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जीवन कहानी

परीक्षाओं में धीरज धरने से आशीषें मिलती हैं

परीक्षाओं में धीरज धरने से आशीषें मिलती हैं

“तुम एक बेरहम पिता हो! तुमने अपनी नन्ही बच्ची को और अपनी पत्नी को, जो माँ बननेवाली है छोड़ दिया। अब कौन उन्हें खिलाएगा, उनकी देखभाल करेगा? मेरी मानो तो यह काम छोड़ दो और वापस उनके पास चले जाओ!” यह कहकर खुफिया पुलिस के एक अफसर ने मुझे डाँट लगायी। मैंने जवाब दिया, “मैंने अपने परिवार को नहीं छोड़ा, आपने मुझे गिरफतार किया है। क्या मैं जान सकता हूँ, मेरा जुर्म क्या है?” अफसर ने गुस्से में कहा, “तुम एक साक्षी हो, यही तुम्हारा सबसे बड़ा जुर्म है।”

यह 1959 की बात थी। उस वक्‍त मैं रूस के इरकुट्‌स शहर की एक जेल में था। आइए मैं बताता हूँ कि क्यों मैं और मेरी पत्नी मारीया ‘नेकी की खातिर दुख उठाने’ के लिए तैयार थे और वफादार रहने से हमें क्या आशीषें मिलीं।​—1 पत. 3:13, 14.

मेरा जन्म 1933 में यूक्रेन में ज़ोलोटनिकी नाम के एक गाँव में हुआ था। सन्‌ 1937 में मेरे मौसा और मौसी हमसे मिलने आए। वे फ्रांस में रहते थे और यहोवा के साक्षी थे। उन्होंने हमें सरकार और छुटकारा नाम की दो किताबें दीं जिसे वॉच टावर सोसाइटी ने प्रकाशित किया था। जब पापा ने ये किताबें पढ़ीं तो उन्हें फिर से परमेश्वर पर विश्वास होने लगा। दुख की बात है कि 1939 में वे बहुत बीमार हो गए और चल बसे। लेकिन मरने से पहले उन्होंने मम्मी से कहा, “यही सच्चाई है! इसे बच्चों को ज़रूर सिखाना।”

प्रचार का नया इलाका​—साइबेरिया

अप्रैल 1951 से सरकार साक्षियों को पश्‍चिम सोवियत संघ से खदेड़कर साइबेरिया भेजने लगी। मुझे, मम्मी और मेरे छोटे भाई ग्रिगोरी को पश्‍चिम यूक्रेन से निकाल दिया गया। ट्रेन से 6,000 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के बाद हम साइबेरिया के टुलून शहर पहुँचे। दो हफ्ते बाद मेरा बड़ा भाई बोगडान पास के अंगर्स्क शहर में मज़दूरों के एक शिविर में आया। उसे उस शिविर में 25 साल कड़ी मज़दूरी करने की सज़ा सुनायी गयी थी।

मैं, मम्मी और ग्रिगोरी टुलून की आस-पास की बस्तियों में प्रचार करते थे। हम खुलकर प्रचार नहीं कर सकते थे इसलिए हम गवाही देने के नए-नए तरीके ढूँढ़ निकालते थे। मिसाल के लिए, हम लोगों से पूछते थे, “क्या आप किसी को जानते हैं जो अपनी गाय बेचना चाहता है?” जब हमें कोई ऐसा मिलता था तो हम उससे गाय की बेमिसाल रचना के बारे में बात करने लगते थे। फिर धीरे-धीरे हम उसका ध्यान सृष्टिकर्ता की तरफ खींचते थे। उस दौरान एक अखबार में आया कि यहोवा के साक्षी गायों के बारे में पूछताछ करते हैं लेकिन असल में वे भेड़ों को ढूँढ़ रहे हैं! यह बात कितनी सच थी! इस तरीके से हमें कई भेड़ समान लोग मिले। उन नम्र और नेकदिल लोगों के साथ शास्त्र से अध्ययन करने में हमें बहुत खुशी मिली। आज टुलून में एक मंडली है जिसमें 100 से भी ज़्यादा प्रचारक हैं।

मारीया के विश्वास की परख हुई

मेरी पत्नी मारीया ने यूक्रेन में सच्चाई सीखी थी। उस वक्‍त दूसरा विश्व युद्ध ज़ोरों पर था। जब वह 18 साल की थी तो खुफिया पुलिस का एक अफसर उसे परेशान करने लगा और उस पर ज़ोर डालने लगा कि वह उसके साथ संबंध रखे। लेकिन मारीया ने साफ इनकार कर दिया। एक दिन जब वह घर आयी तो देखा कि वह आदमी उसके बिस्तर पर लेटा हुआ था। मारीया तुरंत वहाँ से भाग गयी। उस अफसर को बहुत गुस्सा आया। उसने धमकी दी कि मारीया को साक्षी होने की कीमत चुकानी पड़ेगी और ऐसा ही हुआ। सन्‌ 1952 में मारीया को दस साल के लिए जेल हुई। मारीया को लगा कि उसके हालात यूसुफ के जैसे हैं जिसे अपनी वफादारी के लिए जेल में डाला गया था। (उत्प. 39:12, 20) अदालत से जेल जाते वक्‍त ड्राइवर ने मारीया से कहा, “डरो नहीं। बहुत-से लोग जेल जाते हैं लेकिन अपना आत्म-सम्मान बनाए रख पाते हैं।” उन शब्दों से मारीया को कितनी हिम्मत मिली!

सन्‌ 1952 से 1956 तक मारीया को मज़दूरों के एक शिविर भेजा गया। यह शिविर रूस के गोरकी शहर में था जो अब नीज़नी नोवगरेद नाम से जाना जाता है। मारीया को कड़ाके की ठंड में भी पेड़ों को उखाड़ने का मुश्किल काम दिया गया था। इसका उसकी सेहत पर असर पड़ा लेकिन 1956 में उसे रिहा किया गया और वह टुलून आयी।

अपनी पत्नी और बच्चों से दूर किया गया

जब एक भाई ने मुझसे कहा कि एक बहन यहाँ टुलून आ रही है, तो मैं अपनी साइकिल पर बस अड्डे तक गया ताकि उस बहन का सामान उठाने में उसकी मदद कर सकूँ। मुझे पहली मुलाकात में ही मारीया बहुत पसंद आयी। उसका दिल जीतने के लिए मुझे काफी कोशिश करनी पड़ी लेकिन आखिरकार वह मान गयी। सन्‌ 1957 में हमारी शादी हो गयी। एक साल बाद हमारी बेटी इरीना पैदा हुई। मगर हमारी खुशी ज़्यादा दिन तक नहीं रही। सन्‌ 1959 में मुझे बाइबल के प्रकाशनों को छापने के लिए गिरफ्तार किया गया। मुझे छ: महीने के लिए एक काल-कोठरी में अकेले रखा गया। उस दौरान मैंने अपनी मन की शांति कैसे बनाए रखी? मैंने बार-बार यहोवा से प्रार्थना की, राज-गीत गाए और कल्पना की कि जेल से रिहा होने पर मैं किस तरह लोगों को प्रचार करूँगा।

सन्‌ 1962 में, मज़दूरों के एक शिविर में

जेल में एक बार पूछताछ के दौरान अफसर मुझ पर झुँझला उठा। वह कहने लगा, “देख लेना, हम तुम लोगों को इतनी आसानी से खत्म कर देंगे जैसे कोई चूहों को कुचल देता है।” मैंने जवाब दिया, “यीशु ने कहा था कि राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा इसलिए आप क्या, कोई भी इस काम को रोक नहीं सकता।” फिर उस अफसर ने अपना तरीका बदला। जैसे मैंने शुरू में बताया, उसने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की कि मैं अपने विश्वास से समझौता कर लूँ। जब अफसर ने देखा कि न तो उसके धमकाने से, न ही उसके फुसलाने से मैं अपना मन बदलनेवाला था, तो मुझे सज़ा सुनायी गयी। मुझे सारांस्क शहर के पास मज़दूरों के एक शिविर में भेजा गया जहाँ मुझे सात साल तक कड़ी मज़दूरी करनी थी। जब मुझे शिविर ले जाया जा रहा था तब मुझे पता चला कि मेरी दूसरी बेटी ओल्गा का जन्म हुआ। हालाँकि मैं अपनी पत्नी और बेटियों से बहुत दूर था, मगर मुझे इस बात से सुकून मिला कि मैं और मारीया यहोवा के वफादार बने रहे।

सन्‌ 1965 में, मारीया और हमारी बेटियाँ, ओल्गा और इरीना

साल में एक बार मारीया मुझसे मिलने आती थी। यह सफर तय करना उसके लिए आसान नहीं था क्योंकि टुलून से सारांस्क तक ट्रेन से आने-जाने में 12 दिन लगते थे। वह हर साल मेरे लिए एक जोड़ा जूता लाती थी। जूते की एड़ी में वह प्रहरीदुर्ग की नयी कॉपियाँ छिपाकर लाती थी। एक बार मारीया हमारी दो बेटियों को साथ लेकर आयी। वह साल मेरे लिए बहुत खास था! उन्हें देखकर और उनके साथ वक्‍त बिताकर मैं खुशी से फूला नहीं समाया।

नयी जगह और नयी मुश्किलें

सन्‌ 1966 में मुझे मज़दूरों के शिविर से रिहा किया गया। मैं अपने परिवार के साथ आरमावीर नाम के शहर में जाकर बस गया जो काला सागर के पास था। वहाँ हमारे बेटे यारास्लाव और पावेल पैदा हुए।

आरमावीर में भी खुफिया पुलिस ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा। वे हमारे घर पर छापा मारते थे और बाइबल प्रकाशनों की तलाश में घर का कोना-कोना छान मारते थे, गाय के चारे में भी ढूँढ़-ढाँढ़ करते थे। एक बार तलाशी लेते वक्‍त पुलिसवालों का गरमी से बुरा हाल हो रहा था और उनके कोट-पैंट पर धूल चढ़ गयी थी। मारीया को उन पर तरस आया क्योंकि वे तो सिर्फ अपने बड़े अफसर का हुक्म मान रहे थे। उसने उन्हें पीने के लिए जूस दिया और उनके लिए कपड़े का एक ब्रश, छोटे बरतन में पानी और तौलिया ले आयी ताकि वे खुद को साफ कर सकें। बाद में जब उनका बड़ा अफसर आया तो उन्होंने उसे बताया कि हमने किस तरह उनके साथ अच्छा बरताव किया है। तलाशी खत्म होने पर बड़े अफसर ने मुस्कुराकर हमसे विदा ली। हमें यह देखकर खुशी हुई कि “भलाई से बुराई को जीतते” रहने के कितने अच्छे नतीजे निकलते हैं।​—रोमि. 12:21.

इन तलाशियों के बावजूद हमने आरमावीर में प्रचार करना नहीं छोड़ा। यही नहीं, हमने पास के कुरगानिंस्क कसबे में प्रचारकों के एक छोटे समूह की हिम्मत भी बँधायी। मुझे बहुत खुशी है कि आज आरमावीर में छ: मंडलियाँ हैं और कुरगानिंस्क में चार।

हमारी ज़िंदगी में ऐसे मुकाम भी आए जब हम यहोवा की सेवा में कुछ वक्‍त के लिए ढीले पड़ गए। लेकिन हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने वफादार भाइयों के ज़रिए हमें सुधारा और हमें मज़बूत किया। (भज. 130:3) विश्वास की एक और बड़ी परीक्षा तब हुई जब हमें झूठे भाइयों के साथ मंडली में सेवा करना था। उस वक्‍त हमें पता नहीं था कि ये भाई असल में खुफिया पुलिस से थे। उन्हें देखकर लगता था कि उनमें बहुत जोश है और वे प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। उनमें से कुछ लोगों को तो संगठन में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी मिली थीं। लेकिन आगे चलकर उनकी असलियत हमारे सामने आयी।

सन्‌ 1978 में मारीया फिर से गर्भवती हुई। उस वक्‍त वह 45 साल की थी। उसे कई सालों से दिल की बीमारी थी। डॉक्टरों का कहना था कि मारीया की जान को खतरा है, इसलिए उसे गर्भपात करा लेना चाहिए। मारीया ने साफ इनकार कर दिया। फिर भी कुछ डॉक्टरों ने अस्पताल में मारीया के पीछे-पीछे जाकर उसे इंजेक्शन देने की कोशिश की जिससे कि उसका बच्चा गिर जाए। अपने बच्चे की जान बचाने के लिए मारीया अस्पताल से भाग गयी।

उसी दौरान खुफिया पुलिस ने हमें शहर छोड़ने के लिए कहा। हम एक गाँव में जाकर बस गए जो एस्टोनिया में टाल्लीन शहर के पास था। उस वक्‍त एस्टोनिया सोवियत संघ का हिस्सा था। टाल्लीन में मारीया ने एक लड़के को जन्म दिया। डॉक्टरों ने जो कहा था उसका बिलकुल उलटा हुआ, माँ-बेटे दोनों सही-सलामत थे। हमने अपने बेटे का नाम विटाली रखा।

कुछ समय बाद, हम एस्टोनिया से नीज़लोबनाया नाम की बस्ती में रहने लगे जो रूस के दक्षिण में थी। आस-पास के कसबों में देश-भर से लोग आते थे। हमने सूझबूझ से वहाँ प्रचार किया। लोग वहाँ अच्छी सेहत पाने के लिए आते थे लेकिन हम उन्हें एक ऐसे वक्‍त के बार में बताते थे जब न सिर्फ उन्हें अच्छी सेहत बल्कि हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। नतीजा, कुछ लोगों ने हमारे संदेश पर ध्यान दिया।

बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाया

हमने पूरी कोशिश की कि हमारे बच्चे यहोवा से प्यार करें और उनके दिलों में उसकी सेवा करने की इच्छा हो। हम ऐसे भाइयों को घर बुलाते थे जिनकी संगति का हमारे बच्चों पर अच्छा असर होता। मेरा भाई ग्रिगोरी, जिसने 1970 से 1995 तक सफरी निगरान के नाते सेवा की, अकसर हमारे घर आता था। वह हमेशा खुश रहता था और सबको हँसाता था। हमारे परिवार को उसका आना बहुत अच्छा लगता था। जब भी भाई-बहन हमारे घर आते थे तो हम बाइबल पर आधारित कोई खेल खेलते थे। इस तरह हमारे बच्चों को बाइबल में दी घटनाएँ बहुत पसंद आने लगीं।

मेरे बेटे और उनकी पत्नियाँ

पीछे बाएँ से दाएँ: यारास्लाव, पावेल, विटाली

आगे: आलयोना, राया, स्वेटलाना

सन्‌ 1987 में मेरा बेटा यारास्लाव लातविया के रीगा शहर जाकर बस गया। वहाँ वह खुलकर प्रचार कर सकता था। लेकिन जब उसने सेना में भरती होने से इनकार किया तो उसे डेढ़ साल की सज़ा हुई और उसे नौ अलग-अलग जेलों में रखा गया। उस दौरान यारास्लाव को मेरे अनुभव याद आए जब मैं जेल में था और इससे वह अपनी परीक्षा में धीरज धर सका। जेल से रिहा होने के कुछ समय बाद वह पायनियर सेवा करने लगा। सन्‌ 1990 में जब हमारा दूसरा बेटा पावेल 19 साल का था, तो वह साखालीन द्वीप में पायनियर सेवा करना चाहता था। यह द्वीप जापान के उत्तर में था। पहले तो हम उसे जाने नहीं देना चाहते थे। वह इसलिए कि वह द्वीप यहाँ से 9,000 किलोमीटर दूर था और वहाँ सिर्फ 20 प्रचारक थे। लेकिन फिर हमने उसे जाने दिया। यह बहुत अच्छा फैसला साबित हुआ। उस द्वीप में कई लोगों ने राज के संदेश को कबूल किया। कुछ ही सालों में वहाँ आठ मंडलियाँ बन गयीं। पावेल ने साखालीन में 1995 तक सेवा की। घर पर सिर्फ हमारा सबसे छोटा बेटा विटाली हमारे साथ था। बचपन से ही उसे बाइबल पढ़ने का बहुत शौक था। उसने 14 साल की उम्र में पायनियर सेवा शुरू की और मैंने उसके साथ दो साल पायनियर सेवा की। वह कितना अच्छा वक्‍त था! जब विटाली 19 साल का हुआ तो वह खास पायनियर सेवा करने के लिए दूसरी जगह गया।

मुझे याद है, 1952 में खुफिया पुलिस के एक अफसर ने मारीया से कहा था, “अपना विश्वास छोड़ दो नहीं तो तुम दस साल के लिए अंदर जाओगी। जब तक तुम बाहर आओगी तब तक तुम बूढ़ी और बिलकुल अकेली हो जाओगी।” उसकी एक भी बात सच नहीं हुई! हम कभी अकेले नहीं थे। हमने हर पल अपने वफादार परमेश्वर यहोवा और अपने बच्चों का प्यार महसूस किया। हमने उन लोगों का प्यार भी महसूस किया जिन्हें सच्चाई सीखने में हमने मदद दी थी। मुझे और मारीया को इस बात की भी खुशी थी कि हम वे सारी जगह जा सकें जहाँ हमारे बच्चों ने सेवा की थी। हम साफ देख सकते थे कि जिन लोगों को हमारे बच्चों ने यहोवा के बारे में सिखाया था, उनके दिल में सच्चाई के लिए कितनी कदर थी!

यहोवा की भलाई के लिए उसका एहसानमंद हूँ

सन्‌ 1991 में यहोवा के साक्षियों के काम को कानूनी मान्यता मिली। इस फैसले से भाई-बहनों के अंदर प्रचार काम के लिए और भी जोश बढ़ गया। हमारी मंडली ने एक बस भी खरीदी ताकि हम हर शनिवार-रविवार के दिन आस-पास के कसबों और गाँवों में जाकर प्रचार कर सकें।

सन्‌ 2011 में, अपनी पत्नी के साथ

मैं बहुत खुश हूँ कि मेरे बेटे यारास्लाव और पावेल अपनी-अपनी पत्नी, आलयोना और राया के साथ बेथेल में सेवा कर रहे हैं। विटाली अपनी पत्नी, स्वेटलाना के साथ सर्किट काम में है। हमारी सबसे बड़ी बेटी इरीना अपने परिवार के साथ जर्मनी में रहती है। उसका पति व्लाडीमिर और उनके तीनों बेटे प्राचीन के नाते सेवा कर रहे हैं। मेरी दूसरी बेटी ओल्गा एस्टोनिया में रहती है और मेरी उससे फोन पर अकसर बातचीत होती है। दुख की बात है कि मेरी प्यारी पत्नी मारीया 2014 में चल बसी। मुझे उस वक्‍त का बेसब्री से इंतज़ार है जब मैं उससे दोबारा नयी दुनिया में मिल पाऊँगा! आज मैं बेलगरेद शहर में रहता हूँ और यहाँ के भाई मेरी अच्छी देखभाल करते हैं।

यहोवा की सेवा करते हुए मुझे कई साल हो गए हैं। इस दौरान मैंने सीखा है कि वफादार बने रहना आसान नहीं। हमें बहुत-से त्याग करने पड़ते हैं लेकिन बदले में यहोवा हमें जो शांति और सुकून देता है वह एक बेशकीमती खज़ाना है। मुझे और मारीया को अपनी वफादारी के लिए उम्मीदों से बढ़कर आशीषें मिली हैं। सन्‌ 1991 में सोवियत संघ तितर-बितर हो गया। उससे पहले वहाँ करीब 40,000 प्रचारक थे। लेकिन आज उन देशों में 4,00,000 से भी ज़्यादा प्रचारक हैं! आज मैं 83 साल का हूँ और अब भी एक प्राचीन के नाते सेवा कर रहा हूँ। यहोवा ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। इस वजह से मुझे परीक्षाओं में धीरज धरने की हिम्मत मिली है। वाकई, यहोवा ने मुझे ढेरों आशीषें दी हैं।​—भज. 13:5, 6.