इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 16

यीशु के बलिदान का हमेशा एहसान मानिए

यीशु के बलिदान का हमेशा एहसान मानिए

“इंसान का बेटा . . . इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”​—मर. 10:45.

गीत 18 फिरौती के लिए एहसानमंद

लेख की एक झलक *

1-2. (क) फिरौती का मतलब क्या है? (ख) यीशु को फिरौती क्यों देनी पड़ी?

आदम परिपूर्ण था। लेकिन जब उसने पाप किया, तो उसने हमेशा की ज़िंदगी खो दी और उसके साथ-साथ उसकी आनेवाली संतानों ने भी वह ज़िंदगी खो दी। आदम ने जानबूझकर पाप किया इसलिए उसे मौत की सज़ा मिली। लेकिन उसके बच्चों की कोई गलती नहीं थी। (रोमि. 5:12, 14) तो क्या उसके बच्चों को पाप और मौत से बचाया जा सकता था? जी हाँ! यहोवा ने एक-एक करके बताया कि वह किस तरह आदम की संतानों को पाप और मौत से बचाता। (उत्प. 3:15) वक्‍त आने पर उसने अपना बेटा भेजा जिसने ‘बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दी।’​—मर. 10:45; यूह. 6:51.

2 आदम ने जो खोया था, उसे वापस पाने के लिए यीशु को अपनी जान देकर वह कीमत चुकानी पड़ी। इसी कीमत को मसीही यूनानी शास्त्र में फिरौती कहा गया है। (1 कुरिं. 15:22) लेकिन यीशु को यह कीमत क्यों चुकानी पड़ी? क्योंकि यहोवा के न्याय का स्तर यही माँग करता है कि जान के बदले जान ली जाए। (निर्ग. 21:23, 24) आदम ने परिपूर्ण जीवन गँवाया था, इसलिए बदले में यीशु को अपना परिपूर्ण जीवन बलिदान करना पड़ा। (रोमि. 5:17) इस तरह यीशु उन सबके लिए “युग-युग का पिता” बना जो उसके बलिदान पर विश्‍वास करते।​—यशा. 9:6; रोमि. 3:23, 24.

3. यूहन्‍ना 14:31 और 15:13 के मुताबिक यीशु ने अपनी जान क्यों दी?

3 यीशु ने अपनी जान इसलिए दी क्योंकि वह अपने पिता से और हमसे बहुत प्यार करता है। (यूहन्‍ना 14:31; 15:13 पढ़िए।) इसी प्यार की वजह से वह आखिरी साँस तक यहोवा का वफादार रहा और उसकी मरज़ी पूरी करता रहा। यीशु के बलिदान की बदौलत धरती और इंसानों के लिए यहोवा का मकसद पूरा होगा। इस लेख में हम जानेंगे कि यहोवा ने क्यों यीशु को एक दर्दनाक मौत सहने दी। हम प्रेषित यूहन्‍ना के बारे में भी चर्चा करेंगे जो फिरौती का बहुत एहसान मानता था। हम यह भी सीखेंगे कि हम कैसे फिरौती का एहसान मान सकते हैं। और यहोवा और यीशु ने हमारे लिए जो किया है, उसके लिए हम अपनी कदर और कैसे बढ़ा सकते हैं।

यीशु को दर्दनाक मौत क्यों सहनी पड़ी?

ज़रा सोचिए, हमारी खातिर यीशु ने कितना कुछ सहा! (पैराग्राफ 4 देखें)

4. बताइए कि यीशु की मौत कैसे हुई।

4 ज़रा सोचिए, यीशु की ज़िंदगी के आखिरी दिन उसके साथ क्या-क्या हुआ। रोमी सैनिक उसे पकड़ने आए। उस वक्‍त वह चाहता तो खुद को बचाने के लिए स्वर्गदूतों की पलटन बुला सकता था। लेकिन उसने खुद को रोमी सैनिकों के हवाले कर दिया और उन्होंने उसे बेरहमी से पीटा। (मत्ती 26:52-54; यूह. 18:3; 19:1) उन्होंने उस पर इतने कोड़े बरसाए कि उसकी पीठ की खाल उधड़कर तार-तार हो गयी। ऐसी ज़ख्मी हालत में उन्होंने उसे अपना यातना का काठ उठाने के लिए कहा। कुछ देर बाद जब यीशु अपना काठ उठाकर चल नहीं पा रहा था, तो रोमी सैनिकों ने एक दूसरे आदमी से उसका काठ उठवाया। (मत्ती 27:32) जब वे उस जगह पहुँचे जहाँ वे यीशु को मारनेवाले थे, तो सैनिकों ने उसी काठ पर उसके हाथ-पैर कीलों से ठोंक दिए। जैसे ही उस काठ को सीधा खड़ा किया गया, यीशु के शरीर का वज़न उसके हाथों और पैरों पर पड़ने लगा जिस वजह से उसके घाव और भी ज़्यादा चीरने लगे। उसके दोस्तों को दुख हो रहा था। उसकी माँ रो रही थी। लेकिन यहूदी शासक उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। (लूका 23:32-38; यूह. 19:25) जैसे-जैसे वक्‍त बीता, उसके लिए एक-एक साँस लेना मुश्‍किल हो रहा था। यीशु जानता था कि वह यहोवा का वफादार रहा इसलिए मरने से पहले उसने यहोवा से प्रार्थना की और फिर सिर झुकाकर दम तोड़ दिया। (मर. 15:37; लूका 23:46; यूह. 10:17, 18; 19:30) सच में, यीशु ने कितना अपमान सहा, कितना दर्द सहा!

5. यीशु को किस बात से ज़्यादा तकलीफ हुई?

5 यीशु को इस बात का दुख नहीं था कि उसे किस तरह मारा जाएगा बल्कि इस बात का ज़्यादा दुख था कि उस पर क्या आरोप लगाया जाएगा। वह जानता था कि उस पर यह झूठा आरोप लगाया जाएगा कि उसने परमेश्‍वर की या उसके नाम की निंदा की है। (मत्ती 26:64-66) इस बात से उसे बहुत तकलीफ हुई। इसलिए उसने अपने पिता से बिनती की कि उसे इस आरोप के लिए न मारा जाए। (मत्ती 26:38, 39, 42) लेकिन सवाल है कि यहोवा ने उसे इतनी तकलीफ सहकर क्यों मरने दिया? आइए इसकी तीन वजहों पर गौर करें।

6. यीशु को यातना के काठ पर क्यों लटकाया गया?

6 पहली वजह, यीशु को काठ पर लटकाया जाना था ताकि यहूदी एक शाप से छूट सकें। (गला. 3:10, 13) यहूदियों पर यह शाप कैसे पड़ा? उन्होंने वादा किया था कि वह परमेश्‍वर की सभी आज्ञाओं को मानेंगे, लेकिन वे ऐसा करने से चूक गए। आदम की संतान होने की वजह से तो वे शापित थे ही, पर अब उन पर एक और शाप पड़ गया। इस वजह से वे मौत के लायक थे। (रोमि. 5:12) परमेश्‍वर ने इसराएल को जो कानून दिया था उसके हिसाब से अगर कोई व्यक्‍ति मौत के लायक था, तो उसे मार डालने के बाद उसकी लाश को काठ पर लटका दिया जाता था। यह इस बात की निशानी थी कि वह परमेश्‍वर की तरफ से शापित है। * (व्यव. 21:22, 23; 27:26) तो जब यीशु को काठ पर लटकाया गया, तो उसने यहूदियों का शाप अपने सिर पर ले लिया और उन्हें उस शाप से मुक्‍त किया। यीशु ने उस राष्ट्र के लिए ऐसा किया जिसने उसे ठुकरा दिया था।

7. यहोवा ने यीशु को तकलीफें सहकर क्यों मरने दिया? दूसरी वजह बताइए।

7 दूसरी वजह, यहोवा यीशु को सिखा रहा था क्योंकि आगे चलकर वह हमारा महायाजक बनता। यीशु ने खुद अनुभव किया कि कड़ी परीक्षा के दौरान यहोवा की आज्ञाओं को मानना आसान नहीं होता। इसलिए “उसने ऊँची आवाज़ में पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर” यहोवा से प्रार्थना की। जब हमारी ‘परीक्षा होती है,’ तो यीशु हमारी “मदद करने के काबिल है” क्योंकि वह खुद तकलीफों से गुज़रा है और वह हमें अच्छी तरह समझता है। हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमें एक ऐसा महायाजक दिया है “जो हमारी कमज़ोरियों में हमसे हमदर्दी” रखता है।​—इब्रा. 2:17, 18; 4:14-16; 5:7-10.

8. यहोवा ने यीशु को इतनी तकलीफ क्यों सहने दी? तीसरी वजह बताइए।

8 तीसरी वजह, यीशु ने इस ज़रूरी सवाल का जवाब दिया: क्या इंसान मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में यहोवा का वफादार रहेगा? शैतान का कहना है कि वह नहीं रहेगा। उसका दावा है कि इंसान स्वार्थ की वजह से यहोवा की उपासना करता है। उसे यहोवा से प्यार नहीं है ठीक जैसे आदम को नहीं था। (अय्यू. 1:9-11; 2:4, 5) यहोवा को पूरा यकीन था कि उसका बेटा उसका वफादार रहेगा। इसलिए उसने पूरी हद तक उसकी परीक्षा होने दी। और यीशु ने यहोवा का वफादार रहकर शैतान को झूठा साबित किया।

प्रेषित यूहन्‍ना फिरौती का एहसान मानता था

9. प्रेषित यूहन्‍ना से हम क्या सीखते हैं?

9 कई मसीहियों को विरोध का और तरह-तरह की मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। फिर भी वे पूरी ज़िंदगी प्रचार करने और यहोवा की सेवा में लगे रहते हैं। वे ऐसा इसलिए कर पाए हैं क्योंकि उन्हें फिरौती पर मज़बूत विश्‍वास है। प्रेषित यूहन्‍ना ने भी कुछ ऐसा ही किया। उसने 60 से ज़्यादा सालों तक मसीह और फिरौती बलिदान के बारे में प्रचार किया। सौ साल की उम्र में रोमी सरकार ने उसे खतरा समझकर पतमुस द्वीप में कैद कर दिया। उसका अपराध सिर्फ इतना था कि वह ‘परमेश्‍वर के बारे में बोल रहा था और यीशु के बारे में गवाही’ दे रहा था। (प्रका. 1:9) सच में, उसने विश्‍वास और धीरज की कितनी अच्छी मिसाल रखी!

10. यूहन्‍ना की किताबों से कैसे पता चलता है कि वह यीशु की फिरौती का एहसान मानता था?

10 यूहन्‍ना ने अपनी किताबों में बताया कि उसे यीशु से कितना प्यार है और वह फिरौती बलिदान का कितना एहसान मानता है। उसने फिरौती और उससे होनेवाले फायदों का 100 से ज़्यादा बार ज़िक्र किया। उदाहरण के लिए उसने लिखा, “अगर कोई पाप कर बैठे, तो हमारे लिए एक मददगार है जो पिता के पास है यानी यीशु मसीह जो नेक है।” (1 यूह. 2:1, 2) यूहन्‍ना ने “यीशु के बारे में गवाही” देने पर भी ज़ोर दिया। (प्रका. 19:10) यूहन्‍ना सच में यीशु की फिरौती का एहसान मानता था। हम कैसे एहसान मान सकते हैं?

हम यीशु की फिरौती का एहसान कैसे मान सकते हैं?

अगर हमें फिरौती बलिदान की कदर होगी, तो हम कोई भी गलत काम नहीं करेंगे (पैराग्राफ 11 देखें) *

11. जब हम पर गलत काम करने का दबाव आता है, तो हमें क्या करना चाहिए?

11 हमें गलत काम करने से इनकार करना चाहिए।  अगर हम सच में फिरौती बलिदान का एहसान मानते हैं, तो हम यह नहीं सोचेंगे, ‘मुझे गलत इच्छा से लड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है। होने दो गलती फिर मैं यहोवा से माफी माँग लूँगा।’ इसके बजाय जब हम पर कोई गलत काम करने का दबाव आता है तो हमें सोचना चाहिए, ‘यहोवा और यीशु ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, भला मैं उनका दिल कैसे दुखा सकता हूँ?’ हम यहोवा से ताकत माँग सकते हैं और बिनती कर सकते हैं कि वह ‘हमें परीक्षा में गिरने न दे।’​—मत्ती 6:13.

12. पहला यूहन्‍ना 3:16-18 के मुताबिक हमें क्या करना चाहिए?

12 हमें भाई-बहनों से प्यार करना चाहिए।  अगर हम यीशु की फिरौती का एहसान मानते हैं, तो हम भाई-बहनों से प्यार करेंगे। ऐसा करना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि यीशु ने सिर्फ हमारे लिए नहीं, बल्कि उनके लिए भी अपनी जान दी। इससे साफ पता चलता है कि यीशु उनसे भी बहुत प्यार करता है। (1 यूहन्‍ना 3:16-18 पढ़िए।) हमारे कामों से यह दिखना चाहिए कि हम भाई-बहनों से कितना प्यार करते हैं। (इफि. 4:29, 31–5:2) जब वे बीमार होते हैं या जब उन पर कोई बड़ी मुश्‍किल आती है, जैसे कोई प्राकृतिक विपत्ति, तब हमें उनकी मदद करनी चाहिए। लेकिन अगर कोई भाई या बहन हमारा दिल दुखाए, तब हम क्या करेंगे?

13. हमें दूसरों को क्यों माफ करना चाहिए?

13 क्या हमें किसी भाई या बहन की गलती माफ करना मुश्‍किल लगता है? (लैव्य. 19:18) तो फिर हमें यह सलाह माननी चाहिए, “अगर किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है, तो भी एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते रहो। जैसे यहोवा ने तुम्हें दिल खोलकर माफ किया है, तुम भी वैसा ही करो।” (कुलु. 3:13) हर बार जब हम किसी की गलती माफ करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम यीशु की फिरौती की कदर करते हैं। लेकिन हम ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे हमारे दिल में फिरौती के लिए और कदर बढ़े?

हम फिरौती के लिए अपनी कदर और कैसे बढ़ा सकते हैं?

14. फिरौती के लिए अपनी कदर बढ़ाने का एक तरीका क्या है?

14 हमें फिरौती बलिदान के लिए यहोवा का धन्यवाद करना चाहिए।  भारत में रहनेवालीं 83 साल की बहन जोएना कहती हैं, “मैं हर दिन यहोवा का धन्यवाद करती हूँ कि उसने फिरौती का इंतज़ाम किया है।” हमें भी ऐसा करना चाहिए। दिन-भर में हमसे जो गलतियाँ होती हैं, उनके बारे में हमें यहोवा को बताना चाहिए और उससे माफी माँगनी चाहिए। लेकिन अगर हमसे कोई बड़ा पाप हो जाए, तो हमें प्राचीनों से बात करनी चाहिए। वे हमारी सुनेंगे, हमें बाइबल से सलाह देंगे और हमारे लिए प्रार्थना करेंगे, ताकि यहोवा हमें माफ करे और उसके साथ दोबारा हमारा एक अच्छा रिश्‍ता बन सके।​—याकू. 5:14-16.

15. फिरौती बलिदान के बारे में पढ़ना और मनन करना क्यों ज़रूरी है?

15 हमें फिरौती के बारे में मनन करना चाहिए।  तिहत्तर साल की बहन राजमणि कहती हैं, “हर बार जब मैं पढ़ती हूँ कि यीशु ने हमारे लिए क्या कुछ सहा, तो मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पाती।” यीशु की तकलीफों के बारे में सोचकर हमें भी तकलीफ होती है। लेकिन अगर हम यीशु के बलिदान के बारे में मनन करें, तो यीशु और यहोवा के लिए हमारा प्यार और बढ़ेगा। हम चाहें तो निजी अध्ययन करते वक्‍त फिरौती के विषय पर और गहराई से अध्ययन कर सकते हैं।

यीशु ने अपने चेलों के साथ एक साधारण भोज किया। इस तरह उसने दिखाया कि उन्हें उसके बलिदान को कैसे याद रखना है (पैराग्राफ 16 देखें)

16. जब हम दूसरों को फिरौती बलिदान के बारे में सिखाते हैं, तो क्या होता है? (बाहर दी तसवीर देखें।)

16 हमें दूसरों को फिरौती बलिदान के बारे में सिखाना चाहिए।  जब हम लोगों को इस बारे में सिखाते हैं, तो फिरौती के लिए हमारी कदर और बढ़ती है। संगठन ने हमें कई बढ़िया प्रकाशन और वीडियो दिए हैं जिनके ज़रिए हम लोगों को सिखा सकते हैं कि यीशु हमारे लिए क्यों मरा। जैसे, हम परमेश्‍वर की तरफ से खुशखबरी!  ब्रोशर के पाठ 4 “यीशु मसीह कौन है?” या बाइबल हमें क्या सिखाती है?  किताब के अध्याय 5 “फिरौती​—परमेश्‍वर का दिया एक बेहतरीन तोहफा” से सिखा सकते हैं। हर साल जब हम स्मारक में आते हैं और दूसरों को भी वहाँ आने का बढ़ावा देते हैं, तो फिरौती के लिए हमारी कदर और बढ़ती है। सच में, यहोवा ने हमें कितना बेहतरीन मौका दिया है कि हम दूसरों को उसके बेटे के बारे में सिखाएँ!

17. फिरौती किस मायने में परमेश्‍वर की तरफ से एक अनमोल तोहफा है?

17 इस लेख में हमने सीखा कि हमें यीशु के फिरौती बलिदान का एहसान मानना चाहिए और उसके लिए अपनी कदर और बढ़ानी चाहिए। उसके बलिदान की वजह से, हम अपरिपूर्ण होकर भी यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बना पाए हैं। फिरौती की बदौलत ही, शैतान के कामों को नष्ट किया जाएगा। (1 यूह. 3:8) फिरौती की वजह से, धरती के लिए परमेश्‍वर का मकसद पूरा होगा। यह धरती फिरदौस बन जाएगी और यहाँ रहनेवाला हर व्यक्‍ति परमेश्‍वर से प्यार करेगा और उसकी उपासना करेगा। तो आइए हम हर दिन अपने कामों से यह दिखाएँ कि हम परमेश्‍वर के इस अनमोल तोहफे की कदर करते हैं!

गीत 20 तूने अपना अनमोल बेटा दिया

^ पैरा. 5 इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि यीशु को इतनी दर्दनाक मौत क्यों सहनी पड़ी। हम यह भी जानेंगे कि हम फिरौती के लिए अपनी कदर और कैसे बढ़ा सकते हैं।

^ पैरा. 6 रोमी लोग अपराधियों को जीते-जी काठ पर या तो बाँध देते थे या फिर कीलों से ठोंक देते थे। यहोवा ने अपने बेटे को इसी तरह मरने दिया।

^ पैरा. 55 तसवीर के बारे में: तीन भाई अलग-अलग हालात में गलत काम करने से इनकार कर रहे हैं: गंदी तसवीरें देखने से, सिगरेट पीने से और रिश्‍वत लेने से।