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अध्ययन लेख 36

जवान भाई-बहनों की कदर कीजिए

जवान भाई-बहनों की कदर कीजिए

“जवानों की शान उनकी ताकत है।”​—नीति. 20:29.

गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा

लेख की एक झलक *

1. बुज़ुर्ग भाई-बहन क्या कर सकते हैं?

जब हम बूढ़े होने लगते हैं, शायद हमें लगे कि हम लोगों की सेवा में ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं, हम बेकार हो गए हैं। भले ही हमारी ताकत कम हो जाए, फिर भी हममें बुद्धि और तजुरबा है। इनसे हम जवानों की मदद कर सकते हैं, ताकि वे यहोवा की सेवा में और ज़्यादा कर सकें और नयी ज़िम्मेदारियाँ उठा सकें। एक बुज़ुर्ग प्राचीन ने कहा, “हालाँकि मैं अब यहोवा की सेवा में ज़्यादा नहीं कर पा रहा हूँ, लेकिन ऐसे कई काबिल जवान भाई हैं, जो मंडली की ज़िम्मेदारियाँ उठा सकते हैं। यह देखकर मुझे खुशी होती है।”

2. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

2 पिछले लेख में हमने जाना था कि जब जवान भाई-बहन बुज़ुर्गों के साथ दोस्ती करते हैं, तो उन्हें क्या फायदे होते हैं। बुज़ुर्ग भाई-बहनों को भी जवानों के साथ दोस्ती करनी चाहिए। ऐसा करने के लिए उन्हें नम्र बनना होगा, मर्यादा में रहना होगा, उनका एहसान मानना होगा और दरियादिल बनना होगा। इस लेख में हम जानेंगे कि वे ये गुण कैसे बढ़ा सकते हैं।

नम्र बनिए

3. (क) फिलिप्पियों 2:3, 4 के मुताबिक, नम्र होने का क्या मतलब है? (ख) एक नम्र मसीही क्या कर पाएगा?

3 अगर बुज़ुर्ग भाई-बहन जवानों की मदद करना चाहते हैं, तो उन्हें नम्र बनना होगा। एक नम्र इंसान दूसरों को खुद से बेहतर समझता है। (फिलिप्पियों 2:3, 4 पढ़िए।) जो बुज़ुर्ग नम्र होते हैं, वे जानते हैं कि किसी काम को करने के कई तरीके होते हैं। इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि वह काम उसी तरीके से किया जाए, जैसे वे करते आए हैं। (सभो. 7:10) बुज़ुर्गों के पास बहुत तजुरबा होता है, जिससे वे जवानों की मदद कर सकते हैं। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि “इस दुनिया का दृश्‍य बदल रहा है,” इसलिए शायद उन्हें भी अपना काम करने का तरीका बदलना पड़े।​—1 कुरिं. 7:31.

बुज़ुर्ग भाई-बहन दूसरों को अपने अनुभव बताकर दरियादिल बनते हैं (पैराग्राफ 4-5 देखें) *

4. सर्किट निगरान लेवियों जैसा जज़्बा कैसे दिखाते हैं?

4 जो बुज़ुर्ग भाई-बहन नम्र हैं, वे मानते हैं कि अब वे पहले जितना काम नहीं कर सकते। इसलिए उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी दी जाती है, उसे वे खुशी-खुशी करते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे सर्किट निगरान। जब वे 70 साल के हो जाते हैं, उन्हें एक नयी ज़िम्मेदारी दी जाती है। यह बदलाव उनके लिए बहुत मुश्‍किल हो सकता है। क्योंकि वे सालों से सर्किट निगरान का काम कर रहे थे, उन्हें अपने काम से बहुत लगाव हो जाता है और वे अब भी भाई-बहनों की मदद करना चाहते हैं। लेकिन वे समझते हैं कि अब जवान भाइयों को सर्किट निगरान की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए। ऐसा करके वे पुराने ज़माने के लेवियों जैसा जज़्बा दिखाते हैं, जो सिर्फ 50 साल की उम्र तक पवित्र डेरे में सेवा कर सकते थे। इसके बाद उनकी ज़िम्मेदारी थी कि वे जवानों की मदद करें। (गिन. 8:25, 26) लेवियों ने यह ज़िम्मेदारी भी खुशी-खुशी निभायी। वैसे ही जो भाई सर्किट निगरान रह चुके हैं, अब अलग-अलग मंडलियों का दौरा नहीं करते, लेकिन जिस मंडली में होते हैं, वहाँ के भाई-बहनों की मदद करते हैं।

5. आप भाई डैन और बहन केटी से क्या सीखते हैं?

5 भाई डैन का उदाहरण लीजिए, जो 23 सालों से सर्किट निगरान थे। जब वे 70 साल के हुए, तो उन्हें और उनकी पत्नी केटी को खास पायनियर बना दिया गया। भाई डैन कहते हैं कि अब वे पहले से कहीं ज़्यादा व्यस्त हैं। उनके पास मंडली की कई ज़िम्मेदारियाँ हैं। वे भाइयों की मदद करते हैं, ताकि वे सहायक सेवक बन सकें। वे प्रचारकों को सरेआम गवाही देना और जेलों में प्रचार करना सिखाते हैं। आप भाई डैन और बहन केटी से क्या सीख सकते हैं? आप चाहे पूरे समय की सेवा कर रहे हों या नहीं, आप दूसरों की बहुत मदद कर सकते हैं। अपने नए हालात के मुताबिक खुद को ढालिए, नए लक्ष्य रखिए और उन कामों पर ध्यान दीजिए, जो आप कर सकते हैं, न कि उन पर जो आप नहीं कर सकते।

मर्यादा में रहिए

6. एक मिसाल देकर समझाइए कि हमें मर्यादा में क्यों रहना चाहिए।

6 जो इंसान मर्यादा में रहता है, वह अपनी हदें पहचानता है और सिर्फ उतना ही करता है, जितना वह कर सकता है। (नीति. 11:2) ऐसा करने से वह खुश रहता है और काम करता रह पाता है। मान लीजिए, एक व्यक्‍ति चढ़ाई पर गाड़ी चला रहा है। ऊपर चढ़ने के लिए उसे गाड़ी का गियर कम करना होगा। हालाँकि उसकी रफ्तार कम हो जाएगी, लेकिन वह आगे बढ़ता रह पाएगा। उसी तरह, मर्यादा में रहनेवाला व्यक्‍ति जानता है कि कब उसे पहले के मुकाबले कम काम करना पड़ेगा, ताकि वह यहोवा की सेवा करता रहे और दूसरों की भी मदद कर सके।​—फिलि. 4:5.

7. बरजिल्लै ने मर्यादा में रहकर क्या किया?

7 बरजिल्लै का उदाहरण लीजिए। जब वह 80 साल का था, राजा दाविद उसे अपने दरबार का एक मंत्री बनाना चाहता था। लेकिन बरजिल्लै जानता था कि वह बुज़ुर्ग हो चुका है और अब ज़्यादा नहीं कर पाएगा। इसलिए उसने राजा को मना कर दिया और अपनी जगह एक जवान आदमी, किमहाम को भेज दिया। (2 शमू. 19:35-37) आज भी बुज़ुर्ग भाई, जवान भाइयों को ज़िम्मेदारी उठाने का मौका देते हैं।

जब यहोवा ने दाविद को बताया कि उसका बेटा मंदिर बनाएगा, तो उसने यहोवा की बात मानी (पैराग्राफ 8 देखें)

8. राजा दाविद मर्यादा में कैसे रहा?

8 राजा दाविद भी मर्यादा में रहना जानता था। वह यहोवा के लिए मंदिर बनाना चाहता था। लेकिन जब यहोवा ने उससे कहा कि उसका बेटा, सुलैमान मंदिर बनाएगा, तो उसने उसकी बात मानी और मंदिर के लिए बहुत सारी तैयारियाँ कीं। (1 इति. 17:4; 22:5) दाविद ने यह नहीं सोचा कि वह सुलैमान से ज़्यादा अच्छा काम कर पाएगा, क्योंकि सुलैमान “अभी जवान है और उसे कोई तजुरबा नहीं है।” (1 इति. 29:1) दाविद जानता था कि मंदिर बनाने के लिए उम्र या तजुरबा नहीं, बल्कि यहोवा की आशीष होना ज़रूरी है। उसी तरह, जब बुज़ुर्ग भाई-बहनों को नयी ज़िम्मेदारी मिलती है, तो वे उसे जी-जान से करते हैं। वे जानते हैं कि यहोवा उन जवानों को भी आशीष देगा, जो अब उनका काम सँभाल रहे हैं।

9. भाई शीगेयो किस तरह मर्यादा में रहे?

9 एक भाई का उदाहरण लीजिए, जिनका नाम शीगेयो है। वे भी मर्यादा में रहे। सन्‌ 1976 में, 30 साल की उम्र में वे शाखा-समिति के एक सदस्य बन गए। सन्‌ 2004 में उन्हें शाखा-समिति प्रबंधक बनाया गया। कुछ सालों बाद उन्हें एहसास हुआ कि ढलती उम्र की वजह से अब वे इतने अच्छे-से काम नहीं कर पा रहे हैं, जितना पहले करते थे। उन्होंने प्रार्थना की और सोचा कि अगर एक जवान भाई उनकी ज़िम्मेदारियाँ उठा ले, तो अच्छा होगा। आज भाई शीगेयो प्रबंधक नहीं हैं, लेकिन वे शाखा-समिति के सदस्य हैं। तो जैसे हमने बरजिल्लै, राजा दाविद और भाई शीगेयो के उदाहरणों से सीखा, जो व्यक्‍ति नम्र है और मर्यादा में रहता है, वह जवानों के कम तजुरबे पर नहीं, बल्कि उनकी काबिलीयतों पर ध्यान देता है। वह यह सोचकर नहीं डरता कि जवान भाई उसकी ज़िम्मेदारियाँ छीनना चाहते हैं, बल्कि इस बात को समझेगा कि वे उसकी मदद करना चाहते हैं।​—नीति. 20:29.

एहसान मानिए

10. बुज़ुर्ग भाई-बहन, जवानों को क्या मानते हैं?

10 बुज़ुर्ग भाई-बहन यह बात मानते हैं कि जवान, यहोवा की तरफ से तोहफे हैं। जब मंडली के जवान भाई-बहन यहोवा की सेवा में अपनी ताकत लगाते हैं, तो यह देखकर बुज़ुर्ग भाई-बहनों को खुशी होती है और वे उनका एहसान मानते हैं।

11. रूत 4:13-16 से कैसे पता चलता है कि जवानों की मदद लेने से बुज़ुर्गों को आशीषें मिलती हैं?

11 जब जवान भाई-बहन बुज़ुर्गों की मदद करना चाहते हैं, तो बुज़ुर्ग भाई-बहनों को उनका एहसान मानना चाहिए और उनकी मदद लेनी चाहिए। नाओमी ने इस मामले में अच्छा उदाहरण रखा। जब नाओमी के बेटे की मौत हो गयी, तो उसने अपनी बहू रूत से कहा कि वह अपने मायके लौट जाए। लेकिन रूत ने जाने से मना कर दिया। उसने कहा कि वह नाओमी के साथ बेतलेहेम जाएगी। नाओमी ने उसे अपने साथ आने दिया। (रूत 1:7, 8, 18) रूत की मदद लेने से आगे चलकर उन दोनों को आशीषें मिलीं। (रूत 4:13-16 पढ़िए।) अगर बुज़ुर्ग, नाओमी की तरह नम्र होंगे, तो वे जवान भाई-बहनों की मदद लेंगे।

12. प्रेषित पौलुस ने भाई-बहनों का एहसान कैसे माना?

12 प्रेषित पौलुस ने भी उन भाई-बहनों का एहसान माना, जिन्होंने उसकी मदद की। जब फिलिप्पी के भाई-बहनों ने उसे ज़रूरत की चीज़ें भेजीं, तो उसने उनका धन्यवाद किया। (फिलि. 4:16) उसने तीमुथियुस का भी धन्यवाद किया कि उसने उसकी मदद की। (फिलि. 2:19-22) जब पौलुस को बंदी बनाकर रोम ले जाया जा रहा था और रास्ते में भाई-बहन उसका हौसला बढ़ाने आए, तो उसने यहोवा का धन्यवाद किया। (प्रेषि. 28:15) पौलुस बहुत जोशीला था, उसने अलग-अलग जगह जाकर प्रचार किया और कई मंडलियों का हौसला बढ़ाया। फिर भी वह घमंडी नहीं बना, जब भी भाई-बहनों ने उसकी मदद करनी चाही, उसने उनकी मदद ली।

13. बुज़ुर्ग भाई-बहन किन तरीकों से जवानों का एहसान मान सकते हैं?

13 बुज़ुर्गो, आप कई तरीकों से जता सकते हैं कि आप जवानों का एहसान मानते हैं। अगर जवान कहीं आने-जाने में, खरीदारी करने में या किसी और तरीके से आपकी मदद करना चाहते हैं, तो उनकी मदद लीजिए। उन्हें मना मत कीजिए, क्योंकि उनके ज़रिए यहोवा आपको अपना प्यार जता रहा है। हो सकता है, उनके साथ आपकी अच्छी दोस्ती भी हो जाए। यहोवा के करीब आने में उनकी मदद कीजिए। उन्हें बताइए कि दूसरों की मदद करने में वे जो मेहनत कर रहे हैं, उसे देखकर आप खुश हैं। उनके साथ वक्‍त बिताइए और उन्हें अपनी ज़िंदगी के अनुभव बताइए। ये सब करने से आप दिखाएँगे कि आप यहोवा के “कितने एहसानमंद” हैं कि उसने मंडली में ऐसे जवान भाई-बहन दिए हैं।​—कुलु. 3:15; यूह. 6:44; 1 थिस्स. 5:18.

दरियादिल बनिए

14. दाविद ने कैसे दरियादिली दिखायी?

14 दाविद से हम एक और गुण के बारे में सीख सकते हैं और वह है दरियादिली। मंदिर के निर्माण काम के लिए दाविद ने अपने खज़ाने से बहुत सारा पैसा और कीमती चीज़ें दीं। (1 इति. 22:11-16; 29:3, 4) उसे पता था कि यह मंदिर सुलैमान के नाम से जाना जाएगा, फिर भी उसने ऐसा किया। जब बुज़ुर्ग भाई-बहनों में निर्माण काम में हिस्सा लेने की ताकत नहीं होती, तो वे अपने हालात के मुताबिक दान देकर निर्माण काम में सहयोग दे सकते हैं। वे एक और तरीके से दरियादिल बन सकते हैं, अपने सालों के तजुरबे से जवानों को सिखाकर।

15. हम कैसे कह सकते हैं कि पौलुस दरियादिल था?

15 पौलुस भी दरियादिल था। अपने मिशनरी दौरे पर वह तीमुथियुस को अपने साथ लेकर गया। उसने तीमुथियुस को एक अच्छा प्रचारक और शिक्षक बनना सिखाया। (प्रेषि. 16:1-3; 1 कुरिं. 4:17) तीमुथियुस ने पौलुस से जो भी बातें सीखीं, उसने दूसरों को भी सिखायीं।

16. भाई शीगेयो ने जवान भाइयों को क्यों सिखाया?

16 बुज़ुर्ग भाइयों को ऐसा नहीं लगता कि जवानों को सिखाने से संगठन में उनका कोई काम नहीं रह जाएगा। उदाहरण के लिए भाई शीगेयो, जिनका पहले ज़िक्र किया गया था, शाखा-समिति के जवान भाइयों को सिखाते आए हैं। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि उस देश का प्रचार काम अच्छे-से हो सके। जब समय आया इनमें से एक भाई उनकी जगह प्रबंधक बन पाया। भाई शीगेयो 45 सालों से शाखा-समिति के सदस्य हैं और वे आज भी जवान भाइयों को सिखा रहे हैं। सच में, ऐसे भाइयों से दूसरों को बहुत मदद मिलती है!

17. बुज़ुर्ग भाई-बहन लूका 6:38 में दी सलाह कैसे मान सकते हैं?

17 आप बुज़ुर्ग भाई-बहन, इस बात का जीता-जागता सबूत हैं कि यहोवा की सेवा करना ज़िंदगी जीने का सबसे अच्छा तरीका है। आपकी ज़िंदगी से यह साफ पता चलता है कि बाइबल के सिद्धांत सीखने से और उनके मुताबिक जीने से हमें फायदा होता है। आप जानते हैं कि पहले चीज़ें कैसे की जाती थीं, लेकिन आपने बदलते हालात के साथ-साथ नए-नए तरीकों से काम करना सीखा है। अगर आपका बपतिस्मा हाल ही में हुआ है, तब भी आप जवानों की मदद कर सकते हैं। आप उन्हें बता सकते हैं कि इस उम्र में यहोवा के बारे में सीखकर आपको कितनी खुशी मिली है। बुज़ुर्गो, आपके अनुभव सुनकर जवानों को बहुत अच्छा लगेगा और आपको भी यहोवा से ढेरों आशीषें मिलेंगी।​—लूका 6:38 पढ़िए।

18. जब बुज़ुर्ग और जवान भाई-बहन साथ मिलकर काम करते हैं, तो क्या होता है?

18 जब बुज़ुर्गों और जवानों में अच्छी दोस्ती होती है, तो वे एक-दूसरे का साथ दे पाते हैं। (रोमि. 1:12) दोनों उम्र के लोगों की अहमियत है। बुज़ुर्गों के पास बुद्धि और तजुरबा है और जवानों के पास ताकत। जब बुज़ुर्ग और जवान साथ मिलकर काम करते हैं, तो परमेश्‍वर की महिमा होती है और मंडली में एकता बनी रहती है।

गीत 90 एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ

^ पैरा. 5 हमें इस बात की बहुत खुशी है कि यहोवा के संगठन में ऐसे कई जवान भाई-बहन हैं, जो बहुत मेहनत करते हैं। बुज़ुर्ग भाई-बहन चाहे किसी भी जगह या संस्कृति के क्यों न हों, वे जवानों की मदद कर सकते हैं। इससे जवान भाई-बहन यहोवा की सेवा में अपनी पूरी ताकत लगा सकेंगे।

^ पैरा. 55 तसवीर के बारे में: एक सर्किट निगरान की उम्र 70 साल हो गयी है। अब उन्हें और उनकी पत्नी को दूसरी ज़िम्मेदारी मिली है। वे जिस मंडली में हैं, वहाँ अपने अनुभव से दूसरे भाई-बहनों को सिखा पा रहे हैं।