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अध्ययन लेख 9

प्राचीन इसराएल में प्यार और न्याय की अहमियत

प्राचीन इसराएल में प्यार और न्याय की अहमियत

“उसे नेकी और न्याय से प्यार है। धरती यहोवा के अटल प्यार से भरपूर है।”​—भज. 33:5.

गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा

लेख की एक झलक *

1-2. (क) हम सब क्या चाहते हैं? (ख) हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?

हम सब चाहते हैं कि हमें प्यार मिले और हमारे साथ कोई अन्याय न हो। लेकिन अगर हर बार हमें दुतकारा जाए और हमारे साथ अन्याय हो, तो हम निराश हो सकते हैं और खुद को नकारा समझ सकते हैं।

2 यहोवा जानता है कि हम प्यार और इंसाफ पाना चाहते हैं। (भज. 33:5) हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्‍वर हमसे बहुत प्यार करता है और चाहता है कि हमारे साथ कोई अन्याय न हो। उसने मूसा के ज़रिए इसराएल राष्ट्र को जो कानून दिया था, उसकी करीब से जाँच करने पर यह बात साफ पता चलती है। अगर आपका मन इस बात से दुखी है कि लोग आपसे प्यार नहीं करते या आपके साथ ज़्यादती करते हैं, तो ज़रा मूसा के कानून * पर ध्यान दीजिए। इससे आप समझ पाएँगे कि यहोवा को अपने लोगों की कितनी परवाह है।

3. (क) जैसे रोमियों 13:8-10 में बताया गया है, मूसा के कानून की जाँच करने से हमें क्या पता चलता है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

3 जब हम मूसा के कानून की करीब से जाँच करते हैं, तो हमें पता चलता है कि हमारे प्यारे परमेश्‍वर यहोवा में कितनी कोमल भावनाएँ हैं! (रोमियों 13:8-10 पढ़िए।) इस लेख में हम इसराएलियों को दिए कुछ नियमों पर गौर करेंगे और इन सवालों के जवाब जानेंगे: हम क्यों कह सकते हैं कि मूसा का कानून प्यार पर आधारित था? इस कानून से लोगों को न्याय करने का बढ़ावा कैसे मिला? अधिकार रखनेवालों को किस तरह कानून का पालन करना था? मूसा के कानून से खास तौर पर किन लोगों की रक्षा हुई? इन सवालों के जवाब जानने से हमें दिलासा और आशा मिलेगी, साथ ही हम अपने पिता यहोवा के और करीब आ पाएँगे।​—प्रेषि. 17:27; रोमि. 15:4.

ऐसा कानून जो प्यार पर आधारित था

4. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि मूसा का कानून प्यार पर आधारित था? (ख) मत्ती 22:36-40 के मुताबिक यीशु ने किन आज्ञाओं पर ध्यान दिलाया?

4 यहोवा जो भी करता है, प्यार की वजह से करता है। इस वजह से हम कह सकते हैं कि मूसा का कानून भी प्यार पर आधारित था। (1 यूह. 4:8) इस कानून में जितने भी नियम दिए गए थे, वे इन दो आज्ञाओं पर आधारित थे: परमेश्‍वर से प्यार करो और अपने पड़ोसी से प्यार करो। (लैव्य. 19:18; व्यव. 6:5; मत्ती 22:36-40 पढ़िए।) ज़ाहिर-सी बात है कि मूसा के कानून का हर नियम हमें यहोवा के प्यार के बारे में कुछ-न-कुछ ज़रूर सिखाता है। आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें।

5-6. (क) यहोवा पति-पत्नियों से क्या चाहता है? (ख) यहोवा कौन-सी बात अच्छी तरह जानता है? एक उदाहरण दीजिए।

5 अपने जीवन-साथी के वफादार रहें और अपने बच्चों की देखभाल करें। यहोवा चाहता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे को दिलो-जान से प्यार करें और यह प्यार ज़िंदगी-भर बना रहे। (उत्प. 2:24; मत्ती 19:3-6) लेकिन व्यभिचार करके एक व्यक्‍ति अपने साथी के साथ घोर अन्याय करता है। इसी वजह से दस आज्ञाओं में से सातवीं आज्ञा बताती है कि व्यभिचार न करना। (व्यव. 5:18) व्यभिचार करनेवाला “परमेश्‍वर के खिलाफ” पाप करता है और अपने साथी को बहुत दर्द पहुँचाता है। (उत्प. 39:7-9) वह साथी शायद यह दर्द बरसों तक भुला न पाए।

6 यहोवा अच्छी तरह जानता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ किस तरह पेश आते हैं। उसने कानून में खासकर इसराएली आदमियों से कहा था कि वे अपनी पत्नी से अच्छा व्यवहार करें। कानून का आदर करनेवाला पति अपनी पत्नी से प्यार करता और उसे छोटी-छोटी बातों के लिए तलाक नहीं देता। (व्यव. 24:1-4; मत्ती 19:3, 8) लेकिन अगर पति-पत्नी के बीच गंभीर समस्या खड़ी हो जाती और पति उसे तलाक देना चाहता, तो उसे तलाकनामा लिखकर देना होता था। इसकी वजह से उस औरत की हिफाज़त होती थी, क्योंकि आगे चलकर अगर वह दोबारा शादी करती, तो उस पर व्यभिचार करने का दोष नहीं लगाया जा सकता था। यही नहीं, तलाकनामा देने से पहले पति को शहर के मुखियाओं से सलाह करनी होती थी। ये मुखिया कोशिश करते थे कि पति-पत्नी के बीच सुलह हो जाए और तलाक देने की ज़रूरत न पड़े। लेकिन जब एक इसराएली किसी स्वार्थ की वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता, तो ज़रूरी नहीं कि यहोवा मुखियाओं या भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए उस मामले में दखल देता। फिर भी उस पत्नी के आँसू यहोवा से छिपे नहीं रहते और यहोवा उसका दर्द बखूबी समझता था।​—मला. 2:13-16.

यहोवा चाहता था कि माता-पिता अपने बच्चों को प्यार से पालें और उन्हें सिखाएँ, ताकि बच्चे खुश रहें और सुरक्षित महसूस करें (पैराग्राफ 7-8 देखें) *

7-8. (क) यहोवा ने माता-पिताओं को क्या आज्ञा दी थी? (बाहर दी तसवीर देखें।) (ख) हम कौन-से सबक सीखते हैं?

7 मूसा के कानून से यह भी पता चलता है कि यहोवा को बच्चों की बहुत परवाह है। उसने माता-पिताओं को आज्ञा दी थी कि वे बच्चों की न सिर्फ बुनियादी ज़रूरतें पूरी करें, बल्कि परमेश्‍वर के साथ रिश्‍ता बनाने में भी उनकी मदद करें। माता-पिताओं को हर मौके का फायदा उठाकर अपने बच्चों को कानून की बातें सिखानी-समझानी थीं और उनके दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाना था। (व्यव. 6:6-9; 7:13) लेकिन कुछ इसराएली अपने बच्चों के साथ बहुत बुरा बरताव करते थे, इतना बुरा कि रोंगटे खड़े हो जाएँ। यह एक वजह थी कि यहोवा ने इसराएलियों को सज़ा दी। (यिर्म. 7:31, 33) इसराएली माता-पिताओं को ऐसा नहीं सोचना था कि बच्चे कोई मामूली चीज़ हैं, जिसे जहाँ चाहे छोड़ दिया या जैसा चाहे इस्तेमाल किया। उन्हें बच्चों को यहोवा की तरफ से मिली विरासत या अनमोल तोहफा समझना था।​—भज. 127:3.

8 सबक: यहोवा इस बात पर बहुत ध्यान देता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे से कैसे पेश आते हैं। इसके अलावा वह चाहता है कि माता-पिता बच्चों से प्यार करें। अगर वे उनके साथ बुरा सलूक करें, तो वे यहोवा के सामने जवाबदेह होंगे।

9-11. यहोवा ने लालच न करने का नियम क्यों दिया था?

9 लालच न करें। दस आज्ञाओं में से आखिरी आज्ञा यह थी कि तुम लालच न करना या जो किसी और का है, उसे पाने की इच्छा न करना। (व्यव. 5:21; रोमि. 7:7) यहोवा ने यह नियम एक अहम सीख देने के लिए दिया था। वह यह कि उसके लोगों को अपने दिल की हिफाज़त करनी चाहिए यानी अपनी सोच और भावनाओं पर काबू रखना चाहिए। वह जानता है कि बुरे काम की शुरूआत बुरी सोच और गलत भावनाओं से होती है। (नीति. 4:23) अगर एक इसराएली अपने दिल में गलत इच्छाएँ पनपने देता, तो मुमकिन है कि वह दूसरों के साथ कुछ-न-कुछ बुरा कर बैठता। राजा दाविद ने कुछ ऐसा ही किया। देखा जाए तो वह एक अच्छा आदमी था। लेकिन एक मौके पर उसने किसी दूसरे की पत्नी का लालच किया। उसकी यह इच्छा उसे पाप की तरफ ले गयी। (याकू. 1:14, 15) उसने उस औरत के साथ व्यभिचार किया, उसके पति को गुमराह करने की कोशिश की और आखिरकार उसे मरवा डाला।​—2 शमू. 11:2-4; 12:7-11.

10 जब एक इसराएली लालच न करने का नियम तोड़ता था, तो यहोवा को पता चल जाता था, क्योंकि वह लोगों का दिल पढ़ सकता है। (1 इति. 28:9) यह नियम एक तरह से लोगों से कह रहा था कि उन्हें मन में ऐसी सोच नहीं पालनी चाहिए, जिससे वे कोई गलत काम कर बैठें। सच में, यहोवा कितना बुद्धिमान और प्यार करनेवाला पिता है!

11 सबक: यहोवा सिर्फ बाहरी रूप नहीं देखता, वह यह भी देखता है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं। (1 शमू. 16:7) हमारे मन की कोई भी सोच, कोई भी भावना या हमारा कोई भी काम यहोवा से छिप नहीं सकता। यह सच है कि वह हममें अच्छाइयाँ ढूँढ़ता है और चाहता है कि ये हममें बढ़ती रहें, लेकिन वह हमसे भी कुछ उम्मीद करता है। वह चाहता है कि हम खुद की जाँच करें और मन में उठनेवाली गलत सोच को निकाल फेंकें, इससे पहले कि यह हमें पाप की तरफ ले जाए।​—2 इति. 16:9; मत्ती 5:27-30.

ऐसा कानून जो न्याय का बढ़ावा दे

12. मूसा के कानून से हम और क्या सीखते हैं?

12 मूसा के कानून से हम यह भी सीखते हैं कि यहोवा न्याय से प्यार करता है। (भज. 37:28; यशा. 61:8) वह सबके साथ एक जैसा व्यवहार करने के मामले में उम्दा मिसाल है। जब इसराएली यहोवा का कानून मानते थे, तो उन पर उसकी आशीष रहती थी। लेकिन जब वे उसके नेक स्तरों पर चलना छोड़ देते थे, तो उन्हें दुख-तकलीफें सहनी पड़ती थीं। इसे समझने के लिए आइए दो और आज्ञाओं पर ध्यान दें।

13-14. (क) दस आज्ञाओं में से पहली दो आज्ञाएँ किस बारे में थीं? (ख) ये आज्ञाएँ मानने से इसराएलियों को कैसे फायदा होता था?

13 सिर्फ यहोवा की उपासना करें। दस आज्ञाओं में से पहली दो आज्ञाएँ इस बारे में थीं कि इसराएलियों को सिर्फ यहोवा की भक्‍ति करनी चाहिए। उन्हें किसी तरह की मूर्तिपूजा नहीं करनी चाहिए। (निर्ग. 20:3-6) ये आज्ञाएँ यहोवा ने अपने फायदे के लिए नहीं, बल्कि अपने लोगों के भले के लिए दी थीं। जब इसराएली परमेश्‍वर के वफादार रहते थे, तो वे फलते-फूलते थे। लेकिन जब वे दूसरे राष्ट्रों के देवी-देवताओं को पूजते थे, तो वे मुसीबतों की मार सहते थे।

14 ज़रा कनानी लोगों के बारे में सोचिए। वे सच्चे और जीवित परमेश्‍वर की उपासना नहीं करते थे, बल्कि बेजान मूरतों की पूजा करते थे। (भज. 115:4-8) इस वजह से वे उपासना के नाम पर बहुत घिनौने काम करते थे, जैसे नाजायज़ यौन-संबंध रखना और बच्चों की बलि चढ़ाना। उसी तरह जब इसराएली यहोवा को छोड़कर मूरतों की पूजा करते थे, तो वे घिनौने काम करते थे और अपने परिवारवालों को दुख पहुँचाते थे। (2 इति. 28:1-4) इसके अलावा अधिकार रखनेवाले न्याय के स्तरों पर चलना छोड़ देते थे। वे अपनी ताकत का नाजायज़ फायदा उठाकर कमज़ोर और बेसहारा लोगों को सताते थे। (यहे. 34:1-4) यहोवा ने चेतावनी दी कि जो लोग मासूम बच्चों और औरतों पर ज़ुल्म ढाते हैं, उन्हें वह सज़ा देगा। (व्यव. 10:17, 18; 27:19) दूसरी तरफ, जब यहोवा के लोग उसके वफादार रहते थे और किसी के साथ अन्याय नहीं करते थे, तो यहोवा उन्हें आशीष देता था।​—1 राजा 10:4-9.

यहोवा हमसे प्यार करता है और जब हमारे साथ कोई अन्याय होता है, तो वह उससे अनजान नहीं रहता (पैराग्राफ 15 देखें)

15. हम यहोवा के बारे में कौन-सी बातें सीखते हैं?

15 सबक: जब यहोवा की सेवा करने का दम भरनेवाले उसके स्तरों पर चलना छोड़ देते हैं और उसके लोगों का बुरा करते हैं, तो इसके लिए यहोवा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यहोवा हमसे प्यार करता है और हमारे साथ जब कोई अन्याय होता है, तो वह उससे अनजान नहीं रहता। दरअसल अपने बच्चे को तकलीफ में देखकर एक माँ को जितना दर्द होता है, उससे कहीं ज़्यादा दर्द यहोवा को हमें देखकर होता है। (यशा. 49:15) भले ही वह फौरन कोई कदम न उठाए, मगर वक्‍त आने पर वह उन लोगों को ज़रूर सज़ा देगा, जो दूसरों का बुरा करते हैं और कोई पश्‍चाताप नहीं करते।

कानून का पालन कैसे करना था?

16-18. (क) मूसा का कानून ज़िंदगी के किन पहलुओं पर लागू होता था? (ख) हम इससे कौन-से सबक सीखते हैं?

16 मूसा के कानून में एक इसराएली की ज़िंदगी के बहुत-से पहलुओं के बारे में नियम दिए गए थे। इस वजह से इसराएल के मुखियाओं के लिए यह बहुत ज़रूरी था कि वे यहोवा के लोगों का सच्चाई से न्याय करें। उन्हें न सिर्फ उपासना से जुड़े मामले सुलझाने थे, बल्कि लोगों के आपसी झगड़े और आपराधिक मामले भी सुलझाने थे। आगे बताए उदाहरणों पर ध्यान दीजिए।

17 अगर एक इसराएली के हाथों किसी का खून हो जाता, तो उसे यूँ ही मौत की सज़ा नहीं दी जाती थी। पहले उसके शहर के मुखियाओं को मामले की पूरी जाँच-पड़ताल करनी होती थी, उसके बाद फैसला लिया जाता था कि उसे मौत की सज़ा देना सही होगा या नहीं। (व्यव. 19:2-7, 11-13) मुखिया लोगों की रोज़मर्रा ज़िंदगी से जुड़े मसले भी सुलझाते थे, जैसे ज़मीन-जायदाद को लेकर या शादीशुदा ज़िंदगी को लेकर। (निर्ग. 21:35; व्यव. 22:13-19) जब मुखिया बिना पक्षपात किए न्याय करते थे और इसराएली भी कानून का पालन करते थे, तो हर किसी का भला होता था और यहोवा की भी महिमा होती थी।​—लैव्य. 20:7, 8; यशा. 48:17, 18.

18 सबक: हमारी ज़िंदगी का हर पहलू यहोवा के लिए बहुत मायने रखता है। वह चाहता है कि हम किसी के साथ अन्याय न करें और सबके साथ प्यार से पेश आएँ। वह हमारी हर बात और हर काम पर ध्यान देता है, उस पर भी जो हम घर की चारदीवारी के अंदर करते हैं।​—इब्रा. 4:13.

19-21. (क) मुखियाओं और न्यायियों को यहोवा के लोगों के साथ कैसा बरताव करना था? (ख) यहोवा ने ऐसा क्या किया था, ताकि उसके लोगों के साथ कोई अन्याय न हो? (ग) हम इससे कौन-से सबक सीखते हैं?

19 इसराएल के आस-पास के देशों में अन्याय होना या न्याय न मिलना आम बात थी। लेकिन यहोवा नहीं चाहता था कि उसके लोगों के साथ ऐसा हो। इस वजह से वह मुखियाओं और न्यायियों से उम्मीद करता था कि वे हर हाल में कानून का पालन करें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वे उसके लोगों के साथ कठोरता से पेश आएँ। उन्हें प्यार से पेश आना था और न्याय करना था।​—व्यव. 1:13-17; 16:18-20.

20 यहोवा करुणा करनेवाला परमेश्‍वर है। उसने कुछ नियम बनाए थे, ताकि किसी के साथ कोई अन्याय न हो। ज़रा एक हालात पर ध्यान दीजिए। अगर किसी पर झूठा इलज़ाम लगाकर उसे फँसाने की कोशिश की जाती, तो ऐसा आसानी से नहीं किया जा सकता था। वह इसलिए कि जिस पर इलज़ाम लगाया जाता था, उसे कानून के तहत यह जानने का हक था कि किसने उस पर इलज़ाम लगाया है। (व्यव. 19:16-19; 25:1) यही नहीं, उसे तभी दोषी ठहराया जा सकता था, जब कम-से-कम दो गवाहों के बयान से उस पर लगा इलज़ाम सच साबित हो जाता। (व्यव. 17:6; 19:15) लेकिन अगर किसी इसराएली ने ऐसा अपराध किया हो, जिसका एक ही गवाह हो, तब क्या? उसे यह नहीं मान लेना था कि वह सज़ा से बच जाएगा। उसने जो किया, वह यहोवा ने देखा था। अब परिवार की बात लीजिए। हालाँकि पिताओं को परिवार में अधिकार दिया गया था, लेकिन उनके अधिकार की कुछ सीमाएँ थीं। परिवार के कुछ मसले ऐसे होते थे, जिनमें शहर के मुखियाओं का शामिल होना ज़रूरी होता था और उन्हें आखिरी फैसला सुनाना होता था।​—व्यव. 21:18-21.

21 सबक: न्याय करने के मामले में यहोवा एक उम्दा मिसाल है। वह कभी अन्याय नहीं करता। (भज. 9:7) जो लोग हमेशा उसके स्तरों पर चलते हैं, उन्हें वह इनाम देता है। लेकिन जो लोग अपने अधिकार का नाजायज़ फायदा उठाते हैं, उन्हें वह सज़ा देता है। (2 शमू. 22:21-23; यहे. 9:9, 10) शायद कुछ लोग दुष्ट काम करें और ऐसा लगे कि वे सज़ा से बच गए हैं। लेकिन यहोवा अपने सही वक्‍त पर ज़रूर उस बारे में कुछ करेगा। (नीति. 28:13) अगर वे पश्‍चाताप न करें, तो जल्द ही उन्हें पता चल जाएगा कि “जीवित परमेश्‍वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।”​—इब्रा. 10:30, 31.

कानून ने खासकर किन लोगों की हिफाज़त की?

कोई मामला निपटाते वक्‍त मुखियाओं को यहोवा की तरह प्यार से पेश आना था और न्याय करना था (पैराग्राफ 22 देखें) *

22-24. (क) कानून ने खासकर किन लोगों की हिफाज़त की? (ख) इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? (ग) निर्गमन 22:22-24 में क्या चेतावनी दी गयी है?

22 कानून ने खासकर उन लोगों की हिफाज़त की, जो अपनी हिफाज़त नहीं कर सकते थे जैसे, अनाथ, विधवा और परदेसी। इसराएल के न्यायियों से कहा गया था, “तुम अपने यहाँ रहनेवाले किसी परदेसी या अनाथ के साथ अन्याय मत करना। और जब तुम किसी विधवा को उधार देते हो तो उसका कपड़ा ज़ब्त करके गिरवी मत रखना।” (व्यव. 24:17) यहोवा समाज के सबसे कमज़ोर और बेसहारा लोगों पर खास ध्यान देता था। इन्हें सतानेवालों को वह सज़ा देता था।​—निर्गमन 22:22-24 पढ़िए।

23 कानून ने परिवार के सदस्यों को लैंगिक अपराध के शिकार होने से भी बचाया, क्योंकि इसमें कहा गया था कि कोई अपने परिवारवालों से यौन-संबंध न रखे। (लैव्य. 18:6-30) इसराएल के आस-पास के देशों में इस तरह के काम बुरे नहीं माने जाते थे और लोग ऐसे काम करते भी थे। लेकिन यहोवा इन कामों से बहुत घिन करता है। उसके लोगों को भी उसके जैसा नज़रिया रखना था।

24 सबक: यहोवा ने जिन्हें कोई अधिकार दिया है, उनसे वह उम्मीद करता है कि वे अपने अधीन लोगों से प्यार करें, उनकी परवाह करें। वह लैंगिक अपराधों से सख्त नफरत करता है और चाहता है कि ऐसे अपराधों से सब लोगों को बचाया जाए, खासकर जो कमज़ोर या बेसहारा हैं। जो कोई ऐसा अपराध करता है, वह यहोवा के सामने जवाबदेह है।

कानून “आनेवाली अच्छी बातों की बस एक छाया है”

25-26. (क) प्यार और न्याय कैसे जीवन और साँस की तरह हैं? (ख) इस शृंखला के अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?

25 प्यार और न्याय, जीवन और साँस की तरह हैं। इस धरती पर जैसे जीवन और साँसें एक-दूसरे के बिना मुमकिन नहीं, वैसे ही प्यार और न्याय एक-दूसरे के बिना मुमकिन नहीं। जब हमें यकीन हो जाता है कि यहोवा हमारे साथ न्याय कर रहा है, तो उसके लिए हमारा प्यार बढ़ने लगता है। फिर जब हमें परमेश्‍वर और उसके नेक स्तरों से प्यार होता है, तो हमारा दिल हमें उभारता है कि हम दूसरों से प्यार करें और उनके साथ कोई अन्याय न करें।

26 मूसा के कानून ने यहोवा और इसराएलियों के रिश्‍ते में मानो जान डाल दी, उनका रिश्‍ता और मज़बूत हो गया। लेकिन यह कानून यीशु के बलिदान चढ़ाने के बाद रद्द हो गया। इसकी जगह दूसरी बातों ने ली, जो कानून से बेहतर हैं। (रोमि. 10:4) प्रेषित पौलुस ने कहा कि मूसा का कानून “आनेवाली अच्छी बातों की बस एक छाया है।” (इब्रा. 10:1) इस शृंखला के अगले लेख में इनमें से कुछ अच्छी बातों पर चर्चा की जाएगी और बताया जाएगा कि मसीही मंडली में प्यार और न्याय की क्या अहमियत है।

गीत 109 दिल से प्यार करें

^ पैरा. 5 यह लेख उस शृंखला का पहला लेख है, जिसमें चर्चा की जाएगी कि हम क्यों यकीन कर सकते हैं कि यहोवा को हमारी परवाह है। शृंखला के बाकी तीन लेख मई 2019 की प्रहरीदुर्ग  में आएँगे। उन लेखों के शीर्षक हैं, “मसीही मंडली में प्यार और न्याय की अहमियत,” “दुष्ट दुनिया में प्यार और न्याय की अहमियत” और “दुर्व्यवहार के शिकार लोगों को कैसे दिलासा दें?

^ पैरा. 2 इसका क्या मतलब है? यहोवा ने मूसा के ज़रिए इसराएलियों को 600 से ज़्यादा नियम दिए थे। उन्हें “कानून,” “मूसा का कानून” और “आज्ञाएँ” कहा जाता है। इसके अलावा, बाइबल की पहली पाँच किताबों (उत्पत्ति से व्यवस्थाविवरण तक) को भी अकसर कानून कहा गया है। कभी-कभी पूरे इब्रानी शास्त्र को कानून कहा गया है।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: एक इसराएली माँ खाना बनाते समय अपनी बेटियों से खुशी-खुशी बात कर रही है। पीछे की तरफ पिता अपने बेटे को भेड़ों की देखभाल करना सिखा रहा है।

^ पैरा. 64 तसवीर के बारे में: शहर के फाटक पर मुखिया एक विधवा और उसके बच्चे की प्यार से मदद कर रहे हैं, जो शहर के एक व्यापारी से बहुत दुखी हैं।