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अध्ययन लेख 13

सच्ची उपासना कीजिए, खुश रहिए

सच्ची उपासना कीजिए, खुश रहिए

“हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, तू महिमा, आदर और शक्‍ति पाने के योग्य है।”​—प्रका. 4:11.

गीत 31 परमेश्‍वर के साथ चल!

एक झलक *

1-2. अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी उपासना से खुश हो, तो हमें क्या करना होगा?

 उपासना, यह शब्द सुनते ही आपके मन में कैसी तसवीर आती है? शायद आपके मन में एक राज-घर की तसवीर आए, जहाँ भाई-बहन सभा के लिए इकट्ठा हैं। या हो सकता है आपको किसी परिवार का खयाल आए, जो साथ मिलकर पारिवारिक उपासना कर रहा है और बहुत खुश है।

2 क्या यहोवा उन भाई-बहनों और उस परिवार की उपासना से खुश होगा? अगर वे यहोवा की मरज़ी के मुताबिक जीते हैं, उससे प्यार करते हैं और उसका आदर करते हैं, तो वह ज़रूर उनकी उपासना से खुश होगा। हम भी यहोवा से बहुत प्यार करते हैं और जानते हैं कि हमें उसी की उपासना करनी चाहिए। इसलिए हम उसकी तन-मन से उपासना करना चाहते हैं।

3. इस लेख में हम क्या-क्या जानेंगे?

3 इस लेख में हम जानेंगे कि पुराने ज़माने में यहोवा किस तरह की उपासना से खुश हुआ। फिर हम ऐसे आठ कामों के बारे में चर्चा करेंगे, जो आज हमारी उपासना का भाग हैं। इस चर्चा के दौरान सोचिए कि आप और अच्छी तरह उपासना कैसे कर सकते हैं। आखिर में हम जानेंगे कि यहोवा की उपासना करने से हमें खुशी क्यों मिलती है।

पुराने ज़माने में यहोवा की उपासना

4. यहोवा से प्यार करने और उसका आदर करने की वजह से पुराने ज़माने में उसके सेवकों ने क्या किया?

4 हाबिल, नूह, अब्राहम और अय्यूब जैसे लोग यहोवा का बहुत आदर करते थे और उससे प्यार करते थे। इसी वजह से उन्होंने उसकी आज्ञा मानी, उस पर विश्‍वास रखा और उसके लिए बलिदान चढ़ाए। उन्हें यहोवा की उपासना किस तरह से करनी थी, इस बारे में शायद ही उन्हें बताया गया हो। लेकिन उन्होंने ज़रूर जी-जान से यहोवा की उपासना की होगी, इसलिए वह उनकी उपासना से खुश था। बाद में यहोवा ने इसराएलियों को मूसा का कानून दिया, जिसमें उसने उपासना के बारे में बहुत-से नियम दिए। इस तरह इसराएली जान पाए कि यहोवा किस तरह की उपासना चाहता है।

5. यीशु की मौत और उसके ज़िंदा होने के बाद क्या बदलाव हुआ?

5 लेकिन यीशु की मौत और उसके ज़िंदा होने के बाद एक बड़ा बदलाव हुआ। अब यहोवा के उपासकों को मूसा का कानून मानने की ज़रूरत नहीं थी। (रोमि. 10:4) मसीहियों को एक नया कानून दिया गया, “मसीह का कानून।” (गला. 6:2) इसमें ढेरों नियम नहीं थे, जिन्हें मसीहियों को याद करके मानना था। इसके बजाय उन्हें यीशु के नक्शे-कदम पर चलना था और उसकी शिक्षाओं को मानना था। आज हम भी मसीह का कानून मानते हैं। हम मसीह के नक्शे-कदम पर चलने की पूरी कोशिश करते हैं ताकि यहोवा हमसे खुश हो और हमें “ताज़गी” मिले।​—मत्ती 11:29.

6. इस लेख पर चर्चा करते समय आप किस बारे में सोच सकते हैं?

6 अब हम एक-एक करके उन कामों के बारे में चर्चा करेंगे, जो हमारी उपासना का भाग हैं। इस दौरान सोचिए, ‘क्या मैं यह काम अच्छे-से कर रहा हूँ या क्या मुझे सुधार करना है?’ अगर आप वह काम अच्छे-से कर रहे हैं, तो खुश होइए। लेकिन अगर आपको सुधार करना है, तो यहोवा से प्रार्थना करके सोचिए कि आप बदलाव कैसे कर सकते हैं।

आज हम यहोवा की उपासना कैसे करते हैं?

7. जब हम दिल से प्रार्थना करते हैं, तो यहोवा को कैसा लगता है?

7 यहोवा से प्रार्थना करके।  बाइबल में लिखा है कि हमारी प्रार्थनाएँ धूप जैसी होती हैं। पवित्र डेरे में और फिर बाद में मंदिर में जो धूप चढ़ाया जाता था, उसे बहुत ध्यान से तैयार किया जाता था। (भज. 141:2) उस धूप की खुशबू से यहोवा खुश होता था। उसी तरह हम प्रार्थना करने से पहले तैयारी कर सकते हैं। हम सोच सकते हैं कि हम क्या-क्या कहेंगे। अगर हम दिल से प्रार्थना करेंगे, तो यहोवा ज़रूर “खुश” होगा, फिर चाहे हमारे शब्द साधारण ही क्यों न हों। (नीति. 15:8; व्यव. 33:10) जब हम यहोवा को बताते हैं कि हम उससे कितना प्यार करते हैं और उसने हमारे लिए जो-जो किया है उसके लिए हम एहसानमंद हैं, तो यह सुनकर उसे बहुत अच्छा लगता है। वह चाहता है कि हम उसे अपनी चिंताएँ, परेशानियाँ, अपने लक्ष्य, अपनी ख्वाहिशें, सब बताएँ। तो क्यों न आप प्रार्थना करने से पहले थोड़ा रुककर सोचें कि आप क्या-क्या कहेंगे? तब आपकी प्रार्थना उम्दा किस्म के “धूप” जैसी होगी।

8. हम किस तरह यहोवा की तारीफ कर सकते हैं?

8 यहोवा की तारीफ करके।  (भज. 34:1) जब हम दिल से यहोवा के एहसानमंद होंगे, तो हम ज़रूर उसकी तारीफ करेंगे। अगर हम समय निकालकर सोचें कि यहोवा ने हमारे लिए क्या कुछ किया है, तो हम कभी उसकी तारीफ करते नहीं थकेंगे। हम लोगों को यहोवा के मनभावने गुणों और कामों के बारे में बताएँगे। यहोवा की तारीफ करने का एक बहुत बढ़िया तरीका है, दूसरों को गवाही देना। ऐसा करके हम ‘परमेश्‍वर को तारीफ का बलिदान, यानी अपने होंठों का फल’ चढ़ाते हैं। (इब्रा. 13:15) हम चाहते हैं कि हमारा यह “बलिदान” बढ़िया-से-बढ़िया हो। इसलिए हमें पहले से तैयारी करनी चाहिए कि हम दूसरों को गवाही देते वक्‍त क्या कहेंगे, ठीक जैसे हम प्रार्थना करने से पहले तैयारी करते हैं। पहले से तैयारी करने से हम जोश से बात कर पाएँगे।

9. इसराएलियों की तरह साथ इकट्ठा होने से हमें क्या फायदे होते हैं? अपना कोई अनुभव बताइए।

9 सभाओं में जाकर।  इसराएलियों से कहा गया था, “साल में तीन बार सभी आदमी अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने हाज़िर हुआ करें। . . . उन्हें उस जगह हाज़िर होना है जो परमेश्‍वर चुनेगा।” (व्यव. 16:16) अगर इसराएली यह आज्ञा मानते, तो उनके घर और खेत की रखवाली कौन करता? यहोवा ने उनसे वादा किया था, “जब तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने जाओगे तो कोई भी तुम्हारी ज़मीन का लालच नहीं करेगा।” (निर्ग. 34:24) इसलिए वे यहोवा पर भरोसा रखकर हर साल त्योहार मनाने जाते थे। वहाँ जाने से उन्हें बहुत फायदा होता था। वे यहोवा का कानून अच्छे-से समझ पाते थे, इस बारे में सोच पाते थे कि यहोवा ने उनका कितना भला किया है और दूसरे इसराएलियों के साथ वक्‍त बिता पाते थे। (व्यव. 16:15) इसराएलियों की तरह हमें सभाओं में जाने के लिए शायद कुछ त्याग करने पड़ें, लेकिन उनकी तरह हमें कई फायदे भी होते हैं। और जब हम सभाओं की पहले से अच्छी तैयारी करते हैं और वहाँ छोटे-छोटे जवाब देते हैं, तो यहोवा को बहुत खुशी होती है।

10. यहोवा की तारीफ में गीत गाना क्यों ज़रूरी है?

10 सभाओं में भाई-बहनों के साथ गीत गाकर।  (भज. 28:7) इसराएलियों को पता था कि यहोवा की उपासना करने के लिए गीत गाना कितना ज़रूरी है। राजा दाविद ने 288 लेवियों को मंदिर में गीत गाने का काम सौंपा था। (1 इति. 25:1, 6-8) आज जब हम यहोवा के लिए गीत गाते हैं, तो उसे बता रहे होते हैं कि हम उससे कितना प्यार करते हैं। हमें यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि हम ठीक से नहीं गा पाते। ज़रा सोचिए, हम सब बात करते वक्‍त “कई बार गलती करते हैं,” फिर भी हम सभाओं में जवाब और भाषण देने और दूसरों को गवाही देने से पीछे नहीं हटते। (याकू. 3:2) उसी तरह चाहे हमें लगे कि हम ठीक से नहीं गा पाते, फिर भी हमें यहोवा की तारीफ में गीत गाने चाहिए।

11. व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 को ध्यान में रखते हुए हमें पारिवारिक उपासना के लिए समय क्यों तय करना चाहिए?

11 बाइबल का अध्ययन करके और अपने बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाकर।  सब्त का दिन यहोवा की उपासना करने के लिए अलग रखा गया था। इस दिन इसराएली कोई काम नहीं करते थे बल्कि यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने पर ध्यान देते थे। (निर्ग. 31:16, 17) वे अपने बच्चों को यहोवा और उसके भले कामों के बारे में भी सिखाते थे। हमें भी बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने के लिए समय अलग रखना चाहिए। ऐसा करने से हम यहोवा की उपासना कर रहे होंगे और उसके करीब आएँगे। (भज. 73:28) इसके अलावा, हमें अपने परिवार के साथ मिलकर भी अध्ययन करना चाहिए। इस तरह हम एक नयी पीढ़ी की यानी अपने बच्चों की मदद कर रहे होंगे ताकि वे भी यहोवा के दोस्त बन पाएँ।​व्यवस्थाविवरण 6:6, 7 पढ़िए।

12. पवित्र डेरा और उसकी चीज़ें बनाना यहोवा की नज़र में कैसा काम था और इससे हम क्या सीखते हैं?

12 राज-घर और दूसरी इमारतें बनाकर और उनका रख-रखाव करके।  बाइबल में लिखा है कि पवित्र डेरा और उसकी चीजें बनाना “पवित्र काम” था। (निर्ग. 36:1, 4) आज हम यहोवा की उपासना के लिए राज-घर और दूसरी इमारतें बनाते हैं। उस काम को भी यहोवा पवित्र सेवा मानता है। कुछ भाई-बहन निर्माण काम में घंटों बिताते हैं। इस काम में वे जो मेहनत करते हैं, हम उसकी बहुत कदर करते हैं! ये भाई-बहन निर्माण काम करने के साथ प्रचार भी करते हैं। कुछ तो पायनियर सेवा भी करना चाहते हैं। अगर ऐसे भाई-बहन पायनियर सेवा के योग्य हैं और अर्ज़ी भरते हैं, तो प्राचीन उनकी अर्ज़ी मंज़ूर कर सकते हैं। ऐसा करके प्राचीन निर्माण काम का साथ दे रहे होंगे। चाहे हम निर्माण काम करना जानते हों या नहीं, एक काम हम ज़रूर कर सकते हैं। हम सब उपासना में इस्तेमाल होनेवाली इमारतों को साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रख सकते हैं।

13. हम दान क्यों देते हैं?

13 राज के काम के लिए दान देकर।  इसराएलियों को बताया गया था कि जब वे त्योहार मनाने जाएँगे, तो यहोवा के सामने खाली हाथ न जाएँ। (व्यव. 16:16) उन्हें अपनी हैसियत के हिसाब से कोई-न-कोई भेंट ले जानी थी। ऐसा करके वे दिखाते कि वे यहोवा के शुक्रगुज़ार हैं, क्योंकि यहोवा ने उनके लिए बहुत-से भले काम किए थे। आज हम भी यहोवा का एहसान मानते हैं, क्योंकि उसने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। अपना एहसान ज़ाहिर करने का एक तरीका है, अपनी मंडली के कामों और पूरी दुनिया में हो रहे काम के लिए दान करना। इस तरह हम यहोवा की उपासना भी कर रहे होते हैं। हम जितना हो सके उतना दान कर सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा, “अगर एक इंसान कुछ देने की इच्छा रखता है, तो उसके पास देने के लिए जो कुछ है उसे स्वीकार किया जाता है। उससे कुछ ऐसा देने की उम्मीद नहीं की जाती जो उसके पास नहीं है।” (2 कुरिं. 8:4, 12) हम पूरे दिल से जो दान देते हैं, वह भले ही थोड़ा क्यों न हो, यहोवा उसकी बहुत कदर करता है।​—मर. 12:42-44; 2 कुरिं. 9:7.

14. नीतिवचन 19:17 के मुताबिक, जब हम अपने भाइयों की मदद करते हैं तो यहोवा उसे क्या मानता है?

14 ज़रूरत की घड़ी में भाई-बहनों की मदद करके।  यहोवा ने इसराएलियों से वादा किया था कि अगर वे गरीबों की मदद करेंगे, तो वह बदले में उन्हें आशीष देगा। (व्यव. 15:7, 10) उसी तरह जब भी हम किसी ज़रूरतमंद भाई या बहन की मदद करते हैं, तो यह ऐसा है मानो हम यहोवा को कुछ दे रहे हैं। (नीतिवचन 19:17 पढ़िए।) जब पौलुस कैद में था, तो फिलिप्पी के मसीहियों ने उसके लिए कुछ भेजा। पौलुस ने कहा कि उनका भेजा हुआ तोहफा ‘परमेश्‍वर को स्वीकार होनेवाला ऐसा बलिदान है जिससे वह बेहद खुश होता है।’ (फिलि. 4:18) क्यों न आप भी सोचें, ‘क्या मंडली में ऐसा कोई है जिसकी मैं मदद कर सकता हूँ?’ जब हम भाई-बहनों की मदद करने के लिए अपना समय, ताकत और दूसरी चीज़ें लगाते हैं, तो यहोवा खुश होता है। यह उसकी नज़र में उपासना करने के बराबर है।​—याकू. 1:27.

यहोवा की उपासना करने से हमें खुशी मिलती है

15. सच्ची उपासना करना बोझ क्यों नहीं है?

15 सच्ची उपासना करने में समय लगता है और मेहनत लगती है। मगर यह बोझ नहीं है। (1 यूह. 5:3) हम यहोवा की उपासना इसलिए करते हैं क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं । मान लीजिए एक बच्चा अपने पापा के लिए एक तसवीर बनाना चाहता है और उसे तोहफे में देना चाहता है। वह उसे बनाने में बहुत मेहनत करता है और घंटों लगाता है। वह इसे वक्‍त की बरबादी नहीं समझता है। इसके बजाय वह यह काम खुशी-खुशी करता है क्योंकि वह अपने पापा से प्यार करता है। उसी तरह हम भी यहोवा से प्यार करते हैं। इसलिए सच्ची उपासना करने में समय लगाने और मेहनत करने में हमें खुशी होती है।

16. इब्रानियों 6:10 के मुताबिक, यहोवा हममें से हरेक की मेहनत के बारे में कैसा महसूस करता है?

16 माता-पिता अपने बच्चों से एक जैसा तोहफा पाने की उम्मीद नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि हर बच्चा अलग है। उन्हें पता है कि एक जो कर सकता है, वह शायद दूसरा न कर पाए। उसी तरह हमारा पिता यहोवा हममें से हरेक के हालात समझता है। हो सकता है आप दूसरे भाई-बहनों से ज़्यादा सेवा कर पाते हों। या हो सकता है कि आप ढलती उम्र, खराब सेहत या परिवार की ज़िम्मेदारियों की वजह से दूसरों जितनी सेवा नहीं कर पाते। फिर भी निराश मत होइए। (गला. 6:4) अगर आप सही इरादे और जी-जान से यहोवा की सेवा करते हैं, तो वह ज़रूर खुश होगा। वह आपके काम  कभी नहीं भूलेगा। (इब्रानियों 6:10 पढ़िए।) यहोवा यह भी देखता है कि आपमें क्या-क्या करने की इच्छा है। वह चाहता है कि आप उसकी उपासना करने के लिए जो भी करते हैं, उससे खुशी पाएँ।

17. (क) अगर उपासना से जुड़ा कोई काम करना हमें मुश्‍किल लगे, तो हम क्या कर सकते हैं? (ख) “ खुशी पाइए” बक्स में दिखाए किस काम को करने से आपको खुशी मिलती है?

17 इस लेख में हमने उपासना से जुड़े जिन कामों के बारे में बात की, उनमें से कोई काम करना शायद हमें मुश्‍किल लगे, जैसे निजी अध्ययन करना या प्रचार करना। लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। अगर हम वह काम करते रहें, तो हमें धीरे-धीरे मज़ा आने लगेगा और हमें फायदा भी होगा। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। मान लीजिए हम किसी तरह की कसरत करना चाहते हैं या कोई साज़ बजाना सीखना चाहते हैं। अगर हम ये काम कभी-कभार ही करेंगे, तो ज़्यादा तरक्की नहीं कर पाएँगे। लेकिन अगर हम ये हर रोज़ करेंगे, तो हमें फायदा होगा। हम शायद शुरू-शुरू में थोड़ा वक्‍त ही दें और धीरे-धीरे उस वक्‍त को बढ़ाएँ। जब हमें अपनी मेहनत के अच्छे नतीजे मिलेंगे, तो हमें ये काम करने में मज़ा आने लगेगा। उसी तरह अगर हम उपासना से जुड़ा कोई काम करने में मेहनत करेंगे, तो हम उसे अच्छे-से कर पाएँगे और हमें खुशी मिलेगी।

18. हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम काम क्या है और इसे करने से हमें कौन-सी आशीषें मिलती हैं?

18 हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम काम है, पूरे दिल से यहोवा की उपासना करना। ऐसा करने से आज हम खुश रहते हैं, एक अच्छी ज़िंदगी जी पाते हैं और भविष्य में हमें हमेशा तक यहोवा की उपासना करने का मौका मिलेगा। (नीति. 10:22) आज हमें मन की शांति भी मिलती है, क्योंकि हम जानते हैं कि मुश्‍किलें आने पर यहोवा अपने उपासकों को कभी नहीं छोड़ेगा बल्कि उनकी मदद करेगा। (यशा. 41:9, 10) इसलिए आइए हम यहोवा की उपासना करते रहें, जो अपनी सृष्टि से ‘महिमा और आदर पाने के योग्य है।’ (प्रका. 4:11) इससे हमें बहुत खुशी मिलेगी!

गीत 24 यहोवा के पर्वत पर आओ

^ यहोवा ने सबकुछ बनाया है, इसलिए हमें उसकी उपासना करनी चाहिए। पर वह हमारी उपासना से तभी खुश होगा, जब हम उसके सिद्धांतों और नियमों के हिसाब से चलेंगे। इस लेख में हम उपासना से जुड़े आठ कामों के बारे में चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि हम ये काम और अच्छे-से कैसे कर सकते हैं और इनसे खुशी कैसे पा सकते हैं।