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अध्ययन लेख 15

आप अपने प्रचार के इलाके के बारे में क्या सोचते हैं?

आप अपने प्रचार के इलाके के बारे में क्या सोचते हैं?

“अपनी आँखें उठाओ और खेतों पर नज़र डालो, वे कटाई के लिए पक चुके हैं।”—यूहन्‍ना 4:35.

गीत 64 कटनी में खुशी से हिस्सा लें

लेख की एक झलक *

1-2. यीशु ने क्यों कहा कि खेत पक चुके हैं?

यीशु गलील जाते समय खेतों से होते हुए गया था। शायद ये जौ के खेत थे जिनमें बालें लगनी शुरू हुई थीं। (यूह. 4:3-6) उन्हें पकने में अभी चार महीने लगते। फिर भी यीशु ने उन खेतों की तरफ देखकर अपने चेलों से कहा, “अपनी आँखें उठाओ और खेतों पर नज़र डालो, वे कटाई के लिए पक चुके हैं।” (यूहन्‍ना 4:35, 36 पढ़िए।) यह बात सुनकर चेले दंग रह गए होंगे। जब खेत पके नहीं थे, तो फिर यीशु ने यह क्यों कहा कि वे पक चुके हैं?

2 ऐसा लगता है कि यीशु फसल काटने की बात नहीं कर रहा था बल्कि लोगों को इकट्ठा करने की बात कर रहा था। ध्यान दीजिए कि अभी-अभी क्या हुआ था। हालाँकि यहूदी लोग सामरियों से मेल-जोल नहीं रखते थे, फिर भी जब यीशु ने एक सामरी औरत को गवाही दी तो उसने संदेश स्वीकार किया। फिर उसने जाकर दूसरे सामरी लोगों को यीशु के बारे में बताया और उन लोगों की एक भीड़ यीशु से सीखने के लिए उसके पास आने लगी। जब यीशु चेलों से कह रहा था कि खेत पक चुके हैं, तो उन सामरियों की भीड़ उसकी तरफ चली आ रही थी। (यूह. 4:9, 39-42) बाइबल के एक विद्वान ने लिखा, “लोग यीशु के बारे में सीखने के लिए फौरन चले आए थे . . . वे उस फसल की तरह थे जो कटाई के लिए पक चुकी है।”

अगर हम मानते हैं कि खेत “कटाई के लिए पक चुके हैं,” तो हमें क्या करना चाहिए? (पैराग्राफ 3 देखें)

3. अगर आप लोगों के बारे में यीशु की तरह सोचेंगे, तो आप क्या करेंगे?

3 आप जिन लोगों को प्रचार करते हैं, उनके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं? क्या आप भी यीशु की तरह सोचते हैं कि वे पकी हुई फसल जैसे हैं? अगर हाँ तो आप (1) ज़ोर-शोर से प्रचार करेंगे क्योंकि वक्‍त बहुत कम है। जैसे कटाई का काम थोड़े समय के लिए होता है, उसी तरह प्रचार काम भी हमें जल्द-से-जल्द पूरा करना है। (2) जब आप देखेंगे कि लोग हमारा संदेश सुनते हैं, तो आप खुश होंगे। बाइबल कहती है, ‘कटाई के समय लोग मगन होते हैं।’ (यशा. 9:3) (3) हर इंसान के बारे में आप यही सोचेंगे कि वह सच्चाई में आ सकता है। इसलिए आप सबको एक ही तरीके से प्रचार नहीं करेंगे। आप लोगों की रुचि के मुताबिक तरीका बदलेंगे।

4. इस लेख में हम प्रेषित पौलुस से क्या-क्या सीखेंगे?

4 यीशु के चेलों ने सोचा होगा कि सामरी लोग कभी यीशु के चेले नहीं बनेंगे। मगर यीशु ने ऐसा नहीं सोचा। उसे उम्मीद थी कि वे भी एक दिन उसके चेले बनेंगे। हमें भी अपने प्रचार के इलाके के लोगों के बारे में यही सोचना चाहिए कि वे एक दिन यीशु के चेले बन सकते हैं। इस मामले में हम प्रेषित पौलुस से बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि पौलुस जिन लोगों को प्रचार करता था, (1) उनके बारे में जानता था कि वे क्या मानते हैं, (2) उसने ध्यान दिया कि उन्हें किस बात में रुचि होगी और (3) उनके बारे में यही सोचा कि वे यीशु के चेले बन सकते हैं।

वे क्या मानते हैं?

5. पौलुस यहूदियों को क्यों अच्छी तरह प्रचार कर पाया?

5 पौलुस अकसर यहूदियों के सभा-घरों में प्रचार करता था। थिस्सलुनीके के सभा-घर में उसने ‘तीन सब्त तक पवित्र शास्त्र से यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क किया।’ (प्रेषि. 17:1, 2) जब वह सभा-घर में प्रचार करता था, तो यकीन के साथ बोलता था, क्योंकि वह खुद एक यहूदी था। (प्रेषि. 26:4, 5) वह जानता था कि यहूदी लोग क्या मानते हैं।​—फिलि. 3:4, 5.

6. पौलुस ने सभा-घर में जिनको प्रचार किया और बाज़ार में जिनको प्रचार किया, उनमें क्या फर्क था?

6 जब पौलुस को विरोधियों की वजह से थिस्सलुनीके और बिरीया छोड़ना पड़ा, तो वह एथेन्स चला गया। वहाँ भी वह “सभा-घर में यहूदियों के साथ और परमेश्‍वर का डर माननेवाले दूसरे लोगों के साथ शास्त्र से तर्क-वितर्क करने लगा।” (प्रेषि. 17:17) लेकिन जब वह एथेन्स के बाज़ार में प्रचार करने गया, तो वहाँ उसे दूसरे लोग मिले। कुछ लोग दार्शनिक थे और कुछ ऐसे गैर-यहूदी भी थे जिन्हें लगा कि पौलुस कोई “नयी शिक्षा” सिखा रहा है। उन्होंने उससे कहा, “तू ऐसी नयी बातें बता रहा है जो हमारे कानों को अजीब लगती हैं।”​—प्रेषि. 17:18-20.

7. प्रेषितों 17:22, 23 के मुताबिक पौलुस ने कैसे अपना तरीका बदला?

7 प्रेषितों 17:22, 23 पढ़िए। जब पौलुस को एथेन्स में गैर-यहूदी लोग मिले, तो उसने उनसे वैसे बात नहीं की जैसे उसने सभा-घर में यहूदियों से बात की थी। उसने अपना तरीका बदला। इन गैर-यहूदियों से बात करने से पहले उसने सोचा होगा कि ‘ये लोग क्या मानते हैं?’ उसने बाज़ार में चारों तरफ नज़र दौड़ायी, तो देखा कि वे किस तरह के धार्मिक रिवाज़ों को मानते हैं। इसके बाद उसने लोगों को शास्त्र से कुछ ऐसी बातें बतायीं जिनसे वे सहमत होते। बाइबल का एक विद्वान कहता है, “पौलुस एक यहूदी मसीही था, इसलिए वह जानता था कि मूर्ति-पूजा करनेवाले यूनानी लोग उस सच्चे परमेश्‍वर को नहीं मानते जिन्हें यहूदी और मसीही मानते थे। फिर भी उसने कहा कि वह जिस परमेश्‍वर के बारे में बता रहा है, वह एथेन्स के लोगों के लिए अनजाना नहीं है।” इस तरह पौलुस ने एथेन्स के गैर-यहूदियों से एक अलग तरीके से बात की। एथेन्स के लोगों ने “अनजाने परमेश्‍वर” के लिए एक वेदी बनायी थी। इसलिए पौलुस ने उनसे कहा कि वह जो संदेश सुना रहा है, वह उसी परमेश्‍वर की तरफ से है जिसे वे ‘अनजाना परमेश्‍वर’ कहते हैं और जिसकी वे उपासना करते हैं। वे गैर-यहूदी लोग शास्त्र के बारे में कुछ नहीं जानते थे, फिर भी पौलुस ने यह नहीं सोचा कि वे कभी मसीही नहीं बन सकते। इसके बजाय, उसने सोचा कि वे पकी हुई फसल जैसे हैं। इसलिए उनसे बात करते वक्‍त उसने एक अलग तरीका अपनाया।

आस-पास की चीज़ें गौर से देखिए, लोगों की रुचि के हिसाब से बात कीजिए और सोचिए कि वे मसीह के चेले बन सकते हैं (पैराग्राफ 8, 12, 18 देखें) *

8. (क) आप कैसे जान सकते हैं कि लोग किन धारणाओं को मानते हैं? (ख) अगर कोई कहे कि उसका अपना धर्म है, तो आप क्या कह सकते हैं?

8 पौलुस की तरह आस-पास की चीज़ें गौर से देखिए।  जब आप एक घर पर जाते हैं, तो देखिए कि क्या आस-पास ऐसा कुछ है जिससे पता चले कि वहाँ के लोग किन शिक्षाओं को मानते हैं। देखिए कि सामने कैसी सजावट की चीज़ें हैं या गाड़ी पर कैसी चीज़ें लगी हैं। घर के व्यक्‍ति के नाम, उसके पहनावे और बोलने के लहज़े से क्या पता चलता है? वह किस धर्म को मानता होगा? कुछ लोग सीधे-सीधे कहते हैं कि उनका अपना एक धर्म है। जब एक पायनियर बहन को ऐसे लोग मिलते हैं, तो वह उनसे कहती है, “हम ज़बरदस्ती किसी का धर्म नहीं बदलते। हम बस आपको कुछ जानकारी देने आए हैं। और मुझे यकीन है कि इससे आपको फायदा होगा . . . ।”

9. धर्म को माननेवाले से आप किन विषयों पर बात कर सकते हैं?

9 अगर आपको कोई ऐसा व्यक्‍ति मिलता है जो धर्म को मानता है, तो आप किन विषयों पर उससे बात कर सकते हैं? आप ऐसे विषयों पर बात कर सकते हैं जिन पर आप दोनों सहमत हों। शायद वह मानता हो कि एक ही ईश्‍वर है और यीशु हम सबका उद्धारकर्ता है या फिर वह मानता हो कि दुनिया की सारी बुराई जल्द ही मिट जाएगी। इन बातों से आप भी सहमत हैं। इसलिए इसी तरह के विषयों पर बात कीजिए और अपना संदेश इस तरह बताइए कि वह सुनने के लिए तैयार हो।

10. हमें क्या जानने की कोशिश करनी चाहिए और क्यों?

10 याद रखिए कि धर्म को माननेवाले भी अपने धर्म की कुछ बातों पर यकीन नहीं करते। इसलिए जब आपको मालूम पड़ता है कि एक व्यक्‍ति का धर्म क्या है, तो यह जानने की कोशिश कीजिए कि वह खुद क्या मानता है। ऑस्ट्रेलिया का एक खास पायनियर डेविड कहता है, “आजकल बहुत लोग अपने धर्म के साथ-साथ फलसफों को भी मानते हैं।” अल्बानिया की रहनेवाली एक बहन कहती है, “कुछ लोग कहते हैं कि वे भी एक धर्म को मानते हैं। मगर बाद में वे कहते हैं कि वे ईश्‍वर को बिलकुल नहीं मानते।” अर्जेंटीना का एक मिशनरी कहता है कि कुछ लोग त्रिएक की शिक्षा को मानते हैं मगर यह नहीं मानते कि पिता, बेटा और पवित्र शक्‍ति एक परमेश्‍वर है। भाई यह भी कहता है, “जब मुझे पता चलता है कि एक व्यक्‍ति अपने धर्म की सभी शिक्षाओं को नहीं मानता, तो उससे बात करना मेरे लिए आसान हो जाता है। मैं ऐसे विषयों पर बात कर पाता हूँ जिनसे हम दोनों सहमत हैं।” आप भी जानने की कोशिश कीजिए कि आपके प्रचार के इलाके के लोग असल में क्या मानते हैं। तब आप पौलुस की तरह “सब किस्म के लोगों के लिए सबकुछ” बन सकते हैं।​—1 कुरिं. 9:19-23.

उन्हें किन बातों में रुचि है?

11. प्रेषितों 14:14-17 के मुताबिक पौलुस ने लुस्त्रा के लोगों को कैसे संदेश सुनाया?

11 प्रेषितों 14:14-17 पढ़िए। पौलुस पहले देखता था कि लोगों को किन बातों में रुचि है, फिर वह उन्हें संदेश सुनाता था। मिसाल के लिए, उसने लुस्त्रा में जिन लोगों से बात की थी, उन्हें शास्त्र की कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए पौलुस ने उनसे ऐसे विषयों पर बात की जो वे समझ सकते थे। उसने ऐसे शब्द कहे और ऐसे उदाहरण दिए जिनसे वे वाकिफ थे। जैसे, अच्छी पैदावार और जीवन में खुशहाली के बारे में।

12. आप लोगों की रुचि कैसे जान सकते हैं और उसके हिसाब से कैसे बात कर सकते हैं?

12 यह भाँपने की कोशिश कीजिए कि आपके इलाके के लोगों को किन बातों में रुचि है। फिर उस हिसाब से बात कीजिए।  लेकिन आप लोगों की रुचि कैसे जान सकते हैं? जब आप किसी घर पर जाते हैं या किसी से मिलते हैं, तो देखिए कि आस-पास क्या है। क्या व्यक्‍ति बाग में काम कर रहा है, कोई किताब पढ़ रहा है, गाड़ी ठीक कर रहा है या कोई और काम कर रहा है? हो सके तो वह जो काम कर रहा है, उसी का ज़िक्र करके बात शुरू कीजिए। (यूह. 4:7) व्यक्‍ति के कपड़ों पर भी ध्यान दीजिए। क्या उससे कुछ पता चलता है कि वह किस जगह का रहनेवाला है, क्या काम करता है या किस तरह का खेल पसंद करता है? गुसतावो नाम का एक भाई कहता है, “एक बार मैं 19 साल के एक लड़के से मिला था जिसके टी-शर्ट पर एक मशहूर गायक की तसवीर थी। मैंने लड़के से उस तसवीर के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि उसे वह गायक क्यों पसंद है। बातचीत आगे बढ़ी और बाद में वह लड़का बाइबल का अध्ययन करने लगा। आज वह हमारा एक भाई है।”

13. बाइबल अध्ययन में आप लोगों की दिलचस्पी कैसे जगा सकते हैं?

13 जब आप किसी से पूछते हैं कि क्या वह बाइबल सीखना चाहेगा, तो उसमें दिलचस्पी जगाइए। बताइए कि अध्ययन से वह क्या-कुछ सीख सकता है। (यूह. 4:13-15) हैस्टर नाम की एक बहन ने कुछ ऐसा ही किया। एक बार उसे प्रचार में एक औरत ने घर के अंदर बुलाया। हैस्टर ने देखा कि दीवार पर एक सर्टिफिकेट लगा हुआ है। उससे पता चला कि वह औरत एक प्रोफेसर है और उसने शिक्षा के क्षेत्र में कोई डिग्री हासिल की है। हैस्टर ने उससे कहा कि हम भी लोगों को एक तरह की शिक्षा देते हैं। यह शिक्षा देने के लिए हम लोगों को बाइबल का अध्ययन कराते हैं और सभाओं में बुलाते हैं। उस औरत ने अध्ययन के लिए हाँ कहा, वह अगले दिन सभा में गयी और कुछ ही समय बाद एक सर्किट सम्मेलन में भी गयी। एक साल बाद उसने बपतिस्मा ले लिया। आप भी जब किसी से वापसी भेंट करने जाते हैं, तो पहले सोचिए कि उसे किस बात में रुचि होगी। बाइबल अध्ययन किस तरह होता है, यह ऐसे बताइए कि उसकी दिलचस्पी जागे और वह अध्ययन करना चाहे।

14. आप हरेक विद्यार्थी को ध्यान में रखकर कैसे सिखा सकते हैं?

14 जब आप किसी के साथ बाइबल अध्ययन शुरू करते हैं, तो इसके बाद से हर अध्ययन की अच्छी तैयारी कीजिए। तैयारी करते समय सोचिए कि विद्यार्थी का परिवार कैसा है, वह कितना पढ़ा-लिखा है, अब तक उसकी ज़िंदगी कैसी रही है और उसे किन बातों में रुचि है। आप कौन-सी आयतें पढ़ेंगे, कौन-सा वीडियो दिखाएँगे और बाइबल की सच्चाइयाँ समझाने के लिए कैसी मिसालें बताएँगे, यह सब पहले से तय कीजिए। सोचिए कि मुझे यह बात इस विद्यार्थी को किस तरीके से बतानी चाहिए ताकि उसके दिल पर असर हो। (नीति. 16:23) अल्बानिया में फ्लोरा नाम की एक पायनियर बहन एक औरत को बाइबल सिखाती थी। उस औरत ने एक बार उससे साफ कह दिया, “मैं इस बात पर यकीन नहीं कर सकती कि मरे हुए लोग ज़िंदा किए जाएँगे।” फ्लोरा ने उस वक्‍त उस औरत पर ज़ोर नहीं डाला कि वह उस शिक्षा को माने। वह कहती है, “मुझे लगा कि पहले उस औरत को जानना होगा कि जिस परमेश्‍वर ने मरे हुओं को ज़िंदा करने का वादा किया है, वह कैसा परमेश्‍वर है।” उसके बाद से फ्लोरा हर अध्ययन में यहोवा के प्यार, उसकी बुद्धि और शक्‍ति के बारे में बताने लगी। बाद में वह औरत आसानी से मान गयी कि मरे हुए लोग ज़िंदा हो सकते हैं। आज वह औरत यहोवा की एक साक्षी है जो बड़े जोश से दूसरों को गवाही देती है।

उनके बारे में अच्छा सोचिए

15. (क) प्रेषितों 17:16-18 के मुताबिक एथेन्स के लोगों का कैसा बरताव देखकर पौलुस परेशान हुआ? (ख) पौलुस क्यों उन्हें प्रचार करता रहा?

15 प्रेषितों 17:16-18 पढ़िए। पौलुस ने एथेन्स के लोगों के बारे में यह नहीं सोचा कि वे कभी मसीही नहीं बन सकते। वह शहर मूर्ति-पूजा से भरा हुआ था, लोग अनैतिक काम करते थे और झूठी धारणाओं को मानते थे। उन्होंने पौलुस का अपमान भी किया था। फिर भी पौलुस उन्हें प्रचार करता रहा। उसने याद रखा कि वह भी पहले ‘परमेश्‍वर की निंदा करता था, ज़ुल्म ढाता था और गुस्ताख था।’ (1 तीमु. 1:13) जैसे यीशु ने माना कि पौलुस उसका चेला बन सकता है, वैसे ही पौलुस ने भी माना कि एथेन्स के लोग यीशु के चेले बन सकते हैं। और वाकई ऐसा हुआ। एथेन्स के कुछ लोग मसीही बन गए।​—प्रेषि. 9:13-15; 17:34.

16-17. हम क्यों कह सकते हैं कि हर तरह के लोग मसीह के चेले बन सकते हैं? एक अनुभव बताइए।

16 पहली सदी में हर तरह के लोग यीशु के चेले बने। कुरिंथियों के नाम चिट्ठी में पौलुस ने लिखा कि उनकी मंडली के कुछ लोग पहले अपराधी थे और घिनौने अनैतिक काम करते थे। फिर उसने कहा, “मगर तुम्हें धोकर शुद्ध किया गया।” (1 कुरिं. 6:9-11) अगर आप कुरिंथ में होते, तो क्या आप मानते कि ऐसे लोग भी बदल सकते हैं और मसीही बन सकते हैं?

17 आज भी कई लोग अपने तौर-तरीके बदलकर यीशु के चेले बन रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की एक खास पायनियर, यूकीना ने पाया कि हर तरह के लोग सच्चाई सीखकर बदल सकते हैं। एक दिन उसने एक बिज़नेस की जगह पर एक जवान औरत को देखा जिसके शरीर पर कई टैटू थे और उसने बहुत ढीले-ढाले कपड़े पहने थे। यूकीना कहती है, “एक पल के लिए तो मैं उससे बात करने से झिझकी। लेकिन फिर मैंने उससे बात शुरू की। मैंने देखा कि उसे बाइबल में बहुत दिलचस्पी है। उसके शरीर पर गुदे हुए कुछ टैटू भी भजन की आयतें थीं। वह औरत बाइबल सीखने लगी और सभाओं में आने लगी।” *

18. हमें किसी के बारे में यह क्यों नहीं सोचना चाहिए कि वह सच्चाई में नहीं आ सकता?

18 जब यीशु ने कहा कि खेत पक चुके हैं, तो क्या उसने यह सोचा कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग उसके चेले बन जाएँगे? बिलकुल नहीं। शास्त्र में पहले से बताया गया था कि बहुत कम लोग उस पर विश्‍वास करेंगे। (यूह. 12:37, 38) यीशु के पास यह जानने की शक्‍ति थी कि लोगों के दिल में क्या है, इसलिए वह जानता था कि ज़्यादातर लोग उसके संदेश पर यकीन नहीं करेंगे। (मत्ती 9:4) उसने उन लोगों को सिखाने पर ध्यान दिया जो उस पर विश्‍वास करते मगर उसने प्रचार सबको किया। हम तो नहीं जानते कि एक इंसान के दिल में क्या है, इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि फलाँ इंसान या फलाँ इलाके के लोग सच्चाई में नहीं आ सकते। इसके बजाय, हमें यह सोचना चाहिए कि वे भी एक दिन मसीह के चेले बन सकते हैं।  बुर्किना फासो का एक मिशनरी भाई मार्क कहता है, “मैं जिन लोगों के बारे में सोचता हूँ कि वे तरक्की करेंगे, उनमें से कई लोग बाद में अध्ययन बंद कर देते हैं। लेकिन मैं जिनके बारे में सोचता हूँ कि वे तरक्की नहीं करेंगे, वे बहुत अच्छी तरक्की करते हैं। मैंने सीखा कि हमें लोगों के बारे में कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए। बस यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमें जो मार्गदर्शन देती है, वही करना है। तब हमें ऐसे लोग मिलेंगे जो वाकई में सच्चाई की तलाश कर रहे हैं।”

19. हमें अपने इलाके के लोगों के बारे में क्या सोचना चाहिए?

19 शायद हमें लगे कि हमारे इलाके में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जो यीशु के चेले बनेंगे। लेकिन याद कीजिए कि यीशु ने क्या कहा था। खेत पक चुके हैं यानी फसल कटाई के लिए तैयार है। इसका मतलब यह है कि लोग बदल सकते हैं और यीशु के चेले बन सकते हैं। यहोवा भी यही मानता है और उन्हें “अनमोल” समझता है। (हाग्गै 2:7) अगर हम भी लोगों के बारे में वही सोचें जो यहोवा और यीशु सोचते हैं, तो हम जानने की कोशिश करेंगे कि उनका धार्मिक विश्‍वास क्या है और वे किन बातों में रुचि रखते हैं। हम यह नहीं सोचेंगे कि वे कभी सच्चाई में नहीं आएँगे बल्कि यह सोचेंगे कि वे एक दिन हमारे मसीही भाई-बहन बन सकते हैं।

गीत 57 सब किस्म के लोगों को सच्चाई बताइए

^ पैरा. 5 अगर हम अपने प्रचार के इलाके में रहनेवालों के बारे में अच्छा सोचेंगे, तो उन्हें अच्छी तरह प्रचार करेंगे और सिखाएँगे। इस लेख में बताया गया है कि यीशु और पौलुस लोगों के बारे में क्या सोचते थे, वे कैसे उनकी धारणाओं और रुचि को ध्यान में रखकर बात करते थे और मानते थे कि वे भी यहोवा के सेवक बन सकते हैं। लेख में यह भी बताया गया है कि हम कैसे यीशु और पौलुस के जैसी सोच अपना सकते हैं।

^ पैरा. 17पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी” नाम के लेखों में दिए अनुभव दिखाते हैं कि लोग कैसे बदल सकते हैं। ये लेख 2017 तक प्रहरीदुर्ग  में प्रकाशित किए जाते थे। अब ये jw.org® पर दिए जाते हैं। हमारे बारे में > अनुभव भाग में देखिए।

^ पैरा. 57 तसवीर के बारे में: एक जोड़ा घर-घर जाते समय गौर करता है कि (1) घर साफ-सुथरा है और फूलों से सजा है (2) घर में छोटे बच्चे हैं (3) घर अंदर और बाहर से गंदा है (4) घर में धार्मिक किस्म के लोग रहते हैं। इनमें से किस घर में ऐसा व्यक्‍ति मिल सकता है जो मसीह का चेला बन सकता है?