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अध्ययन लेख 47

लैव्यव्यवस्था की किताब से हमें क्या सीख मिलती है?

लैव्यव्यवस्था की किताब से हमें क्या सीख मिलती है?

“पूरा शास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया है और . . . फायदेमंद है।”—2 तीमु. 3:16.

गीत 98 परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा शास्त्र

लेख की एक झलक *

1-2. आज मसीहियों को लैव्यव्यवस्था की किताब में दिलचस्पी क्यों लेनी चाहिए?

जब प्रेषित पौलुस ने अपने दोस्त तीमुथियुस को खत लिखा, तो उसने उसे एक ज़रूरी बात याद दिलायी। वह यह कि “पूरा शास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया है और . . . फायदेमंद है।” (2 तीमु. 3:16) परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे शास्त्र में लैव्यव्यवस्था की किताब भी आती है। बाइबल की इस किताब के बारे में आप क्या सोचते हैं? कुछ लोगों को लगता है कि यह बस नियम-कानून की किताब है, इनसे आज हमें कोई खास फायदा नहीं होता। लेकिन सच्चे मसीही ऐसा नहीं सोचते।

2 लैव्यव्यवस्था की किताब आज से साढ़े तीन हज़ार साल पहले लिखी गयी थी। यहोवा ने यह किताब अब तक सँभालकर रखी है, ताकि ‘हम उससे सीख सकें।’ (रोमि. 15:4) इस किताब से हम यहोवा की सोच अच्छी तरह जान सकते हैं, इसलिए हमें इसकी बारीकी से जाँच करनी चाहिए। देखा जाए तो इस किताब से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आइए ऐसी चार सीख पर ध्यान दें।

यहोवा की मंज़ूरी कैसे पाएँ?

3. हर साल प्रायश्‍चित के दिन जानवरों के बलिदान क्यों चढ़ाए जाते थे?

3 पहली सीख: हम पर यहोवा की मंज़ूरी होनी चाहिए, तभी हमारा बलिदान उसे स्वीकार होगा।  हर साल प्रायश्‍चित के दिन पूरा इसराएल राष्ट्र इकट्ठा होता था और महायाजक जानवरों के बलिदान चढ़ाता था। इन बलिदानों से इसराएलियों को एहसास होता था कि वे पापी हैं और उन्हें अपने पापों से शुद्ध किया जाना है। मगर इससे पहले कि महायाजक बलि किए हुए जानवरों का खून परम-पवित्र भाग के अंदर ले जाता, उसे एक और काम करना था। यह काम इसराएलियों को उनके पापों की माफी दिलाने से भी ज़्यादा ज़रूरी था!

(पैराग्राफ 4 देखें) *

4. जैसे लैव्यव्यवस्था 16:12, 13 में बताया गया है, प्रायश्‍चित के दिन महायाजक पहली बार परम-पवित्र भाग के अंदर जाकर क्या करता था? (बाहर दी तसवीर देखें।)

4 लैव्यव्यवस्था 16:12, 13 पढ़िए। प्रायश्‍चित के दिन क्या होता था, इसे समझने के लिए ज़रा इस दृश्‍य की कल्पना कीजिए: महायाजक पवित्र डेरे के अंदर जाता है। इस दिन वह तीन बार परम-पवित्र भाग में जाता है और यह उनमें से पहली बार है। उसके एक हाथ में सुगंधित धूप से भरा बरतन है और दूसरे हाथ में आग उठाने का करछा है, जो सोने से मढ़ा हुआ है और जिसमें जलते हुए कोयले रखे हैं। महायाजक परम-पवित्र भाग में जाने से पहले परदे के पास थोड़ी देर रुकता है, फिर पूरी श्रद्धा के साथ अंदर जाता है और करार के संदूक के सामने खड़ा होता है। लाक्षणिक मायने में वह यहोवा परमेश्‍वर के सामने खड़ा है। फिर वह बड़े ध्यान से पवित्र धूप, जलते हुए कोयले पर डालता है और इससे पूरा कमरा खुशबू से भर जाता है। * बाद में वह बलि किए हुए जानवरों का खून अर्पित करने के लिए दोबारा परम-पवित्र भाग के अंदर जाता है। ध्यान दीजिए कि महायाजक जानवरों का खून अर्पित करने से पहले  धूप जलाता है।

5. बताइए कि प्रायश्‍चित के दिन इस्तेमाल होनेवाले धूप से हम क्या सीखते हैं।

5 प्रायश्‍चित के दिन इस्तेमाल होनेवाले धूप से हम क्या सीख सकते हैं? बाइबल से पता चलता है कि यहोवा के वफादार सेवकों की प्रार्थनाएँ सुगंधित धूप जैसी होती हैं। (भज. 141:2; प्रका. 5:8) याद कीजिए कि महायाजक पूरी श्रद्धा के साथ परम-पवित्र भाग में जाता था, क्योंकि वह परमेश्‍वर के सामने जा रहा था। उसी तरह, जब हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो हमें पूरी श्रद्धा के साथ ऐसा करना चाहिए। यहोवा सारे जहान का बनानेवाला है, फिर भी वह हमें अपने करीब आने देता है, ठीक जैसे एक पिता अपने बच्चे को करीब आने देता है। (याकू. 4:8) वह हमें अपना दोस्त मानता है। (भज. 25:14) इस सम्मान के लिए हम उसके बहुत एहसानमंद हैं। हम ऐसा कुछ नहीं करना चाहेंगे जिससे यहोवा का दिल दुखी हो।

6. जैसे महायाजक बलिदान चढ़ाने से पहले  धूप जलाता था, वैसे ही यीशु ने क्या किया?

6 अभी हमने देखा कि बलिदान चढ़ाने से पहले  महायाजक को सुगंधित धूप जलाना होता था। ऐसा करके वह इस बात का यकीन रख सकता था कि यहोवा उससे खुश है और उसका बलिदान स्वीकार करेगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए गौर कीजिए कि यीशु ने क्या किया। जब वह धरती पर था, तो उसे अपना जीवन बलिदान करने से पहले एक और काम करना था। यह ऐसा काम था जो इंसानों को उद्धार दिलाने से भी ज़्यादा अहमियत रखता था। कौन-सा काम? धरती पर रहते वक्‍त उसे यहोवा का वफादार रहना था और उसकी हर बात माननी थी, तभी यहोवा उसका बलिदान स्वीकार करता। इस तरह यीशु यह साबित करता कि यहोवा के तरीके से काम करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। यीशु यह भी साबित करता कि यहोवा को हम पर हुकूमत करने का हक है और उसका तरीका ही सही है।

7. यीशु के जीने के तरीके से यहोवा को खुशी क्यों हुई?

7 यीशु ने धरती पर रहते वक्‍त हमेशा यहोवा की आज्ञा मानी और वह उसके नेक स्तरों पर चला। यह उसके लिए आसान नहीं था। उसे गलत काम करने के लिए लुभाया गया, उस पर परीक्षाएँ आयीं और उसे पता था कि आगे चलकर वह एक दर्दनाक मौत मरेगा। लेकिन इन बातों की वजह से यहोवा की हुकूमत बुलंद करने का उसका इरादा कमज़ोर नहीं पड़ा। (फिलि. 2:8) मुश्‍किल घड़ी में यीशु ने “ऊँची आवाज़ में पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर” यहोवा से प्रार्थना की। (इब्रा. 5:7) सच्चे दिल से की गयी इन प्रार्थनाओं से ज़ाहिर हुआ कि यीशु यहोवा का वफादार है। इनसे यीशु को यहोवा के आज्ञाकारी रहने की हिम्मत मिली। यहोवा की नज़र में यीशु की प्रार्थनाएँ सुगंधित धूप जैसी थीं। सच में, यीशु ने अपने जीने के तरीके से यहोवा की हुकूमत बुलंद की और उसका दिल खुश किया।

8. हम किन तरीकों से यीशु के नक्शे-कदम पर चल सकते हैं?

8 हम यीशु के नक्शे-कदम पर कैसे चल सकते हैं? हमें हर हाल में यहोवा के वफादार रहना चाहिए और उसकी आज्ञाएँ माननी चाहिए। जब हम परीक्षाओं का सामना करते हैं, तो हमें यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि हम सही काम करके उसे खुश कर सकें। इन तरीकों से हम यहोवा की हुकूमत का साथ दे रहे होंगे। लेकिन अगर हम ऐसे कामों में लगे रहें जिनसे यहोवा नफरत करता है, तो वह हमारी प्रार्थनाएँ नहीं सुनेगा। वहीं दूसरी तरफ, जब हम यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीते हैं, तब हम यकीन रख सकते हैं कि हमारी प्रार्थनाएँ यहोवा के लिए सुगंधित धूप जैसी होंगी। हम यह भी भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा के वफादार रहकर और उसकी आज्ञाएँ मानकर हम उसे खुश करेंगे।​—नीति. 27:11.

एहसानमंदी और प्यार की वजह से यहोवा की सेवा कीजिए

(पैराग्राफ 9 देखें) *

9. शांति-बलियाँ क्यों चढ़ायी जाती थीं?

9 दूसरी सीख: हम यहोवा के एहसानमंद हैं, इसलिए उसकी सेवा करते हैं।  इस बात को समझने के लिए आइए प्राचीन इसराएल में सच्ची उपासना के एक और पहलू पर ध्यान दें। वह है शांति-बलियाँ। * लैव्यव्यवस्था की किताब में बताया गया है कि “परमेश्‍वर को धन्यवाद देने के लिए” शांति-बलियाँ चढ़ायी जाती थीं। (लैव्य. 7:11-13, 16-18) यह बलिदान चढ़ाना ज़रूरी नहीं था, लेकिन एक इसराएली यहोवा से प्यार करने की वजह से खुशी-खुशी यह बलिदान चढ़ाता था। बलिदान देनेवाला, उसका घराना और याजक, सब मिलकर उस बलिदान में से खाते थे। लेकिन बलिदान किए गए जानवर के कुछ हिस्से सिर्फ यहोवा को दिए जाते थे, कोई और उन्हें नहीं खा सकता था। ये कौन-से हिस्से थे?

(पैराग्राफ 10 देखें) *

10. लैव्यव्यवस्था 3:6, 12, 14-16 में शांति-बलियों के बारे में बतायी बात और यीशु की सेवा में क्या समानता थी?

10 तीसरी सीख: प्यार की वजह से हम यहोवा को अपना सबसे अच्छा देते हैं।  यहोवा की नज़र में जानवरों का सबसे बढ़िया हिस्सा उनकी चरबी होती थी। यहोवा ने यह भी साफ-साफ बताया था कि कुछ और हिस्से खास मायने रखते थे जैसे, जानवर के गुर्दे। (लैव्यव्यवस्था 3:6, 12, 14-16 पढ़िए।) इस वजह से जब एक इसराएली अपनी इच्छा से ये हिस्से और चरबी यहोवा को चढ़ाता था, तो यहोवा को बहुत खुशी होती थी। इस तरह वह ज़ाहिर करता था कि वह यहोवा से प्यार करता है और उसे अपनी सबसे बढ़िया भेंट देना चाहता है। यीशु भी यहोवा से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने तन-मन से यहोवा की सेवा करके उसे अपनी सबसे बढ़िया भेंट चढ़ायी। (यूह. 14:31) यीशु को यहोवा के कानून से बहुत लगाव था और उसकी मरज़ी पूरी करने से उसे खुशी मिलती थी। (भज. 40:8) यहोवा यह देखकर फूला नहीं समाया होगा कि यीशु खुशी-खुशी उसकी सेवा कर रहा है!

यहोवा के लिए प्यार हमें उभारता है कि हम उसे अपना सबसे अच्छा दें (पैराग्राफ 11-12 देखें) *

11. (क) हमारी सेवा किस तरह शांति-बलियों की तरह है? (ख) इस बात से हमें दिलासा क्यों मिलता है?

11 हमारी सेवा भी शांति-बलियों की तरह है। अपनी इच्छा से यहोवा की सेवा करके हम ज़ाहिर करते हैं कि हम उसके बारे में कैसा महसूस करते हैं। हम उससे पूरे दिल से प्यार करते हैं, इसलिए उसे अपना सबसे अच्छा देना चाहते हैं। जब यहोवा यह देखता है कि लाखों लोग उसकी सेवा कर रहे हैं, क्योंकि वे उससे और उसके स्तरों से प्यार करते हैं, तो उसे कितना अच्छा लगता होगा! लेकिन यहोवा न सिर्फ हमारे कामों पर ध्यान देता है बल्कि यह भी देखता है कि क्या बात हमें ये काम करने के लिए उभारती है। क्या इससे आपको दिलासा नहीं मिलता? मान लीजिए, आप एक बुज़ुर्ग हैं और अब आप यहोवा की सेवा में उतना नहीं कर पाते, जितना आप चाहते हैं। क्या इसका मतलब है कि आप यहोवा को अपना सबसे अच्छा नहीं दे रहे हैं? ऐसी बात नहीं है। यकीन रखिए, यहोवा आपकी सीमाएँ जानता है। आपको शायद लगे कि आप यहोवा के लिए ज़्यादा नहीं कर पा रहे हैं, मगर यहोवा देख सकता है कि आप उससे कितना प्यार करते हैं और आपसे जितना हो सकता है, वह आप कर रहे हैं। यह आपकी तरफ से सबसे बढ़िया भेंट है और यहोवा उसे खुशी-खुशी स्वीकार करता है।

12. (क) जब शांति-बलि चढ़ायी जाती थी, तो यहोवा को कैसा लगता था? (ख) इससे हमें क्या हौसला मिलता है?

12 प्राचीन इसराएल में चढ़ायी गयी शांति-बलियों से हम क्या सीख सकते हैं? जब जानवर के सबसे बढ़िया हिस्सों को जलाया जाता था और धुआँ ऊपर उठता था, तो इससे यहोवा खुश होता था। उसी तरह, जब आप खुशी-खुशी और तन-मन से यहोवा की सेवा करते हैं, तो वह आपके बलिदान से बहुत खुश होता है। (कुलु. 3:23) क्या आप उसकी खुशी का अंदाज़ा लगा सकते हैं? आप यहोवा की सेवा में चाहे जितना भी कर पाते हों, उसकी वह दिल से कदर करता है और उसे वह कभी नहीं भूलेगा।​—मत्ती 6:20; इब्रा. 6:10.

यहोवा अपने संगठन पर आशीष दे रहा है

13. लैव्यव्यवस्था 9:23, 24 के मुताबिक यहोवा ने कैसे ज़ाहिर किया कि वह नियुक्‍त किए गए याजकों से खुश है?

13 चौथी सीख: यहोवा के संगठन का जो हिस्सा धरती पर है, उस पर वह आशीष दे रहा है।  ध्यान दीजिए कि ईसा पूर्व 1512 में क्या हुआ, जब सीनै पहाड़ के नीचे पवित्र डेरा खड़ा किया गया था। (निर्ग. 40:17) उस मौके पर मूसा ने हारून और उसके बेटों को याजकपद सौंपा। फिर पूरे इसराएल राष्ट्र के सामने इन याजकों ने पहली बार जानवरों के बलिदान चढ़ाए। (लैव्य. 9:1-5) यहोवा ने कैसे ज़ाहिर किया कि वह नियुक्‍त किए गए इन याजकों से खुश है? जब मूसा और हारून लोगों को आशीर्वाद दे रहे थे, तो यहोवा ने स्वर्ग से आग भेजी और बलिदान को पूरी तरह भस्म कर दिया।​लैव्यव्यवस्था 9:23, 24 पढ़िए।

14. हारून का याजकपद किस बात की छाया था?

14 यहोवा ने बड़े ही शानदार तरीके से स्वर्ग से आग क्यों भेजी? वह यह ज़ाहिर करना चाहता था कि हारून और उसके बेटों पर उसकी मंज़ूरी है। जब इसराएलियों ने देखा कि यहोवा उन याजकों का साथ दे रहा है, तो वे समझ गए कि उन्हें भी उनका साथ देना है। यह बात आज क्यों गौर करने लायक है? हारून का याजकपद भविष्य में आनेवाले एक बेहतरीन याजकपद की बस एक छाया था। वह याजकपद महायाजक यीशु और 1,44,000 राजाओं और याजकों से मिलकर बना होगा।​—इब्रा. 4:14; 8:3-5; 10:1.

यहोवा अपने संगठन का मार्गदर्शन कर रहा है और उसके काम पर आशीषें दे रहा है। हम इस संगठन को पूरा सहयोग देते हैं (पैराग्राफ 15-17 देखें) *

15-16. यहोवा ने कैसे ज़ाहिर किया है कि वह “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के काम पर आशीष दे रहा है?

15 सन्‌ 1919 में यीशु ने अभिषिक्‍त भाइयों के एक छोटे-से समूह को “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ठहराया। यह दास प्रचार काम की अगुवाई करता है और मसीह के चेलों को “सही वक्‍त पर खाना” देता है। (मत्ती 24:45) क्या यहोवा वाकई विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास के काम पर आशीष दे रहा है? क्या आप इस बात के साफ सबूत देख सकते हैं?

16 शैतान और उसकी दुनिया ने विश्‍वासयोग्य दास का काम रोकने की लगातार कोशिश की है। दो विश्‍व युद्ध हुए, दुनिया-भर में आर्थिक मंदी का दौर चला और यहोवा के लोगों पर बहुत ज़ुल्म किए गए, लेकिन इस सबके बावजूद विश्‍वासयोग्य दास धरती पर मसीह के चेलों को सही वक्‍त पर खाना देता रहा। आज हमारे प्रकाशन 900 से भी ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं, वह भी बिलकुल मुफ्त! यह इस बात का साफ सबूत है कि यहोवा विश्‍वासयोग्य दास का साथ दे रहा है। एक और सबूत पर गौर कीजिए, वह है प्रचार काम। आज परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी का “सारे  जगत में” प्रचार किया जा रहा है। (मत्ती 24:14) इस बात में कोई शक नहीं कि यहोवा अपने संगठन का मार्गदर्शन कर रहा है और उसके काम पर ढेरों आशीषें दे रहा है।

17. हम किस तरह संगठन को अपना सहयोग दे सकते हैं?

17 हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हूँ कि मैं यहोवा के संगठन का हिस्सा हूँ?’ मूसा के ज़माने में यहोवा ने स्वर्ग से आग भेजकर दिखाया कि याजकों पर उसकी मंज़ूरी है। उसी तरह यहोवा ने हमें यह साफ सबूत दिया है कि वह अपने संगठन का साथ दे रहा है। सच में, यहोवा का धन्यवाद करने की हमारे पास कई वजह हैं। (1 थिस्स. 5:18) हम किस तरह संगठन को अपना सहयोग दे सकते हैं? प्रकाशनों, सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में बाइबल से जो हिदायतें दी जाती हैं, उन्हें मानकर हम अपना सहयोग दे सकते हैं। इसके अलावा, प्रचार और सिखाने के काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेकर भी हम ऐसा कर सकते हैं।​—1 कुरिं. 15:58.

18. आपने क्या करने की ठान ली है?

18 लैव्यव्यवस्था की किताब से हमने सीखा कि हम पर यहोवा की मंज़ूरी होनी चाहिए, तभी हमारा बलिदान उसे स्वीकार होगा। हमने यह भी देखा कि हम यहोवा की सेवा इसलिए करते हैं कि हम उसके एहसानमंद हैं। हम पूरे दिल से उससे प्यार करते हैं, इस वजह से हम उसे अपना सबसे अच्छा देते हैं। आखिर में हमने देखा कि आज यहोवा जिस संगठन के ज़रिए अपना काम करवा रहा है, उसे हमें पूरा सहयोग देना चाहिए। तो फिर आइए हम ठान लें कि हम लैव्यव्यवस्था की किताब से सीखी बातों को मानेंगे। ऐसा करके हम ज़ाहिर करेंगे कि हम यहोवा के साक्षी होने के सम्मान की बहुत कदर करते हैं!

गीत 96 याह की पवित्र किताब—एक खज़ाना

^ पैरा. 5 लैव्यव्यवस्था की किताब में ऐसे कई नियम-कानून दर्ज़ हैं, जो यहोवा ने प्राचीन इसराएल को दिए थे। भले ही आज हम इन कानूनों के अधीन नहीं हैं, फिर भी इनसे हमें बहुत फायदा हो सकता है। इस लेख में हम देखेंगे कि लैव्यव्यवस्था की किताब से हम कौन-कौन-सी बढ़िया बातें सीख सकते हैं।

^ पैरा. 4 पवित्र डेरे में जो धूप जलाया जाता था, उसे पवित्र माना जाता था और प्राचीन इसराएल में यह धूप सिर्फ यहोवा की उपासना में इस्तेमाल होता था। (निर्ग. 30:34-38) लेकिन इस बात का कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिलता कि पहली सदी के मसीही यहोवा की उपासना करने के लिए धूप जलाते थे।

^ पैरा. 9 शांति-बलियों के बारे में और जानने के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स, भाग 2, पेज 526 देखें।

^ पैरा. 54 तसवीर के बारे में: प्रायश्‍चित के दिन, इसराएल का महायाजक सुगंधित धूप और जलते हुए कोयले लेकर परम-पवित्र भाग के अंदर जाता था, ताकि पूरा कमरा खुशबू से भर जाए। बाद में वह बलि किए हुए जानवरों का खून अर्पित करने के लिए दोबारा परम-पवित्र भाग के अंदर जाता था

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: एक इसराएली परिवार यहोवा का एहसानमंद है, इसलिए वह याजक को शांति-बलि के तौर पर एक भेड़ दे रहा है।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: जब यीशु धरती पर था, तब उसने हमेशा यहोवा की आज्ञाएँ मानीं और अपने चेलों को भी ऐसा करना सिखाया। इस तरह उसने ज़ाहिर किया कि वह यहोवा से बहुत प्यार करता है।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: एक बुज़ुर्ग बहन चल-फिर नहीं पातीं, फिर भी वे खत के ज़रिए गवाही देकर यहोवा को अपना सबसे अच्छा दे रही हैं।

^ पैरा. 62 तसवीर के बारे में: फरवरी 2019 में शासी निकाय के भाई, गैरिट लोश जर्मन भाषा में नयी दुनिया अनुवाद  बाइबल का नया संस्करण रिलीज़ कर रहे हैं और हाज़िर लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं है। इन दो बहनों की तरह, आज जर्मनी में प्रचारक गवाही देते वक्‍त खुशी-खुशी नयी बाइबल का इस्तेमाल करते हैं।