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नौजवानो, आपकी ज़िंदगी खुशहाल हो सकती है!

नौजवानो, आपकी ज़िंदगी खुशहाल हो सकती है!

“तू मुझे ज़िंदगी की राह दिखाता है।”​—भज. 16:11.

गीत: 133, 89

1, 2. टोनी के अनुभव से कैसे पता चलता है कि आप ज़िंदगी में बदलाव कर सकते हैं?

टोनी की परवरिश ऐसे घर में हुई, जहाँ पिता का साया नहीं था। वह हाई स्कूल में पढ़ता था, लेकिन उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। उसने तो सोच लिया था कि वह परीक्षा से पहले ही स्कूल छोड़ देगा। टोनी अकसर शनिवार-रविवार को फिल्में देखने जाता था या दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करता था। ऐसा नहीं कि वह ड्रग्स लेता था और मार-पीट करता था, लेकिन वह यह नहीं जानता था कि उसे ज़िंदगी में करना क्या है। उसे यह भी यकीन नहीं था कि एक ईश्‍वर है। एक दिन टोनी की मुलाकात दो साक्षियों से हुई। उसने उन्हें बताया कि उसे तो शक होता है कि ईश्‍वर है भी या नहीं। साक्षियों ने उसे दो ब्रोशर पढ़ने के लिए दिए। एक था, वॉज़ लाइफ क्रिएटेड? और दूसरा, जीवन की शुरूआत, पाँच सवाल​—जवाब पाना ज़रूरी

2 जब अगली बार साक्षी टोनी से मिलने आए, तो उन्होंने देखा कि उसकी सोच बदल गयी है। उसने उन्हें बताया, “अब मुझे यकीन हो गया है कि ईश्‍वर है।” ब्रोशर की खस्ता हालत देखकर लग रहा था कि उसने उन्हें बार-बार पढ़ा। फिर वह बाइबल का अध्ययन करने लगा और धीरे-धीरे ज़िंदगी के बारे में उसकी सोच बदलने लगी। जब से उसने बाइबल का अध्ययन शुरू किया, वह स्कूल का बहुत अच्छा विद्यार्थी हो गया। यह देखकर स्कूल का प्रिंसिपल भी हैरान रह गया। उसने टोनी से कहा, “तुम बहुत बदल गए हो! क्लास में तुम्हारे नंबर भी अच्छे आने लगे हैं। क्या यह इसलिए हो रहा है कि तुम साक्षियों से संगति कर रहे हो?” टोनी ने कहा, “हाँ, उन्हीं की वजह से।” उसने प्रिंसिपल को वे बातें बतायीं, जो वह सीख रहा था। वह हाई स्कूल की परीक्षा में पास हो गया। आज टोनी एक सहायक सेवक है और पायनियर सेवा कर रहा है। वह इस बात से बहुत खुश है कि अब उसका एक प्यारा पिता है, यहोवा!​—भज. 68:5.

यहोवा की आज्ञा मानिए, कामयाबी हासिल कीजिए

3. यहोवा नौजवानों को क्या सलाह देता है?

3 टोनी का अनुभव एक बार फिर हमें एहसास दिलाता है कि यहोवा को नौजवानों की सच में परवाह है। वह चाहता है कि आप ज़िंदगी में सच्ची कामयाबी पाएँ और अपनी ज़िंदगी से खुश रहें। इस वजह से वह आपको सलाह देता है, “अपनी जवानी के दिनों में अपने महान सृष्टिकर्ता को याद रख।” (सभो. 12:1) यह सलाह मानना हमेशा आसान नहीं होता, लेकिन यह नामुमकिन भी नहीं। परमेश्‍वर की मदद से आप न सिर्फ जवानी में कामयाबी हासिल कर सकते हैं, बल्कि बड़े होने पर भी। इसे समझने के लिए आइए देखें कि इसराएलियों को कनान देश पर जीत पाने में और दाविद को लंबे-चौड़े गोलियात को मार गिराने में किस बात से मदद मिली।

4, 5. जिस तरह इसराएलियों ने कनान पर और दाविद ने गोलियात पर जीत हासिल की, उससे हम कौन-सी ज़रूरी बात सीखते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।)

4 जब इसराएली वादा किए गए देश में कदम रखनेवाले थे, तो यहोवा ने उन्हें कौन-सी हिदायतें दीं? क्या उसने उन्हें युद्ध की कला सीखने या और भी अच्छे योद्धा बनने के लिए कहा? जी नहीं! (व्यव. 28:1, 2) उसने कहा कि वे उसकी आज्ञा मानें और उस पर भरोसा रखें। (यहो. 1:7-9) शायद इंसानी नज़रिए से यह सलाह सही न लगे, लेकिन इसराएलियों के लिए यह सबसे अच्छी सलाह थी। वह इसलिए कि यहोवा ने उन्हें कई बार कनानियों पर जीत दिलायी। (यहो. 24:11-13) इस घटना से हम सीखते हैं कि यहोवा की आज्ञा मानने के लिए विश्‍वास होना ज़रूरी है और इस तरह का विश्‍वास हमेशा  कामयाबी दिलाता है। यह बात बीते दिनों में सच थी और आज भी सच है।

5 अब दूसरे उदाहरण पर ध्यान दीजिए। गोलियात पलिश्‍तियों का एक वीर योद्धा था। वह करीब साढ़े नौ फुट लंबा था और उसके पास खतरनाक हथियार रहते थे। (1 शमू. 17:4-7) लेकिन दाविद के पास क्या था? सिर्फ एक गोफन और परमेश्‍वर पर उसका विश्‍वास। जिस इंसान में विश्‍वास न होता, वह शायद यही सोचता कि दाविद गोलियात का मुकाबला करके मूर्खता कर रहा है! मगर हकीकत तो यह थी कि गोलियात मूर्ख था।​—1 शमू. 17:48-51.

6. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

6 पिछले लेख में हमने चार बातों पर चर्चा की थी, जिनसे हम ज़िंदगी में और भी ज़्यादा खुश और कामयाब हो सकते हैं। हमने सीखा था कि हमें परमेश्‍वर को जानने की अपनी ज़रूरत पूरी करनी चाहिए, उन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए जो यहोवा से प्यार करते हैं, बढ़िया लक्ष्य रखने चाहिए और परमेश्‍वर से मिलनेवाली आज़ादी को अनमोल समझना चाहिए। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि इन मामलों में हम किस तरह और भी फायदा पा सकते हैं। इसके लिए आइए भजन 16 में दिए कुछ सिद्धांतों पर ध्यान दें।

परमेश्‍वर को अच्छी तरह कैसे जानें?

7. (क) जो व्यक्‍ति परमेश्‍वर को अच्छी तरह जानता है, वह क्या करता है? (ख) दाविद का “भाग” क्या था और इससे उस पर क्या असर हुआ?

7 जो व्यक्‍ति परमेश्‍वर को अच्छी तरह जानता है, उसे उस पर विश्‍वास होता है और वह मामलों को उसकी नज़र से देखने की कोशिश करता है। वह परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की ताक में रहता है और हर हाल में उसकी आज्ञा मानता है। (1 कुरिं. 2:12, 13) दाविद ऐसा ही इंसान था। उसने एक भजन में लिखा, “यहोवा मेरा भाग है, मुझे दिया गया हिस्सा है, वही मेरा प्याला भरता है।” (भज. 16:5) दाविद इस बात के लिए बहुत एहसानमंद था कि यहोवा उसका “भाग” है यानी उसके और यहोवा के बीच गहरा रिश्‍ता है। उसने यहोवा की पनाह ली। (भज. 16:1) इसका दाविद पर क्या असर हुआ? उसने लिखा, “मेरे रोम-रोम में खुशी की लहर दौड़ रही है।” सच में, यहोवा के साथ गहरा रिश्‍ता होने से दाविद को बेइंतिहा खुशी मिली!​—भजन 16:9, 11 पढ़िए।

8. ऐसे कुछ काम क्या हैं, जिन्हें करने से सही मायनों में आपकी ज़िंदगी खुशहाल हो सकती है?

8 जो खुशी दाविद को मिली वह उन लोगों को कभी नहीं मिल सकती, जिनका पूरा ध्यान पैसा कमाने या मौज-मस्ती करने में लगा रहता है। (1 तीमु. 6:9, 10) कनाडा में रहनेवाला एक भाई कहता है, “सच्ची खुशी या संतुष्टि इस बात से नहीं मिलती कि हम ज़िंदगी से क्या पा सकते हैं, बल्कि इस बात से मिलती है कि हम यहोवा को क्या दे सकते हैं जो हर अच्छा तोहफा देनेवाला परमेश्‍वर है।” (याकू. 1:17) अगर आप यहोवा पर विश्‍वास बढ़ाएँ और उसकी सेवा करें, तो आप सही मायनों में कह पाएँगे कि आपने ज़िंदगी में कुछ किया है और आप खुश हैं। लेकिन सवाल उठता है, आप अपना विश्‍वास कैसे बढ़ा सकते हैं? यहोवा के साथ वक्‍त बिताने से। इस वजह से हर दिन उसका वचन पढ़िए। उसकी बनायी खूबसूरत चीज़ों को गौर से देखिए। प्यार और उसके दूसरे गुणों के बारे में गहराई से सोचिए।​—रोमि. 1:20; 5:8.

9. परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक खुद को ढालने के लिए क्या ज़रूरी है?

9 परमेश्‍वर हमारे लिए अपना प्यार कई तरीकों से ज़ाहिर करता है। कभी-कभी वह एक प्यार करनेवाले पिता की तरह हमें सुधारता है। जब दाविद को सुधारा गया, तो उसने इसकी कदर की और कहा, “मैं यहोवा की तारीफ करूँगा जिसने मुझे सलाह दी है। रात के वक्‍त भी मेरे मन की गहराई में छिपे विचार मुझे सुधारते हैं।” (भज. 16:7) दाविद ने परमेश्‍वर के विचारों पर मनन किया और उसकी सोच को अपनी सोच बनाया। उसने परमेश्‍वर की सोच के मुताबिक खुद को ढाला। अगर आप भी दाविद की मिसाल पर चलें, तो परमेश्‍वर के लिए आपका प्यार बढ़ेगा और उसे खुश करने का आपका इरादा मज़बूत होगा। तब आप एक प्रौढ़ मसीही बन पाएँगे। क्रिस्टन नाम की एक बहन बताती है, “जब मैं खोजबीन करती हूँ और बातों पर मनन करती हूँ, तो मुझे लगता है जैसे यहोवा ने वे बातें मेरे लिए ही लिखवायी हों।”

10. जैसे यशायाह 26:3 में बताया गया है, परमेश्‍वर की सोच रखने से क्या फायदे होते हैं?

10 परमेश्‍वर की सोच रखने से आप उसकी तरह देख पाते हैं कि यह दुनिया कहाँ जा रही है और इसका भविष्य क्या है। परमेश्‍वर ने आपको यह अनोखी जानकारी और समझ क्यों दी है? वह चाहता है कि आप समझें कि कौन-सी बातें ज़्यादा अहमियत रखती हैं। वह यह भी चाहता है कि आप सोच-समझकर फैसले करें और बिना डरे भविष्य का सामना करें। (यशायाह 26:3 पढ़िए।) अमरीका का रहनेवाला एक भाई जोशुआ बताता है कि यहोवा के करीब रहने से ही हम साफ समझ पाते हैं कि कौन-सी बातें अहमियत रखती हैं और कौन-सी नहीं।

सच्चे दोस्त बनाइए

11. दाविद ने किन लोगों से दोस्ती की?

11 भजन 16:3 पढ़िए। दाविद जानता था कि किन लोगों से दोस्ती करना सही होगा। उसने ऐसे लोगों से दोस्ती की, जो यहोवा से प्यार करते थे और उनके साथ रहकर उसे “बड़ी खुशी” मिलती थी। उसने अपने दोस्तों के बारे में कहा कि वे “पवित्र” हैं क्योंकि वे यहोवा के शुद्ध नैतिक स्तरों पर चलने की कोशिश करते थे। भजन के एक और लेखक ने दोस्त बनाने के बारे में कुछ ऐसी ही बात लिखी, “मैं उन सबका दोस्त हूँ जो तेरा डर मानते हैं, जो तेरे आदेशों का पालन करते हैं।” (भज. 119:63) जैसे पिछले लेख में हमने देखा था, आपको भी ऐसे कई दोस्त मिल सकते हैं जो यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी बात मानते हैं। ये दोस्त किसी भी उम्र के हो सकते हैं!

12. दाविद और योनातान के बीच पक्की दोस्ती किस वजह से हो पायी?

12 दाविद ने सिर्फ अपनी उम्र के लोगों से दोस्ती नहीं की। क्या आप दाविद के जिगरी दोस्त का नाम बता सकते हैं? शायद आपके मन में योनातान का खयाल आए। बाइबल में दाविद और योनातान की दोस्ती को बड़े ही खूबसूरत शब्दों में बयान किया गया है। पर क्या आपको पता है, योनातान दाविद से करीब 30 साल बड़ा था? फिर उनके बीच इतनी पक्की दोस्ती कैसे हो पायी? इसकी वजह यह थी कि वे दोनों ही परमेश्‍वर पर विश्‍वास करते थे, एक-दूसरे का आदर करते थे और एक-दूसरे की खूबियों की कदर करते थे। उनमें से एक खूबी थी कि दोनों ने अलग-अलग मौकों पर दुश्‍मनों का मुकाबला करते वक्‍त बहुत हिम्मत दिखायी थी।​—1 शमू. 13:3; 14:13; 17:48-50; 18:1.

13. उदाहरण देकर समझाइए कि आप अपनी दोस्ती का दायरा कैसे बढ़ा सकते हैं।

13 दाविद और योनातान की तरह हमें भी ऐसे लोगों से दोस्ती करने में “बड़ी खुशी” होती है, जो यहोवा से प्यार करते हैं और उस पर विश्‍वास रखते हैं। कई सालों से यहोवा की सेवा कर रही एक बहन कीरा कहती है, “मैंने अलग-अलग देश, संस्कृति और अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े लोगों से दोस्ती की है।” नौजवानो, जब आप अपनी दोस्ती का दायरा बढ़ाएँगे, तो आप खुद देख पाएँगे कि कैसे बाइबल और पवित्र शक्‍ति की वजह से यहोवा के सेवक एकता के बंधन में बँधे रहते हैं।

बढ़िया लक्ष्य रखिए

14. (क) किस तरह के लक्ष्य रखने से आपकी ज़िंदगी खुशियों-भरी हो सकती है? (ख) कुछ नौजवानों ने अपने लक्ष्यों के बारे में क्या कहा?

14 भजन 16:8 पढ़िए। दाविद के लिए परमेश्‍वर की सेवा करना सबसे ज़्यादा मायने रखता था। अगर आप भी यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखें और हमेशा यह सोचें कि वह आपके लिए क्या चाहता है, तो आपकी ज़िंदगी खुशियों-भरी होगी। स्टीवन नाम का एक भाई कहता है, “जब मैं कोई लक्ष्य पाने में मेहनत करता हूँ, उसे हासिल कर लेता हूँ और फिर अपनी कामयाबी के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे बहुत खुशी होती है।” जर्मनी का रहनेवाला एक जवान भाई अब दूसरे देश में सेवा कर रहा है। वह कहता है, “मैं नहीं चाहता कि जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ, तो इस बात पर अफसोस करूँ कि मैंने जो किया, बस अपने लिए किया।” क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं? अगर हाँ, तो अपनी काबिलीयतें और अपना हुनर यहोवा की महिमा करने और लोगों की भलाई करने में लगाइए। (गला. 6:10) यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखिए और उन्हें पाने के लिए उससे मदद माँगिए। यकीन मानिए, वह आपकी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देगा!​—1 यूह. 3:22; 5:14, 15.

15. नौजवान कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं? (“ आप कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं?” नाम का बक्स देखिए।)

15 नौजवानो, आप कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं? आप सभाओं में अपने शब्दों में जवाब देने की कोशिश कर सकते हैं। आप पायनियर सेवा करने या बेथेल जाने का लक्ष्य रख सकते हैं। चाहे तो आप कोई दूसरी भाषा सीखने का भी लक्ष्य रख सकते हैं, ताकि आप ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुना सकें। पूरे समय की सेवा करनेवाला एक जवान भाई बाराक कहता है, “हर दिन जब मैं उठता हूँ, तो मुझे पता होता है कि मैं अपनी पूरी ताकत यहोवा को दे रहा हूँ। इससे मुझे जो खुशी और संतुष्टि मिलती है, वह किसी और बात से नहीं मिल सकती।”

परमेश्‍वर से मिलनेवाली आज़ादी को अनमोल समझिए

16. दाविद ने यहोवा के कानून और सिद्धांतों के बारे में कैसा महसूस किया और क्यों?

16 भजन 16:2, 4 पढ़िए। जैसे हमने पिछले लेख में सीखा, परमेश्‍वर के कानून और सिद्धांतों के मुताबिक जीने से हमें सच्ची आज़ादी मिलती है। वह इसलिए कि हम भलाई से प्यार करने लगते हैं और बुराई से नफरत। (आमो. 5:15) दाविद ने कहा कि यहोवा ही उसका “भला करनेवाला” है। भलाई का मतलब है, नैतिकता के ऊँचे आदर्श या सद्‌गुण। यहोवा का हर काम भला है और हमारे पास जो भी भली या अच्छी चीज़ें हैं, वह सब उसी की दी हुई हैं। दाविद ने परमेश्‍वर की मिसाल पर चलने की पूरी कोशिश की और उन बातों से प्यार किया, जिनसे यहोवा प्यार करता है। लेकिन दाविद ने उन बातों से नफरत करना भी सीखा, जिनसे यहोवा नफरत करता है। इनमें से एक है, मूर्तिपूजा यानी यहोवा को छोड़ किसी और शख्स या चीज़ की उपासना करना। मूर्तिपूजा करने से एक इंसान खुद का अपमान करता है और जो महिमा यहोवा को मिलनी चाहिए, वह किसी और को देता है।​—यशा. 2:8, 9; प्रका. 4:11.

17, 18. (क) दाविद ने झूठी उपासना करनेवालों के बारे में क्या कहा? (ख) आज किस वजह से लोग “अपने दुख बढ़ाते” हैं?

17 पुराने समय में नाजायज़ यौन-संबंध रखना अकसर झूठी उपासना का हिस्सा होता था। (होशे 4:13, 14) बहुत-से लोगों को झूठी उपासना पसंद थी, क्योंकि उन्हें नाजायज़ यौन-संबंध जैसे घिनौने कामों में मज़ा आता था। लेकिन क्या इस उपासना से उन्हें खुशी मिलती थी? बिलकुल नहीं! दाविद ने कहा कि झूठी उपासना करनेवाले “अपने दुख बढ़ाते” हैं। ऐसे लोग झूठे देवी-देवताओं के आगे अपने बच्चों तक की बलि चढ़ा देते थे! (यशा. 57:5) उनकी इस बेरहमी से यहोवा को सख्त नफरत थी। (यिर्म. 7:31) नौजवानो, अगर आप उन दिनों में होते, तो क्या आप इस बात का शुक्र नहीं मनाते कि आपके माता-पिता यहोवा की उपासना करते हैं?

18 आज भी बहुत-से झूठे धर्मों में नाजायज़ यौन-संबंध रखना या समलैंगिक होना गलत नहीं माना जाता। शायद इससे लोगों को लगे कि वे आज़ाद हैं और वे जो चाहे कर सकते हैं। लेकिन सच तो यह है कि वे “अपने दुख बढ़ाते” हैं। (1 कुरिं. 6:18, 19) क्या आपने ऐसा होते देखा है? तो नौजवानो, स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा की सुनिए। खुद को यकीन दिलाइए कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में ही आपकी भलाई है। नाजायज़ यौन-संबंधों से होनेवाले बुरे अंजामों के बारे में सोचिए। इससे आप खुद समझ जाएँगे कि पल-भर के सुख के लिए अपना सबकुछ दाँव पर लगाना कितनी बड़ी बेवकूफी है! (गला. 6:8) जोशुआ, जिसका हमने पहले ज़िक्र किया था, कहता है, “हम अपनी आज़ादी का चाहे तो कैसे भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन याद रखिए, इसका गलत इस्तेमाल करने से कभी खुशी नहीं मिलती।”

19, 20. यहोवा पर विश्‍वास रखने और उसकी आज्ञा मानने से नौजवानों को कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

19 यीशु ने कहा, “अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।” (यूह. 8:31, 32) हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमें झूठे धर्म, अज्ञानता और अंधविश्‍वास से आज़ाद किया है। हम उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, जब हमें “परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” मिलेगी। (रोमि. 8:21) मसीह की शिक्षाओं पर चलने से आज भी आप कुछ हद तक ऐसी आज़ादी पा सकते हैं। जी हाँ, जब आप सच्चाई के बारे में न सिर्फ सीखते हैं, बल्कि उसके मुताबिक जीते हैं, तो आप ‘सच्चाई को जान’ पाते हैं।

20 नौजवानो, यहोवा से मिलनेवाली आज़ादी को अनमोल समझिए। इसका सोच-समझकर इस्तेमाल कीजिए। इससे आप आज ऐसे फैसले कर पाएँगे, जिनसे आपका भविष्य सुनहरा होगा। एक नौजवान भाई कहता है, “जवानी में अपनी आज़ादी का सोच-समझकर इस्तेमाल करने से बाद में बड़े-बड़े फैसले करना आसान होता है। जैसे, यह फैसला करना कि कौन-सी नौकरी करना सही होगा या यह फैसला कि अभी शादी करना सही रहेगा या फिर कुछ समय तक अविवाहित रहना।”

21. “असली ज़िंदगी” पाने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है?

21 इस दुनिया में लोग जिसे अच्छी ज़िंदगी कहते हैं, वह भी पल-भर की होती है। आज कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा। (याकू. 4:13, 14) इस वजह से ऐसे फैसले कीजिए कि आपको “असली ज़िंदगी” यानी हमेशा की ज़िंदगी मिल सके। (1 तीमु. 6:19) यहोवा किसी से ज़बरदस्ती अपनी सेवा नहीं करवाता। उसने यह हम पर छोड़ा है कि हम क्या फैसला करेंगे। नौजवानो, हर दिन यहोवा के करीब आने की कोशिश कीजिए और इस तरह उसे अपना “भाग” बनाइए। उसने जितनी भी ‘अच्छी चीज़ें’ दी हैं, उनकी कदर कीजिए। (भज. 103:5) यकीन मानिए, यहोवा आपको अपार सुख और खुशी देगा, न सिर्फ आज, बल्कि हमेशा-हमेशा!​—भज. 16:11.