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अध्ययन लेख 2

उस चेले से सीखिए “जिसे यीशु प्यार करता था”

उस चेले से सीखिए “जिसे यीशु प्यार करता था”

“हम एक-दूसरे से प्यार करते रहें क्योंकि प्यार परमेश्‍वर से है।”—1 यूह. 4:7.

गीत 105 “परमेश्‍वर प्यार है”

लेख की एक झलक *

1. परमेश्‍वर का प्यार पाकर हमें कैसा महसूस होता है?

प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा, “परमेश्‍वर प्यार है।” (1 यूह. 4:8) इससे हम एक अहम सच्चाई समझ पाते हैं। जैसे जीवन की शुरूआत परमेश्‍वर से हुई है, वैसे ही प्यार की शुरूआत भी उसी से हुई है। परमेश्‍वर हमसे बहुत प्यार करता है! उसका प्यार पाकर हम सुरक्षित महसूस करते हैं और खुश रहते हैं।

2. (क) मत्ती 22:37-40 के मुताबिक दो सबसे बड़ी आज्ञाएँ क्या हैं? (ख) दूसरी आज्ञा मानने में हमें क्यों मुश्‍किल हो सकती है?

2 मसीहियों को प्यार करने की आज्ञा दी गयी है। यह हमारी मरज़ी पर नहीं छोड़ा गया है कि हम किसी से प्यार करेंगे या नहीं। (मत्ती 22:37-40 पढ़िए।) जब हम यहोवा को जानने लगते हैं, तो पहली आज्ञा मानना यानी यहोवा से प्यार करना आसान होता है। वह इसलिए कि यहोवा परिपूर्ण है, वह हमारी परवाह करता है और हमारे साथ नरमी से पेश आता है। लेकिन दूसरी आज्ञा मानने में हमें मुश्‍किल हो सकती है। क्योंकि हमारे मसीही भाई-बहन अपरिपूर्ण हैं। कभी-कभी शायद वे कुछ ऐसा करें या कह दें, जिससे हमें ठेस पहुँचे। यहोवा भी जानता था कि दूसरी आज्ञा मानना हमारे लिए आसान नहीं होगा। इसलिए उसने बाइबल के कुछ लेखकों से लिखवाया कि हमें एक-दूसरे से क्यों प्यार करना चाहिए और हम यह कैसे कर सकते हैं। उनमें से एक लेखक यूहन्‍ना था।​—1 यूह. 3:11, 12.

3. यूहन्‍ना ने अपनी किताबों में खासकर किस बारे में लिखा?

3 यूहन्‍ना ने अपनी किताबों में बार-बार लिखा कि मसीहियों को प्यार करना चाहिए। उसने अपने नाम की खुशखबरी की किताब में “प्यार” शब्द का कई बार ज़िक्र किया। उसने जितनी बार इन शब्दों का ज़िक्र किया, उतना खुशखबरी की किताबों के बाकी लेखकों ने नहीं किया। यूहन्‍ना करीब सौ साल का था, जब उसने खुशखबरी की किताब और बाकी तीन चिट्ठियाँ लिखीं। उन किताबों में बताया गया है कि एक मसीही को सबकुछ प्यार की खातिर करना चाहिए। (1 यूह. 4:10, 11) लेकिन खुद यूहन्‍ना को यह बात समझने में थोड़ा वक्‍त लगा।

4. क्या यूहन्‍ना ने हमेशा दूसरों से प्यार किया?

4 यूहन्‍ना जब जवान था, तब वह कई बार दूसरों से प्यार करने से चूक गया। एक बार यीशु और उसके चेले यरूशलेम जाने के लिए सामरिया से गुज़र रहे थे। वहाँ के एक गाँव में वे रुकना चाहते थे। मगर गाँववालों ने उन्हें रुकने नहीं दिया। तब यूहन्‍ना को गाँववालों पर गुस्सा आया और वह आकाश से आग बरसाकर उन्हें भस्म करना चाहता था। (लूका 9:52-56) एक और बार यूहन्‍ना प्यार करने से चूक गया। यह तब हुआ जब उसने और उसके भाई याकूब ने अपनी माँ को यीशु के पास यह कहने भेजा कि वह उन दोनों को अपने राज में ऊँची पदवी दे। जब बाकी प्रेषितों को यह पता चला तो उन्हें बहुत गुस्सा आया! (मत्ती 20:20, 21, 24) हालाँकि यूहन्‍ना ने कई गलतियाँ कीं, फिर भी यीशु उससे प्यार करता रहा।​—यूह. 21:7.

5. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

5 इस लेख में हम कई बातों पर चर्चा करेंगे। हम यूहन्‍ना की मिसाल पर गौर करेंगे और इस पर भी कि उसने प्यार के बारे में क्या-क्या बातें लिखीं। हम यह भी सीखेंगे कि हम अपने भाई-बहनों से कैसे प्यार से पेश आ सकते हैं। हम एक और बात पर चर्चा करेंगे कि परिवार का मुखिया किस खास तरीके से अपने परिवार के लिए प्यार ज़ाहिर कर सकता है।

सिर्फ कहो नहीं, करो भी

यहोवा ने हमारे लिए अपने बेटे की जान कुरबान की। इससे पता चलता है कि वह हमसे प्यार करता है (पैराग्राफ 6-7 देखें)

6. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हमसे प्यार करता है?

6 शायद हम सोचें कि लोगों से प्यार करने का मतलब है, उनके बारे में अच्छा सोचना या अच्छी बातें कहना। लेकिन अगर हम किसी से सच में प्यार करते हैं, तो यह हमारे कामों से भी दिखना चाहिए। (याकूब 2:17, 26 से तुलना करें।) उदाहरण के लिए यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है। (1 यूह. 4:19) यह बात उसने बहुत दिल छू लेनेवाले शब्दों में बाइबल में लिखवायी है। (भज. 25:10; रोमि. 8:38, 39) लेकिन यहोवा ने सिर्फ कहा नहीं है कि वह हमसे प्यार करता है, बल्कि उसने करके दिखाया है। यूहन्‍ना ने लिखा, “हमारे मामले में परमेश्‍वर का प्यार इस बात से ज़ाहिर हुआ कि परमेश्‍वर ने अपना इकलौता बेटा दुनिया में भेजा ताकि हम उसके ज़रिए जीवन पाएँ।” (1 यूह. 4:9) यहोवा ने हमारे लिए अपने अज़ीज़ बेटे को दुख सहने और मरने दिया। (यूह. 3:16) इसलिए हमें पूरा यकीन है कि यहोवा हमसे सच में प्यार करता है।

7. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु हमसे बहुत प्यार करता है?

7 यीशु ने भी हमें यकीन दिलाया है कि वह हमसे प्यार करता है। (यूह. 13:1; 15:15) और ऐसा उसने सिर्फ बोला नहीं, बल्कि करके भी दिखाया। उसने ‘अपने दोस्तों की खातिर जान दे दी।’ (यूह. 15:13) यहोवा और यीशु हमसे बहुत प्यार करते हैं। लेकिन हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें उनसे प्यार है?

8. पहला यूहन्‍ना 3:18 के हिसाब से हमें क्या करना चाहिए?

8 जब हम यहोवा और यीशु की बात मानते हैं, तो इससे पता चलता है कि हमें उनसे प्यार है। (यूह. 14:15; 1 यूह. 5:3) और यीशु ने खास तौर से यह आज्ञा दी थी कि हमें एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए। (यूह. 13:34, 35) सिर्फ शब्दों से यह कहना काफी नहीं है कि हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं। यह हमारे कामों से भी दिखना चाहिए। (1 यूहन्‍ना 3:18 पढ़िए।) हमें क्या करना चाहिए जिससे पता चलेगा कि हम उनसे प्यार करते हैं?

भाई-बहनों से प्यार कीजिए

9. प्यार की वजह से यूहन्‍ना ने क्या किया?

9 यूहन्‍ना चाहता तो अपने पिता के साथ रहकर मछली पकड़ने का कारोबार सँभाल सकता था और खूब पैसे कमा सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, उसने अपनी पूरी ज़िंदगी लोगों को यहोवा और यीशु के बारे में सच्चाई सिखाने में लगा दी। यूहन्‍ना की ज़िंदगी आसान नहीं थी। उसे कई बार सताया गया और पहली सदी के आखिर में उसे पतमुस द्वीप में बंदी बनाकर रखा गया। तब तक वह बहुत बूढ़ा हो चुका था। (प्रेषि. 3:1; 4:1-3; 5:18; प्रका. 1:9) कैद में भी उसे दूसरों की चिंता हो रही थी। उसने जो दर्शन देखा उसके बारे में उसने प्रकाशितवाक्य नाम की किताब में लिखा। फिर यह किताब उसने दूसरी मंडलियों तक पहुँचायी ताकि उन्हें पता चले कि “बहुत जल्द क्या-क्या होनेवाला है।” (प्रका. 1:1) और शायद पतमुस से रिहा होने के बाद यूहन्‍ना ने खुशखबरी की किताब लिखी। उस किताब में उसने यीशु की ज़िंदगी और सेवा के बारे में लिखा। इसके अलावा, उसने भाई-बहनों की हिम्मत बँधाने के लिए तीन चिट्ठियाँ और लिखीं। यूहन्‍ना हमेशा दूसरों के बारे में सोचता था। आप उसकी तरह कैसे बन सकते हैं?

10. यह कैसे पता चलेगा कि आपको लोगों से प्यार है?

10 आप अपनी ज़िंदगी में जो करते हैं उससे पता चलता है कि आपको लोगों से प्यार है या नहीं। शैतान की दुनिया चाहती है कि आप सिर्फ अपने बारे में सोचें, खुद के लिए नाम और पैसा कमाएँ। लेकिन पूरी दुनिया में ऐसे बहुत-से मसीही हैं जो अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा समय प्रचार करने में और यहोवा के बारे में सिखाने में बिताते हैं। कुछ भाई-बहन तो पूरे समय की सेवा में हैं।

हम भाई-बहनों और अपने परिवारवालों के लिए जो करते हैं, उससे पता चलता है कि हम उनसे प्यार करते हैं (पैराग्राफ 11, 17 देखें) *

11. बहुत-से मसीही क्या करते हैं जिससे पता चलता है कि उन्हें यहोवा और दूसरों से प्यार है?

11 बहुत-से मसीहियों को अपने परिवार का गुज़ारा चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ती है। इसके बावजूद ये भाई-बहन परमेश्‍वर के संगठन का साथ देने की पूरी कोशिश करते हैं। वे राहत और निर्माण काम में हाथ बँटाते हैं और राज के काम के लिए दान देते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे यहोवा और लोगों से प्यार करते हैं। इसके अलावा, जब भाई-बहन हर हफ्ते सभाओं में हाज़िर होते हैं, तो इससे भी पता चलता है कि उन्हें एक-दूसरे से प्यार है। हालाँकि कुछ लोग थके हुए होते हैं फिर भी वे सभाओं में हाज़िर होते हैं। कुछ लोग जवाब देने से घबराते हैं फिर भी जवाब देते हैं। कुछ लोगों की अपनी ही समस्याएँ होती हैं फिर भी सभा से पहले और बाद में दूसरों का हौसला बढ़ाते हैं। (इब्रा. 10:24, 25) हम उन भाई-बहनों की दिल से कदर करते हैं जो इतनी मेहनत करते हैं।

12. यूहन्‍ना ने और किस तरह भाई-बहनों के लिए अपना प्यार जताया?

12 यूहन्‍ना ने एक और तरीके से जताया कि उसे भाई-बहनों से प्यार है। उसने उनके अच्छे कामों की तारीफ की। मगर जब ज़रूरत पड़ी, तो उन्हें सलाह भी दी। जैसे, अपने खत में उसने भाई-बहनों के विश्‍वास और उनके भले कामों की तारीफ की। मगर पाप से दूर रहने की सलाह भी दी। (1 यूह. 1:8–2:1, 13, 14) हमें भी यूहन्‍ना की तरह भाई-बहनों के अच्छे कामों के लिए उनकी तारीफ करनी चाहिए। लेकिन अगर किसी भाई या बहन के रवैए या आदत से ऐसा लगे कि यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता खराब हो सकता है, तो हमें प्यार से उसे इस बारे में बताना चाहिए। अपने दोस्त की गलती बताना आसान नहीं होता। इसके लिए हिम्मत चाहिए। बाइबल कहती है कि सच्चा दोस्त अपने दोस्त को निखारता है या उसकी सोच सुधारता है।​—नीति. 27:17.

13. अगर हमें भाई-बहनों से प्यार है, तो हम क्या नहीं करेंगे?

13 अगर हमें अपने भाई-बहनों से प्यार है, तो हम कुछ चीजें नहीं करेंगे। जैसे, हम उनकी बातों का जल्दी बुरा नहीं मानेंगे। याद कीजिए, जब यीशु धरती पर था, तो क्या हुआ था। उसने अपने चेलों से कहा कि जीवन पाने के लिए उन्हें उसके शरीर में से खाना होगा और उसके खून में से पीना होगा। (यूह. 6:53-57) कुछ चेलों को उसकी ये बातें इतनी घिनौनी लगीं कि उन्होंने उसे छोड़ दिया। पर उसके सच्चे दोस्तों ने उसका साथ नहीं छोड़ा। यूहन्‍ना भी उनमें से एक था। हालाँकि यीशु के दोस्तों को समझ नहीं आया कि वह क्या कह रहा था और वे भी हैरान थे, लेकिन उन्होंने उसकी बात का बुरी नहीं माना। वे जानते थे कि यीशु जो कहता है सही कहता है। इसलिए उन्हें यकीन था कि इस बार भी यीशु की बातें गलत नहीं होंगी। (यूह. 6:60, 66-69) हमें भी भाई-बहनों की बातों का जल्दी बुरा नहीं मानना चाहिए। और अगर हमें बुरा लगा है, तो हमें जाकर उनसे बात करनी चाहिए और गलतफहमी दूर करनी चाहिए।​—नीति. 18:13; सभो. 7:9.

14. हमें भाई-बहनों से नफरत क्यों नहीं करनी चाहिए?

14 यूहन्‍ना ने यह भी कहा कि हमें भाई-बहनों से नफरत नहीं करनी चाहिए। अगर हम यह सलाह न मानें, तो शैतान हमारी कमज़ोरी का फायदा उठा सकता है। वह हमारे ज़रिए मंडली में नफरत और फूट डाल सकता है। (1 यूह. 2:11; 3:15) पहली सदी के आखिर में कुछ ऐसा ही हुआ। मंडली में कुछ ऐसे लोग थे जो शैतान जैसी फितरत रखते थे। जैसे, यूहन्‍ना ने अपने खत में दियुत्रिफेस का ज़िक्र किया जो मंडली में फूट पैदा कर रहा था। वह शासी निकाय की तरफ से भेजे गए भाइयों की इज़्ज़त नहीं करता था। और जो इन भाइयों का आदर-सत्कार करते थे उन्हें वह रोकने और मंडली से बेदखल करने की कोशिश करता था। ऐसा करना कितना गलत था! (3 यूह. 9, 10) आज भी शैतान परमेश्‍वर के लोगों के बीच फूट डालने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता। हमारे और भाई-बहनों के बीच कभी-भी नफरत की दीवार नहीं होनी चाहिए।

अपने परिवार से प्यार कीजिए

यीशु ने यूहन्‍ना से कहा कि वह उसकी माँ की देखभाल करे और यहोवा की सेवा करते रहने में उसका हौसला बढ़ाए। आज मुखियाओं को भी इन बातों का ध्यान रखना चाहिए (पैराग्राफ 15-16 देखें)

15. परिवार के मुखियाओं को खास तौर पर किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

15 जब एक परिवार का मुखिया अपने परिवारवालों की खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करता है, तो इससे पता चलता है कि वह उनसे प्यार करता है। (1 तीमु. 5:8) पर इससे भी ज़्यादा ज़रूरी है कि वह यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने में उनकी मदद करे। (मत्ती 5:3) यीशु ने परिवार के मुखियाओं के लिए एक बहुत अच्छी मिसाल रखी। यूहन्‍ना की लिखी खुशखबरी की किताब में बताया गया है कि जब यीशु यातना के काठ पर लटका हुआ था, तब भी वह अपने परिवार के बारे में सोच रहा था। उस वक्‍त उसकी माँ मरियम और यूहन्‍ना दोनों मौजूद थे। यीशु दर्द से तड़प रहा था, फिर भी उसने यूहन्‍ना से कहा कि वह उसकी माँ का खयाल रखे। (यूह. 19:26, 27) हालाँकि यीशु के बाकी भाई-बहन मरियम की ज़रूरतें पूरी कर सकते थे लेकिन वे यहोवा की सेवा करने में उसकी मदद नहीं कर पाते। क्योंकि शायद वे तब तक यीशु के चेले नहीं बने थे। इसलिए यीशु ने यूहन्‍ना को चुना जो मरियम की दोनों ज़रूरतें पूरी कर पाता।

16. यूहन्‍ना पर कौन-कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ थीं?

16 यूहन्‍ना बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ सँभालता था। वह एक प्रेषित था इसलिए उसे प्रचार काम की अगुवाई करनी थी। शायद वह शादीशुदा था इसलिए उस पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ भी थीं। उसे अपने परिवारवालों की खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करनी थी। इसके अलावा उसे यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने में भी उनकी मदद करनी थी। (1 कुरिं. 9:5) आज परिवार के मुखिया यूहन्‍ना से क्या सीख सकते हैं?

17. एक मुखिया की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी क्या है और इससे उसके परिवार को क्या फायदा होगा?

17 एक परिवार के मुखिया पर बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। उसे नौकरी करनी होती है। उसे इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि वह दिल लगाकर काम करे ताकि यहोवा के नाम की बदनामी न हो। (इफि. 6:5, 6; तीतु. 2:9, 10) शायद उस पर मंडली की भी ज़िम्मेदारियाँ हों। जैसे, भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना और प्रचार काम की अगुवाई करना। मुखिया पर एक और बड़ी ज़िम्मेदारी है। यहोवा की सेवा करते रहने में उसे अपने परिवार की मदद करनी है। उसे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ लगातार बाइबल का अध्ययन करना है। उसे ही इस बात का ध्यान रखना है कि उसका परिवार सेहतमंद रहे, खुश रहे और यहोवा की सेवा करता रहे। वह जो भी मेहनत करता है उसके लिए उसका परिवार बहुत एहसान मानेगा।​—इफि. 5:28, 29; 6:4.

‘मेरे प्यार के लायक बने रहो’

18. यूहन्‍ना को किस बात का यकीन था?

18 यूहन्‍ना ने एक लंबी ज़िंदगी जी और इस बीच उसके साथ बहुत-सी अच्छी बातें हुईं। उसके सामने कई मुश्‍किलें भी आयीं जो उसका विश्‍वास कमज़ोर कर सकती थीं। लेकिन उसने यीशु की हर आज्ञा मानने की कोशिश की, भाई-बहनों से प्यार करने की आज्ञा भी। इस वजह से उसे यकीन था कि यहोवा और यीशु उससे प्यार करते हैं और उसे हर मुश्‍किल को पार करने की ताकत देंगे। (यूह. 14:15-17; 15:10; 1 यूह. 4:16) यूहन्‍ना हर हाल में अपने भाई-बहनों से प्यार करता रहा और अपनी बातों और कामों से अपना प्यार जताता रहा। शैतान और उसकी दुनिया उसे ऐसा करने से रोक नहीं पायी।

19. (क) 1 यूहन्‍ना 4:7 हमें क्या करने का बढ़ावा देता है? (ख) यह सलाह हमें क्यों माननी चाहिए?

19 यूहन्‍ना की तरह हम भी शैतान की दुनिया में जीते हैं। (1 यूह. 3:1, 10) शैतान लोगों से नफरत करता है और चाहता है कि हम अपने भाई-बहनों से नफरत करें। पर यह तभी होगा जब हम उसे ऐसा करने का मौका देंगे। आइए हम शैतान को कभी कोई मौका न दें। और यह फैसला करें कि हम अपने कामों और बातों से भाई-बहनों के लिए प्यार जताते रहेंगे। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम यहोवा के परिवार का हिस्सा होंगे और हमारी ज़िंदगी खुशहाल रहेगी।​—1 यूहन्‍ना 4:7 पढ़िए।

गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा

^ पैरा. 5 माना जाता है कि प्रेषित यूहन्‍ना ही वह चेला था “जिसे यीशु प्यार करता था।” (यूह. 21:7) उसमें ज़रूर कई अच्छे गुण रहे होंगे तभी यीशु को उससे ज़्यादा लगाव था। सालों बाद जब यूहन्‍ना बूढ़ा हो गया, तो यहोवा ने प्यार के बारे में उससे बहुत कुछ लिखवाया। इस लेख में हम उसकी लिखी कुछ बातों पर गौर करेंगे। हम यह भी जानेंगे कि हम उससे क्या सीख सकते हैं।

^ पैरा. 59 तसवीर के बारे में: परिवार का मुखिया कई कामों में लगा हुआ है। वह राहत काम में हाथ बँटा रहा है और दुनिया-भर में होनेवाले काम के लिए दान दे रहा है। वह अपनी पारिवारिक उपासना के लिए दूसरे भाई-बहनों को बुलाता है।