इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 31

क्या आप यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करेंगे?

क्या आप यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करेंगे?

“मैं . . . परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार करूँगा।”—मीका 7:7.

गीत 128 हमें अंत तक धीरज रखना है

लेख की एक झलक *

1-2. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

मान लीजिए कि आप किसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन वह अभी तक नहीं आया। शायद तब आप उदास हो जाएँ या चिंता करने लगें। नीतिवचन 13:12 में भी यही बात लिखी है, “जब उम्मीद पूरी होने में देर होती है, तो मन उदास हो जाता है।” लेकिन अगर आपको पता चले कि किसी वाजिब कारण से उसे देर हो रही है, तो शायद आप सब्र रखेंगे और उसका इंतज़ार करेंगे।

2 इस लेख में हम बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर चर्चा करेंगे, जो हमें “परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार” करने में मदद देंगे। (मीका 7:7) फिर हम ऐसे दो हालात के बारे में चर्चा करेंगे, जिनमें हमें सब्र रखना होगा और भरोसा रखना होगा कि यहोवा सही समय पर कदम उठाएगा। आखिर में हम जानेंगे कि जो लोग यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करते हैं, उन्हें कौन-सी आशीषें मिलेंगी।

बाइबल के सिद्धांत, जिनसे हम सब्र रखना सीखते हैं

3. नीतिवचन 13:11 में दिए सिद्धांत से हम क्या सीखते हैं?

3 नीतिवचन 13:11 से हम जान पाते हैं कि हमें सब्र क्यों रखना चाहिए। वहाँ लिखा है, “रातों-रात कमायी गयी दौलत घटती जाएगी, लेकिन जो थोड़ा-थोड़ा करके  जमा करता है, उसकी दौलत बढ़ती जाएगी।” इस आयत से हम सीखते हैं कि हमें कोई भी काम करते वक्‍त सब्र रखना चाहिए और जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, तभी हमें सही नतीजे मिलेंगे।

4. नीतिवचन 4:18 में दिए सिद्धांत से क्या पता चलता है?

4 नीतिवचन 4:18 में लिखा है, “नेक जनों की राह सुबह की रौशनी जैसी है, जिसका तेज, दिन चढ़ने के साथ-साथ बढ़ता जाता है।” इस आयत से पता चलता है कि यहोवा अपने लोगों को अपनी मरज़ी के बारे में धीरे-धीरे बताता है। इस आयत में दिए सिद्धांत से हम यह भी समझ सकते हैं कि मसीही खुद में धीरे-धीरे बदलाव करते हैं और यहोवा के करीब आते हैं। जब एक व्यक्‍ति बाइबल का अध्ययन करता है और उसके मुताबिक चलता है और संगठन की हिदायतें मानता है, तो वह खुद में मसीह जैसे गुण बढ़ा पाता है। और यहोवा को अच्छी तरह जान पाता है। आइए देखें कि इस बात को समझाने के लिए यीशु ने कौन-सी मिसाल दी।

जिस तरह एक पौधा धीरे-धीरे बढ़ता है, उसी तरह जो व्यक्‍ति सच्चाई सीखता है, वह खुद में धीरे-धीरे बदलाव करता है (पैराग्राफ 5 देखें)

5. यीशु ने कौन-सी मिसाल देकर समझाया कि एक व्यक्‍ति को बदलाव करने में वक्‍त लगता है?

5 यीशु ने बताया, “बीज में अंकुर फूटते हैं और अपने आप बढ़ते हैं लेकिन कैसे, यह वह [बीज बोनेवाला] नहीं जानता। ज़मीन अपने आप धीरे-धीरे फल देती है, पहले अंकुर निकलता है, फिर डंठल और आखिर में तैयार दाने की बालें।” (मर. 4:27, 28) यहाँ बीज परमेश्‍वर के राज का संदेश है। यीशु कह रहा था कि जैसे एक पौधा धीरे-धीरे बढ़ता है, वैसे ही जब एक व्यक्‍ति राज का संदेश सुनता है और बाइबल की सच्चाइयाँ सीखता है, तो वह धीरे-धीरे खुद में बदलाव करता है। हमारे बाइबल विद्यार्थियों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। जब वे यहोवा के करीब आते हैं, तो वे खुद में बदलाव करने लगते हैं। (इफि. 4:22-24) लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि बीज को बढ़ानेवाला यहोवा ही है।—1 कुरिं. 3:7.

6-7. यहोवा ने जिस तरह धरती बनायी, इससे हम उसके बारे में क्या सीखते हैं?

6 यहोवा जो भी करता है, सोच-समझकर और समय लेकर करता है। इससे उसके नाम की महिमा होती है और दूसरों को फायदा होता है। ध्यान दीजिए कि जब यहोवा ने धरती बनायी, तो उसने सारा काम एक-साथ नहीं, बल्कि एक-एक करके किया।

7 बाइबल बताती है कि उसने ‘पृथ्वी की नाप तय की,’ ‘पाये बिठाए’ और ‘कोने का पत्थर रखा।’ (अय्यू. 38:5, 6) उसने वक्‍त निकालकर अपने काम भी देखे। (उत्प. 1:10, 12) ज़रा सोचिए कि जब यहोवा एक-एक करके सब बना रहा था, तो स्वर्गदूतों को कैसा लगा होगा। वे खुशी से “जयजयकार” करने लगे। (अय्यू. 38:7) इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? धरती, सूरज, चाँद, सितारे और हर जीवित प्राणी को बनाने में यहोवा को हज़ारों साल लगे। लेकिन इतना वक्‍त देना फायदेमंद रहा क्योंकि इन सबको बनाने के बाद जब यहोवा ने इन्हें देखा, तो उसने कहा, “सबकुछ बहुत बढ़िया” है।—उत्प. 1:31.

8. अब हम क्या चर्चा करेंगे?

8 बाइबल में ऐसे और भी सिद्धांत हैं, जिनसे हम सब्र रखना सीखते हैं। अब हम ऐसे दो हालात पर गौर करेंगे, जिनमें हमें यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना चाहिए।

कब हमें यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना चाहिए?

9. हमें कब यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना पड़ सकता है?

9शायद हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़े।  कई बार हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें मुश्‍किल हालात का सामना करने की ताकत दे। या कोई बुरी आदत छोड़ने में हमारी मदद करे। लेकिन हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब तुरंत नहीं मिलता। ऐसा क्यों होता है?

10. हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब पाने के लिए इंतज़ार क्यों करना चाहिए?

10 यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ ध्यान से सुनता है। (भज. 65:2) जब हम प्रार्थना करते हैं, तो उसे पता चलता है कि हमें उस पर कितना विश्‍वास है। (इब्रा. 11:6) वह यह भी देखना चाहता है कि हम अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम कर रहे हैं या नहीं। (1 यूह. 3:22) इसलिए जब हम प्रार्थना करते हैं कि वह किसी बुरी आदत को छोड़ने में हमारी मदद करे, तो हमें अपनी तरफ से मेहनत करनी होगी और सब्र रखना होगा। यीशु ने भी समझाया कि शायद हमें अपनी सब प्रार्थनाओं का जवाब तुरंत न मिले। उसने कहा, “माँगते रहो तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूँढ़ते रहो तो तुम पाओगे, खटखटाते रहो तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा। क्योंकि हर कोई जो माँगता है, उसे मिलता है और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और हर कोई जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा।” (मत्ती 7:7, 8) अगर हम यीशु की यह बात मानें और “प्रार्थना में लगे” रहें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनेगा और उनका जवाब देगा।—कुलु. 4:2.

जब तक यहोवा का वक्‍त नहीं आ जाता, हम पूरे यकीन के साथ उससे प्रार्थना करते रहेंगे (पैराग्राफ 11 देखें) *

11. इब्रानियों 4:16 से कैसे पता चलता है कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देने में देरी नहीं करता?

11 हो सकता है, हमें लगे कि हमारी प्रार्थनाओं का जवाब मिलने में देरी हो रही है। लेकिन ऐसा नहीं है। यहोवा वादा करता है कि वह बिलकुल “सही वक्‍त” पर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा। (इब्रानियों 4:16 पढ़िए।) इसलिए हमें यहोवा पर दोष नहीं लगाना चाहिए। उदाहरण के लिए, हम सालों से प्रार्थना कर रहे हैं कि परमेश्‍वर का राज आए और इस दुष्ट दुनिया का अंत जल्दी हो जाए। यीशु ने भी इस बारे में प्रार्थना करने के लिए कहा था। (मत्ती 6:10) लेकिन अगर अंत उस वक्‍त न आए, जब हमने  सोचा था और हम यहोवा पर अपना विश्‍वास कमज़ोर होने दें, तो यह कितनी बड़ी मूर्खता होगी! (हब. 2:3; मत्ती 24:44) समझदारी इसमें है कि हम यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करें और पूरे यकीन के साथ प्रार्थना करते रहें। यहोवा इस दुष्ट दुनिया का अंत करने में देरी नहीं करेगा। उसने एक ‘दिन और घड़ी’ तय कर रखी है। और वह दिन, हम सबके लिए बिलकुल सही होगा!—मत्ती 24:36; 2 पत. 3:15.

हम यूसुफ से सब्र रखने के बारे में क्या सीखते हैं? (पैराग्राफ 12-14 देखें)

12. सब्र रखना खासकर कब मुश्‍किल होता है?

12जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है, तब शायद हमें सब्र रखना पड़े और उसे बरदाश्‍त करना पड़े।  दुनिया में अकसर उन लोगों के साथ नाइंसाफी की जाती है, जिनका लिंग, रंग-रूप, जाति, संस्कृति और देश अलग होता है। जो अपंग हैं या मानसिक तौर पर बीमार हैं, उनके साथ भी बुरा बरताव किया जाता है। इसके अलावा, बहुत-से यहोवा के साक्षियों के साथ अन्याय किया जाता है, क्योंकि वे बाइबल पर विश्‍वास करते हैं। अगर हमारे साथ ऐसा होता है, तो हमें यीशु के शब्द याद रखने चाहिए, “जो अंत तक धीरज धरेगा, वही उद्धार पाएगा।” (मत्ती 24:13) लेकिन अगर आपको पता चले कि मंडली में किसी ने पाप किया है, तब आप क्या करेंगे? जब प्राचीनों को इस बारे में पता चल जाता है, तो क्या आप सब्र रखेंगे और यकीन रखेंगे कि वे मामले को परमेश्‍वर की हिदायतों के मुताबिक सुलझाएँगे? प्राचीन मामले को किस तरह सुलझाते हैं?

13. जब एक व्यक्‍ति पाप करता है, तो प्राचीन मामले को कैसे सुलझाते हैं?

13 जब प्राचीनों को पता चलता है कि मंडली में किसी ने पाप किया है, तो वे ‘स्वर्ग से मिलनेवाली बुद्धि’ के लिए प्रार्थना करते हैं, ताकि वे मामले को उसी तरह देख सकें, जिस तरह यहोवा देखता है। (याकू. 3:17) वे चाहते हैं कि पाप करनेवाला व्यक्‍ति “गलत रास्ते से वापस” आ जाए। (याकू. 5:19, 20) वे मंडली की हिफाज़त करना चाहते हैं और उन लोगों को भी दिलासा देना चाहते हैं, जिन्हें पाप करनेवाले की वजह से दुख पहुँचा है। (2 कुरिं. 1:3, 4) मामला सुलझाने के लिए प्राचीन सबसे पहले छानबीन करते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि असल में क्या हुआ था। इसमें वक्‍त लगता है। फिर वे प्रार्थना करते हैं और पाप करनेवाले को बाइबल से सलाह देते हैं। वे उसे सुधारने के लिए सिर्फ ‘उतनी फटकार लगाते हैं, जितनी सही है।’ (यिर्म. 30:11) प्राचीन फैसला लेने में देरी नहीं करते, पर जल्दबाज़ी भी नहीं करते। जब मामले को सही तरीके से सुलझा लिया जाता है, तो इससे पूरी मंडली को फायदा होता है। लेकिन हो सकता है, जिन लोगों को पाप करनेवाले की वजह से दुख पहुँचा है, वे अब भी तकलीफ में हों। अगर आपके साथ ऐसा हुआ है, तो आप क्या कर सकते हैं?

14. अगर किसी ने आपको दुख पहुँचाया है, तो किसके उदाहरण से आपको दिलासा मिलेगा?

14 क्या कभी किसी भाई या बहन ने आपको बहुत दुख पहुँचाया है? अगर हाँ, तो बाइबल से आपको मदद मिल सकती है। इसमें ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जिनसे आप सीख सकते हैं कि आपको यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना चाहिए। यूसुफ का उदाहरण लीजिए। उसके भाइयों ने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था। मगर यूसुफ कड़वाहट से नहीं भर गया। वह यहोवा की सेवा करता रहा। उसने सब्र रखा और इस वजह से यहोवा ने उसे आशीष दी। (उत्प. 39:21) समय के गुज़रते उसने अपने भाइयों को माफ कर दिया और वह देख पाया कि यहोवा ने उसे क्या-क्या आशीषें दी हैं। (उत्प. 45:5) यूसुफ की तरह, अगर आप यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखें और यकीन रखें कि वह सही वक्‍त पर न्याय ज़रूर करेगा, तो आपको दिलासा मिलेगा।—भज. 7:17; 73:28.

15. एक बहन नाइंसाफी क्यों बरदाश्‍त कर पायी?

15 हो सकता है, हमारे साथ वैसा बरताव न किया जाए, जैसा यूसुफ के साथ किया गया था। लेकिन जब कोई भाई या बहन या बाहरवाला हमारे साथ बुरी तरह पेश आता है, तो दुख तो होता ही है। ऐसे में बाइबल के सिद्धांत मानने से हमें फायदा हो सकता है। (फिलि. 2:3, 4) एक बहन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। बहन के साथ काम करनेवाली एक औरत उसके बारे में झूठी बातें फैलाने लगी। बहन को बहुत दुख हुआ, लेकिन वह एकदम से नहीं भड़क उठी। उसने वक्‍त लिया और यीशु के बारे में गहराई से सोचा। जब यीशु की बेइज़्ज़ती की जा रही थी, तो उसने बदले में दूसरों की बेइज़्ज़ती नहीं की। (1 पत. 2:21, 23) इसलिए बहन ने बात को आगे नहीं बढ़ाया। बाद में उसे पता चला कि उस औरत को कोई गंभीर बीमारी है और इस वजह से वह हमेशा परेशान रहती है। बहन समझ गयी कि शायद इसी वजह से उसके मुँह से ऐसी बातें निकल गयी होंगी। उसे इस बात की खुशी थी कि उसने बात को आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि सबकुछ बरदाश्‍त करती रही।

16. अगर आप अन्याय सह रहे हैं, तो आपको किस बात से दिलासा मिल सकता है? (1 पतरस 3:12)

16 अगर आप किसी तरह का अन्याय सह रहे हैं या किसी और कारण से दुखी हैं, तो याद रखिए कि “यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है।” (भज. 34:18) वह आपसे प्यार करता है और चाहता है कि आप सब्र रखें और अपना बोझ उस पर डाल दें। (भज. 55:22) यहोवा इस पृथ्वी का न्यायी है और उसकी आँखों से कुछ नहीं छिपता। (1 पतरस 3:12 पढ़िए।) अगर आप ऐसे हालात का सामना कर रहे हैं, जिन्हें सुलझाना आपके बस में नहीं है, तो क्या आप यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करेंगे?

जो यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करते हैं, वे ढेरों आशीषें पाएँगे

17. यशायाह 30:18 में यहोवा ने क्या वादा किया है?

17 हमारा पिता यहोवा बहुत जल्द अपना राज लाएगा और हमें ढेरों आशीषें देगा। यशायाह 30:18 में लिखा है, “यहोवा इंतज़ार कर रहा है कि कब तुम पर रहम करे, वह दया करने के लिए ज़रूर कदम उठाएगा, क्योंकि यहोवा न्याय का परमेश्‍वर है। सुखी हैं वे जो उस पर उम्मीद लगाए रहते हैं।” जो लोग यहोवा पर उम्मीद लगाए रहते हैं, उन्हें आज बहुत-सी आशीषें मिलती हैं और नयी दुनिया में भी मिलेंगी।

18. भविष्य में हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

18 जब नयी दुनिया आएगी, तो हमें उन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिनका हम आज करते हैं। हर तरह की नाइंसाफी और दर्द को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा। (प्रका. 21:4) सबकुछ बहुतायत में होगा, इसलिए हमें किसी बात की चिंता नहीं होगी। (भज. 72:16; यशा. 54:13) सचमुच यह कितनी बढ़िया आशीष होगी!

19. यहोवा हमें किस चीज़ के लिए तैयार कर रहा है?

19 यहोवा आज हमें बुरी आदतें छोड़ने और अच्छे गुण बढ़ाने में मदद दे रहा है, ताकि जब उसका राज आए तो हम वहाँ जी सकें। इस बीच, हमें हार नहीं माननी चाहिए और यहोवा की सेवा करते रहना चाहिए। जल्द हमें एक अच्छी ज़िंदगी मिलनेवाली है! तो आइए हम सब्र रखें और उस वक्‍त का इंतज़ार करें, जब यहोवा अपना मकसद पूरा करेगा।

गीत 118 “हमारा विश्‍वास बढ़ा”

^ पैरा. 5 क्या आपने कभी सालों से यहोवा की सेवा करनेवाले किसी भाई या बहन को यह कहते सुना है, “मैंने नहीं सोचा था कि यह दुनिया इतने लंबे समय तक टिकेगी।” हम सब चाहते हैं कि इस दुष्ट दुनिया का नाश हो जाए, लेकिन हमें सब्र रखना होगा। इस लेख में हम सीखेंगे कि बाइबल के कौन-से सिद्धांत सब्र रखने में हमारी मदद करेंगे। हम ऐसे दो हालात के बारे में भी बात करेंगे, जिनमें हमें यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना चाहिए। आखिर में हम चर्चा करेंगे कि जो लोग सब्र रखते हैं, उन्हें क्या आशीषें मिलेंगी।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: बहन, बचपन से यहोवा से प्रार्थना करती आयी है। जब वह छोटी थी, तब उसके माता-पिता ने उसे प्रार्थना करना सिखाया। जब वह जवान हुई, तो वह पायनियर सेवा करने लगी। वह अकसर यहोवा से प्रार्थना करती थी कि वह उसकी सेवा पर आशीष दे। कई साल बाद, उसका पति बहुत बीमार हो गया। उसने यहोवा से बिनती की कि वह उसे इस मुश्‍किल को सहने की ताकत दे। आज वह एक विधवा है और वह अब भी यहोवा से प्रार्थना करती है। उसे यकीन है कि यहोवा हमेशा की तरह आज भी उसकी प्रार्थनाओं का जवाब देगा।