आप किसकी ओर ताकते हैं?
“मैं तेरी ओर नज़रें उठाता हूँ, तेरी ओर, जो स्वर्ग में विराजमान है।”—भज. 123:1.
गीत: 32, 18
1, 2. यहोवा की ओर ताकने का क्या मतलब है?
आज हम ‘संकटों से भरे ऐसे वक्त’ में जी रहे हैं, “जिसका सामना करना मुश्किल” है। (2 तीमु. 3:1) जब यहोवा इस दुष्ट दुनिया का नाश करेगा और धरती पर शांति लाएगा, तो उससे पहले ज़िंदगी और भी मुश्किल हो जाएगी। इस वजह से हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं मदद और मार्गदर्शन के लिए किसकी ओर ताकता हूँ?’ शायद हम तुरंत कहें, “यहोवा की ओर।” अगर ऐसा है, तो यह बहुत बढ़िया है।
2 लेकिन यहोवा की ओर ताकने का क्या मतलब है? समस्याएँ आने पर भी हम यहोवा की ओर ताकते कैसे रह सकते हैं? सदियों पहले बाइबल के एक लेखक ने समझाया कि मुश्किल घड़ी में यहोवा की ओर ताकते रहना कितना ज़रूरी है। (भजन 123:1-4 पढ़िए।) उसने लिखा कि जब हम यहोवा की ओर ताकते हैं, तो हम ऐसे दास की तरह होते हैं, जिसकी आँखें अपने मालिक की ओर लगी रहती हैं। वह ऐसा क्यों करता है? एक दास की आँखें इसलिए अपने मालिक की ओर लगी रहती हैं, ताकि उसे खाने-पीने की चीज़ें और हिफाज़त मिल सके। वह ऐसा इसलिए भी करता है, ताकि जान सके कि उसका मालिक उससे क्या चाहता है और फिर तुरंत वह वही करता है। उसी तरह हमें हर दिन परमेश्वर के वचन का अच्छी तरह अध्ययन करना चाहिए, ताकि हम उसकी मरज़ी जान सकें। फिर हमें उसकी मरज़ी पूरी करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे, तो ही हम उम्मीद कर सकते हैं कि मुश्किल घड़ी में यहोवा हमारी मदद करेगा।—इफि. 5:17.
3. हमें यहोवा की ओर ताकते रहने से कौन-सी बातें रोक सकती हैं?
3 हालाँकि हम जानते हैं कि हमें हमेशा यहोवा की ओर ताकना चाहिए, फिर भी कभी-कभी हमारी नज़रें उस पर से हट सकती हैं। मारथा के साथ ऐसा ही हुआ, जिसकी यीशु के साथ गहरी दोस्ती थी। उसका ‘ध्यान बहुत-सी तैयारियाँ करने में बँट’ गया था। (लूका 10:40-42) ध्यान दीजिए कि मारथा एक वफादार सेवक थी और उस वक्त यीशु उसके साथ था, फिर भी उसका ध्यान बँट गया। जब मारथा के साथ ऐसा हो सकता है, तो क्या हमारे साथ भी ऐसा नहीं हो सकता? बिलकुल। कौन-सी बातें हमें यहोवा की ओर ताकते रहने से रोक सकती हैं? इस लेख में बताया जाएगा कि दूसरे जो करते हैं, उससे हमारा ध्यान भटक सकता है। इसमें यह भी बताया जाएगा कि हम अपनी आँखें किस तरह यहोवा पर टिकाए रख सकते हैं।
एक वफादार सेवक ने एक सम्मान खो दिया
4. यह क्यों हैरानी की बात है कि मूसा ने वादा किए गए देश में जाने का सम्मान खो दिया?
4 इसमें कोई शक नहीं कि मूसा मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर ताकता था। बाइबल बताती है कि वह “अदृश्य परमेश्वर को मानो देखता हुआ डटा रहा।” (इब्रानियों 11:24-27 पढ़िए।) बाइबल यह भी कहती है कि “आज तक इसराएल में मूसा के जैसा भविष्यवक्ता कभी नहीं हुआ जिसे यहोवा करीब से जानता था।” (व्यव. 34:10) लेकिन यहोवा के साथ इतनी गहरी दोस्ती होने के बावजूद मूसा ने वादा किए गए देश में जाने का सम्मान खो दिया। (गिन. 20:12) किस वजह से?
5-7. (क) इसराएलियों के मिस्र छोड़ने के कुछ ही समय बाद क्या हुआ? (ख) ऐसे में मूसा ने क्या किया?
5 इसराएलियों को मिस्र छोड़े अभी दो महीने भी नहीं हुए थे और वे सीनै पहाड़ पर पहुँचे भी नहीं थे कि एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी। पानी न मिलने की वजह से लोग शिकायत करने लगे। वे मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे और उस पर इतना गुस्सा करने लगे कि “मूसा ने यहोवा को पुकारा, ‘मैं इन लोगों का क्या करूँ? कुछ ही देर में ये लोग मुझे पत्थरों से मार डालेंगे!’” (निर्ग. 17:4) इस पर यहोवा ने मूसा को साफ-साफ बताया कि उसे क्या करना चाहिए। उसने कहा कि वह अपनी छड़ी ले और होरेब में चट्टान पर मारे। बाइबल बताती है, “मूसा ने इसराएल के मुखियाओं के देखते ऐसा ही किया।” तब चट्टान से इतना पानी निकला कि सभी इसराएलियों ने अपनी प्यास बुझायी और उनकी समस्या हल हो गयी।—निर्ग. 17:5, 6.
6 बाइबल बताती है कि मूसा ने उस जगह का नाम मस्सा और मरीबा रखा। मस्सा का मतलब है, “परीक्षा लेना” और मरीबा का मतलब है, “झगड़ा करना।” मूसा ने ये नाम इसलिए रखे, “क्योंकि वहीं पर इसराएलियों ने उससे झगड़ा किया था और यह कहते हुए यहोवा की परीक्षा ली थी, ‘यहोवा हमारे बीच है भी या नहीं?’”—निर्ग. 17:7.
7 जो कुछ मरीबा में हुआ, वह देखकर यहोवा को कैसा लगा? उसकी नज़र में इसराएलियों ने न सिर्फ मूसा के खिलाफ, बल्कि उसके और उसके अधिकार के खिलाफ भी बगावत की थी। (भजन 95:8, 9 पढ़िए।) जो इसराएलियों ने किया, वह बहुत गलत था। लेकिन मूसा ने सही काम किया। उसने मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर ताका और ठीक वैसा ही किया, जैसा यहोवा ने उससे कहा था।
8. जब इसराएलियों का वीराने में भटकने का समय पूरा होनेवाला था, तब क्या हुआ?
8 जब 40 साल बाद फिर से यही समस्या खड़ी हुई, तब क्या हुआ? इसराएलियों का वीराने में भटकने का समय अब पूरा होनेवाला था। वे कादेश * इसकी वजह थी कि यहाँ इसराएलियों ने दोबारा पानी न होने की वजह से शिकायत की। (गिन. 20:1-5) लेकिन इस बार मूसा ने एक बड़ी गलती कर दी।
के पास एक जगह पहुँचे, जो वादा किए गए देश की सरहद के नज़दीक थी। उस जगह का नाम भी मरीबा रखा गया।9. यहोवा ने मूसा को क्या हिदायतें दीं, मगर मूसा ने क्या किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
9 जब लोगों ने बगावत की, तो मूसा ने फिर से मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर ताका। लेकिन इस बार यहोवा ने उसे चट्टान पर मारने के लिए नहीं कहा। उसने मूसा से कहा कि वह अपनी छड़ी ले, लोगों को एक चट्टान के पास इकट्ठा करे और फिर चट्टान से बोले। (गिन. 20:6-8) क्या मूसा ने ऐसा ही किया? नहीं। वह लोगों से इतना चिढ़ गया था और उसे इतना गुस्सा आया कि उसने चिल्लाकर लोगों से कहा, “हे बागियो, सुनो! क्या हमें इस चट्टान से तुम्हारे लिए पानी निकालना होगा?” फिर उसने चट्टान पर छड़ी मारी, वह भी एक बार नहीं बल्कि दो बार मारी।—गिन. 20:10, 11.
10. जो मूसा ने किया, वह देखकर यहोवा को कैसा लगा?
10 यह देखकर यहोवा को मूसा पर बहुत गुस्सा आया। (व्यव. 1:37; 3:26) इसकी एक वजह हो सकती है कि इस बार जो हिदायतें यहोवा ने मूसा को दी थीं, वे उसने नहीं मानीं।
11. जब मूसा ने चट्टान पर मारा, तो इसराएलियों को ऐसा क्यों लगा होगा कि यहोवा ने कोई चमत्कार नहीं किया?
11 शायद यहोवा के गुस्सा होने की एक और वजह रही हो। जो बड़ी-बड़ी चट्टानें पहलेवाले मरीबा के पास थीं, वे सख्त ग्रेनाइट की चट्टानें थीं। लोग जानते थे कि ग्रेनाइट पर कोई चाहे कितने भी ज़ोर से मारे, उससे कभी पानी नहीं निकल सकता। लेकिन दूसरे मरीबा के पास की चट्टानें इनसे अलग थीं। उनमें से ज़्यादातर चट्टानें चूना-पत्थर की थीं। चूना-पत्थर ज़्यादा सख्त नहीं होता। अकसर इसकी चट्टानों में पानी चला जाता है और ज़मीन के नीचे जमा हो जाता है। लोग इन चट्टानों में छेद करके पानी निकाल सकते हैं। इस वजह से जब मूसा ने चट्टान से बात करने के बजाय उस पर मारा, तो क्या इसराएलियों को यह लगा होगा कि यहोवा ने चमत्कार से पानी नहीं निकाला, बल्कि पानी पहले से चट्टान में था? * हम इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते।
मूसा ने किस तरह बगावत की
12. यहोवा का मूसा और हारून से गुस्सा होने की एक और वजह क्या हो सकती है?
12 यहोवा मूसा और हारून से इतना गुस्सा क्यों हुआ, इसकी एक और वजह हो सकती है। मूसा ने लोगों से कहा, “क्या हमें इस चट्टान से तुम्हारे लिए पानी निकालना होगा?” जब मूसा ने “हमें” कहा, तो शायद वह खुद की और हारून की बात कर रहा था। यह कहकर मूसा ने यहोवा का बहुत अनादर किया। उसने चमत्कार का पूरा श्रेय यहोवा को नहीं दिया। भजन 106:32, 33 में लिखा है, “उन्होंने मरीबा के सोते के पास परमेश्वर का क्रोध भड़काया, उनकी वजह से मूसा के साथ बहुत बुरा हुआ। उन्होंने मूसा के मन में कड़वाहट भर दी और वह बिना सोचे-समझे बोल पड़ा।” * (गिन. 27:14) मूसा ने यहोवा को वह आदर नहीं दिया, जिसका वह हकदार है। यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “तुम दोनों ने . . . मेरी आज्ञा के खिलाफ जाकर बगावत की” है। (गिन. 20:24) उन्होंने बगावत करके बहुत बड़ा पाप किया था!
13. जो सज़ा यहोवा ने मूसा को दी, वह न्याय के मुताबिक क्यों सही थी?
13 मूसा और हारून को यहोवा के लोगों की अगुवाई करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी, इसलिए यहोवा के सामने वे ज़्यादा जवाबदेह थे। (लूका 12:48) जब कुछ साल पहले इसराएलियों ने परमेश्वर से बगावत की थी, तो यहोवा ने उनकी पूरी पीढ़ी को वादा किए गए देश में जाने की इजाज़त नहीं दी। (गिन. 14:26-30, 34) उसी तरह जब मूसा ने बगावत की, तब यहोवा ने उसे भी वही सज़ा दी, जो न्याय के मुताबिक सही थी। उसने मूसा को वादा किए गए देश में जाने की इजाज़त नहीं दी।
बगावत की वजह
14, 15. मूसा ने यहोवा से बगावत किस वजह से की?
14 मूसा ने यहोवा से बगावत किस वजह से की? फिर से ध्यान दीजिए कि भजन 106:32, 33 में क्या लिखा है, “उन्होंने मरीबा के सोते के पास परमेश्वर का क्रोध भड़काया, उनकी वजह से मूसा के साथ बहुत बुरा हुआ। उन्होंने मूसा के मन में कड़वाहट भर दी और वह बिना सोचे-समझे बोल पड़ा।” हालाँकि इसराएलियों ने यहोवा से बगावत की, लेकिन मूसा को अपनी भावनाओं पर काबू रखना था। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसने अपने मन में कड़वाहट भरने दी यानी वह बहुत गुस्सा हुआ। वह बिना सोचे-समझे बोल पड़ा, उसने अंजाम के बारे में बिलकुल नहीं सोचा।
15 मूसा ने यहोवा की ओर ताकना बंद कर दिया, क्योंकि वह दूसरों के कामों पर ज़्यादा ध्यान देने लगा। जब पहली बार लोगों ने पानी के बारे में शिकायत की, तब मूसा ने सही काम किया। (निर्ग. 7:6) लेकिन इस बार उसने गलती की, क्योंकि शायद वह इसराएलियों से बहुत तंग आ चुका था, जो सालों से बगावत करते आ रहे थे। हो सकता है कि अब मूसा अपने जज़्बातों पर ज़्यादा ध्यान देने लगा था, बजाय इसके कि वह यहोवा की महिमा कैसे कर सकता है।
16. जो मूसा ने किया, उस बारे में हमें गहराई से क्यों सोचना चाहिए?
16 अगर मूसा जैसे एक वफादार भविष्यवक्ता का ध्यान भटक सकता है और वह पाप कर सकता है, तो हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। उस वक्त मूसा वादा किए हुए देश में जाने ही वाला था और आज हम नयी दुनिया में पहुँचने ही वाले हैं। (2 पत. 3:13) हम किसी भी हाल में नयी दुनिया में जीने का खास सम्मान गँवाना नहीं चाहते। इसके लिए हमें यहोवा की ओर ताकते रहना होगा और हमेशा उसकी आज्ञा माननी होगी। (1 यूह. 2:17) मूसा की गलती से हम क्या सबक सीख सकते हैं?
दूसरे जो करते हैं उससे अपना ध्यान भटकने मत दीजिए
17. जब कोई हमें चिढ़ दिलाता है, तो हम संयम कैसे रख सकते हैं?
17 जब आपको कोई चिढ़ दिलाता है, तो अपना संयम न खोएँ। कभी-कभी हमें एक ही समस्या से बार-बार जूझना पड़ता है। बाइबल कहती है, “हम बढ़िया काम करने में हार न मानें क्योंकि अगर हम हिम्मत न हारें, तो वक्त आने पर ज़रूर फल पाएँगे।” (गला. 6:9; 2 थिस्स. 3:13) जब किसी बात या व्यक्ति की वजह से हमें बार-बार चिढ़ होती है, तो क्या हम बोलने से पहले सोचते हैं? क्या हम अपना गुस्सा काबू में रखते हैं? (नीति. 10:19; 17:27; मत्ती 5:22) जब लोग हमें खीज दिलाते हैं, तो हमें यहोवा के “क्रोध को मौका” देना चाहिए। (रोमियों 12:17-21 पढ़िए।) इसका क्या मतलब है? गुस्सा करने के बजाय हमें सब्र रखना चाहिए और यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए कि जब उसे सही लगेगा, तब वह हमारी समस्या के बारे में ज़रूर कुछ करेगा। अगर हम यहोवा की ओर ताकने के बजाय खुद बदला लेने की कोशिश करें, तो हम यहोवा का अनादर कर रहे होंगे।
18. हिदायतें मानने के मामले में हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
इब्रा. 13:17) हमें इस बात से भी सावधान रहना चाहिए कि ‘जो लिखा है उससे हम आगे न जाएँ।’ (1 कुरिं. 4:6) जब हम यहोवा से मिलनेवाली हिदायतें मानते हैं, तो हम उसकी ओर ताक रहे होते हैं।
18 जो नयी हिदायतें दी जाती हैं, उन्हें मानिए। जो हिदायतें यहोवा ने हाल ही में दी हैं, क्या हम उन्हें सख्ती से मानते हैं? जिस तरह कोई काम हम पहले से करते आए हैं, उसी तरह हमें वह काम नहीं करते जाना चाहिए। इसके बजाय जो नयी हिदायतें यहोवा अपने संगठन के ज़रिए देता है, उन्हें फौरन मानना चाहिए। (19. हमें क्या करना चाहिए, ताकि दूसरों की गलतियों की वजह से यहोवा के साथ हमारी दोस्ती न टूटे?
19 दूसरों की गलतियों की वजह से यहोवा के साथ अपनी दोस्ती टूटने मत दीजिए। यहोवा की ओर ताकते रहने से हम किसी भी हाल में उसके साथ अपनी दोस्ती टूटने नहीं देंगे यानी हम दूसरों की गलतियों की वजह से गुस्सा नहीं होंगे, खासकर तब, जब हमें मूसा की तरह परमेश्वर के संगठन में कुछ ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं। बेशक अगर हम उद्धार पाना चाहते हैं, तो हममें से हरेक को मेहनत करनी चाहिए और यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए। (फिलि. 2:12) लेकिन हमारे पास जितनी ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ होंगी, उतना ही ज़्यादा हम यहोवा के सामने जवाबदेह ठहरेंगे। (लूका 12:48) अगर हम दिल से यहोवा से प्यार करते हैं, तो कोई भी बात हमें ठोकर नहीं खिला सकती, न ही उसके प्यार से अलग कर सकती है।—भज. 119:165; रोमि. 8:37-39.
20. हमें क्या करने की ठान लेनी चाहिए?
20 हम बहुत ही मुश्किल दौर में जी रहे हैं, इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम यहोवा की ओर ताकते रहें, “जो स्वर्ग में विराजमान है।” तभी हम जान पाएँगे कि वह हमसे क्या चाहता है। दूसरे मसीही जो करते हैं, उसकी वजह से हमें कभी-भी यहोवा के साथ अपनी दोस्ती टूटने नहीं देनी चाहिए। यह बहुत ही अहम सबक है, जो हम मूसा से सीखते हैं। जब लोग गलती करते हैं, तो चिढ़ने के बजाय आइए हम ठान लें कि ‘हम अपनी आँखें अपने परमेश्वर यहोवा पर तब तक टिकाए रहेंगे, जब तक कि वह हम पर कृपा नहीं करता।’—भज. 123:1, 2.
^ पैरा. 8 यह मरीबा पहले बताए गए मरीबा से अलग था, जो रपीदीम के पास था और मस्सा भी कहलाता था। लेकिन दोनों जगहों को मरीबा कहा गया, क्योंकि वहाँ इसराएलियों ने झगड़ा किया या शिकायत की।—पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद के अतिरिक्त लेख ख3 में नक्शा देखिए।
^ पैरा. 11 बाइबल का अध्ययन करनेवाला एक विद्वान कहता है, ‘एक यहूदी लेख के मुताबिक विद्रोह करनेवाले इसराएलियों ने मूसा की यह कहकर निंदा की, “मूसा इन चट्टानों के बारे में अच्छी तरह जानता है! अगर वह सच में चमत्कार कर सकता है, तो उसे दूसरे चट्टान से पानी निकालकर दिखाना होगा।”’ लेकिन ध्यान दीजिए कि यह सिर्फ एक मान्यता है, इसका कोई पक्का सबूत नहीं है।
^ पैरा. 12 15 अक्टूबर, 1987 की (अँग्रेज़ी) प्रहरीदुर्ग में “आपने पूछा” लेख देखिए।