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ଅଧ୍ୟୟନ ଲେଖା ୪୦

ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିବାର ଅର୍ଥ କ’ଣ ?

ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିବାର ଅର୍ଥ କ’ଣ ?

‘ମୁଁ . . . ମନପରିବର୍ତ୍ତନ ନିମନ୍ତେ ପାପୀମାନଙ୍କୁ ଆହ୍ବାନ କରିବା ପାଇଁ ଆସିଅଛି ।’—ଲୂକ ୫:୩୨.

ଗୀତ ୩୬ दिल का नाता है जीवन से

ଲେଖାର ଝଲକ *

୧-୨. (କ) ରାଜା ଆହାବ ଓ ମନଃଶିଠାରେ କ’ଣ ପାର୍ଥକ୍ୟ ଥିଲା ? (ଖ) ଏହି ଲେଖାରେ ଆମେ କ’ଣ ଆଲୋଚନା କରିବା ?

 पुराने ज़माने में दो राजा थे। एक इसराएल का राजा था और दूसरा, यहूदा का। ये दोनों राजा, अलग-अलग समय में जीए थे। लेकिन इनमें बहुत-सी बातें एक-जैसी थीं। दोनों राजाओं ने परमेश्‍वर के खिलाफ काम किया था और उनकी वजह से परमेश्‍वर के लोगों ने गलत काम किए। उन राजाओं ने मूर्तिपूजा की और लोगों की हत्या की। लेकिन उन दोनों राजाओं में एक बात अलग थी। एक राजा मरते दम तक बुरे काम करता रहा। लेकिन दूसरे राजा ने अपनी गलती मानी और पश्‍चाताप किया। इस वजह से यहोवा ने उसे माफ कर दिया। ये राजा कौन थे?

इसराएल का राजा, अहाब और यहूदा का राजा, मनश्‍शे। हम इन दोनों राजाओं की कहानी से सीखेंगे कि पश्‍चाताप करने का क्या मतलब है और हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें अपने किए पर सच में पछतावा है। (प्रेषि. 17:30; रोमि. 3:23) यह जानना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि हमसे भी पाप हो सकता है और हम चाहते हैं कि यहोवा हमें माफ करे। हम इस लेख में यह भी जानेंगे कि यीशु ने पश्‍चाताप करने के बारे में क्या सिखाया था।

ରାଜା ଆହାବ

୩. ଆହାବ କିଭଳି ରାଜା ଥିଲେ ?

अहाब इसराएल का सातवाँ राजा था। उसने सीदोन के राजा की बेटी, इज़ेबेल से शादी की थी। इस शादी की वजह से इसराएल राज्य को मुनाफा तो हुआ, लेकिन नुकसान ज़्यादा हुआ। इसराएली यहोवा के खिलाफ और भी पाप करने लगे। इज़ेबेल, बाल की उपासना करती थी और उसने अहाब के ज़रिए पूरे देश में बाल की उपासना फैला दी। यह उपासना इतनी घिनौनी थी कि बाल के मंदिरों में वेश्‍याएँ रहती थीं और बच्चों की बलि चढ़ायी जाती थी। इज़ेबेल ने यहोवा के कई भविष्यवक्‍ताओं को जान से भी मरवा डाला। (1 राजा 18:13) अहाब ने भी बहुत-से बुरे काम किए थे। इसलिए बाइबल में बताया है कि “अहाब यहोवा की नज़र में उन सभी राजाओं से बदतर निकला जो उससे पहले हुए थे।” (1 राजा 16:30) यहोवा को पता था कि अहाब और इज़ेबेल क्या कर रहे हैं, फिर भी उसने उन पर दया की। उसने भविष्यवक्‍ता एलियाह को भेजकर उन्हें और दूसरे लोगों को चेतावनी दी। लेकिन अहाब और इज़ेबेल ने किसी की नहीं सुनी।

୪. ଯିହୋବା କେଉଁ ଦଣ୍ଡ ଶୁଣାଇଲେ ଏବଂ ଆହାବ କ’ଣ କଲେ ?

आखिरकार, यहोवा के सब्र का बाँध टूट गया। उसने एलियाह के ज़रिए अहाब और इज़ेबेल को बताया कि वह उनके खानदान को पूरी तरह मिटा देगा। यह बात अहाब को बुरी तरह लग गयी! और वह घमंडी राजा “नम्र बन गया।”​—1 राजा 21:19-29.

राजा अहाब को अपने किए पर दिल से पछतावा नहीं था, इसलिए उसने मीकायाह को कैद में डलवा दिया (पैराग्राफ 5-6 देखें) *

୫-୬. ଆହାବ କ’ଣ ପ୍ରକୃତରେ ନିଜେ କରିଥିବା ଭୁଲ ପ୍ରତି ପଶ୍ଚାତାପ କରିଥିଲେ ? ବୁଝାନ୍ତୁ ।

यह बात सच है कि अहाब ने उस वक्‍त खुद को नम्र किया। लेकिन उसने बाद में जो किया, उससे पता चलता है कि उसे सच में अपने किए पर पछतावा नहीं था। उसने अपने राज्य से बाल की उपासना नहीं हटायी, न ही उसने लोगों को यहोवा की उपासना करने का बढ़ावा दिया। उसने और भी बहुत कुछ किया, जिससे पता चलता है कि उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था।

कुछ समय बाद, अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा कि वह सीरिया के खिलाफ युद्ध करने में उसका साथ दे। यहोशापात एक अच्छा राजा था, इसलिए उसने कहा कि उन्हें इस मामले में यहोवा के भविष्यवक्‍ता से सलाह लेनी चाहिए। अहाब ऐसा नहीं करना चाहता था, क्योंकि उसने कहा, “एक और आदमी है जिसके ज़रिए हम यहोवा से सलाह माँग सकते हैं, मगर मुझे उस आदमी से नफरत है। वह मेरे बारे में कभी अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करता, सिर्फ बुरी बातें कहता है।” फिर भी, अहाब मान गया और दोनों राजाओं ने भविष्यवक्‍ता मीकायाह से सलाह ली। जैसा अहाब ने कहा था, भविष्यवक्‍ता ने उसके बारे में बुरी खबर सुनायी। यह सुनकर खुद को बदलने के बजाय, अहाब ने भविष्यवक्‍ता को ही कैद में डाल दिया। (1 राजा 22:7-9, 23, 27) हालाँकि उसने भविष्यवक्‍ता का मुँह बंद करवा दिया, लेकिन वह यहोवा की बात को पूरा होने से नहीं रोक पाया। उसी युद्ध में अहाब की मौत हो गयी।​—1 राजा 22:34-38.

୭. ଯିହୋବା ଆହାବଙ୍କ ବିଷୟରେ କ’ଣ କହିଲେ ?

युद्ध के बाद जब राजा यहोशापात सही-सलामत अपने महल पहुँचा, तो यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता, येहू के ज़रिए उसे बताया कि वह अहाब के बारे में क्या सोचता है। येहू ने राजा को डाँटते हुए कहा, “क्या तुझे एक दुष्ट  की मदद करनी चाहिए और उन लोगों से प्यार करना चाहिए जो यहोवा से नफरत करते हैं?”  (2 इति. 19:1, 2) ज़रा सोचिए, अगर अहाब ने दिल से पश्‍चाताप किया होता, तो क्या यहोवा उसे दुष्ट कहता? क्या वह उसे उन लोगों में गिनता, जो उससे नफरत करते हैं? हालाँकि अहाब को अपनी गलती का अफसोस था, लेकिन उसने पश्‍चाताप नहीं किया।

୮. ରାଜା ଆହାବଙ୍କ କାହାଣୀରୁ ଆମେ କ’ଣ ଶିଖୁ ?

हम अहाब से क्या सीखते हैं? हम सीखते हैं कि पश्‍चाताप करने के लिए सिर्फ अपने किए पर अफसोस करना काफी नहीं है। हमें और भी कुछ करना होगा। आइए इस बारे में राजा मनश्‍शे से सीखें।

ରାଜା ମନଃଶି

୯. ମନଃଶି କିଭଳି ରାଜା ଥିଲେ ?

करीब 200 साल बाद, मनश्‍शे यहूदा का राजा बना। उसने शायद अहाब से भी ज़्यादा बुरे काम किए। इसलिए उसके बारे में कहा गया, “उसने ऐसे काम करने में सारी हदें पार कर दीं जो यहोवा की नज़र में बुरे थे और उसका क्रोध भड़काया।” (2 इति. 33:1-9) उसने झूठे देवी-देवताओं के लिए वेदियाँ बनायीं और यहोवा के मंदिर के अंदर एक पूजा-लाठ खड़ी की, जो शायद प्रजनन देवी की मूर्ति थी। उसने जादू, ज्योतिषी का काम और टोना-टोटका किया। उसने “बेहिसाब मासूमों का खून बहाया।” यहाँ तक कि उसने झूठे देवी-देवताओं के लिए “अपने बेटों को आग में होम कर दिया।”​—2 राजा 21:6, 7, 10, 11, 16.

୧୦. ଯିହୋବା ମନଃଶିଙ୍କୁ କିପରି ସୁଧାରିଲେ ଆଉ ମନଃଶି କ’ଣ କଲେ ?

୧୦ यहोवा ने मनश्‍शे को चेतावनी देने के लिए अपने कई भविष्यवक्‍ता भेजे। लेकिन उसने अहाब की तरह उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसलिए “यहोवा ने अश्‍शूर के राजा के सेनापतियों से [यहूदा] पर हमला करवाया। उन्होंने मनश्‍शे को पकड़ लिया, उसे नकेल डाली और ताँबे की दो बेड़ियों से जकड़कर बैबिलोन ले गए।” जब मनश्‍शे कैद था, तो उसने अपने कामों के बारे में सोचा। उसने “अपने पुरखों के परमेश्‍वर के सामने खुद को बहुत नम्र किया।”  इतना ही नहीं, उसने “अपने परमेश्‍वर यहोवा से रहम की भीख माँगी” और उससे “प्रार्थना करता रहा।”  धीरे-धीरे मनश्‍शे का मन बदलने लगा। वह यहोवा को ‘अपना परमेश्‍वर’ मानने लगा।​—2 इति. 33:10-13.

राजा मनश्‍शे को अपने किए पर दिल से पछतावा था, इसलिए उसने झूठी उपासना मिटाने की कोशिश की (पैराग्राफ 11 देखें) *

୧୧. ଦ୍ବିତୀୟ ବଂଶାବଳୀ ୩୩:୧୫, ୧୬ ପଦରୁ କିପରି ଜଣାପଡ଼େ ଯେ ମନଃଶିଙ୍କୁ ପ୍ରକୃତରେ ନିଜେ କରିଥିବା ଭୁଲ ପ୍ରତି ପଶ୍ଚାତାପ ଥିଲା ?

୧୧ यहोवा ने देखा कि मनश्‍शे का मन सच में बदल गया है। इसलिए उसने उसे माफ किया और कुछ समय बाद उसे उसकी राजगद्दी लौटा दी। राजा बनने के बाद, मनश्‍शे ने यह दिखाया कि उसे अपने किए पर सचमुच पछतावा है। उसने वह किया जो अहाब ने नहीं किया था। उसने खुद को बदला। अपने राज्य से झूठी उपासना निकालने की कोशिश की और लोगों को सच्ची उपासना करने का बढ़ावा दिया। (2 इतिहास 33:15, 16 पढ़िए।) यह सब करना उसके लिए आसान नहीं था, क्योंकि उसने अपनी पूरी जवानी बुरे-बुरे काम किए। और अपने परिवारवालों, मंत्रियों और लोगों के लिए बुरी मिसाल रखी। लेकिन अपने बुढ़ापे में उसने यहोवा पर विश्‍वास रखकर और हिम्मत जुटाकर अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश की। शायद इस सबका, उसके पोते योशियाह पर अच्छा असर पड़ा, क्योंकि बाद में वह एक अच्छा राजा बना।​—2 राजा 22:1, 2.

୧୨. ପଶ୍ଚାତାପ କରିବା ବିଷୟରେ ଆମେ ମନଃଶିଙ୍କଠାରୁ କ’ଣ ଶିଖୁ ?

୧୨ मनश्‍शे से हम क्या सीखते हैं? मनश्‍शे ने खुद को नम्र किया। लेकिन उसके साथ-साथ उसने और भी बहुत कुछ किया। उसने यहोवा से प्रार्थना की, रहम की भीख माँगी। खुद को बदला। अपनी गलती सुधारने की कोशिश की। यहोवा की उपासना की और दूसरों को भी उसकी उपासना करने का बढ़ावा दिया। मनश्‍शे के उदाहरण से हम सीखते हैं कि जो लोग बुरे-से-बुरे पाप करते हैं, उन्हें भी माफी मिल सकती है, क्योंकि यहोवा “भला है और माफ करने को तत्पर रहता है।” (भज. 86:5) लेकिन उन्हें अपने किए पर दिल से पश्‍चाताप करना चाहिए।

୧୩. ଗୋଟିଏ ଉଦାହରଣ ଦେଇ ବୁଝାନ୍ତୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିବା ପାଇଁ କ’ଣ କରିବା ଯଥେଷ୍ଟ ନୁହେଁ ?

୧୩ दिल से पश्‍चाताप करने के लिए सिर्फ अफसोस होना काफी नहीं है। इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लेते हैं। आप एक मिठाई की दुकान में जाते हैं और दुकानदार से गुलाब जामुन माँगते हैं। लेकिन दुकानदार आपको गुलाब जामुन देने के बजाय शक्कर थमा देता है। क्या आप उसे लेकर आ जाएँगे? नहीं। अगर दुकानदार आपसे कहता है कि शक्कर गुलाब जामुन बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है, तो क्या आप मान जाएँगे? बिलकुल नहीं! उसी तरह, अपने किए पर अफसोस होना अच्छी बात है, लेकिन यह काफी नहीं है। यहोवा चाहता है कि हमें दिल से अपने किए पर पछतावा हो। इसका क्या मतलब है? यीशु ने खोए हुए बेटे की जो मिसाल दी, आइए उससे जानें।

ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତି ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିଛି ବୋଲି କିପରି ଜାଣିବା

जब खोए हुए बेटे की अक्ल ठिकाने आयी, तो वह घर लौट आया (पैराग्राफ 14-15 देखें) *

୧୪. ଯୀଶୁଙ୍କ କାହାଣୀରୁ କିପରି ଜଣାପଡ଼େ ଯେ ପୁଅ ନିଜେ କରିଥିବା ଭୁଲ ପ୍ରତି ଦୁଃଖିତ ଥିଲେ ?

୧୪ लूका 15:11-32 में खोए हुए बेटे की मिसाल दी गयी है। यह बेटा अपने पिता का घर छोड़कर “किसी दूर देश” चला जाता है और वहाँ पर ऐयाशी की ज़िंदगी जीता है। जब उस पर मुसीबत टूट पड़ती है, तो ‘उसकी अक्ल ठिकाने आ जाती है।’ उसे एहसास होता है कि उसने गलत किया। वह याद करता है कि वह अपने पिता के घर कितना खुश था। वह फैसला करता है कि वह घर जाएगा और अपने पिता से माफी माँगेगा। यह अच्छी बात थी कि बेटे को एहसास हुआ कि उसने गलती की है, लेकिन यह काफी नहीं था। उसे खुद को भी बदलना था।

୧୫. ଯୀଶୁଙ୍କ ଉଦାହରଣରେ ପୁଅ ଏପରି କ’ଣ କଲେ, ଯେଉଁଥିରୁ ଜଣାପଡ଼େ ଯେ ତାଙ୍କୁ ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ ଥିଲା ?

୧୫ उस खोए हुए बेटे को अपने किए पर बहुत पछतावा होता है। इसीलिए वह इतना लंबा सफर तय करके अपने घर वापस जाता है। उसके बाद, वह अपने पिता से मिलता है और कहता है, “मैंने स्वर्ग के और तेरे खिलाफ पाप किया है। मैं इस लायक नहीं कि तेरा बेटा कहलाऊँ।” (लूका 15:21) उसकी बातों से पता चलता है कि वह यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता सुधारना चाहता है। वह यह भी मानता है कि उसने अपने पिता को बहुत दुख पहुँचाया है। वह अपने पिता के साथ अपना रिश्‍ता सुधारने के लिए उसके यहाँ काम करने के लिए भी तैयार हो जाता है। (लूका 15:19) यीशु की यह कहानी, सिर्फ कहानी नहीं है। इससे प्राचीन बहुत कुछ सीख सकते हैं। खासकर तब जब किसी भाई या बहन से कोई पाप हो जाता है और वे यह जानना चाहते हैं कि उसे सच में अपने किए पर पछतावा है या नहीं।

୧୬. ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତି ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିଛି ବୋଲି ପ୍ରାଚୀନମାନଙ୍କୁ ଜାଣିବା କାହିଁକି କଠିନ ହୁଏ ?

୧୬ प्राचीनों के लिए यह जानना आसान नहीं है कि जिस व्यक्‍ति ने पाप किया है, उसे सच में अपने किए पर पछतावा है या नहीं। क्यों? क्योंकि वे उस व्यक्‍ति का मन नहीं पढ़ सकते। उन्हें सबूतों के आधार पर फैसला करना पड़ता है। कभी-कभार ऐसा होता है कि एक व्यक्‍ति पाप करने की सारी हदें पार कर देता है। ऐसे में प्राचीनों के लिए उसकी बातों पर यकीन करना, शायद मुश्‍किल हो।

୧୭. (କ) ଗୋଟିଏ ଉଦାହରଣ ଦେଇ ବୁଝାନ୍ତୁ, ନିଜ ଭୁଲ ପ୍ରତି ଦୁଃଖିତ ହେବା କାହିଁକି ଯଥେଷ୍ଟ ନୁହେଁ । (ଖ) ୨ କରିନ୍ଥୀୟ ୭:୧୧ ପଦ ଅନୁସାରେ, ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତିକୁ ସ୍ବ ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିବା ପାଇଁ କ’ଣ କରିବା ଉଚିତ୍‌ ?

୧୭ मान लीजिए कि एक भाई, सालों के दौरान बार-बार व्यभिचार करता है। वह इस बारे में अपनी पत्नी से, दोस्तों से और प्राचीनों से छिपाता है। बाद में उसकी गलती का परदाफाश हो जाता है। जब प्राचीन उससे बात करते हैं, तो वह अपनी गलती मानता है और उसे अपने किए पर अफसोस भी होता है। लेकिन क्या पश्‍चाताप करने के लिए इतना काफी है? नहीं। प्राचीनों को और भी बातों पर ध्यान देना होगा। उस भाई ने एक बार नहीं, बल्कि बार-बार पाप किया। उसने खुद आकर अपनी गलती नहीं मानी, किसी और ने उसका परदाफाश किया। ऐसे में प्राचीनों को ध्यान देना होगा कि क्या उस व्यक्‍ति की सोच और चालचलन में कोई बदलाव है। (2 कुरिंथियों 7:11 पढ़िए।) शायद खुद को बदलने में उस व्यक्‍ति को काफी समय लगे। इसलिए प्राचीन शायद उस व्यक्‍ति को मंडली से तब तक के लिए बहिष्कृत कर दें, जब तक कि वह अपने आपको पूरी तरह नहीं बदल लेता।​—1 कुरिं. 5:11-13; 6:9, 10.

୧୮. (କ) ଯଦି ଜଣେ ବହିଷ୍କାର ବ୍ୟକ୍ତିକୁ ପ୍ରକୃତରେ ନିଜେ କରିଥିବା ଭୁଲ ପାଇଁ ପଶ୍ଚାତାପ କରେ, ତେବେ ସେ କ’ଣ କରିବ ? (ଖ) ଏପରି କରିଲେ କ’ଣ ହେବ ?

୧୮ अगर एक बहिष्कृत व्यक्‍ति को दिल से अपने किए पर पछतावा है, तो वह हर सभा में आएगा। और प्राचीनों की सलाह मानकर प्रार्थना करेगा और बाइबल का अध्ययन करेगा। वह ऐसी हर चीज़ से बचेगा, जिसकी वजह से वह अपना पाप दोहरा सकता है। अगर वह यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को सुधारने की पूरी कोशिश करेगा, तो यहोवा उसे माफ करेगा और प्राचीन भी उसे वापस मंडली का हिस्सा बनाएँगे। पाप करनेवाले हर व्यक्‍ति के हालात एक-जैसे नहीं होते। इसलिए प्राचीन हर मामले को ध्यान से जाँचते हैं और इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे कठोरता से न्याय न करें।

୧୯. ହୃଦୟରୁ ପଶ୍ଚାତାପ କରିବା ପାଇଁ ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତିକୁ କ’ଣ କରିବାକୁ ହେବ ? (ଯିହିଜିକଲ ୩୩:୧୪-୧୬)

୧୯ जैसा कि हमने सीखा, एक पाप करनेवाले के लिए सिर्फ यह कहना काफी नहीं है कि उसे अपने किए पर पछतावा है। उसे अपनी सोच और चालचलन में बदलाव करना होगा। अपने गलत कामों को छोड़ना होगा और यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीना होगा। (यहेजकेल 33:14-16 पढ़िए।) सबसे बढ़कर, उसे यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को सुधारने के लिए मेहनत करनी होगी।

ପଶ୍ଚାତାପ କରିବାରେ ଉତ୍ସାହ ଦିଅନ୍ତୁ

୨୦-୨୧. ଯେତେବେଳେ ଆମର କୌଣସି ସାଙ୍ଗ ପାପ କରନ୍ତି, ସେତେବେଳେ ଆମେ କ’ଣ କରିବା ଉଚିତ୍‌ ?

୨୦ यीशु सिर्फ प्रचार करने नहीं, बल्कि एक और वजह से धरती पर आया था। उसने कहा, ‘मैं पापियों को बुलाने आया हूँ कि वे पश्‍चाताप करें।’ (लूका 5:32) हम भी चाहते हैं कि जो लोग पाप करते हैं, वे पश्‍चाताप करें। लेकिन अगर हमें पता चलता है कि हमारे दोस्त से कोई पाप हुआ है, तो हमें क्या करना चाहिए?

୨୧ हमें अपने दोस्त की गलती नहीं छिपानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उसी का नुकसान होगा। और छिपाने का कोई फायदा भी नहीं है, क्योंकि यहोवा सबकुछ देखता है। (नीति. 5:21, 22; 28:13) इसलिए हमें अपने दोस्त से कहना चाहिए कि वह प्राचीनों को सबकुछ सच-सच बताए। लेकिन अगर वह ऐसा नहीं करता, तो हमें प्राचीनों से जाकर बात करनी चाहिए। ऐसा करना ज़रूरी है, क्योंकि यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता खतरे में है। इतना ही नहीं, ऐसा करके हम अपनी दोस्ती भी निभा रहे होंगे।

୨୨. ପରବର୍ତ୍ତୀ ଲେଖାରେ ଆମେ କ’ଣ ଆଲୋଚନା କରିବା ?

୨୨ जब एक व्यक्‍ति बहुत बड़ा पाप करता है और लंबे समय तक करता रहता है, तो शायद प्राचीनों को उसे मंडली से बहिष्कृत करना पड़े। लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि उन्होंने उस पर दया नहीं की? अगले लेख में हम जानेंगे कि यहोवा जब किसी पाप करनेवाले को सुधारता है, तो उससे कैसे पता चलता है कि वह एक दयालु परमेश्‍वर है। और हम उसकी तरह दया कैसे कर सकते हैं।

ଗୀତ ୧୦୩ चरवाहे, आदमियों के रूप में तोहफे

^ ଅନୁ. 5 पश्‍चाताप करना, सिर्फ अपने किए पर अफसोस करना नहीं है। हम राजा अहाब, मनश्‍शे और खोए हुए बेटे की मिसाल से सीखेंगे कि दिल से पश्‍चाताप करने का क्या मतलब है। हम यह भी जानेंगे कि जब एक व्यक्‍ति पाप करता है, तो प्राचीन कैसे जान सकते हैं कि उसे सच में अपने किए पर पछतावा है या नहीं।

^ ଅନୁ. 60 तसवीर के बार में: राजा अहाब गुस्से में आकर अपने आदमियों से कहता है कि वे यहोवा के भविष्यवक्‍ता, मीकायाह को कैद में डाल दें।

^ ଅନୁ. 62 तसवीर के बार में: राजा मनश्‍शे ने यहोवा के मंदिर में जितनी भी मूर्तियाँ खड़ी करवायी थीं, उन्हें वह अपने आदमियों से कहकर तुड़वा रहा है।

^ ଅନୁ. 64 तसवीर के बार में: यीशु की कहानी में बताया बेटा, लंबा सफर तय करके थक गया है। लेकिन जब वह दूर से अपना घर देखता है, तो उसे खुशी होती है।