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अध्ययन लेख 14

“उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो”

“उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो”

‘मसीह ने तुम्हारी खातिर दुख उठाया और वह तुम्हारे लिए एक आदर्श छोड़ गया ताकि तुम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलो।’​—1 पत. 2:21.

गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श

लेख की एक झलक *

यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलने के लिए हमें उसके पीछे-पीछे चलना होगा (पैराग्राफ 1-2 देखें)

1-2. उदाहरण देकर समझाइए कि यीशु के पीछे चलने के लिए हमें क्या करना चाहिए।

मान लीजिए, आप और कुछ लोग एक खतरनाक इलाके से गुज़र रहे हैं। वह इलाका बर्फ से पूरी तरह ढका हुआ है। आपके साथ एक गाइड है, जो रास्ता अच्छे-से जानता है। वह आपके आगे-आगे जा रहा है और आप उसके पीछे-पीछे चल रहे हैं। कुछ दूर चलने पर वह आपको कहीं नज़र नहीं आता। लेकिन आप घबराते नहीं हैं, क्योंकि जैसे-जैसे वह गाइड आगे बढ़ रहा था उसके पैरों के निशान बर्फ पर बनते जा रहे थे। आप उस गाइड के पैरों के निशान देख-देखकर उन पर नज़दीकी से चलने की कोशिश करते हैं।

2 आज सच्चे मसीही जिस दुनिया में जी रहे हैं, वह उस खतरनाक इलाके की तरह है। लेकिन यहोवा ने यीशु मसीह को भेजा। वह हमें सही राह दिखा सकता है। (1 पत. 2:21) बाइबल पर टिप्पणी करनेवाली एक किताब बताती है कि पतरस ने 1 पतरस 2:21 में यीशु की तुलना एक गाइड से की। एक गाइड की तरह यीशु ने भी मानो अपने पैरों के निशान छोड़े हैं, जिन पर हमें नज़दीकी से चलना है। अब आइए हम तीन सवालों के जवाब जानें: यीशु के नक्शे-कदम पर चलने का क्या मतलब है? हमें उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से क्यों चलना चाहिए? और यह हम कैसे कर सकते हैं?

यीशु के नक्शे-कदम पर चलने का क्या मतलब है?

3. किसी के नक्शे-कदम पर चलने का क्या मतलब है?

3 किसी व्यक्‍ति के नक्शे-कदम पर चलने का क्या मतलब है? बाइबल की कुछ आयतों में जब शब्द “चलना” या “पैर” आते हैं, तो वहाँ एक इंसान के जीने के तरीके की बात की जा रही होती है। (उत्प. 6:9; नीति. 3:23) एक इंसान जिस तरह अपनी ज़िंदगी जीता है, अगर हम भी उसी तरह जीएँ, तो यह कहा जा सकता है कि हम उसके नक्शे-कदम पर चल रहे हैं।

4. यीशु के नक्शे-कदम पर चलने का क्या मतलब है?

4 तो फिर यीशु के नक्शे-कदम पर चलने का क्या मतलब है? सीधे-सीधे कहें तो वही करना जो यीशु ने किया था। प्रेषित पतरस ने इस लेख की मुख्य आयत में बताया कि यीशु ने दुख झेलकर हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल रखी। लेकिन यीशु और भी कई तरीकों से हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। (1 पत. 2:18-25) सच में, यीशु ने जो कहा और जो किया, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

5. क्या अपरिपूर्ण इंसान यीशु के नक्शे-कदम पर चल पाएँगे? समझाइए।

5 शायद हम सोचें, ‘क्या हम यीशु के नक्शे-कदम पर चल पाएँगे, क्योंकि हम तो अपरिपूर्ण हैं?’ बिलकुल चल पाएँगे। याद कीजिए, पतरस ने यह नहीं कहा था कि हमें यीशु के नक्शे-कदम पर हू-ब-हू चलना है, बल्कि ‘नज़दीकी से चलना है।’ अगर हम अपरिपूर्ण इंसानों से जितना बन पड़ता है, उतना हम यीशु के जैसे बनें, तो हम प्रेषित यूहन्‍ना की यह बात मान रहे होंगे, “वैसे ही चलता रहे जैसे [यीशु] चला था।”​—1 यूह. 2:6, फु.

हमें यीशु के नक्शे-कदम पर क्यों चलना चाहिए?

6-7. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु के नक्शे-कदम पर चलने से हम यहोवा के करीब आएँगे?

6 यीशु के नक्शे-कदम पर चलने से हम यहोवा के करीब आएँगे।  हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? इसकी एक वजह यह है कि यीशु ने जिस तरह अपनी ज़िंदगी जी, उससे यहोवा खुश हुआ। (यूह. 8:29) अगर हम यीशु की तरह जीएँ, तो हम भी यहोवा को खुश करेंगे। हम यकीन रख सकते हैं कि जब हम यहोवा के दोस्त बनने और उसके करीब आने की पूरी कोशिश करते हैं, तो वह भी हमारे करीब आता है।​—याकू. 4:8.

7 दूसरी वजह यह है कि यीशु ने हू-ब-हू वही किया, जो उसका पिता करता है। इसलिए उसने कहा, “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूह. 14:9) हम भी अपने अंदर यीशु के जैसे गुण बढ़ा सकते हैं और दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार कर सकते हैं जैसा यीशु ने किया था। मिसाल के लिए, एक कोढ़ी को देखकर यीशु तड़प उठा, उसने एक औरत का दर्द समझा जिसे एक बड़ी बीमारी थी और उन लोगों के साथ वह दया से पेश आया, जिनके अपनों की मौत हो गयी थी। अगर हम इन मामलों में यीशु के नक्शे-कदम पर चलें, तो हम यहोवा के जैसे बनेंगे। (मर. 1:40, 41; 5:25-34; यूह. 11:33-35) और हम जितना ज़्यादा यहोवा की तरह बनेंगे, उतना उसके करीब आएँगे।

8. बताइए कि यीशु के नक्शे-कदम पर चलने से हम “दुनिया पर जीत” कैसे हासिल कर पाएँगे?

8 यीशु के नक्शे-कदम पर चलने से हम इस दुष्ट दुनिया के बहकावे में नहीं आएँगे।  यीशु इस दुनिया के बहकावे में नहीं आया और उसने दुनिया के लोगों की सोच, उनके लक्ष्य और उनके तौर-तरीके नहीं अपनाए। वह इस बात को कभी नहीं भूला कि उसे धरती पर इसलिए भेजा गया है, ताकि वह यहोवा के नाम को बुलंद करे। इसलिए अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात वह कह पाया, “मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है।” (यूह. 16:33) आज दुनिया में ऐसी कई चीजें हैं जिनसे हमारा ध्यान भटक सकता है। लेकिन अगर हम अपना पूरा ध्यान यहोवा की मरज़ी पूरी करने पर लगाएँ, तो हम भी “दुनिया पर जीत हासिल” कर पाएँगे।​—1 यूह. 5:5.

9. हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

9 यीशु के नक्शे-कदम पर चलने से हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।  जब एक अमीर आदमी ने पूछा कि हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए उसे क्या करना होगा तो यीशु ने कहा, “आकर मेरा चेला बन जा।” (मत्ती 19:16-21) कुछ यहूदी नहीं मानते थे कि यीशु मसीहा है। उनसे यीशु ने कहा, “मेरी भेड़ें . . . मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। मैं उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देता हूँ।” (यूह. 10:24-29) जब महासभा का एक सदस्य नीकुदेमुस यीशु से सीखने उसके पास आया, तो यीशु ने कहा कि जो ‘उस पर विश्‍वास करेगा,’ वह “हमेशा की ज़िंदगी” पाएगा। (यूह. 3:16) अगर हम भी हमेशा की ज़िंदगी पाना चाहते हैं, तो हमें यीशु पर विश्‍वास करना होगा। यानी उसकी शिक्षाओं को मानना होगा और उसके नक्शे-कदम पर चलना होगा।​—मत्ती 7:14.

हम यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से कैसे चल सकते हैं?

10. यीशु को अच्छी तरह जानने के लिए हमें क्या करना होगा? (यूहन्‍ना 17:3)

10 यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलने के लिए हमें उसे जानना होगा। (यूहन्‍ना 17:3 पढ़िए।) लेकिन हम एक ही बार में उसे नहीं जान पाएँगे। इसमें वक्‍त लगेगा, मेहनत लगेगी। हम जितना ज़्यादा यह जानने की कोशिश करेंगे कि यीशु में कौन-से गुण हैं, वह क्या सोचता है और उसके उसूल क्या हैं, उतना हम उसे अच्छी तरह समझ पाएँगे। चाहे हम कितने भी सालों से सच्चाई में हों, हमें यहोवा और यीशु ‘को जानने’ में लगातार मेहनत करनी होगी।

11. खुशखबरी की चार किताबों में क्या बताया गया है?

11 यीशु को अच्छी तरह जानने के लिए यहोवा ने बाइबल में खुशखबरी की चार किताबें लिखवायी हैं। इनमें यीशु की ज़िंदगी और सेवा के बारे में बताया गया है। इन किताबों से पता चलता है कि यीशु ने क्या कहा, क्या किया, वह कैसा इंसान था और उसमें कैसी भावनाएँ थीं। इन्हें पढ़कर हम यीशु पर “अच्छी तरह ध्यान” दे पाएँगे। (इब्रा. 12:3) हम जितना ज़्यादा इन किताबों का अध्ययन करेंगे, उतना ज़्यादा यीशु को अच्छी तरह जान पाएँगे। इस तरह हम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चल पाएँगे।

12. खुशखबरी की किताबों से यीशु के बारे में ज़्यादा सीखने के लिए हमें क्या करना होगा?

12 खुशखबरी की किताबों को पढ़ने के अलावा, हमें इनका अध्ययन करना होगा और इन पर मनन करना होगा। (यहोशू 1:8 से तुलना करें।) हम पढ़ी गयी बातों पर किस तरह मनन कर सकते हैं और उन पर चल सकते हैं? आइए दो सुझावों पर ध्यान दें।

13. मन में घटनाओं की जीती-जागती तसवीर बनाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

13 पहला, मन में घटनाओं की जीती-जागती तसवीर बनाइए।  खुशखबरी की किताब में आप जिस घटना के बारे में पढ़ रहे हैं, उसे देखिए, सुनिए और महसूस कीजिए। उसके बारे में कल्पना कीजिए। उस घटना के आगे-पीछे की आयतों को पढ़िए और उनमें बताए लोगों और जगहों पर ध्यान दीजिए। हमारी किताबों-पत्रिकाओं में और खोजबीन कीजिए। उस घटना के बारे में खुशखबरी की दूसरी किताबों में भी पढ़िए। हो सकता है, उनमें कोई ऐसी दिलचस्प जानकारी दी हो, जो इस किताब में न लिखी हो।

14-15. खुशखबरी की किताबों से आपने जो बातें सीखी हैं, उन्हें आप कैसे लागू कर सकते हैं?

14 दूसरा, घटना से सीखी बातों को लागू कीजिए।  (यूह. 13:17) अध्ययन और मनन करने के बाद आप खुद से पूछ सकते हैं, ‘खुशखबरी की किताब से मैंने क्या सीखा जिसके मुताबिक मुझे चलना है? उन बातों से मैं दूसरों की किस तरह मदद कर सकता हूँ?’ एक ऐसे व्यक्‍ति के बारे में सोचिए, जिसकी आप मदद कर सकते हैं। फिर सही समय देखकर, उसे प्यार से और सोच-समझकर वे बातें बताइए।

15 इन दो सुझावों को आप कैसे लागू करेंगे? आइए उस गरीब और ज़रूरतमंद विधवा की कहानी पर ध्यान दें, जिसे यीशु ने मंदिर में देखा था।

गरीब विधवा की कहानी

16. कल्पना कीजिए और बताइए कि मरकुस 12:41 में क्या हो रहा है।

16 मन में घटनाओं की जीती-जागती तसवीर बनाइए।  (मरकुस 12:41 पढ़िए।) कल्पना कीजिए कि क्या हो रहा है। ईसवी सन्‌ 33, नीसान 11 का दिन है। कुछ ही दिनों में यीशु की मौत होनेवाली है। वह पूरे दिन मंदिर में प्रचार करता है। धर्म गुरु आकर उसके अधिकार पर सवाल खड़ा करते हैं। फिर कुछ और लोग आकर उसे फँसाने के लिए उससे सवाल करते हैं। (मर. 11:27-33; 12:13-34) इसके बाद यीशु ‘औरतों के आँगन’ में जाता है, जहाँ दान-पात्र रखे गए हैं। वह वहाँ बैठ जाता है और लोगों को दान डालते हुए देखता है। वह ध्यान देता है कि अमीर लोग खूब सारे सिक्के डाल रहे हैं। शायद वह पास ही बैठा है, क्योंकि उसे सिक्कों की खनखनाहट सुनायी दे रही है।

17. उस गरीब विधवा के बारे में कुछ बताइए, जिसका ज़िक्र मरकुस 12:42 में किया गया है।

17 मरकुस 12:42 पढ़िए। कुछ समय बाद मंदिर में एक गरीब और “ज़रूरतमंद विधवा” आती है। (लूका 21:2) उसकी ज़िंदगी दुखों से भरी है। ज़रूरत की चीज़ें खरीदने के लिए भी उसके पास पैसे नहीं हैं। यीशु की नज़र उस पर पड़ती है। वह आकर दान-पात्र में चुपचाप दो सिक्के डालती है। उन सिक्कों की कोई आवाज़ नहीं आती। लेकिन यीशु जानता है कि उसने कितने पैसे डाले हैं। उसने दो लेप्टा डाले, जिनका मोल उस ज़माने में बहुत कम था। इतना कम कि उनसे खाने के लिए एक सस्ती चिड़िया भी नहीं खरीदी जा सकती थी।

18. मरकुस 12:43, 44 में यीशु ने गरीब विधवा के दान के बारे में क्या कहा?

18 मरकुस 12:43, 44 पढ़िए। यीशु उस गरीब विधवा के दान से बहुत खुश हो जाता है। वह अपने चेलों को बुलाता है और कहता है, “इस गरीब विधवा ने सबसे ज़्यादा डाला है, क्योंकि वे सब [खासकर अमीर लोग] अपनी बहुतायत में से डाल रहे हैं, मगर इसने अपनी तंगी में से डाला है, अपने गुज़ारे के लिए जो कुछ उसके पास था, उसने सब दे दिया।” यह दान करके उस गरीब विधवा ने दिखाया कि उसे यहोवा पर भरोसा है। उसे यकीन था कि वह उसका खयाल रखेगा।​—भज. 26:3.

दूसरे यहोवा की सेवा में जो भी मेहनत करते हैं उसकी तारीफ कीजिए, ठीक जैसे यीशु ने की थी (पैराग्राफ 19-20 देखें) *

19. गरीब विधवा से कौन-सी ज़रूरी सीख मिलती है?

19 घटना से सीखी बातों को लागू कीजिए।  आप खुद से पूछ सकते हैं, ‘यीशु ने गरीब विधवा के बारे में जो कहा, उससे मैंने क्या सीखा?’ ज़रा उस विधवा के बारे में सोचिए। वह भी दूसरों की तरह ज़्यादा दान डालना चाहती होगी, लेकिन वह अपने हालात से मजबूर थी। फिर भी वह जितना दे सकती थी, उसने दिया और यीशु जानता था कि यहोवा उससे खुश है। इससे एक ज़रूरी सीख मिलती है: अगर कोई अपने हालात के मुताबिक यहोवा की सेवा में जितना कर सकता है, उतना पूरे दिल से करे तो यहोवा खुश होता है। (मत्ती 22:37; कुलु. 3:23) प्रचार और सभाओं के मामले में भी वह जितना कर सकता है, अगर उतना करता है तो यहोवा को खुशी होती है।

20. गरीब विधवा से आपने जो बातें सीखीं, उनसे आप दूसरों की कैसे मदद कर सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

20 गरीब विधवा से आपने जो बातें सीखी हैं, उनसे आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं? अपनी मंडली के भाई-बहनों के बारे में सोचिए। हो सकता है, आप किसी बुज़ुर्ग बहन को जानते हों जिसकी सेहत अब ठीक नहीं रहती और वह प्रचार में उतना नहीं कर पाती जितना पहले करती थी। इस वजह से उसे लगता है कि यहोवा उसकी सेवा से खुश नहीं है। या आप किसी ऐसे भाई को जानते हों जो काफी समय से बीमार है और लगातार सभाओं में नहीं जा पाता। और इसलिए वह कभी-कभी निराश हो जाता है। आप ऐसे भाई-बहनों की मदद कैसे कर सकते हैं? आप अपनी बातों से उनकी ‘हिम्मत बँधा’ सकते हैं। (इफि. 4:29) गरीब विधवा से आपने जो बातें सीखी हैं, उनके बारे में बताकर आप उनका हौसला बढ़ा सकते हैं। आप उन्हें यकीन दिला सकते हैं कि वे यहोवा की सेवा में जो कुछ कर रहे हैं, उससे यहोवा खुश है। (नीति. 15:23; 1 थिस्स. 5:11) जब आप उनकी सेवा के लिए उनकी तारीफ करते हैं, तो आप यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलते हैं।

21. इस लेख से आपने क्या सीखा?

21 यह कितनी खुशी की बात है कि खुशखबरी की चार किताबों में यीशु की ज़िंदगी के बारे में इतनी सारी जानकारी दी गयी है। इन किताबों को पढ़कर हम यीशु की तरह बन सकते हैं, उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चल सकते हैं। हम चाहें तो निजी अध्ययन में या पारिवारिक उपासना के दौरान इन किताबों का अच्छी तरह अध्ययन कर सकते हैं। लेकिन अगर हम यीशु से ज़्यादा-से-ज़्यादा सीखना चाहते हैं, तो हमें मन में घटनाओं की जीती-जागती तसवीर बनानी होगी और जो बातें हमने सीखी हैं, उन्हें लागू करना होगा। अब तक हमने देखा कि यीशु ने जो किया,  उससे हम क्या सीख सकते हैं। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी की आखिरी घड़ी में जो बातें कहीं,  उनसे हम क्या सीख सकते हैं।

गीत 15 यहोवा के पहलौठे की तारीफ करें!

^ पैरा. 5 सच्चे मसीहियों को यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलना चाहिए। लेकिन इसका क्या मतलब है? हमें यीशु के नक्शे-कदम पर क्यों चलना चाहिए? और यह हम कैसे कर सकते हैं? इस लेख में इन सवालों के जवाब दिए जाएँगे।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: यीशु ने गरीब विधवा के बारे में जो कहा, उस पर एक बहन मनन कर रही है। फिर वह एक बुज़ुर्ग बहन को बताती है कि वह यहोवा की सेवा में जो कुछ कर रही है, उससे यहोवा खुश है।