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अध्ययन लेख 22

आशीषें—अनदेखी मगर अनमोल

आशीषें—अनदेखी मगर अनमोल

‘अपनी नज़र अनदेखी चीज़ों पर टिकाए रखो। इसलिए कि जो चीज़ें दिखायी देती हैं वे कुछ वक्‍त के लिए हैं, मगर जो दिखायी नहीं देतीं वे हमेशा कायम रहती हैं।’—2 कुरिं. 4:18.

गीत 45 मेरे मन के विचार

लेख की एक झलक *

1. यीशु ने स्वर्ग में धन जमा करने के बारे में क्या कहा?

कुछ खज़ाने ऐसे होते हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते। हमें भी कुछ ऐसे खज़ाने मिले हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते और वह हमारे लिए बहुत अनमोल हैं। यीशु ने पहाड़ी उपदेश में बताया कि हमें स्वर्ग में धन जमा करना चाहिए जो कि पैसे या दौलत से कहीं बढ़कर है। उसने यह भी कहा, “जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा मन होगा।” (मत्ती 6:19-21) यीशु ने बिलकुल सही कहा। हम जिस चीज़ को खज़ाना समझते हैं, उसी को पाने की पूरी कोशिश करते हैं। “स्वर्ग में धन” जमा करने का मतलब है यहोवा की नज़र में अच्छा नाम कमाना। यह ऐसा खज़ाना है जिसे कोई चुरा नहीं सकता और न ही यह कभी नष्ट हो सकता है।

2. (क) प्रेषित पौलुस ने हमें क्या सलाह दी है? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

2 प्रेषित पौलुस ने हमें सलाह दी है कि ‘हम अपनी नज़र अनदेखी चीज़ों पर टिकाए रखें।’ (2 कुरिंथियों 4:17, 18 पढ़िए।) अनदेखी चीज़ों का मतलब यहोवा की वह आशीषें हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते। कुछ आशीषें हमें आज भी मिल रही हैं और कुछ हमें नयी दुनिया में मिलेंगी। इस लेख में हम ऐसी चार आशीषों के बारे में बात करेंगे जो आज हमें मिल रही हैं। ये हैं परमेश्‍वर से हमारी दोस्ती, प्रार्थना करने का सुअवसर, पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली मदद और प्रचार काम के लिए यहोवा, यीशु और स्वर्गदूतों से मिलनेवाली मदद। हम यह भी चर्चा करेंगे कि अगर हम इन आशीषों के लिए यहोवा के एहसानमंद हैं, तो हम क्या करेंगे।

यहोवा से दोस्ती

3. (क) सबसे बड़ा खज़ाना क्या है? (ख) यह कैसे मुमकिन हुआ है?

3 सबसे बड़ा खज़ाना है यहोवा से हमारी दोस्ती।  (भज. 25:14) परमेश्‍वर पवित्र होते हुए भी हम पापी इंसानों से दोस्ती कैसे कर पाता है? यीशु के फिरौती बलिदान की वजह से। उसका बलिदान “दुनिया का पाप दूर ले जाता है” यानी हमारे पापों को मिटा देता है। (यूह. 1:29) यीशु के बलिदान की वजह से यहोवा उन लोगों से भी दोस्ती कर पाया जो यीशु के ज़माने से पहले थे। वह इसलिए कि यहोवा को पूरा यकीन था कि यीशु मौत तक वफादार रहेगा और इंसानों का उद्धार करेगा।—रोमि. 3:25.

4. परमेश्‍वर के कुछ ऐसे दोस्तों के बारे में बताइए जो यीशु के ज़माने से पहले रहे थे।

4 आइए परमेश्‍वर के कुछ ऐसे दोस्तों की बात करें जो यीशु के ज़माने से पहले रहे थे। उनमें से एक था अब्राहम।  उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था। अब्राहम की मौत के 1,000 साल बाद भी यहोवा ने उसे अपना दोस्त कहा। (यशा. 41:8) इससे पता चलता है कि अब्राहम जैसे लोगों को यहोवा सदा अपना दोस्त मानता है, उनकी मौत के बाद भी। अब्राहम यहोवा की नज़र में आज भी ज़िंदा है। (लूका 20:37, 38) यहोवा का एक और दोस्त था अय्यूब।  एक बार जब स्वर्ग में सभी स्वर्गदूत यहोवा के सामने जमा हुए, तो यहोवा ने उनसे अय्यूब के बारे में कहा कि वह “एक सीधा-सच्चा इंसान है जिसमें कोई दोष नहीं। वह परमेश्‍वर का डर मानता और बुराई से दूर रहता है।” (अय्यू. 1:6-8) दानियेल  भी यहोवा के दोस्तों में से एक था। वह करीब 80 साल तक ऐसे देश में रहा जहाँ के लोग झूठी उपासना करते थे। मगर ऐसे लोगों के बीच होते हुए भी वह यहोवा की सेवा करता रहा। यहोवा दानियेल के बारे में कैसा महसूस करता था? वह उसे बहुत अनमोल समझता था। जब दानियेल बूढ़ा था, तब स्वर्गदूतों ने तीन बार उसे यकीन दिलाया कि वह यहोवा की नज़र में “बहुत अनमोल” है। (दानि. 9:23; 10:11, 19) यहोवा उस दिन के लिए कितना तरसता होगा जब वह अपने उन सभी दोस्तों को ज़िंदा करेगा जिनकी मौत हो चुकी है।—अय्यू. 14:15.

अपनी आशीषों के लिए एहसानमंद होने से हम क्या-क्या करेंगे? (पैराग्राफ 5 देखें) *

5. यहोवा का दोस्त बनने के लिए एक व्यक्‍ति को क्या करना होगा?

5 आज भी पूरी दुनिया में लाखों स्त्री, पुरुष और बच्चे यहोवा के दोस्त बन पाए हैं। हालाँकि वे अपरिपूर्ण हैं, फिर भी वे यहोवा के साथ एक गहरा रिश्‍ता बना पाए हैं। उनके अच्छे चालचलन से साफ पता चलता है कि वे यहोवा के सच्चे दोस्त हैं। बाइबल बताती है कि यहोवा “सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।” (नीति. 3:32) वे यहोवा के दोस्त क्यों बन पाए हैं? क्योंकि वे यीशु के बलिदान पर विश्‍वास करते हैं। इसी बलिदान की वजह से यहोवा ने हमें यह मौका दिया है कि हम उसे अपना जीवन समर्पित करें और बपतिस्मा लें। एक व्यक्‍ति तभी यहोवा का दोस्त बन पाता है जब वह अपना जीवन यहोवा को समर्पित करता है और बपतिस्मा लेता है। आज लाखों लोगों ने ऐसा किया है, इसलिए वे दुनिया की सबसे महान हस्ती यहोवा से “गहरी दोस्ती” कर पाए हैं।

6. अगर यहोवा की दोस्ती को हम खज़ाने जैसा समझते हैं, तो हम क्या करेंगे?

6 अगर यहोवा की दोस्ती को हम खज़ाने जैसा समझते हैं, तो हम क्या करेंगे? हम यहोवा की बात मानते रहेंगे, फिर चाहे हम बरसों से उसकी सेवा कर रहे हों। अब्राहम और अय्यूब सौ से ज़्यादा साल जीए थे, मगर वे मरते दम तक यहोवा की उपासना करते रहे। हमें यहोवा की दोस्ती को जान से ज़्यादा कीमती समझना चाहिए। दानियेल को यहोवा की दोस्ती इतनी प्यारी थी कि वह उसकी बात मानने के लिए अपनी जान तक देने को तैयार था। (दानि. 6:7, 10, 16, 22) हम पर चाहे जो भी तकलीफ आए, हम यहोवा की मदद से उसे सह सकते हैं और उसके दोस्त बने रह सकते हैं।—फिलि. 4:13.

प्रार्थना करने का सुअवसर

7. (क) नीतिवचन 15:8 के मुताबिक यहोवा को हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर कैसा लगता है? (ख) यहोवा हमारी प्रार्थना सुनकर क्या करता है?

7 यहोवा से प्रार्थना करना एक सुअवसर है। यह एक और खज़ाना है जिसे हम देख नहीं सकते। जैसे अच्छे दोस्त एक-दूसरे को अपने मन की बात बताते हैं, वैसे ही हम अपने दोस्त यहोवा से बात करते हैं और वह भी हमसे बात करता है। यहोवा अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमसे बात करता है और हम प्रार्थना के ज़रिए उससे बात करते हैं। यहोवा ने बाइबल में लिखवाया है कि अलग-अलग मामलों के बारे में उसकी सोच क्या है और वह कैसा महसूस करता है। और जब हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो हम अपने मन की वह सारी बातें उसे बता सकते हैं जो हम किसी और को नहीं बताना चाहेंगे। यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर बहुत खुश होता है। (नीतिवचन 15:8 पढ़िए।) वह हमारी प्रार्थनाओं का जवाब भी देता है, क्योंकि एक अच्छे दोस्त के नाते उसे हमारा खयाल रहता है। कभी-कभी वह तुरंत जवाब देता है मगर कभी-कभी हमें इंतज़ार करना होता है। हो सकता है हम एक ही बात के बारे में उससे बार-बार प्रार्थना करें, फिर भी हमें कोई जवाब न मिले। ऐसे में हम यकीन रख सकते हैं कि वह सही समय पर और सही तरीके से जवाब देगा। शायद परमेश्‍वर हमारी प्रार्थना सुनकर ठीक वैसा न करे जैसा हम चाहते हैं। मिसाल के लिए, अगर हम कोई तकलीफ झेल रहे हैं, तो हम चाहेंगे कि वह दूर हो जाए। मगर यहोवा शायद उसे दूर न करे। वह शायद हमारी प्रार्थना सुनकर हमें बुद्धि और ताकत दे ताकि हम उसे ‘सह सकें।’—1 कुरिं. 10:13.

(पैराग्राफ 8 देखें) *

8. अगर हम मानते हैं कि यहोवा से प्रार्थना करना एक सुअवसर है, तो हम क्या करेंगे?

8 अगर हम मानते हैं कि यहोवा से प्रार्थना करना एक सुअवसर है, तो हम क्या करेंगे? हम उससे “लगातार प्रार्थना” करेंगे। (1 थिस्स. 5:17) यहोवा प्रार्थना करने के लिए हमसे ज़बरदस्ती नहीं करता। उसने हमें अपनी मरज़ी करने की आज़ादी दी है, इसलिए वह बस हमें सलाह देता है कि हम “प्रार्थना में लगे” रहें। (रोमि. 12:12) हम दिन में कई बार यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं। हमें प्रार्थना में यहोवा का धन्यवाद भी करना चाहिए और उसकी तारीफ करनी चाहिए।—भज. 145:2, 3.

9. (क) प्रार्थना के बारे में एक भाई का क्या कहना है? (ख) इस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

9 अगर हमने बरसों से यहोवा की सेवा की है, तो हमने कई बार देखा होगा कि यहोवा कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है। तो हम समझ सकते हैं कि प्रार्थना करना कितना बड़ा सुअवसर है। क्रिस नाम का एक भाई भी ऐसा ही मानता है। वह पिछले 47 सालों से पूरे समय की सेवा कर रहा है। वह कहता है, “मैं हर दिन सुबह जल्दी उठता हूँ और देर तक यहोवा से प्रार्थना करता हूँ। मुझे बहुत अच्छा लगता है। सुबह-सुबह वातावरण बहुत शांत रहता है और ऐसे में यहोवा से बात करने से मैं बहुत अच्छा महसूस करता हूँ। मैं यहोवा की सभी आशीषों के लिए उसका धन्यवाद करता हूँ, इस बात के लिए भी कि उसने मुझे प्रार्थना करने का सुअवसर दिया है। फिर रात को जब मैं प्रार्थना में अपनी सारी बात यहोवा को बताता हूँ, तो मैं चैन की नींद सो पाता हूँ।”

पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली मदद

10. हमें क्यों यहोवा से पवित्र शक्‍ति माँगते रहना है?

10 यहोवा की पवित्र शक्‍ति एक और आशीष है। यह भी ऐसे खज़ाने जैसी है जिसे हम देख नहीं सकते। अगर हम इस आशीष के लिए एहसानमंद हैं, तो हम यहोवा से पवित्र शक्‍ति माँगते रहेंगे। यीशु ने हमें ऐसा करने की सलाह दी है। (लूका 11:9, 13) जब यहोवा हमें पवित्र शक्‍ति देता है, तो हमें ताकत मिलती है। कई बार हमें ऐसी ताकत मिलती है जो “आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।” (2 कुरिं. 4:7; प्रेषि. 1:8) हम पर चाहे कितनी भी बड़ी मुसीबत आए, पवित्र शक्‍ति की मदद से हम उसे सह सकते हैं।

(पैराग्राफ 11 देखें) *

11. पवित्र शक्‍ति की मदद से हम क्या कर पाते हैं?

11 पवित्र शक्‍ति की मदद से हम यहोवा की सेवा अच्छी तरह कर पाते हैं। हमें जो भी काम या ज़िम्मेदारी दी जाती है, उसे हम पूरा कर पाते हैं। हमारे अंदर जो भी हुनर या काबिलीयत है, उसे पवित्र शक्‍ति और भी बढ़ाती है। हम जानते हैं कि अब तक हम जो भी कर पाए हैं, वह पवित्र शक्‍ति की मदद से ही हो पाया है, न कि हमारी अपनी काबिलीयत की वजह से।

12. भजन 139:23, 24 के मुताबिक हमें यहोवा से क्या बिनती करनी चाहिए?

12 पवित्र शक्‍ति के लिए एहसानमंद होने से हम एक और काम करेंगे। हम यहोवा से बिनती करेंगे कि वह हमें पवित्र शक्‍ति देकर यह जानने में मदद करे कि क्या हमारे मन में कोई बुरी सोच या बुरी इच्छा पनप रही है। (भजन 139:23, 24 पढ़िए।) यहोवा हमारी प्रार्थना सुनकर हमारी मदद करेगा। तब हमें एहसास होगा कि हमारे अंदर कौन-सी बुरी इच्छाएँ पनप रही हैं। फिर हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें पवित्र शक्‍ति के ज़रिए ताकत दे ताकि हम उन बुरी इच्छाओं पर काबू पा सकें। ऐसा करना दिखाएगा कि हम कोई गलत काम नहीं करना चाहते। तब यहोवा हमें पवित्र शक्‍ति देने से कभी पीछे नहीं हटेगा।—इफि. 4:30.

13. हम कैसे पवित्र शक्‍ति के लिए कदरदानी बढ़ा सकते हैं?

13 हमें इस बारे में गहराई से सोचना चाहिए कि पवित्र शक्‍ति की वजह से आज क्या-क्या हो पा रहा है। तब पवित्र शक्‍ति के लिए हमारी कदरदानी और बढ़ेगी। यीशु ने स्वर्ग लौटने से पहले अपने चेलों से कहा था, ‘जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे और दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।’ (प्रेषि. 1:8) यीशु ने जो कहा था, वह आज सच हो रहा है। पवित्र शक्‍ति की मदद से आज पूरी दुनिया में प्रचार हो पाया है। आज करीब 85 लाख लोग यहोवा की उपासना कर रहे हैं। पवित्र शक्‍ति की वजह से ही हम भाई-बहनों के बीच एकता है, क्योंकि पवित्र शक्‍ति की मदद से हम प्यार, खुशी, शांति, सब्र, कृपा, भलाई, विश्‍वास, कोमलता और संयम का गुण बढ़ा पाते हैं। यह सब “पवित्र शक्‍ति का फल है।” (गला. 5:22, 23) पवित्र शक्‍ति वाकई एक आशीष है। यह किसी खज़ाने से कम नहीं।

यहोवा, यीशु और स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं

14. प्रचार काम करने के लिए कौन-कौन हमारी मदद कर रहे हैं?

14 हमें यहोवा, यीशु और स्वर्गदूतों के ‘साथ काम करने’ का मौका मिला है। (2 कुरिं. 6:1) यह आशीष भी एक खज़ाने जैसा है। जब भी हम चेले बनाने का काम करते हैं, तो हम यहोवा, यीशु और स्वर्गदूतों के साथ मिलकर काम कर रहे होते हैं। पौलुस ने अपने बारे में और दूसरे मसीहियों के बारे में कहा, “हम परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं।” (1 कुरिं. 3:9) हम यीशु के भी सहकर्मी हैं। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जब यीशु ने ‘सब राष्ट्रों के लोगों को चेला’ बनाने की आज्ञा दी, तो उसने यह भी कहा, ‘मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।’ (मत्ती 28:19, 20) क्या स्वर्गदूत भी हमारे सहकर्मी हैं? बेशक हैं, क्योंकि आज जब हम लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं, तो स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं।—प्रका. 14:6.

15. बाइबल से एक मिसाल देकर समझाइए कि यहोवा ही राज के बीज को बढ़ाता है।

15 यहोवा, यीशु और स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं, इसलिए हमें प्रचार काम में अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। जब हम सच्चाई के बीज बोते हैं, तो कुछ बीज बढ़िया मिट्टी में गिरते हैं और बढ़ने लगते हैं। (मत्ती 13:18, 23) मगर असल में कौन सच्चाई के बीज को बढ़ाता है? यीशु ने कहा कि कोई भी इंसान तब तक उसका चेला नहीं बन सकता जब तक कि “पिता” उसे यीशु के पास “खींच न लाए।” (यूह. 6:44) इसकी एक बढ़िया मिसाल बाइबल में दी गयी है। जब पौलुस ने फिलिप्पी शहर की कुछ औरतों को गवाही दी, तो उनमें लुदिया नाम की एक औरत भी थी। “यहोवा ने उसके दिल के दरवाज़े पूरी तरह खोल दिए ताकि वह उसकी बातों पर यकीन करे।” (प्रेषि. 16:13-15) यहोवा ने लुदिया जैसे लाखों लोगों को अपनी तरफ खींचा है।

16. हमें जो अच्छे नतीजे मिलते हैं, उसके लिए हमें किसकी बड़ाई करनी चाहिए?

16 जब हमें प्रचार काम में अच्छे नतीजे मिलते हैं, तो हमें किसकी बड़ाई करनी चाहिए? जब पौलुस ने कुरिंथ में प्रचार किया, तो वहाँ कई लोग मसीही बन गए। उनके बारे में उसने कहा, “मैंने लगाया, अपुल्लोस ने पानी देकर सींचा लेकिन परमेश्‍वर उसे बढ़ाता रहा। इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, न ही पानी देनेवाला कुछ है मगर परमेश्‍वर सबकुछ है जो इसे बढ़ाता है।” (1 कुरिं. 3:6, 7) पौलुस ने यहोवा की बड़ाई की। हमें भी प्रचार में जो अच्छे नतीजे मिलते हैं, उसके लिए हमें यहोवा की बड़ाई करनी चाहिए।

17. अगर हम इस बात के लिए एहसानमंद हैं कि हम परमेश्‍वर, यीशु और स्वर्गदूतों के सहकर्मी हैं, तो हम क्या करेंगे?

17 जैसे हमने देखा हमें परमेश्‍वर, यीशु और स्वर्गदूतों के ‘साथ काम करने’ का मौका मिला है। अगर हम इस आशीष के लिए एहसानमंद हैं, तो हम क्या करेंगे? हमें जब भी मौका मिलता है, हम लोगों को खुशखबरी सुनाएँगे। ऐसा करने के कई तरीके हैं। हम “सरेआम और घर-घर जाकर” गवाही दे सकते हैं। (प्रेषि. 20:20) इसके अलावा, कई भाई-बहन दूसरे मौकों पर भी गवाही देते हैं। जब वे किसी अजनबी से मिलते हैं, तो वे उससे मुस्कुराकर बात करते हैं। अगर वह भी उनसे बात करने को तैयार हो, तो वे उसे खुशखबरी सुनाते हैं।

(पैराग्राफ 18 देखें) *

18-19. (क) सच्चाई के बीज बोने के साथ-साथ हमें क्या करना चाहिए? (ख) यहोवा ने कैसे एक बाइबल विद्यार्थी की मदद की?

18 हमें सच्चाई के बीज बोने के साथ-साथ उन्हें पानी भी देना चाहिए। जब कोई हमारा संदेश अच्छी तरह सुनता है, तो हमें उससे दोबारा मिलने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। अगर हम नहीं जा सकते, तो हम किसी और को जाने के लिए कह सकते हैं ताकि वह उससे मिले और बाद में उसके साथ बाइबल अध्ययन शुरू करे। और सोचिए अगर वह व्यक्‍ति अध्ययन करे और यहोवा की मदद से अपनी पुरानी सोच बदल दे, तो हमें कितनी खुशी होगी।

19 दक्षिण अफ्रीका का रहनेवाला एक ओझा जब बाइबल अध्ययन करने लगा, तो उसे बाइबल की बातें बहुत अच्छी लगीं। मगर जब उसने सीखा कि मरे हुओं से बात करने की कोशिश करना गलत है, तो उसे यह बात मानना मुश्‍किल लगा। (व्यव. 18:10-12) मगर धीरे-धीरे उसने परमेश्‍वर की मदद से अपनी सोच बदली। बाद में उसने ओझे का काम करना छोड़ दिया जबकि इसी काम से उसका गुज़ारा होता था। आज वह 60 साल का है। वह कहता है, “यहोवा के साक्षियों ने मेरी बहुत मदद की है। मैं सबसे ज़्यादा यहोवा का एहसानमंद हूँ। उसकी मदद से मैंने वह सारे काम छोड़ दिए जो गलत हैं। अब मैं बपतिस्मा पाकर एक साक्षी बन गया हूँ और प्रचार काम करता हूँ।”

20. आपको जो खज़ाने मिले हैं, उनके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

20 इस लेख में हमने ऐसे चार खज़ानों के बारे में बात की जिन्हें हम देख नहीं सकते। सबसे बड़ा खज़ाना है, यहोवा से हमारी दोस्ती। इसी खज़ाने की वजह से हमें बाकी खज़ाने मिले हैं। जैसे, हमें प्रार्थना करने का सुअवसर मिला है, हमें पवित्र शक्‍ति की मदद मिलती है और प्रचार में यहोवा, यीशु और स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं। हमें इन खज़ानों को हमेशा अनमोल समझना चाहिए और यहोवा का हमेशा धन्यवाद करना चाहिए। वह इसलिए कि यहोवा हमारा सबसे अच्छा दोस्त है।

गीत 145 फिरदौस—परमेश्‍वर का वादा

^ पैरा. 5 पिछले लेख में हमने ऐसी तीन चीज़ों के बारे में बात की जो यहोवा ने हमें दी हैं। वह ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें हम देख सकते हैं। इस लेख में हम उन आशीषों के बारे में बात करेंगे जिन्हें हम देख नहीं सकते। यहोवा से मिलनेवाली ये आशीषें हमारे लिए खज़ाने जैसे हैं। इनके बारे में चर्चा करने से हम यहोवा के और भी एहसानमंद होंगे।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: (1) एक बहन यहोवा के बनाए खूबसूरत नज़ारों का मज़ा ले रही है और यहोवा के साथ अपनी दोस्ती के बारे में गहराई से सोच रही है।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: (2) वह बहन चाय-नाश्‍ते के लिए एक जगह बैठी है। वह यहोवा से प्रार्थना कर रही है कि वह उसे गवाही देने की हिम्मत दे।

^ पैरा. 62 तसवीर के बारे में: (3) पवित्र शक्‍ति उसे हिम्मत देती है, इसलिए वह एक औरत को गवाही दे पाती है।

^ पैरा. 64 तसवीर के बारे में: (4)  बहन उसी औरत को बाइबल सिखा रही है। वह स्वर्गदूतों की मदद से प्रचार कर रही है और चेले बनाने का काम कर रही है।