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अध्ययन लेख 7

दीन रहिए और यहोवा को खुश कीजिए

दीन रहिए और यहोवा को खुश कीजिए

“धरती के सब दीन लोगो, यहोवा की खोज करो, . . . दीनता की खोज करो।”​—सप. 2:3.

गीत 80 “परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है”

लेख की एक झलक *

1-2. (क) मूसा के बारे में क्या बताया गया है और उसने क्या किया? (ख) दीनता का गुण बढ़ाना क्यों बहुत ज़रूरी है?

बाइबल बताती है, “मूसा धरती के सब इंसानों में से सबसे दीन स्वभाव का था।” (गिन. 12:3) क्या इसका मतलब है कि वह कमज़ोर था, तुरंत फैसला नहीं कर पाता था और विरोधियों का सामना करने से डरता था? कुछ लोगों को लग सकता है कि दीन स्वभाव का व्यक्‍ति ऐसा ही होता है। लेकिन यह सच नहीं है। मूसा ताकतवर और तुरंत कदम उठानेवाला व्यक्‍ति था और परमेश्‍वर का एक निडर सेवक था। यहोवा की मदद से उसने मिस्र के ताकतवर राजा का सामना किया, वह करीब 30 लाख लोगों को वीराने में से ले गया और दुश्‍मनों पर जीत हासिल करने में उसने इसराएल राष्ट्र की मदद की।

2 हम मूसा के जैसी मुश्‍किलों का सामना तो नहीं करते, लेकिन हर दिन हमें ऐसे लोगों या हालात का सामना करना पड़ता है, जिस वजह से दीन रहना हमारे लिए आसान नहीं होता। फिर भी यह गुण बढ़ाना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि यहोवा वादा करता है कि “दीन लोग धरती के वारिस होंगे।” (भज. 37:11) क्या आप खुद के बारे में कहेंगे कि आप दीन हैं? क्या दूसरे आपको दीन कहेंगे? इन अहम सवालों के जवाब जानने से पहले आइए देखें कि दीन होने का क्या मतलब है।

दीनता क्या है?

3-4. (क) दीनता की तुलना किससे की जा सकती है? (ख) दीन होने के लिए हममें कौन-से चार गुण होने चाहिए और क्यों?

3 दीनता * की तुलना खूबसूरत चित्रकारी से की जा सकती है। जिस तरह एक चित्रकार बहुत-से आकर्षक रंगों को मिलाकर एक चित्रकारी तैयार करता है, उसी तरह हम बहुत-से बेहतरीन गुण बढ़ाकर दीन हो सकते हैं। इनमें से कुछ गुण हैं, नम्रता, आज्ञा मानना, कोमलता और हिम्मत। लेकिन सवाल है, यहोवा को खुश करने के लिए हमें खासकर इन गुणों की ज़रूरत क्यों है?

4 सिर्फ नम्र लोग ही परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करते हैं। उसकी एक मरज़ी यह है कि हम कोमल स्वभाव के हों। (मत्ती 5:5; गला. 5:23) जब हम परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करते हैं, तो इससे शैतान भड़क जाता है। नतीजा यह होता है कि उसकी दुनिया हमसे नफरत करने लगती है, इसके बावजूद कि हम नम्र और कोमल स्वभाव के हैं। (यूह. 15:18, 19) इस वजह से शैतान का विरोध करने के लिए हममें हिम्मत होनी चाहिए।

5-6. (क) शैतान को दीन लोगों से नफरत क्यों है? (ख) हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

5 जो लोग दीन नहीं होते, उनमें घमंड होता है, उनका अपने गुस्से पर काबू नहीं होता और वे यहोवा का कहा नहीं मानते। ऐसी ही फितरत शैतान की है। यही वजह है कि उसे दीन लोगों से नफरत है! दीन लोगों के अच्छे गुणों पर गौर करने से समझ में आता है कि शैतान कितना दुष्ट है और उसमें उनके जैसे अच्छे गुण दूर-दूर तक नहीं हैं। इतना ही नहीं, ये लोग शैतान को झूठा साबित करते हैं। वह कैसे? शैतान इन लोगों को यहोवा की सेवा करने से रोकना चाहता है। मगर वह चाहे जो भी करे, ये लोग यहोवा की सेवा करना कभी नहीं छोड़ते!​—अय्यू. 2:3-5.

6 लेकिन हमारे लिए दीन रहना कब मुश्‍किल हो सकता है? हमें दीनता की खोज क्यों करते रहना चाहिए? इन सवालों के जवाब पाने के लिए हम मूसा, बैबिलोन की बँधुआई में पड़े तीन इब्रियों और यीशु की मिसाल पर गौर करेंगे।

दीन रहना कब मुश्‍किल हो सकता है?

7-8. जब दूसरों ने मूसा का अनादर किया, तो उसका रवैया कैसा था?

7 जब हमें अधिकार दिया जाता है: अधिकार रखनेवालों के लिए दीन रहना आसान नहीं होता, खासकर तब जब उनके अधीन रहनेवाले लोग उनका आदर नहीं करते या उनके फैसलों से सहमत नहीं होते। क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है? अगर आपके परिवार में कोई आपके साथ इस तरह का व्यवहार करे, तो आप क्या करेंगे? गौर कीजिए कि मूसा ने क्या किया।

8 यहोवा ने मूसा को इसराएल का अगुवा ठहराया था। उसने मूसा को यह सम्मान भी दिया कि वह पूरे राष्ट्र के लिए उसका कानून दर्ज़ करे। इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा मूसा का साथ दे रहा था। लेकिन मूसा की सगी बहन मिरयम और उसके सगे भाई हारून ने उसके खिलाफ बातें कीं। उन्होंने इस बात के लिए भी उसकी निंदा की कि उसने एक कूशी औरत से शादी की। अगर कोई और मूसा की जगह होता, तो शायद वह गुस्से में आकर उन दोनों से बदला लेता। लेकिन मूसा ने ऐसा नहीं किया। उसने उनकी बातों का बुरा नहीं माना। उलटा उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की कि वह मिरयम को ठीक कर दे। (गिन. 12:1-13) मूसा ऐसा रवैया किस वजह से रख पाया?

मूसा ने यहोवा से बिनती की कि वह मिरयम को ठीक कर दे (पैराग्राफ 8 देखें)

9-10. (क) यहोवा ने कौन-सी बात समझने में मूसा की मदद की? (ख) परिवार के मुखिया और प्राचीन, मूसा से क्या सीख सकते हैं?

9 मूसा ने यहोवा से सीखने के लिए खुद को उसके अधीन किया। करीब 40 साल पहले वह मिस्र के शाही घराने का एक सदस्य था और उस वक्‍त वह दीन नहीं था। एक मौके पर उसे लगा कि एक आदमी अन्याय कर रहा है। उसे उस पर इतना गुस्सा आया कि उसने उसका खून कर दिया। उसने सोचा कि यहोवा उससे खुश होगा। लेकिन यहोवा ने यह समझने में मूसा की मदद की कि इसराएल का अगुवा बनने के लिए सिर्फ हिम्मत होना काफी नहीं है, उसे दीन भी होना है। इसके लिए उसे नम्र होना था, आज्ञा माननी थी और कोमल भी होना था। भले ही मूसा को 40 साल लगे, लेकिन उसने दीनता का सबक अच्छी तरह सीख लिया और वह एक बढ़िया अगुवा बना।​—निर्ग. 2:11, 12; प्रेषि. 7:21-30, 36.

10 मूसा की मिसाल से आज परिवार के मुखिया और प्राचीन बहुत कुछ सीख सकते हैं। अगर आपको लगे कि आपका आदर नहीं किया जा रहा है, तो जल्दी बुरा मत मानिए। नम्र रहिए और अपनी गलतियाँ कबूल कीजिए। (सभो. 7:9, 20) समस्याएँ निपटाने के लिए यहोवा की हिदायतें मानिए। हमेशा नरमी से जवाब दीजिए। (नीति. 15:1) ऐसा करने से आप यहोवा को खुश करते हैं, शांति बनाए रखते हैं और दीन रहने में एक अच्छी मिसाल रखते हैं।

11-13. तीन इब्री जवानों ने हमारे लिए क्या मिसाल रखी?

11 जब हम पर ज़ुल्म ढाया जाता है: सदियों से इंसानी शासक यहोवा के लोगों पर ज़ुल्म ढाते आए हैं। भले ही वे हमें तरह-तरह के “अपराध” का दोषी ठहराएँ, लेकिन उनकी दुश्‍मनी की असली वजह यह है कि हम “इंसानों के बजाय परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा” मानते हैं। (प्रेषि. 5:29) शायद हमारा मज़ाक उड़ाया जाए, हमें जेल में डाल दिया जाए, यहाँ तक कि हमें मारा-पीटा जाए। लेकिन यहोवा की मदद से हम आज़माइशों के दौरान भी शांत और दीन रहते हैं, हम बुराई का बदला बुराई से नहीं देते।

12 ध्यान दीजिए कि बैबिलोन में तीन इब्री जवानों यानी हनन्याह, मीशाएल और अजरयाह ने इस मामले में कैसी मिसाल रखी। * बैबिलोन के राजा ने उन्हें सोने की एक बड़ी मूरत के सामने झुककर उसकी पूजा करने का हुक्म दिया था। उन्होंने बड़ी नरमी से राजा को समझाया कि वे उस मूरत की पूजा नहीं कर सकते। राजा ने उन्हें धधकते भट्ठे में फेंक देने की धमकी दी, फिर भी उन्होंने परमेश्‍वर की आज्ञा मानना नहीं छोड़ा। हालाँकि यहोवा ने उन्हें तुरंत बचा लिया, लेकिन वे पहले से यह मानकर नहीं बैठे थे कि वह उन्हें आग के भट्ठे से बचाएगा। यहोवा उनके साथ जो भी होने देता, उन्हें मंज़ूर था। (दानि. 3:1, 8-28) उन्होंने साबित किया कि दीन लोग सच में हिम्मतवाले होते हैं। जब वे ठान लेते हैं कि वे सिर्फ यहोवा की “भक्‍ति करेंगे, उसे छोड़ किसी और की नहीं,” तो कोई भी राजा, कोई भी धमकी या सज़ा उनका इरादा कमज़ोर नहीं कर सकती।​—निर्ग. 20:4, 5.

13 जब हमारी वफादारी परखी जाती है, तो हम इन इब्री जवानों की मिसाल पर कैसे चलते हैं? हम नम्र रहते हैं और यहोवा पर भरोसा रखते हैं कि वह हमारी देखभाल करेगा। (भज. 118:6, 7) अगर हम पर कोई दोष लगाया जाता है, तो भी हम कोमल स्वभाव रखते हैं और गहरे आदर के साथ अपनी पैरवी करते हैं। (1 पत. 3:15) यही नहीं, हम यहोवा के स्तरों से कोई समझौता नहीं करते, क्योंकि हम अपने प्यारे पिता यहोवा के साथ अपनी दोस्ती कायम रखना चाहते हैं।

जब लोग हमारा विरोध करते हैं, तो हम उनसे आदर से बात करते हैं (पैराग्राफ 13 देखें)

14-15. (क) जब हम तनाव में होते हैं, तो क्या हो सकता है? (ख) यशायाह 53:7, 10 के मुताबिक हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु तनाव में भी दीन रहने की बढ़िया मिसाल है?

14 जब हम तनाव में होते हैं: हम सब किसी-न-किसी वजह से तनाव महसूस करते हैं। हो सकता है, स्कूल में परीक्षा देने से पहले या नौकरी की जगह पर कोई काम करते वक्‍त हमने ऐसा महसूस किया हो। शायद कोई मेडिकल टेस्ट या ऑपरेशन करवाने की बात सोचकर हम तनाव में आ जाएँ। ऐसे में दीन रहना बहुत मुश्‍किल होता है। जो बातें आम तौर पर हमें चिढ़ नहीं दिलातीं, उनसे हम चिढ़ने लग सकते हैं। इस वजह से शायद हमारे मुँह से कड़वी बातें निकलें और हम दूसरों के साथ रुखाई से पेश आएँ। अगर आपने कभी तनाव महसूस किया है, तो यीशु की मिसाल पर ध्यान दीजिए।

15 अपनी मौत से कुछ महीने पहले यीशु बहुत तनाव में था। वह जानता था कि उसे बेरहमी से तड़पाया जाएगा और मार डाला जाएगा। (यूह. 3:14, 15; गला. 3:13) जब उसकी मौत करीब थी, तो उसने कहा कि वह बहुत तकलीफ में है। (लूका 12:50) फिर अपनी मौत से कुछ दिन पहले उसने कहा, “मेरा जी बेचैन है।” उसने दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना की, “हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा ले! मगर मैं इसीलिए तो इस घड़ी तक पहुँचा हूँ। पिता अपने नाम की महिमा कर।” उसकी प्रार्थना से साफ पता चलता है कि वह कितना नम्र और परमेश्‍वर का आज्ञाकारी था। (यूह. 12:27, 28) जब वक्‍त आया, तो उसने हिम्मत से खुद को परमेश्‍वर के दुश्‍मनों के हवाले कर दिया। दुश्‍मनों ने उसका घोर अपमान किया और बड़ी बेदर्दी से उसे मार डाला। यीशु ने जो तनाव महसूस किया और जो दर्द सहा, उसे शब्दों में बयान करना मुश्‍किल है। इसके बावजूद उसने दीनता से परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी की। सच में, यीशु तनाव में भी दीन रहने की एक बढ़िया मिसाल है!​—यशायाह 53:7, 10 पढ़िए।

यीशु दीनता की सबसे बढ़िया मिसाल है (पैराग्राफ 16-17 देखें) *

16-17. (क) यीशु के दोस्तों ने किस तरह उसकी दीनता की परीक्षा ली? (ख) हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

16 धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात उसके जिगरी दोस्तों ने जो किया, उससे उसकी दीनता की परख हुई। सोचिए कि उस रात यीशु कितने तनाव में होगा। अरबों लोगों की ज़िंदगी दाँव पर लगी है। (रोमि. 5:18, 19) इससे भी बढ़कर उसके पिता के नाम का सवाल है। क्या वह अपनी मौत तक पूरी तरह वफादार रह पाएगा? (अय्यू. 2:4) ऐसे में जब वह अपने जिगरी दोस्तों यानी प्रेषितों के साथ आखिरी भोज कर रहा था, तो उनमें इस बात को लेकर “गरमा-गरम बहस छिड़ गयी” कि “उनमें सबसे बड़ा किसे समझा जाए।” यीशु ने पहले कई बार चेलों को नम्र रहने की सलाह दी थी और उस शाम भी उसने ऐसा किया था। इतना समझाने पर भी अब उन्हें झगड़ते देख वह बहुत चिढ़ सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, बल्कि वह शांत रहा। उसने एक बार फिर प्यार से, मगर साफ-साफ समझाया कि उनका रवैया कैसा होना चाहिए। फिर उसने अपने दोस्तों की सराहना की कि वे वफादारी से उसका साथ दे रहे हैं।​—लूका 22:24-28; यूह. 13:1-5, 12-15.

17 अगर हम ऐसे हालात में हों, तो हम क्या करेंगे? यीशु की तरह हमें नम्र रहना चाहिए, फिर चाहे हम तनाव में क्यों न हों। हमें खुशी-खुशी यहोवा की यह आज्ञा माननी चाहिए, “एक-दूसरे की सहते रहो।” (कुलु. 3:13) यह आज्ञा हम तब मान पाएँगे, जब हम याद रखेंगे कि हम सब अपनी बातों और कामों से दूसरों को चिढ़ दिलाते हैं। (नीति. 12:18; याकू. 3:2, 5) इसके अलावा हमें हमेशा दूसरों के अच्छे गुणों की सराहना करनी चाहिए।​—इफि. 4:29.

दीनता की खोज क्यों करते रहें?

18. (क) सही फैसले करने में यहोवा दीन लोगों की कैसे मदद करता है? (ख) हमें क्या करना चाहिए?

18 हम सही फैसले कर पाएँगे। जब हमें ज़िंदगी में मुश्‍किल फैसले करने होते हैं, तो यहोवा हमारी मदद करता है। लेकिन वह तभी ऐसा करता है, जब हम दीन रहते हैं। वह वादा करता है कि वह “दीनों की बिनती सुनेगा।” (भज. 10:17) बिनती सुनने के साथ-साथ वह कुछ और भी करता है। बाइबल बताती है, “जो सही है उसके बारे में वह दीनों को निर्देश देगा, उन्हें अपनी राह पर चलना सिखाएगा।” (भज. 25:9) यहोवा कई तरीकों से हमें निर्देश देता है। जैसे, बाइबल, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के द्वारा तैयार किए गए प्रकाशनों, * वीडियो और सभाओं के ज़रिए। (मत्ती 24:45-47) हमें क्या करना चाहिए? हमें नम्र होकर कबूल करना चाहिए कि हमें मदद की ज़रूरत है। फिर हमें यहोवा की तरफ से मिलनेवाली जानकारी का अध्ययन करना चाहिए और पूरे दिल से उसे लागू करना चाहिए।

19-21. (क) कादेश में मूसा ने क्या गलती की? (ख) इससे हम कौन-से सबक सीख सकते हैं?

19 हम गलतियाँ करने से बचेंगे। एक बार फिर मूसा के बारे में सोचिए। कई सालों तक वह दीन रहा और उसने यहोवा को खुश किया। फिर जब वीराने में 40 साल का मुश्‍किलों-भरा सफर खत्म होने ही वाला था, तब मूसा दीन रहने से चूक गया। उसकी बहन की अभी-अभी मौत हुई थी और उसे कादेश में दफना दिया गया था। शायद यह वही बहन थी, जिसने मिस्र में उसकी जान बचायी थी। अब इसराएली फिर से कुड़कुड़ाने लगे कि उनकी ठीक से देखभाल नहीं की जा रही है। इस बार वे पानी न मिलने की वजह से “मूसा से झगड़ने लगे।” यहोवा ने मूसा के ज़रिए बड़े-बड़े चमत्कार किए थे और मूसा ने लंबे समय तक निस्वार्थ भाव से इसराएलियों की अगुवाई की थी। फिर भी वे कुड़कुड़ाने लगे। वे न सिर्फ पानी के बारे में, बल्कि मूसा के बारे में भी शिकायत कर रहे थे मानो उसी की वजह से वे प्यासे मर रहे हों।​—गिन. 20:1-5, 9-11.

20 इस पर मूसा अपना आपा खो बैठा और दीन नहीं रहा। यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी कि वह चट्टान से बोलकर पानी निकाले। लेकिन ऐसा करने के बजाय वह लोगों से कड़वी बातें करने लगा और कहने लगा कि क्या उसे  उनके लिए पानी निकालना होगा। फिर उसने दो बार चट्टान पर मारा और उससे पानी उमड़ने लगा। घमंड और गुस्से में आकर मूसा ने कितनी बड़ी गलती की! (भज. 106:32, 33) थोड़े समय के लिए ही सही, मगर दीन न रहने की वजह से मूसा ने वादा किए गए देश में जाने का मौका गँवा दिया।​—गिन. 20:12.

21 इस घटना से हम कुछ अहम सबक सीखते हैं। पहला, हमें दीन बने रहने के लिए लगातार मेहनत करनी चाहिए। अगर हम पल-भर के लिए भी ढिलाई बरतें, तो घमंड हम पर हावी हो सकता है और शायद हम कुछ ऐसा कर बैठें, जिसका बाद में हमें बहुत पछतावा हो। दूसरा, तनाव की वजह से दीन रहना मुश्‍किल हो सकता है, इसलिए जब हम किसी बात से परेशान हों, तब हमें दीन बने रहने की और भी ज़्यादा कोशिश करनी चाहिए।

22-23. (क) हमें दीनता की खोज क्यों करते रहना चाहिए? (ख) सपन्याह 2:3 में लिखी बात से क्या इशारा मिलता है?

22 हमारी हिफाज़त होगी। जल्द ही यहोवा धरती पर से सभी दुष्ट लोगों को मिटा देगा और सिर्फ दीन लोग रहेंगे। फिर धरती पर सच में शांति होगी। (भज. 37:10, 11) क्या आप भी उन दीन लोगों में से होंगे? बेशक हो सकते हैं, बशर्ते आप सपन्याह के ज़रिए लिखी यहोवा की बात मानें।​—सपन्याह 2:3 पढ़िए।

23 सपन्याह 2:3 में ऐसा क्यों कहा गया है कि ‘मुमकिन है तुम्हारी हिफाज़त की जाएगी’? क्या इसका मतलब यह है कि जो यहोवा को खुश करते हैं और उससे प्यार करते हैं, उन्हें बचाने के वह काबिल नहीं है? ऐसा नहीं है। दरअसल इससे यह इशारा मिलता है कि हमारी हिफाज़त होगी या नहीं, यह काफी हद तक हम पर निर्भर करता है। अगर आज हम दीनता की खोज करें और यहोवा को खुश करें, तभी यह मुमकिन होगा कि “यहोवा के क्रोध के दिन” हम बच पाएँगे और हमें हमेशा जीने का मौका मिलेगा।

गीत 120 यीशु जैसे कोमल बनें

^ पैरा. 5 हममें से कोई भी जन्म से दीन स्वभाव का नहीं होता। हमें यह गुण बढ़ाना होता है। शायद हम शांत स्वभाव के लोगों के साथ दीनता से पेश आएँ। वहीं अगर हमारा सामना घमंडी लोगों से हो जाए, तो शायद दीन रहना हमारे लिए आसान न हो। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि दीनता जैसा खूबसूरत गुण बढ़ाने में हमें कौन-सी मुश्‍किलें पार करनी पड़ सकती हैं।

^ पैरा. 3 इनका क्या मतलब है? दीनता: दीन लोग वे होते हैं, जो दूसरों के साथ कृपा से पेश आते हैं और गुस्सा दिलाए जाने पर भी शांत रहते हैं। नम्रता: नम्र लोग वे होते हैं, जिनमें घमंड या हेकड़ी नहीं होती; वे दूसरों को खुद से बेहतर समझते हैं। जब यहोवा को नम्र कहा जाता है, तो इसका मतलब होता है कि वह अपने से कम दर्जा रखनेवालों के साथ प्यार और दया से पेश आता है।

^ पैरा. 12 बैबिलोन में इन तीन इब्रियों को शदरक, मेशक और अबेदनगो नाम दिए गए थे।​—दानि. 1:7.

^ पैरा. 18 उदाहरण के लिए 15 अप्रैल, 2011 की प्रहरीदुर्ग  में दिया लेख, “ऐसे फैसले लीजिए जिनसे परमेश्‍वर की महिमा हो” देखें।

^ पैरा. 59 तसवीर के बारे में: जब चेलों में बहस होती है कि उनमें बड़ा कौन है, तब यीशु शांत रहता है और प्यार से उन्हें समझाता है।