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अध्ययन लेख 28

होड़ मत लगाइए, शांति बनाए रखिए

होड़ मत लगाइए, शांति बनाए रखिए

“हम अहंकारी न बनें, एक-दूसरे को होड़ लगाने के लिए न उकसाएँ और एक-दूसरे से ईर्ष्या न करें।”—गला. 5:26.

गीत 101 एकता में रहकर काम करें

लेख की एक झलक *

1. जब लोग एक-दूसरे से होड़ लगाते हैं, तो क्या होता है?

आज दुनिया में बहुत-से लोग एक-दूसरे से होड़ लगाते हैं। जैसे कुछ बिज़नेसमैन अपने फायदे के लिए दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं। कुछ खिलाड़ी दूसरी टीम के खिलाड़ियों को जानबूझकर चोट पहुँचाते हैं, ताकि वे जीत सकें। स्कूल में पढ़नेवाले बच्चे बड़े कॉलेज में दाखिल होने के लिए परीक्षा में नकल करते हैं। सच्चे मसीही जानते हैं कि ये सब “शरीर के काम” हैं। (गला. 5:19-21) लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि मंडली में कुछ भाई-बहन खुद को दूसरों से बेहतर समझने लगें और अनजाने में होड़ लगाने के लिए उकसाएँ? अगर ऐसा है, तो मंडली में एकता नहीं रहेगी।

2. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

2 इस लेख में हम जानेंगे कि हम किन वजहों से खुद को दूसरों से बेहतर समझने लग सकते हैं। हम बाइबल से कुछ लोगों के उदाहरणों पर भी ध्यान देंगे, जिन्होंने दूसरों को खुद से बेहतर समझा। लेकिन आइए सबसे पहले हम खुद की जाँच करें कि हम किस इरादे से यहोवा की सेवा करते हैं।

खुद को जाँचिए

3. हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए?

3 हमें बीच-बीच में खुद से कुछ सवाल करने चाहिए। जैसे, ‘क्या मैं खुद के बारे में तभी अच्छा महसूस करता हूँ, जब मैं देखता हूँ कि मुझमें दूसरों से ज़्यादा काबिलीयतें हैं? क्या मैं मंडली में इसलिए मेहनत करता हूँ, ताकि दूसरों को जता सकूँ कि मैं उनसे बेहतर हूँ? या क्या मैं इसलिए मेहनत करता हूँ ताकि यहोवा मुझसे खुश हो?’ इस तरह के सवाल करना अच्छी बात है। क्यों? आइए बाइबल से जानें।

4. जैसा गलातियों 6:3, 4 में लिखा है, हमें खुद की तुलना दूसरों से क्यों नहीं करनी चाहिए?

4 बाइबल बताती है कि हमें अपनी तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। (गलातियों 6:3, 4 पढ़िए।) इसकी एक वजह है, अगर हम सोचें कि हम दूसरों से बेहतर हैं, तो हम घमंडी बन सकते हैं। दूसरी वजह, अगर हम सोचें कि भाई-बहन हमसे बेहतर हैं, तो हम निराश हो सकते हैं। दोनों तरह की सोच सही नहीं है। (रोमि. 12:3) ग्रीस में रहनेवाली बहन कैटारीना * कहती है, “जब मैं देखती थी कि दूसरी बहनें मुझसे ज़्यादा खूबसूरत हैं, प्रचार में अच्छे-से बात करती हैं और उनके बहुत सारे दोस्त हैं, तो मुझे बुरा लगता था। मुझे ऐसा लगता था कि मैं बेकार हूँ, मेरी कोई कीमत नहीं है।” हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा ने हमें अपना सेवक इसलिए नहीं बनाया कि हम खूबसूरत हैं या अच्छे-से बात करते हैं या हमारे बहुत सारे दोस्त हैं। बल्कि इसलिए बनाया है, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं और उसके बेटे की सुनते हैं।—यूह. 6:44; 1 कुरिं. 1:26-31.

5. भाई ह्‌युन के उदाहरण से आप क्या सीखते हैं?

5 हम खुद से एक और सवाल कर सकते हैं, ‘क्या मैं भाइयों के साथ शांति बनाए रखता हूँ या बात-बात पर उनसे बहस करता हूँ?’ दक्षिण कोरिया में रहनेवाले एक प्राचीन, भाई ह्‌युन का उदाहरण लीजिए। एक वक्‍त आया जब वह दूसरे प्राचीनों से जलने लगा। इस वजह से वह कहता है, “मैं उनमें कमियाँ निकालने लगा और बात-बात पर उनसे बहस करता था। मेरी वजह से मंडली में फूट पड़ गयी थी।” ह्‌युन के कुछ दोस्तों ने उसे अपनी गलती का एहसास दिलाया। उसने अपनी सोच बदली और आज वह अच्छे-से अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा है। अगर हमें लगे कि हमारी वजह से मंडली में होड़ की भावना आ रही है, तो हमें तुरंत खुद को बदलना चाहिए और मंडली में शांति बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।

अहंकार या ईर्ष्या मत कीजिए

6. गलातियों 5:26 के मुताबिक होड़ की भावना कैसे शुरू होती है?

6 गलातियों 5:26 पढ़िए। मंडली में होड़ की भावना अहंकार  और ईर्ष्या  की वजह से आती है। एक अहंकारी व्यक्‍ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है। और जो व्यक्‍ति ईर्ष्या करता है, वह चाहता है कि उसके पास वही चीज़ हो जो सामनेवाले के पास है। और-तो-और वह उस व्यक्‍ति से वह चीज़ छीनने की कोशिश करता है। देखा जाए तो, जो व्यक्‍ति ईर्ष्या करता है वह अपने भाई से नफरत करता है। हमें अहंकार और ईर्ष्या से खबरदार रहना चाहिए।

7. एक मिसाल से समझाइए कि अहंकार और ईर्ष्या करना क्यों खतरनाक है?

7 अहंकार और ईर्ष्या होना कितना खतरनाक है, इसे समझने के लिए एक लकड़ी का उदाहरण लीजिए जिसमें दीमक लगी है। बाहर से वह लकड़ी ठीक-ठाक लगती है लेकिन अंदर से वह खोखली हो चुकी होती है और एक-न-एक दिन वह पूरी तरह बेकार हो जाती है। अहंकार और ईर्ष्या भी उस दीमक की तरह हैं। जिनमें ये अवगुण होते हैं, वे एक-न-एक दिन यहोवा की सेवा करना छोड़ देते हैं और अपने साथ-साथ दूसरों को भी दुख पहुँचाते हैं। (नीति. 16:18) लेकिन हम ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि हम अहंकार और ईर्ष्या न करें?

8. कौन-सी सलाह मानने से हम अहंकार नहीं करेंगे?

8 पौलुस ने फिलिप्पी की मंडली को जो सलाह दी, उसे मानने से हम अहंकार नहीं करेंगे। उसने कहा, “झगड़ालू रवैए या अहंकार की वजह से कुछ न करो, मगर नम्रता से दूसरों को खुद से बेहतर समझो।” (फिलि. 2:3) अगर हम दूसरों को खुद से बेहतर समझेंगे, तो हम उन भाई-बहनों से होड़ नहीं लगाएँगे जिनमें हमसे ज़्यादा काबिलीयतें या हुनर हैं। इसके बजाय, हम खुश होंगे कि वे अपनी काबिलीयतें या हुनर यहोवा की सेवा में लगा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ, जिन भाई-बहनों में बहुत-सी काबिलीयतें हैं, अगर वे पौलुस की सलाह मानें, तो वे हममें अच्छाइयाँ देख पाएँगे। इस तरह, मंडली की शांति और एकता बनी रहेगी।

9. हमें क्या करना चाहिए ताकि हम किसी भाई या बहन से ईर्ष्या न करें?

9 अगर हममें मर्यादा का गुण होगा, तो हम दूसरों से ईर्ष्या नहीं करेंगे। हम अपनी हद पहचानेंगे और हर मामले में अव्वल बनने की कोशिश नहीं करेंगे। हम यह साबित करने की कोशिश नहीं करेंगे कि हममें दूसरों से ज़्यादा काबिलीयतें या हुनर हैं। इसके बजाय हम उनसे सीखेंगे। उदाहरण के लिए, अगर कोई भाई अच्छे भाषण देता है, तो हम उससे पूछेंगे कि वह भाषण की तैयारी कैसे करता है। या अगर कोई बहन अच्छा खाना पकाती है, तो हम उससे खाना बनाना सीखेंगे। उसी तरह, अगर एक जवान भाई या बहन को दोस्त बनाने में दिक्कत होती है, तो वह ऐसे व्यक्‍ति से सलाह ले सकता है, जिसके बहुत सारे दोस्त हैं। इस तरह हम अपने हुनर बढ़ा पाएँगे और दूसरों से ईर्ष्या भी नहीं करेंगे।

बाइबल में बताए कुछ लोगों से सीखिए

गिदोन नम्र था, इसलिए उसने एप्रैम के आदमियों के साथ शांति बनाए रखी (पैराग्राफ 10-12 देखें)

10. गिदोन के सामने कौन-सी मुश्‍किल आयी?

10 ध्यान दीजिए कि गिदोन  और एप्रैम गोत्र के लोगों के बीच क्या हुआ। यहोवा ने गिदोन और उसके 300 आदमियों को जीत दिलायी थी। लेकिन एप्रैम के आदमी गिदोन की तारीफ करने के बजाय उससे झगड़ने लगे। उन्हें इस बात का बुरा लगा कि गिदोन ने उन्हें शुरू से लड़ाई में अपने साथ नहीं लिया। उन्हें लग रहा था कि लोग अब उनके गोत्र की इज़्ज़त नहीं करेंगे। लेकिन वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि गिदोन की वजह से यहोवा के नाम की महिमा हुई और उसके लोगों की रक्षा।—न्यायि. 8:1.

11. गिदोन ने क्या किया ताकि बात और न बिगड़े?

11 गिदोन ने एप्रैम के आदमियों से कहा, “मैं कौन होता हूँ तुम्हारी बराबरी करनेवाला?” उसने उन्हें वह घटना याद दिलायी जब यहोवा ने उनसे बड़े-बड़े काम करवाए थे। यह सुनकर उन आदमियों का “गुस्सा ठंडा हो गया।” (न्यायि. 8:2, 3) गिदोन नहीं चाहता था कि बात आगे बढ़े, इसलिए उसने नम्र होकर उनसे बात की और शांति बनाए रखी।

12. हम एप्रैम के आदमियों और गिदोन से क्या सीखते हैं?

12 इस घटना से हम क्या सीखते हैं? एप्रैमी आदमियों से हम सीखते हैं कि हमें अपने मान-सम्मान के बारे में सोचने के बजाय यहोवा के मान-सम्मान के बारे में सोचना चाहिए। अगर हम प्राचीन या परिवार के मुखिया हैं, तो हम गिदोन से एक बात सीख सकते हैं। अगर कोई हमसे किसी वजह से नाराज़ है, तो हमें बातों को उसके नज़रिए से देखना चाहिए। उस व्यक्‍ति ने जो अच्छे काम किए हैं, उसकी तारीफ करनी चाहिए। यह सब करने के लिए हममें नम्रता होनी चाहिए, खासकर जब हमें पता हो कि सामनेवाला गलत है। यह बात ज़्यादा मायने रखती है कि भाई-बहनों के साथ हमारा रिश्‍ता अच्छा हो, न कि यह कि हम सही हैं या गलत।

हन्‍ना को भरोसा था कि यहोवा सबकुछ ठीक कर देगा। इसलिए उसे मन की शांति मिली (पैराग्राफ 13-14 देखें)

13. (क) हन्‍ना के सामने कौन-सी मुश्‍किल आयी? (ख) उसने क्या किया?

13 ज़रा हन्‍ना  के बारे में सोचिए। उसकी शादी लेवी गोत्र के एक आदमी से हुई थी जिसका नाम एलकाना था। एलकाना की एक और पत्नी थी, पनिन्‍ना। लेकिन वह पनिन्‍ना से ज़्यादा हन्‍ना से प्यार करता था। “पनिन्‍ना के बच्चे थे, मगर हन्‍ना का कोई बच्चा नहीं था।” इस वजह से पनिन्‍ना, हन्‍ना को “दुख देने के लिए उस पर लगातार ताने कसती थी।” हन्‍ना को बहुत बुरा लगता था। आयत कहती है कि वह “रोने लगती और कुछ खाती-पीती नहीं थी।” (1 शमू. 1:2, 6, 7) लेकिन बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि हन्‍ना ने पनिन्‍ना से बदला लिया। इसके बजाय, उसने यहोवा को अपने दिल की बात बतायी और भरोसा रखा कि वह सबकुछ ठीक कर देगा। हम नहीं जानते कि बाद में पनिन्‍ना ने हन्‍ना को ताने देने बंद किए या नहीं। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि उसके बाद से हन्‍ना को मन की शांति मिली और आयत बताती है कि “उसके चेहरे पर फिर उदासी न रही।”—1 शमू. 1:10, 18.

14. हम हन्‍ना से क्या सीख सकते हैं?

14 हम हन्‍ना से क्या सीखते हैं? अगर कोई हमसे होड़ लगाने की कोशिश करता है, तो हमें उसके साथ होड़ लगाने की ज़रूरत नहीं है। बुराई के बदले बुराई करने के बजाय हमें उस व्यक्‍ति के साथ शांति बनाए रखनी चाहिए। (रोमि. 12:17-21) अगर वह व्यक्‍ति फिर भी होड़ लगाता है, तो हमारा मन बेचैन नहीं होगा, हम खुश रहेंगे।

अपुल्लोस और पौलुस जानते थे कि यहोवा की वजह से ही वे अपनी सेवा कर पा रहे हैं, इसलिए वे एक-दूसरे से जलते नहीं थे (पैराग्राफ 15-18 देखें)

15. अपुल्लोस और पौलुस किन बातों में एक-जैसे थे?

15 अब आइए देखते हैं कि हम अपुल्लोस  और प्रेषित पौलुस  से क्या सीख सकते हैं। उन दोनों को शास्त्र की अच्छी समझ थी। बहुत-से लोग उन्हें जानते थे और वे लोगों को अच्छे-से सिखाते थे। उन्होंने कई लोगों को चेला बनाया, लेकिन फिर भी वे एक-दूसरे से जलते नहीं थे।

16. अपुल्लोस के बारे में कुछ बताइए।

16 अपुल्लोस का “जन्म सिकंदरिया शहर में हुआ था।” पहली सदी में लोग शिक्षा लेने के लिए इसी शहर में आते थे। अपुल्लोस बात करने में बहुत माहिर था और उसे “शास्त्र का अच्छा ज्ञान” भी था। (प्रेषि. 18:24) कुछ समय के लिए जब वह कुरिंथ में था, तो वहाँ के कुछ भाइयों ने यह साफ दिखाया कि वे पौलुस और दूसरे भाइयों से ज़्यादा अपुल्लोस को पसंद करते हैं। (1 कुरिं. 1:12, 13) लेकिन अपुल्लोस ने ऐसी सोच को बढ़ावा नहीं दिया। इसीलिए पौलुस ने उसे दोबारा कुरिंथ जाने के लिए कहा। (1 कुरिं. 16:12) अगर उसने मंडली में फूट पैदा की होती, तो पौलुस उसे वापस कुरिंथ नहीं भेजता। अपुल्लोस ने प्रचार करने और भाई-बहनों की हिम्मत बँधाने में अपने हुनर लगाए। अपुल्लोस बहुत नम्र भी था। ऐसा हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि जब एक बार प्रिस्किल्ला और अक्विला ने “उसे परमेश्‍वर की राह के बारे में सही जानकारी दी और अच्छी तरह समझाया,” तो उसने बुरा नहीं माना।—प्रेषि. 18:24-28.

17. पौलुस ने शांति बनाए रखने के लिए क्या किया?

17 प्रेषित पौलुस अच्छे-से जानता था कि अपुल्लोस ने कितने अच्छे काम किए हैं। लेकिन उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि अपुल्लोस उससे आगे निकल जाएगा। उसने कुरिंथ की मंडली को जो लिखा, उससे पता चलता है कि वह कितना नम्र था और अपनी हद पहचानता था। जब मंडली के लोगों ने कहा कि “मैं पौलुस का चेला हूँ,” तो उसे यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने उन्हें समझाया कि उनका ध्यान किसी इंसान पर नहीं, बल्कि यहोवा और यीशु मसीह पर होना चाहिए।—1 कुरिं. 3:3-6.

18. हम प्रेषित पौलुस और अपुल्लोस से क्या सीख सकते हैं? (1 कुरिंथियों 4:6, 7)

18 हम पौलुस और अपुल्लोस से क्या सीखते हैं? हो सकता है कि हमने यहोवा की सेवा में बहुत मेहनत की हो और कई लोगों को सच्चाई सिखायी हो। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि यह सब यहोवा की मदद से ही हो पाया है। हम इन भाइयों से एक और बात सीख सकते हैं। जिन लोगों के पास मंडली में ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ होती हैं, उन्हें इस बात का ज़्यादा ध्यान रखना चाहिए कि मंडली में शांति बनी रहे। हम बहुत खुश हैं कि सहायक सेवक और प्राचीन मंडली में शांति बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत करते हैं। वे जो भी सलाह देते हैं बाइबल से देते हैं, न कि अपने मन से और भाइयों का ध्यान हमारे आदर्श यीशु मसीह की तरफ खींचते हैं।—1 कुरिंथियों 4:6, 7 पढ़िए।

19. इस लेख से हमने क्या सीखा? (“ होड़ लगाने के लिए मत उकसाइए” नाम का बक्स भी पढ़ें।)

19 हम सबमें कोई-न-कोई हुनर या काबिलीयत है। हमें उसका इस्तेमाल “दूसरों की सेवा” में करना चाहिए। (1 पत. 4:10) शायद हमें लगे कि हम ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रहे। लेकिन जिस तरह छोटी-छोटी सिलाइयों से एक सुंदर पोशाक बनती है, उसी तरह हमारे छोटे-छोटे कामों से मंडली में एकता और शांति बनी रहती है। अगर हमें लगता है कि हमारे अंदर दूसरों से बेहतर बनने की सोच आ रही है, तो हमें इसे जड़ से निकाल देना चाहिए और मंडली में शांति और एकता बनाए रखनी चाहिए।—इफि. 4:3.

गीत 80 “परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है”

^ पैरा. 5 अगर मिट्टी के बरतन में दरारें पड़ जाएँ, तो वह जल्दी टूट सकता है। उसी तरह, अगर मंडली के कुछ भाई-बहन खुद को दूसरों से बेहतर समझें, तो मंडली की एकता और शांति भंग हो सकती है। इस लेख में हम जानेंगे कि हमें खुद को दूसरों से बेहतर क्यों नहीं समझना चाहिए और हम ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि मंडली में शांति बनी रहे।

^ पैरा. 4 नाम बदल दिए गए हैं।