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जीवन कहानी

पहले मैं कंगाल था, अब मालामाल हूँ

पहले मैं कंगाल था, अब मालामाल हूँ

मेरा परिवार अमरीका के इंडियाना राज्य से है और मेरा जन्म लिबर्टी नाम के कसबे में एक छोटे-से घर में हुआ। मुझसे बड़े एक भाई और दो बहनें हैं और मुझसे छोटी एक बहन और दो भाई हैं।

मैं जिस घर में पैदा हुआ था

हमारे छोटे-से कसबे में कुछ खास बदलाव नहीं होता था, मानो यहाँ वक्‍त थम गया हो। जिन बच्चों के साथ मैंने स्कूल जाना शुरू किया, उन्हीं के साथ पढ़ाई पूरी की। हम अपने कसबे में लगभग सभी लोगों के नाम जानते थे और वे भी हमें पहचानते थे।

मैं सात बच्चों में से एक था और मैंने छोटी उम्र से ही खेती का काम सीखा

कसबे के चारों तरफ छोटे-छोटे खेत होते थे जिनमें मक्के उगाए जाते थे। मेरे जन्म के वक्‍त पिताजी एक किसान के यहाँ काम करते थे। फिर जब मैं बड़ा हुआ, तो मैंने ट्रैक्टर चलाना और खेत में दूसरे काम करना सीखा।

मैं जब पैदा हुआ, तब पिताजी 56 साल के थे और माँ 35 की। पिताजी जवान नहीं थे फिर भी उनमें बहुत दमखम था और उनकी सेहत अच्छी रहती थी। वे बहुत मेहनती थे और उन्होंने हम बच्चों को भी मेहनत-मशक्कत करना सिखाया। पिताजी की कमाई ज़्यादा नहीं होती थी, फिर भी उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि हमारे पास सिर छिपाने की जगह और खाने-पहनने के लिए ज़रूरी चीज़ें हों। यही नहीं, वे हमेशा हमारे साथ वक्‍त बिताते थे। जब वे 93 साल के थे तब वे चल बसे और माँ 86 की उम्र में गुज़र गयीं। वे दोनों यहोवा के साक्षी नहीं थे। लेकिन मेरा एक भाई सच्चाई में है और 1972 से प्राचीन के नाते वफादारी से सेवा कर रहा है।

मेरे जवानी के दिन

माँ बहुत धार्मिक किस्म की थीं। हर रविवार, वे हमें अपने साथ बैपटिस्ट चर्च ले जाती थीं। जब मैं 12 साल का था तब मैंने पहली बार त्रिएक की शिक्षा के बारे में सुना। मैंने माँ से पूछा, “यीशु पिता और पुत्र, दोनों कैसे हो सकता है?” आज भी मुझे उनका जवाब याद है। उन्होंने कहा, “बेटा, यह एक रहस्य है। इसे समझना हमारा काम नहीं।” मेरे लिए तो यह सचमुच एक रहस्य था! इसके बावजूद, 14 साल की उम्र में मैंने पास की एक छोटी नदी में बपतिस्मा लिया और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से मुझे तीन बार डुबकी दिलायी गयी।

सन्‌ 1952, सेना में भर्ती होने से पहले, 17 की उम्र में

हाई स्कूल में मेरा एक दोस्त बॉक्सर था। उसके कहने पर मैंने भी मुक्केबाज़ी की ट्रेनिंग शुरू कर दी और ‘गोल्डन ग्लव्स’ नाम के एक संगठन का सदस्य बन गया। मैंने कुछ मुकाबलों में हिस्सा लिया लेकिन अपना सिक्का नहीं जमा पाया। इसलिए मैंने बॉक्सिंग छोड़ दी। फिर मुझे अमरीकी सेना में भर्ती होने का बुलावा मिला और जर्मनी भेजा गया। वहाँ बड़े अफसरों ने मुझे एक मिलिट्री अकादेमी में भेजा क्योंकि उन्हें लगा कि मुझमें एक अच्छा लीडर बनने की काबिलीयत है। वे चाहते थे कि मैं मिलिट्री में ही अपना करियर बनाऊँ। लेकिन मैं यह नहीं चाहता था इसलिए दो साल सेवा करने के बाद मैंने सेना छोड़ दी। यह 1956 की बात थी। इसके कुछ समय बाद, मैं एक अलग किस्म की सेना में भर्ती हो गया।

सन्‌ 1954-1956, मैं दो साल अमरीकी सेना में था

एक नयी शुरूआत

मैं हमेशा यही सोचता था कि असली मर्द दूसरों पर रौब जमाता है, प्यार से पेश नहीं आता। फिल्मों में यही दिखाया जाता था और कई लोग भी ऐसा ही मानते थे। इसलिए मेरा मानना था कि जो आदमी बाइबल का प्रचार करते हैं, वे असली मर्द नहीं हो सकते। मगर फिर मैं कुछ ऐसी बातें सीखने लगा जिनसे मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी! एक दिन मैं अपनी बड़ी, लाल गाड़ी में जा रहा था कि तभी मेरी नज़र दो लड़कियों पर पड़ी। वे मुझे अपनी तरफ आने का इशारा कर रही थीं। ये लड़कियाँ दरअसल मेरी बड़ी बहन की ननदें थीं। वे यहोवा की साक्षी थीं और मैंने उनसे पहले भी प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाएँ ली थीं। सच कहूँ तो प्रहरीदुर्ग पत्रिका मेरे सिर के ऊपर से जाती थी। मगर इस बार उन्होंने मुझे मंडली के पुस्तक अध्ययन के लिए बुलाया जो उनके घर पर रखी गयी थी। इस सभा में बाइबल का अध्ययन किया जाता था और उस पर चर्चा होती थी। मैंने उनसे कहा कि मैं सोचूँगा। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “वादा करो तुम आओगे।” मैंने कहा, “अच्छा, वादा करता हूँ।”

पहले तो मैं पछताया कि मैंने हाँ क्यों कहा, लेकिन फिर मुझे लगा कि मैं अपनी बात से मुकर नहीं सकता। उस रात मैं सभा में गया। मैं सबसे ज़्यादा बच्चों से प्रभावित हुआ। वे बाइबल के बारे में कितना कुछ जानते थे! मैं भी बचपन से चर्च जाता था लेकिन मुझे बाइबल के बारे में कुछ भी नहीं पता था। इसलिए मैंने ठान लिया कि मैं बाइबल के बारे में और सीखूँगा और अध्ययन के लिए राज़ी हो गया। सबसे पहले मैंने यह सीखा कि सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का नाम यहोवा है। सालों पहले जब मैंने माँ से यहोवा के साक्षियों के बारे में पूछा था, तो उन्होंने यही कहा, “वे लोग यहोवा नाम के किसी बूढ़े आदमी की उपासना करते हैं।” लेकिन अब मुझे पता चला कि यहोवा कौन है।

मुझे यकीन हो गया कि यही सच्चाई है, इसलिए मैंने जल्दी तरक्की की। पहली सभा में जाने के नौ महीने बाद मैंने मार्च 1957 में बपतिस्मा ले लिया। मेरी सोच और मेरा रवैया बहुत बदल गया था। मैं कितना खुश हूँ कि मैंने बाइबल से सीखा कि असली मर्द किसे कहते हैं। यीशु परिपूर्ण था, किसी भी आदमी से ज़्यादा उसमें हिम्मत और ताकत थी। फिर भी वह लड़ाई-झगड़ों में नहीं पड़ा। इसके बजाय, “उसने सबकुछ सह लिया” ठीक जैसे उसके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी। (यशा. 53:2, 7) मैंने सीखा कि यीशु के सच्चे चेले को “सब लोगों के साथ नरमी से पेश” आना चाहिए।​—2 तीमु. 2:24.

सन्‌ 1958 में मैंने पायनियर सेवा शुरू की। लेकिन फिर कुछ समय के लिए मुझे यह सेवा रोकनी पड़ी। क्यों? क्योंकि मैंने शादी करने का फैसला किया। याद है, वह दो लड़कियाँ जिन्होंने मुझे पुस्तक अध्ययन के लिए बुलाया था? उनमें से एक का नाम था ग्लोरिया और मैंने उससे शादी की। इस फैसले का मुझे कभी पछतावा नहीं हुआ। ग्लोरिया सचमुच एक हीरा है। मेरे लिए वह सबसे कीमती हीरे से ज़्यादा अनमोल है। अब ग्लोरिया आपको अपने बारे में कुछ बताएगी:

“मैं 17 बच्चों में से एक हूँ। मेरी माँ एक वफादार साक्षी थीं। जब मैं 14 साल की थी तब उनकी मौत हो गयी। इसके बाद पिताजी ने बाइबल अध्ययन करना शुरू किया। माँ के जाने के बाद घर सँभालनेवाला कोई नहीं था। मेरी बड़ी बहन के हाई स्कूल का आखिरी साल था, इसलिए पिताजी ने प्रिंसिपल से जाकर बात की। उन्होंने पूछा कि क्या मैं और दीदी बारी-बारी से स्कूल जा सकते हैं। इस तरह हममें से कोई-न-कोई घर पर रहकर हमारे छोटे भाई-बहनों की देखभाल करता। यही नहीं, हम पिताजी के लौटने से पहले रात का खाना भी तैयार कर पाते। प्रिंसिपल मान गया और दीदी की पढ़ाई पूरी होने तक हमने ऐसा ही किया। हमें बाइबल सिखाने के लिए दो साक्षी परिवार आते थे और आगे चलकर हममें से 11 बच्चे यहोवा के साक्षी बनें। मैं स्वभाव से बहुत शर्मीली थी, फिर भी मुझे प्रचार करना पसंद था। मेरे पति सैम ने मेरी बहुत मदद की है।”

फरवरी 1959 में मैंने और ग्लोरिया ने शादी कर ली और हमने साथ मिलकर पायनियर सेवा की। उसी साल, जुलाई के महीने में हमने बेथेल के लिए अर्ज़ी भरी क्योंकि हम दोनों की दिली तमन्‍ना थी कि हम विश्‍व मुख्यालय में सेवा करें। हमारा इंटरव्यू लेनेवाले भाई साइमन क्रेकर ने बताया कि उस वक्‍त बेथेल को शादीशुदा जोड़ों की ज़रूरत नहीं थी। हम फिर भी बेथेल में सेवा करना चाहते थे लेकिन इस इच्छा को पूरा होने में सालों लग गए।

फिर हमने विश्‍व मुख्यालय को खत लिखा और कहा कि हम कहीं भी सेवा करने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि हम एक ही जगह जा सकते हैं और वह है, अरकन्सास राज्य का पाइन ब्लफ शहर। उन दिनों वहाँ सिर्फ दो मंडलियाँ थीं: एक, श्‍वेत भाइयों से मिलकर बनी थी और दूसरी, अश्‍वेत भाइयों से। हमें अश्‍वेत भाइयों की मंडली में भेजा गया जहाँ सिर्फ 14 प्रचारक थे।

जाति-भेद का मुश्‍किल दौर

आप शायद सोच रहे होंगे कि यहोवा के साक्षियों में क्यों श्‍वेत-अश्‍वेत भाइयों की अलग-अलग मंडलियाँ थीं। दरअसल उन दिनों हमारे पास कोई चारा नहीं था। अलग-अलग जातियों का एक-साथ इकट्ठा होना गैर-कानूनी माना जाता था और हिंसा होने का भी खतरा था। कई जगहों में भाइयों को डर था कि अगर श्‍वेत-अश्‍वेत भाई-बहन सभाओं के लिए इकट्ठा हुए, तो उनके राज-घरों को तहस-नहस कर दिया जाता। और ऐसा हुआ भी। यही नहीं अगर अश्‍वेत भाई, श्‍वेत लोगों के इलाके में घर-घर का प्रचार करते, तो उन्हें गिरफ्तार किया जाता और शायद उनकी पिटाई भी होती। प्रचार में कोई रुकावट न आए, इस वजह से हम कानून का पालन करते थे और यही उम्मीद करते थे कि आगे चलकर हालात सुधरेंगे।

प्रचार करना हमेशा आसान नहीं था। कभी-कभी ऐसा होता था कि हम गलती से किसी श्‍वेत परिवार का दरवाज़ा खटखटाते। ऐसे में हमें तुरंत सोचना होता था कि हम क्या करेंगे। क्या हम चंद शब्दों में उन्हें बाइबल का संदेश देंगे या माफी माँगकर चुपचाप वहाँ से चले जाएँगे? उन दिनों ऐसा होना आम बात थी।

पायनियर सेवा के साथ-साथ हमें अपना गुज़ारा भी करना होता था। हम हर दिन बहुत मेहनत करते थे, लेकिन हमारे काम के लिए हमें बहुत कम पैसे मिलते थे। ग्लोरिया कुछ घरों में साफ-सफाई करती थी। एक घर ने मुझे इजाज़त दी कि मैं उसका हाथ बँटाऊँ जिससे वह अपना काम जल्दी निपटा सके। हमें दोपहर का खाना भी मिलता था जो हम काम पूरा करने के बाद खाते थे। एक और घर में ग्लोरिया हर हफ्ते कपड़े इस्त्री करती थी जबकि मैं बगीचे में काम करता, खिड़कियाँ साफ करता और घर के छोटे-मोटे काम करता था। हम एक श्‍वेत परिवार के यहाँ भी खिड़कियाँ साफ करते थे। ग्लोरिया अंदर से खिड़कियाँ साफ करती थी और मैं बाहर से। हमें पूरा दिन लग जाता था इसलिए यहाँ हमें दोपहर का खाना दिया जाता था। ग्लोरिया घर के अंदर खाती थी, लेकिन उसे परिवार से अलग बैठकर खाना पड़ता था। मुझे बाहर गैरेज में बैठकर खाना पड़ता था लेकिन मैंने इस बात का बुरा नहीं माना, कम-से-कम खाना तो बढ़िया था! उस परिवार के लोग अच्छे थे लेकिन क्या करे, उस समय का माहौल ही ऐसा था। मुझे याद है, एक बार हम गाड़ी में पेट्रोल भराने गए थे। पेट्रोल भरने के बाद मैंने वहाँ के एक श्‍वेत आदमी से पूछा कि क्या ग्लोरिया उनका शौचालय इस्तेमाल कर सकती है। उस आदमी ने मुझे गुस्से से घूरा और कहा, “शौचालय बंद है।”

उनका प्यार और उनकी मदद हमेशा याद रहेगी

वहीं दूसरी तरफ, पाइन ब्लफ में हमने भाइयों के साथ अच्छा समय बिताया और हमें प्रचार में बहुत मज़ा आया। जब हम यहाँ पहली बार आए, तो एक भाई के यहाँ ठहरे जो उस समय मंडली सेवक था। उसकी पत्नी तब सच्चाई में नहीं थी और ग्लोरिया ने उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। इस दौरान, मैं भाई की बेटी और दामाद के साथ अध्ययन करने लगा। दोनों माँ-बेटी ने यहोवा की सेवा करने का फैसला किया और बपतिस्मा लिया।

यहाँ की श्‍वेत मंडली में भी हमारे कुछ अज़ीज़ दोस्त थे। वे अकसर हमें शाम को खाने पर बुलाते थे लेकिन हम अँधेरा होने के बाद ही उनके घर जाते थे ताकि कोई हमें साथ न देख ले। उस समय ‘कू क्लक्स क्लैन’ नाम के संगठन का खौफ छाया हुआ था। श्‍वेत लोगों से बना यह संगठन जाति-भेद और हिंसा के लिए जाना जाता था। मुझे याद है कि एक रात मैंने एक आदमी को अपने घर के बाहर बैठे देखा। वह बड़े गर्व से एक सफेद चोगा पहने हुए था जो आम तौर पर उस संगठन के लोग पहनते थे। ऐसे माहौल में भी भाइयों ने एक-दूसरे के लिए प्यार ज़ाहिर करना बंद नहीं किया। एक बार गरमियों में हमें एक अधिवेशन में जाना था, लेकिन हमारे पास पैसे नहीं थे। हमारे पास 1950 मॉडल की एक फोर्ड गाड़ी थी। एक भाई हमारी गाड़ी खरीदने के लिए तैयार हुआ ताकि हम अधिवेशन में जा सकें। फिर एक महीना बीता। एक दिन हम सड़ी गरमी में पैदल चलकर घर-घर का प्रचार कर रहे थे और बाइबल अध्ययन चला रहे थे। उस दिन हम बहुत थक गए थे! जब हम घर आए तो हैरान रह गए। घर के बाहर हमारी गाड़ी खड़ी थी! उस पर एक नोट चिपका हुआ था, “तुम्हारी गाड़ी वापस लौटा रहा हूँ, इसे तोहफा समझकर रख लेना। तुम्हारा भाई।”

एक और मौके पर इसी तरह हमारी मदद की गयी थी। वह किस्सा आज भी मेरे दिल को छू जाता है। सन्‌ 1962 में मुझे न्यू यॉर्क के साउथ लैंसिंग शहर में राज-सेवा स्कूल के लिए बुलाया गया था। यह पूरे एक महीने का कोर्स था जो मंडली, सर्किट और ज़िला में निगरानी करनेवाले भाइयों के लिए रखा गया था। उस वक्‍त मेरे पास नौकरी नहीं थी और मुश्‍किल से गुज़ारा चल रहा था। मैंने पाइन ब्लफ की एक टेलिफोन कंपनी में नौकरी के लिए इंटरव्यू दे रखा था। अगर मुझे नौकरी मिल जाती, तो मैं उस कंपनी का पहला अश्‍वेत कर्मचारी होता। मुझे पता चला कि मुझे नौकरी मिल गयी है। लेकिन अब मैं क्या करता? मैं सोचने लगा, ‘न्यू यॉर्क जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। शायद मुझे नौकरी कर लेनी चाहिए और राज-सेवा स्कूल के लिए मना कर देना चाहिए।’ मैं बेथेल को खत लिखने ही वाला था कि कुछ ऐसा हुआ जिसे मैं कभी नहीं भूलूँगा।

हमारी मंडली में एक बहन थी जिसका पति सच्चाई में नहीं था। एक दिन सुबह-सुबह उसने हमारा दरवाज़ा खटखटाया और मुझे एक लिफाफा दिया जिसमें बहुत पैसे थे। बहन और उसके छोटे-छोटे बच्चे काफी समय से ये पैसे जोड़ रहे थे। वे हर सुबह जल्दी उठते और कपास के खेतों में जंगली दाने निकालने का काम करते थे। बहन चाहती थी कि इन पैसों से मैं राज-सेवा स्कूल के लिए जाऊँ। उसने कहा, “स्कूल से ढेर सारी बातें सीखना और आकर हमें सिखाना!” इसके बाद मैंने टेलिफोन कंपनी से कहा, “अभी मैं काम शुरू नहीं कर सकता लेकिन क्या मैं पाँच हफ्ते बाद आ सकता हूँ?” कंपनी ने साफ मना कर दिया। मुझे कोई दुख नहीं हुआ क्योंकि मैंने स्कूल जाने का फैसला कर लिया था। मुझे खुशी है कि मैंने वह नौकरी नहीं ली।

अब ग्लोरिया से सुनिए कि पाइन ब्लफ में उसका अनुभव कैसा रहा: “प्रचार का इलाका कितना बढ़िया था! मेरे पास 15 से 20 बाइबल अध्ययन होते थे। हम सुबह घर-घर का प्रचार करते थे और फिर पूरा दिन बाइबल अध्ययन चलाते थे। कभी-कभी तो रात के 11 बज जाते थे। मुझे वहाँ बहुत मज़ा आया! मेरा बस चलता तो मैं वहीं रहकर खुशी-खुशी प्रचार करती। इसलिए जब हमें सर्किट काम के लिए बुलाया गया तो मेरा जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। लेकिन यहोवा को कुछ और ही मंज़ूर था।” ग्लोरिया ने सच कहा, यहोवा ने हमारे लिए कुछ और ही सोच रखा था।

सफरी काम में अपनी सेवा शुरू की

पाइन ब्लफ में सेवा करते वक्‍त हमने खास पायनियर सेवा के लिए अर्ज़ी भरी। हमें पूरा यकीन था कि हमारी अर्ज़ी मंज़ूर की जाएगी। वह क्यों? क्योंकि हमारा ज़िला निगरान चाहता था कि हम टेक्सस की एक मंडली की मदद करें और खास पायनियर के तौर पर वहाँ सेवा करें। हमें भी उसकी बात अच्छी लगी। अब हम जवाब का इंतज़ार करने लगे लेकिन जब भी हम लेटर बॉक्स देखते, तो वह खाली ही मिलता। आखिरकार एक चिट्ठी आयी। उसमें लिखा था कि हमें सफरी काम के लिए भेजा जा रहा है। यह जनवरी 1965 की बात थी। उसी दौरान, भाई लीआन वीवर को सर्किट निगरान ठहराया गया था। भाई वीवर आज अमरीका के शाखा-समिति प्रबंधक हैं।

सर्किट निगरान की ज़िम्मेदारी निभाने से मैं घबरा रहा था। करीब एक साल पहले हमारे ज़िला निगरान, भाई जेम्स ए. थॉम्पसन ने मेरी योग्यताओं की जाँच की। उन्होंने प्यार से समझाया कि मैं कहाँ सुधार कर सकता हूँ और यह भी बताया कि एक अच्छे सर्किट निगरान में कौन-सी काबिलीयतें होनी चाहिए। सर्किट काम शुरू करने के तुरंत बाद मुझे एहसास हुआ कि उनकी यह सलाह कितनी फायदेमंद है! मैंने सबसे पहले जिस ज़िला निगरान के साथ सेवा की, वे भाई थॉम्पसन ही थे। उस वफादार भाई से मैंने बहुत कुछ सीखा।

मैं तजुरबेकार भाइयों की मदद के लिए शुक्रगुज़ार हूँ

उन दिनों एक सर्किट निगरान को कोई खास प्रशिक्षण नहीं मिलता था। जब मुझे प्रशिक्षण दिया जा रहा था तो पहला हफ्ता मैंने एक सर्किट निगरान के साथ बिताया और गौर किया कि वह कैसे मंडली का दौरा करता है। दूसरे हफ्ते, उसने गौर किया कि मैं किस तरह मंडली का दौरा कर रहा हूँ। फिर उसने मुझे कुछ सलाह और सुझाव दिए। इसके बाद मुझे अकेले ही मंडलियों का दौरा करना था। मुझे याद है कि जब वह भाई जा रहा था, तो मैंने ग्लोरिया से कहा, “क्या वह इतनी जल्दी जा रहा है?” लेकिन वक्‍त के गुज़रते मैंने एक अहम बात सीखी: हमारी मदद करने के लिए काबिल भाई हमेशा मौजूद रहेंगे, लेकिन ज़रूरी है कि हम उनकी मदद स्वीकार करें। कई तजुरबेकार भाइयों ने मेरी मदद की जैसे, भाई जे. आर. ब्राउन जो उस समय सफरी निगरान थे और फ्रेड रस्क जो बेथेल में सेवा करते थे। मैं इन भाइयों के लिए हमेशा शुक्रगुज़ार रहूँगा!

उन दिनों जाति-भेद की भावना ज़ोर पकड़ी हुई थी। एक बार, ‘कू क्लक्स क्लैन’ ने टेनेसी राज्य के एक कसबे में जुलूस निकाला था और हम उसी कसबे में मंडली का दौरा कर रहे थे। मुझे याद है कि एक और मौके पर प्रचार करते वक्‍त हम थोड़ी देर रुककर एक रेस्तराँ में गए। जब मैं शौचालय गया तो एक श्‍वेत आदमी मेरा पीछा करते हुए वहाँ आया। वह बहुत गुस्से में था और उसके बदन पर टैटू भी बने थे। तभी एक श्‍वेत भाई, जो दिखने में मुझसे और उस आदमी से भी लंबा-चौड़ा था, वहाँ आ पहुँचा। उसने मुझसे पूछा, “भाई हर्ड, सब ठीक है ना?” भाई को देखकर वह आदमी फौरन निकल गया। उन सालों के दौरान मैंने यही देखा है कि लोग रंग की वजह से नहीं बल्कि आदम से मिले पाप की वजह से जाति-भेद करते हैं। मैंने यह भी जाना है कि हमारे भाई-बहनों का रंग चाहे जो भी हो, ज़रूरत पड़ने पर वे एक-दूसरे के लिए अपनी जान तक देने को तैयार होते हैं।

अब मैं मालामाल हो गया हूँ

हमने सर्किट काम में 12 साल बिताए और ज़िला निगरान के तौर पर 21 साल तक सेवा की। उन सालों के दौरान हमें कई आशीषें और हौसला बढ़ानेवाले अनुभव मिले। लेकिन हमें एक और बढ़िया आशीष मिली। अगस्त 1997 में हमें अमरीका के बेथेल में सेवा करने का बुलावा मिला। हमारा बरसों पुराना सपना साकार हुआ और वह भी पहली अर्ज़ी भरने के 38 साल बाद! अगले महीने ही हमने बेथेल सेवा शुरू की। मैं तो यही सोचकर गया था कि बेथेल को कुछ ही समय के लिए मेरी ज़रूरत होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

ग्लोरिया सचमुच एक हीरा है

मैंने सबसे पहले सेवा विभाग में काम किया, जहाँ मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। देश-भर में प्राचीनों के निकाय और सर्किट निगरान खत लिखते हैं और नाज़ुक और पेचीदा मामलों पर भाइयों से सवाल करते हैं। मैं सेवा विभाग के भाइयों का बहुत एहसानमंद हूँ कि उन्होंने प्यार और सब्र के साथ मुझे सिखाया। अगर मुझे दोबारा यहाँ सेवा करने का मौका मिलता, तब भी मैं उनसे बहुत कुछ सीखता।

मुझे और ग्लोरिया को बेथेल की ज़िंदगी बहुत पसंद है। सुबह जल्दी उठना हमारी आदत रही है और इस वजह से बेथेल में ढलना हमारे लिए ज़्यादा मुश्‍किल नहीं था। यहाँ आने के करीब एक साल बाद मुझे शासी निकाय की सेवा-समिति का मददगार नियुक्‍त किया गया। फिर 1999 में मुझे शासी निकाय का एक सदस्य ठहराया गया। इस सेवा में मैंने बहुत सारी बातें सीखीं। लेकिन सबसे ज़रूरी सबक मैंने यह सीखा कि मसीही मंडली का मुखिया कोई इंसान नहीं बल्कि यीशु मसीह है।

सन्‌ 1999 से मुझे शासी निकाय में सेवा करने का सम्मान मिला है

जब मैं अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे हालात भविष्यवक्‍ता आमोस की तरह हैं। वह गूलर के फलों में चीरा लगाने का काम करता था। यह फल गरीबों का खाना था। फिर भी, यहोवा ने उस मामूली चरवाहे पर ध्यान दिया, उसे भविष्यवक्‍ता ठहराया और उसकी सेवा पर ढेरों आशीषें दीं। (आमो. 7:14, 15) यहोवा ने मुझ गरीब किसान के बेटे पर भी ध्यान दिया है और मुझ पर इतनी आशीषें बरसायी हैं कि उनका हिसाब रखना मुश्‍किल है। (नीति. 10:22) सच, मैं अपने बारे में यही कह सकता हूँ कि पहले मैं कंगाल था, लेकिन यहोवा की आशीष से अब मैं मालामाल हूँ!