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नयी शख्सियत पहन लीजिए और इसे पहने रखिए

नयी शख्सियत पहन लीजिए और इसे पहने रखिए

“नयी शख्सियत पहन लो।”​—कुलु. 3:10.

गीत: 43, 27

1, 2. (क) हम कैसे जानते हैं कि नयी शख्सियत को पहनना मुमकिन है? (ख) कुलुस्सियों 3:10-14 में नयी शख्सियत के किन गुणों के बारे में बताया गया है?

“नयी शख्सियत,” ये शब्द पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद बाइबल में दो बार आते हैं। (इफि. 4:24; कुलु. 3:10) यह ऐसी शख्सियत है “जो परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी है।” क्या नयी शख्सियत को पहनना मुमकिन है? बिलकुल है क्योंकि यहोवा ने हम इंसानों को अपनी छवि में बनाया है और हम उसके जैसे बढ़िया गुण दिखा सकते हैं।​—उत्प. 1:26, 27; इफि. 5:1.

2 लेकिन यह भी सच है कि कभी-कभी हमारे अंदर गलत इच्छाएँ पैदा हो सकती हैं। वह इसलिए कि हम जन्म से अपरिपूर्ण हैं और आस-पास के माहौल का भी हम पर गहरा असर होता है। मगर यहोवा हम पर दया करता है और हमारी मदद करता है ताकि हम ऐसे इंसान बन सकें जैसे वह चाहता है। हम यह कैसे कर सकते हैं? इसके लिए आइए हम नयी शख्सियत के कई गुणों पर चर्चा करें। (कुलुस्सियों 3:10-14 पढ़िए।) हम यह भी देखेंगे कि हम प्रचार में उन गुणों को कैसे दिखा सकते हैं।

हम सब एक हैं

3. नयी शख्सियत की एक पहचान क्या है?

3 पौलुस ने समझाया कि नयी शख्सियत की एक पहचान है, भेदभाव न करना। उसने लिखा, “न तो कोई यूनानी है न यहूदी, न खतना पाया हुआ न खतनारहित, न परदेसी न स्कूती, न गुलाम न ही आज़ाद।” * मंडली में किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि वह अपनी जाति, राष्ट्र या समाज में उसका जो ओहदा है, उस वजह से वह दूसरों से बेहतर है। क्यों? क्योंकि मसीह के सच्चे चेले होने के नाते हम सब एक हैं।​—कुलु. 3:11; यूह. 17:20, 21.

4. (क) यहोवा के सेवकों को सबके साथ किस तरह पेश आना चाहिए? (ख) कुछ देशों में मसीहियों के लिए एकता बनाए रखना क्यों मुश्किल हो सकता है?

4 जब हम नयी शख्सियत पहन लेते हैं तो हम सबके साथ आदर से पेश आते हैं, फिर चाहे वे किसी भी जाति या तबके से क्यों न हों। (रोमि. 2:11) लेकिन दुनिया के कुछ देशों में ऐसा करना मुश्किल हो सकता है। मिसाल के लिए, सालों पहले दक्षिण अफ्रीका में सरकार ने अलग-अलग जाति के लोगों को रहने के लिए अलग इलाके दिए थे ताकि वे एक-दूसरे से मेल-जोल न रखें। उस देश के ज़्यादातर साक्षी आज भी उन्हीं इलाकों में रहते हैं। शासी निकाय चाहता था कि वहाँ के भाई-बहन “अपने दिलों को बड़ा” करें। इसलिए शासी निकाय ने अक्टूबर 2013 में एक खास इंतज़ाम को शुरू करने की इजाज़त दी ताकि अलग-अलग जाति के भाई-बहन एक-दूसरे को अच्छी तरह जान सकें।​—2 कुरिं. 6:13.

5, 6. (क) एक देश में क्या इंतज़ाम किया गया ताकि परमेश्वर के लोग एकता में रहें? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) इस इंतज़ाम से क्या नतीजे निकले हैं?

5 यह इंतज़ाम क्या था? अलग-अलग भाषा और जाति की दो मंडलियों को कुछ हफ्तों के लिए शनिवार-रविवार के दिन साथ वक्‍त बिताना था। उन्हें साथ मिलकर प्रचार में और सभाओं में जाना था और एक-दूसरे को अपने घर बुलाकर मेहमान-नवाज़ी करनी थी। सैकड़ों मंडलियों ने इस इंतज़ाम का फायदा उठाया और शाखा दफ्तर को इस बारे में कई अच्छी रिपोर्ट मिली। यह सब देखकर कुछ गैर-साक्षियों को भी बहुत अच्छा लगा। मिसाल के लिए, एक धर्मगुरु ने कहा, “मैं एक साक्षी नहीं हूँ लेकिन मैं यह ज़रूर कहना चाहूँगा कि आपका प्रचार काम बहुत संगठित है और अलग-अलग जाति से होने के बावजूद आपमें कमाल की एकता है।” भाई-बहनों ने इस इंतज़ाम के बारे में कैसा महसूस किया?

6 खोसा भाषा बोलनेवाली एक बहन नोमा घबरा रही थी कि वह कैसे अँग्रेज़ी मंडली के गोरे भाई-बहनों को अपने छोटे-से घर में बुलाएगी। लेकिन जब उसने उनके साथ प्रचार किया और उनके घर गयी, तो उसकी घबराहट दूर हो गयी। उसने कहा, “वे हमारे जैसे ही आम लोग हैं!” इसके बाद जब अँग्रेज़ी मंडली, खोसा भाषा बोलनेवाली मंडली के साथ प्रचार करने आयी, तो नोमा ने कुछ भाई-बहनों को खाने पर बुलाया। उनमें से एक गोरा प्राचीन खुशी-खुशी प्लास्टिक की पेटी पर बैठ गया। यह बात नोमा के दिल को छू गयी! यह इंतज़ाम आज भी जारी है। इसकी बदौलत कई भाई-बहनों को नए दोस्त मिले हैं और वे अब भी अलग-अलग भाई-बहनों से मेल-जोल बढ़ा रहे हैं।

करुणा और कृपा का पहनावा पहन लो

7. हमें क्यों करुणा करते रहना चाहिए?

7 जब तक शैतान की दुनिया मिट नहीं जाती तब तक यहोवा के लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। जैसे, बेरोज़गारी, गंभीर बीमारी, ज़ुल्म और कुदरती आफतों का। यही नहीं, उन्हें अपराध की वजह से अपनी संपत्ति भी खोनी पड़ सकती है या उन पर दूसरी मुश्किलें आ सकती हैं। ऐसे नाज़ुक वक्‍त में एक-दूसरे की मदद करने के लिए हममें सच्ची करुणा होनी चाहिए। कोमल करुणा हमें उभारेगी कि हम दूसरों के साथ कृपा से पेश आएँ। (इफि. 4:32) ये नयी शख्सियत के गुण हैं। जब हम ये गुण दिखाते हैं तो हम यहोवा की मिसाल पर चलते हैं और दूसरों को दिलासा दे पाते हैं।​—2 कुरिं. 1:3, 4.

8. उदाहरण देकर बताइए कि मंडली में करुणा और कृपा करने से क्या अच्छे नतीजे निकलते हैं।

8 हम मंडली में उन लोगों पर कृपा कैसे कर सकते हैं जो दूसरे देश से आकर बस गए हैं या जिनके पास वे सारी सुविधाएँ नहीं जो हमारे पास हैं? हमें इन लोगों का स्वागत करना चाहिए, उनसे दोस्ती करनी चाहिए और उन्हें महसूस होना चाहिए कि मंडली में भाई-बहनों को उनकी परवाह है। (1 कुरिं. 12:22, 25) डैनीकार्ल की मिसाल लीजिए जो फिलीपींस से जापान आकर बस गया। परदेसी होने की वजह से काम की जगह पर उसके साथ बुरा सलूक किया जाता था। फिर एक दिन वह यहोवा के साक्षियों की एक सभा में गया। वह कहता है, “वहाँ लगभग सभी लोग जापानी थे फिर भी उन्होंने मेरा इस तरह स्वागत किया मानो हमारी पुरानी जान-पहचान हो।” भाई-बहनों की कृपा देखकर डैनीकार्ल यहोवा के बारे में सीखने लगा और उसके करीब आने लगा। आगे चलकर उसने बपतिस्मा लिया और आज वह एक प्राचीन के नाते सेवा कर रहा है। उसके साथी प्राचीन बहुत खुश हैं कि वह और उसकी पत्नी जैनिफर उनकी मंडली में हैं। वे कहते हैं, “ये दोनों पायनियर के नाते एक सादगी-भरी ज़िंदगी जीते हैं और राज को पहली जगह देने में हमारे लिए एक अच्छी मिसाल हैं।”​—लूका 12:31.

9, 10. प्रचार में करुणा करने से क्या आशीषें मिलती हैं? इसकी कुछ मिसाल दीजिए।

9 “सबके साथ भलाई” करने का एक बेहतरीन तरीका है, राज की खुशखबरी सुनाना। (गला. 6:10) बहुत-से साक्षी, परदेसियों के लिए करुणा महसूस करते हैं और वे उनकी भाषा सीखने की कोशिश करते हैं। (1 कुरिं. 9:23) इसके उन्हें अच्छे नतीजे मिले हैं। ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली एक पायनियर बहन टिफनी की मिसाल लीजिए। ब्रिसबेन शहर में स्वाहिली भाषा बोलनेवाली एक मंडली है। टिफनी ने उनकी मदद करने के लिए स्वाहिली सीखी। उसके लिए यह आसान नहीं था, मगर इससे उसकी ज़िंदगी खुशियों से भर गयी। वह कहती है, “अगर आप अपनी सेवा को और मज़ेदार बनाना चाहते हैं, तो दूसरी भाषा बोलनेवाली मंडली में सेवा करके देखिए। आपको ऐसा लगेगा जैसे आप कहीं विदेश में सेवा कर रहे हैं। यही नहीं, आप अलग-अलग देश के भाई-बहनों के करीब आ पाएँगे और भाइयों के बीच जो कमाल की एकता है उसे खुद अनुभव कर पाएँगे।”

क्या बात मसीहियों को उभारती है कि वे दूसरे देश से आए लोगों की मदद करें? (पैराग्राफ 10 देखिए)

10 जापान में रहनेवाले एक परिवार ने कुछ ऐसा ही किया। उनकी बेटी साकीको कहती है, “प्रचार में हमें अकसर ब्राज़ील से आए लोग मिलते थे। जब हम उनकी अपनी भाषा पॉर्चुगीस में उन्हें प्रकाशितवाक्य 21:3 और 4 या फिर भजन 37:10, 11 और 29 दिखाते थे तो वे बड़े ध्यान से सुनते थे और कभी-कभी तो रोने लगते थे।” इस परिवार ने उन लोगों के लिए करुणा महसूस की। वे उन्हें सच्चाई सिखाना चाहते थे इसलिए पूरे परिवार ने पॉर्चुगीस सीखी। उनकी कोशिश से आगे चलकर एक पॉर्चुगीस मंडली शुरू हुई। कई सालों के दौरान उन्होंने यहोवा के सेवक बनने में कई लोगों की मदद की। साकीको कहती है, “पॉर्चुगीस सीखने में हमें बहुत मेहनत करनी पड़ी लेकिन हमने जो भी मेहनत की उससे कहीं बढ़कर हमें आशीषें मिलीं। सच, हम यहोवा के बहुत शुक्रगुज़ार हैं।”​—प्रेषितों 10:34, 35 पढ़िए।

नम्रता का पहनावा पहन लो

11, 12. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि नयी शख्सियत पहनने का हमारा इरादा सही हो? (ख) क्या बात नम्र रहने में हमारी मदद कर सकती है?

11 नयी शख्सियत पहनने का हमारा इरादा होना चाहिए, यहोवा का आदर करना, न कि लोगों से तारीफ पाना। याद रखिए कि कैसे एक परिपूर्ण स्वर्गदूत में घमंड आ गया और वह पाप कर बैठा। (यहेजकेल 28:17 से तुलना कीजिए।) हम इंसान अपरिपूर्ण हैं तो हमारे लिए घमंड से दूर रहना और भी मुश्किल है। इसके बावजूद, हम नम्रता का पहनावा पहन सकते हैं। हम यह कैसे कर सकते हैं?

12 हमें हर दिन परमेश्वर का वचन पढ़ना चाहिए और उस पर मनन करना चाहिए। (व्यव. 17:18-20) हमें खासकर यीशु की शिक्षाओं पर और उसने नम्रता की जो बेहतरीन मिसाल रखी है उस पर मनन करना चाहिए। (मत्ती 20:28) यीशु इतना नम्र था कि उसने अपने प्रेषितों के पैर धोए। (यूह. 13:12-17) बाइबल पढ़ने और मनन करने के अलावा, हमें प्रार्थना में यहोवा से उसकी पवित्र शक्‍ति माँगनी चाहिए। अगर हमारे अंदर ऐसी भावना उठे कि हम दूसरों से बेहतर हैं, तो पवित्र शक्‍ति हमें उस भावना से लड़ने की ताकत दे सकती है।​—गला. 6:3, 4; फिलि. 2:3.

13. नम्र रहने से क्या आशीषें मिलती हैं?

13 नीतिवचन 22:4 पढ़िए। यहोवा चाहता है कि हम नम्र रहें। नम्र रहने से कई आशीषें मिलती हैं। मंडली में शांति और एकता बनी रहती है। साथ ही, यहोवा हम पर महा-कृपा करता है। प्रेषित पतरस ने कहा, “तुम सब एक-दूसरे के साथ नम्रता से पेश आओ क्योंकि परमेश्वर घमंडियों का विरोध करता है, मगर नम्र लोगों पर महा-कृपा करता है।”​—1 पत. 5:5.

कोमलता और सब्र का पहनावा पहन लो

14. कोमलता और सब्र का गुण दिखाने में कौन सबसे अच्छी मिसाल है?

14 आज दुनिया में अगर एक इंसान कोमलता और सब्र से पेश आता है, तो लोग उसे कमज़ोर समझते हैं। लेकिन यह सोच बिलकुल गलत है। कोमलता और सब्र का गुण यहोवा की तरफ से हैं जो पूरे जहान की सबसे शक्‍तिशाली हस्ती है। उसने ये गुण दिखाने में सबसे अच्छी मिसाल रखी है। (2 पत. 3:9) सोचिए जब अब्राहम और लूत ने उससे सवाल किए तो उसने सब्र रखा और अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए उनके सवालों के जवाब दिए। (उत्प. 18:22-33; 19:18-21) यह भी सोचिए कि इसराएल राष्ट्र ने बार-बार उसकी आज्ञा तोड़ी, फिर भी वह करीब 1,500 साल तक उनके साथ सब्र से पेश आया।​—यहे. 33:11.

15. यीशु ने कोमलता से पेश आने और सब्र रखने में कैसी मिसाल रखी?

15 यीशु “कोमल स्वभाव” का था। (मत्ती 11:29) वह अपने चेलों की कमज़ोरियाँ देखते हुए भी उनके साथ सब्र से पेश आया। धरती पर अपनी सेवा के दौरान, कई बार बेवजह उसकी निंदा की गयी और उस पर झूठे इलज़ाम लगाए गए। लेकिन वह आखिरी साँस तक कोमलता से पेश आया और उसने सब्र रखा। जब यीशु यातना के काठ पर बहुत दर्द में था, तब जिन लोगों ने उसे काठ पर चढ़ाया था, उनके बारे में उसने अपने पिता से कहा, “इन्हें माफ कर दे क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।” (लूका 23:34) ज़रा सोचिए इतने तनाव और दर्द में भी यीशु ने कोमलता और सब्र का गुण दिखाया।​—1 पतरस 2:21-23 पढ़िए।

16. हम कोमलता और सब्र का गुण कैसे दिखा सकते हैं?

16 पौलुस ने एक तरीका बताया कि हम कैसे कोमलता और सब्र का गुण दिखा सकते हैं। उसने लिखा, “अगर किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है, तो भी एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते रहो। जैसे यहोवा ने तुम्हें दिल खोलकर माफ किया है, तुम भी वैसा ही करो।” (कुलु. 3:13) जी हाँ, हम दूसरों को तभी माफ कर पाएँगे जब हममें कोमलता और सब्र का गुण होगा। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम मंडली में एकता को बढ़ावा देते हैं और हर हाल में इसे बनाए रखते हैं।

17. कोमलता और सब्र का गुण होना कितना ज़रूरी है?

17 यहोवा चाहता है कि हम दूसरों के साथ कोमलता और सब्र से पेश आएँ। अगर हम ये गुण दिखाएँगे तभी हम नयी दुनिया में जीने की आस लगा सकते हैं। (मत्ती 5:5; याकू. 1:21) जब हम कोमलता और सब्र का गुण दिखाते हैं तो हम यहोवा का आदर करते हैं और दूसरों के लिए भी अच्छी मिसाल रखते हैं।​—गला. 6:1; 2 तीमु. 2:24, 25.

प्यार का पहनावा पहन लो

18. भेदभाव न करने और प्यार के बीच क्या नाता है?

18 हमने अब तक जितने गुणों की चर्चा की है, उन सबका प्यार से गहरा नाता है। इस बात को समझने के लिए गौर कीजिए कि चेले याकूब के दिनों में क्या हुआ। कुछ भाई मंडली में अमीरों के साथ तो अच्छी तरह पेश आ रहे थे लेकिन गरीबों के साथ बुरा व्यवहार कर रहे थे। याकूब ने समझाया कि ऐसा करना परमेश्वर की इस आज्ञा के खिलाफ है कि “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” उसने यह भी कहा, “अगर तुम भेदभाव करना नहीं छोड़ते तो तुम पाप कर रहे हो।” (याकू. 2:8, 9) हम भी अगर लोगों से प्यार करते हैं, तो हम भेदभाव नहीं करेंगे। हम यह नहीं देखेंगे कि वे कितने पढ़े-लिखे हैं, किस जाति से हैं और समाज में उनका क्या ओहदा है। याद रखिए, अगर आपके दिल में भेदभाव है तो आप इसे छिपा नहीं सकते; यह दूसरों को नज़र आ ही जाता है।

19. प्यार का पहनावा पहनना क्यों ज़रूरी है?

19 भेदभाव न करने के अलावा, प्यार “सब्र रखता है और कृपा करता है।” यह “घमंड से नहीं फूलता।” (1 कुरिं. 13:4) खुशखबरी सुनाने के काम में लगे रहने के लिए सब्र, कृपा और नम्रता का गुण होना ज़रूरी है। (मत्ती 28:19) ये गुण मंडली में भी काम आते हैं। इनसे हम सभी भाई-बहनों के साथ अच्छा रिश्ता बनाए रख पाते हैं। जब हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं, तो मंडली की एकता बनी रहती है और इससे यहोवा का आदर होता है। हमारी एकता देखकर लोग सच्चाई की तरफ खिंचे चले आते हैं। इसीलिए बाइबल में जहाँ नयी शख्सियत के बारे में बताया गया है वहाँ आखिर में यह लिखा है, “मगर इन सब बातों के अलावा, प्यार का पहनावा पहन लो क्योंकि यह पूरी तरह से एकता में जोड़नेवाला जोड़ है।”​—कुलु. 3:14.

‘नया बनते जाइए’

20. (क) हमें खुद से क्या सवाल करने चाहिए और क्यों? (ख) हम किस वक्‍त का इंतज़ार कर रहे हैं?

20 हम सबको खुद से पूछना चाहिए, ‘पुरानी शख्सियत को उतार फेंकने और उससे दूर रहने के लिए मुझे और कहाँ सुधार करना है?’ हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और उससे मदद की भीख माँगनी चाहिए। हमें अपनी गलत सोच और कामों को बदलने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए ताकि हम “परमेश्वर के राज के वारिस” हो सकें। (गला. 5:19-21) हमें खुद से यह भी पूछना चाहिए, ‘क्या मैं यहोवा को खुश करने के लिए लगातार अपनी सोच में सुधार करता हूँ?’ (इफि. 4:23, 24) हम अपरिपूर्ण हैं इसलिए नयी शख्सियत को पहन लेना काफी नहीं है। इसे पहने रखने के लिए हमें जी-तोड़ कोशिश करते रहना चाहिए। ज़रा सोचिए, वह समय कितना अच्छा होगा जब धरती पर हर इंसान नयी शख्सियत पहन लेगा और यहोवा के बढ़िया गुणों को पूरी तरह ज़ाहिर करेगा!

^ पैरा. 3 बाइबल के ज़माने में लोग सोचते थे कि स्कूती असभ्य लोग हैं, इसलिए वे उनसे नफरत करते थे।