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अध्ययन लेख 29

“जाओ . . . चेला बनना सिखाओ”

“जाओ . . . चेला बनना सिखाओ”

“इसलिए जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।”​—मत्ती 28:19.

गीत 60 ज़िंदगी दाँव पर लगी है

लेख की एक झलक *

1-2. (क) मत्ती 28:18-20 में दर्ज़ यीशु की आज्ञा के मुताबिक मसीही मंडली की सबसे अहम ज़िम्मेदारी क्या है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

यीशु के चेले गलील के एक पहाड़ पर इकट्ठा हैं। उन्हें यहाँ उनके प्रभु ने बुलाया है, जो मरे हुओं में से ज़िंदा हो चुका है। प्रेषित यह जानने के लिए बेताब हैं कि यीशु उन्हें क्या बतानेवाला है। (मत्ती 28:16) शायद यही वह मौका है जब यीशु “एक ही वक्‍त पर 500 से ज़्यादा भाइयों के सामने प्रकट हुआ।” (1 कुरिं. 15:6) यीशु ने अपने चेलों की यह सभा क्यों रखी? उन्हें एक रोमांचक काम सौंपने के लिए। उसने उनसे कहा, “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।”​—मत्ती 28:18-20 पढ़िए।

2 आगे चलकर इन्हीं चेलों से मिलकर पहली सदी की मसीही मंडली बनी। उस मंडली की सबसे अहम ज़िम्मेदारी थी, और भी लोगों को मसीह के चेले बनाना। * आज पूरी धरती पर सच्चे मसीहियों की लाखों मंडलियाँ हैं और इन मंडलियों की भी यही ज़िम्मेदारी है। इस लेख में हम चार सवालों के जवाब जानेंगे: चेले बनाने का काम क्यों बहुत ज़रूरी है? इसमें क्या शामिल है? चेले बनाने में क्या सब मसीहियों का हाथ होता है? इस काम में सब्र रखना क्यों ज़रूरी है?

चेले बनाना क्यों बहुत ज़रूरी है?

3. यूहन्‍ना 14:6 और 17:3 के मुताबिक चेले बनाने का काम क्यों बहुत ज़रूरी है?

3 चेले बनाने का काम बहुत ज़रूरी है। वह क्यों? वह इसलिए कि जो लोग मसीह के चेले बनते हैं, सिर्फ वही परमेश्‍वर के दोस्त बन सकते हैं। इसके अलावा, जो लोग मसीह के नक्शे-कदम पर चलते हैं, उनकी ज़िंदगी सँवर जाती है और उन्हें भविष्य में हमेशा जीने की आशा मिलती है। (यूहन्‍ना 14:6; 17:3 पढ़िए।) सच में, यीशु ने हमें बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी दी है, लेकिन यह काम हम अकेले नहीं करते। प्रेषित पौलुस ने खुद के और अपने कुछ साथियों के बारे में लिखा, “हम परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं।” (1 कुरिं. 3:9) हम अपरिपूर्ण इंसानों को यहोवा और मसीह ने कितना बड़ा सम्मान दिया है!

4. इवान और मटिल्डा के अनुभव से हम क्या सीखते हैं?

4 चेले बनाने के काम से हमें बहुत खुशी मिल सकती है। कोलंबिया में रहनेवाले भाई इवान और उसकी पत्नी मटिल्डा के अनुभव पर ध्यान दीजिए। उन्होंने डावियर नाम के एक जवान आदमी को गवाही दी। एक बार डावियर ने उनसे कहा, “मैं खुद को बदलना तो चाहता हूँ, पर मुझसे नहीं हो पाएगा।” दरअसल डावियर एक मुक्केबाज़ था और उसे ड्रग्स लेने और शराब पीने की बुरी लत थी। वह अपनी गर्लफ्रैंड एरिका के साथ रहता था। भाई इवान का कहना है, “हम उसे बाइबल अध्ययन कराने लगे। वह एक दूर-दराज़ गाँव में रहता था और हमें कई-कई घंटे कीचड़ से भरी सड़कों पर साइकिल से वहाँ जाना होता था। धीरे-धीरे डावियर का व्यवहार और रवैया बदलने लगा। यह देखकर एरिका भी उसके साथ बाइबल अध्ययन में बैठने लगी।” कुछ समय बाद डावियर ने ड्रग्स लेना, शराब पीना और मुक्केबाज़ी करना छोड़ दिया। उसने एरिका से शादी कर ली। बहन मटिल्डा का कहना है, “2016 में जब डावियर और एरिका का बपतिस्मा हुआ, तो हमें याद आया कि डावियर कहा करता था, ‘मैं खुद को बदलना तो चाहता हूँ, पर मुझसे नहीं हो पाएगा।’ लेकिन उस दिन उसे देखकर हमारी आँखें भर आयीं।” यह दिखाता है कि जब हम मसीह का चेला बनने में लोगों की मदद करते हैं, तो हमें बेहद खुशी होती है।

चेले बनाने में क्या शामिल है?

5. चेले बनाने के लिए पहला कदम क्या है?

5 चेले बनाने के लिए पहला कदम है, उन लोगों को ‘अच्छी तरह ढूँढ़ना,’ जो यहोवा के बारे में सीखना चाहते हैं। (मत्ती 10:11) जिन लोगों से हम मिलते हैं, उन सबको गवाही देकर हम दिखाते हैं कि हम वाकई यहोवा के साक्षी हैं। प्रचार के बारे में मसीह की आज्ञा मानकर हम यह भी साबित कर रहे होते हैं कि हम सच्चे मसीही हैं।

6. प्रचार में बढ़िया नतीजे पाने के लिए क्या ज़रूरी है?

6 प्रचार में कुछ लोग बाइबल की सच्चाइयाँ जानने के लिए उत्सुक रहते हैं, जबकि कई लोगों को देखकर शायद शुरू-शुरू में लगे कि उन्हें कोई खास दिलचस्पी नहीं है। शायद हमें उनकी दिलचस्पी बढ़ानी पड़े। प्रचार में बढ़िया नतीजे पाने के लिए ज़रूरी है कि हम अच्छे से तैयारी करें। कुछ ऐसे विषय चुनिए, जिनमें आपके इलाके के लोगों को दिलचस्पी हो। फिर सोचिए कि उन विषयों पर आप बातचीत कैसे शुरू करेंगे।

7. (क) आप किसी से बातचीत कैसे शुरू कर सकते हैं? (ख) लोगों की बात ध्यान से सुनना और उनकी राय की कदर करना क्यों ज़रूरी है?

7 उदाहरण के लिए, आप घर-मालिक से कह सकते हैं, “आज हर कहीं परिवार टूटते जा रहे हैं। आपको क्या लगता है, पति-पत्नी अपने रिश्‍ते को कैसे मज़बूत कर सकते हैं?” फिर आप चाहे तो कुलुस्सियों 3:18, 19 पर चर्चा कर सकते हैं। या फिर आप घर-मालिक से पूछ सकते हैं, “आजकल ऐसे बहुत कम बच्चे हैं, जो बड़ों की इज़्ज़त करते हैं और अच्छा व्यवहार करते हैं। आप क्या सोचते हैं, माँ-बाप ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि बच्चे सबके साथ अच्छा व्यवहार करना सीखें?” फिर व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 पर चर्चा कीजिए। कोई भी विषय चुनते वक्‍त अपने सुननेवालों को ध्यान में रखिए। सोचिए कि जब वे इस विषय पर बाइबल की सलाह सुनेंगे, तो उन्हें क्या फायदा होगा। लोगों से बात करते वक्‍त ध्यान से उनकी सुनना और उनकी राय की कदर करना बहुत ज़रूरी है। इससे आप समझ पाएँगे कि उनके मन में क्या चल रहा है और फिर हो सकता है कि वे भी आपकी बात ध्यान से सुनें।

8. हमें बार-बार वापसी भेंट क्यों करनी चाहिए?

8 बाइबल अध्ययन शुरू करने के लिए शायद आपको वापसी भेंट करने में काफी मेहनत करनी पड़े और बहुत वक्‍त देना पड़े। ऐसा क्यों? क्योंकि हो सकता है कि जिस समय आप लोगों से दोबारा मिलने जाते हैं, उस समय वे घर पर न हों। यह भी हो सकता है कि एक व्यक्‍ति इतनी जल्दी बाइबल अध्ययन के लिए राज़ी न हो, इसलिए आपको कई बार वापसी भेंट करनी पड़े। याद रखिए, एक पौधा तभी अच्छी तरह बढ़ता है जब उसे लगातार पानी दिया जाता है। उसी तरह जब दिलचस्पी दिखानेवाले व्यक्‍ति के साथ लगातार परमेश्‍वर के वचन पर चर्चा की जाती है, तो उसके दिल में यहोवा और मसीह के लिए प्यार बढ़ेगा।

चेले बनाने में क्या सब मसीहियों का हाथ होता है?

पूरी दुनिया में यहोवा के साक्षी नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में लगे हुए हैं (पैराग्राफ 9-10 देखें) *

9-10. हम यह क्यों कह सकते हैं कि नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में हर मसीही का हाथ होता है?

9 नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में हर मसीही प्रचारक का हाथ होता है। इस काम की तुलना एक खोए हुए बच्चे को ढूँढ़ने से की जा सकती है। किस मायने में? एक सच्ची घटना पर ध्यान दीजिए। एक बार तीन साल का एक लड़का घर से निकल गया और कहीं खो गया। करीब 500 लोग उसे ढूँढ़ने में लगे हुए थे। आखिरकार 20 घंटे बाद एक व्यक्‍ति ने मक्के के खेत से उस बच्चे को ढूँढ़ निकाला। वह व्यक्‍ति सारा श्रेय खुद नहीं लेना चाहता था। उसने कहा, “बच्चे को ढूँढ़ने में सैकड़ों लोगों ने मेहनत की है।”

10 आज दुनिया में बहुत-से लोग उस खोए हुए बच्चे की तरह हैं। उन्हें ज़िंदगी में कोई आशा नहीं है, उन्हें मदद चाहिए। (इफि. 2:12) इन नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में 80 लाख से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षी लगे हुए हैं। शायद आप जिस इलाके में प्रचार कर रहे हों, वहाँ आपको कोई बाइबल अध्ययन न मिले। मगर हो सकता है कि उसी इलाके में दूसरे प्रचारकों को बाइबल अध्ययन मिल जाए। जब किसी प्रचारक को ऐसा व्यक्‍ति मिलता है, जो बाद में मसीह का चेला बनता है, तो उन सब मसीहियों को खुशी होती है, जिन्होंने उस इलाके में नेकदिल लोगों को ढूँढ़ने में हिस्सा लिया।

11. भले ही आप बाइबल अध्ययन न करा रहे हों, फिर भी आप चेले बनाने में कैसे सहयोग दे सकते हैं?

11 अगर फिलहाल आपके पास कोई बाइबल अध्ययन नहीं है, तो भी आप चेले बनाने में दूसरे तरीकों से सहयोग दे सकते हैं। जैसे, आप सभा में नए लोगों का स्वागत कर सकते हैं और उनसे अच्छे से बात कर सकते हैं। इस तरह आप उन्हें यकीन दिला रहे होंगे कि प्यार सच्चे मसीहियों की पहचान है। (यूह. 13:34, 35) जब आप सभाओं में जवाब देते हैं, तो नए लोग काफी कुछ सीखते हैं, फिर चाहे आपके जवाब छोटे क्यों न हों। वे समझ पाते हैं कि वे किस तरह दूसरों को दिल से और आदर के साथ अपने विश्‍वास के बारे में बता सकते हैं। इसके अलावा, आप किसी नए प्रचारक के साथ प्रचार में जा सकते हैं और उसे सिखा सकते हैं कि किस तरह बाइबल से लोगों के साथ तर्क करें। ऐसा करके आप उसे मसीह के नक्शे-कदम पर चलना सिखा रहे होंगे।​—लूका 10:25-28.

12. चेले बनाने के लिए क्या हममें कोई खास काबिलीयत होनी चाहिए? समझाइए।

12 हममें से किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसमें कोई खास काबिलीयत होगी, तभी वह लोगों को यीशु का चेला बनना सिखा पाएगा। बोलिविया में रहनेवाली बहन फौस्टीना के अनुभव पर ध्यान दीजिए। जब वह पहली बार यहोवा के साक्षियों से मिली, तब उसे पढ़ना नहीं आता था। फिर उसने थोड़ा-बहुत पढ़ना सीखा। अब उसका बपतिस्मा हो चुका है और उसे लोगों को सच्चाई सिखाना बहुत अच्छा लगता है। वह हर हफ्ते पाँच बाइबल अध्ययन कराती है। हालाँकि फौस्टीना अब भी उतनी अच्छी तरह नहीं पढ़ पाती, जितना कि उसके कई बाइबल विद्यार्थी पढ़ लेते हैं, फिर भी बपतिस्मा लेने में उसने अब तक छ: लोगों की मदद की है।​—लूका 10:21.

13. भले ही हम व्यस्त रहते हों, फिर भी चेले बनाने के काम में हिस्सा लेने से कौन-सी आशीषें मिल सकती हैं?

13 बहुत-से मसीहियों पर काफी ज़िम्मेदारियाँ हैं, इसलिए वे बहुत व्यस्त रहते हैं। इसके बावजूद वे लोगों को बाइबल अध्ययन कराने के लिए समय निकालते हैं और इससे उन्हें बहुत खुशी मिलती है। अलास्का में रहनेवाली बहन मेलानी की मिसाल लीजिए। उसे अकेले ही अपनी आठ साल की बेटी की परवरिश करनी होती थी और पूरे समय की नौकरी भी। ऊपर से उसके पिता को कैंसर था और उसे उनकी भी देखभाल करनी पड़ती थी। मेलानी जिस कसबे में रहती थी, वहाँ उसके सिवा और कोई साक्षी नहीं था। वह प्रार्थना किया करती थी कि यहोवा उसे ठंड के बावजूद प्रचार में जाने की ताकत दे। उसकी दिली इच्छा थी कि उसे कोई ऐसा व्यक्‍ति मिले, जिसे वह बाइबल अध्ययन करा सके। एक दिन उसकी मुलाकात सेरा नाम की एक औरत से हुई। सेरा यह जानकर बहुत खुश हुई कि परमेश्‍वर का नाम यहोवा है। कुछ समय बाद सेरा बाइबल अध्ययन करने लगी। मेलानी बताती है, “शुक्रवार को शाम होते-होते मैं पस्त हो जाती थी। फिर भी मैं और मेरी बेटी अध्ययन के लिए उसके पास जाते थे। इससे हम दोनों को बहुत फायदा हुआ। हमें सेरा के सवालों के जवाब ढूँढ़ने में मज़ा आता था। हमें यह देखकर भी बहुत खुशी होती थी कि सेरा यहोवा की दोस्त बन रही है।” हालाँकि सेरा का काफी विरोध किया गया, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने चर्च से इस्तीफा दे दिया और बपतिस्मा लेकर साक्षी बन गयी।

चेले बनाने में सब्र रखना क्यों ज़रूरी है?

14. (क) चेले बनाने का काम मछुवाई की तरह कैसे है? (ख) 2 तीमुथियुस 4:1, 2 में लिखे पौलुस के शब्दों से आपको क्या बढ़ावा मिलता है?

14 अगर आपको प्रचार में अच्छे नतीजे न मिल रहे हों, फिर भी उम्मीद रखिए कि एक-न-एक दिन आपको ऐसे लोग ज़रूर मिलेंगे, जो यीशु के चेले बनेंगे। याद कीजिए कि यीशु ने चेले बनाने के काम की तुलना मछुवाई से की थी। मछुवारों को मछलियाँ पकड़ने के लिए घंटों मेहनत करनी पड़ती है। अकसर वे देर रात में या सुबह-सुबह मछली पकड़ने जाते हैं और कभी-कभी तो उन्हें समुंदर में काफी दूर तक जाना होता है। (लूका 5:5) उसी तरह चेला बनानेवाले कुछ लोगों को कई-कई घंटे मानो “मछुवाई” करनी पड़ती है यानी वे सब्र रखते हुए अलग-अलग समय पर और अलग-अलग जगह जाकर लोगों को ढूँढ़ते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? ताकि वे ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को गवाही दे सकें। जो प्रचारक इस तरह कड़ी मेहनत करते हैं, अकसर उनकी मेहनत रंग लाती है। उन्हें ऐसे लोग मिलते हैं, जिन्हें हमारे संदेश में दिलचस्पी होती है। क्या आप भी ऐसा कुछ कर सकते हैं? क्या आप ऐसे समय पर प्रचार में जा सकते हैं, जब ज़्यादातर लोग घर पर होते हैं? या क्या आप ऐसी जगह जाकर प्रचार कर सकते हैं, जहाँ लोगों से मिलने की गुंजाइश ज़्यादा होती है?​—2 तीमुथियुस 4:1, 2 पढ़िए।

जब आपके विद्यार्थी यहोवा को जानने और उसकी आज्ञा मानने की कोशिश करें, तो सब्र रखिए और उनकी मदद कीजिए (पैराग्राफ 15-16 देखें) *

15. बाइबल अध्ययन कराने के लिए हमें सब्र क्यों रखना होता है?

15 बाइबल अध्ययन कराने में सब्र से काम लेना क्यों ज़रूरी है? हम विद्यार्थी को बाइबल की शिक्षाएँ बताते हैं और उनसे लगाव पैदा करने में उसकी मदद करते हैं। मगर इतना ही काफी नहीं होता। हमें उसे यह भी सिखाना होता है कि वह बाइबल के लेखक यहोवा को जाने और उससे प्यार करे। इसके अलावा हमें विद्यार्थी को न सिर्फ यह सिखाना है कि यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी  आज्ञाएँ दीं, बल्कि यह भी कि वे उन आज्ञाओं पर कैसे  चल सकते हैं। जब एक विद्यार्थी बाइबल के सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करता है, तो हमें सब्र से काम लेते हुए उसकी मदद करनी चाहिए। कुछ विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जो कुछ ही महीनों में अपनी सोच और आदतें बदल लेते हैं, जबकि कुछ लोगों को वक्‍त लगता है।

16. एक मिशनरी ने राउल के बारे में जो बताया, उससे आपने क्या सीखा?

16 पेरू में सेवा करनेवाले एक मिशनरी का जो अनुभव रहा, उससे पता चलता है कि सब्र रखने से कितने फायदे होते हैं। वह भाई कहता है, “मैं राउल नाम के एक बाइबल विद्यार्थी को दो किताबों से अध्ययन करा चुका था। मगर उसकी ज़िंदगी में अब भी बड़ी-बड़ी समस्याएँ थीं। वह अपनी पत्नी के साथ हमेशा लड़ाई-झगड़े करता था। वह बहुत गाली-गलौज करता था और उसके बुरे बरताव की वजह से उसके बच्चे उसकी इज़्ज़त नहीं करते थे। वह सभाओं में नियमित तौर पर आता था, इसलिए मैं उसकी और उसके परिवार की मदद करने के लिए उसके यहाँ जाता रहा। मैं जब उससे पहली बार मिला था, उसके तीन साल बाद जाकर उसने बपतिस्मा लिया।”

17. अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?

17 यीशु ने हमसे कहा कि “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” यह ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए हमें अकसर ऐसे लोगों से बात करनी होती है, जिनकी सोच हमारी सोच से एकदम अलग होती है। इसमें वे लोग भी आते हैं, जो किसी धर्म को नहीं मानते या जो परमेश्‍वर पर विश्‍वास नहीं करते। अगले लेख में चर्चा की जाएगी कि ऐसे लोगों को हम खुशखबरी कैसे सुना सकते हैं।

गीत 68 राज का बीज बोएँ

^ पैरा. 5 मसीही मंडली की सबसे अहम ज़िम्मेदारी है, मसीह के चेले बनने में लोगों की मदद करना। इस लेख में कुछ बढ़िया सुझाव दिए जाएँगे कि हम यह ज़िम्मेदारी कैसे पूरी कर सकते हैं।

^ पैरा. 2 इसका क्या मतलब है? मसीह के चेले  यीशु की शिक्षाएँ सीखते ही नहीं, बल्कि उनके मुताबिक चलते भी हैं। वे यीशु के नक्शे-कदम पर या उसकी मिसाल पर नज़दीकी से चलने की पूरी कोशिश करते हैं।​—1 पत. 2:21.

^ पैरा. 52 तसवीर के बारे में: एक आदमी छुट्टियाँ मनाने जा रहा है और एक हवाई अड्‌डे पर साक्षियों से प्रकाशन लेता है। बाद में छुट्टियों के दौरान ही जब वह कहीं घूम रहा है, तब दूसरे साक्षियों को सरेआम गवाही देते देखता है। फिर जब वह घर वापस आता है, तो दो भाई उसके यहाँ प्रचार करने आते हैं।

^ पैरा. 54 तसवीर के बारे में: वही आदमी बाइबल अध्ययन के लिए राज़ी हो जाता है। आगे चलकर वह बपतिस्मा लेता है।