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अध्ययन लेख 28

अपना यकीन पक्का कीजिए कि आपके पास सच्चाई है

अपना यकीन पक्का कीजिए कि आपके पास सच्चाई है

“जो बातें तूने सीखी हैं और जिनका तुझे दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था उन बातों को मानता रह।”—2 तीमु. 3:14.

गीत 56 सच्चाई को अपना बनाएँ

लेख की एक झलक *

1. “सच्चाई” का क्या मतलब है?

“आपको सच्चाई कैसे मिली?” “क्या आपकी परवरिश साक्षी परिवार में हुई है?” “आपको सच्चाई में कितने साल हो गए हैं?” शायद आपसे किसी ने ये सवाल किए हों या फिर आपने उनसे पूछे हों। “सच्चाई” का मतलब क्या है? इसमें तीन बातें शामिल हैं: (1) बाइबल की शिक्षाएँ, (2) हमारी उपासना से जुड़े काम और (3) हमारे जीने का तरीका। जो लोग “सच्चाई में” हैं, वे बाइबल की शिक्षाएँ जानते हैं और उसके मुताबिक जीते हैं। सच्चाई ने उन्हें झूठी शिक्षाओं से आज़ाद किया है और वे मुश्‍किलों के बावजूद खुश रहते हैं।​—यूह. 8:32.

2. यूहन्‍ना 13:34, 35 के मुताबिक कुछ लोगों को शुरू-शुरू में कौन-सी बात अच्छी लगती है?

2 जब आप सच्चाई सीखने लगे तो शुरू-शुरू में आपको कौन-सी बात अच्छी लगी थी? शायद आपको यहोवा के साक्षियों का चालचलन अच्छा लगा। (1 पत. 2:12) या आपको यह देखकर अच्छा लगा होगा कि उनके बीच कितना प्यार है। बहुत-से लोगों ने यही प्यार महसूस किया था जब वे पहली बार सभा में आए थे। हालाँकि उन्हें यह याद नहीं कि वहाँ क्या-क्या सिखाया गया था लेकिन भाई-बहनों का प्यार वे कभी नहीं भूल पाए। यीशु ने खुद कहा था कि प्यार ही उसके चेलों की पहचान होगा। (यूहन्‍ना 13:34, 35 पढ़िए।) लेकिन अपना विश्‍वास मज़बूत करने के लिए प्यार के अलावा और भी कई बातें ज़रूरी हैं।

3. अगर हमने सिर्फ भाई-बहनों का प्यार देखकर विश्‍वास बढ़ाया है, तो क्या हो सकता है?

3 आपको सिर्फ यह देखकर विश्‍वास नहीं बढ़ाना है कि साक्षियों में कितना प्यार है। ऐसा क्यों? मान लीजिए कोई भाई या बहन, यहाँ तक कि कोई प्राचीन या पायनियर गंभीर पाप कर देता है। या कोई भाई या बहन आपको ठेस पहुँचाता है या फिर सच्चाई से बगावत करता है और कहता है कि हमारी शिक्षाएँ गलत हैं। ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप ठोकर खाकर यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे? अगर आप सिर्फ लोगों का प्यार देखकर सच्चाई में आए हैं और आपने खुद यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम नहीं किया है, तो आपका विश्‍वास कमज़ोर हो जाएगा। विश्‍वास बढ़ाना घर बनाने जैसा है। घर बनाते वक्‍त सिर्फ रेत इस्तेमाल नहीं की जाती बल्कि ऐसे सामान भी इस्तेमाल किए जाते हैं, जो मज़बूत और टिकाऊ हों। ठीक उसी तरह, यहोवा और भाई-बहनों के बारे में आपको जो बातें अच्छी लगती हैं, अगर सिर्फ उन्हीं की वजह से आपने विश्‍वास बढ़ाया है, तो आपका विश्‍वास ज़्यादा दिनों तक टिका नहीं रहेगा। यह ऐसा होगा मानो आपने विश्‍वास-रूपी घर रेत से बनाया है। आपको बाइबल का गहराई से अध्ययन करना होगा ताकि आपको पक्का यकीन हो कि इसमें जो लिखा है, वह सच्चाई है।​—रोमि. 12:2.

4. मत्ती 13:3-6, 20, 21 के मुताबिक मुश्‍किलें आने पर कुछ लोग क्या करते हैं?

4 यीशु ने कहा था कि कुछ लोग “खुशी-खुशी” सच्चाई अपना तो लेंगे लेकिन जब उन पर परीक्षाएँ आएँगी, तो उनका विश्‍वास डगमगा जाएगा। (मत्ती 13:3-6, 20, 21 पढ़िए।) शायद वे इस बात को ठीक से नहीं समझते कि यीशु के पीछे चलने से कुछ मुश्‍किलें आएँगी। (मत्ती 16:24) या शायद वे सोचते हों कि मसीही बनने से उनकी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। लेकिन सच तो यह है कि इस दुनिया में जीना आसान नहीं है और मुश्‍किलें आएँगी ही। हमारे हालात कभी-भी बदल सकते हैं और कुछ समय के लिए हमारी खुशी छिन सकती है।​—भज. 6:6; सभो. 9:11.

5. ज़्यादातर भाई-बहन कैसे दिखाते हैं कि उन्हें सच्चाई पर पूरा यकीन है?

5 वहीं दूसरी तरफ, ज़्यादातर भाई-बहनों को पूरा यकीन है कि उनके पास सच्चाई है। मुश्‍किलें आने पर भी वे सच्चाई में टिके रहते हैं। जैसे, जब कोई भाई या बहन उन्हें ठेस पहुँचाता है या गलत काम करता है, तो उनका विश्‍वास नहीं डगमगाता। (भज. 119:165) इसके बजाय, मुश्‍किलों के दौर में उनका विश्‍वास और मज़बूत हो जाता है। (याकू. 1:2-4) हम उनकी तरह अपना विश्‍वास कैसे मज़बूत कर सकते हैं?

“परमेश्‍वर के बारे में सही ज्ञान” लीजिए

6. पहली सदी के मसीहियों ने क्यों विश्‍वास किया?

6 ध्यान दीजिए कि पहली सदी के मसीहियों ने किस वजह से विश्‍वास किया। उन्होंने शास्त्र में लिखी बातों को और ‘खुशखबरी की सच्चाई’ को यानी यीशु की शिक्षाओं को अच्छी तरह जाना था। (गला. 2:5) ‘खुशखबरी की सच्चाई’ का मतलब वे सारी शिक्षाएँ हैं, जो सच्चे मसीही मानते हैं। एक शिक्षा यह है कि यीशु ने हमारे लिए फिरौती बलिदान दिया और उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया। प्रेषित पौलुस को यकीन था कि ये शिक्षाएँ सच्ची हैं। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? पौलुस ने लोगों को गवाही देते समय ‘शास्त्र से हवाले देकर साबित किया कि मसीह के लिए दुख उठाना और मरे हुओं में से ज़िंदा होना ज़रूरी था।’ (प्रेषि. 17:2, 3) पहली सदी के मसीहियों ने इन शिक्षाओं पर विश्‍वास किया। परमेश्‍वर के वचन को समझने के लिए वे पवित्र शक्‍ति पर निर्भर रहे। उन्होंने खोजबीन की ताकि उन्हें पक्का यकीन हो कि ये शिक्षाएँ वाकई शास्त्र में दी गयी हैं। (प्रेषि. 17:11, 12; इब्रा. 5:14) उन्होंने सिर्फ भावनाओं में बहकर यहोवा पर विश्‍वास नहीं किया और न ही इस वजह से कि उन्हें भाई-बहनों से मिलना अच्छा लगता था। उनके पास “परमेश्‍वर के बारे में सही ज्ञान” था, इसीलिए उन्होंने विश्‍वास किया।​—कुलु. 1:9, 10.

7. बाइबल की शिक्षाओं पर मज़बूत विश्‍वास होने से हमें क्या फायदा होगा?

7 बाइबल की सच्चाइयाँ कभी नहीं बदलतीं। (भज. 119:160) ये तब भी नहीं बदलतीं जब मुश्‍किलें आती हैं, कोई भाई या बहन गंभीर पाप करता है या हमें ठेस पहुँचाता है। इस वजह से हमें बाइबल की शिक्षाएँ अच्छी तरह पता होनी चाहिए और पक्का यकीन होना चाहिए कि ये सही हैं। अगर इन शिक्षाओं पर हम मज़बूत विश्‍वास बढ़ाएँगे, तो मुश्‍किलें आने पर हम डटे रहेंगे, ठीक जैसे लंगर की वजह से जहाज़ तूफान में टिका रहता है। लेकिन हम इस बात पर अपना यकीन कैसे बढ़ा सकते हैं कि हम जो मानते हैं वही सच्चाई है?

आप अपना यकीन कैसे बढ़ा सकते हैं?

8. दूसरा तीमुथियुस 3:14, 15 के मुताबिक तीमुथियुस को क्यों यकीन था कि उसके पास सच्चाई है?

8 तीमुथियुस को पूरा यकीन था कि उसके पास सच्चाई है। उसे इतना यकीन क्यों था? (2 तीमुथियुस 3:14, 15 पढ़िए।) जब तीमुथियुस छोटा था, तो उसकी माँ और नानी ने उसे “पवित्र शास्त्र” की बातें सिखायी थीं। उसने खुद भी उनका गहराई से अध्ययन किया होगा। इस वजह से उसे पक्का यकीन हुआ कि शास्त्र में जो लिखा है वह सच है। बाद में तीमुथियुस, उसकी माँ और नानी को यीशु मसीह की शिक्षाओं के बारे में पता चला। तीमुथियुस ने ज़रूर देखा होगा कि यीशु के चेलों के बीच कितना प्यार है। वह मंडली के भाई-बहनों की संगति करना और उनकी मदद करना चाहता था। (फिलि. 2:19, 20) लेकिन उसने इन बातों की वजह से नहीं बल्कि शास्त्र से जो सीखा था, उसकी वजह से विश्‍वास किया और वह यहोवा का दोस्त बन पाया। तीमुथियुस की तरह आपको भी बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। तब आपको खुद यकीन होगा कि बाइबल में यहोवा के बारे में जो भी लिखा है वह सच है।

9. आपको बाइबल की किन तीन बुनियादी सच्चाइयों का यकीन होना चाहिए?

9 सबसे पहले आपको बाइबल की तीन बुनियादी सच्चाइयाँ पता होनी चाहिए और उन पर यकीन होना चाहिए। पहली, यहोवा ने ही सबकुछ बनाया है। (निर्ग. 3:14, 15; इब्रा. 3:4; प्रका. 4:11) दूसरी, बाइबल परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी गयी है और इसमें दिया संदेश सभी इंसानों के लिए है। (2 तीमु. 3:16, 17) तीसरी, यहोवा ने अपने लोगों को एक संगठन में इकट्ठा किया है, जो मसीह के निर्देश मानकर यहोवा की उपासना करते हैं। ये लोग यहोवा के साक्षी हैं। (यशा. 43:10-12; यूह. 14:6; प्रेषि. 15:14) इन बुनियादी सच्चाइयों पर यकीन करने के लिए ज़रूरी नहीं कि आपको बाइबल के बारे में सबकुछ पता हो। इसके बजाय, अपनी “सोचने-समझने की शक्‍ति” इस्तेमाल कीजिए और जाँच-परखकर जानिए कि क्यों ये बातें सच हैं।​—रोमि. 12:1.

दूसरों को यकीन दिलाने के लिए क्या करें?

10. सच्चाई सीखने के बाद हमें और क्या करना चाहिए?

10 इन तीन सच्चाइयों पर अपना यकीन बढ़ाने से आप दूसरों को भी शास्त्र से ये बातें बता पाएँगे और उन्हें यकीन दिला पाएँगे। यह करना क्यों ज़रूरी है? यीशु के चेले होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हमने जो सच्चाइयाँ सीखी हैं, वे हम दूसरों को भी बताएँ। * (1 तीमु. 4:16) जब हम दूसरों को यकीन दिलाते हैं कि बाइबल की बातें सच्ची हैं, तो हमारा विश्‍वास और मज़बूत होता है।

11. (क) पौलुस ने किस तरह लोगों को सिखाया? (ख) हम भी क्या कर सकते हैं?

11 जब प्रेषित पौलुस लोगों को सिखाता था, तो “वह मूसा के कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों से यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल करता” था। (प्रेषि. 28:23) हम पौलुस से क्या सीखते हैं? हमें अपने विद्यार्थियों को बाइबल की बातें बताने के साथ-साथ बाइबल से तर्क भी करना चाहिए। ऐसा करने से वे यहोवा के करीब आएँगे। हम नहीं चाहते कि हमारे विद्यार्थी हमारी कुछ खूबियाँ देखकर सच्चाई में आएँ। हम चाहते हैं कि उन्हें खुद यकीन हो कि वे यहोवा के बारे में जो सीख रहे हैं, वह सच्चाई है।

माता-पिताओ, अपने बच्चों को ‘परमेश्‍वर की गहरी बातें’ सिखाइए जिनसे उनका विश्‍वास मज़बूत हो (पैराग्राफ 12-13 देखें) *

12-13. माता-पिता क्या कर सकते हैं ताकि उनके बच्चे हमेशा सच्चाई में रहें?

12 माता-पिताओ, आप ज़रूर चाहेंगे कि आपके बच्चे हमेशा सच्चाई में रहें। आपको शायद लगे कि अगर मंडली में उनके अच्छे दोस्त होंगे तो वे सच्चाई में अच्छी तरक्की करेंगे। लेकिन सिर्फ अच्छे दोस्त होना काफी नहीं है। बच्चों का यहोवा के साथ अपना एक रिश्‍ता होना चाहिए और उन्हें खुद यकीन होना चाहिए कि बाइबल जो सिखाती है वही सच्चाई है।

13 अगर आप अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाना चाहते हैं, तो खुद बाइबल का अच्छा अध्ययन कीजिए और सीखी बातों पर मनन कीजिए। फिर आप अपने बच्चों को भी ऐसा करना सिखा पाएँगे। उन्हें यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड  में, वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी  और JW लाइब्रेरी  ऐप पर खोजबीन करना सिखाइए, ठीक जैसे आप अपने बाइबल विद्यार्थियों को सिखाते हैं। जब आप ऐसा करेंगे तो आपके बच्चे यहोवा से प्यार करने लगेंगे। इस बात पर भी उनका भरोसा बढ़ेगा कि यहोवा “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें बाइबल की सही समझ देता है। (मत्ती 24:45-47) माता-पिताओ, बच्चों को सिर्फ बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ मत सिखाइए। उनकी उम्र और समझ को ध्यान में रखते हुए उन्हें ‘परमेश्‍वर की गहरी बातें’ भी सिखाइए। इससे उनका विश्‍वास मज़बूत होगा।​—1 कुरिं. 2:10.

बाइबल की भविष्यवाणियों का अध्ययन कीजिए

14. हमें बाइबल की भविष्यवाणियों का अध्ययन क्यों करना चाहिए? (“ क्या आप इन भविष्यवाणियों का मतलब समझा सकते हैं?” नाम का बक्स पढ़ें।)

14 बाइबल में दी भविष्यवाणियाँ परमेश्‍वर के वचन का अहम हिस्सा हैं। इनसे परमेश्‍वर पर हमारा विश्‍वास मज़बूत होता है। हो सकता है, “आखिरी दिनों” के बारे में की गयी भविष्यवाणियों से आपका विश्‍वास मज़बूत हुआ हो। (2 तीमु. 3:1-5; मत्ती 24:3, 7) लेकिन ऐसी और भी भविष्यवाणियाँ हैं, जिनसे आपका विश्‍वास मज़बूत हो सकता है। जैसे, दानियेल अध्याय 2 और 11 में दी भविष्यवाणियाँ। क्या आप समझा सकते हैं कि इन भविष्यवाणियों की कुछ बातें कैसे पूरी हुई हैं और कुछ बातें आज कैसे पूरी हो रही हैं? * अगर आप इन गहरी बातों को जानेंगे और उन पर अपना विश्‍वास बढ़ाएँगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएँगे। जर्मनी के उन भाई-बहनों का उदाहरण लीजिए, जिन्होंने दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान कई ज़ुल्म सहे। उस वक्‍त तक आखिरी दिनों के बारे में भविष्यवाणियों की पूरी समझ नहीं मिली थी। फिर भी उन भाई-बहनों ने बाइबल से जो कुछ सीखा था, उससे उनका विश्‍वास मज़बूत रहा।

बाइबल और उसकी भविष्यवाणियों का अध्ययन करने से हम मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे (पैराग्राफ 15-17 देखें) *

15-17. बाइबल का अध्ययन करने की वजह से हमारे भाई-बहन ज़ुल्म कैसे सह पाए?

15 जर्मनी में जब नात्ज़ियों का राज था, तब हज़ारों भाई-बहनों को यातना शिविरों में डाला गया। हिटलर और उसका एक मुख्य अधिकारी हाइनरिख हिमलर यहोवा के साक्षियों से नफरत करते थे। एक बहन ने बताया कि एक बार हिमलर ने एक यातना शिविर में कुछ बहनों से कहा, “तुम्हारा यहोवा स्वर्ग में राज करता होगा। लेकिन यहाँ धरती पर हमारा राज चलता है। देखते हैं, कौन ज़्यादा समय तक टिकता है, तुम या हम।” इस मुश्‍किल दौर में यहोवा के लोग कैसे वफादार रह पाए?

16 ये भाई-बहन जानते थे कि परमेश्‍वर का राज 1914 में शुरू हो चुका है। वे इस बात से हैरान नहीं थे कि उन पर इतने ज़ुल्म ढाए गए। उन्हें यकीन था कि कोई भी सरकार परमेश्‍वर को अपना मकसद पूरा करने से नहीं रोक सकती। हिटलर न तो सच्ची उपासना को खत्म कर पाया, न ही ऐसी सरकार खड़ी कर पाया जो परमेश्‍वर के राज की जगह ले। हमारे भाइयों को यकीन था कि एक-न-एक-दिन हिटलर का राज ज़रूर खत्म होगा।

17 उन्हें जिस बात का यकीन था वही हुआ। कुछ ही समय बाद नात्ज़ी सरकार गिर गयी। हाइनरिख हिमलर को, जिसने कहा था कि “यहाँ धरती पर हमारा राज चलता है,” अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। जब वह भाग रहा था, तो उसकी मुलाकात भाई लूबके से हुई। हिमलर जानता था कि वे यहोवा के एक साक्षी हैं जो अपने विश्‍वास की वजह से जेल में रह चुके थे। नात्ज़ी सरकार की हार से निराश होकर हिमलर ने भाई लूबके से पूछा, “तुम्हें क्या लगता है बाइबल विद्यार्थी, अब क्या होगा?” भाई ने उससे कहा कि बाइबल विद्यार्थी पहले से ही जानते थे कि नात्ज़ी सरकार एक दिन गिर जाएगी और वे आज़ाद हो जाएँगे। हिमलर ने पहले यहोवा के साक्षियों के बारे में बहुत बुरा-भला कहा था लेकिन अब उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। कुछ ही समय बाद उसने खुदकुशी कर ली। इस किस्से से हम क्या सीखते हैं? यही कि बाइबल और उसमें दी भविष्यवाणियों का अध्ययन करने से हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा और मुश्‍किल घड़ी में हम डटे रहेंगे।​—2 पत. 1:19-21.

18. अगर हमारे पास “सही ज्ञान और पैनी समझ” होगी, तो यूहन्‍ना 6:67, 68 के मुताबिक हम क्या करेंगे?

18 यह सच है कि प्यार सच्चे मसीहियों की पहचान है, इसलिए हमें एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए। लेकिन हमारे पास “सही ज्ञान और पैनी समझ” भी होनी चाहिए। (फिलि. 1:9) इसके बगैर हम झूठी ‘शिक्षाओं के हर झोंके से इधर-उधर उड़ाए जाएँगे और इंसानों की बातों में आ जाएँगे।’ हम परमेश्‍वर से बगावत करनेवालों की बातों में भी आ जाएँगे। (इफि. 4:14) पहली सदी में यीशु के कई चेलों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया था। मगर प्रेषित पतरस को पूरा यकीन था कि “हमेशा की ज़िंदगी की बातें” सिर्फ यीशु के पास हैं। (यूहन्‍ना 6:67, 68 पढ़िए।) हालाँकि उस समय पतरस यीशु की बातें पूरी तरह नहीं समझ पाया, फिर भी वह उसका वफादार रहा। वह समझ गया था कि यीशु ही मसीहा है और उसे उस पर पूरा यकीन था। आप भी बाइबल की सच्चाइयों पर अपना भरोसा बढ़ा सकते हैं। तब मुश्‍किलों में भी आपका विश्‍वास नहीं डगमगाएगा और आप दूसरों का भी विश्‍वास मज़बूत कर पाएँगे।​—2 यूह. 1, 2.

गीत 72 यहोवा के राज की सच्चाई फैलाना

^ पैरा. 5 इस लेख में समझाया जाएगा कि बाइबल में दी सच्चाइयाँ बहुत अहम हैं। इन सच्चाइयों पर हम अपना यकीन कैसे बढ़ा सकते हैं? लेख में कुछ तरीके बताए जाएँगे जिनसे हमारा विश्‍वास और मज़बूत हो सकता है।

^ पैरा. 10 लोगों से तर्क कैसे किया जाता है, यह जानने के लिए 2015 की प्रहरीदुर्ग  के जनता के लिए संस्करण में आयी शृंखला पढ़ें। इसका विषय है, “दिलचस्पी लेनेवाले से बातचीत।

^ पैरा. 14 इन भविष्यवाणियों के बारे में जानने के लिए 15 जून, 2012 और मई 2020 की प्रहरीदुर्ग  के लेख पढ़ें।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: पारिवारिक उपासना में माता-पिता अपने बच्चों को महा-संकट के बारे में कुछ भविष्यवाणियाँ समझा रहे हैं।

^ पैरा. 62 तसवीर के बारे में: जब महा-संकट आएगा, तो यह परिवार उस वक्‍त होनेवाली घटनाएँ देखकर हैरान नहीं होगा।