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अध्ययन लेख 44

अंत आने से पहले अच्छे दोस्त बनाइए

अंत आने से पहले अच्छे दोस्त बनाइए

“सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है।”—नीति. 17:17.

गीत 101 एकता में रहकर काम करें

लेख की एक झलक *

“महा-संकट” के दौरान अच्छे दोस्त हमारा साथ देंगे (पैराग्राफ 2 देखें) *

1-2. पहला पतरस 4:7, 8 के मुताबिक मुश्‍किलों का सामना करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

हम इन “आखिरी दिनों” के आखिरी वक्‍त में जी रहे हैं। इस वजह से शायद हमें और भी बड़ी-बड़ी मुश्‍किलों का सामना करना पड़े। (2 तीमु. 3:1) पश्‍चिम अफ्रीका के एक देश का उदाहरण लीजिए। वहाँ एक चुनाव अभियान के बाद चारों तरफ दंगे होने लगे। यह खून-खराबा करीब छ: महीने तक चला और भाई-बहन कहीं आ-जा नहीं सकते थे। वे इस मुश्‍किल हालात का सामना कैसे कर पाए? कुछ भाई-बहनों ने ऐसे इलाकों में मसीही भाइयों के घर पनाह ली, जहाँ दंगों का खतरा नहीं था। एक भाई ने कहा, “मैं बता नहीं सकता, मैं कितना खुश था कि मैं अपने दोस्तों के साथ हूँ। हमने एक-दूसरे को सँभाला, एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया।”

2 जब “महा-संकट” शुरू होगा, तो हम भी इस बात से खुश होंगे कि हमारे दोस्त हमारे साथ हैं और हमारी हिम्मत बँधा रहे हैं। (प्रका. 7:14) इस वजह से यह बेहद ज़रूरी है कि हम अभी से पक्के दोस्त बनाएँ। (1 पतरस 4:7, 8 पढ़िए।) इस मामले में हम यिर्मयाह से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह उस समय जीया था, जब यरूशलेम का नाश होनेवाला था। अपने दोस्तों का साथ पाकर वह उस मुश्‍किल दौर का सामना कर पाया। * हम यिर्मयाह की तरह कैसे बन सकते हैं?

यिर्मयाह से सीखिए

3. (क) यिर्मयाह के पास लोगों से दूरियाँ बनाने की क्या वजह हो सकती थी? (ख) यिर्मयाह ने अपने सचिव बारूक को क्या बताया और नतीजा क्या हुआ?

3 यिर्मयाह करीब 40 साल तक ऐसे लोगों के बीच रहा, जो वफादार नहीं थे। उसके अपने शहर अनातोत में उसके पड़ोसियों और शायद परिवार के कुछ लोगों ने उसका साथ नहीं दिया होगा। (यिर्म. 11:21; 12:6) लेकिन इस वजह से यिर्मयाह ने सब लोगों से दूरियाँ नहीं बना लीं। देखा जाए तो उसने बारूक को, जो उसका वफादार सचिव था, अपने दिल की बात बतायी और हमें भी, क्योंकि हम वे बातें बाइबल में पढ़ सकते हैं। (यिर्म. 8:21; 9:1; 20:14-18; 45:1) हम कल्पना कर सकते हैं कि जब बारूक यिर्मयाह के जीवन की घटनाएँ लिख रहा होगा, तो कैसे उन्हें एक-दूसरे से लगाव हो गया होगा और वे पहले से ज़्यादा एक-दूसरे की इज़्ज़त करने लगे होंगे।—यिर्म. 20:1, 2; 26:7-11.

4. (क) यहोवा ने यिर्मयाह से क्या करने के लिए कहा? (ख) यह काम करते वक्‍त यिर्मयाह और बारूक की दोस्ती कैसे पक्की हुई होगी?

4 यिर्मयाह ने निडर होकर सालों तक इसराएलियों को यहोवा का यह संदेश सुनाया कि यरूशलेम का नाश होनेवाला है। (यिर्म. 25:3) यहोवा इसराएलियों को पश्‍चाताप करने का एक और मौका देना चाहता था, इसलिए उसने यिर्मयाह से चेतावनी का वह संदेश एक खर्रे पर लिखने के लिए कहा। (यिर्म. 36:1-4) यिर्मयाह और बारूक ने मिलकर यह काम किया। इस संदेश को लिखने में कई महीने लग गए होंगे। बेशक इस दौरान उन दोनों के बीच ढेर सारी बातें हुई होंगी और उन्होंने एक-दूसरे का विश्‍वास मज़बूत किया होगा।

5. हम ऐसा क्यों कह सकते हैं कि बारूक यिर्मयाह का अच्छा दोस्त था?

5 खर्रा लिखने के बाद अब इसे लोगों को पढ़कर सुनाया जाना था। यिर्मयाह ने यह ज़िम्मेदारी अपने दोस्त बारूक को सौंपी। (यिर्म. 36:5, 6) यह काम खतरे से खाली नहीं था, मगर बारूक ने निडर होकर इसे पूरा किया। ज़रा सोचिए, यिर्मयाह को अपने दोस्त पर कितना नाज़ हुआ होगा कि उसने वैसा ही किया, जैसा उससे कहा गया था। (यिर्म. 36:8-10) जब यहूदा के हाकिमों को इस बारे में खबर मिली, तो उन्होंने बारूक से कहा कि वह उन्हें भी खर्रा पढ़कर सुनाए। (यिर्म. 36:14, 15) फिर हाकिमों ने फैसला किया कि वे यिर्मयाह का संदेश राजा यहोयाकीम को पढ़कर सुनाएँगे। मगर उन्होंने बारूक का लिहाज़ किया और उसे यह सलाह दी, “तू और यिर्मयाह जाकर कहीं छिप जा। किसी को मत बताना कि तुम कहाँ छिपे हो।”—यिर्म. 36:16-19.

6. विरोध का सामना करने पर यिर्मयाह और बारूक ने क्या किया?

6 जब राजा यहोयाकीम को खर्रे की बातें सुनायी गयीं, तो वह भड़क उठा। उसने वह खर्रा जला दिया और आदेश दिया कि यिर्मयाह और बारूक को पकड़ लिया जाए। लेकिन यिर्मयाह डरा नहीं। उसने बारूक को एक और खर्रा दिया और उसे यहोवा की बातें फिर से लिखने के लिए कहा। बारूक ने नए खर्रे में शब्द-ब-शब्द “उस खर्रे की सारी बातें लिखीं जिसे यहूदा के राजा यहोयाकीम ने आग में जला दिया था।”—यिर्म. 36:26-28, 32.

7. जब यिर्मयाह और बारूक ने साथ मिलकर काम किया, तो नतीजा क्या हुआ होगा?

7 जो लोग साथ मिलकर मुश्‍किलों का सामना करते हैं, अकसर वे बहुत अच्छे दोस्त बन जाते हैं। यिर्मयाह और बारूक के साथ कुछ ऐसा ही हुआ होगा। जब इन दोनों ने मिलकर दूसरा खर्रा तैयार किया, तो उस दौरान उन्हें एक-दूसरे को और भी अच्छी तरह जानने का मौका मिला होगा। इस तरह उनकी दोस्ती और पक्की हो गयी होगी। उनकी तरह हम भी अच्छे दोस्त बनाने के लिए क्या कर सकते हैं?

दोस्तों को अपने दिल की बात बताइए

8. (क) हमारे लिए गहरी दोस्ती करना शायद आसान क्यों न हो? (ख) यह क्यों ज़रूरी है कि हम अभी से अच्छे दोस्त बनाएँ?

8 हमारे लिए शायद दोस्ती करना आसान न हो। हो सकता है, बीते समय में किसी ने हमारा भरोसा तोड़ा हो और इस वजह से हम तुरंत दूसरों पर यकीन न कर पाते हों, उन्हें अपने दिल की बात न बता पाते हों। (नीति. 18:19, 24) या फिर शायद हमें लगे कि अच्छे दोस्त बनाने के लिए हमारे पास वक्‍त और ताकत ही नहीं है। लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए! अगर हम चाहते हैं कि मसीही भाई-बहन मुश्‍किल घड़ी में हमारा साथ दें, तो हमें अभी से उनके साथ मज़बूत रिश्‍ता बनाना होगा। ऐसा हम तभी कर पाएँगे, जब हम उन्हें अपने दिल की बात और अपनी भावनाएँ बताएँगे।—1 पत. 1:22.

9. (क) यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया कि उसे अपने दोस्तों पर भरोसा है? (ख) दोस्तों से बात करने और ध्यान से उनकी सुनने का क्या फायदा हो सकता है? एक उदाहरण दीजिए।

9 यीशु को अपने दोस्तों पर भरोसा था, उसने उनसे कोई बात नहीं छिपायी। (यूह. 15:15) हम यीशु से क्या सीख सकते हैं? चाहे हम खुश हों या दुखी या फिर किसी बात से परेशान हों, हमें अपने दोस्तों से कोई बात नहीं छिपानी चाहिए। वहीं जब कोई आपसे बात करता है, तो ध्यान से उसकी सुनिए। शायद आपको एहसास हो कि उसकी सोच, भावनाएँ या लक्ष्य आपसे मिलते-जुलते हैं। बहन सिंडी का उदाहरण लीजिए जो 29 साल की है। उसने मैरी-लूईस नाम की एक पायनियर बहन से दोस्ती की, जिनकी उम्र 67 साल है। ये बहनें हर गुरुवार सुबह साथ मिलकर प्रचार करती हैं। वे अलग-अलग विषयों पर खुलकर एक-दूसरे से बात करती हैं। सिंडी बताती है, “मुझे अपने दोस्तों के साथ ज़रूरी विषयों पर बात करना बहुत अच्छा लगता है। इस तरह हम एक-दूसरे को और अच्छी तरह समझ पाते हैं।” सच में, जहाँ अच्छी बातचीत होती है, वहाँ दोस्ती बढ़ती है। अगर सिंडी की तरह आप भी अपने दोस्तों से बात करने और उनकी सुनने के लिए वक्‍त निकालें, तो आपकी दोस्ती भी और मज़बूत हो जाएगी।—नीति. 27:9.

मिलकर काम कीजिए

अच्छे दोस्त साथ मिलकर प्रचार करते हैं (पैराग्राफ 10 देखें)

10. नीतिवचन 27:17 के मुताबिक भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करने से क्या फायदे हो सकते हैं?

10 यिर्मयाह और बारूक की तरह जब हम भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करते हैं, तो हमें उन्हें अच्छी तरह जानने और उनसे सीखने का मौका मिलता है। यही नहीं, हम उनके और करीब आते हैं। (नीतिवचन 27:17 पढ़िए।) इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। आप अपने दोस्त के साथ प्रचार में हैं। आप देखते हैं कि वह कैसे हिम्मत से अपने विश्‍वास की पैरवी कर रहा है या यहोवा और उसके मकसद के बारे में यकीन के साथ बात कर रहा है। ऐसे में आपको कैसा लगेगा? इसमें कोई शक नहीं कि आपको उससे और भी लगाव हो जाएगा।

11-12. भाई-बहनों के साथ प्रचार करने से उनके साथ हमारी दोस्ती कैसे पक्की हो सकती है? उदाहरण देकर समझाइए।

11 प्रचार में साथ काम करने से दोस्ती कैसे मज़बूत होती है, इसे समझने के लिए दो अनुभवों पर ध्यान दीजिए। तेइस साल की बहन एडलीन ऐसे इलाके में जाना चाहती थी, जहाँ बहुत कम प्रचार हुआ था। उसने अपनी एक सहेली कैंडिस को साथ चलने के लिए कहा। एडलीन बताती है, “हम और भी जोश से प्रचार करना चाहते थे और अपनी सेवा से खुशी पाना चाहते थे। दरअसल हमें हौसले की ज़रूरत थी, ताकि हम तन-मन से यहोवा की सेवा कर सकें।” साथ मिलकर प्रचार करने से उन्हें क्या फायदा हुआ? एडलीन बताती है, “दिन के आखिर में हम एक-दूसरे को बताते थे कि हमें प्रचार में कैसा लगा, लोगों से हुई बातचीत में हमें क्या अच्छा लगा और किस तरह हमने अनुभव किया कि यहोवा हमारे साथ है। इस तरह की बातें करके हमें बहुत अच्छा लगता था। हम एक-दूसरे को और अच्छी तरह जान पाए।”

12 एक और अनुभव पर गौर कीजिए। फ्रांस की रहनेवाली दो अविवाहित बहनें लायला और मैरीयान पाँच हफ्तों के लिए बांगुई में प्रचार करने गयीं। घनी आबादीवाला यह शहर मध्य अफ्रीकी गणराज्य की राजधानी है। लायला उस समय को याद करते हुए कहती है, “शुरू-शुरू में मेरे और मैरीयान के बीच कुछ समस्याएँ खड़ी हुईं, लेकिन खुलकर बात करने और एक-दूसरे के लिए सच्चा प्यार ज़ाहिर करने से हम इनका सामना कर पाए। इसके बाद हम एक-दूसरे के और भी अच्छे दोस्त बन गए। जब मैंने देखा कि मैरीयान किस तरह नए हालात में आसानी से ढल जाती है, उसे वहाँ के लोगों से कितना प्यार है और उसमें प्रचार के लिए कितना जोश है, तो मेरे दिल में उसके लिए और भी इज़्ज़त बढ़ गयी।” इन दोनों अनुभवों से पता चलता है कि दूसरी जगह सेवा करने से भाई-बहनों को कितनी खुशी मिली! इस तरह की खुशी पाने के लिए आपको कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है। जब भी आप अपनी मंडली के भाई-बहनों के साथ प्रचार में जाते हैं, तो आपको उन्हें अच्छी तरह जानने और उनके साथ अपनी दोस्ती पक्की करने का मौका मिलता है।

अच्छाइयों पर ध्यान दीजिए और माफ करने को तैयार रहिए

13. दोस्तों के साथ काम करते वक्‍त कभी-कभी क्या हो सकता है?

13 जब हम अपने दोस्तों के साथ काम करते हैं और उनके साथ काफी वक्‍त बिताते हैं, तो उनके अच्छे गुणों के साथ-साथ कभी-कभी हमें उनकी कमियाँ भी नज़र आती हैं। ऐसे में उनके दोस्त बने रहना शायद आसान न हो। इन हालात में हम क्या कर सकते हैं? आइए एक बार फिर यिर्मयाह के उदाहरण पर ध्यान दें। हम सीखेंगे कि वह कैसे दूसरों की अच्छाइयों पर ध्यान दे पाया और उनकी कमियों को अनदेखा कर पाया।

14. (क) बाइबल की किताबें लिखते वक्‍त यिर्मयाह ने किस बात पर ध्यान दिया होगा? (ख) इससे यिर्मयाह ने क्या सीखा होगा?

14 यिर्मयाह ने बाइबल की यिर्मयाह नाम की किताब लिखी और ऐसा मालूम होता है कि उसने पहला राजा और दूसरा राजा की किताबें भी लिखीं। इन्हें लिखते वक्‍त उसने ज़रूर इस बात पर ध्यान दिया होगा कि यहोवा अपरिपूर्ण इंसानों पर दया करता है। जैसे, वह जानता था कि जब राजा अहाब को अपने किए पर पछतावा हुआ, तो यहोवा ने फैसला किया कि उसके घराने का नाश उसके जीते-जी नहीं होगा। (1 राजा 21:27-29) यिर्मयाह यह भी जानता था कि मनश्‍शे ने अहाब से कहीं ज़्यादा बुरे काम किए थे, फिर भी सच्चा पश्‍चाताप करने पर यहोवा ने उसे माफ कर दिया। (2 राजा 21:16, 17; 2 इति. 33:10-13) इन घटनाओं से यिर्मयाह ने सीखा होगा कि यहोवा की तरह उसे भी अपने दोस्तों के साथ सब्र रखना चाहिए और उन पर दया करनी चाहिए।—भज. 103:8, 9.

15. जब बारूक अपनी सेवा से खुश नहीं था, तो यिर्मयाह ने कैसे यहोवा की तरह उसके साथ सब्र रखा?

15 ध्यान दीजिए कि यिर्मयाह ने कैसे अपने दोस्त बारूक के साथ सब्र रखा। एक बार बारूक का ध्यान भटकने लगा था और वह अपनी सेवा से खुश नहीं था। उस वक्‍त यिर्मयाह ने उसका साथ नहीं छोड़ा बल्कि उसकी मदद करने की कोशिश की। उसने बारूक को प्यार से मगर साफ-साफ बताया कि उसे अपनी गलत सोच सुधारनी है। यह सलाह सीधे-सीधे परमेश्‍वर की तरफ से थी। (यिर्म. 45:1-5) इस घटना से हम क्या सीख सकते हैं?

अच्छे दोस्त एक-दूसरे को दिल से माफ करते हैं (पैराग्राफ 16 देखें)

16. जैसा कि नीतिवचन 17:9 में बताया गया है, दोस्ती बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

16 हम सब अपरिपूर्ण हैं, इसलिए हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि हमारे भाई-बहन कभी कोई गलती नहीं करेंगे। जब किसी से हमारी अच्छी दोस्ती हो जाती है, तो हमें उस दोस्ती को बनाए रखने के लिए मेहनत करनी चाहिए। अगर हमारे दोस्तों से कोई गलती हो जाए, तो शायद हमें प्यार से मगर साफ-साफ बाइबल से उन्हें सलाह देनी पड़े। (भज. 141:5) अगर वे हमें ठेस पहुँचाएँ, तो हमें उन्हें माफ कर देना चाहिए और माफ करने के बाद दोबारा उस गलती का ज़िक्र नहीं करना चाहिए। (नीतिवचन 17:9 पढ़िए।) इन आखिरी दिनों में अपने भाई-बहनों की कमियों के बजाय उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है, तभी उनके साथ हमारी दोस्ती गहरी होगी। यकीन मानिए, महा-संकट के मुश्‍किल दौर में ये दोस्त ही हमारा साथ देंगे!

उनसे सच्चा प्यार कीजिए

17. यिर्मयाह मुसीबत की घड़ी में सच्चा दोस्त कैसे साबित हुआ?

17 भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह मुसीबत की घड़ी में सच्चा दोस्त साबित हुआ। वह कैसे? ज़रा एक घटना पर गौर कीजिए। एक बार हाकिमों ने यिर्मयाह को कीचड़ से भरे एक कुंड में डाल दिया था, मगर एबेद-मेलेक नाम के एक दरबारी ने उसकी जान बचायी। लेकिन फिर एबेद-मेलेक को यह डर सताने लगा कि कहीं हाकिम उसे नुकसान न पहुँचाएँ। जब यिर्मयाह को इसकी खबर मिली, तो उसने क्या किया? क्या उसने यह सोचा, ‘मैं तो खुद कैद में हूँ, मैं भला उसकी मदद कैसे कर सकता हूँ? वह खुद को बचाने के लिए कोई-न-कोई रास्ता निकाल लेगा’? यिर्मयाह ने ऐसा नहीं सोचा। उससे जो बन पड़ा उसने किया। उसने अपने दोस्त एबेद-मेलेक को बताया कि यहोवा ने उसकी हिफाज़त करने का वादा किया है। ज़रा सोचिए, इससे एबेद-मेलेक को कितनी हिम्मत मिली होगी!—यिर्म. 38:7-13; 39:15-18.

अच्छे दोस्त ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद करते हैं (पैराग्राफ 18 देखें)

18. नीतिवचन 17:17 के मुताबिक हमें अपने उस दोस्त के लिए क्या करना चाहिए, जो मुश्‍किलों का सामना कर रहा है?

18 आज हमारे भाई-बहन अलग-अलग मुश्‍किलों का सामना कर रहे हैं। कुछ लोग प्राकृतिक विपत्तियों की मार सह रहे हैं, तो कुछ युद्धों की वजह से तकलीफें झेल रहे हैं। ऐसे में हममें से कुछ लोग शायद इन भाई-बहनों को अपने घर ठहराएँ या फिर पैसे दान करके इनकी मदद करें। चाहे हम इन तरीकों से मदद कर पाएँ या नहीं, लेकिन एक चीज़ हम सभी कर सकते हैं। हम यहोवा से इन भाई-बहनों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। कई बार हमें पता चलता है कि कोई भाई या बहन निराश है, मगर हमें समझ में नहीं आता कि हम उससे क्या कहें या क्या करें। ऐसे में भी हम उसकी बहुत मदद कर सकते हैं। जैसे, हम उसके साथ वक्‍त बिता सकते हैं, उसकी बात सुनकर उसे समझने की कोशिश कर सकते हैं या फिर उसे बाइबल से अपनी मनपसंद आयत बता सकते हैं। (यशा. 50:4) सौ बात की एक बात: जब हमारे दोस्तों को हमारी ज़रूरत होती है, तो हमें उनका साथ देना चाहिए।—नीतिवचन 17:17 पढ़िए।

19. अभी से भाई-बहनों के साथ गहरी दोस्ती करना क्यों ज़रूरी है?

19 हमें ठान लेना चाहिए कि हम अभी से भाई-बहनों के अच्छे दोस्त बनेंगे और उस दोस्ती को हमेशा बनाए रखेंगे। ऐसा करना इतना ज़रूरी क्यों है? क्योंकि दुश्‍मन हमारी एकता तोड़ने के लिए झूठी बातें फैलाएँगे। वे हमें एक-दूसरे के खिलाफ करने की कोशिश करेंगे। लेकिन उनकी चाल कामयाब नहीं होगी! वे हमारे और भाई-बहनों के बीच का प्यार नहीं मिटा पाएँगे। वे कभी हमारी दोस्ती में दरार पैदा नहीं कर पाएँगे। भाई-बहनों के साथ हमारी दोस्ती बहुत अनमोल है और यह न सिर्फ इस दुष्ट दुनिया के अंत तक बल्कि हमेशा कायम रहेगी!

गीत 24 यहोवा के पर्वत पर आओ

^ पैरा. 5 जैसे-जैसे अंत करीब आ रहा है, मसीही भाई-बहनों के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना और भी ज़रूरी होता जा रहा है। इस लेख में हम यिर्मयाह के उदाहरण पर ध्यान देंगे और उससे दोस्ती के बारे में कुछ सीखेंगे। हम इस बात पर भी गौर करेंगे कि अच्छे दोस्त बनाने से कैसे मुश्‍किल घड़ी का सामना करना आसान हो जाएगा।

^ पैरा. 2 यिर्मयाह की किताब में दर्ज़ घटनाएँ उस क्रम में नहीं लिखी गयी हैं, जिस क्रम में वे घटी थीं।

^ पैरा. 57 तसवीर के बारे में: इस तसवीर में दिखाया गया है कि आनेवाले “महा-संकट” के दौरान शायद कैसा माहौल होगा। कुछ भाई-बहनों ने एक भाई के घर पनाह ली है। वे एक-दूसरे के अच्छे दोस्त हैं, इस वजह से वे उस मुश्‍किल घड़ी में एक-दूसरे की हिम्मत बँधा रहे हैं। आगे दी तीन तसवीरों से पता चलता है कि उन भाई-बहनों ने महा-संकट शुरू होने से काफी पहले एक-दूसरे के दोस्त बनने में मेहनत की थी