी मदद करेगी?

17 बहुत जल्द सभी इंसानों पर महा-संकट आनेवाला है। (मत्ती 24:21, 22) हम ठीक-ठीक नहीं जानते कि हममें से हरेक के साथ क्या होगा। लेकिन हमें उस वक्‍त के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। यह सच है कि हम नहीं जानते कि यहोवा क्या-क्या करेगा, लेकिन हम अपने परमेश्वर को अच्छी तरह जानते हैं। हमें पता है कि बीते समय में उसने अपने वफादार सेवकों के लिए क्या-क्या किया। हम यह भी जानते हैं कि चाहे जो हो जाए यहोवा अपना मकसद ज़रूर पूरा करता है और कभी-कभी इस तरीके से जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। आज भी जब यहोवा हमारी खातिर कुछ करता है, तो हम अनोखे तरीके से “परमेश्वर की वह शांति” अनुभव कर पाते हैं “जो समझ से परे है।”

^ पैरा. 1 ऐसा मालूम होता है कि सीलास भी एक रोमी नागरिक था।​—प्रेषि. 16:37.