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अध्ययन लेख 51

यीशु की सुनते रहिए

यीशु की सुनते रहिए

“यह मेरा प्यारा बेटा है जिसे मैंने मंज़ूर किया है। इसकी सुनो।”​—मत्ती 17:5.

गीत 54 “राह यही है!”

लेख की एक झलक *

1-2. (क) यीशु के तीन प्रेषितों को क्या आज्ञा दी गयी थी और उन्होंने क्या किया? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

ईसवी सन्‌ 32 के फसह के बाद का समय था। प्रेषित पतरस, याकूब और यूहन्‍ना यीशु के साथ एक ऊँचे पहाड़ पर थे और वहाँ उन्होंने एक दर्शन देखा। उस दर्शन में यीशु का रूप बदल गया। “उसका चेहरा सूरज की तरह दमक उठा और उसके कपड़े रौशनी की तरह चमकने लगे।” (मत्ती 17:1-4) दर्शन खत्म होने से ठीक पहले प्रेषितों ने परमेश्‍वर को कहते सुना, “यह मेरा प्यारा बेटा है जिसे मैंने मंज़ूर किया है। इसकी सुनो।” (मत्ती 17:5) इन तीनों प्रेषितों ने जिस तरीके से अपनी ज़िंदगी जी, उससे पता चलता है कि उन्होंने यीशु की सुनी। हमें भी इन प्रेषितों की तरह यीशु की सुननी चाहिए।

2 पिछले लेख में हमने सीखा था कि यीशु की सुनने का मतलब है कि हमें कुछ चीजें नहीं करनी चाहिए।  इस लेख में हम जानेंगे कि यीशु की सुनने के लिए हमें कौन-सी दो चीज़ें करनी चाहिए।

“सँकरे फाटक से अंदर जाओ”

3. मत्ती 7:13, 14 के मुताबिक, हमें क्या करना चाहिए?

3 मत्ती 7:13, 14 पढ़िए। यीशु ने बताया कि दो फाटक हैं, जो दो रास्तों की तरफ खुलते हैं। एक रास्ता “खुला” है और दूसरा “तंग।” गौर कीजिए कि यीशु ने कहा कि सिर्फ दो रास्ते हैं। हमें इन्हीं में से एक चुनना है। यह हमारी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी फैसला है, क्योंकि इसी पर हमारा भविष्य टिका है। एक ही रास्ता हमेशा की ज़िंदगी की तरफ ले जाता है।

4. ‘खुले’ रास्ते के बारे में कुछ बताइए।

4 ये दो रास्ते अलग-अलग हैं। बहुत-से लोग ‘खुले’ रास्ते पर जाना पसंद करते हैं, क्योंकि इस पर चलना आसान है। कई लोग दूसरों की देखा-देखी इसी रास्ते पर चलते हैं। उन्हें नहीं पता कि शैतान ही उन्हें इस रास्ते पर ले जा रहा है। यह रास्ता विनाश की तरफ जाता है।​—1 कुरिं. 6:9, 10; 1 यूह. 5:19.

5. कुछ लोगों ने “तंग” रास्ता कैसे ढूँढ़ा?

5 ‘खुले’ रास्ते के मुकाबले, दूसरा रास्ता “तंग” है और यीशु ने कहा कि उस पर चलनेवाले थोड़े हैं। क्यों? अगली आयत में ही यीशु ने कहा कि झूठे भविष्यवक्‍ता आएँगे और लोगों को बहकाएँगे। (मत्ती 7:15) आज यीशु की यह बात पूरी हो रही है। दुनिया में बहुत सारे धर्म हैं और हर धर्म कहता है कि वह सच्चाई सिखाता है। इस वजह से लाखों लोग परेशान हैं और उलझन में हैं। वे जीवन की तरफ ले जानेवाले रास्ते को ढूँढ़ने की कोशिश ही नहीं करते। उन्हें लगता है कि यह रास्ता मिलना नामुमकिन है। लेकिन ऐसा नहीं है। यीशु ने कहा, “अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।” (यूह. 8:31, 32) खुशी की बात है कि आप भीड़ के पीछे नहीं गए बल्कि आपने सच्चाई की तलाश की। आपने बाइबल का अध्ययन किया और जाना कि परमेश्‍वर हमसे क्या चाहता है। आपने यीशु की शिक्षाओं के बारे में भी सीखा। आपने सीखा कि यहोवा चाहता है कि हम झूठे धर्मों की शिक्षाएँ ठुकरा दें और त्योहार और रीति-रिवाज़ मनाना छोड़ दें। ये सब छोड़ना शायद आपके लिए आसान न रहा हो, फिर भी आपने ये बदलाव किए। (मत्ती 10:34-36) क्योंकि आप यहोवा से प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। आपकी मेहनत देखकर यहोवा कितना खुश हुआ होगा!​—नीति. 27:11.

तंग रास्ते पर चलते रहने के लिए क्या करना होगा

परमेश्‍वर के स्तर मानने से हम “तंग” रास्ते पर चलते रह पाएँगे (पैराग्राफ 6-8 देखें) *

6. भजन 119:9, 10, 45, 133 के मुताबिक, तंग रास्ते पर चलते रहने के लिए हमें क्या करना होगा?

6 अगर हम चाहते हैं कि हम तंग रास्ते पर चलते रहें, तो हमें क्या करना होगा? हमें यहोवा के स्तर मानने होंगे, जो बाइबल में दिए गए हैं। यह क्यों ज़रूरी है, आइए एक उदाहरण से समझें। कई पहाड़ी रास्तों पर एक तरफ रेलिंग होती है। यह रेलिंग इसलिए बनायी जाती है, ताकि गाड़ी किनारे से दूर रहे और खाई में न गिरे। कोई भी यह शिकायत नहीं करेगा कि यह रेलिंग क्यों बनी है, क्योंकि सबको अपनी जान प्यारी है। बाइबल में दिए यहोवा के स्तर उस रेलिंग की तरह हैं, जो हमारी हिफाज़त करते हैं और तंग रास्ते पर चलते रहने में हमारी मदद करते हैं।​—भजन 119:9, 10, 45, 133 पढ़िए।

7. नौजवानों को तंग रास्ते के बारे में क्या नहीं सोचना चाहिए और क्यों?

7 नौजवानो, क्या आपको लगता है कि यहोवा के स्तर बहुत सख्त हैं, इसलिए आप वह नहीं कर पाते जो आप करना चाहते हैं? शैतान चाहता है कि आप ऐसा ही सोचें। वह आपका ध्यान उन लोगों की तरफ खींचना चाहता है, जो खुले रास्ते पर चलते हैं। वह आपके दोस्तों और इंटरनेट में दिखाए लोगों के ज़रिए आपको यकीन दिलाना चाहता है कि उनकी ज़िंदगी खूब मज़े में कट रही है। * लेकिन याद रखिए, उसने उन लोगों को यह नहीं बताया है कि जिस रास्ते पर वे चल रहे हैं, वह विनाश की तरफ ले जाता है। दूसरी तरफ, यहोवा ने आपसे कुछ नहीं छिपाया। उसने साफ बताया है कि तंग रास्ते पर चलने से आपको क्या-क्या आशीषें मिलेंगी।​—भज. 37:29; यशा. 35:5, 6; 65:21-23.

8. ओलाफ से नौजवान क्या सीख सकते हैं?

8 आइए एक नौजवान भाई, ओलाफ के उदाहरण पर ध्यान दें। * स्कूल में उसके दोस्तों ने उस पर दबाव डाला कि वह यौन-संबंध रखे। जब उसने उन्हें बताया कि वह यहोवा का एक साक्षी है और बाइबल के ऊँचे स्तर मानता है, तो कुछ लड़कियाँ उसके साथ संबंध रखने के लिए उसके और भी पीछे पड़ गयीं। लेकिन ओलाफ अपने फैसले पर डटा रहा। ओलाफ को एक और दबाव का सामना करना पड़ा। वह कहता है, “मेरे टीचर मुझसे कहते थे कि मुझे आगे और पढ़ना चाहिए। तभी मुझे एक अच्छी नौकरी मिलेगी और मैं ज़िंदगी में कामयाब होऊँगा।” ओलाफ ने इन दबावों का सामना कैसे किया? वह कहता है, “मैंने मंडली के भाई-बहनों से दोस्ती की। वे मेरे परिवार जैसे बन गए। मैंने बाइबल का भी गहराई से अध्ययन किया। इससे मुझे यकीन हो गया कि यही सच्चाई है। मैंने सोच लिया कि मैं बपतिस्मा लेकर यहोवा की सेवा करूँगा।”

9. तंग रास्ते पर चलते रहने के लिए हमें क्या करना होगा?

9 शैतान चाहता है कि आप तंग रास्ता छोड़कर खुले रास्ते पर चलें, जिस पर ज़्यादातर लोग चल रहे हैं और “जो विनाश की तरफ ले जाता है।” (मत्ती 7:13) लेकिन अगर हम तंग रास्ते पर चलना चाहते हैं, तो हमें यीशु की सुननी होगी और याद रखना होगा कि इसी रास्ते पर चलने से हमें ज़िंदगी मिलेगी। अब आइए चर्चा करते हैं कि वह दूसरी चीज़ क्या है, जो यीशु ने हमें करने के लिए कहा। 

अपने भाई के साथ सुलह कर

10. मत्ती 5:23, 24 के मुताबिक, हमें क्या करना चाहिए?

10 मत्ती 5:23, 24 पढ़िए। इन आयतों में यीशु ने एक ऐसे रिवाज़ के बारे में बताया, जिसे यहूदी बहुत ज़रूरी मानते थे। वह था, यहोवा को जानवरों की बलि चढ़ाना। ज़रा सोचिए, एक यहूदी मंदिर में है और वह अपने जानवर की बलि चढ़ाने के लिए उसे याजक को देने ही वाला है कि अचानक उसे याद आता है कि उसका भाई उससे नाराज़ है। अब उसे अपना जानवर वहीं ‘छोड़ना’ है। क्यों? क्या यहोवा को बलिदान चढ़ाना ज़रूरी नहीं है? ज़रूरी है। लेकिन जैसे यीशु ने कहा, ‘उसे जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह करनी है।’

क्या आप याकूब की तरह नम्र बनेंगे और अपने भाई-बहनों के साथ सुलह करेंगे? (पैराग्राफ 11-12 देखें) *

11. एसाव के साथ सुलह करने के लिए याकूब ने क्या किया?

11 अपने भाई के साथ सुलह करने के बारे में हम कुलपिता याकूब से सीख सकते हैं। उसे अपना देश छोड़े हुए करीब 20 साल हो गए थे। परमेश्‍वर ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए याकूब को आज्ञा दी कि वह अपने देश लौट जाए। (उत्प. 31:11, 13, 38) लेकिन वह कैसे जाता, उसका बड़ा भाई एसाव तो उसकी जान के पीछे पड़ा है! (उत्प. 27:41) यह सोचकर “वह बहुत डर गया और चिंता करने लगा।” (उत्प. 32:7) लेकिन फिर, उसने अपने भाई के साथ सुलह करने का फैसला किया। सबसे पहले, उसने गिड़गिड़ाकर यहोवा से मदद माँगी। फिर उसने एसाव को ढेर सारे तोहफे भेजे। (उत्प. 32:9-15) आखिर में, जब वह अपने भाई से मिला तो सबसे पहले उसने एसाव को सलाम किया। उसने एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि सात बार उसे झुककर सलाम किया! याकूब नम्र था और उसने अपने भाई का आदर किया, जिस वजह से वह अपने भाई के साथ सुलह कर पाया।​—उत्प. 33:3, 4.

12. अपने भाई से सुलह करने के लिए याकूब ने कौन-से दो कदम उठाए?

12 क्या आपने गौर किया कि अपने भाई के साथ सुलह करने के लिए याकूब ने क्या किया? पहला, उसने तैयारी की। उसने यहोवा से प्रार्थना की और मदद माँगी। फिर उस प्रार्थना के मुताबिक कुछ कदम उठाए, ताकि उसके भाई का गुस्सा ठंडा हो जाए। दूसरा, याकूब ने ठान लिया कि वह अपने भाई के साथ सुलह करेगा। इसलिए जब वह एसाव से मिला, तो उसने इस बात पर बहस नहीं की कि कौन सही है और कौन गलत।

सबके साथ शांति कैसे बनाए रखें

13-14. अगर हम किसी भाई या बहन का दिल दुखाते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

13 जीवन के रास्ते पर चलते रहने के लिए हमें सबके साथ शांति बनाए रखनी होगी। (रोमि. 12:18) अगर हमें एहसास होता है कि हमने किसी भाई या बहन का दिल दुखाया है, तो हमें क्या करना चाहिए? याकूब की तरह हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि अपने भाई या बहन के साथ सुलह करने में वह हमारी मदद करे।

14 हमें खुद की भी जाँच करनी चाहिए। हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं अपनी गलती मानने और माफी माँगने के लिए तैयार हूँ? अगर मैं अपने भाई या बहन के साथ सुलह करने के लिए पहल करूँ, तो यहोवा और यीशु को कैसा लगेगा?’ इस तरह खुद की जाँच करने से हमें बढ़ावा मिलेगा कि हम यीशु की सुनें और अपने भाई-बहनों के साथ शांति बनाए रखें। इसके लिए हमें याकूब की तरह नम्र बनना होगा।

15. अपने भाई के साथ सुलह करने के बारे में इफिसियों 4:2, 3 में क्या सलाह दी गयी है?

15 ज़रा सोचिए, अगर याकूब नम्र नहीं होता और एसाव से इस बारे में झगड़ा करता कि किसकी गलती है, तो क्या होता? इसका बहुत ही बुरा अंजाम होता। इससे हम यही सीखते हैं कि जब हम सुलह करने जाते हैं, तो हमें नम्र रहना चाहिए। (इफिसियों 4:2, 3 पढ़िए।) नीतिवचन 18:19 में लिखा है, “नाराज़ भाई को मनाना, मज़बूत शहर को जीतने से कहीं ज़्यादा मुश्‍किल है और झगड़े किले के बंद दरवाज़े जैसे होते हैं।” लेकिन अगर हम नम्र रहेंगे और माफी माँगेंगे, तो ‘किले का बंद दरवाज़ा’ खुल सकता है।

16. हमें किस बारे में सोचना चाहिए और क्यों?

16 जिस भाई या बहन को हमने ठेस पहुँचाया है, उससे बात करने से पहले हमें सोचना चाहिए कि हम क्या कहेंगे और कैसे कहेंगे। फिर जब हम उससे मिलते हैं, तो हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि सारे गिले-शिकवे दूर हों और हमारी दोबारा दोस्ती हो जाए। हो सकता है कि वह कुछ ऐसी बातें कह दे, जो हमें बुरी लगें। लेकिन हमें गुस्सा नहीं होना चाहिए, न ही अपनी सफाई पेश करनी चाहिए। इससे मामला और बिगड़ सकता है। कौन सही है और कौन गलत, यह साबित करने से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम उससे सुलह करें।​—1 कुरिं. 6:7.

17. भाई गिलबर्ट से आपने क्या सीखा?

17 गिलबर्ट नाम के एक भाई ने सुलह करने के लिए बहुत मेहनत की। वह कहता है, “मेरी अपनी बेटी के साथ मेरी बिलकुल नहीं बनती थी। दो साल तक मैंने बहुत कोशिश की कि हम दोनों का रिश्‍ता सुधर जाए। हर बार उससे बात करने से पहले मैं प्रार्थना करता था और खुद से कहता था, ‘वह चाहे कुछ भी कहे मुझे भड़कना नहीं चाहिए, बल्कि उसे माफ कर देना चाहिए।’ मैंने इस बात को समझा कि मुझे अपनी बेटी के साथ शांति बनाए रखनी है, न कि उस पर अपना अधिकार जताना है।” क्या भाई गिलबर्ट को अपनी मेहनत का फल मिला? भाई ने कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि आज परिवार के सभी सदस्यों के साथ मेरा एक अच्छा रिश्‍ता है।”

18-19. अगर हमने किसी का दिल दुखाया है, तो हमें क्या करना चाहिए और क्यों?

18 अगर हमें एहसास होता है कि हमने किसी भाई या बहन का दिल दुखाया है, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें यीशु की सलाह मानकर उससे सुलह करनी चाहिए। हमें इस बारे में यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और उससे पवित्र शक्‍ति माँगनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम खुश रहेंगे।​—मत्ती 5:9.

19 हम यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि वह ‘मंडली के सिर,’ यीशु मसीह के ज़रिए हमें बढ़िया सलाह देता है। (इफि. 5:23) प्रेषित पतरस, याकूब और यूहन्‍ना की तरह, आइए हम यीशु की सुनते रहें। (मत्ती 17:5) इसके लिए हमें उन भाई-बहनों के साथ सुलह करनी चाहिए, जिनका हमने दिल दुखाया है और उस तंग रास्ते पर चलते रहना चाहिए, जो जीवन की तरफ ले जाता है। अगर हम ऐसा करेंगे, तो न सिर्फ आज हम खुश रहेंगे बल्कि भविष्य में हमेशा के लिए खुश रहेंगे।

गीत 130 माफ करना सीखें

^ पैरा. 5 यीशु ने बढ़ावा दिया कि हम सँकरे फाटक से अंदर जाकर उस रास्ते पर चलें, जो जीवन की तरफ ले जाता है। उसने यह भी सलाह दी कि हम भाई-बहनों के साथ शांति बनाए रखें। लेकिन इन सलाहों को मानने में कुछ मुश्‍किलें आ सकती हैं। आइए जानें कि ये मुश्‍किलें क्या हैं और हम इन्हें कैसे पार कर सकते हैं।

^ पैरा. 7 10 सवाल जो नौजवान पूछते हैं  ब्रोशर का सवाल 6, “अगर दोस्त गलत काम करने के लिए कहें तो क्या करूँ?” पढ़ें और www.pr418.com/hi में बोर्डवाला कार्टून यार-दोस्तों की बातों में मत आइए! देखें। (शास्त्र से जानिए > नौजवान में देखें।)

^ पैरा. 8 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: अगर हम यहोवा के स्तर मानेंगे, तो हम “तंग” रास्ते पर चलते रह पाएँगे और पोर्नोग्राफी देखने, गलत यौन-संबंध रखने और ऊँची पढ़ाई करने के खतरों से बच पाएँगे।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: अपने भाई एसाव से सुलह करने के लिए याकूब ने बार-बार झुककर उसे सलाम किया।