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अध्ययन लेख 49

जिनकी मौत हो गयी है, वे ज़रूर ज़िंदा होंगे

जिनकी मौत हो गयी है, वे ज़रूर ज़िंदा होंगे

‘मैं परमेश्‍वर से यह आशा रखता हूँ कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा।’​—प्रेषि. 24:15.

गीत 151 वह उन्हें पुकारेगा

लेख की एक झलक *

1-2. मसीहियों के पास कौन-सी अनोखी आशा है?

लोग ज़िंदगी में कई चीज़ों की आशा रखते हैं। कोई चाहता है कि उसे अच्छा जीवन-साथी मिले, तो किसी का अरमान होता है कि उनके बच्चे बड़े होकर अच्छे इंसान बनें। और अगर किसी को गंभीर बीमारी है, तो वह चाहता है कि वह जल्द-से-जल्द ठीक हो जाए। हम मसीही भी इन बातों की आशा रखते हैं। मगर इसके अलावा हम यह आशा भी रखते हैं कि हम नयी दुनिया में हमेशा-हमेशा तक जीएँगे। और हमारे अपने जो नहीं रहे, वे ज़िंदा हो जाएँगे और वे भी हमारे साथ हमेशा-हमेशा तक जीएँगे।

2 प्रेषित पौलुस ने कहा था, “मैं . . . परमेश्‍वर से यह आशा रखता हूँ कि अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।” (प्रेषि. 24:15) पौलुस के ज़माने से बहुत समय पहले कुलपिता अय्यूब ने भी यह बात कही थी कि जिनकी मौत हो गयी है, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा। उसे पूरा यकीन था कि अगर उसकी मौत हो गयी, तो परमेश्‍वर उसे याद रखेगा और फिर से ज़िंदा कर देगा।​—अय्यू. 14:7-10, 12-15.

3. पहला कुरिंथियों अध्याय 15 पर गौर करने से हमें क्या फायदा होगा?

3 ‘मरे हुए ज़िंदा होंगे,’ यह शिक्षा बाइबल की “बुनियादी शिक्षाओं” में से एक है। (इब्रा. 6:1, 2) इस शिक्षा के बारे में पौलुस ने 1 कुरिंथियों 15 में बहुत-सी बातें समझायीं। उन्हें पढ़कर पहली सदी के मसीहियों का विश्‍वास मज़बूत हुआ होगा। शायद आप भी इस शिक्षा को बरसों से मानते होंगे। फिर भी 1 कुरिंथियों 15 में लिखी बातों से आपका विश्‍वास और मज़बूत होगा।

4. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हमारे अपने ज़िंदा होंगे?

4 जब यीशु की मौत हुई, तो उसके बाद उसे ज़िंदा किया गया था। इससे हमें भरोसा होता है कि हमारे जो अपने अब नहीं रहे, वे भी एक दिन ज़िंदा हो जाएँगे। कुरिंथ के मसीहियों को जब पौलुस ने शुरू में “खुशखबरी” सुनायी थी, तो उसने यह भी बताया कि यीशु को ज़िंदा किया गया है। (1 कुरिं. 15:1, 2) उसने यह तक कहा कि अगर एक मसीही इस बात को नहीं मानता, तो उसका विश्‍वास बेकार है। (1 कुरिं. 15:17) यीशु को वाकई ज़िंदा किया गया, इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि और लोगों को भी ज़िंदा किया जाएगा।

5-6. (क) 1 कुरिंथियों 15:3, 4 में कौन-सी तीन सच्चाइयाँ बतायी गयी हैं? (ख) इससे हमें किस बात का भरोसा होता है?

5 पहला कुरिंथियों अध्याय 15 की शुरूआत में पौलुस ने ये तीन अहम सच्चाइयाँ बतायीं: (1) “मसीह हमारे पापों के लिए मरा।” (2) उसे “दफनाया गया” और (3) “जैसा शास्त्र में लिखा था उसे तीसरे दिन ज़िंदा किया गया।”​—1 कुरिंथियों 15:3, 4 पढ़िए।

6 यशायाह ने बहुत पहले भविष्यवाणी की कि मसीहा को “दुनिया से मिटा दिया” जाएगा और “उसे दुष्टों के साथ कब्र में दफनाया” जाएगा। यशायाह ने एक और बात कही कि मसीहा “बहुतों का पाप” उठा ले जाएगा। यीशु अपनी जान की फिरौती देकर हम सबके पाप उठा ले गया। (यशा. 53:8, 9, 12; मत्ती 20:28; रोमि. 5:8) तो पौलुस ने जो तीन सच्चाइयाँ बतायीं यानी ये कि यीशु की मौत हुई, उसे दफनाया गया और ज़िंदा किया गया, इससे हमें किस बात का भरोसा होता है? यही कि हमें पाप और मौत से छुड़ाया जाएगा और हमारे जो अपने अब नहीं रहे उनसे हम दोबारा मिल पाएँगे। हमारी यह आशा पक्की है!

कई लोगों की गवाही

7-8. किन सबूतों से पता चलता है कि यीशु को वाकई ज़िंदा किया गया था?

7 हमें इस बात का पूरा यकीन होना चाहिए कि यीशु को वाकई ज़िंदा किया गया था। तभी हमें यकीन होगा कि नयी दुनिया में उन लोगों को ज़िंदा किया जाएगा जिनकी मौत हो गयी है। आइए कुछ सबूतों पर गौर करें जिनसे पता चलता है कि यहोवा ने यीशु को वाकई में ज़िंदा किया था।

8 पौलुस बताता है कि जब यीशु को ज़िंदा किया गया, तो उसके बाद कई लोगों ने उसे देखा था और यह बात दूसरों को भी बतायी थी। (1 कुरिं. 15:5-7) पौलुस ने जिन लोगों के नाम बताए उनमें सबसे पहला था कैफा यानी प्रेषित पतरस। दूसरे चेलों ने भी बताया कि पतरस ने यीशु को देखा था। (लूका 24:33, 34) पौलुस ने यह भी कहा कि प्रेषितों ने यीशु को देखा था। इसके बाद यीशु “एक ही वक्‍त पर 500 से ज़्यादा भाइयों के सामने प्रकट हुआ।” मत्ती 28:16-20 बताता है कि शायद वह गलील में उनके सामने प्रकट हुआ था। यीशु ‘याकूब के सामने भी प्रकट हुआ।’ यह याकूब यीशु का सौतेला भाई था जो पहले उसे मसीहा नहीं मानता था। (यूह. 7:5) उसे ज़िंदा देखने के बाद वह उस पर विश्‍वास करने लगा। गौर कीजिए कि पौलुस ने कुरिंथियों के नाम यह चिट्ठी ईसवी सन्‌ 55 के आस-पास लिखी थी। उस वक्‍त इनमें से कई गवाह ज़िंदा थे। इसलिए अगर किसी को यीशु के ज़िंदा होने पर शक होता, तो वह इन गवाहों से बात करके खुद पता कर सकता था।

9. प्रेषितों 9:3-5 के मुताबिक पौलुस भी कैसे इस बात का सबूत दे सका कि यीशु ज़िंदा हो गया था?

9 पौलुस बताता है कि यीशु उसके सामने भी प्रकट हुआ। (1 कुरिं. 15:8) जब पौलुस, जो शाऊल कहलाता था, दमिश्‍क जा रहा था, तो उसने रास्ते में यीशु की आवाज़ सुनी। उसने एक दर्शन में यीशु को देखा जो तब तक स्वर्ग जा चुका था। (प्रेषितों 9:3-5 पढ़िए।) पौलुस ने जो देखा वह भी इस बात का सबूत था कि यीशु सच में ज़िंदा हो गया था।​—प्रेषि. 26:12-15.

10. जब पौलुस को यकीन हो गया कि यीशु ज़िंदा हो गया है, तो उसने क्या किया?

10 पौलुस ने जो देखा और बताया उस पर कुछ लोगों ने ज़रूर ध्यान दिया होगा। वह इसलिए कि पौलुस पहले मसीहियों पर ज़ुल्म करता था। लेकिन जब उसे यकीन हो गया कि यीशु सच में ज़िंदा हो गया है, तो उसने दूसरों को भी इस बारे में प्रचार किया। उसने कड़ी मेहनत की ताकि लोगों को भी इस सच्चाई पर यकीन हो जाए। उसने कई दुख झेले, दुश्‍मनों के हाथों मार खायी, जेल की सज़ा काटी, जहाज़ टूटने पर कई तकलीफें झेली। फिर भी वह रुका नहीं और दूर-दूर तक यह सच्चाई सुनाता रहा कि यीशु की मौत हुई थी और उसे ज़िंदा किया गया। (1 कुरिं. 15:9-11; 2 कुरिं. 11:23-27) पौलुस को इस सच्चाई पर इतना यकीन था कि वह इसे सुनाने के लिए अपनी जान तक देने को तैयार था। शुरू के इन मसीहियों की गवाही से आपको ज़रूर यकीन हो गया होगा कि यीशु को वाकई ज़िंदा किया गया था। और इस बात से आपका विश्‍वास भी मज़बूत हुआ होगा कि नयी दुनिया में लोग ज़िंदा होंगे।

झूठी धारणाओं को गलत साबित किया

11. कुरिंथ के कुछ मसीही गलत धारणाएँ क्यों रखने लगे थे?

11 कुरिंथ यूनानी लोगों का शहर था। वहाँ के कुछ मसीही मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में गलत धारणाएँ रखते थे। और कुछ तो कहते थे कि “मरे हुओं को ज़िंदा नहीं किया जाएगा।” (1 कुरिं. 15:12) शायद वे कुछ दार्शनिकों या बड़े-बड़े ज्ञानियों की बातों में आ गए थे। एक बार जब पौलुस ने यूनानियों के एक और शहर एथेन्स में इस बात का प्रचार किया था कि यीशु ज़िंदा हो गया है, तो वहाँ कुछ दार्शनिकों ने उसका मज़ाक उड़ाया था। कुरिंथ के कुछ भाई-बहन भी शायद उन दार्शनिकों की तरह सोचने लगे थे। (प्रेषि. 17:18, 31, 32) और कुछ तो सोचते थे कि मरे हुए लोग सचमुच ज़िंदा नहीं होंगे बल्कि इस शिक्षा का कुछ और ही मतलब है। उनका कहना था कि हम इंसान पापी होने की वजह से “मुरदा” हालत में होते हैं, लेकिन जब हम मसीही बने तो एक तरह से हम “ज़िंदा” हो गए क्योंकि हमारे पाप माफ कर दिए गए और हमने एक नयी ज़िंदगी शुरू की। कारण चाहे जो भी हो, जो लोग इस शिक्षा को नहीं मान रहे थे, उनका विश्‍वास बेकार था। अगर यहोवा ने यीशु को ज़िंदा नहीं किया, तो इसका मतलब फिरौती की कीमत नहीं चुकायी गयी और हमें पापों की माफी नहीं मिली है। जो लोग इस बात को नहीं मानते थे कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा, उन्हें भविष्य के लिए कोई आशा नहीं थी।​—1 कुरिं. 15:13-19; इब्रा. 9:12, 14.

12. पहला पतरस 3:18, 22 के मुताबिक जिन लोगों को यीशु से पहले ज़िंदा किया गया था, उनमें और यीशु में क्या फर्क था?

12 पौलुस ने खुद यीशु को दर्शन में देखा था। इसलिए उसे पूरा यकीन था कि “मसीह को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है।” यीशु से पहले भी कुछ लोगों को ज़िंदा किया गया था, लेकिन फिर से उनकी मौत हो गयी थी। मगर जब यीशु को ज़िंदा किया गया, तो उसे एक अदृश्‍य शरीर दिया गया ताकि वह स्वर्ग में जी सके। यीशु से पहले किसी और को इस तरह का जीवन नहीं मिला था। वह पहला ऐसा इंसान था जो ज़िंदा होने के बाद स्वर्ग गया। इसीलिए पौलुस ने कहा कि “जो मौत की नींद सो गए हैं उनमें वह पहला फल है।”​—1 कुरिं. 15:20; प्रेषि. 26:23; 1 पतरस 3:18, 22 पढ़िए।

वे “ज़िंदा किए जाएँगे”

13. पौलुस ने आदम और यीशु में क्या फर्क बताया?

13 पौलुस ने बताया कि एक इंसान की मौत की वजह से करोड़ों लोगों को जीवन मिलता है। पौलुस कुछ दलीलें देकर समझाता है कि यह कैसे हो सकता है। वह बताता है कि आदम की वजह से इंसानों का क्या नुकसान हुआ और यीशु के बलिदान की वजह से उन्हें क्या आशीषें मिल सकती हैं। आदम के बारे में पौलुस ने लिखा, “एक इंसान के ज़रिए मौत आयी।” आदम के पाप की वजह से उस पर और उसकी संतानों पर मौत आयी। आज भी इंसान इसी वजह से मर जाते हैं। लेकिन जब यहोवा ने यीशु को ज़िंदा किया, तो इंसानों को एक अनोखी आशा मिली। इसलिए पौलुस ने कहा कि “एक इंसान के ज़रिए ही मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे।” उसने यह दलील दी कि “ठीक जैसे आदम की वजह से सभी मर रहे हैं, वैसे ही मसीह की बदौलत सभी ज़िंदा किए जाएँगे।”​—1 कुरिं. 15:21, 22.

14. क्या आदम को ज़िंदा किया जाएगा? समझाइए।

14 पौलुस ने कहा कि “आदम की वजह से सभी  मर रहे हैं।” इसका क्या मतलब है? आदम की वजह से सभी इंसान पापी और अपरिपूर्ण हो गए, इसलिए वे सब मर जाते हैं। (रोमि. 5:12) आदम एक परिपूर्ण इंसान था और उसने जानबूझकर परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ी थी। इसलिए उसे मसीह की फिरौती से फायदा नहीं मिलेगा। उसे ‘ज़िंदा नहीं किया जाएगा।’ आदम का जो हाल हुआ, वही उनका भी होगा जो जानबूझकर परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ते हैं। भविष्य में जब “इंसान का बेटा” न्याय करेगा, तो वह उन्हें ‘बकरी’ समान लोग कहेगा और उनका “हमेशा के लिए नाश” कर देगा। आदम की तरह उन्हें भी ज़िंदा नहीं किया जाएगा।​—मत्ती 25:31-33, 46; इब्रा. 5:9.

स्वर्ग में जीवन पानेवालों में यीशु सबसे पहला था (पैराग्राफ 15-16 देखें) *

15. जब पौलुस ने कहा कि “सभी ज़िंदा किए जाएँगे,” तो वह क्या कहना चाह रहा था?

15 पौलुस ने यह भी कहा, “मसीह की बदौलत सभी ज़िंदा किए जाएँगे।” (1 कुरिं. 15:22) ध्यान दीजिए कि पौलुस ने यह चिट्ठी कुरिंथ के अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखी थी, जिन्हें स्वर्ग में जीवन पाने की आशा थी। जब उसने कहा कि “सभी ज़िंदा किए जाएँगे,” तो वह यह कह रहा था कि अभिषिक्‍त मसीही भी ज़िंदा किए जाएँगे। उन्हें ‘मसीह यीशु के चेले होने के नाते पवित्र किया गया था और पवित्र जन होने के लिए बुलाया गया था।’ पौलुस ने अपनी चिट्ठी में बताया कि ‘मसीह के कुछ चेले मौत की नींद सो गए हैं।’ (1 कुरिं. 1:2; 15:18; 2 कुरिं. 5:17) उसने रोमियों के नाम चिट्ठी में लिखा कि जो लोग ‘यीशु के जैसी मौत मरकर उसके साथ एक हुए हैं, वे उसकी तरह ज़िंदा होकर भी उसके साथ एक होंगे।’ (रोमि. 6:3-5) जैसे यीशु को अदृश्‍य शरीर देकर स्वर्ग में ज़िंदा किया गया था, उसी तरह सभी अभिषिक्‍त जनों को अदृश्‍य शरीर देकर स्वर्ग में जीवन दिया जाएगा।

16. पौलुस ने यीशु को “पहला फल” क्यों कहा?

16 पौलुस ने लिखा, “जो मौत की नींद सो गए हैं उनमें [मसीह] पहला फल है।” पौलुस ने मसीह को “पहला फल” क्यों कहा? याद कीजिए, जब यीशु से पहले लाज़र और दूसरे लोगों को ज़िंदा किया गया था, तो उन्हें धरती पर ही जीवन दिया गया था। मगर यीशु वह पहला  इंसान था जिसे ज़िंदा करके अदृश्‍य शरीर दिया गया और जिसने स्वर्ग में हमेशा की ज़िंदगी पायी। यीशु फसल की कटाई के बाद मिलनेवाले उस पहले फल की तरह था जिसे इसराएली परमेश्‍वर को अर्पित करते थे। यीशु को “पहला फल” कहने का यह मतलब भी है कि कुछ और लोगों को भी ज़िंदा करके स्वर्ग में जीवन दिया जाता। समय आने पर प्रेषितों और दूसरे अभिषिक्‍त चेलों को भी यीशु की तरह स्वर्ग में जीवन मिलता।

17. प्रेषितों और दूसरे अभिषिक्‍त मसीहियों को कब स्वर्ग में अपना इनाम मिला?

17 प्रेषितों और दूसरे अभिषिक्‍त मसीहियों को कब स्वर्ग में जीवन दिया गया? जब पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को चिट्ठी लिखी थी, तब तक ऐसा नहीं हुआ था क्योंकि पौलुस ने चिट्ठी में बताया कि ऐसा भविष्य में होगा। उसने कहा, “हर कोई एक सही क्रम में: पहले मसीह जो पहला फल है। इसके बाद  वे जो मसीह के हैं, उसकी मौजूदगी के दौरान  ज़िंदा किए जाएँगे।” (1 कुरिं. 15:23; 1 थिस्स. 4:15, 16) आज हम मसीह की “मौजूदगी” के समय में जी रहे हैं। प्रेषितों और दूसरे मसीहियों को उनकी मौत के सदियों बाद यानी मसीह की मौजूदगी के दौरान ज़िंदा किया गया। तभी वे ‘यीशु की तरह ज़िंदा होकर उसके साथ एक हुए’ और उन्हें स्वर्ग में अपना इनाम मिला।

आपकी आशा ज़रूर पूरी होगी

18. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि स्वर्ग में जीने की आशा रखनेवालों के अलावा और भी लोगों को ज़िंदा किया जाएगा? (ख) 1 कुरिंथियों 15:24-26 के मुताबिक स्वर्ग में क्या-क्या होगा?

18 मगर उन सभी वफादार मसीहियों का क्या होगा जिन्हें मसीह के साथ स्वर्ग में जीने की आशा नहीं है? अगर उनकी मौत हो गयी, तो उन्हें भी ज़िंदा किया जाएगा। यह हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि बाइबल बताती है कि पौलुस और दूसरे अभिषिक्‍त मसीहियों को ‘पहले  ज़िंदा किया जाएगा।’ (फिलि. 3:11) अगर इस समूह के लोगों को पहले ज़िंदा किया जाएगा, तो इसका मतलब है कि कुछ और लोग भी हैं जिन्हें बाद में ज़िंदा किया जाएगा। अय्यूब भी मानता था कि अगर उसकी मौत हो गयी, तो उसे भविष्य में ज़िंदा किया जाएगा। (अय्यू. 14:15) पहला कुरिंथियों 15:24-26 से पता चलता है कि जब यीशु सभी सरकारों, अधिकारों और ताकतों को मिटाएगा, तब उसके साथ अभिषिक्‍त मसीही भी होंगे। (पढ़िए।) उस वक्‍त ‘आखिरी दुश्‍मन मौत’ को भी मिटा दिया जाएगा। यह बात तो साफ है कि जिन्हें स्वर्ग में जीवन दिया जाएगा, वे आदम के पाप की वजह से कभी नहीं मरेंगे।

19. जिन्हें स्वर्ग जाने की आशा नहीं है, वे किस बात का यकीन रख सकते हैं?

19 जिन लोगों को स्वर्ग जाने की आशा नहीं है, वे इस बात का यकीन रख सकते हैं कि अगर उनकी मौत हो गयी, तो नयी दुनिया में उन्हें धरती पर ज़िंदा किया जाएगा। हम यह इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं? पौलुस ने कहा था, ‘मैं आशा रखता हूँ कि अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।’ (प्रेषि 24:15) गौर कीजिए कि पौलुस ने कहा कि बुरे लोगों को भी ज़िंदा किया जाएगा। बुरे लोग तो स्वर्ग नहीं जा सकते। तो ज़ाहिर-सी बात है कि वे धरती पर ही ज़िंदा होंगे। इससे साबित होता है कि जिन लोगों को स्वर्ग जाने की आशा नहीं दी गयी है, उन्हें धरती पर ज़िंदा किया जाएगा।

हमें पूरा यकीन है कि जिनकी मौत हो गयी है, वे ज़िंदा होंगे इसलिए हम एक खुशहाल ज़िंदगी की आशा रखते हैं (पैराग्राफ 20 देखें) *

20. आपको क्यों पक्के यकीन है कि जिनकी मौत हो गयी है, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा?

20 इसमें कोई शक नहीं कि “लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।” जिन्हें धरती पर ज़िंदा किया जाएगा, उनके पास हमेशा जीने की आशा होगी। परमेश्‍वर का यह वादा ज़रूर पूरा होगा! जब आपको उनकी याद आती है जो अब नहीं रहे, तो यह आशा आपको दिलासा देगी। जब मसीह और उसके साथी “1,000 साल तक राज करेंगे,” तो उस दौरान आपके अपनों को ज़िंदा किया जाएगा। (प्रका. 20:6) अगर मसीह का राज शुरू होने से पहले आपकी मौत हो गयी, तो आपको भी ज़िंदा किया जाएगा। यह “आशा हमें निराश नहीं होने देती।” (रोमि. 5:5) इस आशा से आपको हिम्मत मिलती है और आप यहोवा की सेवा खुशी से कर पाते हैं। पहला कुरिंथियों 15 से हम और भी बातें सीखते हैं। इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

गीत 147 हमेशा की ज़िंदगी का वादा

^ पैरा. 5 पहला कुरिंथियों अध्याय 15 में खास तौर से इस शिक्षा के बारे में बताया गया है कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा। हम क्यों विश्‍वास कर सकते हैं कि जिनकी मौत हो गयी है, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा? हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यीशु को सच में ज़िंदा किया गया था? इस लेख में इस तरह के कुछ अहम सवालों के जवाब दिए जाएँगे।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: स्वर्ग जानेवालों में यीशु सबसे पहला था। (प्रेषि. 1:9) बाद में उसके कुछ चेले भी स्वर्ग जाते जैसे, थोमा, याकूब, लुदिया, यूहन्‍ना, मरियम और पौलुस।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: एक भाई ने अपनी प्यारी पत्नी को खो दिया है जिसके साथ मिलकर उसने बरसों सेवा की थी। उसे पूरा भरोसा है कि वह दोबारा ज़िंदा हो जाएगी। भाई यहोवा की सेवा वफादारी से कर रहा है।