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अध्ययन लेख 16

सुनिए, जानिए और करुणा कीजिए

सुनिए, जानिए और करुणा कीजिए

“जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय मत करो, बल्कि सच्चाई से न्याय करो।”—यूह. 7:24.

गीत 101 एकता में रहकर काम करें

लेख की एक झलक *

1. यहोवा के बारे में कौन-सी बात जानकर हमें खुशी होती है?

अगर कोई आपके रंग-रूप को देखकर आपके बारे में गलत सोचे, तो क्या आपको अच्छा लगेगा? बेशक नहीं। इसलिए यह कितनी खुशी की बात है कि यहोवा हमारे बाहरी रूप को देखकर हमारे बारे में राय नहीं कायम करता। मिसाल के लिए, वह घटना याद कीजिए जब यहोवा ने शमूएल को यिशै के घर भेजा था। उसने शमूएल से कहा कि यिशै का एक बेटा इसराएल का राजा बनेगा, मगर उसने यह नहीं बताया कि वह कौन-सा बेटा होगा। शमूएल ने जब यिशै के बेटों को देखा, तो उसने सिर्फ उनके रंग-रूप पर ध्यान दिया। उसने एलीआब को देखकर सोचा, ‘ज़रूर यही यहोवा का अभिषिक्‍त जन होगा।’ एलीआब का डील-डौल बिलकुल एक राजा जैसा था। “मगर यहोवा ने शमूएल से कहा, ‘उसके रंग-रूप या उसके ऊँचे कद पर मत जा क्योंकि मैंने उसे ठुकरा दिया है।’” इससे हमें क्या सीख मिलती है? यही कि “परमेश्‍वर का देखना इंसान के देखने जैसा नहीं है। इंसान सिर्फ बाहरी रूप देखता है, मगर यहोवा दिल देखता है।”​—1 शमू. 16:1, 6, 7.

2. हमें बाहरी रूप देखकर राय क्यों नहीं कायम करनी चाहिए? एक मिसाल दीजिए।

2 अपरिपूर्ण होने की वजह से हम सब अकसर लोगों का बाहरी रूप देखकर उनके बारे में राय कायम कर लेते हैं। (यूहन्‍ना 7:24 पढ़िए।) लेकिन सच तो यह है कि हम एक इंसान को बाहर से देखकर बहुत कम जान पाते हैं। मिसाल के लिए, अच्छे-से-अच्छा डॉक्टर भी मरीज़ को सिर्फ बाहर से देखकर उसकी बीमारी का पता नहीं लगा सकता। उसे मरीज़ की बात ध्यान से सुननी होती है ताकि वह जाने कि क्या उसे पहले कभी कोई बीमारी हुई, वह कैसा महसूस कर रहा है और उसमें बीमारी के क्या-क्या लक्षण हैं। ज़रूरत हो तो डॉक्टर उसे एक्स-रे करवाने के लिए भी कहेगा ताकि वह देखे कि उसके अंदरूनी अंग कैसे हैं। अगर डॉक्टर यह सब न करे, तो वह कुछ और बीमारी सोचकर मरीज़ को गलत दवा दे देगा। उसी तरह अगर हम अपने भाई-बहनों को सिर्फ बाहर से देखें, तो हमें उनके बारे में गलतफहमी हो सकती है। इसलिए हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि वे अंदर से कैसे इंसान हैं। यह सच है कि हम यहोवा की तरह उनका दिल नहीं देख सकते, इसलिए हम उन्हें उतनी अच्छी तरह नहीं समझ सकेंगे जितना वह समझता है। फिर भी हम यहोवा की तरह उनके साथ व्यवहार करने की कोशिश ज़रूर कर सकते हैं। आइए जानें कि हम यह कैसे कर सकते हैं।

3. इस लेख से हम क्या जानेंगे?

3 यहोवा अपने लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है? वह उनकी बात सुनता है।  वह ध्यान रखता है  कि वे किस माहौल में पले-बढ़े हैं और किन हालात से गुज़रें हैं जिस वजह से आज उनका ऐसा स्वभाव है। वह उन पर करुणा करता  है। इस लेख से हम जानेंगे कि यहोवा ने कैसे योना, एलियाह, हाजिरा और लूत की बात सुनी, उनके हालात का ध्यान रखा और उन पर करुणा की। हम यह भी देखेंगे कि हम कैसे अपने भाई-बहनों के साथ यहोवा की तरह व्यवहार कर सकते हैं।

ध्यान से सुनिए

4. हम शायद क्यों योना के बारे में गलत सोचें?

4 योना का नाम सुनते ही हम शायद सोचें कि वह भरोसे के लायक नहीं था और उसने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। हम इसलिए ऐसा सोचते होंगे क्योंकि हमें योना के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। हम बस यह जानते हैं कि जब यहोवा ने उसे नीनवे जाने को कहा, तो उसने उसकी बात नहीं मानी। वह जहाज़ पर चढ़कर बिलकुल उलटी दिशा में गया यानी “यहोवा से दूर चला” गया। (योना 1:1-3) क्या आप योना को यहोवा का काम करने का एक और मौका देते? शायद नहीं। लेकिन यहोवा ने उसे मौका दिया। (योना 3:1, 2) आइए इसकी कुछ वजह जानें।

5. योना की प्रार्थना से हम उसके बारे में क्या जान पाते हैं?

5 योना अंदर से कैसा इंसान था, यह हम उसकी एक प्रार्थना से जान सकते हैं। (योना 2:1, 2, 9 पढ़िए।) उसने यहोवा से कई बार प्रार्थना की होगी। लेकिन उसने मछली के पेट में रहकर जो प्रार्थना की, उससे पता चलता है कि वह कोई बुज़दिल नहीं था। यह सच है कि यहोवा का दिया काम करने के बजाय वह दूसरी जगह भाग गया, मगर वह बहुत नम्र था, यहोवा का एहसानमंद था और उसके दिल में यहोवा की आज्ञा मानने की गहरी इच्छा थी। इसीलिए यहोवा ने योना की गलती पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि उसकी प्रार्थना सुनी और उसे आगे भी भविष्यवाणी करने का काम दिया।

पूरी बात जानने से हम दूसरों के हालात समझ पाएँगे (पैराग्राफ 6 देखें) *

6. दूसरों की बात ध्यान से सुनने के क्या फायदे हैं?

6 दूसरों की बात ध्यान से सुनने के लिए  हमें नम्र होना है और सब्र रखना है। इसके कम-से-कम तीन फायदे होंगे। पहला, हम भाई-बहनों के बारे में जल्दी से गलत नहीं सोचेंगे। दूसरा, हम उनकी भावनाओं को समझ पाएँगे। अगर हमें उनका बरताव बुरा लगता हैं, तो हम जान पाएँगे कि वे क्यों ऐसा बरताव करते हैं। हम उनके हालात को और अच्छी तरह समझ पाएँगे। तीसरा, जब हम उनको अपने दिल का हाल बताने देंगे, तो वे खुद भी अपनी तकलीफ अच्छी तरह समझ पाएँगे। हम भी जब अपनी भावनाएँ दूसरों पर ज़ाहिर करते हैं, तो हम अपनी भावनाओं को अच्छी तरह समझ पाते हैं। (नीति. 20:5) एशिया का रहनेवाला एक प्राचीन कहता है, “मुझे याद है एक बार मैंने क्या गलती की थी। मैं एक बहन की पूरी बात सुने बगैर उसे सलाह देने लगा। मैंने उससे कहा कि वह सभाओं में अच्छे जवाब देने की कोशिश करे। बाद में मुझे पता चला कि उस बहन को ठीक से पढ़ना नहीं आता। उसे जवाब देना बहुत मुश्‍किल लगता है।” इस घटना से हर प्राचीन को सीख मिलती है कि किसी को सलाह देने से पहले उसकी पूरी बात सुननी चाहिए।​—नीति. 18:13.

7. (क) यहोवा ने एलियाह के साथ कैसा व्यवहार किया? (ख) हम यहोवा से क्या सीखते हैं?

7 कुछ भाई-बहनों को अपने दिल की बात बताना मुश्‍किल लगता है। वे ऐसी संस्कृति में पले-बढ़े हैं जहाँ लोग अपनी भावनाएँ ज़ाहिर नहीं करते, या फिर उनके साथ पहले कुछ बुरा हुआ था या उनका स्वभाव ही ऐसा है कि वे खुलकर अपनी बात नहीं बताते। हमें उनके साथ कैसे पेश आना चाहिए ताकि वे अपनी भावनाएँ खुलकर ज़ाहिर कर सकें? याद कीजिए कि जब एलियाह इज़ेबेल से बचकर भाग रहा था, तो यहोवा ने एलियाह के साथ कैसा व्यवहार किया। एलियाह ने फौरन अपने पिता यहोवा को अपने दिल की बात नहीं बतायी। उसने काफी दिन बाद उसे बताया। फिर भी यहोवा ने उसकी बात ध्यान से सुनी। फिर उसने एलियाह की हिम्मत बँधायी और उसे एक ज़रूरी काम सौंपा। (1 राजा 19:1-18) भाई-बहनों को अपने दिल की बात बताने में काफी वक्‍त लग सकता है। लेकिन अगर हम यहोवा की तरह सब्र रखें, तो कुछ समय बाद वे हम पर भरोसा करेंगे और अपने दिल की बात हमें बताएँगे। और जब वे ऐसा करेंगे, तो हमें उनकी बात ध्यान से सुननी चाहिए।

भाई-बहनों को जानिए

8. यहोवा ने कैसे हाजिरा की मदद की?

8 सारै की दासी हाजिरा जब अब्राम की पत्नी बनी और गर्भवती हुई, तो वह सारै को नीचा देखने लगी क्योंकि उसका कोई बच्चा नहीं था। बात इतनी बिगड़ गयी कि सारै ने उसे घर से निकाल दिया। इस तरह हाजिरा अपनी गलती की वजह से खुद पर मुसीबत ले आयी। (उत्प. 16:4-6) हम अपरिपूर्ण होने की वजह से शायद सोचें कि हाजिरा के साथ जो हुआ वह सही था, क्योंकि वह घमंडी हो गयी थी। लेकिन यहोवा ने उसके बारे में ऐसा नहीं सोचा। उसने एक स्वर्गदूत को हाजिरा के पास भेजा। स्वर्गदूत ने उसकी सोच सुधारी और उसे आशीर्वाद दिया। हाजिरा समझ पायी कि यहोवा उसे देख रहा है और उसके हालात अच्छी तरह जानता है। उसका दिल यहोवा के लिए इतने एहसान से भर गया कि उसने कहा, यहोवा “ऐसा परमेश्‍वर है जो सबकुछ देखता है” और यहोवा की “नज़र मुझ पर है।”​उत्पत्ति 16:7-13 पढ़िए।

9. यहोवा ने हाजिरा पर कृपा क्यों की?

9 यहोवा ने हाजिरा की मदद क्यों की? वह हाजिरा के बारे में सबकुछ जानता था कि वह कहाँ पली-बढ़ी थी और उसके साथ क्या-क्या हुआ था। (नीति. 15:3) हाजिरा एक मिस्री औरत थी और इब्रियों के एक घराने में रहती थी। शायद वह कभी-कभी पराया महसूस करती होगी। उसे शायद अपने घरवालों की और अपने देश की याद आती होगी। एक और बात यह है कि वह अब्राम की अकेली पत्नी नहीं थी। उन दिनों यहोवा के कुछ वफादार सेवकों की एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ हुआ करती थीं। यहोवा ने कभी नहीं चाहा था कि एक आदमी की एक-से-ज़्यादा पत्नी हो। इसलिए ऐसे परिवारों में जलन और तकरार हो जाया करती थी। (मत्ती 19:4-6) हालाँकि हाजिरा ने सारै के साथ जो बुरा व्यवहार किया, उसे यहोवा ने गलत माना फिर भी उसने इस बात को समझा कि हाजिरा किन हालात से गुज़र रही है। इसलिए यहोवा ने उस पर कृपा की।

अपने भाई-बहनों को अच्छी तरह जानिए (पैराग्राफ 10-12 देखें) *

10. भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

10 हमें भी अपने भाई-बहनों के हालात को समझना चाहिए। अपने भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए।  सभाओं से पहले और बाद में उनसे बात कीजिए, उनके साथ प्रचार कीजिए और मुमकिन हो तो उन्हें अपने घर खाने पर बुलाइए। तब आप ऐसे भाई-बहनों के हालात समझ पाएँगे जिनका बरताव आपको ठीक नहीं लगता। अगर आप एक बहन के बारे में सोचते हैं कि वह दूसरों से दूर-दूर रहती है, तो उससे बात करने पर आप पाएँगे कि वह दरअसल शर्मीली स्वभाव की है। आप शायद एक अमीर भाई के बारे में सोचें कि उसे दौलत कमाने का जुनून है, लेकिन आप पाएँगे कि वह बहुत दरियादिल है। अगर एक बहन अपने बच्चों के साथ अकसर सभाओं में देर से आती है, तो उसे जानने से आपको पता चलेगा कि उसे कितने विरोध का सामना करना पड़ रहा है। (अय्यू. 6:29) अपने भाई-बहनों को जानने का मतलब यह नहीं कि हम उनके निजी “मामलों में दखल” दें। (1 तीमु. 5:13) हमें उनके बारे में यह जानना चाहिए कि वे किन हालात से गुज़रे हैं जिस वजह से आज उनका स्वभाव ऐसा है।

11. प्राचीनों को क्यों अपनी भेड़ों को अच्छी तरह जानना चाहिए?

11 खासकर प्राचीनों को जानना चाहिए कि उनकी मंडली के भाई-बहन किन हालात से गुज़र रहे हैं, क्योंकि उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी प्राचीनों को दी गयी है। आरटुर नाम के एक भाई ने, जो पहले सर्किट निगरान था, एक अच्छी मिसाल रखी। एक बार वह एक प्राचीन के साथ एक बहन से मिलने गया। ऐसा लगता था कि वह बहन किसी से मिलना-जुलना पसंद नहीं करती। आरटुर कहता है, “बहन से बात करने पर हमें पता चला कि उसकी शादी के कुछ ही साल बाद उसके पति की मौत हो गयी थी। उसने कई मुश्‍किलें झेलीं। फिर भी उसने अपनी दोनों बेटियों की अच्छी परवरिश की, जो आज वफादारी से यहोवा की सेवा कर रही हैं। अब इस बहन की आँखें कमज़ोर हो गयी हैं और वह बहुत निराश रहती है। मगर इतनी तकलीफों के बावजूद वह यहोवा से बहुत प्यार करती है और उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत है। बहन से मिलने के बाद हमने जाना कि हम उस बहन से कितना कुछ सीख सकते हैं।” (फिलि. 2:3) भाई आरटुर ने यहोवा के जैसे गुण दर्शाए। यहोवा अपने लोगों को अच्छी तरह जानता है और उनका दर्द समझता है। (निर्ग. 3:7) जो प्राचीन अपनी भेड़ों को अच्छी तरह जानते हैं, वे उनकी अच्छी देखभाल कर सकते हैं।

12. एक बहन ने जब दूसरी बहन को अच्छी तरह जाना, तो उसने क्या सीखा?

12 अगर आप किसी भाई या बहन के बरताव से चिढ़ते हैं, तो उसे अच्छी तरह जानिए। तब आप समझ पाएँगे कि वह क्यों ऐसा बरताव करता है। एशिया की रहनेवाली एक बहन कहती है, ‘हमारी मंडली की एक बहन बहुत ज़ोर-ज़ोर से बात करती थी। मैं सोचती थी कि उसे बात करने की तमीज़ नहीं है। लेकिन जब मैं उसके साथ प्रचार में गयी, तो उससे बात करके पता चला कि उसके माँ-बाप बाज़ार में मछलियाँ बेचते थे और वह उनकी मदद करती थी। ग्राहकों को बुलाने के लिए उसे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना पड़ता था। उससे बात करने पर मेरी गलतफहमी दूर हो गयी और मैंने सीखा कि जब मैं अपने भाई-बहनों को अच्छी तरह जानूँगी, तो मुझे पता चलेगा कि वे क्यों ऐसा बरताव करते हैं।’ अपने भाई-बहनों को जानने के लिए हमें मेहनत करनी पड़ती है। फिर भी अगर हम अपने दिलों को बड़ा करेंगे, तो हम यहोवा की तरह “सब किस्म के लोगों” से प्यार करेंगे।​—1 तीमु. 2:3, 4; 2 कुरिं. 6:11-13.

करुणा कीजिए

13. जब लूत देर करने लगा तो स्वर्गदूतों ने क्या किया और क्यों?

13 जब यहोवा सदोम शहर का नाश करनेवाला था, तो उसने लूत को कुछ हिदायतें दीं जिसे मानने से उसकी जान बचती। मगर लूत यहोवा की आज्ञा मानने में देर करने लगा। दो स्वर्गदूत उसके पास आए थे ताकि उसे सदोम से बाहर ले जाएँ। उन्होंने उससे कहा, “हम इस इलाके को नाश करनेवाले हैं।” (उत्प. 19:12, 13) स्वर्गदूत के ऐसा कहने पर भी अगली सुबह लूत और उसका परिवार घर पर ही रहे। स्वर्गदूतों ने दोबारा कहा कि वे जल्दी करें लेकिन “लूत देर करने लगा।” हम शायद सोचें कि लूत लापरवाही कर रहा था और यहोवा की बात नहीं मान रहा था। मगर यहोवा ने उसे छोड़ा नहीं बल्कि “उस पर दया की।” इसलिए स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और दोनों बेटियों का हाथ पकड़ा और उन्हें शहर के बाहर ले गए।​—उत्पत्ति 19:15, 16 पढ़िए।

14. यहोवा ने क्यों लूत पर दया की होगी?

14 यहोवा ने कई वजहों से लूत पर दया की। लूत शहर के बाहर रहनेवालों से डरता था। शायद इसीलिए वह घर छोड़कर जाने से झिझक रहा था। वहाँ और भी कई खतरे थे। सदोम के पास जो घाटी थी उसमें जगह-जगह तारकोल के गड्‌ढे थे। लूत ने सुना होगा कि कुछ समय पहले दो राजा उन गड्ढों में गिर पड़े थे। (उत्प. 14:8-12) लूत को अपनी पत्नी और बेटियों की चिंता रही होगी कि वे उस इलाके को कैसे पार करेंगे। यही नहीं, लूत के पास काफी दौलत थी और सदोम में उसके पास अच्छा घर रहा होगा। (उत्प. 13:5, 6) यह सच है कि जब जान खतरे में थी तब लूत को यह सब नहीं सोचना था। यहोवा की आज्ञा मानकर फौरन वहाँ से भाग जाना था। लेकिन यहोवा ने उसकी गलती पर ध्यान नहीं दिया बल्कि उसे एक “नेक इंसान” माना।​—2 पत. 2:7, 8.

भाई-बहनों की बात ध्यान से सुनने से हम जान पाएँगे कि हम उन पर कैसे करुणा कर सकते हैं (पैराग्राफ 15-16 देखें) *

15. किसी के व्यवहार को गलत समझने के बजाय हमें क्या करना चाहिए?

15 हमें किसी भाई या बहन के व्यवहार को गलत नहीं बताना चाहिए बल्कि उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए। यूरोप में रहनेवाली एक बहन वेरॉनिका कहती है, “मुझे एक बहन को देखकर लगता था कि उसका मूड जब देखो खराब ही रहता है। वह कभी किसी से मिलती-जुलती नहीं थी। मुझे उससे बात करने से डर लगता था। लेकिन फिर मैंने सोचा, ‘अगर मैं उसकी जगह होती, तो मैं चाहती कि कोई मेरा दोस्त बने और मेरी भावनाओं को समझे।’ इसलिए मैंने सोचा कि मैं उसे जानने की कोशिश करूँगी। जब मैंने उससे बातचीत की, तो वह अपने दिल की बात मुझे बताने लगी। अब मैं उसे अच्छी तरह जान पायी हूँ।”

16. हमें दूसरों को अच्छी तरह समझने के लिए क्यों यहोवा से मदद माँगनी चाहिए?

16 सिर्फ यहोवा हमें पूरी तरह समझ सकता है। (नीति. 15:11) इसलिए उससे मदद माँगिए कि आप भी लोगों को उसी नज़र से देखें जैसे वह देखता है और जानें कि उन पर कैसे करुणा कर सकते हैं।  एनजेला नाम की बहन को प्रार्थना करने से बहुत मदद मिली और वह मंडली की एक बहन को अच्छी तरह समझ पायी। उस बहन की एनजेला के साथ बनती नहीं थी। एनजेला कहती है, “ऐसे में यह मान बैठना आसान है कि यह बहन ऐसी ही है। इससे दूर रहना ही अच्छा है। लेकिन मैंने यहोवा से प्रार्थना की कि वह उस बहन को समझने में मेरी मदद करे।” क्या यहोवा ने एनजेला की मदद की? बिलकुल। वह कहती है, “मैं उस बहन के साथ प्रचार में गयी और बाद में हमने काफी देर तक बात की। मैंने ध्यान से उसकी बात सुनी और उसे समझने की कोशिश की। अब मेरे दिल में उसके लिए पहले से ज़्यादा प्यार है और मैंने ठान लिया है कि जब भी ज़रूरत पड़े मैं उसकी मदद करूँगी।”

17. हमें क्या करना चाहिए?

17 हम यह नहीं सोच सकते कि हम फलाँ भाई या बहन के साथ नरमी से पेश आएँगे मगर फलाँ के साथ नहीं। सभी भाई-बहन किसी-न-किसी तकलीफ का सामना कर रहे हैं, ठीक जैसे योना, एलियाह, हाजिरा और लूत ने सामना किया था। कई भाई-बहन अपनी गलती की वजह से खुद पर मुसीबत ले आए हैं। देखा जाए तो हम सब कभी-न-कभी ऐसी गलती कर बैठते हैं। इसीलिए यहोवा चाहता है कि हम एक-दूसरे का दर्द समझें। (1 पत. 3:8) यहोवा की यह बात मानने से हमारी एकता मज़बूत होती है। वह इसलिए क्योंकि पूरी दुनिया में रहनेवाले हम सभी भाई-बहन एक ही परिवार के लोग हैं। तो आइए हम भाई-बहनों की बात ध्यान से सुनें, उन्हें अच्छी तरह जानें और उन पर करुणा करें।

गीत 87 आओ! तरो-ताज़ा हो जाओ

^ पैरा. 5 अपरिपूर्ण होने की वजह से हम लोगों के बारे में झट से राय कायम कर लेते हैं और उनके इरादों पर शक करते हैं। लेकिन यहोवा ऐसा नहीं करता। वह इंसान का “दिल देखता है।” (1 शमू. 16:7) इस लेख से हम जानेंगे कि यहोवा ने योना, एलियाह, हाजिरा और लूत की कैसे मदद की। इससे हम सीखेंगे कि हम भी कैसे यहोवा की तरह अपने भाई-बहनों के साथ अच्छा व्यवहार कर सकते हैं।

^ पैरा. 52 तसवीर के बारे में: एक बुज़ुर्ग भाई यह देखकर चिढ़ रहा है कि एक जवान भाई सभा में देर से आया है। लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि उस जवान भाई की गाड़ी का एक्सिडेंट हो गया था।

^ पैरा. 54 तसवीर के बारे में: एक प्रचार समूह निगरान एक बहन के बारे में पहले सोचता था कि वह हमेशा अकेली बैठती है और किसी से घुलती-मिलती नहीं। लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि वह बहन शर्मीली है और ऐसे लोगों से घुल-मिल नहीं पाती जिन्हें वह अच्छी तरह नहीं जानती।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: जब एक बहन पहली बार राज-घर में एक और बहन से मिली, तो उसे लगा कि उस बहन का मूड हमेशा बदलता रहता है और वह यह नहीं सोचती कि उसके व्यवहार से दूसरों को कैसा लगता होगा। लेकिन उसके साथ समय बिताने पर उसे पता चलता है कि उस बहन के बारे में उसने जो सोचा था वह गलत है।