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अध्ययन लेख 39

अपनी मसीही बहनों का खयाल रखिए

अपनी मसीही बहनों का खयाल रखिए

“खुशखबरी सुनानेवाली औरतों की एक बड़ी सेना है।”—भज. 68:11.

गीत 137 वफादार स्त्रियाँ, मसीही बहनें

लेख की एक झलक *

हमारी मसीही बहनें यहोवा की सेवा में बहुत व्यस्त रहती हैं। वे जोश से सभाओं में हिस्सा लेती हैं, प्रचार करती हैं, राज-घर के रख-रखाव में हाथ बँटाती हैं और भाई-बहनों का खयाल रखती हैं (पैराग्राफ 1 देखें)

1. हमारी बहनें किन कामों में मेहनत करती हैं? कुछ बहनें किन मुश्‍किलों का सामना करती हैं? (बाहर दी तसवीर देखें।)

यह देखकर हमें बहुत खुशी होती है कि हमारी मसीही बहनें यहोवा की सेवा में कितनी मेहनत करती हैं। वे सभाओं में हिस्सा लेती हैं, प्रचार करती हैं, राज-घर के रख-रखाव में हाथ बँटाती हैं और सभी भाई-बहनों का खयाल रखती हैं। पर यह सब करना उनके लिए हमेशा आसान नहीं होता। वे कई मुश्‍किलों का सामना करती हैं। कुछ बहनों को अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करनी होती है, कुछ बहनें अपने परिवार का विरोध सहती हैं और कुछ बहनें अकेले परिवार चलाती हैं। वे अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए बहुत मेहनत करती हैं।

2. हमें क्यों आगे बढ़कर अपनी बहनों का खयाल रखना चाहिए?

2 हमें क्यों अपनी बहनों का खयाल रखना चाहिए? क्योंकि दुनिया के लोग अकसर स्त्रियों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जो मिलना चाहिए। एक और वजह से हमें अपनी बहनों का खयाल रखना चाहिए। वह यह कि बाइबल हमें ऐसा करने के लिए कहती है। उदाहरण के लिए, प्रेषित पौलुस ने रोम की मंडली से कहा कि जब फीबे नाम की बहन उनके यहाँ आएगी, तो वे प्यार से उससे मिलें और यह भी कहा कि “अगर किसी भी काम में उसे तुम्हारी ज़रूरत पड़े तो उसकी मदद करना।” (रोमि. 16:1, 2) पहले जब पौलुस एक फरीसी था, तो ऐसे लोगों के साथ उसका उठना-बैठना था जो औरतों को नीचा समझते थे। लेकिन जब वह एक मसीही बना, तो उसने स्त्रियों के बारे में यीशु की सोच अपनायी। वह उनकी इज़्ज़त करता था और उनके साथ अच्छा व्यवहार करता था।​—1 कुरिं. 11:1.

3. (क) यीशु औरतों के साथ कैसा व्यवहार करता था? (ख) परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करनेवाली स्त्रियों के बारे में यीशु क्या सोचता था?

3 यीशु सभी औरतों की इज़्ज़त करता था। (यूह. 4:27) वह उस ज़माने के यहूदी धर्म गुरुओं की तरह नहीं था जो औरतों को कुछ नहीं समझते थे। बाइबल पर टिप्पणी करनेवाली एक किताब बताती है, “यीशु ने कभी कोई ऐसी बात नहीं कही जिससे औरतों का अपमान हो।” यीशु उन औरतों की और भी इज़्ज़त करता था जो उसके पिता की मरज़ी पूरी करती थीं। गौर करनेवाली बात है कि उसने ऐसी स्त्रियों को अपनी बहनें कहा। उसने परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करनेवाली स्त्रियों को पुरुषों के बराबर दर्जा दिया और कहा कि वे सब उसके परिवार के लोग हैं।​—मत्ती 12:50.

4. इस लेख में हम क्या देखेंगे?

4 यीशु हमेशा परमेश्‍वर की सेवा करनेवाली स्त्रियों की मदद करता था। वह उनकी कदर करता था और ज़रूरत पड़ने पर उनकी तरफ से बोलता भी था। आइए देखें कि हम कैसे यीशु की तरह अपनी बहनों का खयाल रख सकते हैं।

हमारी बहनें अनमोल हैं, उनका खयाल रखिए

5. कुछ बहनें अच्छी संगति का आनंद क्यों नहीं उठा पातीं?

5 हम सबको अच्छी संगति की ज़रूरत होती है, फिर चाहे हम भाई हों या बहनें। लेकिन कुछ बहनें अच्छी संगति का आनंद उठा नहीं पातीं। क्यों? आइए कुछ बहनों से ही सुनें। ज्योति  * नाम की एक बहन कहती है, “अविवाहित होने की वजह से मुझे कई बार लगता है कि मंडली में मेरी कोई अहमियत नहीं है, किसी को मेरी ज़रूरत नहीं है।” कैरन नाम की एक पायनियर बहन ऐसी जगह जाकर बस गयी है जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। वह कहती है, “जब हम एक मंडली में नए-नए आए होते हैं, तो हम बहुत अकेला महसूस करते हैं।” कुछ भाई भी जब नयी मंडली में जाते हैं, तो ऐसा ही महसूस करते हैं। ऐसी बहनें भी शायद बहुत अकेला महसूस करें जिनके परिवार के लोग सच्चाई में नहीं हैं। वे अपने घर में भी और मंडली में भी पराया-सा महसूस करती हैं। कुछ बहनें बीमार रहने की वजह से घर से बाहर नहीं जा सकतीं या वे घर पर किसी बीमार व्यक्‍ति की देखभाल करती हैं, इसलिए कहीं बाहर नहीं जा सकतीं। वे भी शायद बहुत अकेला महसूस करें। अनीता कहती है, “जब भाई-बहन मुझे घर बुलाते थे, तो मैं नहीं जा पाती थी क्योंकि मेरी माँ बीमार रहती थी और ज़्यादातर मैं ही उसकी देखभाल करती थी।”

यीशु की तरह हम अपनी बहनों का खयाल रख सकते हैं (पैराग्राफ 6-9 देखें) *

6. लूका 10:38-42 के मुताबिक यीशु ने मारथा और मरियम की कैसे मदद की?

6 यीशु परमेश्‍वर की सेवा करनेवाली स्त्रियों के साथ वक्‍त बिताता था। वह उनका सच्चा दोस्त था। मारथा और मरियम की ही बात लीजिए। शायद वे दोनों अविवाहित थीं। (लूका 10:38-42 पढ़िए।) यीशु के बात करने का तरीका और उसका व्यवहार बहुत अच्छा था, इसलिए उन दोनों बहनों ने उससे बात करने और उसकी संगति करने में संकोच महसूस नहीं किया। एक बार मरियम यीशु की शिक्षाएँ सुनने के लिए बेझिझक उसके पैरों के पास बैठी। * जब मारथा यह देखकर परेशान हो गयी कि मरियम उसकी मदद नहीं कर रही है, तो वह खुलकर यीशु से बात कर पायी और मरियम की शिकायत करने लगी। उसी मौके पर यीशु ने उन दोनों बहनों को कुछ अच्छी सलाह दी। इस तरह उसने सही सोच अपनाने में उनकी मदद की। यीशु बाद में भी कई बार उनके घर गया, क्योंकि वह उनसे और उनके भाई लाज़र से बहुत प्यार करता था। (यूह. 12:1-3) यही वजह थी कि जब लाज़र बहुत बीमार हो गया, तो मारथा और मरियम ने यीशु को खबर भेजी। वे जानती थीं कि वह ज़रूर उनकी मदद करेगा।​—यूह. 11:3, 5.

7. हम अपनी बहनों को कैसे महसूस करा सकते हैं कि हमें उनकी फिक्र है?

7 कुछ बहनें सिर्फ सभाओं में भाई-बहनों से मिल पाती हैं, इसलिए सभाओं में हमें उनसे प्यार से मिलना चाहिए और उनसे बातचीत करनी चाहिए। हमें उन्हें महसूस कराना चाहिए कि हमें उनकी फिक्र है। ज्योति, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहती है, “कभी-कभी कुछ भाई-बहन आकर मुझसे कहते हैं कि मैंने सभा में अच्छे जवाब दिए, कुछ भाई-बहन कहते हैं कि वे मेरे साथ प्रचार में जाना चाहते हैं या खुद आगे बढ़कर मेरे लिए कुछ करते हैं। तब मुझे बहुत अच्छा लगता है।” हमें अपनी बहनों को एहसास दिलाना चाहिए कि हम उनकी परवाह करते हैं। रिया कहती है, “अगर मैं किसी वजह से सभा में नहीं जा पाती, तो मुझे पता रहता है कि कोई-न-कोई मुझे मैसेज करेगा, मेरा हाल-चाल पूछेगा। भाई-बहन सच में मेरा खयाल रखते हैं।”

8. हम यीशु की तरह और क्या कर सकते हैं?

8 यीशु की तरह हम भी अपनी मसीही बहनों के साथ समय बिताने की पूरी कोशिश कर सकते हैं। हम उन्हें खाने पर बुला सकते हैं, फिर चाहे हम ज़्यादा कुछ न बनाएँ। या हम उनके साथ यूँ ही फुरसत के पल बिता सकते हैं। हमें ध्यान रखना है कि हम उनसे सिर्फ ऐसी बातें करें जिससे उनका हौसला बढ़े। (रोमि. 1:11, 12) प्राचीनों को अविवाहित लोगों के बारे में यहोवा के जैसा नज़रिया रखना चाहिए। यीशु जानता था कि अविवाहित रहना कुछ लोगों के लिए मुश्‍किल हो सकता है। फिर भी उसने साफ बताया कि ज़िंदगी में खुश रहने के लिए शादी करना या बच्चे होना ज़रूरी नहीं है। (लूका 11:27, 28) यहोवा की सेवा को पहली जगह देने से ही सच्ची खुशी मिलती है।​—मत्ती 19:12.

9. बहनों के लिए प्राचीन क्या कर सकते हैं?

9 खास तौर से प्राचीनों को मसीही स्त्रियों के साथ बहनों और माँओं जैसा व्यवहार करना चाहिए। (1 तीमु. 5:1, 2) उन्हें सभाओं से पहले या बाद में बहनों से बात करनी चाहिए। कैरन, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहती है, “मैं पायनियर सेवा करने के साथ-साथ नौकरी भी करती थी। एक प्राचीन ने गौर किया कि मैं बहुत व्यस्त रहती हूँ। उसने मुझसे पूछा कि मेरी दिनचर्या कैसी है। मुझे अच्छा लगा कि उसने मेरे बारे में सोचा।” जब प्राचीन बहनों से उनका हाल-चाल पूछते रहते हैं, तो वे उन्हें एहसास दिलाते हैं कि वे उनकी परवाह करते हैं। * अनीता, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, बताती है कि प्राचीनों से बात करने का एक फायदा क्या है। वह कहती है, “मैं उन्हें अच्छे से जान पाती हूँ और वे भी मुझे अच्छे से जान पाते हैं। फिर जब कोई मुश्‍किल आती है, तो मैं बेझिझक उनसे मदद माँगती हूँ।”

बहनों की कदर कीजिए

10. हम क्या कर सकते हैं ताकि हमारी बहनों को खुशी मिले?

10 चाहे हम स्त्री हों या पुरुष, जब कोई हमारे काम की तारीफ करता है, तो हमें अच्छा लगता है। हमें खुशी होती है कि वे हमारी मेहनत की कदर कर रहे हैं। वहीं जब कोई ध्यान नहीं देता कि हम अपनी काबिलीयतों का कितना अच्छा इस्तेमाल कर रहे हैं और कितनी मेहनत कर रहे हैं, तो हम निराश हो जाते हैं। अबीगैल नाम की एक अविवाहित पायनियर बहन कहती है कि कभी-कभी उसे लगता है कि कोई उसे नहीं पूछता। वह कहती है, “मंडली के लोग सिर्फ मेरे मम्मी-पापा या भाई-बहनों को जानते हैं। और मेरे बारे में सिर्फ इतना जानते हैं कि मैं उनके परिवार से हूँ। कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं हूँ या नहीं, इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता।” लेकिन पैम नाम की एक अविवाहित बहन का बहुत अच्छा अनुभव रहा। उसने एक दूसरे देश में कई साल मिशनरी सेवा की। फिर वह अपने माता-पिता की देखभाल करने के लिए अपने देश लौट आयी। आज पैम की उम्र 70 से ज़्यादा है और वह अभी-भी पायनियर सेवा कर रही है। वह कहती है कि अकसर भाई-बहन उसकी मेहनत की तारीफ करते हैं। इससे उसे बढ़ावा मिलता है कि वह जो कर रही है उसमें लगी रहे।

11. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु उन स्त्रियों का एहसानमंद था जिन्होंने उसकी सेवा की थी?

11 यीशु उन स्त्रियों का बहुत एहसानमंद था जिन्होंने “अपनी धन-संपत्ति से” उसकी सेवा की। (लूका 8:1-3) उसने उन स्त्रियों को न सिर्फ सेवा करने का मौका दिया बल्कि उन्हें परमेश्‍वर के वचन की गहरी बातें भी सिखायीं। मिसाल के लिए, उसने उन्हें बताया कि उसकी मौत होगी और उसे फिर से ज़िंदा किया जाएगा। (लूका 24:5-8) उसने आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करने के लिए इन स्त्रियों की हिम्मत बँधायी, ठीक जैसे उसने प्रेषितों की हिम्मत बँधायी थी। (मर. 9:30-32; 10:32-34) यह गौर करनेवाली बात है कि जब यीशु को गिरफ्तार किया गया, तो प्रेषित उसे छोड़कर भाग गए। मगर जो स्त्रियाँ उसकी सेवा करती थीं, वे आखिर तक उसका साथ देती रहीं। जब यीशु यातना काठ पर आखिरी साँसें ले रहा था, तो उनमें से कुछ स्त्रियाँ वहीं पास में खड़ी रहीं।​—मत्ती 26:56; मर. 15:40, 41.

12. यीशु ने स्त्रियों को क्या काम सौंपा?

12 यीशु ने स्त्रियों को कुछ ज़रूरी काम भी सौंपा। मिसाल के लिए, जब वह ज़िंदा हुआ, तो सबसे पहले स्त्रियों ने ही उसे देखा था और उसने उन्हीं को यह काम सौंपा कि वे जाकर प्रेषितों को बताएँ कि वह ज़िंदा हो गया है। (मत्ती 28:5, 9, 10) ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन जब चेलों पर पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी, तो उनमें स्त्रियाँ भी रही होंगी। जिन बहनों का पवित्र शक्‍ति से अभिषेक हुआ, उन्हें अलग-अलग भाषाएँ बोलने का वरदान मिला होगा और उन्होंने “परमेश्‍वर के शानदार कामों” के बारे में लोगों को बताया होगा।​—प्रेषि. 1:14; 2:2-4, 11.

13. (क) हमारी बहनें क्या-क्या काम करती हैं? (ख) हम बहनों के लिए अपना एहसान कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

13 हमारी बहनें तारीफ के काबिल हैं, क्योंकि वे यहोवा की सेवा में बहुत मेहनत करती हैं। वे इमारतें बनाने और उनका रख-रखाव करने में हाथ बँटाती हैं, दूसरी भाषा बोलनेवाले समूहों के साथ प्रचार करती हैं और बेथेल घरों में स्वयंसेवा करती हैं। वे राहत काम करती हैं, हमारे प्रकाशनों का अनुवाद करती हैं और पायनियर और मिशनरी सेवा करती हैं। भाइयों की तरह वे पायनियर स्कूल, राज प्रचारकों के लिए स्कूल और गिलियड स्कूल में भी जाती हैं। कुछ बहनों के पति मंडली और संगठन में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे हैं और वे “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं। (इफि. 4:8) ये बहनें अपने पति का साथ देती हैं, इसलिए वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभा पाते हैं। हमारी बहनें सच में बहुत मेहनत करती हैं। तो आप सोच सकते हैं कि आप उनके लिए अपना एहसान कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं।

14. भजन 68:11 को ध्यान में रखते हुए प्राचीन कैसे बुद्धिमानी से काम लेते हैं?

14 प्राचीन इस बात को समझते हैं कि आज खुशखबरी सुनानेवाली बहनों की बहुत “बड़ी सेना” है। (भजन 68:11 पढ़िए।) ज़्यादातर बहनें प्रचार में बहुत कुशल होती हैं और वे यह काम खुशी-खुशी करती हैं। प्राचीन उनके तजुरबे से सीखने की कोशिश करते हैं जो कि एक बुद्धिमानी का काम है। अबीगैल से, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, भाई अकसर पूछते हैं कि प्रचार में लोगों से किस तरह बातचीत शुरू करना ज़्यादा अच्छा रहता है। वह कहती है, “इससे मुझे एहसास होता है कि यहोवा मेरी कदर करता है। तभी तो उसके संगठन में मेरी अहमियत है।” प्राचीन इस बात को भी समझते हैं कि प्रौढ़ मसीही बहनें मुश्‍किलों का सामना करने में जवान बहनों की मदद करती हैं। (तीतु. 2:3-5) हमारी बहनें वाकई तारीफ के काबिल हैं।

अपनी बहनों की तरफ से बोलिए

15. बहनों की तरफ से बोलना कब-कब ज़रूरी होता है?

15 जब बहनें मुश्‍किलों का सामना करती हैं, तो कभी-कभी यह ज़रूरी होता है कि कोई उनकी तरफ से बात करे। (यशा. 1:17) मिसाल के लिए, अगर कोई बहन विधवा है या उसका तलाक हो गया है, तो यह ज़रूरी हो जाता है कि कुछ काम निपटाने में कोई उनकी तरफ से बात करे और जो काम उनके पति करते थे उन्हें करने में उनकी मदद करे। बुज़ुर्ग बहनों को डॉक्टरों से बात करने के लिए किसी की ज़रूरत होती है। अगर एक पायनियर बहन संगठन के किसी और काम में हाथ बँटा रही है, तो शायद वह दूसरे पायनियरों के जितना प्रचार न कर पाए। ऐसे में अगर भाई-बहन उसकी नुक्‍ताचीनी करते हैं, तो हमें उसकी तरफ से बोलना चाहिए। हम एक और तरीके से अपनी बहनों की मदद कर सकते हैं। यह जानने के लिए आइए फिर से यीशु की मिसाल पर गौर करें।

16. मरकुस 14:3-9 के मुताबिक यीशु ने कैसे मरियम की तरफ से बात की?

16 जब भी यीशु ने देखा कि परमेश्‍वर की सेवा करनेवाली स्त्रियों को गलत समझा जा रहा है, तो उसने फौरन उनकी तरफ से बात की। जब मारथा मरियम की शिकायत करने लगी, तो यीशु ने मरियम की तरफ से बात की और कहा कि उसने कुछ गलत नहीं किया है। (लूका 10:38-42) एक और मौके पर लोग मरियम पर भड़क गए, क्योंकि उन्होंने सोचा कि मरियम ने जो किया वह सही नहीं है। तब भी यीशु ने मरियम की तरफ से बात की। (मरकुस 14:3-9 पढ़िए।) यीशु जानता था कि मरियम ने जो किया, वह सही इरादे से किया, इसलिए उसने मरियम की तारीफ की और कहा, “इसने मेरी खातिर एक बढ़िया काम किया है। . . . वह जो कर सकती थी उसने किया।” यीशु ने यह भविष्यवाणी भी की कि मरियम ने जो भला काम किया है, उसे हमेशा याद किया जाएगा और ‘सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके काम की चर्चा की जाएगी।’ इस लेख में भी उसके काम की चर्चा की जा रही है। यह गौर करनेवाली बात है कि यीशु ने मरियम की तारीफ करते समय यह भी बताया कि पूरी दुनिया में प्रचार काम किया जाएगा। यीशु की बात सुनकर मरियम को कितनी खुशी हुई होगी, क्योंकि बाकी लोगों ने तो उसके काम को गलत ठहराया था।

17. एक उदाहरण देकर बताइए कि हमें कब एक बहन की तरफ से बोलना पड़ सकता है।

17 क्या आप भी ज़रूरत पड़ने पर अपनी बहनों की तरफ से बोलते हैं? मान लीजिए एक बहन का पति सच्चाई में नहीं है। वह अकसर सभाओं में देर से आती है और सभा खत्म होते ही चली जाती है। वह अपने बच्चों को कभी-कभार ही सभाओं में लाती है। यह सब देखकर कुछ भाई-बहन आपस में उसके बारे में बात करने लगते हैं। वे कहते हैं कि वह अपने पति से साफ-साफ क्यों नहीं कहती कि उसे बच्चों को सभाओं में ले जाना है। लेकिन वे यह नहीं समझते कि बहन की कुछ मजबूरियाँ हैं। बच्चों के मामले में सिर्फ उसके पति की चलती है। अगर आप किसी को बहन के बारे में गलत बातें करते सुनते हैं, तो आप क्या करेंगे? क्या आप बहन की तरफ से बोलेंगे कि वह जितना कर सकती है कर रही है? अगर आप ऐसा करेंगे, तो दूसरे उसके बारे में बुरा नहीं कहेंगे।

18. हम और किन तरीकों से अपनी बहनों की मदद कर सकते हैं?

18 जब हमारी बहनों को मदद की ज़रूरत होती है, तो हमें खुद आगे बढ़कर उनकी मदद करनी चाहिए। (1 यूह. 3:18) ऐसा करने से उन्हें एहसास होगा कि हम उनका बहुत खयाल रखते हैं। अनीता, जो अपनी बीमार माँ की देखभाल करती थी, कहती है, “कभी-कभी कुछ भाई-बहन आकर मेरी माँ की देखभाल करते थे। तब मैं कुछ और काम कर पाती थी। वे हमारे लिए खाना भी लाते थे। मुझे सबका प्यार मिला, इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैं मंडली से दूर हूँ।” ज्योति का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। एक भाई ने उसे गाड़ी को ठीक-ठाक रखने के बारे में कुछ सुझाव दिए ताकि उसकी गाड़ी अच्छी तरह चलती रहे। वह कहती है, “यह बात मेरे दिल को छू जाती है कि मेरे भाई-बहन मेरी सुरक्षा का कितना ध्यान रखते हैं।”

19. प्राचीन और किस तरह बहनों की मदद कर सकते हैं?

19 जब बहनों को मदद की ज़रूरत होती है, तो प्राचीन भी कुछ कदम उठाते हैं। वे जानते हैं कि उन्हें बहनों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि यहोवा भी यही चाहता है। (याकू. 1:27) वे यीशु की तरह उनका लिहाज़ करते हैं। ज़रूरत पड़ने पर वे उन्हें रिआयत देते हैं और कानून मनवाने पर अड़े नहीं रहते। (मत्ती 15:22-28) जब प्राचीन खुद आगे बढ़कर बहनों की मदद करते हैं, तो बहनें महसूस कर पाती हैं कि यहोवा और उसका संगठन उनके साथ है। जब रिया के समूह निगरान को पता चला कि वह घर बदलनेवाली है, तो उसने फौरन उसकी मदद करने के लिए कुछ इंतज़ाम किए। रिया कहती है, “मेरे सिर से एक भारी बोझ उतर गया। प्राचीनों ने मेरी हिम्मत बँधायी और घर बदलने में मेरी मदद भी की। मैं महसूस कर पायी कि मंडली के प्राचीन मेरा खयाल रखते हैं और ज़रूरत पड़ने पर वे मेरा साथ देंगे।”

सभी बहनों को हमारी ज़रूरत है

20-21. अगर हम अपनी बहनों को अनमोल समझते हैं, तो हम उनके लिए क्या-क्या करेंगे?

20 आज हमारी मंडलियों में ऐसी कई बहनें हैं जो बहुत मेहनत करती हैं। हमें उनकी मदद करनी चाहिए। इस लेख में हमने सीखा कि हम यीशु की तरह क्या कर सकते हैं। हम उनके साथ समय बिता सकते हैं और उन्हें अच्छी तरह जान सकते हैं। हम उनकी मेहनत की कदर कर सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उनकी तरफ से बोल सकते हैं।

21 पौलुस ने रोम की मंडली को जो चिट्ठी लिखी, उसके आखिर में उसने नौ बहनों का ज़िक्र किया और उनकी तारीफ में कुछ बातें कहीं। (रोमि. 16:1, 3, 6, 12, 13, 15) अपने बारे में सुनकर उन बहनों को बहुत खुशी हुई होगी। आइए हम भी अपनी मंडली की सभी बहनों का खयाल रखें और उनकी मदद करें। इस तरह हम उन्हें अनमोल समझेंगे, क्योंकि हम सब एक परिवार के लोग हैं।

गीत 136 “यहोवा से तुझे पूरा इनाम मिले”

^ पैरा. 5 हमारी मसीही बहनें कई मुश्‍किलों का सामना करती हैं। इस लेख में हम देखेंगे कि हम कैसे यीशु की तरह अपनी बहनों का खयाल रख सकते हैं और उनकी मदद कर सकते हैं। हम देखेंगे कि यीशु ने कैसे स्त्रियों के साथ समय बिताया, उनकी कदर की और ज़रूरत पड़ने पर उनकी तरफ से बात की।

^ पैरा. 5 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 6 बाइबल पर टिप्पणी करनेवाली एक किताब कहती है, ‘गुरु के पैरों के पास सिर्फ शिष्य बैठकर सुनते थे ताकि वे खुद आगे चलकर गुरु बन सकें। लेकिन एक शिक्षक बनने का सम्मान स्त्रियों को नहीं दिया जाता था। अगर यहूदी आदमियों ने देखा होगा कि मरियम कैसे यीशु के पैरों के पास बैठी है और बड़ी उत्सुकता से उसकी शिक्षाएँ सुन रही है, तो वे चौंक गए होंगे।’

^ पैरा. 9 बहनों की मदद करते वक्‍त प्राचीनों को कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए। जैसे, एक बहन से मिलने के लिए किसी प्राचीन को अकेले नहीं जाना चाहिए।

^ पैरा. 65 तसवीर के बारे में: यीशु की तरह कुछ भाई वफादार बहनों की ज़रूरतों का खयाल रख रहे हैं। एक भाई दो बहनों की गाड़ी का टायर बदल रहा है। एक और भाई एक बीमार बहन से मिलने गया है। एक भाई और उसकी पत्नी एक बहन और उसकी बेटी के यहाँ गए हैं और उनके साथ पारिवारिक उपासना कर रहे हैं।