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अध्ययन लेख 31

उस शहर का इंतज़ार कीजिए “जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है”

उस शहर का इंतज़ार कीजिए “जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है”

“वह एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है, जिसका रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्‍वर है।”—इब्रा. 11:10.

गीत 22 स्वर्ग में राज शुरू हुआ—अब धरती पर आए, है दुआ!

लेख की एक झलक *

1. परमेश्‍वर के सेवक क्या त्याग करते हैं? वे ऐसा क्यों करते हैं?

आज परमेश्‍वर के सेवकों ने अपने जीवन में कई त्याग किए हैं। कुछ भाई-बहनों ने अविवाहित रहने का फैसला किया है, तो कुछ शादीशुदा जोड़ों ने थोड़े समय के लिए बच्चे न करने का फैसला किया है। और जिनका घर-परिवार है, वे भी सादा जीवन बिताते हैं। यहोवा के लाखों सेवकों ने ऐसे त्याग क्यों किए हैं? इसकी एक खास वजह यह है कि वे यहोवा की ज़्यादा-से-ज़्यादा सेवा करना चाहते हैं। वे अपनी ज़िंदगी से खुश हैं और उन्हें भरोसा है कि यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी करेगा। क्या उनका भरोसा कभी टूटेगा? नहीं! वह इसलिए कि यहोवा ने बीते समय में अपने सेवकों की ज़रूरतें पूरी की थी। इसकी एक मिसाल अब्राहम है। उसे ‘उन सबका पिता कहा गया है जो विश्‍वास करते हैं।’—रोमि. 4:11.

2. (क) इब्रानियों 11:8-10, 16 के मुताबिक अब्राहम ने क्यों खुशी-खुशी ऊर छोड़ दिया? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

2 अब्राहम ऊर शहर में आराम की ज़िंदगी जीता था। लेकिन उसने खुशी-खुशी वह शहर छोड़ दिया। उसने ऐसा क्यों किया? क्योंकि वह “एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है।” (इब्रानियों 11:8-10, 16 पढ़िए।) वह “शहर” क्या था? उस शहर का इंतज़ार करते वक्‍त अब्राहम को किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा? हम अब्राहम की तरह और हमारे दिनों के भाई-बहनों की तरह कैसे बन सकते हैं जो उसके नक्शे-कदम पर चले? इस लेख में हम इन सवालों के जवाब देखेंगे।

वह “शहर” क्या है “जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है”?

3. वह शहर क्या है जिसका इंतज़ार अब्राहम कर रहा था?

3 अब्राहम को जिस शहर का इंतज़ार था, वह परमेश्‍वर का राज है। यह राज यीशु मसीह और 1,44,000 अभिषिक्‍त मसीहियों से मिलकर बना है। पौलुस ने इस राज को “जीवित परमेश्‍वर की नगरी, स्वर्ग की यरूशलेम” कहा। (इब्रा. 12:22; प्रका. 5:8-10; 14:1) यीशु ने अपने चेलों को इसी राज के लिए प्रार्थना करना सिखाया था। उसने यह दुआ करने के लिए कहा कि परमेश्‍वर का राज आए और धरती पर उसकी मरज़ी पूरी करे, ठीक जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है।​—मत्ती 6:10.

4. उत्पत्ति 17:1, 2, 6 के मुताबिक अब्राहम परमेश्‍वर के राज के बारे में कितना जानता था?

4 क्या अब्राहम को पूरी जानकारी थी कि परमेश्‍वर का राज किन लोगों से बना होगा? नहीं। यह जानकारी सदियों तक एक “पवित्र रहस्य” थी। (इफि. 1:8-10; कुलु. 1:26, 27) लेकिन वह इतना ज़रूर जानता था कि उसके कुछ वंशज राजा बनेंगे, क्योंकि यहोवा ने उसे साफ-साफ यह बात बतायी थी। (उत्पत्ति 17:1, 2, 6 पढ़िए।) अब्राहम को विश्‍वास था कि यहोवा अपने वादे ज़रूर पूरे करेगा। उसका विश्‍वास इतना पक्का था मानो वह मसीहा को देख सका जो परमेश्‍वर के राज का राजा बनता। इसी वजह से यीशु ने यहूदियों से कहा, “तुम्हारा पिता अब्राहम खुशी-खुशी आस लगाए था कि वह मेरा दिन देखेगा और उसने देखा भी और बहुत खुश हुआ।” (यूह. 8:56) जी हाँ, अब्राहम जानता था कि उसके कुछ वंशज परमेश्‍वर के राज में राज करेंगे। यही वजह है कि उसने खुशी-खुशी सब्र रखा। उसे यकीन था कि सही वक्‍त पर परमेश्‍वर अपना यह वादा ज़रूर पूरा करेगा।

अब्राहम ने कैसे दिखाया कि उसे यहोवा के वादों पर विश्‍वास है? (पैराग्राफ 5 देखें)

5. यह क्यों कहा जा सकता है कि अब्राहम को परमेश्‍वर के राज का इंतज़ार था?

5 हम कैसे कह सकते हैं कि अब्राहम को परमेश्‍वर के राज का इंतज़ार था? ऐसा कहने की कई वजह हैं। पहली, वह किसी एक देश में बस नहीं गया बल्कि जगह-जगह तंबुओं में रहा। उसने किसी भी इंसानी राजा का समर्थन नहीं किया। दूसरी, उसने खुद अपनी हुकूमत शुरू नहीं की। इसके बजाय, वह यहोवा की आज्ञा मानता रहा और उसने सब्र रखा। सच में, अब्राहम का विश्‍वास लाजवाब था! अब आइए देखें कि अब्राहम ने किन मुश्‍किलों का सामना किया और उसके उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं।

अब्राहम ने किन मुश्‍किलों का सामना किया?

6. ऊर कैसा शहर था?

6 अब्राहम जो शहर छोड़ आया था, वह बहुत महफूज़ था। चारों तरफ शहरपनाह बनी थी और तीन तरफ एक नहर थी। ऊर के लोग पढ़े-लिखे और गणित में माहिर थे। वे बहुत अमीर थे। ऐसा मालूम होता है कि इस शहर में बहुत कारोबार भी होता था, क्योंकि जब इस जगह की खुदाई की गयी, तो कारोबार से जुड़े कई दस्तावेज़ मिले। शहर के लोग आराम की ज़िंदगी जीते थे। वे ईंट के बने पक्के घरों में रहते थे। घरों की दीवारों पर पहले पलस्तर चढ़ाया जाता था, फिर उन पर सफेदी की जाती थी। कुछ घरों में तो 13 या 14 कमरे होते थे और घर के बीचों-बीच पत्थरों से बना एक आँगन होता था।

7. अब्राहम को क्यों भरोसा रखना था कि यहोवा हिफाज़त करेगा?

7 अब अब्राहम और सारा कनान के खुले मैदानों में तंबुओं में रह रहे थे। यह ज़िंदगी ऊर की ज़िंदगी से कितनी अलग थी! वहाँ वे आराम से जीते थे और उन्हें कोई डर नहीं था। लेकिन यहाँ न तो उनकी हिफाज़त के लिए शहरपनाह थी और न ही नहरें। उलटा उन्हें दुश्‍मनों का खतरा था। अब्राहम को भरोसा रखना था कि यहोवा उसकी और उसके परिवार की हिफाज़त करेगा।

8. एक बार अब्राहम को किस मुश्‍किल का सामना करना पड़ा?

8 अब्राहम यहोवा की मरज़ी पूरी करता था, फिर भी उसकी ज़िंदगी में कुछ मुश्‍किलें आयीं। एक बार उसी देश में अकाल पड़ा जहाँ यहोवा ने उसे भेजा था। हालात इतने खराब हो गए कि अपने परिवार के लिए खाना जुटाना भी उसके लिए मुश्‍किल था। तब वह अपने परिवार को कुछ समय के लिए मिस्र ले गया। लेकिन जब अब्राहम मिस्र पहुँचा, तो फिरौन उसकी पत्नी को अपने भवन ले गया। आप कल्पना कर सकते हैं कि उस वक्‍त अब्राहम को सारा की कितनी फिक्र हुई होगी। उसने तब जाकर राहत की साँस ली होगी, जब फिरौन ने यहोवा के कहने पर सारा को अब्राहम के पास वापस भेज दिया।—उत्प. 12:10-19.

9. अब्राहम को अपने परिवार में किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?

9 अब्राहम को अपने परिवार में भी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उसकी प्यारी पत्नी सारा को बच्चा नहीं हो रहा था। इस वजह से वे बहुत दुखी थे। फिर सारा ने अब्राहम को अपनी मिस्री दासी हाजिरा दी ताकि उससे अब्राहम और सारा को बच्चा हो। लेकिन जब हाजिरा को पता चला कि वह गर्भवती है, तो वह सारा को नीचा दिखाने लगी। हालात इतने बिगड़ गए कि सारा ने हाजिरा को घर से भगा दिया।—उत्प. 16:1-6.

10. अब्राहम के लिए यहोवा पर भरोसा रखना कब मुश्‍किल रहा होगा? समझाइए।

10 आखिरकार सारा गर्भवती हुई और उसका एक बेटा हुआ। अब्राहम ने उसका नाम इसहाक रखा। वह अपने दोनों बेटों इश्‍माएल और इसहाक से बहुत प्यार करता था। लेकिन इश्‍माएल ने इसहाक के साथ बुरा सलूक किया, इसलिए यहोवा ने अब्राहम से कहा कि वह इश्‍माएल और हाजिरा को घर से दूर भेज दे। (उत्प. 21:9-14) फिर कुछ साल बाद यहोवा ने अब्राहम से इसहाक की बलि चढ़ाने को कहा। (उत्प. 22:1, 2; इब्रा. 11:17-19) इश्‍माएल और इसहाक के मामले में यहोवा की बात मानना अब्राहम के लिए मुश्‍किल रहा होगा। लेकिन उसे भरोसा रखना था कि उसके बेटों के बारे में यहोवा ने जो-जो वादे किए हैं, वे ज़रूर पूरे होंगे।

11. अब्राहम ने क्यों सब्र रखा?

11 अब्राहम जानता था कि वक्‍त आने पर यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे, इसलिए उसने सब्र रखा। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? अब्राहम की उम्र शायद 70 से ज़्यादा थी जब उसने अपने परिवार के साथ ऊर शहर छोड़ा। (उत्प. 11:31–12:4) फिर वह करीब 100 साल तक कनान में जगह-जगह घूमता रहा और तंबुओं में रहा। जब उसकी मौत हुई तो वह 175 साल का था। (उत्प. 25:7) यहोवा ने अब्राहम से वादा किया था कि वह उसके वंशजों को कनान देश देगा। लेकिन अब्राहम ने जीते-जी इस वादे को पूरा होते नहीं देखा। उसने उस शहर को यानी परमेश्‍वर के राज को भी स्थापित होते हुए नहीं देखा। फिर भी अब्राहम के बारे में बताया गया है कि वह “एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी” जीया। (उत्प. 25:8) अब्राहम ने कई मुश्‍किलों का सामना किया, फिर भी उसका विश्‍वास नहीं डगमगाया। उसने खुशी-खुशी सब्र रखा, क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि यहोवा के वादे एक दिन ज़रूर पूरे होंगे। वह ऐसा क्यों कर पाया? क्योंकि यहोवा ने उसे अपना दोस्त माना और पूरी ज़िंदगी उसकी हिफाज़त की।—उत्प. 15:1; यशा. 41:8; याकू. 2:22, 23.

अब्राहम और सारा की तरह परमेश्‍वर के सेवक कैसे विश्‍वास रखते हैं और सब्र से काम लेते हैं? (पैराग्राफ 12 देखें) *

12. (क) हम किस वक्‍त का इंतज़ार कर रहे हैं? (ख) अब हम किस बात पर ध्यान देंगे?

12 अब्राहम की तरह हमें भी उस शहर का इंतज़ार है जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है। लेकिन हम इस शहर या राज के कायम होने का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं। वह तो 1914 में कायम हो चुका है और स्वर्ग में शासन कर रहा है। (प्रका. 12:7-10) हम उस वक्‍त का इंतज़ार कर रहे हैं जब यह राज धरती पर भी शासन करेगा। इस दौरान शायद हमें अब्राहम और सारा की तरह कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़े। आज परमेश्‍वर के कई सेवकों ने उनकी तरह विश्‍वास रखा है और सब्र से काम लिया है। इनमें से कइयों की जीवन कहानी हम प्रहरीदुर्ग  में पढ़ सकते हैं। आइए हम कुछ भाई-बहनों के अनुभव पर ध्यान दें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं।

अब्राहम के जैसे भाई-बहन

भाई बिल वॉल्डन ने खुशी-खुशी त्याग किए और उन्हें यहोवा से आशीषें मिलीं

13. भाई वॉल्डन के अनुभव से आपने क्या सीखा?

13 हमें यहोवा के लिए खुशी-खुशी त्याग करना चाहिए।  अगर हम परमेश्‍वर के राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देना चाहते हैं, तो हमें भी अब्राहम की तरह त्याग करना चाहिए। (मत्ती 6:33; मर. 10:28-30) भाई बिल वॉल्डन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। * सन्‌ 1942 में जब वे अमरीका में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करनेवाले थे, तो उसी दौरान वे यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने लगे। भाई के एक प्रोफेसर ने उनके लिए एक नौकरी ढूँढ़ रखी थी, लेकिन उन्होंने नौकरी करने से इनकार कर दिया। भाई ने प्रोफेसर को बताया कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वे परमेश्‍वर की सेवा में अपना जीवन लगाना चाहते हैं। कुछ समय बाद सरकार ने उन्हें सेना में भरती होने के लिए बुलाया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उन पर दस हज़ार डॉलर का जुरमाना लगा और उन्हें पाँच साल की जेल हुई। लेकिन उन्हें तीन साल बाद रिहा कर दिया गया। फिर उन्हें गिलियड स्कूल के लिए बुलाया गया और उन्होंने अफ्रीका में मिशनरी सेवा की। भाई ने ईवा नाम की एक बहन से शादी की और दोनों ने मिलकर अफ्रीका में कई साल सेवा की। वहाँ उन्होंने कई त्याग किए। बाद में भाई बिल अपनी माँ की देखभाल करने के लिए अमरीका लौट आए। भाई बिल ने अपनी ज़िंदगी के बारे में कहा, “मुझे खुशी है कि यहोवा ने मुझे उसकी सेवा करने का मौका दिया। मैं 70 साल से उसकी सेवा कर रहा हूँ। यह सब यहोवा की मदद से ही हो पाया है। मैं उसका बहुत शुक्रगुज़ार हूँ।” आपने भाई वॉल्डन से क्या सीखा? क्या आप भी अपना जीवन पूरे समय की सेवा में लगाना चाहेंगे?

भाई आरिस्टोटलीस और उनकी पत्नी एलेनी ने महसूस किया कि यहोवा ने उन्हें ताकत दी

14-15. भाई आरिस्टोटलीस और उनकी पत्नी के अनुभव से आप क्या सीखते हैं?

14 हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारी ज़िंदगी में मुश्‍किलें नहीं आएँगी।  अब्राहम के उदाहरण से पता चलता है कि जो लोग अपनी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में लगा देते हैं, उन्हें भी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ सकता है। (याकू. 1:2; 1 पत. 5:9) भाई आरिस्टोटलीस आपोस्टोलीडीस के मामले में यह बात सच साबित हुई। * उनका बपतिस्मा 1946 में ग्रीस में हुआ था। सन्‌ 1952 में एलेनी नाम की एक बहन से उनकी सगाई हो गयी। वे दोनों साथ मिलकर ज़्यादा सेवा करना चाहते थे। लेकिन फिर बहन एलेनी बीमार हो गयी और पता चला कि उन्हें ब्रेन ट्‌यूमर है। ऑपरेशन से उनका ट्‌यूमर निकाला गया, लेकिन उनकी शादी के कुछ साल बाद ट्‌यूमर वापस आ गया। डॉक्टरों ने फिर से उनका ऑपरेशन किया। इस बार बहन के शरीर के कुछ हिस्सों को लकवा मार गया और वे ठीक से बात नहीं कर पा रही थीं। उन दिनों सरकार साक्षियों पर बहुत ज़ुल्म कर रही थी। ऐसी मुश्‍किलों के बावजूद बहन जोश से प्रचार करती रहीं।

15 भाई आरिस्टोटलीस ने 30 साल तक अपनी पत्नी की देखभाल की। इसके साथ-साथ उन्होंने प्राचीन की ज़िम्मेदारी निभायी, अधिवेशन समितियों में काम किया और एक सम्मेलन भवन के निर्माण में हाथ बँटाया। सन 1987 में जब एक बार बहन एलेनी प्रचार कर रही थी, तो उनके साथ एक दुर्घटना हो गयी। इस वजह से वे तीन साल तक कोमा में रहीं, फिर उनकी मौत हो गयी। भाई आरिस्टोटलीस ने अपनी जीवन कहानी के आखिर में कहा, “सालों से मैं ऐसी कठिन परिस्थितियों, मुश्‍किल भरी चुनौतियों और हादसों से गुज़रा हूँ जिनमें धीरज धरने और दृढ़ता से काम लेने की बेहद ज़रूरत पड़ी थी। इन सारी समस्याओं का सामना करने के लिए यहोवा ने हमेशा मुझे ताकत दी है।” (भज. 94:18, 19) इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा उन लोगों से बहुत प्यार करता है जो मुश्‍किलों के बावजूद तन-मन से उसकी सेवा करते हैं।

बहन ऑड्री हाइड निराश नहीं हुईं, क्योंकि उन्होंने अपना ध्यान भविष्य पर लगाए रखा

16. भाई नॉर ने अपनी पत्नी को क्या सलाह दी?

16 हमें अपना ध्यान भविष्य पर लगाना चाहिए।  अब्राहम ने अपना ध्यान उन आशीषों पर लगाया जो भविष्य में यहोवा उसे देगा। इस वजह से वह अपनी मुश्‍किलों का अच्छी तरह सामना कर पाया। बहन ऑड्री हाइड पर ध्यान दीजिए। उनके पहले पति, भाई नेथन एच. नॉर को कैंसर हो गया था जिस वजह से उनकी मौत हो गयी। फिर उनके दूसरे पति, भाई ग्लेन हाइड को एल्ज़ाइमर्स रोग हो गया। * इन हालात में भी बहन निराश नहीं हुईं। वे कैसे यह सब सह पायीं? बहन ने बताया कि भाई नॉर ने अपनी मौत से कुछ हफ्ते पहले उनसे एक अच्छी बात कही थी। बहन ने कहा, “नेथन ने मुझे याद दिलाया: ‘मौत के बाद, एक इंसान की आशा पक्की हो जाती है और उसे फिर कभी तकलीफ से गुज़रना नहीं पड़ेगा।’ फिर उन्होंने मुझसे गुज़ारिश की: ‘हमेशा आगे की तरफ देखती रहना, क्योंकि तुम्हारा इनाम वहीं है। परमेश्‍वर के काम में लगी रहनाअपनी ज़िंदगी को दूसरों का भला करने में लगाना। इससे तुम्हें जीने में खुशी मिलेगी।’” दूसरे शब्दों में कहें तो भाई नॉर ने अपनी पत्नी को यह सलाह दी कि वे दूसरों की खातिर भले काम करती रहें और ‘अपनी आशा की वजह से खुशी मनाती’ रहें। उन्होंने कितनी अच्छी सलाह दी!—रोमि. 12:12.

17. (क) आज हमें भविष्य पर और भी ज़्यादा ध्यान क्यों लगाना चाहिए? (ख) मीका 7:7 के मुताबिक हमें भविष्य में आशीषें पाने के लिए कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

17 आज हमें भविष्य पर और भी ज़्यादा ध्यान लगाना चाहिए। दुनिया की घटनाएँ साफ दिखाती हैं कि हम इस व्यवस्था के आखिरी दिनों की आखिरी घड़ी में जी रहे हैं। बहुत जल्द हमारा इंतज़ार खत्म हो जाएगा, क्योंकि परमेश्‍वर का राज पूरी धरती पर शासन करेगा। तब हमें कई आशीषें मिलेंगी। एक आशीष यह है कि हम उन सभी अज़ीज़ों को दोबारा देख पाएँगे जो आज मौत की नींद सो रहे हैं। उस वक्‍त यहोवा अब्राहम को उसके विश्‍वास और सब्र का इनाम देगा। यहोवा उसे और उसके परिवार को ज़िंदा करेगा। क्या आप उनका स्वागत करने के लिए वहाँ होंगे? अगर आप अब्राहम की तरह खुशी-खुशी परमेश्‍वर के राज के लिए त्याग करें, मुश्‍किलों के बावजूद अपना विश्‍वास बनाए रखें और यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करें, तो आप वहाँ ज़रूर होंगे!—मीका 7:7 पढ़िए।

गीत 74 आओ गाएँ राज-गीत

^ पैरा. 5 आज हम उस वक्‍त का इंतज़ार कर रहे हैं जब यहोवा के वादे पूरे होंगे। इस बीच हो सकता है कि हम सब्र खो दें या हमारा विश्‍वास कमज़ोर पड़ जाए। अब्राहम ने सब्र रखा, क्योंकि उसे यकीन था कि यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे। इस लेख से हम जानेंगे कि हम अब्राहम से और हमारे ज़माने के भाई-बहनों से क्या सीख सकते हैं।

^ पैरा. 13 भाई वॉल्डन की जीवन कहानी 1 दिसंबर, 2013 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  के पेज 8-10 में दी गयी है।

^ पैरा. 14 भाई आरिस्टोटलीस की जीवन कहानी 1 फरवरी, 2002 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 24-28 में दी गयी है।

^ पैरा. 16 बहन हाइड की जीवन कहानी 1 जुलाई, 2004 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 23-29 में दी गयी है।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: एक बुज़ुर्ग पति-पत्नी मुश्‍किलों के बावजूद यहोवा की सेवा में लगे हुए हैं। वे भविष्य में मिलनेवाली आशीषों पर ध्यान लगाए हुए हैं, इसलिए उनका विश्‍वास मज़बूत है।