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नूह, दानियेल और अय्यूब जैसा विश्‍वास रखिए और आज्ञा मानिए

नूह, दानियेल और अय्यूब जैसा विश्‍वास रखिए और आज्ञा मानिए

“नूह, दानियेल और अय्यूब . . . अपनी नेकी की वजह से सिर्फ अपनी जान बचा पाएँगे।”​—यहे. 14:14.

गीत: 6, 54

1, 2. (क) नूह, दानियेल और अय्यूब के उदाहरण पर गौर करने से हमें क्यों हिम्मत मिलेगी? (ख) यहेजकेल ने यहेजकेल 14:14 में दर्ज़ बात किन हालात में लिखी?

क्या आप बीमार हैं? क्या आपको पैसों की दिक्कत है? क्या आपको अपने विश्‍वास की वजह से सताया जा रहा है? या क्या यहोवा की सेवा में अपनी खुशी बनाए रखना कभी-कभी आपको मुश्‍किल लगता है? अगर आप इन वजहों से परेशान हैं, तो नूह, दानियेल और अय्यूब के उदाहरण से आपको हिम्मत मिल सकती है। वे हमारी तरह अपरिपूर्ण इंसान थे और उन्होंने उन्हीं मुश्‍किलों का सामना किया जिनका सामना आज हम करते हैं। कभी-कभी तो उनके सामने ऐसे हालात आए जब उनकी जान को खतरा था। फिर भी, वे यहोवा के वफादार बने रहे और उसकी नज़र में विश्‍वास रखने और आज्ञा मानने की बढ़िया मिसाल बनें।​—यहेजकेल 14:12-14 पढ़िए।

2 इस लेख की मुख्य आयत यहेजकेल 14:14 है और यहेजकेल ने उसमें लिखी बात ईसा पूर्व 612 में बैबिलोनिया में लिखी थी। * (यहे. 1:1; 8:1) इसके कुछ साल बाद, ईसा पूर्व 607 में यरूशलेम का नाश हुआ। उस नाश में सिर्फ वे लोग बचे जो नूह, दानियेल और अय्यूब की तरह यहोवा पर विश्‍वास रखते थे और उसकी आज्ञा मानते थे। (यहे. 9:1-5) यिर्मयाह, बारूक, एबेद-मेलेक और रेकाबी लोग इन्हीं गिने-चुने लोगों में से थे।

3. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

3 आज भी सिर्फ वही लोग इस दुष्ट दुनिया के अंत से बचेंगे, जो यहोवा की नज़र में नूह, दानियेल और अय्यूब की तरह नेक हैं। (प्रका. 7:9, 14) आइए जानें कि क्यों यहोवा ने इन आदमियों को नेक बताया और उनकी मिसाल पर चलने का बढ़ावा दिया। इस लेख में हम गौर करेंगे कि (1) इनमें से हरेक को किन मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा? और (2) हम उनके विश्‍वास और आज्ञा मानने की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

नूह ने 900 से भी ज़्यादा साल तक विश्‍वास रखा और आज्ञा मानी

4, 5. नूह ने किन मुश्‍किलों का सामना किया और उसके बारे में क्या बात गौर करने लायक थी?

4 नूह को किन मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा? नूह के परदादा हनोक के समय तक लोग बहुत बुरे हो चुके थे। वे यहोवा के बारे में ‘घिनौनी बातें’ कहते थे। (यहू. 14, 15) उस वक्‍त हिंसा बढ़ती जा रही थी और नूह के समय तक “हर तरफ खून-खराबा हो रहा था।” दुष्ट स्वर्गदूत इंसानी रूप में धरती पर आ गए थे और उन्होंने औरतों से शादी कर ली थी। यही नहीं, उनसे जो बेटे हुए वे बहुत खूँखार और बेरहम थे। (उत्प. 6:2-4, 11, 12) लेकिन नूह अपने ज़माने के लोगों से बिलकुल अलग था। बाइबल बताती है कि वह “एक ऐसा इंसान था जिसने यहोवा को खुश किया। . . . उसका चालचलन बिलकुल बेदाग था। नूह सच्चे परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहा।”​—उत्प. 6:8, 9.

5 बाइबल के इन शब्दों से हमें नूह के बारे में क्या पता चलता है? एक, वह जलप्रलय से पहले 70 या 80 सालों से नहीं बल्कि 600 सालों से यहोवा की सेवा कर रहा था। (उत्प. 7:11) दो, उस वक्‍त कोई मंडली नहीं थी जहाँ से उसे मदद या हौसला मिलता, जैसे आज हमें मिलता है। ऐसा मालूम होता है कि उसके सगे भाई-बहनों ने भी उसका साथ नहीं दिया। *

6. नूह ने कैसे हिम्मत से काम लिया?

6 नूह ने यह नहीं सोचा कि एक अच्छा इंसान होना ही काफी है। उसने निडर होकर अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को बताया। बाइबल बताती है कि वह ‘नेकी का प्रचारक’ था। (2 पत. 2:5) प्रेषित पौलुस ने उसके बारे में कहा, “विश्‍वास की वजह से उसने दुनिया को सज़ा के लायक ठहराया।” (इब्रा. 11:7) ज़ाहिर-सी बात है कि लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया होगा और उसे रोकने की कोशिश की होगी। उन्होंने नूह को मारने की धमकी भी दी होगी लेकिन वह इंसानों से नहीं डरा। (नीति. 29:25) उसमें विश्‍वास था इसलिए यहोवा ने उसे हिम्मत दी। यहोवा आज विश्‍वास रखनेवाले अपने सेवकों को ऐसी ही हिम्मत देता है।

7. जहाज़ बनाते वक्‍त नूह ने किन मुश्‍किलों का सामना किया?

7 जब नूह को जहाज़ बनाने के लिए कहा गया, तब उसे यहोवा की सेवा करते हुए 500 से ज़्यादा साल हो चुके थे। उस जहाज़ के ज़रिए कुछ लोगों की और जानवरों की जान बचायी जानी थी। (उत्प. 5:32; 6:14) इतना बड़ा जहाज़ बनाना नूह के लिए आसान नहीं था। वह यह भी जानता था कि लोग उसकी और भी हँसी उड़ाएँगे और उसका जीना दुश्‍वार कर देंगे। लेकिन नूह को यहोवा पर विश्‍वास था और “उसे जैसा बताया गया था, उसने ठीक वैसा ही किया।”​—उत्प. 6:22.

8. परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के बारे में नूह ने कैसे यहोवा पर भरोसा रखा?

8 नूह के आगे एक और मुश्‍किल थी। जलप्रलय से पहले, लोगों को फसल उगाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। नूह को भी अपने परिवार के लिए मेहनत करनी पड़ी होगी। (उत्प. 5:28, 29) फिर भी, परिवार की ज़रूरतें पूरी करना उसकी सबसे बड़ी चिंता नहीं बन गयी। इसके बजाय, उसने यहोवा को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह दी। नूह को जहाज़ बनाने में शायद 40 से 50 साल लगे होंगे, मगर उस दौरान उसका पूरा ध्यान यहोवा पर बना रहा। जलप्रलय के बाद भी वह 350 साल तक यहोवा की सेवा करता रहा। (उत्प. 9:28) वाकई, नूह विश्‍वास और आज्ञा मानने की क्या ही बढ़िया मिसाल है!

9, 10. (क) हम किस तरह नूह की मिसाल पर चल सकते हैं? (ख) अगर आप हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानते हैं, तो आप क्या यकीन रख सकते हैं?

9 हम किस तरह नूह की मिसाल पर चल सकते हैं? जब हम यहोवा के स्तरों पर चलते हैं, शैतान की दुनिया का हिस्सा नहीं बनते और राज के कामों को पहली जगह देते हैं, तो हम नूह की मिसाल पर चल रहे होते हैं। (मत्ती 6:33; यूह. 15:19) इन्हीं वजहों से दुनिया हमसे नफरत करती है। मिसाल के लिए, सेक्स और शादी के बारे में हम यहोवा के स्तरों का सख्ती से पालन करते हैं। इसलिए टीवी, अखबारों और इंटरनेट पर हमारे बारे में गलत बातें फैलायी जाती हैं। (मलाकी 3:17, 18 पढ़िए।) मगर नूह की तरह हम इंसानों से नहीं डरते। हम यहोवा का डर मानते हैं और किसी भी तरह उसका दिल नहीं दुखाना चाहते। हम जानते हैं कि सिर्फ यहोवा ही हमें हमेशा की ज़िंदगी दे सकता है।​—लूका 12:4, 5.

10 लेकिन हममें से हरेक के बारे में क्या? हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘अगर लोग मेरा मज़ाक उड़ाएँ या मुझे बुरा-भला कहें, क्या तब भी मैं यहोवा के नेक स्तरों को मानता रहूँगा? क्या मुझे भरोसा है कि यहोवा तंगी में भी मेरे परिवार की ज़रूरतें पूरी करेगा?’ अगर आप नूह की तरह यहोवा पर भरोसा रखें और उसकी आज्ञा मानें, तो आप यकीन रख सकते हैं कि वह आपका खयाल रखेगा।​—फिलि. 4:6, 7.

दुष्ट शहर में रहकर भी दानियेल ने विश्‍वास रखा और आज्ञा मानी

11. दानियेल और उसके तीन साथियों ने बैबिलोन में किन बड़ी मुश्‍किलों का सामना किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

11 दानियेल को किन मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा? दानियेल को मजबूरन बैबिलोन में जीना पड़ा, जहाँ झूठी उपासना और जादू-टोना किया जाता था। वहाँ के लोग यहूदियों को तुच्छ समझते थे और उनकी और उनके परमेश्‍वर यहोवा की खिल्ली उड़ाते थे। (भज. 137:1, 3) हम सोच सकते हैं कि दानियेल और दूसरे वफादार यहूदियों पर क्या बीती होगी! यही नहीं, कई लोगों की नज़र दानियेल और उसके तीन साथी हनन्याह, मीशाएल और अजरयाह पर थी जिन्हें बैबिलोन के राजा की सेवा के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा था। उन्हें हर दिन वह खाना भी खाना था जो राजा को दिया जाता था और इस खाने में ऐसी चीज़ें थीं जिन्हें यहोवा ने खाने से मना किया था। लेकिन दानियेल ने ‘राजा के यहाँ से मिलनेवाला लज़ीज़ खाना खाकर खुद को दूषित नहीं किया।’​—दानि. 1:5-8, 14-17.

12. (क) दानियेल कैसा इंसान था? (ख) उसके बारे में यहोवा का क्या नज़रिया था?

12 दानियेल के सामने एक और परीक्षा आयी जिसे पहचानना शायद आसान नहीं था। वह बहुत ही काबिल इंसान था और राजा ने उसे अपने दरबार में खास ज़िम्मेदारियाँ और अधिकार दिए थे। (दानि. 1:19, 20) इस वजह से वह घमंडी बन सकता था और सोचने लग सकता था कि उसकी राय सबसे ज़्यादा मायने रखती है। लेकिन दानियेल नम्र बना रहा और उसने अपनी हदें पहचानीं। उसने हमेशा अपनी कामयाबी का श्रेय यहोवा को दिया। (दानि. 2:30) ज़रा सोचिए: दानियेल एक नौजवान ही था जब यहोवा ने उसका ज़िक्र नूह और अय्यूब के साथ किया। यहोवा को दानियेल पर इतना भरोसा था कि उसने उसे नूह और अय्यूब जैसे वफादार सेवकों में गिना जिन्होंने लंबे समय तक उसकी सेवा की थी। क्या यहोवा का यह भरोसा सही था? बिलकुल! दानियेल ज़िंदगी-भर उस पर विश्‍वास करता रहा और उसकी आज्ञा मानता रहा। जब वह करीब 100 साल का हुआ तब परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत ने उससे कहा, “हे दानियेल, तू . . . परमेश्‍वर के लिए बहुत अनमोल है।”​—दानि. 10:11.

13. यहोवा ने किस वजह से दानियेल को ऊँची पदवी दिलायी होगी?

13 यहोवा ने दानियेल का साथ दिया, इसलिए वह पहले बैबिलोन के और बाद में मादी-फारस के साम्राज्य में एक बड़ा अधिकारी बना। (दानि. 1:21; 6:1, 2) शायद यहोवा ने ही दानियेल को ऊँची पदवी दिलायी होगी ताकि वह अपने लोगों की मदद कर सके, ठीक जैसे मिस्र में यूसुफ ने और फारस में एस्तेर और मोर्दकै ने अपने लोगों की मदद की थी। * (दानि. 2:48) क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बैबिलोन में कैद यहेजकेल और दूसरे यहूदियों को कैसा लगा होगा, जब यहोवा ने दानियेल के ज़रिए उनकी मदद की होगी? बेशक उन्हें बड़ा दिलासा मिला होगा!

जो यहोवा के वफादार बने रहते हैं, उन्हें वह अनमोल समझता है (पैराग्राफ 14, 15 देखिए)

14, 15. (क) हमारे हालात दानियेल की तरह कैसे हैं? (ख) दानियेल के माँ-बाप से आज माता-पिता क्या सीख सकते हैं?

14 हम किस तरह दानियेल की मिसाल पर चल सकते हैं? आज दुनिया में जहाँ देखो वहाँ बदचलनी और झूठी उपासना हो रही है। लोगों पर महानगरी बैबिलोन का ज़बरदस्त असर देखा जा सकता है। झूठे धर्मों के इस साम्राज्य को बाइबल में “दुष्ट स्वर्गदूतों का अड्डा” कहा गया है। (प्रका. 18:2) मगर हम इस दुनिया में परदेसी जैसे हैं। इस वजह से लोग देख सकते हैं कि हम उनसे अलग हैं और वे हमारा मज़ाक उड़ाते हैं। (मर. 13:13) ऐसे में आइए हम दानियेल की मिसाल पर चलते हुए अपने परमेश्‍वर यहोवा के करीब आएँ। जब हम नम्र रहते हैं, यहोवा पर भरोसा रखते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं, तो वह हमें भी अनमोल समझता है।​—हाग्गै 2:7.

15 आज माता-पिता दानियेल के माँ-बाप से ज़रूरी सबक सीख सकते हैं। जब दानियेल यहूदा में एक छोटा लड़का था, तो उसके आस-पास का माहौल खराब था। लोग दुष्ट हो चुके थे। फिर भी, दानियेल के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ता गया। क्या यह प्यार अपने आप बढ़ने लगा? नहीं! दानियेल के माता-पिता ने ज़रूर उसे यहोवा के बारे में सिखाया होगा जिस वजह से वह यहोवा से प्यार करने लगा। (नीति. 22:6) यही नहीं, दानियेल नाम का मतलब है, “मेरा न्यायी परमेश्‍वर है।” इससे पता चलता है कि उसके माता-पिता यहोवा से कितना प्यार करते थे! (दानि. 1:6, फु.) तो माता-पिताओ, अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाते वक्‍त सब्र रखिए। हिम्मत मत हारिए। (इफि. 6:4) उनके साथ और उनके लिए प्रार्थना कीजिए। उन्हें यहोवा के नेक स्तरों से प्यार करना सिखाइए और ऐसा करने में कड़ी मेहनत कीजिए। यहोवा आपकी मेहनत पर ज़रूर आशीष देगा।​—भज. 37:5.

अच्छे और बुरे वक्‍त में अय्यूब ने विश्‍वास रखा और आज्ञा मानी

16, 17. अय्यूब को अलग-अलग समय पर किन मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा?

16 अय्यूब को किन मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ा? अय्यूब “पूरब के रहनेवालों में सबसे बड़ा आदमी था।” (अय्यू. 1:3) उसके पास दौलत और शोहरत थी और लोग उसकी इज़्ज़त करते थे। (अय्यू. 29:7-16) यह उसके लिए एक परीक्षा बन सकती थी। वह खुद को दूसरों से बेहतर समझने लग सकता था और सोच सकता था कि उसे परमेश्‍वर की ज़रूरत नहीं। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। हम यह कैसे जानते हैं? क्योंकि यहोवा ने अय्यूब को ‘अपना सेवक’ बताया और उसके बारे में कहा, “वह एक सीधा-सच्चा इंसान है जिसमें कोई दोष नहीं। वह परमेश्‍वर का डर मानता और बुराई से दूर रहता है।”​—अय्यू. 1:8.

17 फिर अचानक अय्यूब की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गयी। उसका सबकुछ छिन गया और वह इतना निराश हो गया कि मरना चाहता था। हम जानते हैं कि शैतान ही अय्यूब पर आफतें लाया था। उसने अय्यूब पर झूठा इलज़ाम लगाया कि वह अपने मतलब के लिए यहोवा की सेवा कर रहा है। (अय्यूब 1:9, 10 पढ़िए।) यहोवा ने इस इलज़ाम को गंभीरता से लिया। उसने शैतान को दुष्ट और झूठा साबित करने के लिए क्या किया? उसने अय्यूब को यह साबित करने का मौका दिया कि वह वफादार है और उससे प्यार करता है इसलिए उसकी सेवा करता है।

18. (क) अय्यूब के बारे में कौन-सी बात आपके दिल को छू जाती है? (ख) यहोवा उसके साथ जिस तरह पेश आया, उससे आप यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

18 शैतान ने अय्यूब पर एक-के-बाद-एक वार किए। वह अय्यूब पर इस तरह मुसीबतें लाया जिससे उसे लगे कि यह सब परमेश्‍वर कर रहा है। (अय्यू. 1:13-21) फिर अय्यूब को झूठी तसल्ली देने उसके तीन दोस्त आए और उन्होंने उसे अपनी बातों से चोट पहुँचायी। उन्होंने कहा कि परमेश्‍वर अय्यूब को उसके किए की सज़ा दे रहा है। (अय्यू. 2:11; 22:1, 5-10) लेकिन अय्यूब यहोवा का वफादार बना रहा। यह सच है कि उसने बिना सोचे-समझे कुछ बातें कहीं, लेकिन यहोवा जानता था कि उसने वे बातें इसलिए कहीं क्योंकि वह दुखी और निराश है। (अय्यू. 6:1-3) उसे अच्छी तरह पता था कि शैतान ने अय्यूब का अपमान करने और उस पर हमला करने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए, लेकिन अय्यूब ने यहोवा का साथ नहीं छोड़ा। जब उसकी मुश्‍किलें खत्म हुईं तो यहोवा ने उसे सबकुछ दुगना दिया और वह 140 साल और जीया। (याकू. 5:11) उन सालों के दौरान अय्यूब पूरे दिल से यहोवा की सेवा करता रहा। यह हम कैसे जानते हैं? क्योंकि इस लेख की मुख्य आयत यानी यहेजकेल 14:14 में अय्यूब को नेक बताया गया है। गौर करनेवाली बात है कि जब यह आयत लिखी गयी तब अय्यूब को मरे सैकड़ों साल हो चुके थे।

19, 20. (क) हम कैसे अय्यूब की मिसाल पर चल सकते हैं? (ख) हम यहोवा की तरह करुणा से कैसे पेश आएँगे?

19 हम किस तरह अय्यूब की मिसाल पर चल सकते हैं? हमारे हालात चाहे जो भी हों, हमें यहोवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देनी चाहिए। हमें उस पर पूरा भरोसा रखना चाहिए और पूरे दिल से उसकी आज्ञा माननी चाहिए। ऐसा करने की हमारे पास अय्यूब से कहीं ज़्यादा वजह हैं। ज़रा सोचिए, आज हम शैतान और उसकी चालबाज़ियों से अनजान नहीं। (2 कुरिं. 2:11) बाइबल से और खासकर अय्यूब की किताब से हम जानते हैं कि परमेश्‍वर ने दुख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं। दानियेल की भविष्यवाणी से हमें पता है कि परमेश्‍वर का राज सचमुच की एक सरकार है जिसका राजा यीशु मसीह है। (दानि. 7:13, 14) हम यह भी जानते हैं कि वह राज जल्द ही धरती से सारी दुख-तकलीफें मिटा देगा।

20 अय्यूब के अनुभव से हम और क्या सीखते हैं? जब हमारे भाई किसी तकलीफ में होते हैं, तो हमें उनके साथ करुणा से पेश आना चाहिए। हो सकता है, अय्यूब की तरह वे बिना सोचे-समझे कुछ कह दें। (सभो. 7:7) लेकिन उनके बारे में बुरा-भला सोचने के बजाय, हम उनके हालात को समझने की कोशिश करेंगे। इस तरह हम अपने पिता यहोवा की मिसाल पर चल रहे होंगे जो प्यार करनेवाला और दयालु परमेश्‍वर है।​—भज. 103:8.

यहोवा आपको “शक्‍तिशाली बनाएगा”

21. पहला पतरस 5:10 में लिखी बात से हमें नूह, दानियेल और अय्यूब के अनुभव क्यों याद आते हैं?

21 नूह, दानियेल और अय्यूब इतिहास के अलग-अलग दौर में जीए थे और उनके हालात भी एक-दूसरे से अलग थे। फिर भी उन्होंने अपने मुश्‍किल हालात का डटकर सामना किया। उनके अनुभव से हमें प्रेषित पतरस की कही बात याद आती है। उसने कहा था, “यह दुख तुम्हें कुछ ही समय के लिए झेलना होगा, इसके बाद परमेश्‍वर जो हर तरह की महा-कृपा करता है वह तुम्हारा प्रशिक्षण खत्म करेगा। . . . वह तुम्हें मज़बूत करेगा, शक्‍तिशाली बनाएगा और मज़बूती से खड़ा करेगा।”​—1 पत. 5:10.

22. अगले लेख में हम क्या सीखेंगे?

22 पहला पतरस 5:10 की बात आज परमेश्‍वर के सेवकों के बारे में भी सच है। यहोवा हमें भरोसा दिलाता है कि वह हमें मज़बूत करेगा और शक्‍तिशाली बनाएगा। हम सभी यही चाहते हैं कि यहोवा हमें शक्‍तिशाली बनाएँ और हम विश्‍वास में मज़बूती से खड़े रहें। इसलिए हम नूह, दानियेल और अय्यूब की तरह विश्‍वास रखना चाहते हैं और आज्ञा मानना चाहते हैं। अगले लेख में हम सीखेंगे कि ये सेवक यहोवा के वफादार इसलिए बने रहे क्योंकि वे उसे अच्छी तरह जानते थे। दरअसल “वे सब समझते” थे कि यहोवा उनसे क्या चाहता है। (नीति. 28:5) आइए हम भी उनकी तरह बनें।

^ पैरा. 2 यहेजकेल को ईसा पूर्व 617 में बंदी बनाकर यहाँ लाया गया था। इसके “छठे साल” में यानी ईसा पूर्व 612 में उसने यहेजकेल 8:1–19:14 में दर्ज़ बातें लिखीं।

^ पैरा. 5 नूह के पिता लेमेक को परमेश्‍वर पर विश्‍वास था लेकिन वह जलप्रलय से पाँच साल पहले ही मर गया था। अगर नूह की माँ या भाई-बहन जलप्रलय के वक्‍त ज़िंदा थे, तो वे उस प्रलय से नहीं बचे।

^ पैरा. 13 शायद यहोवा ने हनन्याह, मीशाएल और अजरयाह को भी अधिकार के पद दिलाए होंगे ताकि वे यहूदी लोगों की मदद कर सकें।​—दानि. 2:49.