इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

उदारता से देनेवाले खुश रहते हैं

उदारता से देनेवाले खुश रहते हैं

“ज़्यादा खुशी देने में है।”​—प्रेषि. 20:35.

गीत: 153, 14

1. कैसे पता चलता है कि यहोवा उदार परमेश्‍वर हैं?

एक वक्‍त ऐसा था, जब यहोवा पूरे विश्‍व में अकेला था। फिर उसने स्वर्ग में और धरती पर बुद्धिमान प्राणी बनाए, ताकि वे भी जीवन का आनंद लें। यहोवा “आनंदित परमेश्‍वर” है और उसे लोगों को अच्छी-अच्छी चीज़ें देना बहुत पसंद है। (1 तीमु. 1:11; याकू. 1:17) वह चाहता है कि हम भी खुश रहें, इसलिए वह हमें सिखाता है कि हम उसकी तरह उदार हों और अपनी चीज़ें दूसरों के साथ बाँटें।​—रोमि. 1:20.

2, 3. (क) खुशी पाने के लिए उदार होना क्यों ज़रूरी है? (ख) इस लेख में हम क्या सीखेंगे?

2 यहोवा ने इंसानों को अपनी छवि में बनाया है। (उत्प. 1:27) इसका मतलब है कि उसने हमें इस तरह रचा कि हम उसके जैसे गुण दर्शा सकें। उन गुणों में से एक है, उदारता। यहोवा चाहता है कि हम दिल से लोगों की परवाह करें और अपनी चीज़ें खुशी-खुशी दूसरों को दें। अगर हम सच में खुश रहना चाहते हैं और यहोवा की आशीष पाना चाहते हैं, तो ऐसा करना ज़रूरी है। (फिलि. 2:3, 4; याकू. 1:5) वह क्यों? वह इसलिए कि उसने हमें इसी तरह रचा है। भले ही हम अपरिपूर्ण हैं, फिर भी हम यहोवा की तरह उदार बन सकते हैं।

3 अब हम बाइबल से उदारता के बारे में कुछ बातें सीखेंगे। हम जानेंगे कि जब हम उदार होते हैं, तब यहोवा हमसे खुश क्यों होता है। हम यह भी सीखेंगे कि जो काम यहोवा ने हमें सौंपा है, उसे करने में उदार होने से मदद कैसे मिलती है और यह भी कि उदार होने से हमें खुशी क्यों मिलती है। हम यह भी चर्चा करेंगे कि हमें हमेशा उदार क्यों होना चाहिए।

उदार बनिए, यहोवा को खुश कीजिए

4, 5. (क) यहोवा और यीशु ने किस तरह उदारता दिखायी है? (ख) हमें उनकी मिसाल पर क्यों चलना चाहिए?

4 यहोवा चाहता है कि हम उसकी मिसाल पर चलें, इसलिए जब हम उदार होते हैं, तो उसे खुशी होती है। (इफि. 5:1) यही नहीं, वह हमें भी खुश देखना चाहता है। यह हमें इस बात से पता चलता है कि उसने हमें कितने लाजवाब तरीके से रचा है। उसने हमारी खुशी के लिए खूबसूरत धरती और उस पर की सारी चीज़ें बनायीं। (भज. 104:24; 139:13-16) उसकी मिसाल पर चलकर जब हम लोगों में खुशियाँ बाँटते हैं, तो हम उसका आदर कर रहे होते हैं।

5 हम यीशु की मिसाल पर भी चलते हैं, क्योंकि उदारता के मामले में वह हमारे लिए सबसे बढ़िया आदर्श है। यीशु ने कहा था, “इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।” (मत्ती 20:28) प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को बढ़ावा दिया, “तुम वैसी सोच और वैसा नज़रिया रखो जैसा मसीह यीशु का था। . . . उसने अपना सबकुछ त्याग दिया और एक दास का रूप लिया।” (फिलि. 2:5, 7) हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं यीशु के नक्शे-कदम पर और भी नज़दीकी से चल सकता हूँ?’​—1 पतरस 2:21 पढ़िए।

6. दयालु सामरी की कहानी से यीशु ने हमें क्या सिखाया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

6 यहोवा और यीशु की तरह उदार होने से यहोवा हमसे खुश होता है। हम उनकी तरह उदार कैसे हो सकते हैं? हमारे दिल में लोगों के लिए परवाह होनी चाहिए और हमें अलग-अलग तरीकों से उनकी मदद करनी चाहिए। इस बात की अहमियत यीशु ने दयालु सामरी की कहानी से समझायी। (लूका 10:29-37 पढ़िए।) उसने अपने चेलों को सिखाया कि उन्हें हर किसी की मदद करनी चाहिए, फिर चाहे वह कोई भी हो या कहीं से भी हो। क्या आपको याद है कि यीशु ने यह कहानी क्यों सुनायी थी? एक यहूदी आदमी ने उससे सवाल किया था, “असल में मेरा पड़ोसी कौन है?” इसका यीशु ने जो जवाब दिया, उससे हम सीखते हैं कि यहोवा को खुश करने के लिए हमें भी सामरी आदमी की तरह उदार होना चाहिए।

7. यहोवा के काम करने का तरीका ही सबसे बढ़िया है, इस बात पर हम अपना यकीन कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

7 मसीहियों के पास उदार होने के कई कारण हैं। एक कारण हमें उस घटना से पता चलता है, जो अदन के बाग में हुई थी। शैतान ने दावा किया कि अगर आदम और हव्वा यहोवा की आज्ञा तोड़ दें और सिर्फ खुद के बारे में सोचें, तो वे ज़्यादा खुश रहेंगे। वे दोनों उसकी बातों में आ गए। हव्वा स्वार्थी हो गयी, उसने परमेश्‍वर के समान बनने की कोशिश की। आदम भी स्वार्थी हो गया और उसने परमेश्‍वर से ज़्यादा अपनी पत्नी को खुश करने की कोशिश की। (उत्प. 3:4-6) इसका बहुत भयानक अंजाम हुआ। इससे साफ पता चलता है कि स्वार्थी होने से किसी को भी खुशी नहीं मिल सकती। लेकिन अगर हम निस्वार्थ और उदार बनें, तो हम यह यकीन ज़ाहिर कर रहे होंगे कि यहोवा के काम करने का तरीका ही सबसे बढ़िया है।

यहोवा से मिला काम उदारता से कीजिए

8. आदम और हव्वा को दूसरों की खुशी के बारे में क्यों सोचना चाहिए था?

8 अदन के बाग में परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा को कुछ हिदायतें दी थीं। ये ऐसी हिदायतें थीं, जो उन्हें दूसरों की भलाई के बारे में सोचने के लिए उभारतीं, जबकि उस वक्‍त वे अकेले इंसान थे। यहोवा ने उन्हें हिदायतें दीं कि वे बच्चे पैदा करके धरती को आबाद करें और पूरी धरती को खूबसूरत फिरदौस बनाएँ। (उत्प. 1:28) आदम और हव्वा को अपने बच्चों की खुशी के बारे में सोचना चाहिए था, ठीक जैसे यहोवा ने अपने बच्चों यानी इंसानों की खुशी के बारे में सोचा। वह चाहता था कि पूरी धरती फिरदौस बने। यह बहुत बड़ा काम था! इसे आदम और हव्वा को अपने पूरे परिवार के साथ मिलकर करना था।

9. धरती को फिरदौस बनाने में इंसानों को खुशी क्यों मिलती?

9 धरती को फिरदौस बनाने के लिए परिपूर्ण इंसानों को यहोवा के साथ मिलकर काम करना था। इससे यहोवा की मरज़ी पूरी होती और वे उसके विश्राम में दाखिल होते। (इब्रा. 4:11) ज़रा सोचिए, यह काम कितना मज़ेदार और संतोष-भरा होता! दूसरों की भलाई के लिए खुद को लगा देने से उन्हें बेहद खुशी मिलती और यहोवा उन्हें बेशुमार आशीषें देता।

10, 11. प्रचार करने और चेले बनाने की ज़िम्मेदारी हम कैसे निभा सकते हैं?

10 आज हमें यहोवा ने एक खास काम दिया है। वह चाहता है कि हम लोगों को प्रचार करें और उन्हें यीशु का चेला बनाएँ। इसके लिए हमारे दिल में लोगों के लिए परवाह होनी चाहिए। असल में हम प्रचार का काम तभी करते रह पाएँगे, जब हमारा इरादा सही होगा यानी हममें यहोवा और लोगों के लिए प्यार होगा।

11 पौलुस ने कहा था कि वह और दूसरे मसीही “परमेश्‍वर के सहकर्मी” हैं, क्योंकि वे प्रचार करते हैं और लोगों को सच्चाई सिखाते हैं। (1 कुरिं. 3:6, 9) आज जब हम प्रचार करने में ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्‍त देते हैं, उदारता से अपना साधन और अपनी ताकत लगाते हैं, तो हम भी “परमेश्‍वर के सहकर्मी” बनते हैं। यह हमारे लिए बड़े सम्मान की बात है।

किसी को सच्चाई सिखाने से हमें बहुत खुशी मिलती है (पैराग्राफ 12 देखिए)

12, 13. बाइबल अध्ययन कराने से क्या फायदे होते हैं?

12 प्रचार करने और सिखाने में अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा वक्‍त और ताकत लगाने से हमें बहुत खुशी मिलती है। हममें से कई भाई-बहन ऐसा ही महसूस करते हैं, जो बाइबल अध्ययन कराते हैं। जब हमारे विद्यार्थी बाइबल की सही समझ पाते हैं और उनका चेहरा खिल उठता है, तो यह देखकर हमें बहुत खुशी होती है। यही नहीं, जब उनका विश्‍वास बढ़ता है, वे अपने जीवन में बदलाव करते हैं और सीखी हुई बातें दूसरों को बताना शुरू करते हैं, तो इससे भी हमें बड़ी खुशी मिलती है। यीशु को भी उस वक्‍त बहुत खुशी हुई, जब उसके भेजे हुए 70 प्रचारक “खुशी-खुशी लौटे।” उन प्रचारकों को कई अच्छे अनुभव हुए थे।​—लूका 10:17-21.

13 पूरी दुनिया में हमारे भाई-बहन यह देखकर बहुत खुश होते हैं कि बाइबल की शिक्षाओं से किस तरह लोगों की ज़िंदगी सँवर रही है। उदाहरण के लिए, एक जवान और अविवाहित बहन टीना यहोवा की सेवा में बहुत कुछ करना चाहती थी। * इस वजह से वह पूर्वी यूरोप के एक ऐसे इलाके में जा बसी, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। वह लिखती है, “यहाँ बहुत-से लोग बाइबल के बारे में सीखना चाहते हैं और यह मुझे बहुत अच्छा लगता है। यहाँ सेवा करके मुझे बहुत खुशी मिलती है। जब मैं घर पहुँचती हूँ, तो अपने बाइबल विद्यार्थियों के बारे में सोचती हूँ कि उनकी क्या चिंताएँ और परेशानियाँ हैं। मैं अपनी परेशानियाँ तो भूल ही जाती हूँ, बस यही सोचती रहती हूँ कि किस तरह अपने विद्यार्थियों का हौसला बढ़ाऊँ और उनकी मदद करूँ। मुझे यकीन हो गया है कि ‘लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।’”​—प्रेषि. 20:35.

प्रचार करते वक्‍त हर घर में जाने से हम लोगों को राज का संदेश सुनने का मौका देते हैं (पैराग्राफ 14 देखिए)

14. जब लोग खुशखबरी नहीं सुनते, तब भी आप प्रचार करने से खुशी कैसे पा सकते हैं?

14 जब लोग खुशखबरी नहीं सुनते, तब भी प्रचार करने से हमें खुशी मिलती है। वह इसलिए कि यहोवा हमसे वही चाहता है, जो उसने यहेजकेल से कहा था, “चाहे वे सुनें या न सुनें, तू उन्हें मेरा संदेश ज़रूर देना।” (यहे. 2:7; यशा. 43:10) चाहे कुछ लोग हमारे संदेश की कदर न करें, लेकिन यहोवा हमारी कोशिशों की कदर करता है। (इब्रानियों 6:10 पढ़िए।) एक भाई ने अपनी प्रचार सेवा के बारे में कहा, “हम लगाते हैं, पानी देकर सींचते हैं और प्रार्थना करते हैं कि यहोवा लोगों की दिलचस्पी बढ़ाए।”​—1 कुरिं. 3:6.

हम खुश कैसे रह सकते हैं?

15. क्या हमें सिर्फ तभी उदार होना चाहिए, जब लोग एहसान मानते हैं? समझाइए।

15 यहोवा की तरह यीशु भी चाहता है कि हम खुश रहें, इसलिए उसने कहा कि हम उदार हों। हमारी उदारता का बहुत-से लोगों पर अच्छा असर पड़ता है। यीशु ने कहा, “दिया करो और लोग तुम्हें भी देंगे। वे तुम्हारी झोली में नाप भर-भरकर, दबा-दबाकर, अच्छी तरह हिला-हिलाकर और ऊपर तक भरकर डालेंगे। इसलिए कि जिस नाप से तुम नापते हो, बदले में वे भी उसी नाप से तुम्हारे लिए नापेंगे।” (लूका 6:38) मगर यह ज़रूरी नहीं कि हमारी उदारता का हर कोई एहसान माने। लेकिन जो एहसान मानते हैं, वे हमारी उदारता देखकर शायद उदार बनें। इस वजह से अगर कभी ऐसा लगे कि लोग एहसानमंद नहीं हैं, तो भी उदारता दिखाना मत छोड़िए। क्या पता, आपकी उदारता के एक काम से बहुत-सी भलाई हो।

16. हमें उदारता किन्हें दिखानी चाहिए और क्यों?

16 जो लोग दिल से उदार होते हैं, वे निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करते हैं। वे बदले में कुछ पाने की उम्मीद नहीं करते। यीशु ने कहा था, “जब तू दावत दे, तो गरीबों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को न्यौता देना। तब तुझे खुशी मिलेगी क्योंकि तुझे बदले में देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है।” (लूका 14:13, 14) बाइबल में लिखा है, “दरियादिल इंसान पर आशीषें बरसेंगी” और “सुखी है वह इंसान जो दीन-दुखियों का लिहाज़ करता है।” (नीति. 22:9; भज. 41:1) लोगों की मदद करने से हमें सच में खुशी मिलती है।

17. उदारता दिखाने के कुछ तरीके क्या हैं, जिनसे हमें खुशी मिल सकती है?

17 जब पौलुस ने यीशु की यह बात कही कि “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है,” तो वह सिर्फ खाने और कपड़े जैसी चीज़ें देने की बात नहीं कर रहा था। हम लोगों को और भी कुछ दे सकते हैं। हम उनका हौसला बढ़ा सकते हैं, बाइबल से बढ़िया सलाह दे सकते हैं और दूसरे तरीकों से उनकी मदद कर सकते हैं। (प्रेषि. 20:31-35) पौलुस ने अपनी बातों और कामों से सिखाया कि हमें किस तरह उदार होना चाहिए। जैसे, हमें लोगों को अपना समय देना चाहिए, उनकी खातिर मेहनत करनी चाहिए, उन पर ध्यान देना चाहिए और उनसे प्यार करना चाहिए।

18. उदार होने के बारे में अध्ययन करनेवाले कई लोगों का क्या कहना है?

18 इंसानों के व्यवहार पर अध्ययन करनेवालों ने पाया है कि किसी को कुछ देने से लोगों को खुशी मिलती है। एक लेख में बताया गया है कि लोग खुद कहते हैं कि उन्हें तब ज़्यादा खुशी मिलती है, जब वे दूसरों के लिए कुछ अच्छा करते हैं। अध्ययन करनेवाले कहते हैं कि दूसरों की मदद करने पर हमें लगता है कि हमने ज़िंदगी में कुछ किया है। इस वजह से कुछ विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि अगर आप ज़्यादा खुश और तंदुरुस्त रहना चाहते हैं, तो स्वयंसेवा कीजिए। उनकी इस बात से हमें हैरानी नहीं होती, क्योंकि हमारे सृष्टिकर्ता यहोवा ने हमेशा से यही कहा है कि ज़्यादा खुशी देने में है।​—2 तीमु. 3:16, 17.

हमेशा उदार रहिए

19, 20. आपको उदार क्यों होना चाहिए?

19 आज हमारे आस-पास के लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, इसलिए उदार होना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है। लेकिन यीशु ने जो दो सबसे बड़ी आज्ञाएँ बतायीं, उनसे हमें मदद मिलती है। पहली, हमें यहोवा से पूरे दिल, पूरी जान, पूरे दिमाग और पूरी ताकत से प्यार करना चाहिए और दूसरी, हमें अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना चाहिए, जैसे हम खुद से करते हैं। (मर. 12:28-31) इस लेख में हमने सीखा कि जो लोग यहोवा से प्यार करते हैं, वे उसकी मिसाल पर चलते हैं। यहोवा और यीशु दोनों ही उदार हैं और वे हमें बढ़ावा देते हैं कि हम भी उनकी तरह उदार हों, क्योंकि ऐसा करने से हमें खुशी मिलेगी। हम यहोवा और लोगों के लिए जो कुछ करते हैं, अगर वह उदारता से करें, तो हम यहोवा का आदर कर रहे होंगे। साथ ही, इससे हमें और दूसरों को भी फायदा होगा।

20 इसमें कोई शक नहीं कि उदार होने और लोगों की मदद करने के लिए जो कुछ आपसे बन पड़ता है, वह आप कर रहे हैं, खास तौर से भाई-बहनों के लिए। (गला. 6:10) अगर आप ऐसा करते रहें, तो लोग आपके एहसानमंद होंगे, आपसे प्यार करेंगे और आप भी खुश रहेंगे। बाइबल में लिखा है, “दरियादिल इंसान फलता-फूलता है, जो दूसरों को ताज़गी पहुँचाता है उसे खुद ताज़गी मिलती है।” (नीति. 11:25) हम प्रचार सेवा में और ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं में कई तरीकों से निस्वार्थ भाव से और उदारता से लोगों की मदद कर सकते हैं। आइए इनमें से कुछ तरीकों के बारे में अगले लेख में देखें।

^ पैरा. 13 नाम बदल दिया गया है।