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अध्ययन लेख 11

बपतिस्मे के बाद भी “नयी शख्सियत” पहने रहिए

बपतिस्मे के बाद भी “नयी शख्सियत” पहने रहिए

“नयी शख्सियत पहन लो।”​—कुलु. 3:10.

गीत 49 यहोवा का दिल खुश करें

एक झलक *

1. हमारी शख्सियत पर किस बात का गहरा असर होता है?

 चाहे हमने हाल में बपतिस्मा लिया हो या कई सालों पहले, हम सभी ऐसा व्यक्‍ति बनना चाहते हैं जिससे यहोवा प्यार करे। इसके लिए हमें ध्यान देना होगा कि हमारी सोच कैसी है। क्योंकि हम जिस तरह सोचते हैं, उसका हमारी शख्सियत पर गहरा असर होता है। अगर हम खुद की इच्छाएँ पूरी करने के बारे में सोचते रहें, तो हो सकता है कि हम कुछ गलत कर बैठें या कुछ गलत कह दें। (इफि. 4:17-19) लेकिन अगर हम अच्छी बातों के बारे में सोचेंगे, तो हमारी बोली भी अच्छी होगी और काम भी। यह देखकर यहोवा को बहुत खुशी होगी।​—गला. 5:16.

2. इस लेख में हम क्या सीखेंगे?

2 जैसा हमने पिछले लेख में सीखा था, हम गलत विचारों को अपने मन में आने से पूरी तरह तो नहीं रोक सकते, पर हम उनके मुताबिक कदम उठाने से खुद को रोक सकते हैं। बपतिस्मा लेने से पहले यह ज़रूरी है कि हम वे बातें कहना और वे काम करना बंद कर दें, जिनसे यहोवा को नफरत है। पुरानी शख्सियत को उतार फेंकने के लिए यह पहला और सबसे ज़रूरी कदम है। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमसे खुश हो, तो हमें यह आज्ञा भी माननी होगी, “नयी शख्सियत पहन लो।” (कुलु. 3:10) इस लेख में हम सीखेंगे कि यह “नयी शख्सियत” क्या है। हम यह भी जानेंगे कि हम इसे कैसे पहन सकते हैं और हमेशा पहने रह सकते हैं।

“नयी शख्सियत” क्या है?

3. (क) “नयी शख्सियत” पहनने का क्या मतलब है? (ख) एक व्यक्‍ति नयी शख्सियत कैसे पहन सकता है? (गलातियों 5:22, 23)

3 जो व्यक्‍ति “नयी शख्सियत” पहनता है, वह यहोवा की तरह सोचता और काम करता है। वह अपनी सोच, भावनाओं और कामों से पवित्र शक्‍ति के फल के गुण ज़ाहिर करता है। (गलातियों 5:22, 23 पढ़िए।) जैसे, वह यहोवा और उसके लोगों से प्यार करता है। (मत्ती 22:36-39) मुश्‍किलों के बावजूद वह खुश रहता है। (याकू. 1:2-4) वह सबके साथ शांति बनाए रखने की कोशिश करता है। (मत्ती 5:9) वह सब्र रखता है और दूसरों पर कृपा करता है। (कुलु. 3:12, 13) वह लोगों का भला करता है। (लूका 6:35) उसके कामों से साफ पता चलता है कि उसे यहोवा पर पक्का विश्‍वास है। (याकू. 2:18) जब दूसरे उसे भड़काते हैं, तब भी वह कोमलता से पेश आता है और जब कोई उसे गलत काम करने को कहता है, तो वह संयम रखता है।​—1 कुरिं. 9:25, 27; तीतु. 3:2.

4. गलातियों 5:22, 23 में बताए गुणों को हम एक-एक करके क्यों नहीं बढ़ा सकते?

4 नयी शख्सियत पहनने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने अंदर वे सारे गुण बढ़ाएँ, जिनके बारे में गलातियों 5:22, 23 और बाइबल की दूसरी आयतों में बताया गया है। * ये गुण अलग-अलग कपड़ों की तरह नहीं हैं, जिन्हें हम बदल-बदलकर पहनते हैं। ये गुण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए हमें इन्हें साथ में ज़ाहिर करना होगा। जैसे, अगर हम अपने पड़ोसी से प्यार करेंगे, तो उन पर कृपा करेंगे और सब्र रखेंगे। और अगर हम भला इंसान बनना चाहते हैं, तो हमें कोमल होना होगा और संयम रखना होगा।

नयी शख्सियत पहनने के लिए हमें क्या करना होगा?

जितना ज़्यादा हम यीशु की तरह सोचेंगे, उतना ज़्यादा उसकी तरह बन पाएँगे (पैराग्राफ 5, 8, 10, 12, 14)

5. (क) ‘मसीह के जैसी सोच रखने’ का क्या मतलब है? (1 कुरिंथियों 2:16) (ख) यीशु के बारे में पढ़ना क्यों ज़रूरी है?

5 पहला कुरिंथियों 2:16 पढ़िए। नयी शख्सियत पहनने के लिए हमें ‘मसीह के जैसी सोच रखनी होगी।’ इसका मतलब, हमें यीशु की तरह सोचना होगा और उसकी तरह बनना होगा। यीशु ने अपनी ज़िंदगी में पवित्र शक्‍ति के फल के गुण बहुत अच्छी तरह ज़ाहिर किए। उसकी सोच और काम करने का तरीका बिलकुल यहोवा जैसा था। (इब्रा. 1:3) इसलिए यीशु के जैसी सोच रखने के लिए हमें उसके बारे में पढ़ना होगा और उसे अच्छी तरह जानना होगा। जितना ज़्यादा हम यीशु के बारे में सीखेंगे, उतना ज़्यादा हम उसकी तरह सोच पाएँगे और बन पाएँगे।​—फिलि. 2:5.

6. अगर हमें यीशु के जैसा बनना मुश्‍किल लगे, तो हम कौन-सी बातें याद रख सकते हैं?

6 शायद आप सोचें, ‘यीशु तो परिपूर्ण है, लेकिन मैं ठहरा अपरिपूर्ण। मैं उसकी तरह कभी नहीं बन पाऊँगा।’ अगर आपको ऐसा लगता है, तो आप तीन बातें याद रख सकते हैं। पहली, आपको यहोवा और यीशु के जैसा बनाया गया है। इसलिए अगर आप कोशिश करें, तो आप काफी हद तक उनके जैसे गुण ज़ाहिर कर पाएँगे। (उत्प. 1:26) दूसरी, यहोवा आपको पवित्र शक्‍ति देता है, जो दुनिया की सबसे ज़बरदस्त शक्‍ति है। इसकी मदद से आप वह काम भी कर पाएँगे, जो शायद आप अपने दम पर कभी नहीं कर पाते। तीसरी, यहोवा आपसे यह उम्मीद नहीं करता कि आप अभी पवित्र शक्‍ति के फल के गुण पूरी तरह जाहिर करें। उसने भविष्य में 1,000 साल तय किए हैं, जिस दौरान हम परिपूर्ण बन पाएँगे। (प्रका. 20:1-3) फिलहाल यहोवा चाहता है कि हम यीशु के जैसी सोच रखने की पूरी कोशिश करें और जब ऐसा करना मुश्‍किल हो, तो यहोवा से मदद माँगें।

7. अब हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

7 आइए चर्चा करें कि यीशु ने पवित्र शक्‍ति के फल के गुण कैसे ज़ाहिर किए। हम एक-एक करके चार गुणों पर बात करेंगे और यह जानेंगे कि हम यीशु से क्या सीख सकते हैं। इन पर चर्चा करते वक्‍त हम कुछ सवालों पर भी गौर करेंगे जो आप खुद से पूछ सकते हैं। इससे आपको सुधार करने में मदद मिलेगी और आप नयी शख्सियत ठीक से पहन पाएँगे।

8. यीशु ने किस तरह अपना प्यार ज़ाहिर किया?

8 यीशु, यहोवा से बहुत प्यार करता था और वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार था। (यूह. 14:31) इसी प्यार ने उसे उभारा कि वह इंसानों से प्यार करे और उनकी खातिर त्याग करे। (यूह. 15:13) धरती पर रहते वक्‍त उसने हर दिन लोगों से प्यार से बात की और उनके साथ अच्छे-से पेश आया, उन लोगों से भी जो उसका विरोध करते थे। उसने एक खास तरीके से अपना प्यार ज़ाहिर किया। वह था, लोगों को परमेश्‍वर के राज के बारे में सिखाकर। (लूका 4:43, 44) आखिर में, एक दर्दनाक मौत सहकर भी उसने ज़ाहिर कर दिया कि वह यहोवा और इंसानों से कितना प्यार करता है। इसी वजह से हम सभी को हमेशा की ज़िंदगी जीने का मौका मिला है।

9. हम यीशु की तरह प्यार कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

9 हमने यहोवा को अपना जीवन इसलिए समर्पित किया और बपतिस्मा लिया, क्योंकि हम उससे बहुत प्यार करते हैं। लेकिन हमें यह प्यार एक और तरीके से ज़ाहिर करना होगा। यीशु की तरह हमें लोगों से भी प्यार करना होगा। प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा, “जो अपने भाई से प्यार नहीं करता जिसे उसने देखा है, वह परमेश्‍वर से प्यार नहीं कर सकता जिसे उसने नहीं देखा।” (1 यूह. 4:20) हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘मैं लोगों से कितना प्यार करता हूँ? क्या मैं उनके साथ अच्छे-से पेश आता हूँ, फिर चाहे वे मेरे साथ बुरा बरताव ही क्यों न करें? दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने के लिए, क्या मैं अपना समय और साधन लगाने के लिए तैयार रहता हूँ? क्या मैं ऐसा तब भी करने को तैयार रहता हूँ, जब दूसरे मेरी मेहनत की कदर नहीं करते या मेरा विरोध करते हैं? चेला बनाने का काम करने के लिए क्या मैं और समय निकाल सकता हूँ?’​—इफि. 5:15, 16.

10. यीशु कैसे शांति कायम करता था?

10 यीशु हमेशा शांति कायम करने की कोशिश करता था। जब लोग उससे बुरी तरह पेश आए, तब भी उसने उनसे बदला नहीं लिया। जब माहौल गरम हो जाता था, तो वह शांति कायम करने की कोशिश करता था। उसने दूसरों को भी बढ़ावा दिया कि वे अपने झगड़े सुलझा लें। उदाहरण के लिए, उसने लोगों को सिखाया कि अगर वे अपने भाई के साथ सुलह नहीं करेंगे, तो उनका उपासना करना बेकार होगा। (मत्ती 5:9, 23, 24) जब भी चेलों के बीच झगड़ा होता था कि उनमें सबसे बड़ा कौन है, तो यीशु उनके बीच शांति कायम करने की कोशिश करता था।​—लूका 9:46-48; 22:24-27.

11. हम कैसे शांति कायम कर सकते हैं?

11 शांति कायम करने के लिए सिर्फ शांत रहना या झगड़ों से दूर रहना काफी नहीं है। अगर हमारा किसी से झगड़ा हो जाए, तो हमें आगे आकर शांति कायम करने की कोशिश करनी चाहिए। और जब हम देखते हैं कि मंडली में दो लोगों के बीच अनबन है, तो हमें उन्हें बढ़ावा देना चाहिए कि वे सुलह कर लें। (फिलि. 4:2, 3; याकू. 3:17, 18) हम खुद से ये सवाल कर सकते हैं, ‘शांति कायम करने के लिए मैं किस हद तक जाने को तैयार हूँ? अगर कोई भाई या बहन मेरा दिल दुखाए, तो क्या मैं उससे नाराज़ रहता हूँ? क्या मैं आगे आकर उससे सुलह करता हूँ या इंतज़ार करता हूँ कि वह आकर माफी माँगे? जब मैं देखता हूँ कि दो लोगों के बीच झगड़ा हुआ है, तो मैं क्या करता हूँ? अगर मेरा बीच में बोलना सही हो, तो क्या मैं उन्हें बढ़ावा देता हूँ कि वे अपना झगड़ा खत्म करें?’

12. यीशु ने दूसरों पर कृपा कैसे की?

12 यीशु लोगों पर कृपा करता था। (मत्ती 11:28-30) उसे लोगों की सच्ची परवाह थी और वह उनका लिहाज़ करता था। उदाहरण के लिए, जब फीनीके की रहनेवाली एक औरत ने यीशु से कहा कि वह उसकी बच्ची को ठीक कर दे, तो पहले तो यीशु ने उसे मना कर दिया। पर जब उसने देखा कि उसका विश्‍वास कितना पक्का है, तो उसने उस पर कृपा की और उसकी बच्ची को ठीक कर दिया। (मत्ती 15:22-28) यीशु ने एक और तरीके से दूसरों पर कृपा की। ज़रूरत पड़ने पर उसने उन्हें सलाह दी। एक बार जब पतरस ने यीशु को कुछ ऐसा करने के लिए कहा, जो यहोवा की मरज़ी के खिलाफ था, तो यीशु ने बाकी चेलों के सामने उसकी सोच सुधारी। (मर. 8:32, 33) ऐसा करके उसने पतरस की बेइज़्ज़ती नहीं की। इसके बजाय उसने सभी चेलों को सिखाया कि उन्हें उसे यहोवा की मरज़ी पूरी करने का बढ़ावा देना चाहिए, न कि ऐसा करने से रोकना चाहिए। उस वक्‍त पतरस को ज़रूर थोड़ा बुरा लगा होगा, पर उसने यह सीख हमेशा याद रखी होगी।

13. कृपा करने का एक तरीका क्या है?

13 हम जिनसे प्यार करते हैं, हो सकता है कि हमें कभी उन्हें सलाह देनी पड़े। यह भी कृपा करने का एक तरीका है। पर ऐसा करते वक्‍त हमें यीशु की मिसाल याद रखनी चाहिए। अच्छा होगा कि हम सलाह बाइबल से दें और उनसे प्यार से बात करें। अगर वे यहोवा से और हमसे प्यार करते हैं, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वे हमारी सलाह मानेंगे। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वे सुधर ही नहीं सकते। खुद से पूछिए, ‘जब कोई व्यक्‍ति, जिससे मैं प्यार करता हूँ, कुछ गलत कर रहा होता है, तो क्या मैं हिम्मत करके उससे बात करता हूँ? अगर उसे सलाह देनी पड़े, तो क्या मैं प्यार से देता हूँ या गुस्से में आकर? मैं सलाह क्यों देना चाहता हूँ? क्या इसलिए कि मैं उससे चिढ़ गया हूँ या इसलिए कि मुझे उसकी फिक्र है?’

14. यीशु ने भलाई कैसे की?

14 यीशु न सिर्फ भलाई करना जानता था बल्कि उसने ऐसा किया भी। उसने हमेशा लोगों की मदद की और उसने ऐसा सही इरादे से किया, क्योंकि वह यहोवा से प्यार करता था। उसी तरह, हमें सोचना चाहिए कि हम दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं और फिर हमें ऐसा करना भी चाहिए। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि हम दूसरों की भलाई सही इरादे से करें। शायद आप सोचें, ‘भलाई करने के पीछे कोई गलत इरादा कैसे हो सकता है?’ इसका एक उदाहरण लीजिए। यीशु ने ऐसे लोगों के बारे में बताया जो गरीबों को दान तो देते थे, पर इसलिए कि दूसरे उनकी वाह-वाही करें। हालाँकि उन लोगों ने अच्छा काम किया, पर यहोवा की नज़र में उसका कोई मोल नहीं था क्योंकि उनका इरादा गलत था।​—मत्ती 6:1-4.

15. सही मायने में भलाई करने का क्या मतलब है?

15 सही मायने में भलाई करने का मतलब है, बिना स्वार्थ के दूसरों की मदद करना। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं भलाई करने के बारे में सिर्फ सोचता हूँ या ऐसा करता भी हूँ? दूसरों की मदद करने के पीछे मेरा इरादा क्या होता है?’

नयी शख्सियत को अच्छी हालत में रखिए

16. हमें हर रोज़ क्या करना चाहिए और क्यों?

16 नयी शख्सियत पहने रहने के लिए हमें मेहनत करनी होगी। ऐसा हमें बपतिस्मा लेने के बाद भी करना होगा। नयी शख्सियत मानो एक नए कपड़े की तरह है, जिसे हमें अच्छी हालत में रखना है। ऐसा करने का एक तरीका है, हर रोज़ अपने कामों से पवित्र शक्‍ति के फल के गुण ज़ाहिर करना। हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमेशा काम करती रहती है। (उत्प. 1:2) इसलिए हमें भी पवित्र शक्‍ति के फल के गुण ज़ाहिर करने के लिए काम करते रहना है। उदाहरण के लिए, याकूब ने लिखा, “कामों के बिना विश्‍वास मरा हुआ है।” (याकू. 2:26) विश्‍वास के अलावा, हमें बाकी गुण भी अपने कामों से ज़ाहिर करने होंगे। जब भी हम ऐसा करेंगे, तो हम दिखा रहे होंगे कि पवित्र शक्‍ति हमारी मदद कर रही है।

17. अगर हम पवित्र शक्‍ति के फल के गुण ज़ाहिर करने से चूक जाएँ, तो हमें क्या करना चाहिए?

17 बपतिस्मा लेने के कई साल बाद भी हो सकता है कि हम पवित्र शक्‍ति के फल के गुण ज़ाहिर करने से चूक जाएँ। ऐसे में हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। अगर आपका कोई मनपसंद कपड़ा थोड़ा-सा फट जाए, तो क्या आप उसे तुरंत फेंक देंगे? नहीं। आप उसे सिलकर ठीक करने की कोशिश करेंगे और आगे ध्यान रखेंगे कि वह और न फट जाए। उसी तरह, हो सकता है कि एक मौके पर आप किसी से प्यार से बात न करें या सब्र खो दें। ऐसे में निराश मत होइए। अगर आप उससे माफी माँगेंगे, तो आप रिश्‍ते में आयी दरार को भर रहे होंगे। उसके बाद आप कोशिश कर सकते हैं कि आप दोबारा ऐसी गलती न करें।

18. हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

18 यह कितनी खुशी की बात है कि हम यीशु के बारे में पढ़ सकते हैं और उससे सीख सकते हैं! जितना ज़्यादा हम यीशु की तरह सोचेंगे, उतना ज़्यादा हम उसकी तरह काम कर पाएँगे। इस तरह हम नयी शख्सियत पहने रह सकेंगे। इस लेख में हमने पवित्र शक्‍ति के फल के सिर्फ चार गुणों पर बात की। लेकिन इसके और भी गुण हैं। क्यों न आप उनके बारे में अध्ययन करने के लिए वक्‍त निकालें और खुद से यह पूछें, ‘क्या मैं ये गुण ज़ाहिर कर रहा हूँ?’ यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड  में विषय “मसीही जीवन” के नीचे “पवित्र शक्‍ति का फल” भाग में आपको इससे जुड़े लेख मिलेंगे। अगर आप नयी शख्सियत पहनने की कोशिश करेंगे और इसे पहने रहने के लिए मेहनत करेंगे, तो यकीन रखिए कि ऐसा करने में यहोवा ज़रूर आपकी मदद करेगा।

गीत 127 मुझे कैसा इंसान बनना चाहिए

^ चाहे हमने पहले कैसी भी ज़िंदगी जी हो, हम “नयी शख्सियत” पहन सकते हैं। ऐसा करने के लिए हमें अपनी सोच बदलनी होगी और यीशु की तरह बनने की कोशिश करनी होगी। इस लेख में हम जानेंगे कि यीशु किस तरह सोचता और काम करता था। हम यह भी जानेंगे कि बपतिस्मा लेने के बाद भी हम कैसे उसकी मिसाल पर चल सकते हैं।

^ गलातियों 5:22, 23 में उन सभी गुणों के बारे में नहीं बताया गया है, जो हम पवित्र शक्‍ति की मदद से अपने अंदर बढ़ा सकते हैं। इस बारे में और जानने के लिए, जून 2020 की प्रहरीदुर्ग  का लेख, “आपने पूछा” पढ़ें।