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अध्ययन लेख 47

क्या आप अपने अंदर सुधार करते रहेंगे?

क्या आप अपने अंदर सुधार करते रहेंगे?

“अब आखिर में भाइयो, मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम खुशी मनाते रहो, सुधार करते रहो।”​—2 कुरिं. 13:11.

गीत 54 “राह यही है!”

लेख की एक झलक *

1. मत्ती 7:13, 14 के मुताबिक हम किस रास्ते पर चल रहे हैं?

हम सभी मसीही यहोवा की सेवा करने में बहुत मेहनत करते हैं। हम यह इसलिए करते हैं क्योंकि हम नयी दुनिया में यहोवा की हुकूमत के अधीन जीना चाहते हैं। हर दिन हम उस रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं जो जीवन की ओर ले जाता है। लेकिन वह एक तंग रास्ता है और उस पर चलना हमेशा आसान नहीं होता, ठीक जैसे यीशु ने बताया था। (मत्ती 7:13, 14 पढ़िए।) हम अपरिपूर्ण हैं, इसलिए हम उस रास्ते से भटक भी सकते हैं।​—गला. 6:1.

2. इस लेख में हम क्या सीखेंगे? (“ नम्र होने से हम तंग रास्ते पर चलते रहेंगे” नाम का बक्स भी पढ़ें।)

2 अगर हम तंग रास्ते से भटकना नहीं चाहते, तो ज़रूरत पड़ने पर हमें अपनी सोच सुधारनी होगी, अपना नज़रिया और तौर-तरीका बदलना होगा। प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे ‘सुधार करते रहें।’ (2 कुरिं. 13:11) आज हमें भी यह सलाह माननी चाहिए। इस लेख में हम सीखेंगे कि बाइबल पढ़ने से हम कैसे खुद अपनी सोच सुधार सकते हैं और प्रौढ़ भाई-बहनों की सलाह मानने से कैसे हम तंग रास्ते पर चलते रह सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि संगठन से मिलनेवाले निर्देशों को मानना हमारे लिए क्यों मुश्‍किल हो सकता है। इस लेख में हम यह भी सीखेंगे कि नम्र रहने से कैसे हम अपने अंदर बदलाव कर पाएँगे और खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करते रह पाएँगे।

परमेश्‍वर का वचन पढ़कर सुधार कीजिए

3. परमेश्‍वर का वचन हमें क्या एहसास करा सकता है?

3 हम खुद अपनी सोच और अपनी भावनाओं की सही-सही जाँच नहीं कर सकते। वह इसलिए कि हमारा दिल हमें धोखा दे सकता है और हमें गलत राह पर ले जा सकता है। (यिर्म. 17:9) हम बड़ी आसानी से ‘झूठी दलीलें’ देकर खुद को धोखा दे सकते हैं कि हमें सुधार करने की ज़रूरत नहीं है। (याकू. 1:22) इसलिए हमें खुद की जाँच करने के लिए परमेश्‍वर का वचन इस्तेमाल करना चाहिए। बाइबल हमें एहसास करा सकती है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं, हमारे दिल की गहराइयों में कैसे विचार छिपे हैं और हमारे इरादे क्या हैं। (इब्रा. 4:12, 13) यह एक तरह से एक्स-रे मशीन जैसी है जो हमें दिखा देती है कि हमारे शरीर के अंदर के अंग किस हालत में हैं। लेकिन बाइबल से और अगुवाई करनेवाले भाइयों से हमें जो सलाह मिलती है, उसका फायदा हमें तभी होगा जब हम नम्र होंगे।

4. किस बात से पता चलता है कि राजा शाऊल घमंडी हो गया था?

4 राजा शाऊल का उदाहरण दिखाता है कि अगर एक व्यक्‍ति नम्र नहीं है, तो क्या हो सकता है। शाऊल इतना घमंडी हो गया कि वह मन-ही-मन मानने को तैयार नहीं था कि उसकी सोच गलत है। (भज. 36:1, 2; हब. 2:4) यह बात तब सामने आयी जब यहोवा ने उसे साफ-साफ बताया कि अमालेकियों को हराने के बाद उसे क्या करना है। पर शाऊल ने यहोवा की आज्ञा तोड़ दी और जब भविष्यवक्‍ता शमूएल ने उससे इस बारे में बात की, तो उसने अपनी गलती नहीं मानी। उसकी बातों से साफ पता चल रहा था कि यहोवा की आज्ञा तोड़ने का उसे कोई अफसोस नहीं था। उलटा उसने दोष लोगों पर लगाया। (1 शमू. 15:13-24) इससे पहले भी एक बार शाऊल ने यहोवा की बात नहीं मानी थी। (1 शमू. 13:10-14) कुछ समय बाद शाऊल इतना ढीठ हो गया कि वह बदलने को तैयार नहीं था। इसलिए यहोवा ने उसे कड़ी फटकार लगायी और उसे ठुकरा दिया।

5. शाऊल के उदाहरण से हमें क्या सबक मिलता है?

5 हम शाऊल की तरह नहीं बनना चाहते, इसलिए हमें खुद से ये सवाल करने चाहिए, ‘जब मैं परमेश्‍वर के वचन से कोई सलाह पढ़ता हूँ, तो क्या मैं सोचता हूँ कि यह सलाह मेरे लिए नहीं है? क्या मुझे लगता है कि मैं जो कर रहा हूँ, वह इतना बुरा नहीं है? क्या मैं अपनी गलती के लिए किसी और पर दोष लगाता हूँ?’ अगर हम ऐसा करते हैं, तो हमें अपनी सोच बदलनी होगी। नहीं तो हममें इतना घमंड आ सकता है कि यहोवा हमें अपना दोस्त मानने से इनकार कर देगा और हमें ठुकरा देगा।​—याकू. 4:6.

6. राजा दाविद शाऊल से किस तरह अलग था?

6 राजा दाविद शाऊल से कितना अलग था। उसे “यहोवा के कानून” से लगाव था। (भज. 1:1-3) दाविद जानता था कि यहोवा नम्र लोगों को बचाता है, लेकिन जो मगरूर हैं उनके खिलाफ वह कदम उठाता है। (2 शमू. 22:28) इसलिए दाविद ने नम्र होकर यहोवा के कानून के मुताबिक अपनी सोच बदली। उसने लिखा, “मैं यहोवा की तारीफ करूँगा जिसने मुझे सलाह दी है। रात के वक्‍त भी मेरे मन की गहराई में छिपे विचार मुझे सुधारते हैं।”​—भज. 16:7.

परमेश्‍वर का वचन

जब हम सही राह से भटक रहे होते हैं, तो परमेश्‍वर का वचन हमें खबरदार करता है। नम्र होने से हम अपनी गलत सोच सुधारेंगे (पैराग्राफ 7 देखें)

7. अगर हम नम्र होंगे, तो क्या करेंगे?

7 हम अकसर जिस तरह की बातें सोचते हैं, उसी तरह के काम भी करते हैं। अगर हम नम्र होंगे, तो हम परमेश्‍वर के वचन से जो पढ़ते हैं उसके मुताबिक अपनी गलत सोच सुधारते रहेंगे ताकि हम कोई गलत काम न कर बैठें। परमेश्‍वर के वचन की आवाज़ मानो हमें बताती रहती है, “राह यही है, इसी पर चल।” और जब कभी हम उस राह से दाएँ या बाएँ भटकने लगते हैं, तो यह हमें खबरदार भी करती है। (यशा. 30:21) जब यहोवा हमें अपने वचन के ज़रिए सलाह देता है, हमें तभी उसकी बात मान लेनी चाहिए। इससे कई फायदे होंगे। (यशा. 48:17) एक फायदा यह है कि हमारे सामने ऐसी नौबत नहीं आएगी कि कोई आकर हमें सुधार करने के लिए सलाह दे और हमें शर्मिंदा होना पड़े। हमें एहसास होगा कि यहोवा हमें प्यार से समझाता है ठीक जैसे एक पिता अपने बच्चे को समझाता है। तब हम यहोवा के और भी करीब आएँगे।​—इब्रा. 12:7.

8. याकूब 1:22-25 के मुताबिक परमेश्‍वर का वचन किस मायने में एक आईने की तरह है?

8 परमेश्‍वर का वचन एक आईने की तरह भी है। (याकूब 1:22-25 पढ़िए।) हममें से ज़्यादातर लोग सुबह घर से निकलने से पहले खुद को आईने में देखते हैं। तब हमें पता चलता है कि क्या हमें अपना चेहरा या बाल ठीक करना है। उसी तरह जब हम हर दिन बाइबल पढ़ते हैं, तो यह हमें एहसास दिलाती है कि हमें अपनी सोच में कुछ सुधार करना है। कई भाई-बहन सुबह घर से निकलने से पहले रोज़ाना बाइबल वचन पढ़ते हैं। फिर वे परमेश्‍वर के वचन से मिलनेवाली सलाह पर गहराई से सोचते हैं और पूरा दिन उस सलाह को मानने की कोशिश करते हैं। रोज़ाना वचन पढ़ने के अलावा हमें हर दिन बाइबल का अध्ययन करना चाहिए और उस पर मनन भी करना चाहिए। शायद यह एक छोटी-सी बात लगे, लेकिन तंग रास्ते पर चलते रहने के लिए यह बहुत ज़रूरी है।

प्रौढ़ भाई-बहनों की बात मानिए

प्रौढ़ मसीही

अगर एक प्रौढ़ मसीही हमें प्यार से समझाए कि हम भटक रहे हैं, तो हमें उसका शुक्रगुज़ार होना चाहिए (पैराग्राफ 9 देखें)

9. एक प्रौढ़ भाई या बहन शायद क्यों आपको सुधार करने के लिए सलाह दे?

9 क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपके कदम सही राह से भटकने लगे थे और आप यहोवा से दूर जाने लगे थे? (भज. 73:2, 3) उस वक्‍त अगर किसी प्रौढ़ भाई या बहन ने हिम्मत करके आपको बताया कि आप गलत राह पर निकल पड़े हैं और आपकी मदद करने की कोशिश की, तो क्या आपने उसकी सलाह मानी? अगर हाँ, तो आपने बहुत अच्छा किया। आप उस भाई या बहन के शुक्रगुज़ार होंगे कि उसने आपको सलाह दी ताकि आप सुधार कर पाए।​—नीति. 1:5.

10. अगर आपका दोस्त आपको सलाह दे, तो आपको क्या करना चाहिए?

10 भजन के एक लेखक ने कहा, “अगर नेक जन मुझे मारे, तो यह उसका अटल प्यार होगा।” (भज. 141:5) उसके इन शब्दों का क्या मतलब है? इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। मान लीजिए, आप एक भीड़-भाड़वाली सड़क पार करने के लिए खड़े हैं। लेकिन आपका ध्यान आपके फोन पर है। आप बिना देखे सड़क पार करने लगते हैं कि तभी आपका दोस्त आपका हाथ पकड़कर आपको ज़ोर से पीछे खींच लेता है। उसने आपको इतना कसकर पकड़ा कि आपके हाथ में नील पड़ गया। लेकिन उसने जो तुरंत कदम उठाया, उससे आपकी जान बच गयी। आप गाड़ी के नीचे आने से बच गए! भले ही आपके हाथ में कई-कई दिन तक दर्द रहे, लेकिन क्या आप अपने दोस्त से नाराज़ रहेंगे कि उसने आपका हाथ कसकर पकड़ा? बिलकुल नहीं! आप उसका एहसान मानेंगे कि उसने आपकी जान बचायी। उसी तरह अगर कोई दोस्त आपसे कहता है कि आपकी बातें या आपके तौर-तरीके परमेश्‍वर के नेक स्तरों के मुताबिक नहीं हैं, तो शायद आपको बुरा लगे। लेकिन उससे नाराज़ मत रहिए कि उसने आपको सलाह दी और न ही उसकी बात का बुरा मानिए। यह मूर्खता होगी। (सभो. 7:9) इसके बजाय अपने दोस्त का एहसान मानिए कि उसने हिम्मत करके आपको समझाया।

11. एक व्यक्‍ति शायद किस वजह से अपने दोस्त की अच्छी सलाह ठुकरा दे?

11 लेकिन कोई व्यक्‍ति अपने दोस्त की सलाह मानने से क्यों इनकार करेगा? घमंड की वजह से। जिनमें घमंड होता है, वे चाहते हैं कि उन्हें ‘वही बातें बतायी जाएँ जो वे सुनना चाहते हैं।’ वे ‘सच्चाई से कान फेर लेते हैं।’ (2 तीमु. 4:3, 4, फु.) ऐसे लोगों को लगता है कि वे दूसरों से बढ़कर हैं या उनमें ज़्यादा समझ है, इसलिए उन्हें किसी की सलाह की ज़रूरत नहीं। लेकिन प्रेषित पौलुस ने लिखा, “अगर कोई कुछ न होने पर भी खुद को कुछ समझता है, तो वह अपने आप को धोखा दे रहा है।” (गला. 6:3) गौर कीजिए कि राजा सुलैमान ने इस बारे में क्या लिखा। उसने कहा, “गरीब मगर बुद्धिमान लड़का, उस बूढ़े और मूर्ख राजा से कहीं अच्छा है, जो अब किसी की सलाह नहीं मानता।”​—सभो. 4:13.

12. (क) जब प्रेषित पतरस को फटकारा गया जैसे गलातियों 2:11-14 में बताया गया है, तो उसने क्या किया? (ख) हम उससे क्या सीख सकते हैं?

12 ध्यान दीजिए कि जब प्रेषित पौलुस ने सबके सामने प्रेषित पतरस को फटकारा, तो पतरस ने क्या किया। (गलातियों 2:11-14 पढ़िए।) पतरस यह सोचकर पौलुस से नाराज़ हो सकता था कि उसने सबके सामने मुझसे जिस तरह बात की वह मुझे अच्छा नहीं लगा। लेकिन वह जानता था कि पौलुस की सलाह मानने में ही बुद्धिमानी है, इसलिए उसने वह सलाह मानी और उससे नाराज़ नहीं रहा। बाद में उसने पौलुस को अपना ‘प्यारा भाई’ भी कहा।​—2 पत. 3:15.

13. किसी को सलाह देते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

13 अगर आपको कभी लगता है कि आपके दोस्त का रवैया सही नहीं है और आपको उसे सलाह देनी है, तो आपको क्या बातें ध्यान में रखनी चाहिए? अपने दोस्त से बात करने से पहले खुद से पूछिए, ‘क्या मैं दूसरों से ज़्यादा नेक बनने की कोशिश कर रहा हूँ?’ (सभो. 7:16) जो व्यक्‍ति खुद को दूसरों से ज़्यादा नेक समझता है, वह यहोवा के स्तरों के मुताबिक नहीं बल्कि उसे जो सही लगता है उसके हिसाब से दूसरों को गलत ठहराता है और उन्हें कठोरता से सलाह देता है। बहुत सोचने के बाद भी अगर आपको लगता है कि आपको अपने दोस्त को सलाह देनी ही है, तो साफ बताइए कि उसे किस बात में सुधार करना है। उससे कुछ ऐसे सवाल कीजिए जिससे वह समझ पाए कि उसने जो किया वह गलत है। ध्यान रहे कि आप जो सलाह देंगे, वह बाइबल से होनी चाहिए ताकि आपका दोस्त समझ पाए कि उसने यहोवा की नज़र में गलत किया है। आखिरकार उसे यहोवा को ही लेखा देना है न कि आपको। (रोमि. 14:10) अपनी समझ का सहारा लेने के बजाय परमेश्‍वर के वचन में दी गयी बुद्धि-भरी सलाह दीजिए। और यीशु की तरह प्यार से समझाइए न कि कठोरता से। (नीति. 3:5; मत्ती 12:20) क्यों? क्योंकि यहोवा भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा हम दूसरों के साथ करते हैं।​—याकू. 2:13.

संगठन के निर्देशों को मानिए

परमेश्‍वर का संगठन

संगठन हमें वीडियो, प्रकाशनों और सभाओं के ज़रिए सिखाता है कि हम बाइबल में दी गयी सलाह कैसे मान सकते हैं। कभी-कभी शासी निकाय संगठन के इंतज़ामों में कुछ फेरबदल करता है (पैराग्राफ 14 देखें)

14. परमेश्‍वर का संगठन हमें किस तरह सिखाता है?

14 यहोवा अपने संगठन के ज़रिए हमें राह दिखाता है ताकि हम जीवन के मार्ग पर चलते रहें। यह संगठन हमें कई सारे वीडियो, प्रकाशनों और सभाओं के ज़रिए सिखाता है कि हम परमेश्‍वर के वचन में दी गयी सलाह कैसे मान सकते हैं। संगठन हमें जो भी सिखाता है वह बाइबल से होता है। प्रचार काम की ही बात लीजिए। इस मामले में शासी निकाय जो भी फैसला करता है वह पवित्र शक्‍ति के निर्देश के मुताबिक होता है ताकि यह काम अच्छी तरह हो सके। फिर भी शासी निकाय समय-समय पर अपने फैसलों पर दोबारा गौर करता है ताकि देखे कि क्या कुछ बदलाव करने की ज़रूरत है। “इस दुनिया का दृश्‍य बदल रहा है” और परमेश्‍वर के संगठन को हालात के मुताबिक अपने फैसलों में कुछ फेरबदल करना होता है।​—1 कुरिं. 7:31.

15. कुछ प्रचारकों के सामने कैसी मुश्‍किलें आयी हैं?

15 जब संगठन हमें बाइबल की किसी शिक्षा के बारे में नयी समझ देता है या चालचलन के मामले में कोई हिदायत देता है, तो हम उसे तुरंत मान लेते हैं। लेकिन जब संगठन कोई ऐसा बदलाव करता है जिसे मानने में हमें थोड़ी परेशानी होती है, तब हम क्या करते हैं? मिसाल के लिए, हाल ही में शासी निकाय ने राज-घरों के इस्तेमाल के बारे में कुछ नयी हिदायतें दीं क्योंकि राज-घर बनाना और उनकी मरम्मत करना बहुत महँगा हो गया है। इसे देखते हुए शासी निकाय ने हिदायत दी कि ज़्यादा-से-ज़्यादा मंडलियाँ एक ही राज-घर में सभाएँ चलाएँ। इसलिए कुछ मंडलियों को मिला दिया गया और कुछ राज-घर बेच दिए गए। जो पैसा मिला उससे उन जगहों में राज-घर बनाए जा रहे हैं जहाँ बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। अगर आपके यहाँ भी राज-घर बेच दिए गए और मंडलियों को मिला दिया गया है, तो नए हालात के मुताबिक ढलने में आपको थोड़ी मुश्‍किल होती होगी। कुछ प्रचारकों को सभाओं के लिए अब बहुत दूर तक सफर करना पड़ता है। कुछ ऐसे प्रचारक भी हैं जिन्होंने एक राज-घर को बनाने या उसकी मरम्मत करने में काफी मेहनत की थी। वे अब शायद सोचें कि उस राज-घर को क्यों बेचा जा रहा है और उन्होंने जो समय लगाया, जो मेहनत की सब बेकार हो गया है। फिर भी जो नयी हिदायत दी गयी है उसे वे मान रहे हैं, इसलिए वे तारीफ के लायक हैं।

16. कुलुस्सियों 3:23, 24 में दी गयी सलाह मानने से हम क्यों खुश रहेंगे?

16 हमें याद रखना है कि हम जो भी मेहनत करते हैं, वह यहोवा के लिए करते हैं और संगठन जो भी हिदायत देता है वह यहोवा की तरफ से है। तब हम यह सोचकर निराश नहीं होंगे कि हमने बेकार में मेहनत की थी बल्कि हमेशा खुश रहेंगे। (कुलुस्सियों 3:23, 24 पढ़िए।) जब राजा दाविद ने मंदिर बनाने के लिए पैसे दान में दिए, तो उसने कितनी सही बात कही, “मैं क्या हूँ, मेरी प्रजा क्या है कि हम इस तरह अपनी इच्छा से तुझे कुछ भेंट करें? क्योंकि सबकुछ तुझी से मिलता है और हमने तुझे जो भी दिया वह तेरा ही दिया हुआ है।” (1 इति. 29:14) हम भी जब दान करते हैं, तो हम यहोवा को वही दे रहे होते हैं जो उसने हमें दिया है। फिर भी यहोवा के काम में हम जो समय और साधन लगाते हैं, जो मेहनत करते हैं उसकी यहोवा बहुत कदर करता है।​—2 कुरिं. 9:7.

तंग रास्ते पर चलते रहिए

17. अगर आपको कुछ सुधार करने की ज़रूरत महसूस होती है, तो आपको क्यों निराश नहीं होना चाहिए?

17 हम सबको यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलना चाहिए। तब हम जीवन के तंग रास्ते से कभी नहीं भटकेंगे। (1 पत. 2:21) अगर आपको कुछ सुधार करने की ज़रूरत महसूस होती है, तो यह सोचकर निराश मत होइए कि आपमें अब भी कमियाँ हैं। आप यहोवा के निर्देशों को अच्छी तरह मानना चाहते हैं, तभी तो आप सुधार करना चाहते हैं। याद रखिए, यहोवा जानता है कि हम अपरिपूर्ण हैं। वह यह उम्मीद नहीं करता कि हम यीशु के नक्शे-कदम पर चलने में कभी कोई गलती नहीं करेंगे।

18. नयी दुनिया में जीवन पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

18 आइए हम सब अपनी नज़र भविष्य पर लगाए रखें और आज हमें अपनी सोच, अपने नज़रिए और तौर-तरीके में जो भी बदलाव करना पड़े, वह खुशी से करते रहें। (नीति. 4:25; लूका 9:62) हम नम्र बने रहें, ‘खुशी मनाते रहें और अपने अंदर सुधार करते रहें।’ (2 कुरिं. 13:11) तब “प्यार और शांति का परमेश्‍वर [हमारे] साथ रहेगा।” वह आज भी खुश रहने में हमारी मदद करेगा और नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी देगा।

गीत 34 चलते रहें वफा की राह

^ पैरा. 5 कुछ लोगों के लिए अपनी सोच सुधारना, अपना नज़रिया और तौर-तरीके बदलना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। इस लेख में बताया जाएगा कि हम सबको सुधार क्यों करना चाहिए और हम कैसे यह खुशी-खुशी कर सकते हैं।

^ पैरा. 76 तसवीर के बारे में: एक भाई दायीं तरफ बैठे भाई को, जो उससे उम्र में बड़ा है, बता रहा है कि उसने एक गलत फैसला किया और इसका क्या अंजाम हुआ। दूसरा भाई बीच में टोके बिना सुन रहा है और सोच रहा है कि उसे कुछ सलाह देना सही रहेगा कि नहीं।