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अध्ययन लेख 29

अपने काम से खुशी पाइए!

अपने काम से खुशी पाइए!

“हर कोई . . . अपने ही काम से खुशी पाएगा, न कि दूसरों से खुद की तुलना करके।”—गला. 6:4.

गीत 34 चलते रहें वफा की राह

लेख की एक झलक *

1. यहोवा हमारी तुलना दूसरों से क्यों नहीं करता?

यहोवा ने सबकुछ एक जैसा नहीं बनाया है। उसने अलग-अलग किस्म के पेड़-पौधे और जानवर बनाए हैं। यहाँ तक कि इंसानों को भी एक-दूसरे से अलग बनाया है। इसलिए वह हमारी तुलना दूसरों से नहीं करता। वह हमारा दिल देखता है यानी हम अंदर से कैसे हैं। (1 शमू. 16:7) वह यह भी जानता है कि हममें क्या खूबियाँ और कमियाँ हैं और हम किस माहौल में पले-बढ़े हैं। इसलिए हम जितना कर पाते हैं, वह उससे ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। हमें खुद को यहोवा की नज़र से देखना चाहिए तभी हम “सही सोच” रख पाएँगे। फिर हम खुद को दूसरों से न ज़्यादा समझेंगे और न ही कम।—रोमि. 12:3.

2. हमें दूसरों से खुद की तुलना क्यों नहीं करनी चाहिए?

2 किसी को देखकर सीखने में कोई बुराई नहीं है। जैसे, अगर कोई भाई या बहन अच्छे-से प्रचार करता है, तो उसे देखकर हम अच्छे-से प्रचार करना सीख सकते हैं। (इब्रा. 13:7; फिलि. 3:17) लेकिन किसी के साथ अपनी तुलना करने से हम शायद उससे जलने लगें या निराश हो जाएँ या खुद को बेकार समझने लगें। और जैसा हमने पिछले लेख में सीखा था, अगर हम दूसरों से आगे निकलने की कोशिश करें, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है। इसलिए परमेश्‍वर हमसे कहता है, “हर कोई अपने काम की जाँच करे। तब वह अपने ही काम से खुशी पाएगा, न कि दूसरों से खुद की तुलना करके।”—गला. 6:4.

3. आपने यहोवा की सेवा में क्या किया है जिससे आपको खुशी मिलती है?

3 यहोवा चाहता है कि हमने अब तक उसकी सेवा में जो किया है, उससे हम खुशी पाएँ। अगर आपने बपतिस्मा लिया है, तो आप खुश हो सकते हैं कि आपने यह लक्ष्य पा लिया है। आपने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि आपको  यहोवा से प्यार है। ज़रा सोचिए, बपतिस्मे से लेकर अब तक आपने किन-किन मामलों में तरक्की की है। शायद आप और अच्छे-से बाइबल का अध्ययन करने लगे हैं, दिल से प्रार्थना करने लगे हैं, प्रचार में अच्छे-से बात करने लगे हैं और प्रकाशनों का बढ़िया इस्तेमाल करने लगे हैं। (भज. 141:2) अगर आप शादीशुदा हैं, तो आप यहोवा की मदद से अच्छे पति, पत्नी या माँ-बाप बन पाए हैं। आपको खुशी होनी चाहिए कि आप कितना कुछ कर पाए हैं!

4. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

4 कभी-कभी परिवारवाले और मंडली के भाई-बहन खुद की तुलना दूसरों से करने लग सकते हैं। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि यहोवा की सेवा में खुशी पाने के लिए माता-पिता अपने बच्चों की और पति-पत्नी एक-दूसरे की मदद कैसे कर सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि प्राचीन और दूसरे मसीही, मंडली के भाई-बहनों की मदद कैसे कर सकते हैं। हम कुछ वचनों पर भी ध्यान देंगे जो हमें ऐसे लक्ष्य रखने का बढ़ावा देते हैं जिन्हें हम पा सकते हैं।

माता-पिता और पति-पत्नी क्या कर सकते हैं?

माता-पिताओ, अपने हर बच्चे की मेहनत की तारीफ कीजिए (पैराग्राफ 5-6 देखें) *

5. जैसा इफिसियों 6:4 में बताया गया है, माता-पिताओं को क्या नहीं करना चाहिए?

5 माता-पिताओं को ध्यान रखना चाहिए कि वे एक बच्चे की तुलना दूसरे से न करें या वह जितना कर सकता है, उससे ज़्यादा की माँग न करें नहीं तो वह निराश हो सकता है। (इफिसियों 6:4 पढ़िए।) बहन साचीको * बताती है, “जब मैं छोटी थी तो सारे टीचर चाहते थे कि मैं बाकी बच्चों से अच्छे नंबर लाऊँ। मम्मी भी चाहती थीं कि मैं पढ़ाई में अच्छा करूँ ताकि मेरे टीचर और पापा, जो सच्चाई में नहीं हैं साक्षियों के बारे में गलत न सोचें। मम्मी चाहती थीं कि मैं स्कूल टेस्ट में पूरे नंबर लाऊँ। पर मैं जानती थी कि यह मुझसे नहीं हो सकता। इस बात को कई साल हो चुके हैं। लेकिन आज भी कई बार मुझे लगता है कि मैं यहोवा की सेवा में जो कर रही हूँ, वह काफी नहीं है। यहोवा मेरी मेहनत से खुश नहीं है।”

6. भजन 131:1, 2 में लिखी बात से माता-पिता क्या सीखते हैं?

6 भजन 131:1, 2 पढ़िए। राजा दाविद ने कहा कि उसने “बड़ी-बड़ी चीज़ों की ख्वाहिश” नहीं की और न ही उन चीज़ों की इच्छा की जिन्हें पाना उसके लिए नामुमकिन था। दाविद नम्र था इसलिए उसके पास जो था, उसमें वह खुश था। उससे माता-पिता क्या सीख सकते हैं? उन्हें नम्र रहना चाहिए और खुद से और अपने बच्चों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि उनके बच्चे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। और उसके हिसाब से बच्चों को लक्ष्य रखने का बढ़ावा देना चाहिए। तब बच्चे खुद को बेकार नहीं समझेंगे। बहन मरीना कहती है, “मम्मी ने कभी मेरी तुलना मेरे तीन भाइयों या दूसरे बच्चों से नहीं की। उन्होंने समझाया कि हम सबमें अलग-अलग खूबियाँ हैं और हममें से हरेक यहोवा की नज़र में अनमोल है। इस वजह से मैं कभी अपनी तुलना दूसरों से नहीं करती।”

7-8. एक मसीही पति को अपनी पत्नी का किस तरह आदर करना चाहिए?

7 पति को अपनी पत्नी के साथ आदर से पेश आना चाहिए। (1 पत. 3:7) इसका मतलब है कि वह उसकी कदर करेगा, उससे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करेगा और न ही उसकी तुलना दूसरी औरतों से करेगा। अगर एक पति ऐसा करता है, तो उसकी पत्नी को कैसा लगेगा? बहन रोसा का उदाहरण लीजिए। उसका पति सच्चाई में नहीं है और वह अकसर उसकी तुलना दूसरी औरतों से करता है। उसके शब्द रोसा के दिल को चुभ जाते हैं और वह खुद को बेकार समझने लगती है। रोसा बताती है, “मैं खुद को याद दिलाती रहती हूँ कि यहोवा मेरी कदर करता है।” एक मसीही पति अपनी पत्नी का आदर करेगा, क्योंकि वह जानता है कि इससे उसकी पत्नी और यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता अच्छा रहेगा। *

8 एक पति को एक और तरीके से अपनी पत्नी का आदर करना चाहिए। वह उसे यकीन दिलाएगा कि वह उससे प्यार करता है और दूसरों के सामने उसकी तारीफ करेगा। (नीति. 31:28) पिछले लेख में हमने कैटारीना के बारे में पढ़ा था जो खुद को बेकार समझने लगी थी। दरअसल बचपन में उसकी माँ उसे नीचा दिखाती थी और उसके दोस्तों और दूसरी लड़कियों से उसकी तुलना करती थी। यह आदत उसमें भी आ गयी थी। सच्चाई में आने के बाद भी वह अपनी तुलना दूसरों से करती रही। लेकिन अपने पति की मदद से वह यह आदत छोड़ पायी। कैटारीना बताती है, “वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं, मेरे अच्छे कामों की तारीफ करते हैं और मेरे लिए प्रार्थना भी करते हैं। जब भी मैं खुद को बेकार समझने लगती हूँ, तो वे मुझे याद दिलाते हैं कि यहोवा मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचता।”

प्राचीन और दूसरे भाई-बहन क्या कर सकते हैं?

9-10. प्राचीनों ने एक बहन की किस तरह मदद की?

9 प्राचीन उन भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं जो खुद की तुलना दूसरों से करते हैं? बहन हानूनी का उदाहरण लीजिए। बचपन में उसे बहुत कम तारीफ मिलती थी। वह कहती है, “मैं अपनी तुलना दूसरों से करने लगी। क्योंकि मैं शर्मीली थी और मुझे लगता था कि दूसरे बच्चे मुझसे अच्छे हैं।” सच्चाई सीखने के बाद भी बहन ऐसा करती रही। उसे लगता था कि वह पायनियर सेवा में जो कर रही है, उसकी कोई अहमियत नहीं। लेकिन आज वह अपनी सेवा से खुश है। उसने अपनी सोच कैसे बदली?

10 प्राचीनों ने उसकी मदद की। उन्होंने उसे यकीन दिलाया कि मंडली में उसकी अहमियत है और उसके अच्छे कामों की तारीफ की। वह बताती है, “कई बार प्राचीनों ने मुझे दूसरी बहनों का हौसला बढ़ाने के लिए कहा। मुझे लगा कि मंडली में मेरी भी अहमियत है। एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि मैं कुछ जवान बहनों की मदद करूँ और उन्होंने मेरा धन्यवाद किया। उन्होंने मुझे 1 थिस्सलुनीकियों 1:2, 3 पढ़कर सुनाया। इससे मुझे बहुत खुशी मिली। प्राचीनों की वजह से मुझे यकीन हो गया कि मैं मंडली के काम आ सकती हूँ।”

11. हम यशायाह 57:15 में बताए “कुचले हुओं” की मदद कैसे कर सकते हैं?

11 यशायाह 57:15 पढ़िए। यहोवा को उन लोगों की बहुत परवाह है, जो “कुचले हुए” हैं। हमें भी ऐसा करना चाहिए। यह काम सिर्फ प्राचीनों का नहीं है, बल्कि मंडली के सभी भाई-बहनों का है। हमें इन दुखी भाई-बहनों को यकीन दिलाना चाहिए कि यहोवा उनसे प्यार करता है और उन्हें अनमोल समझता है। (कुलु. 3:12) हमें नम्र भी रहना चाहिए और अपनी काबिलीयतों का दिखावा नहीं करना चाहिए। नहीं तो हो सकता है कि दूसरे भाई-बहन हमसे जलने लगें। हम नहीं चाहते कि ऐसा हो। हम चाहते हैं कि हमारे पास जो भी काबिलीयतें हैं, उनसे भाई-बहनों का हौसला बढ़े।—1 पत. 4:10, 11.

यीशु के चेलों को उसके साथ रहना अच्छा लगता था, क्योंकि वह नम्र था और खुद को उनसे बेहतर नहीं समझता था। यीशु को भी उनके साथ वक्‍त बिताना अच्छा लगता था (पैराग्राफ 12 देखें)

12. मामूली लोग यीशु को क्यों पसंद करते थे? (बाहर दी तसवीर देखें।)

12 हमें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, यह हम यीशु से सीख सकते हैं। वह धरती पर जीनेवाला सबसे महान इंसान था। फिर भी वह “कोमल स्वभाव का और दिल से दीन” था। (मत्ती 11:28-30) उसने कभी अपनी बुद्धि और ज्ञान का दिखावा नहीं किया। इसके बजाय, वह सरल शब्दों में लोगों को सिखाता था और ऐसी मिसालें देता था, जो उनको आसानी से समझ आती थीं। (लूका 10:21) वह धर्म गुरुओं की तरह नहीं था, जो मामूली लोगों को नीची नज़रों से देखते थे। वह उनके साथ आदर से पेश आता था, जिससे उन्हें लगता था कि यहोवा की नज़र में उनकी बहुत कीमत है।—यूह. 6:37.

13. यह कैसे पता चलता है कि यीशु अपने चेलों से प्यार करता था?

13 यीशु अपने चेलों से प्यार करता था। वह जानता था कि उनके हालात और काबिलीयतें अलग-अलग हैं। एक चेला जितना कर पाता, शायद दूसरा उतना न कर पाए। फिर भी वह हरेक की मेहनत से खुश था। यह बात तोड़ों की मिसाल से साफ पता चलती है। उस मिसाल में मालिक ने हर दास को “उसकी काबिलीयत के मुताबिक” काम सौंपा था। एक दास ने दूसरे दास से ज़्यादा तोड़े कमाए। फिर भी मालिक ने दोनों को एक ही बात कही, “शाबाश, अच्छे और विश्‍वासयोग्य दास!”—मत्ती 25:14-23.

14. हम यीशु की तरह क्या कर सकते हैं?

14 यीशु हमारे साथ भी प्यार से पेश आता है। वह जानता है कि हमारे हालात और काबिलीयतें एक जैसी नहीं हैं। इसलिए जब हम दूसरों से अपनी तुलना नहीं करेंगे और हमसे जो हो पाता है,  उसे जी-जान से करेंगे, तो यीशु खुश होगा। हमें भी यीशु की तरह दूसरों से प्यार से पेश आना चाहिए। अगर मंडली में कोई भाई या बहन, दूसरों के जितना नहीं कर पाता, तो हमें उसे यह महसूस नहीं कराना चाहिए कि वह किसी काम का नहीं है। इसके बजाय, वह जो कर पा रहा है, उसके लिए उसकी तारीफ करनी चाहिए।

ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें आप पा सकते हैं

ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें आप पा सकते हैं। तब आपको खुशी मिलेगी (पैराग्राफ 15-16 देखें) *

15-16. बताइए कि हालात के मुताबिक लक्ष्य रखने से एक बहन को क्या फायदा हुआ।

15 जब हम यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखते हैं, तो हमारी ज़िंदगी का एक मकसद होता है और हमें खुशी मिलती है। लेकिन हमें अपने हालात और काबिलीयतों के मुताबिक लक्ष्य रखने चाहिए। अगर हम दूसरों के हालात और काबिलीयतों के मुताबिक लक्ष्य रखेंगे, तो दुखी और निराश होंगे। (लूका 14:28) ध्यान दीजिए कि मिडोरी नाम की पायनियर बहन ने क्या किया।

16 मिडोरी के पिता साक्षी नहीं हैं। जब मिडोरी छोटी थी, तो उसके पिता अकसर कहते थे कि उसके भाई-बहन और क्लास के बच्चे उससे बेहतर हैं। इस वजह से मिडोरी खुद को बेकार समझने लगी। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, उसने अपनी सोच बदली। कैसे? मिडोरी बताती है, “मैं हर दिन बाइबल पढ़ने लगी। इस तरह मुझे यकीन हो गया कि यहोवा मुझसे प्यार करता है।” मिडोरी ने अपने हालात के मुताबिक कुछ लक्ष्य भी रखे और प्रार्थना की कि वह उन्हें पा सके। इस वजह से वह यहोवा की सेवा में जो कुछ कर पा रही थी, उससे उसे खुशी मिली।

आपसे  जितना हो सकता है, उतना जी-जान से कीजिए

17. (क) हमें अपनी सोच बदलने के लिए क्या करना होगा? (ख) इसका क्या नतीजा होगा?

17 अगर हम खुद को बेकार समझते हैं, तो यह सोच रातों-रात नहीं बदलेगी। इसलिए परमेश्‍वर कहता है, “तुम्हें अपनी सोच और अपने नज़रिए को नया बनाते जाना है।”  (इफि. 4:23, 24) इसके लिए हमें अध्ययन, मनन और प्रार्थना करनी होगी। ऐसा हमें लगातार करना होगा। फिर यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति देगा ताकि हम अपनी तुलना दूसरों से न करें। और अगर हमारे दिल में घमंड या ईर्ष्या की भावना आ रही है, तो वह उसे निकालने में हमारी मदद करेगा।

18. दूसरा इतिहास 6:29, 30 से आपको क्या हिम्मत मिलती है?

18 दूसरा इतिहास 6:29, 30 पढ़िए। यहोवा हमारा दिल देखता है। वह जानता है कि हम क्या सोच रहे हैं, कैसा महसूस कर रहे हैं। वह यह भी जानता है कि हम दुनिया के असर से बचने और अपनी कमज़ोरियों से लड़ने के लिए कितना संघर्ष कर रहे हैं। जब वह हमें इस तरह संघर्ष करते देखता है, तो वह हमसे और भी प्यार करने लगता है।

19. यहोवा ने किस मिसाल से समझाया कि वह हमसे प्यार करता है?

19 यहोवा ने एक माँ का उदाहरण देकर समझाया कि वह हमसे कितना प्यार करता है। (यशा. 49:15) गौर कीजिए कि बहन रेचल क्या कहती है, “मेरी बेटी स्टेफनी का जन्म वक्‍त से पहले हुआ था। जब मैंने उसे पहली बार देखा, तो वह बहुत छोटी और बेबस लग रही थी। डॉक्टरों ने उसकी नाज़ुक हालत को देखते हुए पहले महीने उसे एक अलग कमरे में रखा। लेकिन मैं हर दिन उससे मिल सकती थी, उसे गोद में ले सकती थी। उस दौरान हमारा बहुत ही गहरा रिश्‍ता बन गया। आज स्टेफनी छ: साल की है और अपनी उम्र के बच्चों से छोटी दिखती है। मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ क्योंकि उसने ज़िंदा रहने के लिए बहुत संघर्ष किया है। उसकी वजह से मेरी ज़िंदगी खुशियों से भर गयी है।” जब यहोवा देखता है कि हम उसकी सेवा करने के लिए कितना संघर्ष कर रहे हैं, तो वह वैसा ही महसूस करता है जैसा एक माँ करती है। इस बात से हमें कितना दिलासा मिलता है!

20. यहोवा के सेवकों को किस बात से खुशी मिलती है?

20 हम यहोवा के सेवक हैं, इसलिए हममें से हरेक यहोवा के लिए अनमोल है। वह जानता है कि हम सब एक-दूसरे से अलग हैं। यहोवा ने हमें अपना सेवक इसलिए नहीं बनाया, क्योंकि हम दूसरों से अच्छे थे। उसने हमारा दिल देखा। उसने देखा कि हम नम्र हैं और सीखने और खुद को बदलने के लिए तैयार हैं। (भज. 25:9) जब हम जी-जान से उसकी सेवा करते हैं, तो वह उसकी कदर करता है। जब हम धीरज रखते हैं और उसकी सेवा करते रहते हैं, तो इससे पता चलता है कि हमारा “दिल बहुत अच्छा है।” (लूका 8:15) आइए हम अपनी तुलना दूसरों से न करें, लेकिन हमसे जितना हो पाता है,  उतना जी-जान से करें। फिर हमें ‘अपने काम’ से खुशी मिलेगी।

गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा

^ पैरा. 5 यहोवा दूसरों से हमारी तुलना नहीं करता। लेकिन हो सकता है कि हम खुद की तुलना दूसरों से करने लगें और फिर हमें लगे कि हम उनके जितने अच्छे नहीं हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि हमें अपनी तुलना दूसरों से क्यों नहीं करनी चाहिए। हम यह भी सीखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं, ताकि हमारे परिवारवाले और मंडली के भाई-बहन खुद को उसी नज़र से देखें जिस तरह यहोवा उन्हें देखता है।

^ पैरा. 5 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 7 हालाँकि यहाँ पतियों की बात की गयी है, लेकिन यहाँ बताए सिद्धांत पत्नियों के लिए भी हैं।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: पारिवारिक उपासना के दौरान परिवार में सब मिलकर नूह का जहाज़ बना रहे हैं। हर बच्चा जहाज़ के लिए कुछ-न-कुछ बना रहा है। माता-पिता हर बच्चे के काम से खुश हो रहे हैं।

^ पैरा. 62 तसवीर के बारे में: एक माँ अकेले अपने छोटे बच्चे की परवरिश कर रही है। वह सहयोगी पायनियर सेवा करने की योजना बना रही है। वह खुश है कि वह पायनियर सेवा कर पा रही है।