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अध्ययन लेख 27

आनेवाले ज़ुल्मों की अभी से तैयारी कीजिए!

आनेवाले ज़ुल्मों की अभी से तैयारी कीजिए!

“जितने भी मसीह यीशु में परमेश्‍वर की भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।”​—2 तीमु. 3:12.

गीत 129 हम धीरज धरेंगे

लेख की एक झलक *

1. जुल्मों का सामना करने के लिए हमें क्यों तैयार रहना है?

अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात हमारे प्रभु यीशु ने कहा था कि जो कोई उसका चेला बनेगा, उससे लोग नफरत करेंगे। (यूह. 17:14) तब से लेकर आज तक सच्ची उपासना का विरोध करनेवाले, वफादार मसीहियों पर ज़ुल्म ढाते आए हैं। (2 तीमु. 3:12) जैसे-जैसे दुनिया का अंत और करीब आ रहा है, दुश्‍मन हमारा और भी ज़्यादा विरोध करेंगे।​—मत्ती 24:9.

2-3. (क) डर के बारे में हमें क्या बात याद रखनी चाहिए? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

2 ज़ुल्मों का सामना करने के लिए हम अभी से क्या तैयारी कर सकते हैं? तैयारी करने का यह मतलब नहीं कि हम पहले से सोचकर रखें कि हमारे साथ क्या-क्या बुरा होगा। अगर हम यह सब सोचें, तो डर और चिंताएँ हम पर हावी हो सकती हैं। हम शायद मुश्‍किलें आने से पहले ही हिम्मत हार जाएँ और यहोवा की सेवा करना छोड़ दें। (नीति. 12:25; 17:22) डर एक ज़बरदस्त हथियार है, जो हमारा “दुश्‍मन शैतान” हमारे खिलाफ इस्तेमाल करता है। (1 पत. 5:8, 9) ज़ुल्म सहने के लिए हम अपने आप को अभी से कैसे तैयार कर सकते हैं?

3 इस लेख में हम सीखेंगे कि हम यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता कैसे मज़बूत कर सकते हैं और अभी से ऐसा करना क्यों ज़रूरी है। हम यह भी सीखेंगे कि हम अपनी हिम्मत बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं। साथ ही, हम गौर करेंगे कि जब विरोधी हमसे नफरत करते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए।

यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता कैसे मज़बूत करें?

4. इब्रानियों 13:5, 6 में क्या बताया गया है और हमें इस बात पर इतना यकीन क्यों है?

4 यकीन रखिए कि यहोवा आपसे प्यार करता है और आपको कभी नहीं त्यागेगा।  (इब्रानियों 13:5, 6 पढ़िए।) कई साल पहले एक प्रहरीदुर्ग  में बताया गया था, “एक व्यक्‍ति जितना अच्छी तरह यहोवा को जानता है, वह परीक्षा की घड़ी में उतना ही उस पर भरोसा रखेगा।” कितना सही लिखा था! ज़ुल्मों का अच्छे से सामना करने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा से प्यार करें, उस पर पूरा भरोसा रखें और कभी यह शक न करें कि यहोवा को हमसे लगाव है।​—मत्ती 22:36-38; याकू. 5:11.

5. यहोवा का प्यार महसूस करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

5 हर दिन इस मकसद से बाइबल पढ़िए कि आप यहोवा के और भी करीब आएँगे।  (याकू. 4:8) बाइबल पढ़ते वक्‍त यहोवा के गुणों पर खास ध्यान दीजिए। यह समझने की कोशिश कीजिए कि उसकी बातों और कामों से कैसे उसका प्यार झलकता है। (निर्ग. 34:6) कुछ लोगों को यह यकीन करना मुश्‍किल लगता है कि परमेश्‍वर उनसे प्यार करता है, शायद इसलिए कि उनसे कभी किसी ने प्यार नहीं किया। अगर आपको भी ऐसा लगता है, तो हर दिन एक सूची बनाने की कोशिश कीजिए कि यहोवा ने किन-किन तरीकों से आप पर दया की है और आपके लिए भले काम किए हैं। (भज. 78:38, 39; रोमि. 8:32) इस बारे में सोचने से साथ ही, परमेश्‍वर के वचन पर मनन करने से आप पाएँगे कि ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जिनकी आप सूची बना सकते हैं। जितना ज़्यादा आप यहोवा के उपकारों की कदर करेंगे, उतना ही उसके साथ आपका रिश्‍ता मज़बूत होगा।​—भज. 116:1, 2.

6. भजन 94:17-19 के मुताबिक दिल खोलकर प्रार्थना करने से क्या फायदा होता है?

6 लगातार प्रार्थना कीजिए।  कल्पना कीजिए कि एक पिता प्यार से अपने बेटे को गले लगाए हुए है। वह छोटा-सा लड़का अपने पिता के साथ एकदम सुरक्षित महसूस कर रहा है। वह बेझिझक पिता से बात कर रहा है। दिन-भर में उसके साथ अच्छा-बुरा जो भी हुआ, वह सब पिता को बता रहा है। आपका भी यहोवा के साथ ऐसा रिश्‍ता हो सकता है, बशर्ते आप हर दिन दिल खोलकर उससे प्रार्थना करें और इस तरह उसके साथ नज़दीकियाँ बढ़ाएँ। (भजन 94:17-19 पढ़िए।) जब आप यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो ‘आँसू बहाते हुए अपने दिल का सारा हाल यहोवा को बताइए,’ अपने प्यारे पिता से कोई भी चिंता या परेशानी मत छिपाइए। (विला. 2:19) तब आप “परमेश्‍वर की वह शांति” पाएँगे, “जो समझ से परे है।” (फिलि. 4:6, 7) जितना ज़्यादा आप दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना करेंगे, उतना ही आप उसके करीब महसूस करेंगे।​—रोमि. 8:38, 39.

यहोवा और उसके राज पर मज़बूत विश्‍वास रखने से हमें हिम्मत मिलती है

भाई स्टैन्ली जोन्स्‌ ने परमेश्‍वर के राज पर अपना विश्‍वास मज़बूत किया (पैराग्राफ 7 देखें)

7. आपको क्यों पक्का यकीन होना चाहिए कि राज के बारे में परमेश्‍वर के वादे ज़रूर पूरे होंगे?

7 यकीन रखिए कि परमेश्‍वर ने अपने राज के बारे में जो वादे किए हैं, वे ज़रूर पूरे होंगे।  (गिन. 23:19) अगर इन वादों पर आपको पूरा विश्‍वास नहीं है, तो शैतान और उसके लोग आसानी से आपको डरा सकते हैं। (नीति. 24:10; इब्रा. 2:15) अभी वह वक्‍त है कि आप परमेश्‍वर के राज पर अपना विश्‍वास मज़बूत करें। यह आप कैसे कर सकते हैं? समय निकालकर परमेश्‍वर के राज से जुड़े वादों के बारे में अध्ययन कीजिए और यह भी कि इन वादों के पूरा होने के क्या पक्के सबूत हैं। इससे क्या फायदा होगा? ज़रा भाई स्टैन्ली जोन्स्‌ के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जो अपने विश्‍वास की वजह से सात साल जेल में रहे। * धीरज रखने में किस बात ने उनकी मदद की? भाई बताते हैं, “परमेश्‍वर के राज के बारे में सही ज्ञान लेने से मेरा विश्‍वास मज़बूत हुआ, मुझे पूरा यकीन था कि उसका राज आएगा और मैं एक पल के लिए भी नहीं डगमगाया। मुझे लुभाने की [विरोधियों की] चाल नाकाम रही।” अगर यहोवा के वादों पर आपको अटूट विश्‍वास है, तो आप उसके करीब महसूस करेंगे और डर के मारे उसकी सेवा करना नहीं छोड़ेंगे।​—नीति. 3:25, 26.

8. सभाओं के बारे में हम जो रवैया रखते हैं, उससे क्या ज़ाहिर होता है? समझाइए।

8 मसीही सभाओं में लगातार हाज़िर होइए।  सभाओं से हम यहोवा के और भी करीब महसूस करते हैं। इनमें हाज़िर होने के बारे में हम जो रवैया रखते हैं, उससे ज़ाहिर होता है कि हम भविष्य में ज़ुल्मों का सामना कर पाएँगे या नहीं। (इब्रा. 10:24, 25) हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? सोचिए कि अगर आज हम छोटी-छोटी परेशानियों की वजह से सभाओं में नहीं जाते, तो उस वक्‍त हम क्या करेंगे, जब भविष्य में भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होना खतरे से खाली नहीं होगा? वहीं अगर आज हम हर हाल में सभाओं में हाज़िर होते हैं, तो भविष्य में जब विरोधी हमें इकट्ठा होने से रोकेंगे, तब भी हम सभाओं में जाने से नहीं डरेंगे। जी हाँ, यही वक्‍त है कि हम अपने दिल में सभाओं के लिए लगाव पैदा करें। अगर हमें सभाओं में जाना बहुत पसंद है, तो किसी भी तरह का विरोध, यहाँ तक कि सरकार का कोई नियम भी हमें परमेश्‍वर की आज्ञा मानने से नहीं रोक सकेगा।​—प्रेषि. 5:29.

आयतें और राज-गीत मुँह-ज़बानी याद करने से ज़ुल्मों के दौरान आप उन्हें याद रख पाएँगे और आपका हौसला भी बढ़ेगा (पैराग्राफ 9 देखें) *

9. ज़ुल्मों का सामना करने के लिए अभी से आयतें मुँह-ज़बानी याद करना क्यों अच्छा है?

9 अपनी मनपसंद आयतें मुँह-ज़बानी याद कीजिए।  (मत्ती 13:52) शायद आप हर बात याद न रख पाते हों, मगर यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए आपकी मनपसंद आयतें याद दिला सकता है। (यूह. 14:26) ज़रा उस भाई पर ध्यान दीजिए, जिसे पूर्वी जर्मनी में जेल की सज़ा सुनायी गयी थी और काल-कोठरी में अकेले रखा गया था। उसने कहा, “कितना अच्छा हुआ कि मैंने सैकड़ों आयतें मुँह-ज़बानी याद कर ली थीं! इस वजह से जब मैं उस काल-कोठरी में अकेला था, तब भी मैंने अपना दिमाग खाली नहीं रखा। मैंने बाइबल के अलग-अलग विषयों पर मनन किया।” उन आयतों की वजह से हमारा वह भाई यहोवा के करीब रह पाया और मुश्‍किलों में भी उसका वफादार रहा।

(पैराग्राफ 10 देखें) *

10. राज-गीत या ब्रॉडकास्टिंग के गाने मुँह-ज़बानी याद करना क्यों ज़रूरी है?

10 यहोवा की स्तुति में गाए जानेवाले गीत मुँह-ज़बानी याद कीजिए और उन्हें गाइए।  जब पौलुस और सीलास फिलिप्पी की जेल में कैद थे, तो उन्होंने यहोवा का गुणगान करने के लिए वे गीत गाए, जो उन्हें याद थे। (प्रेषि. 16:25) उसी तरह जब भूतपूर्व सोवियत संघ के हमारे भाइयों को अपने घर से दूर साइबेरिया भेजा गया, उस दौरान उन्होंने खुद को कैसे मज़बूत किया? बहन मारिया फेडून उन दिनों के बारे में बताती हैं, “गीतों की किताब के हमें जितने भी गीत याद थे, वे सब हमने गाए।” बहन बताती हैं कि उन गीतों से सभी भाई-बहनों का काफी हौसला बढ़ा और वे यहोवा के करीब महसूस कर पाए। जब आप अपने पसंदीदा राज-गीत या ब्रॉडकास्टिंग के गाने गाते हैं, तो क्या आपका भी हौसला बुलंद नहीं हो जाता? तो अभी से उन गीतों को मुँह-ज़बानी याद कीजिए!​—“ मुझे हिम्मत दे” बक्स देखें।

हिम्मत कैसे बढ़ाएँ?

11-12. (क) 1 शमूएल 17:37, 45-47 के मुताबिक दाविद में इतनी हिम्मत कहाँ से आयी? (ख) दाविद के उदाहरण से हम कौन-सा ज़रूरी सबक सीखते हैं?

11 ज़ुल्मों का सामना करने के लिए हिम्मत होना बहुत ज़रूरी है। लेकिन अगर आपको लगता है कि आप हिम्मतवाले नहीं हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? याद रखिए कि असली हिम्मत आपके कद, दमखम या आपकी काबिलीयत पर निर्भर नहीं करती। ज़रा उस घटना पर ध्यान दीजिए, जब दाविद का सामना गोलियात से हुआ था। उस लंबे-चौड़े आदमी के आगे दाविद बहुत छोटा और कमज़ोर था। गोलियात से लड़ने के लिए उसके पास कोई हथियार नहीं था, एक तलवार भी नहीं। फिर भी उसमें कमाल की हिम्मत थी! वह निडर होकर उस मगरूर दुश्‍मन से लड़ने निकल पड़ा।

12 दाविद में इतनी हिम्मत कहाँ से आयी? दरअसल, उसे पक्का यकीन था कि यहोवा उसके साथ है। (1 शमूएल 17:37, 45-47 पढ़िए।) दाविद ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि गोलियात उससे कितना बड़ा है। इसके बजाय उसका पूरा ध्यान इस बात पर था कि गोलियात यहोवा के सामने कितना छोटा है। इस घटना से हम क्या सीखते हैं? अगर हमें पक्का यकीन है कि यहोवा हमारे साथ है और सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के सामने हमारे दुश्‍मन कितने छोटे हैं, तो हम भी हिम्मत से काम ले पाएँगे। (2 इति. 20:15; भज. 16:8) लेकिन सवाल है कि हम अभी से यानी ज़ुल्म आने से पहले अपनी हिम्मत कैसे बढ़ा सकते हैं?

13. हम अपनी हिम्मत कैसे बढ़ा सकते हैं? समझाइए।

13 जब हम लोगों को परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाते हैं, तो हमारी हिम्मत और बढ़ जाती है। वह कैसे? प्रचार करते वक्‍त हम यहोवा पर भरोसा करना सीखते हैं और अगर हम इंसानों से डरते हैं, तो हम उस डर पर भी काबू पाना सीखते हैं। (नीति. 29:25) जिस तरह कसरत करने से हमारी माँस-पेशियाँ मज़बूत होती हैं, उसी तरह जब हम घर-घर जाकर प्रचार करते हैं, मौके ढूँढ़कर या सरेआम गवाही देते हैं या फिर बिज़नेस इलाकों में प्रचार करते हैं, तो हमारी हिम्मत बढ़ जाती है। अगर आज हम हिम्मत से प्रचार करते रहें, तो हम उस वक्‍त भी प्रचार करना नहीं छोड़ेंगे, जब हमारे काम पर रोक लगा दी जाएगी।​—1 थिस्स. 2:1, 2.

बहन नैन्सी यूएन ने खुशखबरी का प्रचार करना बंद नहीं किया (पैराग्राफ 14 देखें)

14-15. बहन नैन्सी और बहन वालेनटीना से हम क्या सीखते हैं?

14 हिम्मत से काम लेने में हम दो वफादार बहनों से काफी कुछ सीख सकते हैं। इनमें से एक थीं बहन नैन्सी यूएन। उनका कद सिर्फ पाँच फुट था मगर वे डरनेवालों में से नहीं थीं। * विरोधियों के कहने पर भी उन्होंने खुशखबरी का प्रचार करना बंद नहीं किया। इस वजह से उन्हें चीन में 20 से भी ज़्यादा साल तक जेल की सज़ा हुई। उनसे पूछताछ करनेवाले अधिकारियों का कहना था कि वे पूरे देश में “सबसे ढीठ इंसान” हैं।

बहन वालेनटीना गारनोफ-स्काया को पूरा यकीन था कि यहोवा उनके साथ है (पैराग्राफ 15 देखें)

15 दूसरी बहन वालेनटीना गारनोफ-स्काया थीं। उन्हें भूतपूर्व सोवियत संघ में तीन बार कैद किया गया और उन्होंने कुल मिलाकर 21 साल जेल की सज़ा काटी। * उनका अपराध क्या था? वे हर हाल में प्रचार करती रहीं और कोई भी उन्हें रोक नहीं पाया। इस वजह से अधिकारियों ने उन्हें “सबसे खतरनाक मुजरिम” कहा। इन दोनों बहनों में इतनी हिम्मत कहाँ से आयी? उन्हें पूरा यकीन था कि यहोवा उनके साथ है।

16. किस बात से हमें सच्ची हिम्मत मिलेगी?

16 जैसे कि हमने देखा, हिम्मत बढ़ाने के लिए हमें अपनी काबिलीयतों और खूबियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, हमें इस बात का पक्का भरोसा होना चाहिए कि यहोवा हमारे साथ है और वही हमारी तरफ से लड़ रहा है। (व्यव. 1:29, 30; जक. 4:6) इसी बात से हमें सच्ची हिम्मत मिलेगी।

लोगों की नफरत का सामना करने पर क्या करें?

17-18. यूहन्‍ना 15:18-21 के मुताबिक यीशु ने हमें किस बात से खबरदार किया? समझाइए।

17 जब लोग हमारा आदर करते हैं, तो हमें अच्छा लगता है। लेकिन हमारा मोल इस बात पर निर्भर नहीं है कि लोग हमें पसंद करें। यीशु ने कहा था, “सुखी हो तुम जब भी लोग इंसान के बेटे की वजह से तुमसे नफरत करें और तुम्हें अपने बीच से निकाल दें, तुम्हें बदनाम करें और दुष्ट कहकर तुम्हारा नाम खराब करें।” (लूका 6:22) यीशु के कहने का मतलब क्या था?

18 यीशु यह नहीं कह रहा था कि हमें लोगों की नफरत का सामना करने से खुशी मिलती है। दरअसल वह हमें हकीकत बता रहा था कि आगे चलकर हमारे साथ क्या होनेवाला है। हम दुनिया के नहीं हैं, बल्कि यीशु की शिक्षाओं पर चलते हैं और उसी संदेश का प्रचार करते हैं जो उसने किया था। इस वजह से दुनिया हमसे नफरत करती है। (यूहन्‍ना 15:18-21 पढ़िए।) हम यहोवा से प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। अगर इस वजह से लोग हमसे नफरत करते हैं, तो हमें यह मंज़ूर है।

19. हम प्रेषितों की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

19 हमें कभी-भी किसी इंसान की बातों या कामों की वजह से यहोवा के साक्षी होने में शर्मिंदा महसूस नहीं करना चाहिए। (मीका 4:5) इंसान के डर पर काबू पाने के लिए प्रेषितों की मिसाल पर गौर कीजिए। वे अच्छी तरह जानते थे कि यहूदी धर्म गुरु उनसे कितना नफरत करते हैं! ये वही लोग हैं जिन्होंने कुछ ही दिन पहले यीशु को मार डाला था। (प्रेषि. 5:17, 18, 27, 28) फिर भी प्रेषित हर दिन मंदिर में जाते रहे और प्रचार करते रहे। इस तरह उन्होंने साफ ज़ाहिर किया कि वे यीशु के चेले हैं। (प्रेषि. 5:42) वे डर के मारे पीछे नहीं हटे। हम भी इंसान के डर पर काबू पा सकते हैं। इसके लिए हमें अपने स्कूल में, काम की जगह पर या आस-पड़ोस में सभी को बताना चाहिए कि हम यहोवा के साक्षी हैं।​—प्रेषि. 4:29; रोमि. 1:16.

20. लोगों की नफरत के बावजूद प्रेषित किस वजह से खुश थे?

20 प्रेषित किस वजह से खुश थे? वे इसलिए खुश थे कि उन्हें यहोवा की मरज़ी पूरी करने की वजह से बेइज़्ज़त किया गया। (लूका 6:23; प्रेषि. 5:41) प्रेषित पतरस ने बाद में लिखा, “अगर तुम नेकी की खातिर दुख भी उठाते हो तो सुखी हो।” (1 पत. 2:19-21; 3:14) जब हम यह बात समझते हैं कि सही काम करने पर लोग हमसे नफरत करेंगे, तो इन हालात में हम यहोवा की सेवा करना कभी नहीं छोड़ेंगे।

तैयारी करने से आपको फायदा होगा

21-22. (क) ज़ुल्मों का सामना करने के लिए आपने क्या तैयारी करने की ठान ली है? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

21 हम नहीं जानते कि कब ज़ुल्मों का दौर शुरू होगा या कब सरकारें हमारे काम पर रोक लगा देंगी। लेकिन हम उस वक्‍त के लिए अभी से तैयारी कर सकते हैं। हम यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत कर सकते हैं, अपनी हिम्मत बढ़ा सकते हैं और लोगों की नफरत का सामना करना सीख सकते हैं। यह सब करने से हम आनेवाले समय में यहोवा के वफादार रहेंगे और उसकी सेवा करना नहीं छोड़ेंगे।

22 लेकिन तब क्या जब हमारी उपासना पर रोक लगा दी जाती है? अगले लेख में हम बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे कि कैसे हम उन मुश्‍किल हालात में भी यहोवा की सेवा करते रह सकते हैं।

गीत 118 “हमारा विश्‍वास बढ़ा”

^ पैरा. 5 हममें से कोई नहीं चाहता कि लोग हमसे नफरत करें। लेकिन आज नहीं तो कल हम सबको ज़ुल्मों का सामना करना पड़ेगा। इस लेख में बताया जाएगा कि हम ज़ुल्मों का कैसे हिम्मत से सामना कर सकते हैं।

^ पैरा. 7 15 दिसंबर, 1965 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  के पेज 756-767 देखें।

^ पैरा. 14 15 जुलाई, 1979 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  के पेज 4-7 देखें।

^ पैरा. 67 तसवीर के बारे में: पारिवारिक उपासना के दौरान माता-पिता अपने बच्चों को आयतें मुँह-ज़बानी याद करवाते हैं। इसके लिए वे कार्ड के एक तरफ आयत लिखते हैं और दूसरी तरफ उसके शब्द लिख देते हैं।

^ पैरा. 70 तसवीर के बारे में: सभा के लिए गाड़ी से जाते वक्‍त एक परिवार राज-गीत गाकर उनका अभ्यास कर रहा है।