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क्या आपके पास सही-सही जानकारी है?

क्या आपके पास सही-सही जानकारी है?

“जो [पूरी बात] सुनने से पहले ही जवाब देता है, वह मूर्खता का काम करता है और अपनी बेइज़्ज़ती कराता है।”​—नीति. 18:13.

गीत: 43, 40

1, 2. (क) हमें कौन-सी काबिलीयत बढ़ानी चाहिए और क्यों? (ख) इस लेख में हम किन बातों पर चर्चा करेंगे?

एक काबिलीयत हम सभी सच्चे मसीहियों में होनी चाहिए। वह है कि जानकारी की सही-सही जाँच करना और उसके आधार पर सही नतीजे पर पहुँचना। (नीति. 3:21-23; 8:4, 5) अगर हम यह काबिलीयत न बढ़ाएँ, तो हम बड़ी आसानी से शैतान और इस दुनिया के झाँसे में आ सकते हैं। हमारी सोच बिगड़ सकती है। (इफि. 5:6; कुलु. 2:8) किसी मामले के बारे में पूरी जानकारी होने से ही हम सही नतीजे पर पहुँच सकते हैं, वरना इसका अंजाम बुरा हो सकता है। नीतिवचन 18:13 में लिखा है, “जो [पूरी बात] सुनने से पहले ही जवाब देता है, वह मूर्खता का काम करता है और अपनी बेइज़्ज़ती कराता है।”

2 इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि पूरी जानकारी हासिल करने और सही नतीजे पर पहुँचने में कौन-सी मुश्‍किलें आती हैं। हम बाइबल से कुछ उदाहरण और उन सिद्धांतों पर भी चर्चा करेंगे, जिनकी मदद से हम जानकारी की ठीक से जाँच करने की अपनी काबिलीयत बढ़ा सकते हैं।

“हर बात” पर यकीन मत कीजिए

3. हमें नीतिवचन 14:15 में दिया सिद्धांत क्यों मानना चाहिए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 आज जानकारी का अंबार लगा है। इंटरनेट, टीवी, अखबारों और किताबों-पत्रिकाओं से हमें ढेरों जानकारी मिलती है। इसके अलावा हमारे दोस्त और जान-पहचानवाले ई-मेल और मोबाइल पर मैसेज के ज़रिए खबरें भेजते रहते हैं। वे चाहते हैं कि हमें इन बातों की जानकारी हो। लेकिन ऐसे लोग भी हैं, जो जानबूझकर झूठी खबरें फैलाते हैं या सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। इस वजह से हमें सावधान रहना चाहिए और जानकारी की ठीक से जाँच करनी चाहिए। इसमें बाइबल का कौन-सा सिद्धांत हमारी मदद कर सकता है? नीतिवचन 14:15 में दिया सिद्धांत, जहाँ लिखा है, “नादान हर बात पर आँख मूँदकर यकीन करता है, लेकिन होशियार इंसान हर कदम सोच-समझकर उठाता है।”

4. (क) फिलिप्पियों 4:8, 9 में दिए सिद्धांत के मुताबिक हमें कौन-सी जानकारी पढ़नी चाहिए? (ख) हमारे पास सही जानकारी होना क्यों ज़रूरी है? (“ सही-सही जानकारी पाने के कुछ इंतज़ाम” नाम का बक्स भी देखिए।)

4 जब हमारे पास सही-सही जानकारी होगी, तभी हम सही फैसला ले पाएँगे। इस वजह से हमें बहुत सोच-समझकर चुनना चाहिए कि हम कौन-सी जानकारी पढ़ेंगे। (फिलिप्पियों 4:8, 9 पढ़िए।) कई वेबसाइट पर दी खबरें सही नहीं होतीं और कई बार ई-मेल या मैसेज के ज़रिए मिली जानकारी के भी सही होने के पक्के सबूत नहीं होते। इन्हें पढ़ने में हमें अपना वक्‍त बरबाद नहीं करना चाहिए। हमें ऐसे लोगों की वेबसाइट पर तो बिलकुल नहीं जाना चाहिए, जिन्होंने सच्चाई छोड़ दी है और साक्षियों के खिलाफ हो गए हैं। उनका मकसद होता है कि परमेश्‍वर पर से साक्षियों का विश्‍वास खत्म हो जाए, इसलिए वे सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। अगर हमारे पास गलत जानकारी होगी, तो हमारा फैसला भी गलत हो सकता है। इस बात को कभी कम मत आँकिए कि गलत जानकारी का आपके दिल और दिमाग पर कितना बुरा असर हो सकता है।​—1 तीमु. 6:20, 21.

5. इसराएलियों ने कौन-सी झूठी खबर सुनी और इसका उन पर क्या असर हुआ?

5 झूठी खबरों पर यकीन करना खतरनाक हो सकता है। एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब मूसा ने 12 जासूसों को वादा किया गया देश देखने भेजा, तो 10 जासूसों ने आकर सही खबर नहीं दी। (गिन. 13:25-33) उन्होंने वहाँ के लोगों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बातें कीं, जिस वजह से यहोवा के लोग डर गए, उनकी हिम्मत टूट गयी। (गिन. 14:1-4) लोगों ने सोचा होगा कि जासूसों में से ज़्यादातर ने बुरी खबर दी है, तो उन्हीं की बात सच होगी। उन्होंने यहोशू और कालेब जैसे भरोसेमंद आदमियों की सही खबर पर यकीन नहीं किया। (गिन. 14:6-10) पूरी जानकारी लेने और यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय उन्होंने बुरी खबर पर यकीन कर लिया। उन्होंने कितनी बड़ी मूर्खता की!

6. हमें यहोवा के लोगों के बारे में बुरी खबरें सुनने पर हैरान क्यों नहीं होना चाहिए?

6 जब हम यहोवा के लोगों के बारे में कोई खबर सुनते हैं, तब हमें और भी ज़्यादा सावधान रहना चाहिए। यह कभी मत भूलिए कि परमेश्‍वर के वफादार सेवकों पर दोष लगानेवाला शैतान है। (प्रका. 12:10) यीशु ने खबरदार किया था कि विरोधी हमारे बारे में “तरह-तरह की झूठी और बुरी बातें” कहेंगे। (मत्ती 5:11) इस बात पर ध्यान देने से हम उस वक्‍त हैरान नहीं होंगे, जब हमें यहोवा के लोगों के बारे में बुरी या गलत खबरें सुनने को मिलेंगी।

7. कोई मैसेज या ई-मेल भेजने से पहले हमें क्या करना चाहिए?

7 क्या आपको अपने दोस्तों को ई-मेल और मोबाइल पर मैसेज भेजना पसंद है? कोई नयी खबर पढ़ने या नया अनुभव सुनने पर आपको कैसा लगता है? क्या आपको लगता है कि एक न्यूज़ रिपोर्टर की तरह लोगों को यह खबर देनेवाले आप सबसे पहले हों? लेकिन वह मैसेज या ई-मेल भेजने से पहले खुद से पूछिए, ‘क्या मुझे यकीन है कि जो जानकारी मैं लोगों को देनेवाला हूँ, वह सच है? क्या इसके मेरे पास पक्के सबूत हैं?’ अगर आपको उस जानकारी पर पूरा यकीन नहीं है, तो आप अनजाने में भाई-बहनों में गलत जानकारी फैला सकते हैं। थोड़ा-सा भी शक होने पर उसे फौरन डिलीट कर दीजिए।

8. (क) कुछ देशों में विरोधियों ने क्या किया है? (ख) क्या करने से हम अनजाने में विरोधियों का साथ दे रहे होंगे?

8 कोई मैसेज या ई-मेल फौरन भेजने से एक और नुकसान हो सकता है। कुछ देशों में हमारे काम पर कुछ पाबंदियाँ लगी हैं या पूरी तरह रोक लगी है। इन देशों में शायद विरोधी जानबूझकर ऐसी खबरें फैलाएँ, जिनसे हमारे अंदर डर समा सकता है या एक-दूसरे पर से हमारा भरोसा उठा सकता है। गौर कीजिए कि भूतपूर्व सोवियत संघ में क्या हुआ था। वहाँ की खुफिया पुलिस ने यह अफवाह फैला दी थी कि कई ज़िम्मेदारी निभानेवाले भाइयों ने संगठन से गद्दारी की है। * दुख की बात है कि बहुत-से लोगों ने इस अफवाह को सच मान लिया था और यहोवा के संगठन से नाता तोड़ लिया था। शुक्र है कि बाद में उनमें से बहुत-से लोग वापस आ गए। लेकिन कुछ वापस नहीं आए, क्योंकि उनका विश्‍वास पूरी तरह खत्म हो गया। (1 तीमु. 1:19) हमारा यह हश्र न हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? ऐसी खबरें किसी को मत भेजिए, जो बुरी हैं या जिनके पक्के सबूत नहीं हैं। हर बात पर यकीन मत कीजिए, बल्कि पता लगाइए कि वह सही है या नहीं।

आधी-अधूरी जानकारी

9. सही नतीजे पर पहुँचने में और कौन-सी मुश्‍किल आती है?

9 जब हमें कोई ऐसी खबर मिलती है, जो आधी सच है या जिसके बारे में हमें पूरी जानकारी नहीं है, तब भी हमारे लिए सही नतीजे पर पहुँचना मुश्‍किल हो सकता है। चाहे किसी खबर में थोड़ी-सी सच्चाई क्यों न हो, फिर भी वह लोगों को पूरी तरह गुमराह कर सकती है। हम ऐसी खबरों से कैसे बच सकते हैं?​—इफि. 4:14.

10. (क) इसराएलियों के बीच किस वजह से युद्ध होने ही वाला था? (ख) यह युद्ध किस वजह से टल गया?

10 गौर कीजिए कि यहोशू के दिनों में यरदन नदी के पश्‍चिम में रहनेवाले इसराएलियों के साथ क्या हुआ। (यहो. 22:9-34) उन्हें खबर मिली कि यरदन नदी के पूरब में रहनेवाले इसराएलियों ने नदी के पास एक बड़ी और शानदार वेदी बनायी है। यह खबर सच थी, मगर अधूरी थी। इस वजह से पश्‍चिम में रहनेवाले इसराएलियों ने सोचा कि उनके भाई यहोवा के खिलाफ चले गए हैं, इसलिए वे उनसे लड़ने के लिए तैयार हो गए। (यहोशू 22:9-12 पढ़िए।) लेकिन हमला करने से पहले उन्होंने भरोसेमंद आदमियों के एक दल को पूरी जानकारी लेने के लिए पूरब में भेजा। उन आदमियों को क्या पता चला? यही कि पूरब में रहनेवाले इसराएलियों ने वेदी बनायी है, मगर झूठे देवी-देवताओं को बलिदान चढ़ाने के लिए नहीं। उन्होंने यह वेदी एक स्मारक के तौर पर बनायी, ताकि भविष्य में सभी यह जानें कि वे भी यहोवा के वफादार सेवक थे। पश्‍चिम में रहनेवाले इसराएली खुश हुए होंगे कि उन्होंने आधी-अधूरी खबर सुनकर अपने भाइयों से युद्ध नहीं किया, बल्कि समय निकालकर पूरी जानकारी ली।

11. (क) मपीबोशेत के साथ नाइंसाफी किस वजह से हुई? (ख) दाविद यह नाइंसाफी करने से कैसे बच सकता था?

11 हो सकता है कि हमारे बारे में ऐसी बातें फैलायी जाएँ, जो आधी सच हों या जिनके बारे में पूरी जानकारी न दी गयी हो। इस वजह से हम पर अन्याय किया जा सकता है। ज़रा राजा दाविद और मपीबोशेत के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। दाविद ने मपीबोशेत पर बहुत कृपा की और उसे उसके दादा शाऊल की सारी ज़मीन लौटा दी। (2 शमू. 9:6, 7) एक दिन दाविद को मपीबोशेत के बारे में झूठी खबर दी गयी। मगर दाविद ने यह पता नहीं किया कि यह खबर सच है या नहीं और तुरंत फैसला सुना दिया कि मपीबोशेत की पूरी ज़मीन ले ली जाए। (2 शमू. 16:1-4) बाद में जब उसकी मपीबोशेत से बात हुई, तब उसे पता चला कि उससे गलती हो गयी है। उसने मपीबोशेत को उसकी आधी ज़मीन लौटा दी। (2 शमू. 19:24-29) अगर दाविद ने जल्दबाज़ी में फैसला करने के बजाय वक्‍त निकालकर पूरी जानकारी हासिल की होती, तो उससे यह नाइंसाफी नहीं होती।

12, 13. (क) जब यीशु को बदनाम किया गया, तो उसने क्या किया? (ख) अगर कोई हमारे बारे में कुछ गलत कहता है, तो हम क्या कर सकते हैं?

12 अगर कोई आपको बदनाम करने की कोशिश करे, तो आप क्या कर सकते हैं? यीशु और यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में सोचिए। उन्हें भी बदनाम किया गया था। (मत्ती 11:18, 19 पढ़िए।) ऐसे में यीशु ने क्या किया? वह हर समय सबको अपनी सफाई देते नहीं फिरा। इसके बजाय उसने कहा, “बुद्धि अपने कामों से सही साबित होती है।” इस तरह उसने लोगों को सबूतों पर यानी उसके कामों और शिक्षाओं पर ध्यान देने के लिए कहा।

13 यीशु से हम एक अनमोल सबक सीख सकते हैं। हो सकता है कि कभी-कभी लोग हमारे बारे में कुछ गलत कहें या हमारी बुराई करें। इससे हमारा नाम खराब हो सकता है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हम अपनी ज़िंदगी इस तरह जी सकते हैं, ताकि लोगों को उस झूठ पर यकीन न हो। हर मसीही यीशु की तरह अपना चालचलन शुद्ध रखकर अपनी बदनामी दूर कर सकता है।

क्या आपको अपनी समझ पर ज़्यादा भरोसा है?

14, 15. अपनी समझ पर ज़्यादा भरोसा करना कैसे एक फंदा बन सकता है?

14 सही नतीजे पर पहुँचने में पूरी-पूरी जानकारी हासिल करना ही एक समस्या नहीं है। इसमें एक और समस्या है, हमारी अपरिपूर्णता। हो सकता है कि हम सालों से यहोवा की सेवा वफादारी से कर रहे हों, हमारी सोचने-समझने की काबिलीयत बहुत अच्छी हो और हम फैसले भी सही लेते हों। शायद इस वजह से लोग हमारी काफी इज़्ज़त करते हों। लेकिन यही बात हमारे लिए एक फंदा बन सकती है। कैसे?

15 हम अपनी समझ पर बहुत ज़्यादा भरोसा करने लग सकते हैं। हम अपनी भावनाओं और अपने विचारों को बहुत अहमियत देने लग सकते हैं। हमें लग सकता है कि भले ही किसी मामले की हमारे पास पूरी जानकारी न हो, फिर भी हम उसे अच्छी तरह समझ सकते हैं। लेकिन यह बहुत खतरनाक हो सकता है। बाइबल में साफ चेतावनी दी गयी है कि हम अपनी समझ का सहारा न लें।​—नीति. 3:5, 6; 28:26.

16. (क) इस काल्पनिक घटना में एक रेस्तराँ में क्या होता है? (ख) अभय फौरन किस नतीजे पर पहुँच जाता है?

16 कल्पना कीजिए कि अभय नाम का एक भाई, जो काफी सालों से प्राचीन है, शाम को एक रेस्तराँ में बैठा है। अचानक उसे अपनी मंडली का ही एक प्राचीन नीरज दिखायी देता है। अभय उसे दूसरी मेज़ पर एक औरत के साथ बैठा देखकर चौंक जाता है, क्योंकि वह औरत उसकी पत्नी नहीं है। वह और नीरज खुलकर हँस रहे हैं। फिर वे प्यार से एक-दूसरे को गले लगाते हैं। यह देखकर अभय और भी परेशान हो जाता है। वह तुरंत सोचने लगता है कि क्या अब नीरज का तलाक हो जाएगा? उसकी पत्नी और बच्चों का क्या होगा? अभय ने पहले भी इस तरह घर तबाह होते देखे हैं। अगर आप अभय की जगह होते, तो आपको कैसा लगता?

17. (क) इस काल्पनिक घटना में बाद में अभय को क्या पता चलता है? (ख) इससे हम क्या सीखते हैं?

17 हालाँकि अभय फौरन इस नतीजे पर पहुँच जाता है कि नीरज अपनी पत्नी से बेवफाई कर रहा है, लेकिन क्या उसे पूरी सच्चाई पता है? उसी रात अभय नीरज को फोन करता है। उसे पता चलता है कि वह औरत नीरज की सगी बहन है। वह दूसरे शहर में रहती है और उन्हें एक-दूसरे को मिले सालों हो गए थे। उस दिन वह उस शहर से गुज़र रही थी और उसके पास थोड़ा ही वक्‍त था। इस वजह से वह और नीरज एक रेस्तराँ में मिले। मगर नीरज की पत्नी किसी वजह से नहीं आ पायी। यह सब जानकर अभय ने शुक्र मनाया होगा कि वह जिस नतीजे पर पहुँचा था, उस बारे में उसने किसी को नहीं बताया। इस उदाहरण से हम क्या सीखते हैं? हम चाहे कितने भी सालों से यहोवा की सेवा कर रहे हों, किसी मामले में सही नतीजे पर पहुँचने के लिए पूरी जानकारी हासिल करना बहुत ज़रूरी है।

18. अगर हम किसी भाई के बारे में कुछ बुरा सुनते हैं, तो हम किस वजह से उस पर यकीन कर सकते हैं?

18 किसी मामले की जाँच करना तब और भी मुश्‍किल हो सकता है, जब उसमें कोई ऐसा भाई शामिल हो, जिससे हमारी नहीं बनती। अगर हम अपने बीच के मनमुटाव के बारे में ही सोचते रहें, तो हम उसे शक की निगाह से देखने लग सकते हैं। फिर अगर हम उस भाई के बारे में कुछ बुरा सुनते हैं, तो शायद हम फौरन यकीन कर लें, भले ही उस बात का कोई सबूत न हो। इससे क्या पता चलता है? अगर हम अपने भाई के बारे में बुरा सोचें, तो हम बिना सबूतों के गलत नतीजे पर पहुँच सकते हैं। (1 तीमु. 6:4, 5) इस वजह से हमें अपने दिल में किसी भाई के लिए कोई बुरी भावना नहीं रखनी चाहिए। हमेशा याद रखिए कि यहोवा चाहता है कि हम अपने भाई-बहनों से प्यार करें और उन्हें दिल से माफ करें।​—कुलुस्सियों 3:12-14 पढ़िए।

बाइबल के सिद्धांतों से हमारी हिफाज़त होती है

19, 20. (क) बाइबल के किन सिद्धांतों की मदद से हम जानकारी की सही-सही जाँच कर सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम क्या देखेंगे?

19 आज सही-सही जानकारी पाना और उसकी जाँच करना बहुत मुश्‍किल है। इसकी वजह क्या है? ज़्यादातर जानकारी आधी-अधूरी होती है या पूरी तरह सच नहीं होती। इसके अलावा हम अपरिपूर्ण हैं। ऐसे में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? परमेश्‍वर के वचन में दिए सिद्धांत हमारी मदद कर सकते हैं। जैसे, एक सिद्धांत है कि पूरी बात सुने बिना जवाब देना मूर्खता है। (नीति. 18:13) दूसरा सिद्धांत है कि हमें हर बात पर आँख मूँदकर यकीन नहीं कर लेना चाहिए, बल्कि जाँच-परख करनी चाहिए कि वह सच है या नहीं। (नीति. 14:15) एक और सिद्धांत है कि भले ही हमें यहोवा की सेवा करते कितने भी साल हो गए हों, हमें अपनी समझ का सहारा नहीं लेना चाहिए। (नीति. 3:5, 6) अगर हम बाइबल के ऐसे सिद्धांतों को ध्यान में रखें और किसी नतीजे पर पहुँचने के लिए सही जानकारी हासिल करें और सोच-समझकर फैसला करें, तो हमारी हिफाज़त होगी।

20 किसी मामले के बारे में सच्चाई जानना एक और वजह से मुश्‍किल हो सकता है। इंसानों की फितरत होती है कि वे जो देखते हैं, उसी के आधार पर किसी नतीजे पर पहुँच जाते हैं। अगले लेख में हम देखेंगे कि किन हालात में हम ऐसी गलती कर सकते हैं। हम यह भी सीखेंगे कि ऐसी गलती करने से हम कैसे बच सकते हैं।

^ पैरा. 8 2004 यहोवा के साक्षियों की सालाना किताब (अँग्रेज़ी) के पेज 111-112 और 2008 यहोवा के साक्षियों की सालाना किताब (अँग्रेज़ी) के पेज 133-135 देखिए।