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अध्ययन लेख 11

यहोवा की आवाज़ सुनिए!

यहोवा की आवाज़ सुनिए!

“यह मेरा प्यारा बेटा है . . . इसकी सुनो।”​—मत्ती 17:5.

गीत 89 सुन के अमल करें

लेख की एक झलक *

1-2. (क) यहोवा ने इंसानों से किस तरह बात की है? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

यहोवा को अपने सेवकों से बात करना बहुत अच्छा लगता है। पुराने ज़माने में उसने भविष्यवक्‍ताओं, स्वर्गदूतों और अपने बेटे मसीह यीशु के ज़रिए अपने विचार इंसानों को बताए। (आमो. 3:7; गला. 3:19; प्रका. 1:1) आज वह अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमसे बात करता है। उसने हमें बाइबल इसलिए दी है, ताकि हम उसकी सोच और उसके काम करने के तरीके जान सकें।

2 जब यीशु धरती पर था, तो यहोवा ने स्वर्ग से तीन मौकों पर बात की। आइए देखें कि उन मौकों पर यहोवा ने क्या कहा, उससे हम क्या सीख सकते हैं और उसकी कही बातों से हमें किस तरह फायदा हो सकता है।

“तू मेरा प्यारा बेटा है”

3. (क) मरकुस 1:9-11 के मुताबिक यीशु के बपतिस्मे के वक्‍त यहोवा ने क्या कहा? (ख) इन शब्दों से कौन-सी अहम सच्चाइयाँ साफ ज़ाहिर हुईं?

3 मरकुस 1:9-11 पढ़िए। इन आयतों में वह पहला मौका बताया गया है, जब स्वर्ग से यहोवा की आवाज़ सुनायी दी। उसने कहा, “तू मेरा प्यारा बेटा है, मैंने तुझे मंज़ूर किया है।” यह कहकर यहोवा ने अपने बेटे के लिए प्यार और भरोसा ज़ाहिर किया। अपने पिता की ये बातें यीशु के दिल को छू गयी होंगी! इन शब्दों से यीशु के बारे में तीन अहम सच्चाइयाँ साफ ज़ाहिर हुईं। पहली, यीशु यहोवा का बेटा है। दूसरी, यहोवा अपने बेटे से प्यार करता है और तीसरी, यहोवा ने अपने बेटे को मंज़ूर किया है। आइए एक-एक करके इन सच्चाइयों की करीब से जाँच करें।

4. बपतिस्मे के वक्‍त से यीशु किस मायने में परमेश्‍वर का बेटा हो गया था?

4 ‘तू मेरा बेटा है।’ यीशु स्वर्ग में परमेश्‍वर का बेटा था। लेकिन जब उसके बपतिस्मे के वक्‍त परमेश्‍वर ने कहा कि ‘तू मेरा बेटा है,’ तो उसका क्या मतलब था? वह दरअसल यह कह रहा था कि अब यीशु एक अलग मायने में उसका बेटा है। अब उसका पवित्र शक्‍ति से अभिषेक हो गया था और उसके पास वापस स्वर्ग में जीवन पाने की आशा थी। वहाँ परमेश्‍वर उसे राजा और महायाजक ठहराता। (लूका 1:31-33; इब्रा. 1:8, 9; 2:17) इस तरह परमेश्‍वर का यह कहना एकदम सही था, ‘तू मेरा बेटा है।’​—लूका 3:22.

दूसरों से तारीफ और हौसला पाकर हम अच्छी तरक्की करते हैं (पैराग्राफ 5 देखें) *

5. प्यार ज़ाहिर करने और हौसला बढ़ाने के बारे में हम यहोवा से क्या सीखते हैं?

5 “तू मेरा प्यारा  बेटा है।” इन शब्दों से यहोवा ने ज़ाहिर किया कि वह अपने बेटे से प्यार करता है और उससे खुश है। इससे हम सीखते हैं कि हमें भी दूसरों का हौसला बढ़ाना चाहिए। (यूह. 5:20) जब हमारे करीबी प्यार ज़ाहिर करते हैं और हमारे अच्छे कामों की तारीफ करते हैं, तो हमारे चेहरे खिल उठते हैं। उसी तरह हमें भी मंडली के भाई-बहनों और परिवारवालों के लिए प्यार ज़ाहिर करना चाहिए और उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। दूसरों की तारीफ करने से उनका विश्‍वास बढ़ता है और उन्हें वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहने का बढ़ावा मिलता है। खासकर माता-पिताओं को अपने बच्चों का हौसला बढ़ाना चाहिए। जब माता-पिता दिल से अपने बच्चों की तारीफ करते हैं और प्यार जताते हैं, तो बच्चे खुश रहते हैं और अच्छी तरक्की करते हैं।

6. हम यीशु मसीह पर पूरा भरोसा क्यों रख सकते हैं?

6 “मैंने तुझे मंज़ूर किया है।” इन शब्दों से पता चलता है कि यहोवा को यीशु पर पूरा भरोसा था कि वह उसकी मरज़ी पूरी करेगा। जब यहोवा को अपने बेटे पर इतना भरोसा था, तो हम भी पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यीशु यहोवा के सभी वादे पूरे करेगा। (2 कुरिं. 1:20) यीशु के उदाहरण पर गौर करने से हमारा यह इरादा मज़बूत हो जाता है कि हम उससे सीखें और उसके नक्शे-कदम पर चलें। जैसे यहोवा को यीशु पर भरोसा था, वैसे ही उसे अपने सेवकों पर भरोसा है कि एक समूह के तौर पर वे हमेशा उसके बेटे से सीखते रहेंगे।​—1 पत. 2:21.

“इसकी सुनो”

7. मत्ती 17:1-5 के मुताबिक किस मौके पर स्वर्ग से यहोवा की आवाज़ सुनायी दी और उसने क्या कहा?

7 मत्ती 17:1-5 पढ़िए। दूसरे मौके पर स्वर्ग से यहोवा की आवाज़ तब सुनायी दी, जब यीशु का “रूप बदल गया” था। यीशु पतरस, याकूब और यूहन्‍ना को लेकर एक ऊँचे पहाड़ पर गया हुआ था। वहाँ उन्होंने एक लाजवाब दर्शन देखा। यीशु का चेहरा दमक उठा और उसके कपड़े रौशनी की तरह चमकने लगे। प्रेषितों को दो आदमी दिखायी दिए, जो मूसा और एलियाह की तरह लग रहे थे। वे यीशु से उसकी मौत और दोबारा ज़िंदा किए जाने के बारे में बातें करने लगे। हालाँकि तीनों प्रेषित “नींद से बोझिल थे,” लेकिन उन्होंने यह अनोखा दर्शन तब देखा, जब वे पूरी तरह जागे हुए थे। (लूका 9:29-32) इसके बाद एक उजला बादल उन पर छा गया और उस बादल में से एक आवाज़ आयी। यह परमेश्‍वर की आवाज़ थी! जैसे यहोवा ने यीशु के बपतिस्मे के वक्‍त किया था, वैसे ही उसने इस मौके पर भी ज़ाहिर किया कि वह अपने बेटे से प्यार करता है और उससे खुश है। उसने कहा, “यह मेरा प्यारा बेटा है जिसे मैंने मंज़ूर किया है।” लेकिन इस बार उसने यह भी कहा, “इसकी सुनो।”

8. यीशु और उसके चेलों पर दर्शन का क्या असर हुआ?

8 इस दर्शन से एक झलक मिली कि जब यीशु परमेश्‍वर के राज का राजा होगा, तो उसकी महिमा और शक्‍ति कैसी होगी। इस दर्शन से यीशु को सच में हिम्मत मिली होगी और वह आनेवाली मुश्‍किलों और दर्दनाक मौत के लिए तैयार हुआ होगा। इससे चेलों का भी विश्‍वास बढ़ा होगा और भविष्य में आनेवाली परीक्षाएँ सहने और उन्हें जो काम करना था, उसके लिए हिम्मत मिली होगी। करीब 30 साल बाद प्रेषित पतरस ने इसी दर्शन का ज़िक्र किया, जिससे पता चलता है कि दर्शन की यादें अब भी उसके मन में ताज़ा थीं।​—2 पत. 1:16-18.

9. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी फायदेमंद सलाह दी?

9 “इसकी सुनो।” यहोवा ने साफ-साफ बताया कि हम उसके बेटे की सुनें और उसकी आज्ञा मानें। जब यीशु धरती पर था, तो उसने ऐसी बहुत-सी बातें बतायीं, जो गौर करने लायक हैं। जैसे, उसने अपने चेलों को प्यार से सिखाया कि उन्हें खुशखबरी किस तरह सुनानी चाहिए और उसने बार-बार उन्हें जागते रहने के लिए कहा। (मत्ती 24:42; 28:19, 20) उसने उन्हें यह भी बढ़ावा दिया कि वे जी-तोड़ संघर्ष करें और कभी हिम्मत न हारें। (लूका 13:24) यीशु ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि चेलों को एक-दूसरे से प्यार करना है, उन्हें एक होकर रहना है और उसकी आज्ञाएँ माननी हैं। (यूह. 15:10, 12, 13) सच में, यीशु ने अलग-अलग मामलों में कितनी बेहतरीन सलाह दी! उसकी सलाह आज भी उतनी ही फायदेमंद है, जितनी उस वक्‍त थी।

10-11. हम कैसे दिखाते हैं कि हम यीशु की सुन रहे हैं?

10 यीशु ने कहा, “हर कोई जो सच्चाई के पक्ष में है वह मेरी आवाज़ सुनता है।” (यूह. 18:37) हम कैसे दिखाते हैं कि हम यीशु की सुन रहे हैं? यह हम कई तरीकों से करते हैं। हम ‘एक-दूसरे की सहते रहते हैं और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते’ हैं। (कुलु. 3:13; लूका 17:3, 4) हम जोश से खुशखबरी का ऐलान करते हैं, “फिर चाहे अच्छा समय हो या बुरा।”​—2 तीमु. 4:2.

11 यीशु ने यह भी कहा, “मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं।” (यूह. 10:27) यीशु के चेले उस वक्‍त भी उसकी सुन रहे होते हैं, जब वे उसकी सलाह पर चलते हैं। वे “ज़िंदगी की चिंताओं” की वजह से अपना ध्यान भटकने नहीं देते। (लूका 21:34) इसके बजाय वे यीशु की आज्ञाएँ मानना ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी समझते हैं, यहाँ तक कि मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी। हमारे बहुत-से भाई-बहन बड़ी-बड़ी परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं। जैसे, विरोधी उन पर ज़ुल्म ढा रहे हैं, कई भाई-बहन घोर गरीबी का सामना कर रहे हैं और कई तो प्राकृतिक विपत्तियों की मार सह रहे हैं। इन सबके बावजूद वे यहोवा के वफादार रहते हैं। उन्हें यीशु भरोसा दिलाता है, “जिसके पास मेरी आज्ञाएँ हैं और जो उन्हें मानता है, वही मुझसे प्यार करता है। जो मुझसे प्यार करता है उससे मेरा पिता प्यार करेगा।”​—यूह. 14:21.

यीशु की सुनने का एक तरीका है कि हम प्रचार में लगे रहें (पैराग्राफ 12 देखें) *

12. यीशु की सुनने का एक और तरीका क्या है?

12 यीशु की सुनने का एक और तरीका है, उन भाइयों को सहयोग देना, जिन पर अगुवाई करने की ज़िम्मेदारी है। (इब्रा. 13:7, 17) हाल ही में परमेश्‍वर के संगठन में कई फेरबदल हुए हैं। जैसे, हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में बदलाव, राज-घर बनाने, उनकी मरम्मत करने और उनका रख-रखाव करने के तरीके में फेरबदल और प्रचार करने के लिए नए प्रकाशन और नए-नए तरीके। इन मामलों में संगठन ने सोच-समझकर जो बदलाव किए और जो बढ़िया निर्देश दिए, उनकी हम बहुत कदर करते हैं। हम यकीन रख सकते हैं कि जब हम ये निर्देश मानेंगे, तो यहोवा हमें ज़रूर आशीष देगा।

13. यीशु की सुनने से कौन-से फायदे होते हैं?

13 यीशु की सभी शिक्षाएँ सुनने और उन पर चलने से हमें फायदा होता है। यीशु ने चेलों को यकीन दिलाया कि उसकी शिक्षाओं से उन्हें ताज़गी मिलेगी। उसने कहा, “तुम ताज़गी पाओगे। इसलिए कि मेरा जुआ उठाना आसान है और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती 11:28-30) यीशु की ज़िंदगी और उसकी सेवा की जानकारी देनेवाली खुशखबरी की चारों किताबों से, बल्कि यूँ कहें तो परमेश्‍वर के पूरे वचन से हमें ताज़गी मिलती है और हम बुद्धिमान बनते हैं। (भज. 19:7; 23:3) यीशु ने कहा, “सुखी हैं वे जो परमेश्‍वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं!”​—लूका 11:28.

‘मैं अपने नाम की महिमा करूँगा’

14-15. (क) यूहन्‍ना 12:27, 28 के मुताबिक यहोवा ने तीसरी बार स्वर्ग से कब बात की? (ख) यहोवा की बातों से यीशु को दिलासा और हिम्मत क्यों मिली होगी?

14 यूहन्‍ना 12:27, 28 पढ़िए। यूहन्‍ना की खुशखबरी की किताब में वह तीसरा मौका बताया गया है, जब यहोवा ने स्वर्ग से बात की थी। यीशु अपनी मौत से कुछ दिन पहले यरूशलेम में आखिरी फसह मनाने आया हुआ था। उसी दौरान उसने कहा, “मेरा जी बेचैन है।” फिर उसने बिनती की, “पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब उसके पिता ने स्वर्ग से कहा, “मैंने इसकी महिमा की है और फिर से करूँगा।”

15 यीशु क्यों बेचैन था? वह इसलिए कि उस पर अपने पिता के वफादार रहने की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। यीशु जानता था कि उसे बड़ी बेरहमी से कोड़े लगाए जाएँगे और उसकी दर्दनाक मौत होगी। (मत्ती 26:38) लेकिन सबसे बढ़कर उसे अपने पिता के नाम की चिंता थी। दरअसल यीशु पर परमेश्‍वर की निंदा करने का झूठा इलज़ाम लगाया गया था। इस वजह से उसे डर था कि एक निंदा करनेवाले के तौर पर उसकी मौत होने से परमेश्‍वर की महिमा होने के बजाय बदनामी होगी। ऐसे में यहोवा के शब्द सुनकर उसे कितना सुकून मिला होगा! अब वह पूरा यकीन रख सकता था कि यहोवा के नाम की महिमा होगी। सच में, यीशु को बहुत दिलासा मिला होगा और आनेवाली परीक्षाओं के लिए हिम्मत मिली होगी। इस मौके पर यहोवा ने जो बातें कहीं, वे शायद सिर्फ यीशु ने समझी थीं, लेकिन यहोवा ने यह ध्यान रखा कि वे बातें हम सबके लिए लिखी जाएँ।​—यूह. 12:29, 30.

यहोवा अपने नाम की महिमा करेगा और अपने लोगों को बचाएगा (पैराग्राफ 16 देखें) *

16. हमें शायद किस वजह से यह चिंता सताए कि यहोवा की बदनामी हो रही है?

16 यीशु की तरह शायद हमें भी यहोवा के नाम की चिंता हो। हो सकता है, हम पर झूठा इलज़ाम लगाया गया हो और हमें सताया जा रहा हो। या फिर विरोधी हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैला रहे हों। हमें शायद लगे कि इन सबसे यहोवा और उसके संगठन की कितनी बदनामी हो रही है। लेकिन हमें बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें यहोवा के वे शब्द याद करने चाहिए, जो उसने यीशु से कहे थे। उन शब्दों से हमें काफी दिलासा मिलेगा। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि “परमेश्‍वर की वह शांति जो समझ से परे है, मसीह यीशु के ज़रिए [हमारे] दिल की और [हमारे] दिमाग के सोचने की ताकत की हिफाज़त करेगी।” (फिलि. 4:6, 7) यहोवा अपने नाम की महिमा करने में कभी नाकाम नहीं होगा। इतना ही नहीं, वह जानता है कि शैतान और उसकी दुनिया ने उसके वफादार सेवकों को कितना दुख-दर्द दिया है। वह अपने राज के ज़रिए सारे दुख दूर करेगा।​—भज. 94:22, 23; यशा. 65:17.

आज यहोवा की आवाज़ सुनने के फायदे

17. यशायाह 30:21 के मुताबिक आज यहोवा हमसे किस तरह बात करता है?

17 यहोवा आज भी हमसे बात करता है। (यशायाह 30:21 पढ़िए।) यह सच है कि वह स्वर्ग से हमसे बात नहीं करता, मगर उसने अपना लिखित वचन बाइबल दिया है, जिसके ज़रिए वह हमारी मदद करता है और हमें राह दिखाता है। इसके अलावा, यहोवा की पवित्र शक्‍ति ‘विश्‍वासयोग्य प्रबंधक’ को उभारती है कि वह उसके सेवकों को सही वक्‍त पर खाना देता रहे। (लूका 12:42) आज हमें किताबों-पत्रिकाओं, वेबसाइट, वीडियो और ऑडियो प्रकाशनों के ज़रिए भरपूर मात्रा में यह खाना मिल रहा है!

18. यहोवा के शब्दों से कैसे आपका विश्‍वास और हिम्मत बढ़ती है?

18 आइए हम वे बातें याद रखें, जो यहोवा ने तीन मौकों पर स्वर्ग से कही थीं! बाइबल में लिखी इन बातों से हमारा भरोसा बढ़ता है कि किसी भी तरह के हालात यहोवा के बस के बाहर नहीं हैं। साथ ही, शैतान और उसकी दुष्ट दुनिया चाहे हमें जो भी दुख-दर्द दें, यहोवा उसे दूर करेगा। आइए ठान लें कि हम यहोवा की आवाज़ ध्यान से सुनेंगे। अगर हम ऐसा करें, तो हम हर मुश्‍किल को पार कर पाएँगे, फिर चाहे हम आज उसका सामना कर रहे हों या भविष्य में हमें करना पड़े। बाइबल हमें याद दिलाती है, “तुम्हें धीरज धरने की ज़रूरत है ताकि परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के बाद तुम वह पा सको जिसका वादा परमेश्‍वर ने किया है।”​—इब्रा. 10:36.

गीत 4 “यहोवा मेरा चरवाहा है”

^ पैरा. 5 जब यीशु धरती पर था, तो यहोवा ने स्वर्ग से तीन मौकों पर बात की। एक मौके पर यहोवा ने मसीह के चेलों को बढ़ावा दिया कि वे उसके बेटे की सुनें। आज यहोवा अपने लिखित वचन के ज़रिए हमसे बात करता है, जिसमें यीशु की शिक्षाएँ भी दी गयी हैं। वह हमसे अपने संगठन के ज़रिए भी बात करता है। इस लेख में बताया जाएगा कि यहोवा और यीशु की सुनने से हमें किस तरह फायदा होता है।

^ पैरा. 52 तसवीर के बारे में: एक प्राचीन ध्यान देता है कि एक सहायक सेवक राज-घर को साफ रखने और साहित्य काउंटर पर काम करने में कितनी मेहनत करता है। प्राचीन उस भाई की दिल से तारीफ करता है।

^ पैरा. 54 तसवीर के बारे में: सिएरा लियोन में एक पति-पत्नी एक मछुवारे को सभाओं का निमंत्रण-पत्र दे रहे हैं।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: एक देश में, जहाँ हमारे काम पर कुछ पाबंदियाँ लगी हैं, कुछ साक्षी एक घर में सभा के लिए इकट्ठा हैं। उन्होंने ऐसे कपड़े पहने हैं, जिससे किसी को शक न हो कि वे सभा के लिए जा रहे हैं।