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अध्ययन लेख 17

“मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है”

“मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है”

“मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है वह सब तुम्हें बता दिया है।”— यूह. 15:15.

गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श

लेख की एक झलक *

1. किसी से दोस्ती करने के लिए हम क्या करते हैं?

आम तौर पर किसी से दोस्ती करने के लिए हमें उसके साथ समय बिताना होता है। जब हम उससे बातचीत करते हैं और उसे अपने दिल की बात बताते हैं, तो उससे हमारा रिश्‍ता और गहरा हो जाता है। लेकिन यीशु से दोस्ती करना हमारे लिए आसान नहीं है। वह क्यों? आइए इसके कुछ कारण देखें।

2. यीशु का दोस्त बनना क्यों मुश्‍किल हो सकता है? एक कारण बताइए।

2 पहला कारण यह है कि हम यीशु से कभी नहीं मिले।  पहली सदी में भी कई मसीही उससे नहीं मिले थे। मगर उन मसीहियों से प्रेषित पतरस ने कहा, “तुम उसे अभी-भी नहीं देखते, फिर भी तुम उस पर विश्‍वास करते हो।” (1 पत. 1:8) इससे पता चलता है कि हम यीशु के दोस्त बन सकते हैं भले ही हम उससे कभी नहीं मिले।

3. दूसरा कारण क्या है?

3 दूसरा कारण यह है कि हम यीशु से बात नहीं कर सकते।  प्रार्थना करते वक्‍त हम यहोवा से बात करते हैं। भले ही हम यीशु के नाम से प्रार्थना करते हैं लेकिन सीधे उससे बात नहीं करते। यीशु खुद भी नहीं चाहता कि हम उससे प्रार्थना करें। वह क्यों? क्योंकि प्रार्थना उपासना का एक हिस्सा है और सिर्फ यहोवा की उपासना की जानी चाहिए। (मत्ती 4:10) हालाँकि हम यीशु से बात नहीं कर सकते, फिर भी हम उससे प्यार ज़रूर कर सकते हैं।

4. (क) तीसरा कारण क्या है? (ख) हम इस लेख में क्या चर्चा करेंगे?

4 तीसरा कारण यह है कि यीशु स्वर्ग में रहता है  इसलिए हम उसके पास जाकर उसके साथ वक्‍त नहीं बिता सकते। लेकिन फिर भी हम यीशु के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं। हम ऐसी चार बातों पर ध्यान देंगे जिससे यीशु के साथ हमारी दोस्ती पक्की हो सकती है। लेकिन इससे पहले हम देखेंगे कि यीशु से दोस्ती करना क्यों ज़रूरी है।

यीशु से दोस्ती करना क्यों ज़रूरी है?

5. हमें क्यों यीशु से दोस्ती करनी चाहिए? (“ यीशु के दोस्त बनने से हम यहोवा के दोस्त बनेंगे” और “ यीशु के बारे में सही नज़रिया” नाम के बक्स देखें।)

5 अगर हम यीशु के दोस्त बनेंगे तभी यहोवा के साथ हमारा एक अच्छा रिश्‍ता होगा।  ऐसा क्यों? आइए दो वजहों पर गौर करें। पहली वजह, यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “पिता खुद तुमसे लगाव रखता है क्योंकि तुम मुझसे लगाव रखते हो।” (यूह. 16:27) उसने यह भी कहा था, “कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूह. 14:6) यीशु से दोस्ती किए बिना हम यहोवा के दोस्त नहीं बन सकते, ठीक जैसे हम दरवाज़े के बिना घर के अंदर नहीं जा सकते। यीशु ने भी दरवाज़े की मिसाल देकर कहा कि वह अपनी “भेड़ों के लिए दरवाज़ा” है जिसके ज़रिए वे यहोवा के पास जा सकती हैं। (यूह. 10:7) दूसरी वजह, यीशु ने बिलकुल अपने पिता के जैसे गुण दर्शाए। उसने अपने चेलों से कहा, “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूह. 14:9) यहोवा को जानने का एक अहम तरीका है यीशु के बारे में जानना। हम जितना यीशु के बारे में सीखेंगे उतना उसके लिए हमारा प्यार बढ़ेगा। इस तरह यीशु से हमारी दोस्ती गहरी होगी और उसके पिता के लिए हमारा प्यार बढ़ेगा।

6. यीशु से दोस्ती करने की एक और वजह क्या है? समझाइए।

6 यीशु से दोस्ती करने से ही हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिलेगा।  यह काफी नहीं कि हम प्रार्थना में बस यह कह दें कि हम यह प्रार्थना “यीशु के नाम से” करते हैं। हमें जानना चाहिए कि यहोवा किस तरह यीशु के ज़रिए हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। यीशु ने प्रेषितों से कहा था, “जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वह मैं करूँगा।”  (यूह. 14:13) यह सच है कि यहोवा ही हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है और उनका जवाब देता है। लेकिन हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर वह जो भी फैसला करता है, उसे करने का अधिकार उसने यीशु को दिया है। (मत्ती 28:18) इसलिए जब हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो वह पहले देखता है कि यीशु ने हमें जो सलाह दी है, क्या हम उसे मान रहे हैं। इसके बाद वह तय करता है कि वह हमारी प्रार्थना का जवाब देगा या नहीं। मिसाल के लिए, यहोवा देखता है कि क्या हम यीशु की यह सलाह मान रहे हैं, “तुम दूसरों के अपराध माफ करोगे, तो स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता भी तुम्हें माफ करेगा। लेकिन अगर तुम दूसरों के अपराध माफ नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध माफ नहीं करेगा।” (मत्ती 6:14, 15) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम दूसरों के साथ कृपा से पेश आएँ, ठीक जैसे यहोवा और यीशु हमारे साथ पेश आते हैं।

7. यीशु के फिरौती बलिदान से किन्हें फायदा होगा?

7 यीशु से दोस्ती करने से ही हमें उसके फिरौती बलिदान से फायदा होगा।  हम यह कैसे कह सकते हैं? यीशु ने कहा था कि “वह अपने दोस्तों की खातिर जान” दे देगा। (यूह. 15:13) यीशु से पहले के ज़माने में जो वफादार लोग थे, उन्हें भी नयी दुनिया में यीशु के बारे में सीखना होगा और उससे दोस्ती करनी होगी। इस तरह के कुछ लोग हैं अब्राहम, सारा, मूसा और राहाब, जिन्हें ज़िंदा किया जाएगा। इनके जैसे नेक लोगों को भी यीशु से दोस्ती करनी होगी, तभी वे हमेशा-हमेशा तक जी सकेंगे।​—यूह. 17:3; प्रेषि. 24:15; इब्रा. 11:8-12, 24-26, 31.

8-9. (क) यूहन्‍ना 15:4, 5 के मुताबिक यीशु के साथ अच्छा रिश्‍ता होने से हम क्या कर पाएँगे? (ख) यह क्यों ज़रूरी है?

8 यह कितनी खुशी की बात है कि खुशखबरी का प्रचार करने और सिखाने के काम में यीशु हमारे साथ है। जब वह धरती पर था तो वह खुद भी दूसरों को सिखाता था। स्वर्ग लौटने के बाद वह मसीही मंडली का मुखिया बना। एक मुखिया के नाते वह प्रचार और सिखाने के काम के लिए निर्देश देता आया है। वह आप पर भी गौर करता है कि आप ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को उसके बारे में और उसके पिता के बारे में सिखाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। हम यह काम सिर्फ यहोवा और यीशु की मदद से ही कर सकते हैं।​यूहन्‍ना 15:4, 5 पढ़िए।

9 परमेश्‍वर के वचन में साफ बताया गया है कि अगर हम यीशु से प्यार करेंगे, तो ही यहोवा हमसे खुश होगा। तो आइए देखें कि यीशु के दोस्त बनने के लिए हमें क्या करना होगा। हम चार बातों पर गौर करेंगे।

यीशु से दोस्ती कैसे करें?

यीशु के दोस्त बनने के लिए (1) उसे अच्छी तरह जानिए, (2) उसके जैसी सोच रखिए और उसके आदर्श पर चलिए, (3) मसीह के भाइयों का साथ दीजिए और (4) संगठन के इंतज़ामों के मुताबिक काम कीजिए (पैराग्राफ 10-14 देखें) *

10. यीशु से दोस्ती करने के लिए हमें सबसे पहले क्या करना होगा?

10 () यीशु को जानिए।  बाइबल में मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्‍ना नाम की किताब पढ़ने से हम यीशु को जान सकते हैं। इन किताबों में यीशु की ज़िंदगी के बारे में काफी कुछ लिखा है। इन किताबों में लिखी घटनाओं पर मनन करने से हम जान पाएँगे कि यीशु कैसे लोगों के साथ कृपा से पेश आता था। तब यीशु के लिए हमारे दिल में प्यार और आदर बढ़ेगा। मिसाल के लिए, उसने अपने चेलों के साथ दासों जैसा व्यवहार नहीं किया, इसके बावजूद कि वह उनका मालिक था। वह उन्हें अपने दिल की बात बताता था। (यूह. 15:15) जब उन्हें कोई दुख होता, तो यीशु उनका दर्द महसूस करता था। वह उनके साथ रोया भी। (यूह. 11:32-36) उसके दुश्‍मनों ने भी माना कि वह उन सबका दोस्त था जिन्होंने उसका संदेश स्वीकार किया था। (मत्ती 11:19) यीशु ने अपने चेलों के साथ जैसा व्यवहार किया वैसा ही अगर हम दूसरों के साथ व्यवहार करें, तो उनके साथ हमारा रिश्‍ता अच्छा रहेगा। हम संतुष्ट और खुश रहेंगे और यीशु के लिए हमारा प्यार और आदर बढ़ेगा।

11. (क) यीशु से दोस्ती करने के लिए हमें और क्या करना होगा? (ख) हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?

11 () यीशु के जैसी सोच रखिए और उसके आदर्श पर चलिए।  जब हम यीशु के जैसी सोच रखेंगे और उसके आदर्श पर चलेंगे, तो उसके साथ हमारी दोस्ती गहरी होगी। (1 कुरिं. 2:16) हम कई तरीकों से यीशु के आदर्श पर चल सकते हैं। एक तरीके पर गौर कीजिए। यीशु हमेशा दूसरों की मदद करने की सोचता था, न कि अपनी खुशी के बारे में। (मत्ती 20:28; रोमि. 15:1-3) इसलिए वह दूसरों की खातिर त्याग करता था और उनकी गलतियाँ माफ करता था। वह लोगों की बातों का जल्दी बुरा नहीं मानता था। (यूह. 1:46, 47) अगर एक इंसान ने बहुत पहले गलतियाँ की थीं, तो वह उसके बारे में यह नहीं सोचता था कि वह एक बुरा इंसान है। (1 तीमु. 1:12-14) हमें भी यीशु के जैसी सोच रखनी चाहिए क्योंकि उसने कहा था, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:35) तो हम सोच सकते हैं, “क्या मैं यीशु के आदर्श पर चलता हूँ और भाई-बहनों के साथ मेल-मिलाप से रहने की पूरी कोशिश करता हूँ?”

12. (क) यीशु के दोस्त बनने के लिए हमें और क्या करना होगा? (ख) ऐसा करने का एक तरीका क्या है?

12 () मसीह के भाइयों का साथ दीजिए।  हम यीशु के अभिषिक्‍त भाइयों के लिए जो भी करते हैं, वह यीशु की नज़र में ऐसा है मानो हम उसके लिए कर रहे हैं। (मत्ती 25:34-40) अभिषिक्‍त मसीहियों का साथ देने का सबसे खास तरीका है, यीशु की आज्ञा मानकर जी-जान से प्रचार करना और चेला बनाना। (मत्ती 28:19, 20; प्रेषि. 10:42) आज पूरी दुनिया में प्रचार काम चल रहा है। मसीह के भाई ‘दूसरी भेड़ों’ की मदद से ही यह काम पूरा कर सकते हैं। (यूह. 10:16) अगर आप दूसरी भेड़ों में से एक हैं, तो जब भी आप प्रचार करते हैं, आप यही दिखा रहे होते हैं कि आप अभिषिक्‍त मसीहियों से और यीशु से प्यार करते हैं।

13. लूका 16:9 में यीशु ने जो सलाह दी, उसे हम कैसे मान सकते हैं?

13 मसीह के भाइयों की मदद करने के और भी तरीके हैं। जैसे, राज के काम के लिए दान देना। (लूका 16:9 पढ़िए।) ऐसा करने से हम यहोवा और यीशु के अच्छे दोस्त बन पाते हैं। हम पूरी दुनिया में हो रहे काम के लिए दान दे सकते हैं। इससे कई कामों का खर्च पूरा होता है। जैसे, दूर-दराज़ के इलाकों तक खुशखबरी पहुँचाना, उपासना के लिए राज-घर और दूसरी इमारतें बनाना और उन भाई-बहनों की मदद करना जिनके साथ कोई हादसा हुआ है। हम अपनी मंडली के खर्च के लिए भी दान दे सकते हैं और अगर हमें किसी ज़रूरतमंद भाई या बहन के बारे में पता है, तो उसकी मदद कर सकते हैं।​—नीति. 19:17.

14. इफिसियों 4:15, 16 के मुताबिक हमें यीशु के दोस्त बनने के लिए और क्या करना है?

14 () यहोवा के संगठन के इंतज़ामों के मुताबिक काम कीजिए।  यीशु ने हम पर कुछ भाइयों को ठहराया है जो बड़े प्यार से हमें राह दिखाते हैं। हमें उन भाइयों के निर्देशों को मानना चाहिए। (इफिसियों 4:15, 16 पढ़िए।) तभी हम यीशु के अच्छे दोस्त बन पाएँगे। मिसाल के लिए, आज संगठन ने राज-घरों का पूरा-पूरा इस्तेमाल करने के लिए कुछ मंडलियों को मिला दिया है और उनके प्रचार के इलाके में भी फेरबदल किया है। ऐसा करने की वजह से संगठन ने दान के पैसों की काफी बचत की है। मगर इस इंतज़ाम की वजह से कुछ भाई-बहनों को काफी बदलाव करने पड़े हैं। वे सालों से किसी एक मंडली का हिस्सा थे और वहाँ के भाई-बहनों से उनकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी। लेकिन अब उन्हें दूसरी मंडली में जाने के लिए कहा गया है। इन वफादार भाई-बहनों ने इस इंतज़ाम के मुताबिक काफी बदलाव किए हैं। उन्हें देखकर यीशु को कितनी खुशी होती होगी।

सदा के लिए यीशु के दोस्त

15. भविष्य में यीशु के साथ हमारी दोस्ती गहरी कैसे होगी?

15 जिन लोगों का पवित्र शक्‍ति से अभिषेक किया गया है, वे यीशु के साथ स्वर्ग में राज करेंगे और सदा तक उसके साथ रहेंगे। तब वे सचमुच मसीह के साथ रहेंगे, उसे देखेंगे, उससे बात करेंगे और उसकी संगति का आनंद लेंगे। (यूह. 14:2, 3) जिन्हें धरती पर जीने की आशा है, यीशु उनका भी ध्यान रखेगा और उनसे प्यार करेगा। भले ही वे यीशु को देख नहीं पाएँगे, मगर यीशु के साथ उनका रिश्‍ता मज़बूत होता जाएगा, क्योंकि यहोवा और यीशु उन्हें जो ज़िंदगी देंगे उसका वे पूरा-पूरा आनंद लेंगे।​—यशा. 9:6, 7.

16. यीशु के दोस्त होने से हमें क्या आशीषें मिलती हैं?

16 जब हम यीशु का न्यौता कबूल करके उसके दोस्त बनते हैं, तो हमें बहुत-सी आशीषें मिलती हैं। आज भी वह हमारी मदद करता है और हमसे प्यार करता है। और हमें भविष्य में हमेशा तक जीने का मौका मिलेगा। सबसे बड़ी आशीष यह है कि यीशु से दोस्ती करने से हम उसके पिता यहोवा के साथ एक गहरा रिश्‍ता कायम कर पाते हैं। वाकई, यीशु के दोस्त होना कितने सम्मान की बात है!

गीत 17 “मैं चाहता हूँ”

^ पैरा. 5 यीशु के प्रेषितों को उसके साथ समय बिताने का मौका मिला था। उन्होंने कुछ साल उसके साथ गुज़ारे थे। इस दौरान उन्होंने यीशु से काफी बातें कीं और उसके साथ मिलकर सेवा की। इस तरह साथ वक्‍त बिताने की वजह से वे यीशु के अच्छे दोस्त बन गए। यीशु चाहता है कि हम भी उसके दोस्त बनें। लेकिन हमारे लिए उसका दोस्त बनना उतना आसान नहीं जितना कि प्रेषितों के लिए था। इसके कुछ कारण इस लेख में बताए गए हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि यीशु से दोस्ती करने और उसके दोस्त बने रहने के लिए हमें क्या करना होगा।

^ पैरा. 55 तसवीर के बारे में: (1) पारिवारिक उपासना में हम यीशु की ज़िंदगी और सेवा के बारे में सीख सकते हैं। (2) हमें मंडली के भाई-बहनों के साथ मेल-मिलाप से रहने की कोशिश करनी चाहिए। (3) प्रचार काम जी-जान से करने से हम मसीह के भाइयों का साथ दे रहे होते हैं। (4) जब मंडलियों को मिला दिया जाता है, तो हमें प्राचीनों के फैसलों के मुताबिक काम करना चाहिए।