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ଅଧ୍ୟୟନ ଲେଖା ୧୨

ଯିଖରୀୟଙ୍କ ଦର୍ଶନ ମନେ ରଖନ୍ତୁ

ଯିଖରୀୟଙ୍କ ଦର୍ଶନ ମନେ ରଖନ୍ତୁ

‘ଆମ୍ଭର ପବିତ୍ର ଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା, ଏହା ସୈନ୍ୟାଧିପତି ସଦାପ୍ରଭୁ କହନ୍ତି ।’​ଯିଖ. ୪:୬.

ଗୀତ ୭୩ हमें निडरता का वरदान दे

ଲେଖାର ଝଲକ a

୧. ଯିହୁଦୀମାନେ କʼଣ ଶୁଣି ଖୁସି ହୋଇ ଯାଇଥିବେ ?

 यहूदी बहुत सालों से बैबिलोन में बंदी थे। लेकिन फिर परमेश्‍वर यहोवा ने फारस के राजा कुसरू के मन को उभारा कि वह इन यहूदियों को छोड़ दे। राजा कुसरू ने ऐसा ही किया। उसने यह भी ऐलान किया कि यहूदी अपने देश लौटकर ‘इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का भवन दोबारा खड़ा करें।’ (एज्रा 1:1, 3) यह सुनकर सभी यहूदियों में खुशी की लहर दौड़ गयी। अब वे अपने देश वापस जा सकते थे और फिर से अपने परमेश्‍वर की उपासना कर सकते थे।

୨. ଯିରୂଶାଲମକୁ ଫେରି ଯିହୁଦୀମାନେ ସବୁଠୁ ଆଗ କʼଣ କଲେ ?

ईसा पूर्व 537 में यहूदियों का पहला समूह यरूशलेम आया, जो पहले यहूदा राज्य की राजधानी था। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने मंदिर बनाने का काम शुरू कर दिया। ईसा पूर्व 536 के आते-आते उन्होंने उसकी नींव डाल दी।

୩. ଯିହୁଦୀମାନଙ୍କ ସାମନାରେ କେଉଁ ସମସ୍ୟାଗୁଡ଼ିକ ଆସିଲା ?

नींव डालने के बाद जब यहूदियों ने मंदिर बनाने का काम शुरू किया, तो आस-पास के देशों के लोग उनका कड़ा विरोध करने लगे। वे “यहूदा के लोगों की हिम्मत तोड़ने लगे ताकि वे मायूस होकर मंदिर बनाने का काम छोड़ दें।” (एज्रा 4:4) इतना ही नहीं, आगे चलकर यहूदियों के सामने और भी मुश्‍किलें आयीं। ईसा पूर्व 522 में फारस में एक नया राजा अर्तक्षत्र राज करने लगा। b विरोधियों ने इस मौके का फायदा उठाया और “कानून की आड़” में यहूदियों के लिए “मुसीबत खड़ी” की। (भज. 94:20) उन्होंने राजा अर्तक्षत्र को खत लिखकर यहूदियों की शिकायत की और कहा कि वे उसके खिलाफ बगावत करने की साज़िश कर रहे हैं। (एज्रा 4:11-16) राजा ने उनके झूठ पर यकीन कर लिया और मंदिर बनाने के काम पर रोक लगा दी। (एज्रा 4:17-23) इस वजह से यहूदियों को मंदिर बनाने का काम बंद करना पड़ा।​—एज्रा 4:24.

୪. ଯେବେ ମନ୍ଦିର ନିର୍ମାଣ ଉପରେ କଟକଣା ଲାଗିଲା, ତେବେ ଯିହୋବା କʼଣ କଲେ ? (ଯିଶାଇୟ ୫୫:୧୧)

आस-पास के देशों के लोग और फारस के कुछ अधिकारियों ने ठान लिया था कि वे मंदिर को नहीं बनने देंगे। लेकिन यहोवा ने भी ठान लिया था कि उसका मंदिर बनकर ही रहेगा। और उसे अपना मकसद पूरा करने से कोई नहीं रोक सकता। (यशायाह 55:11 पढ़िए।) इसलिए उसने एक दिलेर आदमी जकरयाह को भविष्यवक्‍ता ठहराया और उसे आठ दर्शन दिखाए। उसने जकरयाह से कहा कि वह इन दर्शनों के बारे में यहूदियों को बताए ताकि उनकी हिम्मत बढ़े। इन दर्शनों से यहूदी समझ पाए कि उन्हें विरोधियों से डरना नहीं है बल्कि यहोवा का काम करते रहना है। उन दर्शनों में से पाँचवें दर्शन में जकरयाह ने एक दीवट और जैतून के दो पेड़ देखे।

୫. ଏହି ଲେଖାରୁ ଆମେ କʼଣ ଶିଖିବା ?

हम सब कई बार निराश और परेशान हो जाते हैं। जैसे, हो सकता है हमारा विरोध किया जाए, या हमारे हालात बदल जाएँ, या फिर हमें ऐसी कोई हिदायत दी जाए जिसे मानना मुश्‍किल लगे। ऐसे में हम वफादारी से यहोवा की सेवा कैसे कर सकते हैं? जकरयाह के जिस पाँचवें दर्शन से यहूदियों को हिम्मत मिली, उससे हमें भी हिम्मत मिल सकती है। इस लेख में हम यही सीखेंगे।

ଯେବେ ଆମକୁ ବିରୋଧ କରାଯାଏ

जकरयाह ने एक दर्शन में देखा कि एक दीवट है जिस पर सात दिए हैं और उन्हें जैतून के दो पेड़ों से लगातार तेल मिल रहा है (पैराग्राफ 6)

୬. ଯିଖରୀୟ ୪:୧-୩ ପଦରେ କୁହାଯାଇଥିବା ଦର୍ଶନରୁ ଯିହୁଦୀମାନଙ୍କୁ ସାହସ କିପରି ମିଳିଲା ? (ବାହାରେ ଥିବା ଚିତ୍ର ଦେଖନ୍ତୁ ।)

जकरयाह 4:1-3 पढ़िए। इस दर्शन से यहूदियों को विरोध का सामना करने की हिम्मत कैसे मिली? गौर कीजिए कि दीवट पर जो दीए थे, उन्हें लगातार जैतून के पेड़ों से तेल मिल रहा था। इसी वजह से दीए जल रहे थे। यह दर्शन देखकर जकरयाह ने पूछा, “इन सबका क्या मतलब है?” स्वर्गदूत ने जवाब दिया, “सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘न किसी सेना से, न ताकत से बल्कि मेरी पवित्र शक्‍ति से यह सब होगा।’” (जक. 4:4, 6) जिस तरह दीवट को जैतून के पेड़ों से लगातार तेल मिल रहा था, उसी तरह यहोवा अपने लोगों को लगातार पवित्र शक्‍ति देता है। इस तरह यहोवा यहूदियों को बताना चाहता था कि उसकी पवित्र शक्‍ति के सामने फारस का साम्राज्य कुछ नहीं है। यहोवा उनके साथ था, इसलिए उन्हें विरोधियों से नहीं डरना था। यह बात जानकर यहूदियों को कितनी हिम्मत मिली होगी! हालाँकि अधिकारियों ने मंदिर बनाने का काम रोक दिया था, फिर भी यहूदियों ने यहोवा पर भरोसा रखा और वे फिर से काम पर लग गए।

୭. ଏପରି କʼଣ ହେଲା, ଯାହାଫଳରେ ଯିହୁଦୀମାନଙ୍କୁ ଆରାମ ମିଳିଲା ?

कुछ समय बाद फारस में एक नया राजा राज करने लगा, वह था दारा प्रथम। अपने राज के दूसरे साल यानी ईसा पूर्व 520 में उसने कुछ ऐसा किया, जिसकी किसी ने उम्मीद ही नहीं की होगी। उसे पता चला कि मंदिर बनाने के काम पर लगी रोक गैर-कानूनी है। इसलिए उसने इस काम को पूरा करने की मंज़ूरी दे दी। (एज्रा 6:1-3) इससे यहूदियों को कितनी राहत मिली होगी! मंज़ूरी देने के अलावा राजा दारा ने यह भी आदेश दिया कि आस-पास के लोग यहूदियों के लिए और मुसीबत न खड़ी करें बल्कि उन्हें पैसे और दूसरी ज़रूरी चीज़ें दें। (एज्रा 6:7-12) इस वजह से यहूदियों ने पाँच साल के अंदर यानी ईसा पूर्व 515 में मंदिर बनाने का काम पूरा कर दिया।​—एज्रा 6:15.

विरोध आने पर यहोवा से ताकत पाइए (पैराग्राफ 8)

୮. ବିରୋଧ ସତ୍ତ୍ୱେ ଆପଣ କାହିଁକି ସାହସ ରଖିପାରିବେ ?

आज भी यहोवा के कई लोग विरोध का सामना करते हैं। जैसे, कुछ भाई-बहन ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ हमारे काम पर कुछ पाबंदियाँ लगी हैं। ऐसे में हो सकता है कि भाई-बहनों को गिरफ्तार करके ‘राज्यपालों और राजाओं के सामने पेश किया जाए ताकि उन्हें गवाही मिले।’ (मत्ती 10:17, 18) पर हो सकता है कुछ समय बाद सरकार बदल जाए और भाई-बहनों को राहत मिले। या फिर हो सकता है एक जज उनके पक्ष में फैसला सुनाए। इसके अलावा कुछ ऐसे भी भाई-बहन हैं जो दूसरे किस्म के विरोध का सामना करते हैं। उनके परिवारवाले शायद उन्हें यहोवा की सेवा करने से रोकें। (मत्ती 10:32-36) फिर भी वे हिम्मत नहीं हारते और यहोवा की सेवा करने में लगे रहते हैं। ऐसे में कभी-कभी विरोध करनेवाले उन्हें तंग करना बंद कर देते हैं। और कुछ भाई-बहन, जिनका बुरी तरह विरोध किया गया था, अब जोशीले साक्षी हैं। इसलिए अगर आप विरोध का सामना कर रहे हैं, तो हिम्मत रखिए। यहोवा आपके साथ है और वह आपको अपनी पवित्र शक्‍ति देगा।

ଯେବେ ପରିସ୍ଥିତି ବଦଳିଯାଏ

୯. ଯେବେ ନୂଆ ମନ୍ଦିରର ମୂଳଦୁଆ ପକାଇ ଦିଆଗଲା, ତେବେ ଅନେକ ବୃଦ୍ଧ ଯିହୁଦୀମାନେ କାହିଁକି କାନ୍ଦିବାକୁ ଲାଗିଲେ ?

जब नए मंदिर की नींव डाली गयी, तो कई बुज़ुर्ग यहूदी रोने लगे। (एज्रा 3:12) उन्होंने देखा था कि सुलैमान का मंदिर कितना आलीशान था। उन्हें लगा कि यह नया मंदिर ‘उसके मुकाबले कुछ भी नहीं होगा।’ (हाग्गै 2:2, 3) यह सोचकर वे बहुत निराश हो गए, लेकिन जकरयाह के दर्शन से उन्हें हौसला मिला। कैसे?

୧୦. ଯିଖରୀୟ ୪:୮-୧୦ ପଦ ଅନୁସାରେ, ସ୍ୱର୍ଗଦୂତ ଯିହୁଦୀମାନଙ୍କୁ କେଉଁ କଥାର ଭରସା ଦେଲେ ?

୧୦ जकरयाह 4:8-10 पढ़िए। जब स्वर्गदूत ने कहा कि राज्यपाल “जरुबाबेल के हाथ में साहुल देखकर लोग झूम उठेंगे,” तो उसका क्या मतलब था? साहुल एक औज़ार होता है जिसकी मदद से एक बिलकुल सीधी दीवार खड़ी की जा सकती है। स्वर्गदूत यहूदियों को यकीन दिला रहा था कि जो मंदिर बनेगा वह भले ही सुलैमान के मंदिर जितना आलीशान नहीं होगा, लेकिन यहोवा की इच्छा के मुताबिक बनेगा और वह उस मंदिर से खुश होगा। इसलिए उन्हें भी खुश होना चाहिए। यहोवा के लिए यह बात मायने नहीं रखती थी कि नया मंदिर दिखने में कैसा होगा बल्कि यह कि नए मंदिर में उसकी मरज़ी के मुताबिक उपासना की जाए। अगर यहूदी मंदिर की बनावट पर ध्यान देने के बजाय वहाँ सही तरीके से उपासना करने पर ध्यान देते तो वे खुश रहते।

हालात बदलने पर भी खुश रहना सीखिए (पैराग्राफ 11-12) c

୧୧. କିଛି ଭାଇଭଉଣୀ କେଉଁ କାରଣ ଯୋଗୁଁ ନିରାଶ ହୋଇପାରନ୍ତି ?

୧୧ जब हमारे हालात बदलते हैं, तो हम परेशान हो सकते हैं। जैसे, हो सकता है कि कुछ भाई-बहन जो लंबे समय से बेथेल में सेवा या निर्माण काम कर रहे थे, उन्हें संगठन में कुछ और काम करने के लिए कहा जाए। या कुछ भाइयों को शायद ढलती उम्र की वजह से कोई ऐसी ज़िम्मेदारी छोड़नी पड़े जो उन्हें बहुत पसंद है। अगर हमारे साथ ऐसा हो, तो शायद हम निराश हो जाएँ। हमें शायद समझ में न आए कि यह फैसला क्यों लिया गया या हमें लगे कि यह फैसला सही नहीं है। यह भी हो सकता है कि हम बीते दिन याद करके दुखी हो जाएँ और सोचें, ‘अब मैं यहोवा के लिए किसी काम का नहीं रहा!’ (नीति. 24:10) ऐसे में हम तन-मन से यहोवा की सेवा कैसे कर सकते हैं? आइए हम जकरयाह के दर्शन से सीखें।

୧୨. ଯେବେ ଆମ ପରିସ୍ଥିତି ବଦଳେ, ତେବେ ଯିଖରୀୟଙ୍କ ଦର୍ଶନରୁ ଆମେ କʼଣ ଶିଖିପାରିବା ?

୧୨ अगर हम नए हालात को यहोवा की नज़र से देखें, तो हम उसकी सेवा अच्छे-से कर पाएँगे। आज यहोवा बहुत कुछ कर रहा है और हमें उसके साथ मिलकर काम करने का खास मौका मिला है। (1 कुरिं. 3:9) हम यकीन रख सकते हैं कि चाहे हमारे पास पहले जैसी ज़िम्मेदारी न हो, फिर भी यहोवा हमसे पहले जितना ही प्यार करता है। हमें यह सोचकर परेशान नहीं होना चाहिए कि हमारी ज़िम्मेदारी क्यों बदली गयी और न ही यह सोचना चाहिए कि ‘बीते दिन अच्छे थे।’ (सभो. 7:10) इसके बजाय हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमें नए हालात में भी खुश रहना सिखाए। जो हम नहीं कर सकते उस बारे में सोचने के बजाय हम यह सोच सकते हैं कि आज हम क्या कर सकते हैं। जकरयाह के दर्शन से हम सीखते हैं कि अगर हम सही सोच रखेंगे, तो हम नए हालात में भी खुश रहेंगे और यहोवा के वफादार रहेंगे।

ଯେବେ କୌଣସି ପରାମର୍ଶ ମାନିବା କଠିନ ଲାଗେ

୧୩. କିଛି ଯିହୁଦୀମାନଙ୍କୁ ମନ୍ଦିର ନିର୍ମାଣ କରିବାର କାମ ପୁଣିଥରେ ଆରମ୍ଭ କରିବା ଠିକ୍‌ ନୁହେଁ ବୋଲି କାହିକି ଲାଗିଥିବ ?

୧୩ जकरयाह के दिनों में यहोवा ने महायाजक यहोशू (येशू) और राज्यपाल जरुबाबेल को यहूदियों की अगुवाई करने के लिए ठहराया था। हालाँकि मंदिर बनाने के काम पर रोक लगी थी, फिर भी इन दोनों अगुवों ने “परमेश्‍वर के भवन को एक बार फिर बनाना शुरू किया।” (एज्रा 5:1, 2) मंदिर बनाने का काम छिपकर नहीं किया जा सकता था। इसलिए कुछ यहूदियों को लगा होगा कि वे गलत कर रहे हैं। उन्होंने सोचा होगा, ‘अब तो दुश्‍मन देख लेंगे और वे हमें और सताएँगे।’ ऐसे माहौल में यहोशू और जरुबाबेल को हौसले की ज़रूरत थी और यहोवा ने उन्हें यकीन दिलाया कि वह उनके साथ है। वह कैसे?

୧୪. ଯିଖରୀୟ ୪:୧୨, ୧୪ ପଦ ଅନୁସାରେ, ଯିହୋଶୂୟ ଓ ଯିରୁବାବ୍ବିଲଙ୍କୁ କେଉଁ କଥାରୁ ସାହସ ମିଳିଥିବ ?

୧୪ जकरयाह 4:12, 14 पढ़िए। दर्शन के इस भाग में स्वर्गदूत ने जकरयाह को बताया कि जैतून के दो पेड़ “दो अभिषिक्‍त जनों” को दर्शाते हैं। ये दोनों अभिषिक्‍त जन यहोशू और जरुबाबेल थे। दर्शन के मुताबिक वे दोनों आदमी “पूरी धरती के मालिक” यहोवा के पास खड़े थे। इसका मतलब था कि यहोवा को उन पर पूरा भरोसा है। यह जानकर यहोशू और जरुबाबेल को कितना हौसला मिला होगा! इससे दूसरे यहूदी भी समझ गए होंगे कि उन्हें उन पर भरोसा करना है और उनका कहना मानना है।

୧୫. ବାଇବଲର ପରାମର୍ଶଗୁଡ଼ିକୁ ମାନିବା ପାଇଁ ଆମକୁ କʼଣ କରିବାକୁ ହେବ ?

୧୫ यहोवा कई तरीकों से अपने लोगों को हिदायतें देता है। एक तरीका है, अपने वचन बाइबल के ज़रिए। इसमें उसने बताया है कि हमें किस तरीके से उसकी उपासना करनी चाहिए। बाइबल से मिलनेवाली हिदायतें मानने के लिए हमें क्या करना होगा? हमें वक्‍त निकालकर इन्हें ध्यान से पढ़ना होगा और समझना होगा। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं बाइबल और दूसरी किताबें-पत्रिकाएँ फटाफट पढ़कर खत्म कर देता हूँ या क्या मैं इन्हें ध्यान से पढ़ता हूँ? क्या मैं रुककर सीखी बातों के बारे में गहराई से सोचता हूँ? जो बातें “समझने में मुश्‍किल” लगती हैं, क्या मैं उनके बारे में खोजबीन करता हूँ?’ (2 पत. 3:16) यहोवा हमें जो सिखा रहा है, अगर हम उस बारे में गहराई से सोचें, तो हम उसकी हिदायतें मान पाएँगे और लोगों को अच्छी तरह गवाही दे पाएँगे।​—1 तीमु. 4:15, 16.

भरोसा रखिए कि विश्‍वासयोग्य दास की हिदायतें आपके भले के लिए हैं (पैराग्राफ 16) d

୧୬. ଯଦି ଆମକୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତ ଓ ବୁଦ୍ଧିମାନ ଦାସଙ୍କ କିଛି ପରାମର୍ଶ ମାନିବା ଅଜବ ଲାଗେ, ତେବେ ଆମେ କʼଣ କରିବା ଉଚିତ୍‌ ?

୧୬ यहोवा एक और तरीके से हमें हिदायतें देता है और वह है “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए। (मत्ती 24:45) यह दास शायद कई बार हमें ऐसी हिदायतें दे जो हमें बेतुकी या अजीब लगें। जैसे, वह शायद हमें बताए कि हमें किसी विपत्ति से बचने के लिए कौन-सी तैयारियाँ करनी हैं। लेकिन हमें लग सकता है कि यह विपत्ति हमारे इलाके में थोड़ी न आएगी। या किसी महामारी के दौरान विश्‍वासयोग्य दास से मिलनेवाली हिदायतें सुनकर हमें लग सकता है कि वह कुछ ज़्यादा ही सावधानी बरत रहा है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? हमें जकरयाह के दिनों के यहूदियों को याद रखना चाहिए, जिन्हें यहोशू और जरुबाबेल की बात मानने से कई आशीषें मिलीं। बाइबल में इस तरह के और भी किस्से हैं जिनके बारे में हम सोच सकते हैं। उन्हें पढ़ने से पता चलता है कि कभी-कभी यहोवा के लोगों को ऐसी हिदायतें मिलीं जो उन्हें बेतुकी लगीं, लेकिन उन्हें मानने से उनकी जान बच गयी।​—न्यायि. 7:7; 8:10.

ଯିଖରୀୟଙ୍କ ଦର୍ଶନ ମନେ ରଖନ୍ତୁ

୧୭. ଯିଖରୀୟଙ୍କ ପଞ୍ଚମ ଦର୍ଶନ ବିଷୟରେ ଜାଣି ଯିହୁଦୀମାନଙ୍କୁ କିପରି ଲାଗିଲା ?

୧୭ जकरयाह ने जो पाँचवाँ दर्शन देखा, वह छोटा था मगर उससे यहूदियों में जोश भर आया। वे यहोवा की उपासना करते रहे और मंदिर बनाने में लग गए। बदले में यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति देकर उनकी मदद करता रहा। इस तरह वे अपना काम पूरा कर पाए और उन्हें बहुत खुशी हुई।​—एज्रा 6:16.

୧୮. ଦୀପବୃକ୍ଷ ଓ ଦୁଇ ଜୀତବୃକ୍ଷର ଦର୍ଶନରୁ ଆପଣଙ୍କୁ କʼଣ ଲାଭ ହୋଇପାରେ ?

୧୮ जकरयाह ने दीवट और जैतून के दो पेड़ों का जो दर्शन देखा, उससे आपको भी फायदा हो सकता है। इससे आपको विरोधियों का सामना करने की हिम्मत  मिल सकती है, बदलते हालात में भी आप खुश  रह सकते हैं और अगर कोई हिदायत मानना मुश्‍किल लगे, तब भी आप यहोवा पर भरोसा  रख सकते हैं और वह हिदायत मान सकते हैं। इसलिए जब आपकी ज़िंदगी में कोई मुश्‍किल आए, तो जकरयाह का दर्शन याद कीजिए और सोचिए कि यहोवा अपने लोगों की मदद कैसे करता है। फिर यहोवा पर भरोसा रखकर पूरे दिल से उसकी उपासना करते रहिए। (मत्ती 22:37) वह आपकी मदद करेगा और आप हमेशा खुशी से उसकी सेवा करते रह पाएँगे।​—कुलु. 1:10, 11.

ଗୀତ ୭ यहोवा बल हमारा!

[फुटनोट]

a यहोवा ने भविष्यवक्‍ता जकरयाह को कई रोमांचक दर्शन दिखाए। इनसे जकरयाह और यहोवा के लोगों को हिम्मत मिली, ताकि वे मुश्‍किलों के बावजूद शुद्ध उपासना दोबारा शुरू करें। उन दर्शनों से आज हमें भी अपनी मुश्‍किलों का सामना करने की हिम्मत मिल सकती है। इस लेख में हम उनमें से एक दर्शन पर चर्चा करेंगे। वह है एक दीवट और जैतून के दो पेड़ों का दर्शन।

b यह वह अर्तक्षत्र नहीं था जिसने सालों बाद राज्यपाल नहेमायाह के दिनों में राज किया और यहूदियों की बहुत मदद की।

c तसवीर के बारे में: एक भाई सोच रहा है कि वह ढलती उम्र और खराब सेहत के बावजूद कैसे खुश रह सकता है।

d तसवीर के बारे में: एक बहन सोच रही है कि आज यहोवा कैसे विश्‍वासयोग्य दास की मदद कर रहा है, ठीक जैसे उसने यहोशू और जरुबाबेल की मदद की थी।