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अध्ययन लेख 46

हिम्मत रखिए​—⁠यहोवा आपका मददगार है

हिम्मत रखिए​—⁠यहोवा आपका मददगार है

“मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।”​—इब्रा. 13:5.

गीत 55 उनसे मत डर!

लेख की एक झलक *

1. अगर हम किसी समस्या का सामना कर रहे हैं, तो किस बात से हमें हिम्मत मिल सकती है? (भजन 118:5-7)

क्या आपकी ज़िंदगी में कभी ऐसी समस्या आयी जिसका सामना करना आपको बहुत मुश्‍किल लगा? ऐसे में कई लोग बिलकुल अकेला महसूस करते हैं, यहाँ तक कि यहोवा के वफादार सेवक भी। (1 राजा 19:14) अगर आपने कभी ऐसा महसूस किया है, तो यहोवा का यह वादा याद रखिए, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।” इसलिए हम पूरे भरोसे के साथ कह सकते हैं, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा।” (इब्रा. 13:5, 6) प्रेषित पौलुस ने ये शब्द ईसवी सन्‌ 61 के आस-पास यहूदिया में रहनेवाले इब्रानी मसीहियों को लिखे थे। कुछ इसी तरह की बात बहुत पहले भजन के एक लेखक ने भी कही थी जो भजन 118:5-7 में लिखी है।​—पढ़िए।

2. (क) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे? (ख) इससे हमें क्या फायदा होगा?

2 भजन के उस लेखक की तरह पौलुस ने भी कई बार महसूस किया कि यहोवा उसका मददगार है। इब्रानी मसीहियों को चिट्ठी लिखने के दो साल पहले पौलुस ने एक बहुत बड़ी समस्या का सामना किया था। वह जिस जहाज़ से सफर कर रहा था, वह एक बहुत बड़े तूफान में फँस गया था। (प्रेषि. 27:4, 15, 20) उस पूरे सफर के दौरान और उससे पहले भी यहोवा ने कई तरीकों से पौलुस की मदद की थी। इनमें से तीन तरीकों के बारे में अब हम चर्चा करेंगे। एक तो यहोवा ने यीशु और स्वर्गदूतों के ज़रिए उसकी मदद की, दूसरा, सरकारी अधिकारियों के ज़रिए और तीसरा, मसीही भाई-बहनों के ज़रिए। तो आइए पौलुस की ज़िंदगी की उन घटनाओं पर चर्चा करें। इससे हमारा भरोसा बढ़ेगा कि जैसे परमेश्‍वर ने वादा किया है, वह कभी हमें अकेला नहीं छोड़ेगा और जब मुसीबत में हम उसे पुकारेंगे, तो वह हमारी सुनेगा।

यीशु और स्वर्गदूत मदद करते हैं

3. पौलुस ने क्या सोचा होगा और क्यों?

3 ईसवी सन्‌ 56 के आस-पास एक बार जब पौलुस यरूशलेम के मंदिर में था, तो एक भीड़ ने उस पर हमला कर दिया। और लोग उसे घसीटकर मंदिर के बाहर ले गए और उसे मार डालने की कोशिश की। अगले दिन पौलुस को महासभा के सामने लाया गया। वहाँ हालात इतने बिगड़ गए कि दुश्‍मन उसकी बोटी-बोटी कर देनेवाले थे। (प्रेषि. 21:30-32; 22:30; 23:6-10) तब पौलुस ने सोचा होगा, ‘मुझे यह सब कब तक झेलना पड़ेगा?’ पौलुस को वाकई मदद की ज़रूरत थी।

4. यहोवा ने यीशु के ज़रिए कैसे पौलुस की मदद की?

4 किसने पौलुस की मदद की?  जिस दिन पौलुस को महासभा के सामने लाया गया था, उसी रात “प्रभु” यीशु ने उसे दर्शन दिया। वह उसके पास आ खड़ा हुआ और उसने कहा, “हिम्मत रख! क्योंकि जैसे तू यरूशलेम में मेरे बारे में अच्छी तरह गवाही देता आया है, उसी तरह रोम में भी तुझे गवाही देनी है।” (प्रेषि. 23:11) यीशु ने इस बात के लिए पौलुस की तारीफ की कि उसने यरूशलेम में अच्छी गवाही दी है और उसे यकीन दिलाया कि वह सही-सलामत रोम पहुँचेगा और वहाँ भी अच्छी गवाही देगा। यीशु ने बिलकुल सही वक्‍त पर उसकी हिम्मत बँधायी! उसकी बात सुनकर पौलुस ने सुरक्षित महसूस किया होगा, ठीक जैसे एक बच्चा अपने पिता की बाँहों में सुरक्षित महसूस करता है।

समुदंर में बहुत बड़ा तूफान आया हुआ है और एक स्वर्गदूत पौलुस को यकीन दिला रहा है कि जहाज़ पर सवार सब लोग बच जाएँगे (पैराग्राफ 5 पढ़ें)

5. यहोवा ने कैसे एक स्वर्गदूत भेजकर पौलुस की मदद की? (बाहर दी तसवीर देखें।)

5 पौलुस के सामने और कौन-सी मुश्‍किलें आयीं? यरूशलेम में हुई उन घटनाओं के करीब दो साल बाद जब वह एक जहाज़ से रोम जा रहा था, तो जहाज़ एक बहुत बड़े तूफान में फँस गया। तूफान इतना भयानक था कि नाविकों और यात्रियों ने सोचा कि वे मर जाएँगे। लेकिन पौलुस नहीं घबराया। उसने जहाज़ में सवार लोगों से कहा, “मैं जिस परमेश्‍वर का हूँ और जिसकी पवित्र सेवा करता हूँ, उसका एक स्वर्गदूत रात को मेरे पास आया था और उसने मुझसे कहा, ‘पौलुस, मत डर। तू सम्राट के सामने ज़रूर खड़ा होगा और देख, परमेश्‍वर तेरी वजह से उन सबकी भी जान बचाएगा जो तेरे साथ सफर कर रहे हैं।’” यहोवा ने एक स्वर्गदूत को भेजकर उसे फिर से उस बात का यकीन दिलाया जो यीशु ने पहले कही थी। और वाकई ऐसा ही हुआ। पौलुस सही-सलामत रोम पहुँचा।​—प्रेषि. 27:20-25; 28:16.

6. यीशु के किस वादे से हमें हिम्मत मिलती है और क्यों?

6 कौन हमारी मदद करता है?  यीशु हमारी मदद करता है जैसे उसने पौलुस की मदद की थी। उसने हमसे वादा किया है, “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त तक हमेशा  तुम्हारे साथ रहूँगा।” (मत्ती 28:20) यीशु के इन शब्दों से हमें हिम्मत मिलती है। क्यों? क्योंकि कभी-कभी ज़िंदगी में आनेवाला दुख सहना बहुत मुश्‍किल होता है। जैसे, अगर हमारे परिवार में किसी की मौत हो गयी है, तो उसे खोने का दर्द हमें सालों तक सहना पड़ता है। कुछ लोगों के लिए बुढ़ापे की वजह से आनेवाली तकलीफें सहना मुश्‍किल होता है। कुछ लोग कभी-कभी बहुत मायूस हो जाते हैं और एक-एक पल काटना उन्हें भारी लगता है। मगर ऐसे मुश्‍किल वक्‍त को भी पार करने की हमें हिम्मत मिलती है, क्योंकि हमें यकीन है कि यीशु हमेशा  हमारे साथ है। वह उन दिनों में भी हमारे साथ होता है जब हम अंदर से टूट चुके होते हैं।​—मत्ती 11:28-30.

प्रचार में स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं (पैराग्राफ 7 देखें)

7. प्रकाशितवाक्य 14:6 के मुताबिक यहोवा कैसे हमारी मदद करता है?

7 परमेश्‍वर का वचन बताता है कि यहोवा स्वर्गदूतों के ज़रिए भी हमारी मदद करता है। (इब्रा. 1:7, 14) मिसाल के लिए, जब हम “हर राष्ट्र, गोत्र [और] भाषा” के लोगों को ‘राज की खुशखबरी’ सुनाते हैं, तो स्वर्गदूत हमारी मदद करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं।​—प्रकाशितवाक्य 14:6 पढ़िए; मत्ती 24:13, 14.

अधिकारी मदद करते हैं

8. यहोवा ने कैसे एक सेनापति के ज़रिए पौलुस की मदद की?

8 किसने पौलुस की मदद की?  ईसवी सन्‌ 56 में यीशु ने पौलुस को यकीन दिलाया था कि वह सही-सलामत रोम पहुँचेगा। मगर यरूशलेम में कुछ यहूदियों ने पौलुस को मार डालने की चाल चली। जब रोमी सेनापति क्लौदियुस लूसियास को यह बात पता चली, तो उसने पौलुस को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाया। उसने हुक्म दिया कि सैनिकों की एक बड़ी टोली पौलुस को सही-सलामत कैसरिया पहुँचाए जो यरूशलेम से 105 किलोमीटर दूर था। सैनिकों ने पूरे रास्ते उसकी हिफाज़त की। और कैसरिया में राज्यपाल फेलिक्स ने हुक्म दिया कि पौलुस को “हेरोदेस के महल में पहरे में रखा जाए।” इसलिए जो लोग पौलुस की जान के पीछे पड़े थे, वे कुछ नहीं कर पाए।​—प्रेषि. 23:12-35.

9. राज्यपाल फेस्तुस ने पौलुस की कैसे मदद की?

9 पौलुस को दो साल तक कैसरिया में ही कैद में रखा गया। तब तक फेलिक्स की जगह फेस्तुस राज्यपाल बन गया। यहूदियों ने फेस्तुस से बिनती की कि वह पौलुस को यरूशलेम भेज दे ताकि उसका मुकदमा वहाँ हो। मगर फेस्तुस ने इनकार कर दिया। शायद वह जानता था कि यहूदियों ने “साज़िश की थी कि वे छिपकर बैठेंगे और रास्ते में ही पौलुस को मार डालेंगे।”​—प्रेषि. 24:27–25:5.

10. जब पौलुस ने कहा कि वह सम्राट के पास जाना चाहता है, तो फेस्तुस ने क्या किया?

10 बाद में कैसरिया में पौलुस का मुकदमा चलाया गया। मगर फिर फेस्तुस ने “यहूदियों को खुश करने के इरादे से” पौलुस से कहा, ‘क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि वहाँ मेरे सामने तेरा न्याय किया जाए?’ पौलुस जानता था कि अगर वह यरूशलेम जाएगा, तो शायद मार डाला जाएगा। वह यह भी जानता था कि उसे क्या करना चाहिए ताकि अपनी जान बचा सके, रोम जा सके और प्रचार करता रहे। उसने फेस्तुस से कहा कि वह रोम में सम्राट के सामने अपना मुकदमा पेश करना चाहता है। इसलिए उसने कहा, “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!” तब फेस्तुस ने अपने सलाहकारों से मशविरा करने के बाद पौलुस से कहा, “तूने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।” इस तरह उसने पौलुस की बात मान ली। इस वजह से पौलुस दुश्‍मनों के हाथ में पड़ने से बच गया और उसके लिए रोम जाने का रास्ता खुल गया। अब दुश्‍मन उसका कुछ नहीं कर सकते थे।​—प्रेषि. 25:6-12.

11. पौलुस को यशायाह की लिखी किस बात से हिम्मत मिली होगी?

11 जब पौलुस रोम का सफर शुरू करनेवाला था, तो उसे शायद भविष्यवक्‍ता यशायाह की लिखी एक बात याद आयी होगी। यशायाह ने यहोवा के विरोध में काम करनेवालों के बारे में यह लिखा, “जो योजना बनानी है बना लो, मगर वह नाकाम हो जाएगी, जो कहना है कह लो, मगर वह पूरा नहीं होगा, क्योंकि परमेश्‍वर हमारे साथ है!” (यशा. 8:10) जब पौलुस ने इन शब्दों के बारे में सोचा, तो उसे भरोसा हुआ होगा कि यहोवा उसकी मदद करेगा। और आगे चलकर उसके सामने जो भी मुश्‍किलें आयीं, उनका सामना करने के लिए उसे हिम्मत मिली होगी।

बीते समय की तरह यहोवा आज भी अधिकारियों के ज़रिए अपने सेवकों की रक्षा कर सकता है (पैराग्राफ 12 देखें)

12. (क) यूलियुस ने पौलुस के साथ कैसा सलूक किया? (ख) पौलुस ने क्या समझा होगा?

12 ईसवी सन्‌ 58 में पौलुस ने जहाज़ से रोम का सफर शुरू किया। वह एक कैदी था इसलिए उसे रोमी अफसर यूलियुस के हवाले सौंपा गया। अब यूलियुस को पौलुस पर काफी अधिकार था, इसलिए वह चाहे तो उस पर कृपा कर सकता था या फिर उसका जीना मुश्‍किल कर सकता था। यूलियुस ने पौलुस के साथ कैसा सलूक किया? अगले दिन जब जहाज़ सीदोन में रुका, तो “यूलियुस ने पौलुस पर कृपा की और पौलुस को अपने दोस्तों के यहाँ [जाने] की इजाज़त दी।” बाद में यूलियुस ने पौलुस की जान भी बचायी। कैसे? जब रोमी सैनिकों ने जहाज़ में सवार सभी कैदियों को मार डालना चाहा, तो यूलियुस ने उन्हें रोक दिया। क्यों? बाइबल बताती है कि उसने “पौलुस को बचाने के इरादे से” ऐसा किया। पौलुस ने इस बात को समझा होगा कि यूलियुस ने उस पर जो दया की, उसके पीछे यहोवा का ही हाथ है।​—प्रेषि. 27:1-3, 42-44.

पैराग्राफ 13 देखें

13. यहोवा अधिकारियों से क्या करवा सकता है?

13 कौन हमारी मदद करता है?  कभी-कभी यहोवा अधिकारियों के ज़रिए हमारी मदद करता है। जब उसे अपना मकसद पूरा करना होता है, तो वह अपनी ज़बरदस्त पवित्र शक्‍ति के ज़रिए अधिकारियों से वही करवाता है जो वह चाहता है। राजा सुलैमान ने लिखा था, “राजा का मन यहोवा के हाथ में पानी की धारा के समान है, वह जहाँ चाहता है उसे मोड़ देता है।” (नीति. 21:1) इस नीतिवचन का मतलब क्या है? इंसान अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए नहर खोदकर पानी की धारा को जहाँ चाहे वहाँ मोड़ सकता है। उसी तरह यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए अधिकारियों का मन और उनकी सोच बदल सकता है ताकि वे उसी तरीके से काम करें जैसा वह चाहता है। तब वे परमेश्‍वर के लोगों के पक्ष में फैसला करते हैं जिससे उनका भला हो।​—एज्रा 7:21, 25, 26 से तुलना करें।

14. प्रेषितों 12:5 के मुताबिक हम किन लोगों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं?

14 हम क्या कर सकते हैं?  कभी-कभी हमारे प्रचार काम और उपासना के मामले में ‘राजाओं और अधिकार का पद रखनेवालों’ को कुछ फैसला करना होता है। ऐसे वक्‍त पर हम उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। (1 तीमु. 2:1, 2, फु.; नहे. 1:11) और पहली सदी के मसीहियों की तरह हम उन भाई-बहनों के लिए दिलो-जान से प्रार्थना कर सकते हैं जो कैद में हैं। (प्रेषितों 12:5 पढ़िए; इब्रा. 13:3) हम जेल के अफसरों के लिए भी प्रार्थना कर सकते हैं जिन्हें हमारे भाई-बहनों पर अधिकार होता है। हम यहोवा से बिनती कर सकते हैं कि वे भी यूलियुस की तरह हमारे भाई-बहनों के साथ अच्छा व्यवहार करें और ‘इंसानियत के नाते उन पर कृपा करें।’​—प्रेषि. 27:3, फु.

भाई-बहन मदद करते हैं

15-16. यहोवा ने अरिस्तरखुस और लूका के ज़रिए पौलुस की कैसे मदद की?

15 किसने पौलुस की मदद की?  जब पौलुस रोम तक का सफर कर रहा था, तो रास्ते में यहोवा ने कई बार भाई-बहनों के ज़रिए उसकी मदद की। आइए कुछ उदाहरणों पर ध्यान दें।

16 पौलुस के दो साथी अरिस्तरखुस और लूका फैसला करते हैं कि वे भी उसके साथ रोम जाएँगे। * यीशु ने पौलुस को तो यकीन दिलाया था कि वह रोम सही-सलामत पहुँचेगा। मगर बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि उसने पौलुस के दोनों साथियों को भी यकीन दिलाया था। फिर भी वे अपनी जान खतरे में डालकर पौलुस के साथ सफर पर निकल पड़ते हैं। अरिस्तरखुस और लूका को देखकर पौलुस को ज़रूर खुशी हुई होगी कि वे भी उसके साथ आ रहे हैं। उसने ज़रूर यहोवा का धन्यवाद किया होगा कि उसने उसकी मदद करने के लिए इन दो बहादुर साथियों को उसके साथ भेजा है। बाद में सफर के दौरान ही उन्हें पता चलता है कि वे दोनों भी सही-सलामत रोम जाएँगे।​—प्रेषि. 27:1, 2, 20-25.

17. यहोवा ने भाई-बहनों के ज़रिए पौलुस की कैसे मदद की?

17 सफर के दौरान पौलुस का जहाज़ सीदोन नाम के शहर में रुकता है। वहाँ यूलियुस ने “पौलुस को अपने दोस्तों के यहाँ जाकर उनसे मदद पाने की इजाज़त दी।” फिर जब जहाज़ पुतियुली शहर में रुका, तो वहाँ भी पौलुस और उसके साथियों को ‘मसीही भाई मिले और उन्होंने उनसे बिनती की कि वे उनके यहाँ सात दिन ठहरें।’ उन जगहों में भाई-बहनों ने पौलुस और उसके साथियों की ज़रूरतें पूरी कीं। पौलुस ने भी उन्हें कई अनुभव बताकर उनका हौसला बढ़ाया होगा। (प्रेषितों 15:2, 3 से तुलना करें।) अपने भाई-बहनों से मदद और हौसला पाने के बाद पौलुस और उसके साथी अपने सफर पर आगे निकल पड़ते हैं।​—प्रेषि. 27:3; 28:13, 14.

आज भी यहोवा भाई-बहनों के ज़रिए हमारी मदद करता है, ठीक जैसे उसने पौलुस की मदद की थी (पैराग्राफ 18 देखें)

18. पौलुस ने किस वजह से परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी?

18 पौलुस पुतियुली से रोम तक पैदल चलकर जाता है। इस बीच उसने ज़रूर सोचा होगा कि उसने रोम की मंडली को तीन साल पहले क्या लिखा था, “मैं कई सालों से तुम्हारे पास आने के लिए तरस” रहा हूँ। (रोमि. 15:23) लेकिन उसने कभी सोचा नहीं था कि वह एक कैदी बनकर उनसे मिलेगा। तो जब उसने देखा कि रोम के भाई उससे मिलने के लिए रास्ते में इंतज़ार कर रहे हैं, तो उसे कितनी खुशी हुई होगी। बाइबल बताती है, “भाइयों को देखते ही पौलुस ने परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी।” (प्रेषि. 28:15) पौलुस ने परमेश्‍वर को धन्यवाद क्यों दिया? क्योंकि वह साफ देख सकता था कि यहोवा कैसे भाई-बहनों के ज़रिए उसकी मदद कर रहा है।

पैराग्राफ 19 देखें

19. पहला पतरस 4:10 के मुताबिक यहोवा कैसे हमारे ज़रिए भाई-बहनों की मदद करता है?

19 हम क्या कर सकते हैं?  क्या आपकी मंडली में कोई भाई या बहन बीमारी या किसी और समस्या की वजह से दुखी और परेशान है? या क्या आपकी मंडली में कोई अपने की मौत का गम सह रहा है? अगर आपको ऐसे किसी भाई या बहन के बारे में पता चलता है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि आप उसकी हिम्मत बँधाने के लिए उससे कोई अच्छी बात कह सकें या उसके लिए कुछ कर सकें। जब आप ऐसा करेंगे, तो हो सकता है उसके दुखी मन को दिलासा मिल जाए या उसकी कोई ज़रूरत पूरी हो जाए। (1 पतरस 4:10 पढ़िए।) * उस भाई या बहन को एक बार फिर यकीन हो जाएगा कि जैसा यहोवा ने वादा किया है, ‘वह उसे कभी नहीं छोड़ेगा, न कभी त्यागेगा।’ वाकई, इस तरह भाई-बहनों की मदद करने से हमें कितनी खुशी मिलती है!

20. हम क्यों पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं कि “यहोवा मेरा मददगार है”?

20 पौलुस और उसके साथियों की तरह हमारी ज़िंदगी में भी मुसीबतों का तूफान आ सकता है। लेकिन हम हिम्मत रख सकते हैं क्योंकि यहोवा हमारे साथ है। वह यीशु और स्वर्गदूतों के ज़रिए हमारी मदद करता है। अपना मकसद पूरा करने के लिए वह दुनियावी अधिकारियों के ज़रिए भी हमारी मदद करता है। और जैसा हमने खुद अनुभव किया है, वह पवित्र शक्‍ति के ज़रिए भाई-बहनों के दिल में यह इच्छा पैदा कर सकता है कि वे हमारी मदद करें। इसलिए हम पौलुस की तरह पूरे यकीन के साथ कह सकते हैं, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा। इंसान मेरा क्या कर सकता है?”​—इब्रा. 13:6.

गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा

^ पैरा. 5 इस लेख में बताया जाएगा कि जब प्रेषित पौलुस के सामने बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें आयीं, तो यहोवा ने कैसे तीन तरीकों से उसकी मदद की। इस बारे में गौर करने से हमारा भरोसा बढ़ेगा कि जब हमारी ज़िंदगी में ऐसी मुश्‍किलें आएँगी, तो यहोवा हमारी भी मदद करेगा।

^ पैरा. 16 अरिस्तरखुस और लूका पहले भी पौलुस के साथ सफर कर चुके थे। इन भरोसेमंद भाइयों ने तब भी उसका साथ दिया जब वह रोम में कैद था।​—प्रेषि. 16:10-12; 20:4; कुलु. 4:10, 14.