इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 9

यहोवा आपको सुकून दे

यहोवा आपको सुकून दे

“जब चिंताएँ मुझ पर हावी हो गयीं, तब तूने मुझे दिलासा दिया, सुकून दिया।”—भज. 94:19.

गीत 44 दुखियारे की प्रार्थना

लेख की एक झलक *

1. (क) किन वजहों से हमें चिंता हो सकती है? (ख) हम क्या सोच सकते हैं?

क्या आप कभी गहरी चिंता * में डूब गए थे? हो सकता है किसी की बातों या व्यवहार से आपको ठेस पहुँची हो। या फिर आप अपनी गलतियों की वजह से बहुत मायूस हो गए हों। शायद आपको लगता हो कि यहोवा आपको कभी माफ नहीं करेगा। और आप शायद यह भी सोचें कि आपको इतनी चिंता इसलिए हो रही है क्योंकि आपमें विश्‍वास नहीं है, यानी आपमें कुछ कमी है। मगर क्या यह सच है?

2. क्या चिंता करने का यह मतलब है कि हममें विश्‍वास नहीं है? कुछ लोगों की मिसाल देकर समझाइए।

2 बाइबल में बताए कुछ लोगों के बारे में गौर कीजिए। जैसे भविष्यवक्‍ता शमूएल की माँ हन्‍ना, पौलुस और दाविद। हन्‍ना का विश्‍वास बहुत मज़बूत था। फिर भी वह एक वक्‍त पर काफी चिंता में रहती थी, क्योंकि उसके परिवार में कोई उसके साथ बुरा सलूक करता था। (1 शमू. 1:7) प्रेषित पौलुस का भी विश्‍वास काफी मज़बूत था, मगर “सारी मंडलियों की चिंता” उसे दिन-रात खाए जाती थी। (2 कुरिं. 11:28) राजा दाविद का विश्‍वास इतना मज़बूत था कि यहोवा को उससे लगाव हो गया था। (प्रेषि. 13:22) फिर भी दाविद ने कई गलतियाँ कीं जिसकी वजह से वह गहरी चिंता में डूब जाता था। (भज. 38:4) यहोवा ने इनमें से हर सेवक को दिलासा और सुकून दिया। आइए देखें कि उनसे हम क्या सीख सकते हैं।

वफादार हन्‍ना से हम क्या सीखते हैं?

3. दूसरों की बातें हमें क्यों दुखी कर सकती हैं?

3 जब कोई हमें चोट पहुँचानेवाली बात कहता है या हमारे साथ रूखा व्यवहार करता है, तो हमें बहुत बुरा लगता है। खासकर अगर कोई दोस्त या रिश्‍तेदार ऐसा करे, तो चोट और गहरी होती है। हमें चिंता होने लगती है कि उसके साथ हमारा रिश्‍ता अब पहले जैसा नहीं रहेगा। अगर कोई हमसे बिना सोचे-समझे ऐसी बात कह दे तो हमें ऐसा लग सकता है मानो उसने तलवार से हम पर वार कर दिया हो। (नीति. 12:18) या कोई जानबूझकर हमें चोट पहुँचाने के लिए ऐसी बात कह सकता है। एक जवान बहन कहती है, “कुछ साल पहले मेरी एक अच्छी दोस्त ने सोशल मीडिया पर मेरे बारे में अफवाहें फैला दीं। मुझे बहुत बुरा लगा और मैं चिंता में डूब गयी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी इतनी अच्छी दोस्त होकर वह यह कैसे कर सकती है। उसने मेरे पीठ पीछे छुरा भोंक दिया था।” अगर आपके साथ भी ऐसा हुआ है, तो आप हन्‍ना से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

4. हन्‍ना की ज़िंदगी में क्या-क्या समस्याएँ थीं?

4 हन्‍ना की ज़िंदगी में कुछ बड़ी-बड़ी समस्याएँ थीं। वह बाँझ थी। (1 शमू. 1:2) कई इसराएली मानते थे कि अगर एक औरत के बच्चा नहीं हो रहा है, तो इसका मतलब है परमेश्‍वर की आशीष उस पर नहीं है। इसलिए हन्‍ना बहुत नीचा महसूस करती थी। (उत्प. 30:1, 2) हन्‍ना की एक सौतन भी थी, जिसने उसका जीना मुश्‍किल कर दिया था। उसकी सौतन पनिन्‍ना के कई बच्चे थे और वह हन्‍ना से जलती थी। वह हन्‍ना को “दुख देने के लिए उस पर लगातार ताने कसती थी।” (1 शमू. 1:6) शुरू में हन्‍ना इन समस्याओं की वजह से बहुत दुखी रहती थी। वह इतनी परेशान हो जाती थी कि “रोने लगती और कुछ खाती-पीती नहीं थी।” वह “कड़वाहट से भर गयी थी।” (1 शमू. 1:7, 10) हन्‍ना को दिलासा कैसे मिला?

5. हन्‍ना ने प्रार्थना करने के बाद कैसा महसूस किया?

5 हन्‍ना ने यहोवा से प्रार्थना की और उसे खुलकर बताया कि वह कितनी दुखी है। प्रार्थना करने के बाद उसने अपनी तकलीफ के बारे में महायाजक एली को बताया। एली ने उससे कहा, “तू बेफिक्र होकर घर जा। इसराएल का परमेश्‍वर तेरी बिनती सुने। तेरी मनोकामना पूरी करे।” तब हन्‍ना को कैसा लगा? “उसने जाकर कुछ खाया और उसके चेहरे पर फिर उदासी न रही।” (1 शमू. 1:17, 18) प्रार्थना करने से हन्‍ना के दुखी मन को चैन मिला।

हन्‍ना की तरह हम कैसे मन की शांति पा सकते हैं और उसे बनाए रख सकते हैं? (पैराग्राफ 6-10 देखें)

6. हम प्रार्थना के बारे में हन्‍ना से और फिलिप्पियों 4:6, 7 से क्या सीखते हैं?

6 प्रार्थना में लगे रहने से हमारे दुखी मन को चैन मिल सकता है।  हन्‍ना ने अपनी समस्या के बारे में काफी देर तक प्रार्थना की। (1 शमू. 1:12) हम भी अपनी चिंताओं, परेशानियों और कमज़ोरियों के बारे में काफी देर तक यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि हमें प्रार्थना में बहुत सुंदर और दमदार शब्द कहने हैं। हो सकता है हम अपनी परेशानियों के बारे में बात करते-करते रोने लगें। फिर भी यहोवा हमारी प्रार्थनाओं से खीज नहीं उठेगा। हमें यहोवा को सिर्फ अपनी समस्याएँ नहीं बतानी चाहिए बल्कि उसका धन्यवाद भी करना चाहिए। पौलुस ने फिलिप्पियों 4:6, 7 में यही सलाह दी है। (पढ़िए।) हम कई बातों के लिए यहोवा का धन्यवाद कर सकते हैं। जैसे, उसने हमें जीवन दिया है, कितनी खूबसूरत चीज़ें बनायी हैं, वह हमसे सच्चा प्यार करता है और उसने वादा किया है कि वह हमें एक अच्छा भविष्य देगा। अब आइए देखें कि हम हन्‍ना से और क्या सीख सकते हैं।

7. हन्‍ना अपने पति के साथ नियमित तौर पर क्या करती थी?

7 भले ही हन्‍ना के जीवन में कई समस्याएँ थीं, मगर वह अपने पति के साथ नियमित तौर पर शीलो जाती और यहोवा की उपासना करती थी। (1 शमू. 1:1-5) पवित्र डेरे के पास जाने की वजह से ही उसे महायाजक एली की बातों से हिम्मत मिली, जिसने उससे कहा कि यहोवा उसकी प्रार्थना ज़रूर सुनेगा।—1 शमू. 1:9, 17.

8. सभाओं में जाने से कैसे हमारे मन को शांति मिलती है?

8 सभाओं में लगातार जाने से हमारे दुखी मन को चैन मिल सकता है।  सभाओं की शुरूआत में प्रार्थना की जाती है कि परमेश्‍वर हमें पवित्र शक्‍ति दे। पवित्र शक्‍ति के गुणों में से एक है शांति। (गला. 5:22) जब हम अपनी चिंताओं के बावजूद सभाओं में जाते हैं, तो यहोवा और हमारे भाई-बहन हमारी हिम्मत बँधाते हैं। इसलिए हमारे मन को शांति मिलती है। यहोवा खासकर प्रार्थना और सभाओं के ज़रिए हमें सुकून देता है। (इब्रा. 10:24, 25) हम हन्‍ना से और भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

9. (क) क्या हन्‍ना की समस्याएँ फौरन दूर हो गयीं? (ख) उसे कैसे सुकून मिला?

9 प्रार्थना करने और पवित्र डेरे के पास जाने की वजह से हन्‍ना की समस्याएँ फौरन दूर नहीं हो गयीं। घर लौटने के बाद उसे अपनी सौतन पनिन्‍ना के साथ ही रहना पड़ा। बाइबल यह नहीं बताती कि पनिन्‍ना, हन्‍ना के साथ अच्छा व्यवहार करने लगी। हन्‍ना को शायद पहले की तरह उसकी चुभनेवाली बातें सहनी पड़ीं। मगर वह अब पहले की तरह दुखी नहीं रहती थी। उसके दिल को सुकून मिला। उसने मामला यहोवा के हाथ में छोड़ दिया था, इसलिए अब वह अपनी परेशानियों के बारे में नहीं सोचती रही। उसने यहोवा पर भरोसा रखा। बाद में यहोवा की आशीष से हन्‍ना के बच्चे हुए।—1 शमू. 1:19, 20; 2:21.

10. हन्‍ना से हम और क्या सीखते हैं?

10 चाहे हमारी समस्याएँ दूर न हों, फिर भी हमारे दिल को चैन मिल सकता है।  भले ही हम दिल से प्रार्थना करें और सभाओं में लगातार जाएँ, फिर भी शायद हमारी समस्याएँ दूर न हों। हन्‍ना के किस्से से हम सीखते हैं कि यहोवा हमारे दिल को चैन दे सकता है, फिर चाहे हालात जैसे भी हों। यहोवा हमें कभी नहीं भूलेगा। आज नहीं तो कल, वह हमारी वफादारी का इनाम ज़रूर देगा।—इब्रा. 11:6.

प्रेषित पौलुस से हम क्या सीखते हैं?

11. पौलुस को किन बातों की चिंता रहती थी?

11 पौलुस को कई बातों की चिंता रहती थी। एक तो उसे अपने भाई-बहनों की बहुत फिक्र होती थी। वह उनसे बहुत प्यार करता था इसलिए उनकी मुश्‍किलें देखकर वह बहुत दुखी हो जाता था। (2 कुरिं. 2:4; 11:28) पौलुस को प्रचार करते समय काफी विरोध सहना पड़ा। उसे बहुत मारा-पीटा गया और जेल में डाल दिया गया। उसे और भी कई तकलीफें सहनी पड़ी थीं। जैसे, कभी-कभी उसे “कम चीज़ों में गुज़ारा” करना पड़ता था। (फिलि. 4:12) तीन बार उसका जहाज़ टूट गया था। इसलिए हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जब भी वह जहाज़ से सफर करता, तो उसे कितनी घबराहट महसूस होती होगी। (2 कुरिं. 11:23-27) पौलुस ने इन सारी चिंताओं का सामना कैसे किया?

12. पौलुस की चिंताएँ कैसे कम हुईं?

12 हालाँकि पौलुस अपने भाई-बहनों की समस्याएँ देखकर दुखी हो जाता था, मगर उसने अकेले ही उनकी समस्याएँ दूर करने की कोशिश नहीं की। वह अपनी हद पहचानता था। इसलिए उसने मंडलियों की देखरेख करने के लिए दूसरे भाइयों से मदद माँगी। उसने तीमुथियुस और तीतुस जैसे भरोसेमंद भाइयों को कुछ ज़िम्मेदारियाँ सौंपी। जब इन भाइयों ने पौलुस का हाथ बँटाया, तो उसकी चिंताएँ थोड़ी कम हुई होंगी।—फिलि. 2:19, 20; तीतु. 1:1, 4, 5.

पौलुस की तरह हम क्या कर सकते हैं ताकि चिंताएँ हम पर हावी न हो जाएँ? (पैराग्राफ 13-15 देखें)

13. पौलुस की तरह प्राचीन क्या कर सकते हैं?

13 दूसरों से मदद माँगिए।  आज भी कई प्राचीनों को अपने भाई-बहनों की तकलीफें देखकर बहुत चिंता होती है। मगर कोई भी प्राचीन अकेले सबकी मदद नहीं कर सकता। जो प्राचीन अपनी हद पहचानता है, वह दूसरे काबिल भाइयों से मदद माँगेगा और जवान भाइयों को सिखाएगा कि वे कैसे भाई-बहनों की तकलीफों में उनकी मदद कर सकते हैं।—2 तीमु. 2:2.

14. (क) पौलुस ने क्या नहीं सोचा? (ख) इससे हम क्या सीखते हैं?

14 इस बात को मानिए कि आपको दिलासे की ज़रूरत है।  पौलुस नम्र था, इसलिए वह जानता था कि उसे भी दिलासे की ज़रूरत है। जब दूसरों ने उसे दिलासा दिया, तो उसने स्वीकार किया। उसने यह नहीं सोचा कि अगर दूसरे भाई-बहन उसकी हिम्मत बँधाएँगे, तो लोग उसे एक कमज़ोर इंसान मानेंगे। उसे फिलेमोन से बहुत दिलासा मिला, इसलिए उसने फिलेमोन के नाम चिट्ठी में लिखा, “जब मैंने तेरे प्यार के बारे में सुना तो मुझे बहुत खुशी हुई और दिलासा मिला।” (फिले. 7) पौलुस को कुछ और भाई-बहनों से भी हिम्मत मिली थी, जिनका ज़िक्र उसने एक और चिट्ठी में किया है। (कुलु. 4:7-11) जब हम भी नम्रता से मानेंगे कि हमें हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत है, तो हमारे भाई-बहन हमें हिम्मत देने के लिए खुशी से आगे आएँगे।

15. पौलुस ने तनाव सहते वक्‍त क्या किया?

15 परमेश्‍वर के वचन से दिलासा पाइए।  पौलुस जानता था कि परमेश्‍वर के वचन से उसे हिम्मत मिल सकती है। (रोमि. 15:4) परमेश्‍वर का वचन उसे किसी भी मुसीबत का सामना करने के लिए बुद्धि दे सकता है। (2 तीमु. 3:15, 16) जब वह दूसरी बार रोम में कैद था, तो उसे ऐसा लगा कि उसकी मौत करीब है। तब वह काफी तनाव से गुज़रा होगा। ऐसे में उसने क्या किया? उसने तीमुथियुस को खबर भेजी कि वह फौरन उसके पास आए और अपने साथ “चर्मपत्र” ले आए। (2 तीमु. 4:6, 7, 9, 13) शायद ये चर्मपत्र इब्रानी शास्त्र के खर्रे थे। पौलुस ने ये इसलिए मँगवाया ताकि वह उनका अध्ययन कर सके। पौलुस से हम सीखते हैं कि मुसीबतों के दौर में हमें नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। तब यहोवा हमें अपने वचन के ज़रिए दिलासा देगा, फिर चाहे हम कितनी ही बड़ी तकलीफ क्यों न झेल रहे हों।

राजा दाविद से हम क्या सीखते हैं?

अगर हमने कोई बड़ा पाप किया है, तो हमें दाविद की तरह क्या करना चाहिए? (पैराग्राफ 16-19 देखें)

16. दाविद ने जब एक बड़ा पाप किया, तो उस पर क्या बीती?

16 दाविद ने बहुत बड़ा पाप किया था। उसने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया और उसके पति को मरवा डालने की साज़िश रची। फिर उसने कुछ समय तक अपने अपराधों को छिपाने की कोशिश की। (2 शमू. 12:9) दाविद का ज़मीर उसे बुरी तरह कचोटने लगा मगर उसने अपने ज़मीर की आवाज़ नहीं सुनी। इसलिए यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता बिगड़ गया। वह काफी तनाव से गुज़रा और बीमार हो गया। (भज. 32:3, 4) दाविद खुद पर जो मुसीबतें ले आया था, उनकी वजह से वह काफी चिंता में डूब गया। मगर वह बाद में उनका कैसे सामना कर पाया? अगर हम भी कोई पाप करने की वजह से तनाव से गुज़र रहे हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

17. भजन 51:1-4 से कैसे पता चलता है कि दाविद ने सच्चे दिल से पश्‍चाताप किया था?

17 माफी के लिए प्रार्थना कीजिए।  बाद में दाविद को बहुत पछतावा हुआ और उसने यहोवा से प्रार्थना करके उसके सामने अपने पापों को मान लिया। (भजन 51:1-4 पढ़िए।) आखिरकार, उसके मन का बोझ हलका हो गया और उसे चैन मिला। (भज. 32:1, 2, 4, 5) अगर आपने कोई बड़ा पाप किया है, तो उसे छिपाने की कोशिश मत कीजिए। यहोवा से प्रार्थना करके उसके सामने अपनी गलती मान लीजिए। तब दोष की भावना की वजह से आप चिंता में डूबे नहीं रहेंगे, बल्कि राहत महसूस करेंगे। मगर प्रार्थना करना काफी नहीं है। आपको कुछ और भी करना होगा ताकि यहोवा के साथ आपकी दोस्ती दोबारा कायम हो।

18. जब दाविद को उसकी गलती बतायी गयी, तो उसने क्या किया?

18 सुधार के लिए दी गयी सलाह मानिए।  जब भविष्यवक्‍ता नातान ने दाविद के पाप का खुलासा किया, तो दाविद ने बहाने नहीं बनाए, न ही उसने कहा कि उसने जो किया है वह इतना बड़ा पाप नहीं है। उसने फौरन अपनी गलती मान ली। उसने कहा कि उसने न सिर्फ बतशेबा के खिलाफ बल्कि यहोवा के खिलाफ पाप किया है, जो कि एक गंभीर बात है। यहोवा ने उसे जो सज़ा सुनायी, उसे मान लिया। इसलिए यहोवा ने उसे माफ कर दिया। (2 शमू. 12:10-14) अगर हमने भी कोई बड़ा पाप किया है, तो हमें प्राचीनों को बताना चाहिए जिन्हें यहोवा ने चरवाहे नियुक्‍त किया है। (याकू. 5:14, 15) हमें खुद को सही ठहराने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। हमें सुधार के लिए जो भी सलाह दी जाती है, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। हम जितनी जल्दी उसे स्वीकार करेंगे और उस पर अमल करेंगे, हम उतनी जल्दी मन का चैन और खुशी पाएँगे।

19. हमें क्या ठान लेना चाहिए?

19 ठान लीजिए कि आप दोबारा वही पाप नहीं करेंगे।  राजा दाविद जानता था कि उसे यहोवा से मदद की ज़रूरत है ताकि वह दोबारा वही पाप न करे। (भज. 51:7, 10, 12) जब यहोवा ने उसे माफ कर दिया, तो उसने ठान लिया कि वह अब से गलत बातों के बारे में नहीं सोचेगा। इसलिए उसने मन की शांति पायी, जो उसने खो दी थी।

20. अगर हम मानते हैं कि यहोवा हमारे पापों को माफ करता है, तो हम क्या करेंगे?

20 अगर हम मानते हैं कि यहोवा हमारे पापों को माफ करता है, तो हम उससे माफी की बिनती करेंगे, सुधार के लिए जो सलाह दी जाती है, उसे मानेंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि हम दोबारा वही पाप न करें। यह सब करने से हम मन की शांति पाएँगे। जेम्स नाम के भाई ने इस बात को सच पाया, जिसने एक बड़ा पाप किया था। वह कहता है, “जब मैंने प्राचीनों के सामने अपनी गलती मान ली, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सिर से एक भारी बोझ उतर गया है। मैंने मन-ही-मन काफी राहत महसूस की।” यह कितनी खुशी की बात है कि “यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जिनका मन कुचला हुआ है।”—भज. 34:18.

21. यहोवा से दिलासा और सुकून पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

21 आज हम अंत के बहुत करीब आ पहुँचे हैं, इसलिए आनेवाले दिनों में हमारी चिंताएँ और बढ़ सकती हैं। जब भी आप पर चिंताएँ हावी होने लगें, तो यहोवा से तुरंत प्रार्थना कीजिए। बाइबल का मन लगाकर अध्ययन कीजिए। हन्‍ना, पौलुस और दाविद ने जो किया, वह आप भी कीजिए। अपने पिता यहोवा से बिनती कीजिए कि वह यह समझने में आपकी मदद करे कि आपकी परेशानी का असली कारण क्या है। (भज. 139:23) अपना बोझ यहोवा के हाथ में दे दीजिए। खासकर ऐसी समस्याओं का बोझ जिनका हल करना आपके बस में नहीं है। ऐसा करने से आप भी भजन के एक रचयिता की तरह सुकून पाएँगे और कहेंगे, “जब चिंताएँ मुझ पर हावी हो गयीं, तब तूने मुझे दिलासा दिया, सुकून दिया।”—भज. 94:19.

गीत 4 “यहोवा मेरा चरवाहा है”

^ पैरा. 5 हम सब कभी-कभी अपनी समस्याओं को लेकर काफी चिंता करते हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि बाइबल के ज़माने के तीन सेवक कैसे अपनी समस्याओं की वजह से चिंता करने लगे थे। हम यह भी देखेंगे कि यहोवा ने कैसे उन्हें दिलासा और सुकून दिया।

^ पैरा. 1 इसका क्या मतलब है: चिंता  का मतलब है, किसी बात को लेकर बहुत ज़्यादा परेशान हो जाना। चिंता के कई कारण हो सकते हैं। पैसे की तंगी, बीमारी, परिवार में समस्याएँ या कोई और परेशानियाँ। हमने बहुत पहले जो गलतियाँ की थीं उनके बारे में सोचकर भी हम मायूस हो सकते हैं या फिर भविष्य में हम पर जो मुश्‍किलें आ सकती हैं, उनके बारे में सोचकर हम चिंता में डूब सकते हैं।